बीवी का डबल इश्क पति ने उठाया रिस्क – भाग 1

मृतक की उम्र 35 से 40 वर्ष के बीच की लग रही थी. वह पैंटशर्ट पहने हुए था. उस के जिस्म पर चोट के निशान थे और सिर फटा हुआ था. सिर के गहरे जख्म से खून बह कर उस के सारे चेहरे और शर्ट पर फैल कर सूख चुका था. इस से अनुमान लगाया गया कि युवक को मरे हुए 10-12 घंटे से ऊपर हो गए हैं.

जमीन पर खून दिखाई नहीं दे रहा था और न ही ऐसे चिह्न वहां थे, जिस से यह समझा जा सके कि युवक की हत्या इसी जगह की गई है. साफ लग रहा था कि युवक की हत्या कहीं और की गई होगी, उस के बाद उसे ला कर यहां पर फेंक दिया गया था.

मिग्सन ग्रीन सोसायटी (गौतमबुद्ध नगर) का रहने वाला रवि कहीं जाने के लिए नहाधो कर तैयार हुआ था. उस ने अभी जूते के फीते बांधे ही थे कि जेब में रखे मोबाइल की घंटी बजने लगी. रवि ने मोबाइल निकाला. स्क्रीन पर उस की प्रेमिका प्रियंका का फोन नंबर फ्लैश हो रहा था.

रवि तुरंत काल रिसीव कर आतुरता से बोला, ”बोलो जानम, इस गरीब की याद कैसे आ गई तुम्हें?’’

”गरीब क्यों कहते हो अपने आप को रवि. मेरी नजर में तो तुम राजा हो राजा.’’ दूसरी ओर से प्रियंका का स्वर उभरा.

रवि हंस पड़ा, ”चलो, तुम्हारी नजर में मेरी कुछ तो कीमत है. कहो, कैसे याद किया मुझे?’’

”कहां हो?’’

”घर पर ही हूं.’’

”मेरे घर चले आओ, मैं अकेली हूं आज.’’ प्रियंका के स्वर में कामुकता का भाव था.

”तुम्हारा पति आलोक कहां गया?’’ रवि ने पूछा.

”अपनी बहन के यहां गया है, कल लौटेगा. तुम आ जाओ, रात रंगीन करने का बहुत अच्छा मौका हाथ आया है.’’

”मैं अभी आया मेरी जान.’’ आतुरता से बोला रवि, ”बोलो, क्या ले कर आऊं, चिकन या मटर पनीर?’’

”मैं ने चिकन मंगवा रखा है, पीने का मन हो तो अपनी चौइस का ब्रांड लेते आना.’’

”ठीक है,’’ रवि ने कहा और काल डिसकनेक्ट कर उस ने मोबाइल जेब के हवाले कर लिया. घर से निकल कर एक ठेके से उस ने अद्धा खरीदा, उसे जेब में रख कर उस ने आटो किया और देवला गांव, पक्षी विहार, गौतमबुद्ध नगर में स्थित आलोक के घर पहुंच गया. उस ने दरवाजा खटखटाया. दरवाजा प्रियंका ने खोला.

रवि अंदर आ गया. प्रियंका ने दरवाजा बंद कर दिया और वह भी रवि के पीछे अंदर बैडरूम में पहुंच गई. उस ने बढिय़ा बनावशृंगार किया हुआ था.

”बच्चे दिखाई नहीं दे रहे हैं प्रियंका.’’ रवि ने पलंग पर बैठते हुए पूछा.

”मैं ने उन्हें नानी के यहां भेज दिया है.’’ प्रियंका अंगड़ाई लेते हुए रवि की बगल में आ बैठी.

”बहुत समझदार हो.’’

”यार रवि, जब एंजौय करते हैं तो किसी प्रकार का डिस्टरबेंस नहीं होना चाहिए. अब पूरी रात हमारी है.’’ प्रियंका ने कहने के बाद रवि के गले में अपनी नाजुक कलाइयां डाल दीं, ”तुम्हारी शिकायत थी कि मैं तुम्हें कभी पूरा मौका नहीं देती.’’

”मैं गलत कहां कहता हूं, तुम अपना सारा प्यार सर्वेश पर लुटाती रही हो.’’ रवि के स्वर में शिकायत थी.

”पहले वह मुझे अच्छा लगता था, लेकिन जब तुम मेरी जिंदगी में आए तो मैं ने तुम दोनों को तराजू में रख कर तोला. तुम और तुम्हारा प्यार सर्वेश से कहीं अधिक वजनी निकला, इसलिए मैं ने सर्वेश की ओर से किनारा कर लिया.’’ प्रियंका ने अपना गाल रवि के गाल से रगड़ते हुए कहा.

रवि ने प्रियंका की कमर में बाहें लपेट कर उसे अपनी गोद में खींच लिया, ”मैं ने तुम्हें दिल से प्यार किया है स्वीट हार्ट. सर्वेश की तरह मैं तुम्हारे जिस्म का भूखा नहीं बना. हम कई दिनों से मिल रहे हैं, आज तुम ने पहली बार मुझे बिस्तर पर आमंत्रित किया है. मैं अपने आप को खुशनसीब मान रहा हूं.’’

”अब समय मत गंवाओ… मैं तुम्हारे प्यार के लिए तड़प रही रही हूं.’’

रवि ने प्रियंका के यौवन को दुलारना शुरू कर दिया. उस की अंगुलियां प्रियंका के गुदाज जिस्म पर फिसलने लगीं. प्रियंका पल प्रतिपल उन्मादित होती चली गई और वह पल भी आ गया, जब रवि ने उसे पूरी तरह अपने आगोश में समेट लिया और उस पर छाता चला गया.

वह रात प्रियंका और रवि ने पूरी मौजमस्ती से गुजारी. सुबह वहीं से फ्रैश हो कर रवि काम पर जाने के लिए निकला तो उसी वक्त प्रियंका का पति आलोक वहां आ गया.

भेद खुलतेखुलते ऐसे बचा

रवि एक बार के लिए आलोक को देख कर सकपका गया, फिर उस ने तुरंत अपने आप को संभाल लिया, ”आलोक भैया नमस्ते. मैं आप से ही मिलने आया था, भाभी ने बताया आप बाहर गए हुए हो, लौट रहा था कि आप आ गए.’’

”कैसे हो, बहुत दिनों बाद इधर आए हो.’’ आलोक ने आत्मीयता से पूछा.

”समय ही नहीं मिलता भैया.’’ रवि बोला, ”आज सोचा सुबह सुबह मिल लूंगा, अच्छी किस्मत है मेरी, मेरा आना बेकार नहीं गया. आप आ गए.’’

”कुछ काम था क्या मुझ से?’’

”काम कुछ नहीं भैया, अगले हफ्ते मेरा बर्थडे है. मैं छोटी सी पार्टी दे रहा हूं. आप भाभीजी को ले क र आ जाना.’’ रवि ने झूठ बोला.

”जरूर आऊंगा, दिन और समय बता दो.’’

”2 अक्तूबर.’’ रवि हंस कर बोला, ”उस दिन बापूजी का जन्मदिन होता है. मैं भी उसी दिन पैदा हुआ था. आप शाम को 5 बजे आ जाइए, खाना भी वहीं खाइएगा.’’

”ठीक है, मैं जरूर आऊंगा.’’ आलोक कह कर रवि के साथ बाहर आ गया. उस ने इधरउधर देखा, फिर धीरे से बोला, ”रवि, एक बात कहनी है तुम से.’’

”कहिए न भैया.’’ धड़कते दिल से रवि ने कहा.

”यह सर्वेश अजकल तुम्हारी भाभी प्रियंका को कुछ ज्यादा ही परेशान कर रहा है. गलती प्रियंका की ही थी, जो उसे मुंह लगा लिया. प्रियंका ने तो उस से अपनापन जताया था, अब वह उसी पर हावी होने की कोशिश कर रहा है. प्रियंका कहीं बाहर जाती है तो वह उस पर गलत कमेंट करता है. उसे 1-2 बार समझाया, लेकिन वह बाज ही नहीं आ रहा है.’’

”धुनाई कर दो हरामी की. मैं आप के साथ हूं.’’ रवि जोश में भर कर बोला, ”ऐसे व्यक्ति को सबक मिलना जरूरी है.’’

”ठीक कहते हो, जब जरूरत होगी, मैं तुम्हें बुला लूंगा.’’ आलोक ने कहा.

”मैं आप का फोन सुनते ही आ जाऊंगा भैया. अब चलता हूं, काम के लिए देर हो रही है.’’ कहने के बाद रवि इजाजत ले कर पैदल ही वहां से चल पड़ा.

वह अब काफी संतुष्ट था, क्योंकि आलोक की गैरमौजूदगी में उस के घर रात भर रहने की बात रहस्य ही बनी रही थी. आलोक को उस पर थोड़ा सा भी शक नहीं हुआ था.

नाजायज रिश्तों में हक जमाने की भूल

सईद जिस मकान में रह रहा था, वह उस के साले शकील का था. शकील अपनी पत्नी शबनम और बच्चों के साथ मकान के भूतल पर रहता था जबकि सईद प्रथम तल पर रह रहा था. सईद छत पर लगे लोहे के जाल से शबनम और शकील की गतिविधियों नजर रखे रहता था. जैसे ही शकील काम पर जाने के लिए घर से निकलता, सईद झट से शबनम के पास पहुंच जाता था. इस के बाद दोनों जी भर कर अपनी हसरतें पूरी करते थे.

35 वर्षीय शकील लखनऊ के हसनगंज थाना क्षेत्र के रमबगिया खदरा मोहल्ले में रहता था. उस के पिता अहमद हुसैन दरजी थे. पिता से यही काम सीखने के बाद वह भी टेलर बन गया था. करीब 10 साल पहले उस की शादी लखनऊ से सटे हरदोई जिले के संडीला कस्बे के महताब मूसापुर गांव की रहने वाली शबाना अंजुम उर्फ शबनम से हुई थी. एमए तक पढ़ी शबनम खूबसूरत युवती थी.

अपने से 5 साल छोटी, खूबसूरत और पढ़ी लिखी पत्नी घर में आने के बाद शकील की जिम्मेदारियां और भी बढ़ गई थीं. सुबह को दुकान पर गया शकील अब ज्यादा देर तक दुकान पर बैठने लगा. वह पत्नी की सारी जरूरतों का तो खयाल रखता, लेकिन उस के मन की चाहत पर ध्यान नहीं दे पाता था. वह सजी धजी पत्नी की भावना को समझने के बजाय करवट बदल कर जल्दी सो जाता था. शबनम कभी पहल करती तो वह तवज्जो नहीं देता था.

कह सकते हैं कि शबनम वासना की आग में जलती रहती थी. यह भी सच है कि वासना की आग में जलने वाली औरत अकसर गुमराह हो जाती है. ऐसे में वह अपनी और घर की बदनामी के बारे में भी नहीं सोचती.

इसी दौरान शकील का बहनोई सईद अख्तर उर्फ कल्लू उर्फ माटू उस के यहां रहने के लिए आ गया था. कानपुर के थाना अनवरगंज के कुली बाजार में रहने वाले सईद का विवाह शकील की बहन नजमा से हुआ था. शादी के कई साल बीत जाने के बाद भी नजमा मां नहीं बन सकी थी. सईद अकसर शकील के घर आताजाता रहता था.

एक दिन दोनों के बीच बातचीत हुई तो शकील ने सईद से लखनऊ में रह कर अपना कोई काम करने की बात कही. सईद को साले का यह सुझाव अच्छा लगा. उस ने सोचा कि लखनऊ में रह कर काम करने पर उस की आमदनी बढ़ सकती है. बात जब रहने के इंतजाम की आई तो शकील ने उसे अपने मकान की पहली मंजिल पर रहने को कह दिया.

कुछ दिनों बाद शकील अपने सामान के साथ कानपुर से लखनऊ आ गया. पत्नी नजमा को वह कानपुर में ही छोड़ आया था. लखनऊ आ कर उस ने तसला बनाने का काम शुरू कर दिया.

शकील सुबह काम पर जाता तो देर रात ही घर लौटता था. जबकि सईद कुछ घंटे काम कर के कमरे पर लौट आता था. खाली समय होने पर वह शबनम के साथ बैठ कर बातें करता. चूंकि दोनों में ननदोई सलहज का रिश्ता था, इसलिए आपस में हंसीमजाक होता रहता था. सईद शबनम को अपनी बाइक पर बैठा कर घुमाने ले जाता और बाजार में अच्छी से अच्छी चीजें खिलाता पिलाता था.

शबनम भी इतनी नासमझ नहीं थी, जो ननदोई की आंखों की भाषा न पढ़ पाती. इस के बावजूद वह जल्दबाजी में अपने कदम उस की तरफ नहीं बढ़ाना चाहती थी.

एक दिन पति के जाने के बाद शबनम सईद के लिए चाय बना रही थी. उस समय कमरे में बैठा सईद उसे अपलक निहार रहा था. शबनम ने उसे कनखियों से देखा तो मन ही मन खुश हुई. चाय का कप ले कर वह सईद के पास आई और कप उस की ओर बढ़ाते हुए मुसकरा कर बोली, ‘‘तुम्हारे पास कोई काम नहीं है क्या, जो मुझे टकटकी लगा कर देखते रहते हो?’’

सईद ने बेहिचक जवाब दिया, ‘‘शबनम, तुम्हें देखना भी तो काम ही है. वैसे एक बात बताऊं, मैं तुम्हें देखता कम हूं, तुम्हारे बारे में सोचता ज्यादा हूं.’’

यह सुनते ही शबनम की धड़कनें बढ़ गईं. वह उस के सामने बैठ गई. फिर घुटने पर कोहनी रख कर हथेली पर ठोड़ी टिकाते हुए मुसकराई, ‘‘क्या सोचते हो, जरा मुझे भी तो बताओ.’’

‘‘यही कि शकील निरा बुद्धू है. इतनी खूबसूरत बीवी मिली है, लेकिन उस की कद्र तक करना नहीं जानता. देखो न क्या हाल बना कर रखा है.’’ सईद ने शबनम को पैरों से ले कर सिर तक निहारते हुए कहा.

शबनम को लगा कि सईद उस के मन की ही बात कह रहा है. वह बोली, ‘‘क्या करें, उन्हें तो सिर्फ पैसों से प्यार है, मगर पैसे के अलावा घरगृहस्थी की और भी जरूरतें होती हैं, इस बात को वो नहीं समझते.’’

शबनम के इतना कहते ही सईद ने लोहा गर्म देख शब्दों का वार किया, ‘‘शबनम, शकील अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं करता तो न सही. तुम परेशान क्यों होती हो, मैं हूं न.’’

शबनम के लिए यह खुला आमंत्रण था. उस के गालों पर हया की सुर्खी दौड़ी तो लाज से निगाहें झुक गई. वह झिझकते हुए बोली, ‘‘कहते हुए सोच तो लिया करो कि क्या कह रहे हो.’’

‘‘शबनम, यह बात मैं तुम से काफी दिनों से कहना चाह रहा था, लेकिन तुम ने कभी मौका ही नहीं दिया.’’ सईद ने व्याकुल हो कर उस का हाथ पकड़ लिया.

शबनम मन ही मन खुश थी. उस का मन चाह रहा था कि सईद उसे बांहों में भर कर सीने से लगा ले और उसे खूब प्यार करे. इस के बावजूद वह दिखाने के लिए नाटकीय अंदाज में बोली, ‘‘छोड़ो न मुझे, यह क्या कर रहे हो? किसी ने देख लिया तो हमारी शामत आ जाएगी.’’

‘‘इस मकान में हम दोनों के सिवा है कौन, जो हमें देख लेगा. मेन गेट मैं ने पहले से बंद कर रखा है. इसलिए बाहर से कोई अंदर नहीं आ सकता.’’ फिर सईद उस के नजदीक आ कर बोला, ‘‘वैसे भी समझदार मर्द वही है, जो औरत के इनकार को ही उस का इकरार समझे.’’

सईद ने उसे बांहों में उठाया और ले जा कर बेड पर लिटा दिया. वह खुद भी उस के पहलू में लेट गया. इस के बाद दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कर लीं.

सईद का प्यार पा कर शबनम बहुत खुश हुई. ननदोई सलहज के बीच एक बार अवैध संबंध क्या बने कि वे रोज रोज यह खेल खेलने लगे. शकील को इस बात की भनक तक नहीं लगी कि उस के जाने के बाद पत्नी और बहनोई क्या गुल खिला रहे हैं. समय के साथ उन के रिश्ते परवान चढ़ने लगे.

लखनऊ की आबोहवा देखने के बाद शबनम भी कहीं नौकरी करना चाहती थी. इस बारे में उस ने पति से बात की तो उस ने उसे नौकरी करने की इजाजत दे दी. एमए पास शबनम अखबारों में छपे नौकरी के विज्ञापन देखने लगी. अपनी योग्यता के अनुसार उस ने कई कंपनियों में आवेदन किया. कई जगह इंटरव्यू भी दिए. आखिर उसे सफलता मिल ही गई.

शबनम को हजरतगंज में शक्ति भवन के पीछे स्थित आइडिया कंपनी के काल सेंटर में नौकरी मिल गई. नौकरी मिलने पर वह बहुत खुश हुई. उसे अलगअलग शिफ्ट में काम पर जाना होता था. सुबह जल्दी जाना होता तो वह टैंपो से चली जाती और शाम को जाना होता तो सईद उसे अपनी बाइक से छोड़ आता था.

शबनम काफी मिलनसार और हंसमुख स्वभाव की थी, इसलिए वह औफिस में काम करने वाले लोगों से जल्दी ही घुलमिल गई. उस के औफिस में संजय नाम का एक युवक काम करता था. चूंकि औफिस के काम के मामले में शबनम एकदम नई थी, इसलिए संजय ही उस की हेल्प करता था. जल्दी ही दोनों के बीच अच्छीभली दोस्ती हो गई.

संजय शबनम की खूबसूरती पर फिदा था. वह उस का पूरी तरह से खयाल रखता था. शबनम को भी उस का साथ अच्छा लगने लगा. इस की एक वजह यह थी कि संजय उस का हमउम्र था जबकि सईद उस से 20 साल बड़ा था. धीरेधीरे दोनों में दूरियां घटती गईं और वे काफी नजदीक आ गए. दोनों के मन में एकदूसरे के प्रति चाहत थी. एक दिन संजय ने शबनम के सामने अपने प्यार का इजहार किया तो शबनम ने सहजता से उस का प्यार कुबूल कर लिया.

संजय से प्यार होने के बावजूद शबनम ने सईद से दूरी नहीं बनाई. वह उस की ख्वाहिशों को पूरा करती रही. वह उसे इसलिए छोड़ना नहीं चाहती थी क्योंकि उस ने उस समय उस का साथ दिया था, जब उसे एक साथी की सख्त जरूरत थी. इस तरह शबनम पति के अलावा 2 नावों की सवारी कर रही थी.

5 मार्च, 2014 को सुबह करीब साढ़े 5 बजे शबनम घर से औफिस जाने के लिए निकली. उस के जाने के बाद शकील कुछ देर के लिए बेड पर यूं ही लेट गया. अभी मुश्किल से 15-20 मिनट ही हुए थे कि घर के बाहर किसी चीज के गिरने की आवाज आई और शोर भी सुनाई दिया. शकील बाहर निकल कर आया तो उस ने शबनम को दरवाजे के बाहर लहूलुहान हालत में पड़े पाया. गिरने के बाद वह बेहोश हो गई थी. पड़ोसी भी उस की हालत देख कर वहां पहुंच गए थे.

पत्नी को इस हाल में देख कर शकील घबरा गया. पड़ोसियों की मदद से वह शबनम को उठा कर बलरामपुर अस्पताल ले गया. लेकिन डाक्टरों ने उसे मृत घेषित कर दिया. चूंकि यह पुलिस केस था, इसलिए अस्पताल से इस की सूचना हसनगंज थाने को दे दी गई.

सूचना पा कर थानाप्रभारी दिनेश सिंह पुलिस टीम के साथ अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने लाश का निरीक्षण किया तो पता चला शबनम के गले व पेट पर किसी तेज धारदार हथियार से वार किए गए थे. शबनम के पति से बात करने के बाद थानाप्रभारी ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया.

शकील की तहरीर पर पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

केस दर्ज होने के बाद थानाप्रभारी ने जांच शुरू कर दी. लेकिन 10 दिनों की तफ्तीश के बाद भी उन्हें हत्यारों के बारे में कोई क्लू नहीं मिला. इस सिलसिले में उन्होंने कई मर्तबा शकील और उस के बहनोई सईद से पूछताछ की. पूछताछ के बाद उन्हें सईद पर शक होने लगा.

15 मार्च, 2014 को दोपहर के समय पुलिस ने सईद को थाने बुला कर फिर से पूछताछ की. सख्ती से की गई पूछताछ में उस ने शबनम की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने हत्या की जो वजह बताई, वह चौंकने वाली थी.

शबनम जब काल सेंटर में नौकरी करने लगी तो सईद को किसी तरह पता चल गया कि उस की दोस्ती उस के साथ काम करने वाले किसी लड़के के साथ हो गई है. जबकि उसे शबनम का दूसरे पुरुषों से मिलना, बातें करना अच्छा नहीं लगता था. वह बारबार उस पर इस बात का दबाव डालता था कि वह किसी बाहरी मर्द से बात न किया करे.

सईद ने कोशिश की तो उसे यह जानकारी मिल गई कि शबनम औफिस के जिस युवक के साथ ज्यादा मिलतीजुलती है उस का नाम संजय है. इस के बाद वह खुद उस की जासूसी करने लगा. एक दिन सईद ने शबनम को संजय के साथ औफिस के नजदीक एक रेस्टोरेंट में देख लिया. उस समय तो सईद ने शबनम से कुछ नहीं कहा लेकिन घर लौटने पर उस ने शबनम से नाराजगी जताई.

इस के जवाब में शबनम ने कहा कि जब वह नौकरी करने जाएगी तो औफिस के लोगों से बातचीत होगी ही. वह उन से बातचीत न करे, ऐसा मुमकिन नहीं है. इस से सईद को विश्वास हो गया कि शबनम के संजय के साथ नाजायज ताल्लुकात हैं इसलिए वह उसे छोड़ना नहीं चाहती. इस बात को ले कर दोनों में कभीकभी झगड़ा भी हो जाता था. लेकिन शबनम ने कभी इसे गंभीरता से नहीं लिया था.

सईद नहीं चाहता था कि शबनम उस के रहते किसी दूसरे के साथ मौजमस्ती करे. उस ने शबनम को कई बार समझाया. जब वह नहीं मानी तो उस ने शबनम की हत्या करने की ठान ली.

5 मार्च, 2014 को जब शबनम सुबह साढ़े 5 बजे घर से अपने औफिस जाने के लिए निकली तो सईद भी चुपके से उस के पीछे हो लिया. सईद ने अपना चेहरा कपड़े से छिपा लिया था.

शबनम घर से लगभग 200 मीटर दूर ही पहुंची होगी कि सईद उस के सामने जा कर खड़ा हो गया. यह देख कर शबनम ठिठकी लेकिन वह कुछ समझती, उस से पहले ही सईद ने उस के गले व पेट पर साथ लाई कैंची से कई प्रहार किए और वहां से भाग गया. वहां से भाग कर वह पास के कब्रिस्तान में गया और खून से सनी कैंची चारदीवारी के किनारे झाडि़यों में छिपा दी. फिर वह छिपते छिपाते जल्दी ही घर पहुंच गया.

शबनम घायल जरूर हो गई थी लेकिन उस ने भी हिम्मत नहीं हारी थी. पेट पर हाथ रख कर वह लड़खड़ाते हुए अपने घर तक पहुंच गई, लेकिन घर के दरवाजे पर पहुंचते पहुंचते उस की सांसों की डोर टूट गई और धड़ाम की आवाज के साथ जमीन पर गिर गई.

पुलिस ने सईद से पूछताछ के बाद उस की निशानदेही पर कब्रिस्तान के पास छिपा कर रखी कैंची बरामद कर ली. फिर कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर उसे कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

डोली के बजाय उठी अर्थी – भाग 3

सुबह कोई सवा 5 बजे पुलिस कंट्रोलरूम को सूचना मिली कि ओम एन्क्लेव कालोनी में एक लड़की ने आत्महत्या कर ली है. यह इलाका थाना सदर के अंतर्गत आता था. पुलिस कंट्रोलरूम ने यह सूचना थाना सदर पुलिस को दे दी. थानाप्रभारी नौरत्न गौतम उस दिन छुट्टी पर थे. थाने का चार्ज एसएसआई अखिलेश सिंह के पास था. वह किसी मामले की तफ्तीश में कहीं गए हुए थे.

एसएसपी की सूचना पर चौकीप्रभारी अरुण कुमार पुलिस बल के साथ ओम एन्क्लेव कालोनी स्थित घटनास्थल पर पहुंच गए. डौग स्क्वायड, फोरैंसिक टीम को भी सूचित कर दिया गया.

सूचना पा कर एसएसआई अखिलेश सिंह भी रविंद्र वर्मा के घर पहुंच गए. पुलिस ने निरीक्षण किया तो सीढि़यों पर रविंद्र की 20 साल की बेटी शिवानी की गरदन कटी लाश मिली.

लाश के आसपास काफी खून फैला था. वहीं पर एक पेपर कटर पड़ा था. वहां संघर्ष के निशान भी दिखाई दिए. पूछताछ में रविंद्र ने बताया कि उन की बेटी शिवानी ने आत्महत्या कर ली है.

अखिलेश सिंह ने पेपर कटर को कब्जे में ले लिया. फोरैंसिक टीम आई तो पेपर कटर उस के हवाले कर दिया गया. कुछ ही देर में एसपी (सिटी) कुमारी अनुपमा सिंह और महिला थाने का स्टाफ भी आ गया. पुलिस ने ध्यान से देखा तो शिवानी की लाश के पास खून से गौरव लिखा था.

पुलिस ने रविंद्र वर्मा से गौरव के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि वह किसी गौरव को नहीं जानते. सूचना पा कर इंसपेक्टर रकाबगंज संजीव भी वहां आ गए. फोरैंसिक टीम ने बताया कि खून सने पैरों के जो निशान हैं, ये अलगअलग आदमी के हैं. लेकिन छत तक पैरों के जो निशान गए हैं, वे एक ही आदमी के हैं.

पेपर कटर की मूठ पर एक हाथ का निशान था, लेकिन लोहे वाले हिस्से पर 2 हाथों के निशान थे. इस से साफ हो गया कि वहां शिवानी के अलावा 2 लोग थे. घर के सिंक की जांच की गई तो वहां खून के निशान पाए गए. इस का मतलब कत्ल कर के कातिल ने वहां हाथ धोए थे. किराएदार पंकज भदौरिया ने बताया कि उन्हें तो रविंद्र वर्मा ने जगा कर बताया था कि उन की बेटी ने आत्महत्या कर ली है. इस के अलावा उन्हें घटना के बारे में कोई जानकारी नहीं है.

रविंद्र वर्मा ने बताया कि गैस की दुर्गंध आने पर वह रसोई में गए और लाइट जलाने के बजाय पंखा औन कर दिया. इस के बाद ऊपर जाने लगे तो देखा कि बेटी की लाश पड़ी है. वह घबरा कर नीचे आ गए और किराएदार को जगा कर सारी बात बताई. इस के बाद पुलिस कंट्रोलरूम को सूचना दे दी.

रविंद्र की इस कहानी पर पुलिस को विश्वास नहीं हो रहा था. उन के कपड़े उतरवा कर देखा गया तो बनियान पर खून के निशान नजर आए. उन के पैरों पर भी खून लगा था. वह शक के दायरे में आ गए. घटनास्थल की काररवाई निपटा कर पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

पुलिस रविंद्र को पूछताछ के लिए थाने ले आई. अज्ञात के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज करने के बाद पुलिस ने रविंद्र से पूछताछ शुरू की तो वह यही कहते रहे कि बेटी ने आत्महत्या की है. जबकि पुलिस की नजरों में यह सीधे हत्या का मामला था, क्योंकि कोई भी व्यक्ति खुद अपना गला नहीं रेत सकता.

बारबार पूछने के बाद भी रविंद्र ने गौरव के बारे में कुछ नहीं बताया, जबकि पुलिस के लिए फर्श पर लिखा गौरव एक महत्त्वपूर्ण सुराग था. पुलिस को इसी से आगे बढ़ने का रास्ता मिल सकता था.

पोस्टमार्टम के बाद शिवानी का शव रविंद्र वर्मा को सौंप दिया गया था. उन्होंने उस का दाहसंस्कार भी कर दिया. इस बीच पुलिस के सामने काफी कुछ साफ हो गया था. पुलिस को गौरव के बारे में पता चल गया था कि वह शिवानी का दोस्त था और उस के साथ पढ़ता था. वह आगरा के शाहगंज में रहता है.

अगले दिन इंसपेक्टर संजीव सिंह और चौकीप्रभारी अरुण कुमार को एसपी सिटी ने गौरव से पूछताछ करने के निर्देश दिए. पुलिस गौरव के घर पहुंची तो उस के पिता रामस्नेही ने बताया कि कुछ देर पहले ही वह घर से निकला है. पिता ने फोन कर के उसे घर बुला लिया. पुलिस पूछताछ के लिए उसे थाने ले आई.

गौरव ने अपना सिर मुंडवा रखा था. वह काफी डरा हुआ था. थाने आते ही उस ने कहा, ‘‘साहब, आप मुझे मारिएगा मत, मैं आप को सब कुछ सचसच बता दूंगा. मैं ने शिवानी को नहीं मारा है. मैं तो उस से प्यार करता था. हम ने कोर्टमैरिज भी कर ली थी. उसी के बुलाने पर 28 अक्तूबर, 2017 को मैं उस के घर गया था. दुर्भाग्य से उस के पिता ने दोनों को एक साथ देख लिया.’’

गौरव ने आगे जो बताया, उस के अनुसार, रविंद्र उसे मारना चाहते थे, लेकिन शिवानी उसे बचाने के लिए बीच में आ गई. रविंद्र वर्मा के हाथ से उस ने पेपर कटर छीनने की कोशिश की, जिस से उस की 2 अंगुलियां कट गईं. इस के बाद गुस्से में रविंद्र ने पेपर कटर चलाया तो शिवानी फिर सामने आ गई, जिस से पेपर कटर उस के गले में लगा और उस का गला कट गया.

रविंद्र वर्मा पर खून सवार था. शिवानी घायल हो कर सीढि़यों पर गिर गई, इस के बावजूद वह उस की ओर झपटा. तब शिवानी ने अपना गला पकड़े हुए कहा, ‘‘गौरव, भाग जाओ, वरना यह तुम्हें भी मार देंगे.’’

उस हालत में गौरव को कुछ नहीं सूझा. वह भाग कर छत पर गया और किसी तरह वहां से कूद कर भाग खड़ा हुआ. लेकिन शिवानी के बारे में सोचसोच कर वह परेशान होता रहा. अगले दिन गौरव ने पुलिस के डर से अपना सिर मुंडवा लिया. गौरव ने जो बताया था, वह पुलिस को सही लगा. गौरव से पूछताछ के बाद पुलिस ने रविंद्र वर्मा को थाने बुला लिया. थाने में गौरव को देख कर रविंद्र के पसीने छूट गए.

अब कहनेसुनने को कुछ नहीं था. पूछताछ में रविंद्र ने कहा कि शिवानी की हत्या करने का उस का इरादा नहीं था, पर गुस्से में पेपर कटर चल गया. उस ने यह भी स्वीकार किया कि बेटी के दूसरी जाति के लड़के के साथ संबंध उसे स्वीकार नहीं थे. वह अपनी बेटी की शादी अपनी ही जाति के लड़के के साथ करना चाहता था. लेकिन शिवानी बहुत जिद्दी थी, जिस का अंजाम अच्छा नहीं हुआ और डोली उठने से पहले उस की अर्थी उठ गई.

रविंद्र ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया तो पुलिस ने उसे जेल भेजने की तैयारी कर ली. पुलिस उसे ले जा रही थी, तभी उस के घर की महिलाओं ने थाने के बाहर हंगामा शुरू कर दिया. पुलिस के उच्चाधिकारियों ने उन्हें समझाबुझा कर शांत किया और रविंद्र वर्मा को 30 अक्तूबर को न्यायालय में पेश किया, जहां से जेल भेज दिया गया.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जी का जंजाल बनी प्रेमिका

डोली के बजाय उठी अर्थी – भाग 2

रविंद्र वर्मा बेटी के लिए बेहद चिंतित थे, क्योंकि एक दिन शिवानी ने मां से साफ कह दिया था कि वह बालिग है और अपना अच्छाबुरा सोच सकती है. इसलिए वह अपनी पसंद के लड़के से ही शादी करेगी.

बेटी का यह कदम उन की समाज में बनी इज्जत को धूल में मिला सकता था, इसलिए उन्होंने तय कर लिया कि कुछ भी हो, वह जल्दी ही कहीं शिवानी की शादी कर देंगे. लेकिन वह शादी कर पाते, उस के पहले ही 18 फरवरी, 2016 को शिवानी गौरव के साथ भाग कर दिल्ली चली गई, जहां उत्तमनगर में किराए का कमरा ले कर रहने लगी. उन्होंने कोर्ट में शादी भी कर ली.

बेटी के इस तरह घर से गायब होने से रविंद्र समझ गए कि उसे गौरव ही बहलाफुसला कर भगा ले गया है, उन्होंने गौरव के खिलाफ भादंवि की धारा 366 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. मुकदमा दर्ज होने के बाद गौरव के परिवार वालों पर पुलिस ने लड़की को बरामद कराने का दबाव डाला.

गौरव के पिता रामस्नेही सीधेसादे आदमी थे. वह अपनी रिश्तेदारियों में उसे तलाश करने लगे. गौरव कहीं नहीं मिला. काफी भागदौड़ के बाद उन्हें गौरव और शिवानी के दिल्ली में होने की जानकारी मिली. इस के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस दिल्ली पहुंच गई और दिल्ली पुलिस की मदद से गौरव और शिवानी को उत्तमनगर से बरामद कर लिया. इस तरह 45 दिनों बाद वे पुलिस की पकड़ में आ गए.

पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां शिवानी ने अपने बयान में कहा कि वह बालिग है और अपनी मरजी से गौरव के साथ गई थी. वह गौरव से प्यार करती है और उस ने उस से कोर्ट में शादी भी कर ली है. शिवानी के इसी बयान के आधार पर अदालत से गौरव को जमानत मिल गई.

रविंद्र ने बेटी को अपने संरक्षण में लेने के लिए अदालत में अरजी लगाई तो शिवानी ने विरोध किया कि मांबाप उसे घर ले जा कर मार डालेंगे. लेकिन रविंद्र ने अदालत से कहा कि वह बेटी को घर ले जा कर सामाजिक रीतिरिवाज से उस की शादी कर देंगे. लड़की को पढ़ने के लिए भी भेजेंगे. रविंद्र के इस बयान पर मजिस्ट्रैट ने शिवानी को उस के पिता को सौंप दिया.

रविंद्र ने अदालत में जो कुछ कहा था, घर आने पर पलट गए. उन्होंने शिवानी पर बंदिशें लगा दीं. इस के अलावा वह उस के लिए लड़का भी ढूंढने लगे. आखिर मुरैना में उन्हें एक लड़का पसंद आ गया. शिवानी को जब पता चला तो उस ने विरोध किया. उस के विरोध के बावजूद उन्होंने उस का रिश्ता पक्का कर दिया.

6 फरवरी, 2018 को शिवानी की शादी का दिन भी तय कर दिया गया. दिन तय होने के बाद शिवानी परेशान रहने लगी. वह किसी भी तरह घर से निकलना चाहती थी, लेकिन बाहर जाने का उसे कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था. उधर गौरव भी काफी परेशान था. उन्हें 6 फरवरी से पहले ही घर से भाग जाने का कोई रास्ता निकालना था.

रविंद्र ने कई बार गौरव को अपने घर के आसपास घूमते देखा था. आखिर एक दिन उस ने गौरव को धमकाया कि अब वह इधर कतई दिखाई न दे. फिर एक दिन हिम्मत कर के शिवानी ने पिता से कह दिया, ‘‘पापा, जब मेरी शादी गौरव से हो चुकी है तो आप मेरी शादी दूसरी जगह क्यों कर रहे हैं?’’

बेटी की बात को अनसुना कर रविंद्र बाहर चले गए. अब शिवानी ऐसा कुछ करना चाहती थी, जिस से उस का रिश्ता टूट जाए. इस बारे में उस ने गौरव से बात की तो उस ने कहा कि वह उस की हर तरह से मदद करेगा. एक दिन शिवानी का ममेरा भाई मनीष पत्नी के साथ उन के घर आया और रविंद्र से गोवर्धन परिक्रमा के लिए चलने को कहा.

रविंद्र पत्नी के साथ गोवर्धन परिक्रमा के लिए जाना तो चाहते थे, लेकिन वह शिवानी को घर में अकेली नहीं छोड़ना चाहते थे. इसलिए उन्होंने शिवानी को भी चलने को कहा. उस ने कपड़े वगैरह बैग में रख कर तैयारी तो कर ली, लेकिन मौका मिलते ही गौरव को फोन कर के कह दिया कि शाम 6 बजे घर के सभी लोग गोवर्धन परिक्रमा के लिए जा रहे हैं. उन्हें लौटने में 4 घंटे तो लग ही जाएंगे.

रविंद्र वर्मा के घर के निचले हिस्से में पंकज सिंह भदौरिया पत्नी और 2बच्चों के साथ किराए पर रहते थे. वह अध्यापक थे. उन की पत्नी भी अध्यापक थीं. शाम को जब सभी गोवर्धन परिक्रमा के लिए घर से निकलने लगे तो योजना के अनुसार शिवानी ने तबीयत ठीक न होने का बहाना कर के कहा कि अब वह नहीं जा सकती. घर वालों ने भी उस से ज्यादा जिद नहीं की.

घर से निकलते समय रविंद्र ने किराएदार पंकज सिंह और उन की पत्नी से शिवानी का ध्यान रखने के लिए कह दिया. घर वालों के जाने के बाद शिवानी गौरव का इंतजार करने लगी. उस ने दरवाजा खुला ही छोड़ दिया था. जैसे ही गौरव आया, उस ने उस से छत पर बैठ कर इंतजार करने को कहा.

रात 10-11 बजे सभी लोग लौटे तो घर के मेनगेट में ताला लगा कर रविंद्र वर्मा निश्चिंत हो गए. थके होने की वजह से सभी को जल्दी ही नींद आ गई. लेकिन शिवम मोबाइल पर गेम खेल रहा था.

शिवानी उस के सोने के इंतजार में करवटें बदलती रही. ऊपर पड़ोसी की छत पर बैठा गौरव शिवानी का इंतजार कर रहा था. काफी देर बाद शिवम सो गया तो शिवानी उठी और छत पर पहुंच गई. दोनों एकदूसरे की बांहों में समा गए. उस समय दोनों दुनियाजहान से बेखबर थे.

रविंद्र सुबह सैर के लिए जाते थे, इसलिए उन्होंने मोबाइल फोन में अलार्म लगा रखा था. जैसे ही अलार्म बजा, शिवानी गौरव से यह कह कर नीचे आ गई कि पापा घूमने चले जाएंगे तो वह उसे यहां से निकाल देगी.

नीचे आ कर शिवानी अपने बैड पर लेट गई. तभी गौरव का शिवानी के फोन पर मैसेज आया कि उसे प्यास लगी है. शिवानी ने पिता के कमरे में नजर डाली तो वहां कोई दिखाई नहीं दिया. वह पानी की बोतल ले कर छत पर चली गई. रविंद्र उस समय घर में ही थे. उन्होंने शिवानी को छत पर जाते देख लिया था. वह भी उस के पीछेपीछे छत पर पहुंच गए.

रविंद्र ने शिवानी और गौरव को एक साथ देखा तो उन का खून खौल उठा. पिता को देख कर शिवानी डर से कांपने लगी. गौरव भी घबरा गया. बेटी की इस करतूत से उन के सिर पर खून सवार हो गया, फिर उन्होंने कुछ ऐसा किया कि वहां मौत का तांडव मच गया. शिवानी अचानक सीढि़यों पर गिरी और वहां खून ही खून फैल गया.

डोली के बजाय उठी अर्थी – भाग 1

शिवानी वर्मा आगरा के सब से पुराने और मशहूर आगरा कालेज से बीएससी कर रही थी. पिता रविंद्र वर्मा फार्मासिस्ट थे और मां ऊषा घर संभालती थीं. उस के 2 भाई थे सचिन और शिवम. रविंद्र वर्मा का थाना सदर की ओम एन्क्लेव कालोनी में काफी अच्छा मकान था.

कुल मिला कर उन का छोटा और खुशहाल परिवार था. रविंद्र वर्मा शिवानी को उच्च शिक्षा दिलाना चाहते थे, ताकि उसे अच्छी नौकरी मिल सके. शिवानी भी मन लगा कर पढ़ रही थी. अचानक उस के साथ कुछ ऐसा घटा कि रविंद्र के सारे सपने धरे के धरे रह गए.

आगरा कालेज से ही शाहगंज के शंकरगढ़ का रहने वाला गौरव बीए कर रहा था. कालेज में कभी मुलाकात होने से शिवानी की गौरव से दोस्ती हो गई. कालेज में दोनों की अकसर मुलाकात हो जाती थीं.

गौरव गरीब घर का जरूर था, लेकिन पढ़ने में ठीकठाक था. उस के पिता रामस्नेही घर के बाहर फल का ठेला लगाते थे. उस के घर एक भैंस भी थी, जिस की देखभाल उस की मां करती थीं. भैंस के दूध से भी कुछ कमाई हो जाती थी. गौरव का एक भाई और 2 बहनें थीं.

शिवानी और गौरव जब भी मिलते, देर तक बातचीत करते थे. गौरव अपना कैरियर बनाने के लिए संघर्ष कर रहा था. लेकिन लगातार मिलने से उन के बीच प्यार की कोपलें फूटने लगीं. उन्हें महसूस होने लगा कि वे एकदूसरे को चाहने लगे हैं, वे एकदूसरे के लिए ही बने हैं.

लेकिन गौरव के दिल में एक बात खटकती थी कि वह दूसरी जाति का है. जब शिवानी को उस की हकीकत पता चलेगी तो कहीं वह मुंह न मोड़ ले. इस की एक वजह यह थी कि उस की जाति शिवानी की जाति से निम्न थी.

आगे कुछ गड़बड़ न हो, यह जानने के लिए एक दिन गौरव ने शिवानी से कहा, ‘‘शिवानी, हम दोनों एकदूसरे को कितना प्यार करते हैं, यह सिर्फ हम ही जानते हैं. पर आज मैं तुम्हें अपनी हकीकत बताना चाहता हूं. शिवानी मेरी जाति तुम से अलग है. कहीं तुम मुझे छोड़ तो नहीं दोगी?’’

गौरव की बात सुन कर शिवानी ने हंसते हुए कहा, ‘‘गौरव, तुम्हें पता होना चाहिए कि मैं ने तुम से प्यार किया है न कि तुम्हारी जाति से. तुम किस जाति के हो, किस धर्म के हो, मुझे कोई मतलब नहीं है. मैं सिर्फ तुम से प्यार करती हूं.’’

शिवानी की बात सुन कर गौरव ने उसे सीने से लगा कर कहा, ‘‘शिवानी अब हमारे प्यार में कितनी भी बाधाएं आएं, मैं तुम्हारा साथ कभी नहीं छोड़ूंगा. मैं मरते दम तक तुम्हारा साथ दूंगा.’’

जवाब में शिवानी ने भी कहा, ‘‘हमारे प्यार की राह में समाज, परिवार या कोई भी आए, मैं इस प्यार की खातिर सब को छोड़ दूंगी, पर तुम्हें नहीं छोड़ूंगी.’’

शिवानी के इरादे भले ही मजबूत थे, पर गौरव निश्चिंत नहीं था. कालेज के साथियों को गौरव के प्यार की खबर लगी तो किसी ने यह खबर शिवानी के पिता को दे दी. रविंद्र वर्मा को बेटी के प्यार का पता चला तो वह परेशान हो उठे. उस दिन शिवानी कालेज से लौटी तो उन्होंने पूछा, ‘‘शिवानी, आजकल तुम्हारा मन पढ़ाई में नहीं, कहीं और ही भटक रहा है?’’

‘‘क्या मतलब पापा?’’ शिवानी ने बेचैनी से पूछा.

‘‘मतलब कि तुम्हारा मन पढ़ाई में नहीं लग रहा है. बेटा, मैं ने तो सोचा था कि तुम मन लगा कर पढ़ाई करोगी, जिस से कोई ढंग की नौकरी मिल जाएगी, उस के बाद हम तुम्हारी शादी कर देंगे.’’

‘‘पापा, पहले पढ़ाई तो पूरी हो जाए, शादी की बात बाद में सोचेंगे.’’ शिवानी ने कहा.

अचानक रविंद्र ने गुस्से में पत्नी से कहा, ‘‘ऊषा, इस लड़की को संभालो. आजकल इस की दोस्ती कालेज के लड़कों से कुछ ज्यादा ही हो गई है. कहीं ऐसा न हो हम धोखा खा जाएं.’’

शिवानी समझ गई कि पापा को गौरव के बारे में पता चल गया है, इसलिए बिना कुछ कहे वह अपने कमरे में चली गई. इस के बाद ऊषा और रविंद्र काफी देर तक बातें करते रहे. ऊषा ने पति को आश्वासन दिया कि वह शिवानी को समझाएंगी कि फालतू के चक्करों में न पड़ कर वह अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे.

शिवानी कमरे से ही मम्मीपापा की बातें सुन रही थी. उन की बातों से वह समझ गई कि अब मम्मीपापा उस पर बंदिशें लगाएंगे. उस ने गौरव को फोन कर के कह दिया कि अब वह थोड़ा सतर्क रहे, क्योंकि घर वालों को उन के संबंधों की जानकारी हो गई है.

अगले दिन शिवानी कालेज जाने के लिए तैयार हो रही थी तो ऊषा ने कहा, ‘‘अब तुम्हें कालेज जाने की क्या जरूरत है, जब तुम्हारा पढ़ाई में मन ही नहीं लग रहा तो घर बैठो.’’

‘‘मम्मी, आप लोग गलत सोच रहे हैं. ऐसा कुछ भी नहीं है. मैं अपनी पढ़ाई को ले कर पूरी तरह गंभीर हूं.’’ शिवानी ने कहा.

‘‘बेटा, मैं जो कह रही हूं, तुम्हारे भले के लिए कह रही हूं. समझो या न समझो, तुम्हारी मरजी.’’ ऊषा ने कहा.

‘‘ठीक है मम्मी, अब मैं कालेज जाऊं?’’ कह कर शिवानी कालेज चली गई.

कालेज पहुंच कर शिवानी ने गौरव को सारी बात बता कर कहा, ‘‘गौरव, मम्मीपापा के तेवरों से लगता है कि वे बहुत जल्दी मेरी शादी कहीं कर देंगे. मेरी शादी कहीं और हो, उस के पहले ही हमें कुछ करना होगा.’’

‘‘लेकिन शिवानी अभी तो हमारी पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई है.’’ गौरव ने चिंता जताई तो शिवानी ने कहा, ‘‘इतना भी परेशान होने की जरूरत नहीं है. दुनिया की कोई भी ताकत हमें एकदूसरे से अलग नहीं कर सकती.’’

इस के बाद रविंद्र को लगातार लोग बताने लगे कि उन्होंने उन की बेटी को एक लड़के के साथ घूमतेफिरते और हंसहंस कर बातें करते देखा है. लगातार शिकायतें मिलने की वजह से एक दिन रविंद्र ने शिवानी से साफ कह दिया कि अगर वह नहीं मानी तो उस की पढ़ाई बंद करा दी जाएगी. शिवानी को लगा कि घर वाले उस के प्यार में रोड़ा डाल रहे हैं तो उस ने गौरव से बात कर के भाग जाने का फैसला कर लिया.

इस के बाद योजना बना कर एक दिन शिवानी गौरव के साथ भाग गई. आगरा के कैंट स्टेशन के पास दोनों को किसी ने देख लिया तो उस ने यह बात रविंद्र को बता दी. खबर मिलते ही रविंद्र कैंट स्टेशन पहुंचे और वहां दोनों को पकड़ लिया. गौरव को उन्होंने डांटफटकार कर भगा दिया और शिवानी को घर ले आए. इस के बाद उन्होंने शिवानी को घर में ही कैद कर दिया.

रविंद्र ने उस व्यक्ति का आभार व्यक्त किया, जिस की सूचना पर उन की इज्जत बच गई थी, वरना अच्छीखासी बदनामी हो जाती. इस के बाद रविंद्र ने शिवानी के लिए लड़का ढूंढना शुरू कर दिया.

जबकि शिवानी पिंजरे में कैद चिडि़या की तरह उड़ने के लिए व्याकुल थी. वह चोरीछिपे गौरव से फोन पर बातें कर लेती थी. शिवानी उस कैद से मुक्त होना चाहती थी. वह घर से भाग निकलने का मौका तलाश रही थी.

हीरा व्यापारी का फाइव स्टार लव – भाग 3

होटल के सीसीटीवी फुटेज से मिला सुराग

मृतक संदीप कांबले शादीशुदा था व एक 13 साल की बेटी का पिता था. मृतक के छोटे भाई विशाल कांबले ने जुलकबारी पुलिस स्टेशन में भादंवि की धारा 302/34 के तहत एफआईआर भी दर्ज करा दी थी.

पुलिस ने जब जांच आगे बढ़ाई तो पता चला कि मृतक संदीप सुरेश कांबले के साथ पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिले की 25 वर्षीय अंजलि शा ने होटल के कमरा नंबर 922 में चेक इन किया था. अंजलि का विवरण उस की फोटो पहचान (आईडी) के साथ पुलिस को मिला था.

होटल के सीसीटीवी फुटेज को खंगालने पर यह बात भी सामने आई कि अंजलि शा 5 फरवरी, 2024 अपराह्नï पौने 3 बजे 27 वर्षीय विकास शा के साथ कमरे से निकली थी.

पुलिस टीम ने दोनों संदिग्धों अंजलि और विकास की तसवीरों से पूरा विवरण तत्काल वायरलेस सैट पर पूरे गुवाहाटी में प्रसारित करवा दिया, उस के बाद पुलिस टीम को गुवाहाटी के लोकप्रिय गोपीनाथ बोरदोलोई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे (एलजीबीआईए) पर दोनों संदिग्धों के नामों की जांच करने पर पता चला कि दोनों संदिग्धों ने गुवाहाटी से पश्चिम बंगाल के कोलकाता के लिए हवाई टिकट बुक किया था. उन के प्रस्थान का समय दिनांक 5 फरवरी, 2024 की रात सवा 9 बजे का था.

संदिग्धों के बारे में एकत्र की गई जानकारी के आधार पर लोकप्रिय गोपीनाथ बोरदोलोई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की ओर जाने वाली सभी सड़कों के किनारे बोरझार चौकी (ओपी) क्षेत्र में एक पुलिस नाका (चैकिंग) स्थापित कर दिया गया.

पुलिस की यह कोशिश आखिरकार रंग लाई और 5 फरवरी, 2024 की शाम 5 बज कर 42 मिनट पर जब वे दोनों एक किराए की टैक्सी से हवाई अड्डे की ओर जा रहे थे, उन्हें पुलिस टीम द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया. दोनों संदिग्धों से गहन पूछताछ के बाद इस हत्याकांड की जो कहानी निकल कर सामने आई, वह एक प्रेम त्रिकोण की थी.

44 वर्षीय संदीप सुरेश कांबले पुणे जिले का रहने वाला हीरा व्यापारी और कार डीलर थे. 25 वर्षीय अंजलि शा कोलकता के होटल में काम करती थी. दोनों का एक बार परिचय हुआ तो यह परिचय दोस्ती और उस के बाद धीरेधीरे प्यार में बदल गया था. संदीप सुरेश कांबले भले ही अंजलि से करीब दोगुने उम्र का था, लेकिन बहुत पैसे वाला था, इसीलिए अवैध संबंध बन गए थे.

संदीप उसे काफी महंगे महंगे तोहफे देता रहता था. उन के बीच यह संबंध तकरीबन एक साल तक बदस्तूर जारी रहा, लेकिन इस बीच अंजलि शा की जिंदगी में विकास शा की एंट्री हो गई. 27 वर्षीय विकास भी कोलकाता में रह कर ही नौकरी करता था. अंजलि काफी समय तक 2 नावों पर सवारी करती रही.

एक ओर जहां अंजलि 2 नावों पर सवार हो कर जिंदगी के अनमोल सुख ले रही थी, वहीं दूसरी तरफ उस के पहले प्रेमी संदीप सुरेश कांबले को उस के दूसरे प्रेम संबंध के बारे में पता चल गया. उस ने जब अंजलि से जवाबतलब किया तो इस दोहरी जिंदगी से परेशान हो कर अंजलि ने संदीप सुरेश कांबले के बजाय विकास को चुना.

यह बात सुरेश कांबले को नागवार गुजरी और फिर उस ने अंजलि को अंतरंग फोटो के जरिए ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया.

संदीप कांबले अब अंजलि शा पर शादी करने का दबाव भी डालने लगा था, जबकि अंजलि उस से शादी करना तो दूर, अब दोस्ती भी नहीं करना चाहती थी. उस ने संदीप से सारे रिश्ते भी तोड़ दिए थे. संदीप अंजलि को किसी भी हालत में अपने से दूर नहीं होने देना चाहता था.

संदीप अंजलि को क्यों करता था ब्लैकमेल

जब अंजलि उस से किनारा करने लगी तो संदीप अब काफी आक्रामक हो गया था और उस ने अंजलि और विकास के परिवार के सदस्यों से संपर्क करना शुरू कर दिया ताकि अंजलि उस से शादी करने के लिए मजबूर हो सके. यहां तक कि संदीप ने विकास के साथ अपनी और अंजलि की तसवीरें भी साझा कीं ताकि उन दोनों का रिश्ता टूट सके.

अंजलि ने संदीप के साथ अपना रिश्ता खत्म कर दिया था, मगर संदीप उस पर लगातार दबाब डाल रहा था और उस ने अंजलि का पीछा करना जारी रखा, जबकि दूसरी तरफ अंजलि अब विकास के साथ प्रेम में थी.

इस के कुछ समय बाद अंजलि ने विकास शा को संदीप सुरेश कांबले बारे में सब कुछ सचसच बता दिया. यह भी बताया कि संदीप कांबले ने उस की कुछ अंतरंग तसवीरें खींच ली थीं, जोकि उस के पास हैं.

विकास अब अंजलि से प्यार करने लगा था. उन का प्यार परवान चढऩे लगा, इसलिए दोनों ने मिल कर एक योजना बनाई कि अंजलि कोलकाता में संदीप को मिलने के लिए अकेले में बुलाएगी. जिस मीटिंग में विकास भी उस के साथ शामिल होगा. दोनों मिल कर संदीप को जबरदस्ती पकड़ लेंगे और उस से उस के वो दोनों मोबाइल फोन छीन लेंगे, जिन में अंजलि और संदीप की अंतरंग तसवीरें कैद थीं. उस के बाद दोनों संदीप को बेहोश कर वहां से भाग जाएंगे.

प्रेमिका क्यों बनी कातिल

लेकिन संदीप को अंजलि पर न जाने क्यों शक सा हो गया था, इसलिए उस ने कोलकाता में मिलने से मना कर दिया. मगर संदीप के दिल में अंजलि के प्रति अभी भी काफी प्रेम था, इसलिए उस ने अंजलि से कहा कि यदि वह अकेले में उस से मिलना चाहती है तो वह गुवाहाटी में उस से मिल सकती है.

संदीप ने उस से कहा कि एक बार वह गुवाहाटी में कामाख्या मंदिर के दर्शन कर ही आए थे, इस बार एक फिर से देवी के दर्शन भी कर सकते हैं और मिल भी सकते हैं.

अंजलि ने यह बात विकास को बता दी तो दोनों ने अलग अलग गुवाहाटी जाने का प्रोग्राम बना लिया. वे दोनों संदीप से किसी भी तरह मोबाइल फोन छीन लेना चाहते थे.

प्लान के मुताबिक अंजलि गुवाहाटी एयरपोर्ट पर संदीप से मिली और फिर रेडिसन ब्लू होटल के लिए रवाना हो गई, जहां उन्होंने होटल के कमरा नंबर 922 में चैक इन किया. यह जानकारी अंजलि ने विकास को दे दी. अपना कमरा नंबर बता कर उसे रेडिसन ब्लू होटल में ही कमरा लेने को कहा. विकास भी होटल आ गया और उस ने कमरा नंबर 1024 में चैकइन किया.

इस बीच संदीप बाथरूम में गया तो अंजलि ने कमरे का दरवाजा खोल दिया और विकास को जल्दी कमरे में आने को कहा. विकास सारे सामान के साथ जो पहले से ही उन के प्लान में शामिल था, कमरा नंबर 922 में पहुंच गया. कमरे के अंदर दाखिल होते ही विकास ने कमरे का दरवाजा भीतर से बंद कर दिया.

विकास अपने साथ नींद की गोलियां और भांग के लड्डू (गोल मिठाई) और रस्सी भी लाया था ताकि संदीप को काबू किया जा सके. संदीप जैसे ही बाथरूम से बाहर आया और जब उस की नजर विकास पर पड़ी तो वह आगबबूला हो गया.

विकास और संदीप के बीच हाथापाई होने लगी. अंजलि भी हाथापाई करने में पीछे नहीं रही और वह भी विकास का भरपूर साथ देने लगी थी. संदीप अकेला काफी देर तक उन दोनों का मुकाबला करता रहा, लेकिन वे दोनों अब उसे बुरी तरह से पीटने लगे थे, जिस के कारण संदीप की नाक और मुंह से खून बहने लगा था. लेकिन वे दोनों तब तक संदीप के साथ बुरी तरह मारपीट करते रहे, जब तक वह बेहोश हो कर फर्श पर गिर नहीं गया.

संदीप के फर्श पर गिरते ही दोनों ने उस के दोनों मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले लिए. जब उन्होंने रस्सी से संदीप को बांधना चाहा तो उन्होंने देखा कि संदीप मर चुका था. इस के बाद दोनों घबरा गए और अपना अपना सामान ले कर होटल से दोपहर पौने 3 बजे चले गए.

पहले वे दोनों कोलकाता के लिए ट्रेन पकडऩे के लिए गुवाहाटी के कामाख्या रेलवे स्टेशन गए थे. वहां वे दोनों काफी देर तक बैठे भी रहे थे. उस के बाद विकास ने रेडिसन ब्लू होटल के रिसैप्शन में फोन कर रूम नंबर 922 में ठहरे व्यक्ति के अस्वस्थ होने की सूचना दी.

उस समय कोलकाता के लिए कोई ट्रेन उपलब्ध न होने के कारण उन्होंने ट्रेन से कोलकाता जाने का इरादा बदल दिया और उस दिन रात को सवा 9 वाले प्लेन से कोलकाता जाने का टिकट बुक करा लिया. मगर इस के पहले वहां पर गुवाहाटी पुलिस सजग और सतर्क हो चुकी थी, जिस के कारण जब वे दोनों एलजीबीआईए की तरफ जा रहे थे तो पुलिस ने उन दोनों को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने दोनों आरोपियों से महत्त्वपूर्ण सबूत बरामद किए, जिन में खून से सने कपड़े, मृतक के दोनों मोबाइल फोन व भांग की मिठाई, नींद की गोलियों के साथसाथ आपत्तिजनक बातचीत वाले दोनों आरोपियों के मोबाइल शामिल थे.

गुवाहाटी पुलिस ने अंजलि शा और उस के प्रेमी विकास शा को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

—कहानी पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित है. तथ्यों का नाट्य रूपांतरण किया गया है.

हीरा व्यापारी का फाइव स्टार लव – भाग 2

वे जाड़ों के दिन थे. संदीप कई दिनों से अंजलि को अपने होटल के कमरे में आमंत्रित करता रहता था. उस दिन रेस्टोरेंट में संदीप ने अंजलि से कहा, ”अंजलि, आज मेरा जन्मदिन है, इसलिए आज आप को मेरे कमरे में जन्मदिन सेलिब्रेट करने आना ही होगा. मैं बिलकुल भी ‘न’ शब्द तुम्हारे मुंह से नहीं सुनना चाहता.’’

”ठीक है, मैं शाम 6 बजे आप के कमरे में पहुंच जाऊंगी, आप अपने होटल का पता और कमरा नंबर मुझे मैसेज कर दीजिएगा,’’ अंजलि ने कहा.

ऐसे हुई नए संबंधों की शुरुआत

अपने तय समय के मुताबिक अंजलि ठीक 6 बजे शाम को संदीप कांबले के कमरे में पहुंच गई थी. उस ने डोरबेल बजाई तो संदीप उसी का बेसब्री से इंतजार कर रहा था.

”सच में अंजलिजी, आप के इंतजार का एकएक पल मुझे एक युग के समान लग रहा था. देखिए, आप ठीक 15 मिनट देरी से पहुंची हैं. आइए, आप का तहेदिल से स्वागत है,’’ संदीप ने अंजलि का स्वागत करते हुए कहा.

”आप के जन्मदिन का गिफ्ट लेने में थोड़ी देर हो गई थी जनाब!’’ अंजलि ने उसे गिफ्ट देते हुए जन्मदिन की बधाई दी.

संदीप ने तुरंत अपने कोट की जेब से एक हीरे की अंगूठी निकाली, ”ये हमारी दोस्ती की पहली मुलाकात के लिए है,’’ संदीप ने उस के हाथ में अंगूठी देते हुए कहा.

”अरे संदीपजी, आप यह क्या कर रहे हैं? इतनी महंगी वो भी हीरे की अंगूठी देने की भला क्या जरूरत थी? देखिए, यह बात ठीक नहीं है,’’ अंजलि ने हिचकिचाते हुए कहा.

”अंजलि, अब तुम मेरी एक अच्छी दोस्त बन चुकी हो, वैसे भी मैं हीरे का व्यापारी हूं इसलिए तुम्हें मेरी ओर से यह भेंट स्वीकार करनी ही पड़ेगी.’’ संदीप ने कहा.

उस के बाद संदीप का बर्थडे केक काटा गया. आज की शाम को संदीप रंगीन करना चाहता था, इसलिए उस ने अपने साथ 3-4 पैग स्काच के दोस्ती का हवाला दे कर अंजलि को पिला डाले थे. उस के बाद रात के खाने का भी समय हो गया था.

दोनों ने खाना खाया और ठंड का बहाना करते हुए संदीप अपने बिस्तर पर रजाई ओढ़ कर लेट सा गया. नशे का असर अब अंजलि पर धीरेधीरे हावी होने लगा था, उसे लग रहा था जैसे वह आसमान में उड़ी जा रही हो.

अंजलि कमरे में रखे सोफे पर संदीप के ठीक सामने बैठी हुई थी. संदीप ने उस की ओर देखा तो वह अब सोफे से खड़ी हो कर संदीप के एकदम नजदीक आ कर खड़ी हो गई थी. संदीप ने जब उस की आंखों में झांका तो उसे साफसाफ दिखाई पड़ा कि अंजलि की आंखें नशे से गुलाबी सी हो गई थीं और उस के सीने का उतारचढ़ाव जैसे बेकाबू सा होता चला जा रहा था.

संदीप अब अंजलि के दिल की बात अच्छी तरह से भांप चुका था. फिर भी उस ने अपनी ओर से पहल करते हुए कहा, ”अंजलि, अगर तुम्हें ठंड लग रही है तो यहां मेरे पास रजाई के अंदर आ जाओ. लगता है अब तुम काफी थक चुकी हो.’’

”तुम नहीं समझोगे संदीपजी, ये निगोड़ी ठंड रजाई का गरमी से नहीं भाग सकती. चलो, अगर तुम कहते हो तो आ ही जाती हूं.’’ कहते हुए अंजलि संदीप के साथ बैड पर उस की रजाई के अंदर घुस गई.

जैसे ही अंजलि उस की बगल में रजाई के भीतर आई तो संदीप को ऐसा लगा कि उस के बगल में लेटी हुई अंजलि के शरीर से लपटें निकल रही हैं और वह उन लपटों में जल रहा है. अब संयम की लगाम संदीप के हाथों से बिलकुल ही छूट चुकी थी. जैसा मंसूबा उस ने तैयार किया था, वह जैसे पूरा हो चुका था.

उस ने अंजलि के शरीर को बुरी तरह से भींच लिया था और वे दोनों सारी रात एकदूसरे की अतृप्त कामनाओं को पूरा करने में जुट गए थे.

गुवाहाटी के फाइव स्टार होटल रेडिसन ब्लू में हुई हत्या

असम के गुवाहाटी स्थित जुलकबारी थाने के एसएचओ अपने औफिस में बैठ कर आवश्यक काम निपटा रहे थे, तभी उन का मोबाइल फोन बजने लगा.

”हैलो, मैं जुलकबारा एसएचओ इंसपेक्टर रंजीत कुमार रे बोल रहा हूं. कहिए, हम आप की क्या सहायता कर सकते हैं?’’ एसएचओ ने फोन उठाते हुए.

”सर, मैं रेडिसन ब्लू होटल से प्रकाश थापा बोल रहा हूं. सर, यहां पर रूम नंबर 922 में एक व्यक्ति का मर्डर हो गया है. आप यहां जल्दी आ जाइए.’’ दूसरी ओर से मैनेजर ने कहा.

”अरे फाइव स्टार होटल में मर्डर हो गया? कौन था वह आदमी? कहां का रहने वाला था? जरा विस्तार से बताओ तो?’’ एसएचओ ने पूछा.

”सर, मृतक का नाम संदीप सुरेश कांबले है. उन की उम्र लगभग 44 वर्ष की है. वह पिछले कई सालों से हमारे रेगुलर कस्टमर थे. उन का हीरे और कारों का व्यवसाय था, वह अपनी एक महिला मित्र के साथ होटल के कमरा नंबर 922 में ठहरे हुए थे,’’ होटल मैनेजर प्रकाश थापा ने जल्दीजल्दी कहा.

”ठीक है प्रकाश थापाजी, आप अपने कर्मचारियों को होटल के उस कमरे के बाहर तैनात करवा दीजिए. कमरे के भीतर कोई भी व्यक्ति न जाए, हम तुरंत आ रहे हैं.’’ कहते हुए एसएचओ ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

जुलकबारी एसएचओ रंजीत कुमार रे ने घटना की सूचना तुरंत अपने उच्चाधिकारियों को दी और अपनी टीम के साथ घटनास्थल की ओर निकल गए. जब जुलकबारी थाने के प्रभारी होटल रेडिसन ब्लू में पहुंचे, तब तक घटनास्थल पर पुलिस कमिश्नर दिगंता बराह, डीसीपी (वेस्ट) पद्मनाभ बरुआ, एडीसीपी (वेस्ट) नंदिनी ककाटी, डौग स्क्वायड की टीम और फोरैंसिक टीम भी घटनास्थल पर पहुंच चुकी थी.

होटल के कमरा नंबर 922 में एक व्यक्ति की लाश पड़ी थी. उस की नाक और मुंह से खून निकल रहा था तथा शरीर पर भी चोटों के निशान थे. होटल में जमा की गई आईडी के आधार पर उस की पहचान पुणे निवासी संदीप सुरेश कांबले के रूप में हुई.

पुलिस ने काररवाई पूरी करने के बाद मृतक की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

पुलिस टीम गठित होने के बाद टीम को पता चला कि 5 फरवरी, 2024 को होटल रेडिसन ब्लू के रिसैप्शन में दोपहर को किसी अनजान नंबर से काल आई थी कि आप के रेडिसन ब्लू के कमरा नंबर 922 में जो व्यक्ति ठहरा हुआ है, उस की तबीयत अचानक खराब हो गई है, इसलिए आप लोग तुरंत उसे प्राथमिक चिकित्सा देने का इंतजाम करें.

जांच करने पर जब होटल के कर्मचारी कमरा नंबर 922 में पहुंचे तो वहां पर संदीप सुरेश कांबले मृत पड़े थे, जिस की सूचना तुरंत होटल मैनेजर ने पुलिस को दे दी थी. अब तक पुलिस की टीम सारे सीसीटीवी फुटेज खंगाल चुकी थी. एक सीसीटीवी में होटल रेडिसन ब्लू के कर्मचारियों ने मृतक महिला मित्र को पहचान लिया, जो अकसर मृतक के साथ होटल में ठहरने को आती रहा करती थी.

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सीसीटीवी फुटेज 

उस की पहचान अंजलि शा के रूप में हुई. सीसीटीवी फुटेज में वह महिला एक पुरुष के साथ दिखाई दे रही थी, जो होटल कर्मचारियों के लिए एकदम अंजान चेहरा था. होटल के रजिस्टर को बारीकी से चैक किया गया तो यह जानकारी निकल कर सामने आई कि

सीसीटीवी फुटेज में अंजलि शा होटल के कमरा नंबर 1024 में भी दाखिल होते देखी गई थी. उस के बाद सीसीटीवी फुटेज में संदिग्ध महिला ने कमरा नंबर 922 का पिछला दरवाजा खोला था, जिस में एक अन्य संदिग्ध व्यक्ति कमरा नंबर 922 में दाखिल हुआ था. उस के बाद वे दोनों एक साथ होटल रेडिसन ब्लू के बाहर के दरवाजे में बदहवासी की स्थिति में देखे गए थे.

पुलिस टीम ने जब कमरा नंबर 1024 के ग्राहक का बायोडाटा और फोन नंबर खंगाला गया तो  वह 27 वर्षीय विकास शा पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिले के गोलाबारी पुलिस स्टेशन के अंतर्गत 12/6 ऋषिकेश घोष लेन सैकिया का निकला. एक और बात निकल कर सामने आई कि रेडिसन ब्लू होटल के रिसैप्शन पर फोन विकास शा ने ही किया था.

अब पुलिस ने अंजलि शा और विकास शा का फोन नंबर सर्विलांस पर लगवा दिया था. अब तक मृतक के छोटे भाई विशाल कांबले भी गुवाहाटी पहुंच चुके थे. मृतक की पहचान संदीप सुरेश कांबले, निवासी जिला पुणे के अंतर्गत 11, पर्णकुटी पायथा, यरवदा के रूप में हो चुकी थी.

दिलरूबा ने ली प्रेमी की जान

एसचओ ने ग्रामीणों की मदद से शव को तालाब से बाहर निकलवाया. शव पूरी तरह नग्न अवस्था में था. शव का बारीकी से निरीक्षण किया तो पाया कि मृतक की उम्र लगभग 30 साल थी और उस के शरीर पर धारदार हथियार से गोदे जाने के कई निशान थे.

उसी दौरान एक युवक ने लाश की शिनाख्त पिडरुआ निवासी तुलसीराम प्रजापति के रूप में की. उस की हत्या किस ने और क्यों की, यह बात कोई भी व्यक्ति नहीं समझ पा रहा था.

26 वर्षीय सविता और 28 वर्षीय तुलसीराम पहली मुलाकात में ही एकदूसरे को दिल दे बैठे थे, सविता को पाने की अभिलाषा तुलसीराम के दिल में हिलोरें मारने लगी थी, इसलिए वह किसी न किसी बहाने से सविता से मिलने उस के खेत पर बनी टपरिया में अकसर आने लगा था.

तुलसीराम प्रजापति के टपरिया में आने पर सविता गर्मजोशी से उस की खातिरदारी करती, चायपानी के दौरान तुलसीराम जानबूझ कर बड़ी होशियारी के साथ सविता के गठीले जिस्म का स्पर्श कर लेता तो वह नानुकुर करने के बजाय मुसकरा देती. इस से तुलसीराम की हिम्मत बढ़ती चली गई और वह सविता के खूबसूरत जिस्म को जल्द से जल्द पाने की जुगत में लग गया.

एक दिन दोपहर के समय तुलसीराम सविता की टपरिया में आया तो इत्तफाक से सविता उस वक्त अकेली चक्की से दलिया बनाने में मशगूल थी. उस का पति पुन्नूलाल कहीं गया हुआ था. इसी दौरान तुलसीराम को देखा तो उस ने साड़ी के पल्लू से अपने आंचल को करीने से ढंका.

तुलसीराम ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ”सविता, तुम यह आंचल क्यों ढंक रही हो? ऊपर वाले ने तुम्हारी देह देखने के लिए बनाई है. मेरा बस चले तो तुम को कभी आंचल साड़ी के पल्लू से ढंकने ही न दूं.’’

”तुम्हें तो हमेशा शरारत सूझती रहती है, किसी दिन तुम्हें मेरे टपरिया में किसी ने देख लिया तो मेरी बदनामी हो जाएगी.’’

”ठीक है, आगे से जब भी तेरे से मिलने तेरी टपरिया में आऊंगा तो इस बात का खासतौर पर ध्यान रखूंगा.’’

सविता मुसकराते हुए बोली, ”अच्छा एक बात बताओ, कहीं तुम चिकनीचुपड़ी बातें कर के मुझ पर डोरे डालने की कोशिश तो नहीं कर रहे?’’

”लगता है, तुम ने मेरे दिल की बात जान ली. मैं तुम्हें दिलोजान से चाहता हूं, अब तो जानेमन मेरी हालत ऐसी हो गई है कि जब तक दिन में एक बार तुम्हें देख नहीं लेता, तब तक चैन नहीं मिलता है. बेचैनी महसूस होती रहती है, इसलिए किसी न किसी बहाने से यहां चला आता हूं. तुम्हारी चाहत कहीं मुझे पागल न कर दे…’’

तुलसीराम प्रजापति की बात अभी खत्म भी नहीं हुई थी कि सविता बोली, ”पागल तो तुम हो चुके हो, तुम ने कभी मेरी आंखों में झांक कर देखा है कि उन में तुम्हारे लिए कितनी चाहत है. मुझे तो ऐसा लगता है कि दिल की भाषा को आंखों से पढऩे में भी तुम अनाड़ी हो.’’

”सच कहा तुम ने, लेकिन आज यह अनाड़ी तुम से बहुत कुछ सीखना चाहता है. क्या तुम मुझे सिखाना चाहोगी?’’ इतना कह कर तुलसीराम ने सविता के चेहरे को अपनी हथेलियों में भर लिया.

सविता ने भी अपनी आंखें बंद कर के अपना सिर तुलसीराम के सीने से टिका दिया. दोनों के जिस्म एकदूसरे से चिपके तो सर्दी के मौसम में भी उन के शरीर दहकने लगे. जब उन के जिस्म मिले तो हाथों ने भी हरकतें करनी शुरू कर दीं और कुछ ही देर में उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कर लीं.

सविता के पति पुन्नूलाल के शरीर में वह बात नहीं थी, जो उसे तुलसीराम से मिली. इसलिए उस के कदम तुलसीराम की तरफ बढ़ते चले गए. इस तरह उन का अनैतिकता का खेल चलता रहा.

सविता के क्यों बहके कदम

मध्य प्रदेश के सागर जिले में एक गांव है पिडरुआ. इसी गांव में 26 वर्षीय सविता आदिवासी अपने पति पुन्नूलाल के साथ रहती थी. पुन्नूलाल किसी विश्वकर्मा नाम के व्यक्ति की 10 बीघा जमीन बंटाई पर ले कर खेत पर ही टपरिया बना कर अपनी पत्नी सविता के साथ रहता था. उसी खेत पर खेती कर के वह अपने परिवार की गुजरबसर करता था. उस की गृहस्थी ठीकठाक चल रही थी.

उस के पड़ोस में ही तुलसीराम प्रजापति का भी खेत था, इस वजह से कभीकभार वह सविता के पति से खेतीबाड़ी के गुर सीखने आ जाया करता था. करीब डेढ़ साल पहले तुलसीराम ने ओडिशा की एक युवती से शादी की थी, लेकिन वह उस के साथ कुछ समय तक साथ रहने के बाद अचानक उसे छोड़ कर चली गई थी.

सविता को देख कर तुलसीराम की नीयत डोल गई. उस की चाहतभरी नजरें सविता के गदराए जिस्म पर टिक गईं.  उसी क्षण सविता भी उस की नजरों को भांप गई थी. तुलसीराम हट्टाकट्टा नौजवान था. सविता पहली नजर में ही उस की आंखों के रास्ते दिल में उतर गई. सविता के पति से बातचीत करते वक्त उस की नजरें अकसर सविता के जिस्म पर टिक जाती थीं.

सविता को भी तुलसीराम अच्छा लगा. उस की प्यासी नजरों की चुभन उस की देह को सुकून पहुंचाती थी. उधर अपनी लच्छेदार बातों से तुलसीराम ने सविता के पति से दोस्ती कर ली. तुलसीराम को जब भी मौका मिलता, वह सविता के सौंदर्य की तारीफ करने में लग जाता.

सविता को भी तुलसीराम के मुंह से अपनी तारीफ सुनना अच्छा लगता था. वह पति की मौजूदगी में जब कभी भी उसे चायपानी देने आती, मौका देख कर वह उस के हाथों को छू लेता. इस का सविता ने जब विरोध नहीं किया तो तुलसीराम की हिम्मत बढ़ती चली गई.

धीरेधीरे उस की सविता से होने वाली बातों का दायरा भी बढऩे लगा. सविता का भी तुलसीराम की तरफ झुकाव होने लगा था. तुलसीराम को पता था कि सविता अपने पति से संतुष्ट नहीं है. कहते हैं कि जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही आती है.

आखिर एक दिन तुलसीराम को सविता के सामने अपने दिल की बात कहने का मौका मिल गया और उस के बाद दोनों के बीच वह रिश्ता बन गया, जो दुनिया की नजरों में अनैतिक कहलाता है. दोनों ने इस रास्ते पर कदम बढ़ा तो दिए, लेकिन सविता ने इस बात पर गौर नहीं किया कि वह अपने पति के साथ कितना बड़ा विश्वासघात कर रही है.

जिस्म से जिस्म का रिश्ता कायम हो जाने के बाद सविता और तुलसीराम उसे बारबार बिना किसी हिचकिचाहट के दोहराने लगे. सविता का पति जब भी गांव से बाहर जाने के लिए निकलता, तभी सविता तुलसीराम को काल कर अपने पास बुला लेती थी.

अनैतिक संबंधों को कोई लाख छिपाने की कोशिश करे, एक न एक दिन उस की असलियत सब के सामने आ ही जाती है. एक दिन ऐसा ही हुआ. सविता का पति पुन्नूलाल शहर जाने के लिए घर से जैसे ही निकला, वैसे ही सविता ने अपने प्रेमी तुलसीराम को फोन कर दिया.

अवैध संबंधों का सच आया सामने

सविता जानती थी कि शहर से घर का सामान लेने के लिए गया पति शाम तक ही लौटेगा, इस दौरान वह गबरू जवान प्रेमी के साथ मौजमस्ती कर लेगी.

सविता की काल आते ही तुलसीराम बाइक से सविता के टपरेनुमा घर पर पहुंच गया. उस ने आते ही सविता के गले में अपनी बाहों का हार डाल दिया, तभी सविता इठलाते हुए बोली, ”अरे, यह क्या कर रहे हो, थोड़ी तसल्ली तो रखो.’’

”कुआं जब सामने हो तो प्यासे व्यक्ति को कतई धैर्य नहीं होता है,’’ इतना कहते हुए तुलसीराम ने सविता का गाल चूम लिया.

”तुम्हारी इन नशीली बातों ने ही तो मुझे दीवाना बना रखा है. न दिन को चैन मिलता है और न रात को. सच कहूं जब मैं अपने पति के साथ होती हूं तो सिर्फ तुम्हारा ही चेहरा मेरे सामने होता है,’’ सविता ने भी इतना कह कर तुलसी के गालों को चूम लिया.

तुलसीराम से भी रहा नहीं गया. वह सविता को बाहों में उठा कर चारपाई पर ले गया. इस से पहले कि वे दोनों कुछ कर पाते, दरवाजा खटखटाने की आवाज आई. इस आवाज को सुनते ही दोनों के दिमाग से वासना का बुखार उतर गया. सविता ने जल्दी से अपने अस्तव्यस्त कपड़ों को ठीक किया और दरवाजा खोलने भागी.

जैसे ही उस ने दरवाजा खोला, सामने पति को देख कर उस के चेहरे का रंग उड़ गया, ”तुम तो घर से शहर से सौदा लाने के लिए निकले थे, फिर इतनी जल्दी कैसे लौट आए?’’ सविता हकलाते हुए बोली.

”क्यों? क्या मुझे अब अपने घर आने के लिए भी तुम से परमिशन लेनी पड़ेगी? तुम दरवाजे पर ही खड़ी रहोगी या मुझे भीतर भी आने दोगी,’’ कहते हुए पुन्नूलाल ने सविता को एक तरफ किया और जैसे ही वह भीतर घुसा तो सामने तुलसीराम को देख कर उस का माथा ठनका.

”अरे, आप कब आए?’’ तुलसीराम ने पूछा तो पुन्नूलाल ने कहा, ”बस, अभीअभी आया हूं.’’

सविता के हावभाव पुन्नूलाल को कुछ अजीब से लगे, उस ने सविता की तरफ देखा, वह बुरी तरह से घबरा रही थी. उस के बाल बिखरे हुए थे. माथे की बिंदिया उस के हाथ पर चिपकी हुई थी.

यह सब देख कर पुन्नूलाल को शक होना लाजिमी था. डर के मारे तुलसीराम भी उस से ठीक से नजरें नहीं मिला पा रहा था. ठंड के मौसम में भी उस के माथे पर पसीना छलक रहा था. पुन्नूलाल तुलसीराम से कुछ कहता, उस से पहले ही वह अपनी बाइक पर सवार हो कर वहां से भाग गया.

उस के जाते ही पुन्नूलाल ने सविता से पूछा, ”तुलसीराम तुम्हारे पास क्यों आया था और तुम दोनों दरवाजा बंद कर क्या गुल खिला रहे थे?’’

”वह तो तुम से मिलने आया था और कुंडी इसलिए लगाई थी कि आज पड़ोसी की बिल्ली बहुत परेशान कर रही थी.’’ असहज होते हुए सविता बोली.

”लेकिन मेरे अचानक आ जाने से तुम दोनों की घबराहट क्यों बढ़ गई थी?’’

”अब मैं क्या जानूं, यह तो तुम्हें ही पता होगा.’’ सविता ने कहा तो पुन्नूलाल तिलमिला कर रह गया. उस के मन में पत्नी को ले कर संदेह पैदा हो गया था.

पुन्नूलाल ने कड़ा रुख अख्तियार करते हुए पति पर निगाह रखनी शुरू कर दी और हिदायत दे दी कि तुलसीराम से वह आइंदा से मेलमिलाप न करे. पति की सख्ती के बावजूद सविता मौका मिलते ही तुलसीराम से मिलती रहती थी.

सविता और उस के प्रेमी को चोरीछिपे मिलना अच्छा नहीं लगता था. उधर तुलसीराम चाहता था कि सविता जीवन भर उस के साथ रहे, लेकिन सविता के लिए यह संभव नहीं था.

सविता क्यों बनी प्रेमी की कातिल

वैसे भी जब से पुन्नूलाल और गांव वालों को सविता और तुलसीराम प्रजापति के अवैध संबंधों का पता लगा था, तब से सविता घर टूटने के डर से तुलसीराम से छुटकारा पाना चाह रही थी, लेकिन समझाने के बावजूद तुलसीराम उस का पीछा नहीं छोड़ रहा था. तब अंत में सविता ने अपने छोटे भाई हल्के आदिवासी के साथ मिल कर अपने प्रेमी तुलसीराम को मौत के घाट उतारने की योजना बना डाली.

अपनी योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए 8 जनवरी, 2024 को सविता अपने मायके साईंखेडा चली गई, जिस से किसी को उस पर शक न हो. वहां से वह 11 जनवरी की दोपहर अपनी ससुराल पिडरुआ वापस लौट आई. उसी दिन शाम के वक्त उस ने तुलसीराम को फोन करके मिलने के लिए मोतियाहार के जंगल में बुला लिया.

अपनी प्रेमिका के बुलावे पर उस की योजना से अनजान तुलसीराम खुशी खुशी मोतियाहार के जंगल में पहुंचा. तभी मौका मिलते ही सविता ने अपने मायके से साथ लाए चाकू का पूरी ताकत के साथ तुलसीराम के गले पर वार कर दिया.

अपनी जान बचाने के लिए खून से लथपथ तुलसीराम ने वहां से बच कर भाग निकलने की कोशिश की तो सविता ने चाकू उस के पेट में घोंप दिया. पेट में चाकू घोंपे जाने से उस की आंतें तक बाहर निकल आईं. कुछ देर छटपटाने के बाद ही उस के शरीर में हलचल बंद हो गई.

इस के बाद सविता के भाई हल्के आदिवासी ने तुलसीराम की पहचान मिटाने के लिए उस के सिर को पत्थर से बुरी तरह से कुचल दिया. फिर सविता ने अपने प्रेमी की नाक के पास अपनी हथेली ले जा कर चैक किया कि कहीं वह जिंदा तो नहीं है.

दोनों को पूरी तरह तसल्ली हो गई कि तुलसीराम मर चुका है, तब उन्होंने तुलसीराम के सारे कपड़े उतार कर उस के कपड़े, जूते एक थैले में रख कर तालाब में फेंक दिए. लाश को ठिकाने लगाने के लिए सविता और उस का भाई हल्के तुलसी की लाश को कंधे पर रख कर हरा वाले तालाब के करीब ले गए. वहां बोरी में पत्थर भर कर रस्सी को उस की कमर में बांध कर शव को तालाब में फेंक दिया.

नग्नावस्था में मिली थी तुलसी की लाश

12 जनवरी, 2024 की सुबह उजाला फैला तो पिडरुआ गांव के लोगों ने तालाब में युवक की लाश तैरती देखी. थोड़ी देर में वहां लोगों की भीड़ जुट गई. भीड़ में से किसी ने तालाब में लाश पड़ी होने की सूचना बहरोल थाने के एसएचओ सेवनराज पिल्लई को दी.

सूचना मिलते ही एसएचओ कुछ पुलिसकर्मियों को ले कर मौके पर पहुंच गए. लाश तालाब से बाहर निकलवाने के बाद उन्होंने उस की जांच की. उस की शिनाख्त पिडरुआ निवासी तुलसीराम प्रजापति के रूप में की.

वहीं पर पुलिस को यह भी पता चला कि तुलसीराम के पिछले डेढ़ साल से गांव की शादीशुदा महिला सविता आदिवासी से अवैध संबंध थे. इसी बात को ले कर पतिपत्नी में तकरार होती रहती थी.

लेकिन तुलसीराम की हत्या इस तरह गोद कर क्यों की गई, यह बात पुलिस और लोगों को अचंभे में डाल रही थी. मामला गंभीर था. एसएचओ ने घटना की सूचना एसडीओपी (बंडा) शिखा सोनी को भी दे दी थी. वह भी मौके पर आ गईं.

इस के बाद उन्होंने भी लाश का निरीक्षण कर एसएचओ को सारी काररवाई कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के निर्देश दिए. एसएचओ पिल्लई ने सारी काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. फिर थाने लौट कर हत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

एसडीओपी शिखा सोनी ने इस केस को सुलझाने के लिए एक पुलिस टीम गठित की. टीम में बहरोल थाने के एसएचओ सेवनराज पिल्लई, बरायथा थाने के एसएचओ मकसूद खान, एएसआई नाथूराम दोहरे, हैडकांस्टेबल जयपाल सिंह, तूफान सिंह, वीरेंद्र कुर्मी, कांस्टेबल देवेंद्र रैकवार, नीरज पटेल, अमित शुक्ला, सौरभ रैकवार, महिला कांस्टेबल प्राची त्रिपाठी आदि को शामिल किया गया.

चूंकि पुलिस को सविता आदिवासी और मृतक की लव स्टोरी की जानकारी पहले ही मिल चुकी थी, इसलिए पुलिस टीम ने गांव के अन्य लोगों से जानकारी जुटाने के बाद सविता आदिवासी को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया.

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सविता से तुलसीराम की हत्या के बारे में जब सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने पुलिस को गुमराह करने की भरसक कोशिश की, लेकिन एसएचओ सेवनराज पिल्लई के आगे उस की एक न चली और उसे सच बताना ही पड़ा.

सविता के खुलासे के बाद पुलिस ने सविता के भाई हल्के आदिवासी को भी साईंखेड़ा गांव से गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी अपना जुर्म कुबूल कर लिया सविता और उस के भाई हल्के आदिवसी से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने दोनों अभियुक्तों को कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

सविता और उस के भाई हल्के ने सोचा था कि तुलसीराम को मौत के घाट उतार देने से बदनामी से छुटकारा और बसा बसाया घर टूटने से बच जाएगा, लेकिन पुलिस ने उन के मंसूबों पर पानी फेर कर उन्हें जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

तुलसीराम की हत्या कर के सविता और उस का भाई हल्के आदिवासी जेल चले गए. सविता ने अपनी आपराधिक योजना में भाई को भी शामिल कर के अपने साथ भाई का भी घर बरबाद कर दिया.

हीरा व्यापारी का फाइव स्टार लव – भाग 1

रेडिसन ब्लू होटल के कमरा नंबर 922 में हीरा व्यापारी संदीप सुरेश कांबले का शव फर्श पर पड़ा हुआ था. उस की लाश खून से लथपथ थी. चारों तरफ खून ही खून बिखरा पड़ा था.

मृतक की स्थिति देखने से साफसाफ पता चल रहा था कि उस ने आखिरी क्षणों तक काफी संघर्ष किया था, लेकिन हत्यारे शायद एक से अधिक थे, इसलिए उसे अपनी जान गंवानी पड़ी थी.

पुलिस कमिश्नर गुवाहाटी दिगंता बराह ने डीसीपी (वेस्ट) पद्मनाभ बरुआ और एडीसीपी (वेस्ट) नंदिना ककाटी के सुपरविजन में तुरंत पुलिस टीम का गठन कर दिया. इंसपेक्टर संजीत कुमार रे को केस का जांच अधिकारी बनाया गया.

44 वर्षीय संदीप सुरेश कांबले और 25 वर्षीय अंजलि की मुलाकात 10 फरवरी, 2023 को कोलकाता में हुई थी. संदीप सुरेश कांबले पुणे का निवासी था और उस का डायमंड व कार का व्यवसाय था. वह अकसर बड़ेबड़े शहरों में अपने व्यवसाय के सिलसिले में आताजाता रहता था, जबकि अंजलि शा पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिले के अंतर्गत दक्षिण बक्सर संतरागाछी पुलिस स्टेशन की मूल निवासी थी, जो अभी भोपाल में रहती थी.

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      मृतक संदीप सुरेश कांबले

संदीप और अंजलि की मुलाकात नेताजी सुभाषचंद्र बोस इंटरनैशनल एयरपोर्ट, कोलकाता के एक रेस्टोरेंट में हुई थी, जहां पर अंजलि स्टोर मैनेजर के पद पर कार्य कर रही थी.

असल में संदीप अपने व्यापार के सिलसिले में कोलकाता आया हुआ था. उस ने खाने के और्डर में चिकन सूप मांगा, लेकिन वेटर ने भूलवश उसे वेजेटेबल सूप दे दिया और सूप भी टेबल पर रखते समय छलक कर संदीप के कीमती कपड़ों पर आ गिरा था. जिस के कारण संदीप ने गुस्से में पूरा रेस्टोरेंट ही सिर पर उठा लिया था.

वेटर जल्दी से भाग कर अंजलि के पास आया और उस ने कहा, ”अंजलि मैम, यह ग्राहक तो थोड़ी ही गलती पर मुझ पर बुरी तरह से भड़क गया. उस ने मुझे गालियां तक दे डालीं. अब उस ने पुलिस को बुलाने की धमकी भी दे दी है.’’

अंजलि ने देखा कि वेटर गिरीश डर से बुरी तरह कांप रहा था. अंजलि ने उसे समझाबुझा कर किचन में भेज दिया और खुद संदीप के पास चली गई. उस ने संदीप से बड़े ही शिष्ट अंदाज में वेटर की भूल के लिए क्षमा मांगी. खुद अपने रुमाल को गीला कर उस से संदीप के कपड़ों को साफ किया और संदीप को एक अलग कमरे में ले जा कर उसे खुद ही सूप सर्व किया.

संदीप एक ही पल में अंजलि की बातों, उस के व्यवहार और उस के खूबसूरत चेहरे का दीवाना सा हो गया था. उस ने फिर वहां पर लंच और डिनर भी किया और दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर भी दे दिए. अब जब कभी संदीप का कोलकाता में आना होता था तो वह अंजलि के रेस्टोरेंट में ही खाना खाया करता था. इस बीच वह एकदूसरे के बारे में काफी कुछ जान चुके थे.

एक दिन ऐसे ही संदीप ने अंजलि से पूछ लिया, ”अंजलि, आप को जीवन में अकेलापन नहीं खलता?’’

”देखिए संदीपजी, अकेलापन तो जरूर खलता है, मगर हमेशा एक उम्मीद भी बनी रहती है कि मैं अकेली नहीं हूं. किसी को ऊपर वाले ने मेरे लिए जरूर बना रखा है. वैसे आप को तो अकेलापन नहीं खलता होगा. आप की तो पत्नी है और 2 प्यारे प्यारे बच्चे भी हैं.’’ अंजलि ने बेहद गंभीरता से कहा.

”अंजलिजी, कभीकभी जीवन में सब कुछ होते हुए भी अकेलापन खलता रहता है. मानता हूं कि मेरी पत्नी है, बच्चे भी हैं, मगर जीवन में मुझे अभी भी अकेलापन लगता है. मैं जैसी पत्नी चाहता था, वैसी पत्नी शायद मुझे मिल न सकी. इसलिए भटकता रहता हूं.’’ संदीप ने उदासी भरे स्वर में कहा.

”अरे सर, आप तो इतने पैसे वाले हैं, करोड़पति आदमी हैं. आप तो जिस पर भी नजर मारें, वह आप की हो जाएगी.’’ अंजलि ने मुसकराते हुए कहा.

”अरे, अपने ऐसे नसीब कहां? हां, मगर आप की बातों से लगता है जैसे आप अब अपने जीवनसाथी की तलाश में हैं.’’ संदीप ने कहा.

”देखिए जनाब, मैं ने ऐसा तो नहीं कहा कि शादी करने के बाद अकेलापन बिलकुल भी दूर हो जाता है या बिलकुल खत्म सा हो जाता है. इसलिए मैं शादी झंझट से दूर ही रहना चाहती हूं. वैसे शादी करने के बाद इंसान अपने जीवन में कितना सुखी रह सकता है, यह बात तो मुझ से बेहतर आप जानते हैं. वैसे सच कह रही हूं मैं न? हां, मुझे एक सच्चे दोस्त की तलाश अवश्य है, मगर यह तलाश कब और कहां खत्म होगी, इस बात का पता मुझे बिलकुल भी नहीं है. हां, तलाश जारी है.’’ अंजलि ने अपनी आंखें आकाश की तरफ घुमाते हुए कहा.

अंजलि की बातें वाकई इतनी सही और सटीक थीं कि उन बातों ने संदीप के दिल को भीतर तक हिला कर रख डाला था. उसे अंजलि की बातों में एकदम सच्चाई नजर आ रही थी. शादी होने और बच्चों के बावजूद भी तो वह खुद हमेशा कितना अकेलापन महसूस करता था. वह आज भी सचमुच कितना अकेला था.

”चलो, मैं मानता हूं कि मैं शादी करने के बाद भी आज भी अपने आप को अकेला महसूस करता हूं. मगर क्या आप ने अपने अकेलेपन को दूर करने के बारे में कभी सोचा भी है?’’ संदीप ने पूछा.

”संदीपजी, अपनी तो तलाश जारी है. मैं ने अभीअभी आप से यह बात कही तो है न!’’ अंजलि ने कहा.

”आप एकदम सही कह रही हैं कि आप की तलाश तो मैं आप से कुछ कहना चाहता हूं, यदि आप मेरी बात का बुरा न मानें तो..?’’ संदीप ने हिचकते हुए कहा.

”जी, आप तो मेरे अपने से हैं, आप की बात का भला मैं क्यों बुरा मानने लगी.’’ अंजलि को संदीप की बातों में कोई विशेष ऐसी बात लग रही थी, मानो जिसे वह दिल से सुनना चाहती थी. उस ने एक बार संदीप की आंखों में आंखें डाल कर देखा, फिर अगले ही पल शरमाते हुए अपनी नजरें झुका दी थीं.

संदीप ने अंजलि पर क्यों डाले डोरे

संदीप तो जैसे अपने दिल की बात कहने के लिए कब से उतावला सा हो रहा था. उस ने अपनी ही रौ मैं बहते हुए आखिरकार दिल की बातें अंजलि से कह ही डाली थी, ”अंजलिजी, सचमुच मैं अपने दिल से कह रहा हूं आप को यदि बुरा भी लगेगा तो मुझ पर इस का कोई फर्क भी नहीं पड़ेगा. सच कहूं तो आप से मिलने से पहले मैं वाकई अपने आप को हमेशा अधूरा सा महसूस करता था, मगर जिस दिन से मुझे आप मिलीं, आप का व्यवहार, स्वभाव, बातें, आप का अपनापन सब मुझे ऐसा लगा जैसे आप मेरी अपनी हैं.

”आप आज से नहीं, बल्कि जैसे जन्म जन्मांतर से मेरी अपनी हैं. आप से मिलने से पहले मुझे लगता था जैसे मैं ने अपने जीवन में कुछ पाया ही नहीं है. मगर, अब मुझे ऐसा लगने लगा है जैसे आप ही मेरा सब कुछ हैं. मैं हमेशा यही सोचता हूं कि मैं आप के सामने बैठ कर आप को निहारता रहूं, आप से बातें करता रहूं, मेरा पूरा जीवन बस आप को देखते हुए गुजर जाए.’’

”देखिए संदीपजी, आप जो कुछ कह रहे हैं, मैं मानती हूं कि आप शायद सच कह रहे हैं. मगर ये बात भी सच है कि आप एक शादीशुदा इंसान हैं, आप का अपना एक संयुक्त परिवार है, आप का एक छोटा भाई भी है. आप के ऊपर अपने परिवार की पूरी पूरी जिम्मेदारी भी है. इसलिए बेहतर यही होगा कि आप मुझे भूल कर कुछ नई शुरुआत करें.’’ अंजलि ने कहा.

”देखो अंजलि, यह बात सही है कि मैं एक विवाहित पुरुष हूं, मेरा अपना एक परिवार भी है. मगर ये बात भी, बिलकुल सच है कि जिस दिन से मैं ने तुम्हें देखा है, मैं अपना दिल हार चुका हूं. मैं आप को अपने दिल की गहराइयों से बेइंतहा प्यार करने लगा हूं.’’ ऐसा कहते हुए संदीप ने अंजलि के दोनों हाथों को थाम लिया था.

”देखो संदीप, कहीं तुम बीच में मुझे कभी धोखा तो नहीं दोगे न? मुझे मंझधार में छोड़ कर तो नहीं चले जाओगे?’’ अंजलि ने भी अपने दिल की बात कह ही डाली.

”ऐसा भला तुम सोच भी कैसे सकती हो अंजलि,’’ कहते हुए संदीप ने अंजलि को अपनी बाहों में भर लिया था.

कहावत भी है कि जहां चाह होती है, वहां राह अपने आप निकल आती है. पहले तो अंजलि यह सोच कर कि संदीप एक शादीशुदा है, उस से बचती रही. संदीप की कामुकता भरी छेड़छाड़ को वह नजरअंदाज करती रही, परंतु एक दिन तो संदीप ने मर्यादा और नैतिकता की सारी हदें ही तोड़ डाली थीं.