
मनोहर ने अपने पिता केदार सिंह से शादी के लिए कहा तो उन्होंने मना कर दिया. लेकिन मनोहर ने जिद पकड़ ली कि वह शादी करेगा तो सीमा से ही करेगा अन्यथा कुंवारा ही रहेगा. तब मजबूर हो कर केदार सिंह को झुकना पड़ा. वह सीमा से उस की शादी कराने को राजी तो हो गए लेकिन उन्होंने शर्त रख दी कि सीमा को उन के हिसाब से घर में रहना होगा. जबकि वह जानते थे कि सीमा ज्यादा दिनों तक उन की इच्छानुरूप नहीं रह सकती. इसीलिए उन्होंने यह शर्त रखी थी.
मनोहर से शादी के बाद सीमा ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम आयुष रखा गया. लेकिन घर में उसे सब प्यार से शिवा कहते थे. केदार सिंह ने सीमा पर काफी बंदिशें लगा रखी थीं. उसे परेशान करने के लिए वह बात बात पर उसे प्रताडि़त करते रहते थे.
सीमा को बंदिशें वैसे भी कभी रास नहीं आईं, वह तो खुले आकाश में विचरण करने वाली युवती थी. यही वजह थी कि जल्दी ही वह उस घर के माहौल से तंग आ गई. वह उस घर से भागने की कोशिश करने लगी. आखिर एक दिन मौका मिलते ही वह बेटे को ले कर उस घर से हमेशा हमेशा के लिए भाग निकली.
सीमा मायके आई तो उस का पिता कमल सिंह किसी मामले में गोरखपुर जेल में बंद था. सीमा अकसर अपने पिता से मिलने जेल जाती रहती थी. वहीं उस की मुलाकात मणिकांत मिश्रा से हुई. वह भी अपने पिता विश्वंभरनाथ मिश्रा से मिलने जेल आता रहता था.
मणिकांत के पिता विश्वंभरनाथ मिश्रा जिला महाराजगंज में कोऔपरेटिव बैंक की नौतनवां शाखा में सचिव थे. 2008 में उन्हें गबन और धोखाधड़ी के मामले में गोरखपुर जेल भेज दिया गया था. मणिकांत मिश्रा मांबाप का एकलौता बेटा था.
मणिकांत भी अपने पिता से मिलने जेल आता रहता था और सीमा भी. अकसर दोनों की मुलाकात हो जाती थी. कभी दोनों ने एकदूसरे के बारे में पूछ लिया तो उस के बाद उन में बातचीत होने लगी. बातचीत होतेहोते उन में दोस्ती हुई और फिर प्यार.
बाप जेल में था, मुकदमा चल रहा था. आमदनी का कोई और जरिया नहीं था इसलिए मणिकांत दिल्ली चला गया और वहां वह कढ़ाई का काम करने लगा. रहने के लिए उस ने डाबड़ी की सीतापुरी कालोनी में अवधेश के मकान में एक कमरा किराए पर ले लिया. मणिकांत दिल्ली में रहता था और सीमा गोरखपुर में. लेकिन दोनों में फोन पर बातें होती रहती थीं. सीमा ने उस से कहा कि उसे वहां अच्छा नहीं लगता. इस पर मणिकांत ने उसे दिल्ली बुला लिया. वह बेटे को ले कर दिल्ली पहुंच गई.
सीमा को दिल्ली आए 2-3 दिन ही हुए थे कि एक रात उस ने कहा, ‘‘मणि, हम दोनों एकदूसरे को पसंद ही नहीं करते, बल्कि एकदूसरे को जीजान से चाहते भी हैं. हमें एकदूसरे से दूर रहना भी अच्छा नहीं लगता. क्यों न हम दोनों शादी कर लें?’’
सीमा की इस बात पर मणिकांत गंभीर हो गया. कुछ देर सोचने के बाद उस ने कहा, ‘‘सीमा, प्यार करना अलग बात है और शादी करना अलग बात. मैं तुम से प्यार तो करता हूं, लेकिन शादी नहीं कर सकता.’’
‘‘क्यों, प्यार करते हो तो शादी करने में क्या परेशानी है?’’
‘‘तुम शादीशुदा ही नहीं, किसी दूसरे के एक बच्चे की मां भी हो. ऐसे में मैं तुम से कैसे शादी कर सकता हूं?’’
‘‘तो क्या तुम मुझे बेसहारा छोड़ दोगे? मैं तो बड़ी उम्मीद ले कर तुम्हारे पास आई थी कि तुम मुझ से प्यार करते हो, इसलिए मुझे अपना लोगे.’’
‘‘सीमा, मैं तुम्हें बेसहारा भी नहीं छोड़ सकता और शादी भी नहीं कर सकता. अगर तुम चाहो तो एक रास्ता है.’’
‘‘क्या?’’
‘‘लिवइन रिलेशनशिप. यानी हम दोनों बिना शादी के एक साथ पतिपत्नी की तरह रह सकते हैं.’’
सीमा मरती क्या न करती, वह राजी हो गई. इस के बाद दोनों बिना शादी के ही पतिपत्नी की तरह साथ रहने लगे. मणिकांत ने पास के ही चाणक्य प्लेस स्थित एक प्ले स्कूल में आयुष का एडमिशन करा दिया. सीमा की भी उस ने एक कालसेंटर में नौकरी लगवा दी. वहां सीमा को 5 हजार रुपए प्रतिमाह वेतन मिलता था.
सीमा जल्दी ही अपने रंग दिखाने लगी. वह घूमने, फिल्में देखने और महंगा खाना खाने पर जरूरत से ज्यादा पैसे खर्च करने लगी. उस का पूरा वेतन इसी में खर्च हो जाता. पैसे खत्म हो जाते तो वह परेशान हो उठती. तब वह आसपड़ोस से उधार लेने लगी. उन पैसों को भी वह अपने शौक पूरा करने में उड़ा देती.
उधार देने वालों के पैसे सीमा वापस न करती तो वे मणिकांत से पैसे मांगते. सीमा की इन हरकतों से मणिकांत परेशान रहने लगा. उस ने सीमा को कई बार समझाया, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ.
धीरेधीरे उसे सीमा के चरित्र पर भी शक होने लगा. क्योंकि सीमा हर किसी से इस तरह खुल कर बात करती थी जैसे वह उस का बहुत खास हो. इस के अलावा उसे लोगों से पैसा भी बड़े आराम से उधार मिल जाता था. इस से मणिकांत को लगने लगा कि सीमा ने ऐसे लोगों से संबंध बना रखे हैं. इन्हीं बातों को ले कर दोनों के बीच आए दिन झगड़ा होने लगा.
हद तब हो गई, जब सीमा मणिकांत पर दबाव बनाने लगी कि वह गोरखपुर की अपनी सारी संपत्ति बेच कर दिल्ली में एक अच्छा सा मकान ले कर यहीं रहे. मणिकांत सीमा की हरकतों से वैसे भी परेशान था. जब वह उस पर संपत्ति बेचने के लिए ज्यादा दबाव बनाने लगी तो वह सीमा से छुटकारा पाने के बारे में सोचने लगा. उसे पता था कि यह औरत सीधे उस का पीछा नहीं छोड़ेगी. इसलिए उस ने उसे खत्म करने का विचार बना लिया.
पूरी योजना बना कर उस ने सीमा से गोरखपुर के अपने गांव चलने को कहा तो वह खुशी खुशी चलने को तैयार हो गई. 15 सितंबर की दोपहर मणिकांत ने सीमा और आयुष को साथ ले कर लखनऊ जाने के लिए गोमती एक्सप्रेस पकड़ी.
रात 10 बजे वह लखनऊ के चारबाग स्टेशन पर उतरा. उस ने सीमा से कहा कि इस समय गोरखपुर जाने के लिए कोई बस या ट्रेन नहीं मिलेगी, इसलिए आज रात यहीं किसी होटल में रुक जाते हैं.
सीमा क्या कहती, वह होटल में रुकने को तैयार हो गई. रिक्शे पर बैठ कर उस ने रिक्शे वाले से किसी छोटे और सस्ते होटल में चलने को कहा. रिक्शे वाला तीनों को नाका हिंडोला थाने के विजयनगर स्थित सिंह होटल एंड पंजाबी रसोई ले गया. वहां मणिकांत ने होटल के रिसैप्शन पर बैठे मैनेजर रामकुमार से एक कमरे की डिमांड की तो उस ने उस से आईडी मांगी.
मणिकांत ने सुबह को आईडी की फोटोकौपी देने को कहा. तब उस ने उस का आधार कार्ड ले कर उस का नंबर, मोबाइल नंबर और पता दर्ज कर लिया. कमरे का किराया 350 रुपए ले कर उस ने कमरा नंबर 102 की चाबी मणिकांत को दे दी. वह सीमा और आयुष को ले कर कमरे में चला गया.
सीमा और आयुष को कमरे में छोड़ कर मणिकांत चारबाग गया और वहां किसी ढाबे से खाना ले आया. खाना खा कर वह सीमा से बातें करने लगा. तभी किसी बात पर उस की सीमा से बहस हो गई तो वह सीमा को पीटने लगा. सीमा जोरजोर से रोने लगी. मां की पिटाई और उसे रोता देख कर मासूम आयुष भी रोने लगा.
मणिकांत सीमा की पिटाई करते हुए उसे बाथरूम में ले गया. वहां उस ने उसे इस तरह पीटा की वह बेहोश हो गई. उसे उसी हालत में छोड़ कर वह आयुष के पास आया और उसे बिस्तर पर लिटा कर किसी तरह सुला दिया. इस के बाद उस ने घर से बैग में रख कर लाया सब्जी काटने वाला चाकू निकाला और बाथरूम में बेहोश पड़ी सीमा का बेरहमी से गला काट दिया, जिस से उस की मौत हो गई. रात भर वह उसी कमरे में रहा. सवेरा होने पर उस ने मैनेजर से अपना आधार कार्ड लिया और बैग ले कर निकल गया. होटल से निकल कर वह गोरखपुर स्थित अपने घर चला गया.
उस ने अपनी ओर से होटल में कोई सुबूत नहीं छोड़ा था, लेकिन पुलिस आयुष की स्कूल ड्रेस के टैग के सहारे उस तक पहुंच ही गई. सारी कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के पुलिस ने मणिकांत को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया.
पुलिस ने आयुष को चाइल्डलाइन भेज कर सीमा के पति मनोहर और उस के घर वालों से संपर्क किया तो उस के चाचा चाची आ कर उसे ले गए. कथा लिखे जाने तक पुलिस होटल के मालिक के खिलाफ भी काररवाई करने की तैयारी कर रही थी.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
थाना नाका हिंडोला के थानाप्रभारी विजय प्रकाश बच्चे को साथ ले कर थाने आ गए और होटल मालिक राजकुमार की ओर से मृतका सीमा के पति बबलू के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया. रिपोर्ट दर्ज करने के बाद पुलिस ने होटल में दर्ज आधार कार्ड के पते और मोबाइल नंबर की जांच कराई तो दोनों फरजी निकले.
आधार कार्ड के अनुसार बबलू का पता आरजेड-30, स्मितापुरी, पार्क रोड, नई दिल्ली लिखा था जो फरजी पाया गया. आधार कार्ड के नंबर में 2 अंक गलत थे. कमरे में ऐसा कुछ भी नहीं मिला था, जिस से हत्यारे के बारे में या मृतका के बारे में कुछ पता चलता.
इंसपेक्टर विजय प्रकाश सिंह सोच रहे थे कि अब क्या किया जाए. तभी उन की नजर आयुष पर पड़ी. वह स्कूल की ड्रेस पहने था. उन्होंने उस की स्कूली शर्ट के कालर पर लगे टैग को देखा. उस में जो लेबल लगा था, उस में स्टार यूनिफार्म लिखा था. इस का मतलब ड्रेस जिस कंपनी में तैयार की गई थी, उस का नाम स्टार यूनिफार्म था.
स्कूल ड्रेस तैयार करने वाली इस कंपनी के बारे में शायद इंटरनेट से कुछ पता चल जाए, यह सोच कर उन्होंने इंटरनेट पर सर्च किया तो कंपनी का पता और फोन नंबर मिल गया. पुलिस ने उस नंबर पर फोन कर के संपर्क किया. जब कंपनी के बारे में पता चल गया तो पुलिस ने वाट्सएप द्वारा आयुष और उस की ड्रेस की फोटो कंपनी को भेजी तो कंपनी ने बताया कि यह ड्रेस एक प्ले स्कूल की है, जिस का पता है एम-24, चाणक्य प्लेस, डाबड़ी, नई दिल्ली.
यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस की एक टीम नई दिल्ली पहुंच गई. इस पुलिस टीम ने प्ले स्कूल के प्रबंधक को आयुष का फोटो दिखा कर पूरी बात बताई तो प्रबंधक ने स्कूल के रजिस्टर से आयुष के घर का पता लिखा दिया. आयुष के मातापिता स्कूल से कुछ दूरी पर सीतापुरी कालोनी में अवधेश के मकान में किराए पर कमरा ले कर रहते थे.
पुलिस टीम ने अवधेश से पूछताछ की तो पता चला कि उस के किराएदार का नाम बबलू नहीं बल्कि मणिकांत मिश्रा है और वह गोरखपुर के थाना सहजनवां के मोहल्ला डुगडुइया का रहने वाला है. उस के पिता का नाम विश्वंभरनाथ मिश्रा है. सीमा उस की ब्याहता पत्नी नहीं थी बल्कि दोनों लिवइन रिलेशन में रहते थे.
पुलिस टीम ने दिल्ली से ही इंसपेक्टर विजय प्रकाश को फोन कर के सीमा के असली हत्यारे का नाम पता बता दिया. इस के बाद विजय कुमार ने दूसरी पुलिस टीम गोरखपुर भेज दी.
19 सितंबर को गोरखपुर गई पुलिस टीम ने स्थानीय पुलिस की मदद से मणिकांत के घर छापा मारा तो वह घर पर ही मिल गया. पूछताछ में उस ने न केवल सीमा की हत्या का अपना अपराध कुबूल कर लिया बल्कि हत्या में प्रयुक्त सब्जी काटने वाला चाकू भी बरामद करा दिया. पुलिस टीम मणिकांत को गिरफ्तार कर के लखनऊ ले आई. थाने में की गई पूछताछ में मणिकांत ने सीमा की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी.
उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के थाना पिपराइच के पुखरभिंडा गांव में रहता था कमल सिंह. उस के परिवार में पत्नी और एक ही बेटी थी सीमा. वह अपराधी प्रवृत्ति का था, इसलिए पत्नी और बच्चों पर खास ध्यान नहीं देता था. वैसे भी वह ज्यादातर जेल में ही रहता था, इसलिए पत्नी और बेटी अपने मन की मालिक थीं.
सीमा खूबसूरत भी थी और महत्त्वाकांक्षी भी. वह जवान हुई तो उस की खूबसूरती लोगों की आंखों में बैठ गई. उसे जो भी देखता, देखता ही रह जाता. जिस का बाप अपराधी हो, उस के घर का माहौल तो वैसे भी अच्छा नहीं होता क्योंकि उस के साथ उठने बैठने वाले कोई अच्छे लोग तो होते नहीं.
कमल के यहां भी उसी के जैसे लोग आते थे. जवान बेटी को ऐसे लोगों से दूर रखना चाहिए, लेकिन कमल को इस बात की कोई चिंता ही नहीं थी. वह सभी को घर के अंदर ही बैठाता था. बदमाश प्रवृत्ति का व्यक्ति किसी का नहीं होता, इसलिए उन सब की नजरें कमल की जवान बेटी पर जम गई थीं.
बगल के ही गांव भरहट का रहने वाला एक लड़का कमल के यहां आता रहता था. वह भी अपराधी प्रवृत्ति का था. वह कुंवारा था, इसलिए उस ने कमल सिंह के सामने सीमा से शादी करने का प्रस्ताव रखा तो कमल सिंह ने सोचा कि उसे बेटी की शादी तो करनी ही है. अगर वह अपने हिसाब से शादी करेगा तो दुनिया भर का इंतजाम और दानदहेज के लिए काफी पैसे खर्च करने पड़ेंगे.
और यदि वह सीमा की शादी इस लड़के से कर देता है तो उसे अपने पास से एक पैसा खर्च नहीं करना पड़ेगा. इतना ही नहीं बल्कि वह चाहे तो इस लड़के से कुछ पैसे भी ले लेगा. लड़का उसे पसंद था इसलिए उस ने कहा, ‘‘सीमा की शादी तो मैं तुम से कर दूंगा लेकिन कुछ देने के बजाय मुझे तुम से कुछ चाहिए.’’
लड़का भी सीमा के लिए बेचैन था. इसलिए उस ने कहा, ‘‘चाचाजी, मैं सीमा के लिए अपना सब कुछ आप को दे सकता हूं.’’
‘‘मुझे तुम्हारा सब कुछ नहीं चाहिए. सब कुछ दे दोगे तो मेरी बेटी को खिलाओगे पिलाओगे कहां से. मुझे कुछ रुपए चाहिए. क्योंकि मेरे ऊपर काफी कर्ज हो गया है.’’
वह लड़का कमल द्वारा मांगी गई रकम देने को तैयार हो गया तो उस ने सीमा का विवाह उस युवक से करा दिया. सीमा पिता के घर से ससुराल पहुंच गई. वहां कुछ दिनों तक तो सब कुछ ठीकठाक रहा, लेकिन बाद में वह लड़का बातबात पर सीमा से मारपीट करने लगा तो परेशान हो कर सीमा उस से तलाक ले कर मायके चली आई.
सीमा पहले से ही बिना अंकुश की थी. शादी के बाद वह और आजाद हो गई. उसे किसी से भी बात करने या मिलने में जरा भी हिचक नहीं होती थी. कोई रोकटोक भी नहीं थी इसलिए वह कहीं भी किसी के भी साथ घूमने चली जाती थी. इस की सब से बड़ी वजह थी उस की जरूरतें. इसलिए जो भी उस की जरूरतें पूरी करता, वह उसी की हो जाती.
ऐसे में ही उस की मुलाकात थाना पिपराइच के गांव पकडि़यार के रहने वाले केदार सिंह के बेटे मनोहर सिंह से हुई तो वह उस से जुड़ गई. केदार सिंह खेतीकिसानी करते थे. मनोहर सीमा को इस कदर चाहने लगा कि वह उस से शादी करने के बारे में सोचने लगा.
प्रदेश की राजधानी होने के नाते रोजाना लाखों लोग लखनऊ आते जाते रहते हैं. इसी वजह से लखनऊ के रेलवे स्टेशन चारबाग के आसपास तो हर तरह के होटलों की भरमार है ही, उस से सटे इलाकों का भी यही हाल है. ऐसा ही एक इलाका है नाका हिंडोला. यहां भी छोटे बड़े तमाम होटल हैं.
नाका हिंडोला के मोहल्ला विजयनगर में गुरुद्वारे के पीछे एक होटल है सिंह होटल एंड पंजाबी रसोई. 16 सितंबर की सुबह 11 बजे के आसपास होटल का कर्मचारी मोहन बहादुर बेसमेंट में बने कमरों की ओर गया तो गैलरी में उसे एक बच्चा रोता हुआ दिखाई दिया.
वह लपक कर बच्चे के पास पहुंचा. बच्चा 4 साल के आसपास रहा होगा. उस ने उसे गोद में उठा कर पुचकारते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ बेटा, मम्मी ने मारा क्या?’’
‘‘नहीं, मम्मी ने नहीं मारा. मम्मी को पापा मार कर भाग गए.’’ बच्चे ने कहा.
‘‘मार कर कहां भाग गए पापा?’’ मोहन ने पूछा तो बच्चा रोते हुए बोला, ‘‘पता नहीं?’’
मोहन बहादुर को पहले लगा कि पतिपत्नी में मारपीट हुई होगी या हो रही होगी, इसलिए बच्चा रोते हुए बाहर आ गया होगा. लेकिन अब उसे मामला कुछ और ही लगा, इसलिए उस ने पूछा, ‘‘मम्मी कहां हैं?’’
‘‘वह बाथरूम में पड़ी है.’’ बच्चे ने कहा.
‘‘तुम किस कमरे से बाहर आए हो?’’ मोहन ने जल्दी से पूछा तो बच्चे ने कमरा नंबर 102 की ओर इशारा कर दिया.
मोहन बच्चे को गोद में लिए कमरे के अंदर बने बाथरूम में पहुंचा तो वहां की हकीकत देख कर परेशान हो उठा. बाथरूम में एक महिला की अर्धनग्न लाश पड़ी थी. बच्चे ने उस लाश की ओर अंगुली से इशारा कर के कहा, ‘‘यही मेरी मम्मी है. पापा इन्हें मार कर भाग गए हैं.’’
लाश देख कर मोहन बच्चे को गोद में उठाए लगभग भागते हुए होटल के मैनेजर रामकुमार के पास पहुंचा. उस ने पूरी बात उन्हें बताई तो होटल में अफरातफरी मच गई. होटल के सारे कर्मचारी इकट्ठा हो गए.
मैनेजर रामकुमार ने स्वयं कमरे में जा कर देखा. लाश देख कर उन के भी हाथपांव फूल गए. उन्होंने तुरंत होटल मालिक राजकुमार और स्थानीय थाना नाका हिंडोला पुलिस को घटना की सूचना दी.
सूचना मिलते ही इंसपेक्टर विजय प्रकाश सिंह ने पहले तो इस घटना की सूचना पुलिस अधिकारियों को दी, उस के बाद खुद पुलिसकर्मियों को साथ ले कर सिंह होटल पहुंच गए.
होटल मालिक राजकुमार उन का इंतजार बाहर कर रहे थे. उन के पहुंचते ही वह उन्हें साथ ले कर बेसमेंट स्थित उस कमरे पर पहुंचे, जिस में लाश पड़ी थी. लाश कमरे के बाथरूम में अर्धनग्न अवस्था में थी. सरसरी तौर पर निरीक्षण के बाद उन्होंने मृतका के नग्न हिस्से पर कपड़ा डलवाया.
मृतका की उम्र 22-23 साल रही होगी. उस के गले को किसी तेज धारदार हथियार से काटा गया था, जिस से निकला खून गरदन से ले कर पीठ के नीचे तक जमीन पर फैला था.
इंसपेक्टर विजय प्रकाश सिंह लाश का निरीक्षण कर ही रहे थे कि एएसपी (पश्चिम) अजय कुमार और सीओ कैसरबाग हृदेश कठेरिया भी फोरेंसिक टीम के साथ होटल पहुंच गए. फोरेंसिक टीम घटनास्थल से साक्ष्य जुटाने में लग गई तो पुलिस अधिकारी होटल के मालिक और मैनेजर से पूछताछ करने लगे.
कमरे की तलाशी में ऐसी कोई भी चीज नहीं मिली, जिस से मृतका या उस के पति के बारे में कुछ पता चलता. पुलिस अधिकारियों ने बच्चे को अपने पास बुला कर पुचकारते हुए प्यार से पूछा, ‘‘बेटा, तुम्हारा नाम क्या है?’’
‘‘आयुष. यह मेरा स्कूल का नाम है. घर में मुझे सब शिवा कहते थे.’’ बच्चे ने जवाब में बताया.
‘‘तुम्हारी मम्मी को किस ने मारा?’’
‘‘पापा ने मारा है.’’
‘‘पापा ने मम्मी को कैसे मारा?’’ एएसपी अजय कुमार ने पूछा तो बच्चे ने कहा, ‘‘पहले तो पापा ने मम्मी को खूब मारा. मम्मी खूब रो रही थीं. फिर भी पापा उन को मारते रहे. पापा उन्हें मारते हुए बाथरूम में ले गए. वहीं मम्मी बेहोश हो गईं. मम्मी को मारते देख मैं जोरजोर से रो रहा था. पापा ने मुझे गोद में उठाया और बिस्तर पर लिटा दिया. कुछ देर में मैं सो गया. सुबह उठ कर देखा तो मम्मी मर चुकी थी. पापा नहीं दिखाई दिए तो मैं रोने लगा. रोते हुए कमरे से बाहर आया तो अंकल ने मुझे गोद में ले लिया.’’
पुलिस अधिकारियों ने बच्चे को एक महिला सिपाही के हवाले कर के उसे बच्चे को कुछ खिलाने पिलाने को कहा. इस के बाद होटल के मैनेजर रामकुमार से मृतका के बारे में पूछताछ की गई तो उस ने बताया, ‘‘कल यानी 15 सितंबर की रात 11 बजे एक आदमी पत्नी और बेटे के साथ आया था.
उस ने अपना नाम बबलू, पत्नी का सीमा और 4 वर्षीय बेटे का नाम आयुष उर्फ शिवा बताया. कमरा मांगने पर मैं ने उस से आईडी मांगी तो उस ने अपना आधार कार्ड दिया. तब काफी रात हो चुकी थी, इसलिए उस की फोटोकौपी नहीं हो सकती थी. इसलिए मैं ने उस का आधार कार्ड रख लिया और उसे कमरा नंबर 102 की चाबी दे दी. होटल का वेटर उस का सामान ले कर उसे कमरे तक पहुंचाने गया.
‘‘कमरे में जाने के कुछ देर बाद बबलू चारबाग गया और वहां से खाना ले आया. सुबह साढ़े 6 बजे बबलू ने मेरे पास आ कर कहा कि मुझे आधार कार्ड की जरूरत है इसलिए आप मुझे मेरा आधार कार्ड दे दीजिए. थोड़ी देर में दुकान खुल जाएगी तो मैं फोटोकौपी करा कर दे दूंगा. चिंता की कोई बात नहीं, मेरी पत्नी और बच्चा होटल में ही है.
‘‘मैं ने आधार कार्ड दे दिया तो वह कमरे में गया और अपना बैग ले कर चला गया. उस की पत्नी और बच्चा होटल में ही था, इसलिए मैं ने सोचा वह लौट कर आएगा ही. लेकिन वह लौट कर नहीं आया. जब आयुष रोता हुआ कमरे से बाहर आया तो पता चला कि वह पत्नी की हत्या कर के भाग गया है.’’
बबलू भले ही आधार कार्ड ले कर चला गया था, लेकिन उस का नंबर, उस पर लिखा पता और मोबाइल नंबर होटल के रजिस्टर में लिख लिया गया था. पुलिस ने उस का आधार नंबर, पता और मोबाइल नंबर नोट कर लिया. इस के बाद घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए मैडिकल कालेज भिजवा दिया गया.
1 मई को रूपा ने राहुल से मिलने आने को कहा. राहुल ने इनकार किया तो वह मिन्नत करते हुए बोली, ‘‘प्लीज राहुल आ जाओ, मैं तुम्हें सच बताना चाहती हूं. ऐसा कुछ नहीं है जैसा तुम सोच रहे हो.’’
राहुल तैयार हो गया. रूपा ने इंटरनेट के जरिए 1 मई का ट्रेन से उस का आरक्षण भी करा दिया. उस के साथ वक्त बिताने के लिए उस ने 24 घंटे की छुट्टी भी ले ली. एक दिन पहले रूपा ने मकान मालिक को भी बता दिया कि उस का मंगेतर उस से मिलने के लिए आएगा.
1 मई की दोपहर राहुल उस के पास गया. रूपा बहुत खुश थी. रूपा ने खाना बनाया और दोनों ने साथ खाना खाया. रूपा ने उसे बताया कि किस तरह लोगों ने उस का फायदा उठाने की कोशिश की. चूंकि वे लोग अपने इरादों में नाकामयाब रहे इसलिए उसे भड़का रहे हैं.
इसी बीच रूपा के मोबाइल पर 1-2 लोगों के फोन आए. इंसान के दिमाग में शक हो तो उसे सबकुछ वैसा ही दिखता है, जैसा उस के दिमाग में चल रहा होता है. राहुल के साथ भी यही हुआ. उसे लगा कि उस के पुरुष दोस्तों के फोन हैं और विवाह के बाद भी वह ऐसी ही रहेगी. इस तरह फोन आने पर दोनों के बीच काफी तनातनी हुई. इसी बीच राहुल ने एक खतरनाक निर्णय ले लिया.
दरअसल, रिश्ता होने के बाद एक दिन राहुल ने टीवी पर फिल्म ‘बाजीगर’ देखी थी. फिल्म में शाहरूख खान चालाकी से दुश्मन की बेटी को प्यार के जाल में फंसा कर पहले सुसाइड नोट लिखवाता है फिर उसे छत से फेंक देता है.
राहुल के पास जब रूपा के बारे में फोन आने शुरू हुए थे तो उस ने सोच लिया था कि अगर उसे रूपा पर विश्वास नहीं हुआ, तो वह भी उसे इसी तरह मार डालेगा. उस दिन जब रूपा के मोबाइल पर एकदो फोन आए तो राहुल ने मन ही मन ऐसा ही करने की योजना बना ली. इस के लिए सब से पहले उस ने प्यार जता कर रूपा को झांसे में लिया.
राहुल
रूपा भावात्मक व आत्मिक रूप से उसे अपना मान चुकी थी और हर हाल में उस की होना चाहती थी. अपनी योजना के अनुसार राहुल ने कागज पैन उठाया और अपनी तरफ से सुसाइड नोट लिख कर रूपा को थमाते हुए बोला, ‘‘मैं तुम्हें इतना प्यार करता हूं. अब अगर मुझे कुछ भी हो जाए, उफ तक नहीं करूंगा. अब बोलो तुम भी मुझ से इतना ही प्यार करती हो?’’
‘‘बिलकुल.’’
‘‘तो ठीक है, जैसा मैं ने लिखा है, हिम्मत है तो तुम भी एक कागज पर लिख कर दो.’’
‘‘तुम्हारे लिए मैं जान भी दे सकती हूं राहुल, मैं ने तुम्हें अपना सब कुछ मान लिया है. फिर ये लाइनें क्या चीज हैं. लाओ लिख देती हूं.’’
राहुल से कागज पैन ले कर रूपा ने भी वैसा ही लिख कर दे दिया. इस के बाद राहुल हंस कर बोला, ‘‘अब तुम्हारा गला दबा दूं?’’
‘‘ये जान अब मेरी नहीं, तुम्हारी है राहुल. चाहे जो करो.’’ रूपा ने कहा तो राहुल दोनों हाथ आगे बढ़ा कर बोला, ‘‘ट्राई करें?’’
उस वक्त रूपा लेटी हुई थी. उस ने सोचा कि राहुल मजाक कर के उस की परीक्षा ले रहा है. राहुल ने उस के दोनों हाथों के पंजे उस की गरदन पर रख कर उन के ऊपर हलका दबाव बनाया तो रूपा कुछ नहीं बोली. वह इसे मजाक समझती रही. उसे नहीं पता था कि वह अपनी मौत को न्यौता दे रही है. राहुल ने इस का फायदा उठा कर कस कर उस की गरदन दबा दी और तब तक हाथ नहीं हटाए जब तक उस के प्राण नहीं निकल गए.
रूपा के हाथ उस के कब्जे में थे. उस की छटपटाहट रोकने के लिए वह उस के ऊपर बैठ गया था. इस तरह राहुल अपनी योजना में पूरी तरह कामयाब हो गया.
इस के बाद उस ने एक दुपट्टा ले कर कुंडे से बांधा और रूपा को उठा कर उस पर लटका दिया. फिर उस ने बिस्तर वगैरह ठीक किया. अपना लिखा सुसाइड नोट उस ने अपनी जेब में रखा और रूपा को उसी हालत में छोड़ कर चुपचाप वहां से निकल गया. उस ने सोचा था कि पुलिस इसे आत्महतया ही समझेगी. ऐसा हुआ भी, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने सारी पोल खोल दी.
राहुल के बयानों के बाद पुलिस ने विशेष व राहुल को भी भारतीय दंड संहिता की धारा 109 का आरोपी बना लिया. पुलिस ने विशेष को भी गिरफ्तार कर लिया जबकि पूरे प्रकरण पर नजर रख रहा सिपाही सुशील तब तक ड्यूटी से फरार हो गया था. पुलिस ने दोनों गिरफ्तार आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक पुलिस सुशील को गिरफ्तार नहीं कर सकी थी.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
मौके का निरीक्षण करने के बाद पुलिस ने होटल मैनेजर ने पूछताछ की तो उस ने बताया, ”यह युवती, जिस का नाम जोया है, अपने शौहर अजरुद्दीन के साथ परसों रात को होटल में आई थी. कल रात को इस का शौहर अजरुद्दीन खाना लाने की बात कह कर होटल से बाहर गया था. फिर मैं ने नहीं देखा कि वह लौटा या नहीं. दानिश के आने के बाद कमरा खोला तो लाश मिली.’’
एसएचओ अंकित चौहान ने दानिश को पास बुलाया. वह अभी भी रो रहा था. उस के कंधे को सहानुभूति से दबा कर इंचार्ज अंकित चौहान ने प्रश्न किया, ”मिस्टर, आप कैसे जानते थे कि कमरा नंबर 204 में आप की बहन की लाश पड़ी है.’’
”मुझे सुबह खुद अजरुद्दीन ने फोन कर के यह बात बताई थी.’’
”अजरुद्दीन आप के जीजा लगते हैं तो…’’
”अजरू मेरा जीजा नहीं है, उस का मेरी बहन जोया से प्रेम संबंध था, लेकिन अजरू इन दिनों बाइक चोरी करने के आरोप में जेल में चला गया था. हमें यह बात अच्छी नहीं लगी. अब्बू एक चोर के साथ जोया का निकाह कभी नहीं करते.
”उन्होंने दिल्ली में जोया के लिए एक लड़का पसंद कर के उस के साथ जोया का रिश्ता पक्का कर दिया. 14 नवंबर को उस के साथ जोया की शादी होनी थी.’’
”अजरुद्दीन कहां रहता है?’’ एसीपी सलोनी अग्रवाल ने पूछा.
”वह कल्लूगढ़ी गांव (गाजियाबाद) में ही रहता है.’’ दानिश ने बताया.
एसीपी सलोनी अग्रवाल ने पहले जोया की लाश की जांच करने के लिए फोरैंसिक टीम को बुलवाया. कमरे से फोरैंसिक टीम ने सबूत एकत्र किए. इस के बाद जोया की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.
एसीपी सलोनी अग्रवाल ने अजरुद्दीन की गिरफ्तारी के लिए एसएचओ अंकित चौहान को नियुक्त कर दिया.
अजरू ने क्यों किया प्रेमिका का कत्ल
अंकित चौहान ने अपनी पुलिस टीम के साथ कल्लूगढ़ी में अजरुद्दीन को पकडऩे के लिए रेड डाली, लेकिन यह वहां से फरार हो गया था. अंकित चौहान ने अपने खास मुखबिर उस की टोह में लगा दिए.
20 अक्तूबर, 2023 को अजरुद्दीन को उस वक्त गिरफ्तार कर लिया गया. जब पुलिस सड़क पर वाहनों की चैकिंग कर रही थी और अजरुद्दीन उसी रास्ते धोलाना की तरफ जा रहा था.
पुलिस को देख कर अजरुद्दीन अपने वाहन से कूद कर भागा तो पुलिस ने उस का पीछा किया. उसे पकडऩे के लिए पुलिस को मजबूरन उस के पांव में गोली मारनी पड़ी. वह गिरा तो पुलिस ने उसे दबोच लिया.
उसे वेव सिटी थाने लाया गया. थाने में उस ने पूछताछ के दौरान लव क्राइम के पीछे की जो कहानी बताई, इस प्रकार थी—
अजरुद्दीन जोया उर्फ शहजादी को अपनी जान से ज्यादा प्यार करता था. उस की खातिर उस ने अपनी नेक और बहुत चाहने वाली बीवी जीनत और 5 बच्चों तक को छोड़ दिया. जोया की फरमाइशें पूरी करने के लिए उस ने अपने बापदादा की जमीनें बेच भी दीं, अपना पैतृक मकान भी बेच डाला. वह जोया को हर तरह से खुश रखता था.
जोया की खातिर सब कुछ बेच देने के बाद वह किराए का घर ले कर रहने लगा और जोया की डिमांड पूरी करने के लिए बाइक चोरी करने लगा. उस पर नोएडा और गाजियाबाद थानों में चोरी के कई केस दर्ज हुए और जेल तक जाना पड़ा.
जोया वहां उस से मिलने आती थी. जोया के घर वालों ने उसे जेल में बंद देख कर झटपट जोया का रिश्ता दिल्ली में तय कर दिया. उसे यह बात पता चली तो वह तड़प उठा. उस ने किसी तरह अपनी जमानत करवा ली और जेल से बाहर आ गया.
उस ने जोया को फोन कर के आखिरी मुलाकात के लिए गाजियाबाद बुलाया. बहुत मिन्नतें करने पर वह शौपिंग के बहाने से गाजियाबाद आ गई. वह 20 अक्तूबर की शाम थी. अजरुद्दीन ने यहां होटल अनंत में एक कमरा पतिपत्नी के रूप में बुक करा लिया था.
कमरे में आ कर उस ने जोया को वह रिश्ता तोड़ देने की मिन्नतें कीं, लेकिन उस ने इंकार कर के कहा कि वह एक चोर के साथ निकाह हरगिज नहीं कर सकती, इसलिए वह उसे भूल जाए.
जिस के पीछे अजरुद्दीन पूरी तरह बरबाद हो गया, वह अब उसे चोर कह रही थी. वह दूसरे दिन भी जोया को मनाता रहा, वह नहीं मानी तो उस ने उस की कोल्ड ड्रिंक में जहर मिला दिया. जब वह फ्रेश होने के लिए बाथरूम में गई थी. वह कोल्ड ड्रिंक पी कर बेसुध हो कर पलंग पर पसर गई. उस के सोते ही अजरुद्दीन ने तकिया उस के मुंह पर रख कर तब तक दबाया, जब तक उस के प्राण नहीं निकल गए.
प्रेमिका की हत्या करने के बाद उस ने रात को अपने दोस्त जलाल को बाइक ले कर होटल के पीछे बुलाया था. खाना लाने के बहाने अजरुद्दीन होटल से निकला तो जलाल होटल के पीछे खड़ा मिल गया. वह उस की बाइक पर बैठ कर होटल से दूर निकल गया. इस के बाद सुबह उस ने जोया के भाई दानिश को जोया की लाश होटल के कमरा नंबर 204 में होने की जानकारी फोन से दे दी थी.
अजरुद्दीन द्वारा जोया की हत्या का जुर्म कुबूल करने के बाद उसे न्यायिक मजिस्ट्रैट की कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उसे 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.
अजरुद्दीन के इस बयान के बाद जलाल को भी पुलिस ने दबोच लिया और जेल भेज दिया.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
रूपा विशेष को अपना दोस्त भी मानती थी और शुभचिंतक भी. उस ने इस बारे में विशेष को भी बताया. विशेष पहले ही कुढ़ा बैठा था. उस ने रूपा की हां में हां तो मिलाई पर अंदर ही अंदर जलता रहा. विशेष चाहता था कि रूपा की शादी किसी से भी न हो ताकि उसे और उस के घर वालों को यह पछतावा रहे कि विशेष से रिश्ता न कर के उन्होंने बहुत बड़ी भूल की है.
विशेष ने किसी तरह सुशील का पता लगाया और उस से संपर्क कर के रूपा के पुराने दिनों की बातें बता कर उसे भड़काने का प्रयास किया. लेकिन उस पर इस का कोई असर नहीं पड़ा.
उधर रूपा ने सुशील के बारे में अपने घर वालों से बात की. जब उन्हें पता लगा कि बेटी विवाह करना चाहती है, तो उन्होंने सुशील के बारे में पता लगाया. लेकिन उन्हें जो जानकारी मिली उसे उन के पैरों तले की जमीन खिसक गई. सुशील न सिर्फ विवाहित था बल्कि एक बच्चे का बाप भी था. यह बात रूपा को पता चली तो उस के सारे सपने टूट कर बिखर गए. वह समझ गई कि सुशील को विवाह की जल्दी क्यों नहीं थी.
दरअसल सुशील शादी के बहाने उसे भावनाओं के जाल में फंसा कर मन बहलाने का साधन बनाना चाहता था. इस झटके ने रूपा को अंदर तक हिला कर रख दिया. रूपा ने सुशील को जम कर खरीखोटी सुनाई और उस से पूरी तरह संपर्क तोड़ दिया. विशेष को इस से बहुत सुकून मिला, जबकि रूपा से अफसोस जता कर वह उस का सच्चा हितैषी होने का ढोंग करता रहा. इसी बीच सुशील का स्थानांतरण बागपत जिले में हो गया.
उधर रूपा के परिजनों ने उस के लिए रिश्ते की तलाश शुरू कर दी. मार्च, 2014 में यह तलाश राहुल के रूप में पूरी हुई. अच्छे परिवार का राहुल सीआरपीएफ में था. रूपा और राहुल ने एक दूसरे को पसंद कर लिया तो दोनों का रिश्ता पक्का हो गया. दोनों ही परिवार चाहते थे कि विवाह जल्द हो जाए. इसलिए 7 अप्रैल को सगाई की रस्म पूरी कर दी गई. विवाह के लिए भी 16 जून की तारीख तय हो गई.
सगाई होने के बाद रूपा और राहुल की मोबाइल पर बातें होने लगीं. रूपा ने राहुल को विश्वास दिलाया कि वह उसे बहुत प्यार करती है और हमेशा करती रहेगी. राहुल भी यह सोच कर मन ही मन खुश था कि उस ने होने वाली पत्नी के रूप में रूपा जैसी सुंदर व हंसमुख युवती का चुनाव किया है. रूपा की खुशी भी किसी से छिपी नहीं थी. उस ने सभी को बता दिया था कि एक महीने बाद उस का विवाह होने वाला है.
विशेष खुद को रूपा का हितैषी जताता था. वह प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था. इस के लिए वह जब तब रूपा से पैसे मांगता रहता था. वह भी यह सोच कर पैसे दे देती थी कि वह उस का दोस्त भी है और वक्त का मारा भी. रूपा नहीं जानती थी कि वह आस्तीन का सांप है.
विशेष को जब रूपा की सगाई और विवाह की योजना का पता चला, तो एक बार फिर उस पर बिजली सी गिरी. उस ने तय कर लिया कि वह इस रिश्ते को तुड़वा कर रहेगा. विशेष सुशील के नजदीक आ चुका था. पोल खुलने पर रूपा के हाथों हुई बेइज्जती की वजह से सुशील भी अपमान की आग में झुलस रहा था.
सुशील अपराध शाखा में रह चुका था. अपने संपर्कों का इस्तेमाल कर के उस ने सब से पहले रूपा की काल डिटेल्स हसिल की. इस से उसे उस नंबर का पता चल गया जिस पर वह सब से ज्यादा बात करती थी. वह नंबर राहुल का था. उस ने राहुल का नंबर विशेष को बता दिया. विशेष ने राहुल को एक दिन फोन कर के बताया कि वह रूपा से शादी न करे क्योंकि वह उसे प्यार करता है और उस से शादी करना चाहता है. विशेष ने अपना नाम बताए बिना राहुल के सामने शर्त रखी थी कि वह इस बारे में रूपा को कुछ न बताए.
भावी पत्नी के बारे में ऐसी बातें सुन कर राहुल का खून खौल गया. उस ने रूपा से इस मुद्दे पर बात की, तो उस ने इसे झूठ बताया. बहरहाल, दोनों के बीच तकरार और प्यार चलता रहा. धीरेधीरे राहुल को विश्वास हो गया कि कोई उसे भड़काने के लिए ऐसा कर रहा है.
राहुल को विश्वास में ले कर रूपा ने वह नंबर हासिल कर लिया जिस से राहुल को फोन किया गया था. वह नंबर विशेष का निकला. रूपा ने फोन मिला कर विशेष को खूब लताड़ा. उस ने सफाई देनी चाही, लेकिन रूपा ने उस की एक नहीं सुनी.
इस के बाद विशेष की हालत हारे हुए जुआरी जैसी हो गई. रूपा ने उस से बात तक करनी छोड़ दी. योजनानुसार इस के बाद सुशील ने राहुल को फोन कर के अपने और रूपा के रिश्ते की बातें बताईं और उस से दूर रहने को कहा. इन बातों से राहुल का दिमाग खराब हो गया. इस तरह विशेष और सुशील ने मिल कर उस के मन में शक का बीज बो दिया.
इस बात को ले कर रूपा और उस के बीच तकरार भी हुई. इधर यह सब चल रहा था और उधर रूपा का परिवार विवाह की तैयारियां करने में लगा था. इन बातों के बाद राहुल ने रूपा से बात करनी बंद कर दी तो वह विचलित हो गई. इस के बावजूद उस ने राहुल को विश्वास दिलाने के लिए उसे फोन करना जारी रखा. दोनों के बीच कई दिनों तक रूठने मनाने का दौर चलता रहा.
उधर विशेष भी राहुल को फोन कर के भड़काता रहा. जबकि रूपा राहुल को विश्वास दिलाती कि वह सिर्फ उसी से प्यार करती है और उस के लिए अपनी जान भी दे सकती है.
अजरू को जीनत दिलोजान से चाहती थी, उस का घर और इस के बच्चों को संभालना जीनत अपना फर्ज समझती थी. उस ने इस फर्ज की अदायगी में नाइंसाफी नहीं की थी. अजरू इस बात को जानता था और उस पर वह अपना भरपूर प्यार लुटाता था. अपने शौहर के इसी प्यार की भूखी थी जीनत, लेकिन अब अजरू का दिल कहीं और कुलांचे भर रहा था.
वह महसूस कर रही थी कि उस का अजरू अब पहले वाला अजरू नहीं रह गया है. इस के पीछे की सच्चाई जान कर जीनत का दिल रो पड़ा था. जीनत की आंखें भर आईं. उस का मन काम में नहीं लगा.
पति पर क्यों फूटा जीनत का गुस्सा
रात को अजरू घर आया तो जीनत ने उस से सीधा सवाल कर डाला, ”यह जोया कौन है जिस के पीछे आप अपना घर, बच्चे और मुझे भूलते जा रहे हैं?’’
अजरू एक पल को हक्का बक्का रह गया. उस के प्रेम की भनक उस की बीवी को लग चुकी है, यह जान कर उस ने गहरी सांस भरी और बोला, ”जोया से मैं प्रेम करता हूं जीनत.’’
”क्या मेरे प्यार में कोई कमी रह गई थी जो आप को बाहर मुंह मारने की जरूरत आ पड़ी.’’
”तुम्हें मैं ने भरपूर प्यार किया है, अब मेरा दिल दूसरी जगह सुकून तलाश रहा है तो तुम्हें क्या आपत्ति है?’’
”आपत्ति है,’’ जीनत तड़प कर बोली, ”आप मेरे हैं, आप का प्यार मेरे लिए है. इसे कोई दूसरी बांट ले, मुझे यह हरगिज मंजूर नहीं है.’’
”मैं जोया को नहीं छोड़ सकता जीनत. तुम्हें मैं खाने पीने का पूरा खर्च दे रहा हूं, तुम अपने घर और बच्चों में खुश रहो. मैं बाहर क्या कर रहा हूं, इस से परेशान मत हो.’’
”अगर आप को बाहर सुकून मिलने लगा है तो मैं आप के साथ आगे नहीं रह पाऊंगी, मैं आप से अलग होना ज्यादा पसंद करूंगी. मैं घुटघुट कर जिंदगी नहीं जीना चाहती.’’
”तुम्हारी मरजी है जीनत, तुम यहां रहती तो मुझे अच्छा लगता.’’ अजरू ने गहरी सांस भर कर कहा.
”आप जोया को छोड़ देंगे तो मुझे भी अच्छा लगेगा.’’ जीनत ने दोटूक कहा और अंदर कमरे में चली गई.
उसी दिन जीनत अपने बच्चों को साथ ले कर अपने मायके चली गई. अजरू जोया के प्यार में इस कदर डूब गया था कि उस ने अपने बीवी बच्चों को रोकने की जरूरत नहीं समझी. जोया की मोहब्बत में अजरू-जीनत का घर और रिश्ता टूट गया.
जोया के इश्क का भूत अजरुद्दीन पर इस कदर सवार हुआ कि उस ने खेत बेचने के बाद अपना पैतृक घर भी बेच दिया. उस ने उन पैसों से जोया की फरमाइशें पूरी करनी शुरू कर दीं. कुछ ही दिनों में उस के मकान का पैसा भी खत्म हो गया.
अजरू मकान बेच देने के बाद किराए का घर ले कर रहने लगा. जोया को अजरू द्वारा दिए जा रहे गिफ्ट पा कर संतोष नहीं हो रहा था. उसे गिफ्ट लेने का चस्का सा लग गया था, वह रोज अजरू से किसी न किसी चीज की डिमांड कर देती और अजरू उस की फरमाइश पूरी करने के लिए दिल खोल कर रुपए खर्च करता.
मकान बेचने के बाद मिला पैसा आखिर कितने दिनों तक चलता. अजरू एक दिन खाली जेब रह गया. फिर भी जोया की फरमाइश नहीं थमी. अब अजरू ने बाइक चोरी करनी शुरू कर दी. वह सड़क पर पार्क की गई बाइकें चोरी करता और औने पौने दामों में बेच देता.
एक दिन बाइक चुराते हुए वह पकड़ा गया. उसे पुलिस थाने ले आई और जेल में बंद कर दिया.
जोया उर्फ शहजादी को पता लगा कि चोरी के आरोप में गाजियाबाद पुलिस ने अजरू को जेल पहुंचा दिया है तो वह अजरू से मिलने जेल पहुंच गई. अजरू से मिल कर वह खूब रोई.
अजरू ने उस के आंसू पोंछते हुए भावुक स्वर में कहा, ”मैं जल्दी जेल से बाहर आ जाऊंगा जोया. जेल से निकलने के बाद मैं कहीं काम तलाश कर लूंगा और तुम से निकाह कर लूंगा. जीनत नाम का कांटा हमारे बीच से निकल गया है, हम दोनों प्यार की नई दुनिया बसा लेंगे.’’
”हां अजरू, हमारा मिलन होगा, हमारा प्यारा सा घर भी होगा और उस घर के आंगन में प्यारे प्यारे बच्चे भी होंगे. बस, तुम जल्दी से अपनी सजा काट कर जेल से बाहर आ जाओ.’’
”मैं जल्द आऊंगा जोया.’’ प्यार से अजरू ने जोया का हाथ पकड़ कर दबाते हुए कहा, ”तुम मेरा इंतजार करना.’’
”करूंगी मेरे महबूब.’’ आंखों में आए आंसू पोंछते हुए जोया उठ कर खड़ी हो गई और थके कदमों से चलती हुई जेल के बाहर आ गई.
22 अक्तूबर, 2023 को सुबह का उजाला फैला भी नहीं था कि जोया के भाई दानिश के मोबाइल फोन की घंटी बजने लगी. दानिश की आंखें खुल गईं. उस ने कंबल में से हाथ बाहर निकाल कर टेबल पर रखा मोबाइल फोन उठाया. स्क्रीन पर अजरू का नाम चमक रहा था. ‘इतनी सुबह अजरुद्दीन को मुझ से क्या काम पड़ गया?’
हैरत में डूबे दानिश ने बड़बड़ाते हुए काल रिसीव की, ”दानिश बोल रहा हूं, कैसे फोन किया?’’
”दानिश, तुम्हारी बहन जोया की लाश रोहन एनक्लेव (गाजियाबाद) के होटल अनंत में कमरा नंबर 209 में पड़ी है.’’ दूसरी ओर से अजरू ने गंभीर स्वर में कहा और काल डिसकनेक्ट कर दी.
दानिश हैलो…हैलो… करता रह गया. अजरू ने अपना मोबाइल स्विच्ड औफ कर दिया था.
दानिश जल्दी से बिस्तर से उतरा और अपने पिता को बताए बगैर वह अपनी बाइक से गाजियाबाद के लिए निकल गया. वह जब होटल अनंत पहुंचा तो धूप पूरी तरह निकल चुकी थी.
दानिश दौड़ता हुआ होटल के रिसैप्शन पर आया. वहां ड्यूटी पर मैनेजर मौजूद था.
”तुम्हारे होटल के कमरा नंबर 204 में मेरी बहन जोया की लाश है…’’ दानिश घबराए स्वर में बोला.
”लाश..!’’ मैनेजर बौखला गया, ”आप को किस ने कहा कि हमारे होटल में लाश है.’’
”आप पहले देखिए,’’ दानिश ऊंची आवाज में बोला.
मैनेजर अपनी जगह से हिला. वह कमरा नंबर 204 की तरफ दौड़ा. उस के पीछे दानिश भी था. कमरा खोल कर देखा तो उस में वास्तव में बैड पर जोया की लाश पड़ी थी.
इस की सूचना तुरंत थाना वेव सिटी में फोन कर के दे दी. सूचना मिलने पर थाना वेव सिटी के एसएचओ अंकित चौहान और एसीपी सलोनी भी मौके पर पहुंच गईं.
पुलिस ने रूपा के मकान मालिक से भी पूछताछ की. उस ने एक ऐसी बात बताई जिस से पुलिस के शक को और भी बल मिला. रूपा ने मकान मालिक को एक दिन पहले बताया था कि उस का मंगेतर उस से मिलने के लिए आएगा.
यह जानने के बाद पुलिस ने राहुल के नंबर की सभी डिटेल्स हासिल कर लीं. उस से पता चला कि 1 मई की दोपहर से ले कर रात तक राहुल की लोकेशन बुलंदशहर में ही थी. इस के बाद उस ने अपना मोबाइल स्विच्ड औफ कर दिया था. शक को मजबूत आधार मिला, तो पुलिस ने रूपा के घर वालों की तरफ से राहुल के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कर लिया. इस के बाद पुलिस उस की तलाश में जुट गई.
एक पुलिस टीम राहुल की तलाश में पटना रवाना कर दी गई. 14 मई को पुलिस राहुल को हिरासत में ले कर बुलंदशहर लौट आई. पुलिस की इस तरह की काररवाई से वह हक्का बक्का था. पुलिस ने उस से सीधा सवाल किया, ‘‘तुम ने रूपा की हत्या क्यों की?’’
‘‘मैं भला उस की हत्या क्यों करूंगा सर, वह मेरी मंगेतर थी. हम दोनों तो अपनी शादी से खूब खुश थे.’’ राहुल ने संक्षिप्त शब्दों में सीधा जवाब दिया.
‘‘तुम्हारा मोबाइल क्यों बंद था?’’
पूछने पर राहुल बोला, ‘‘मेरा मोबाइल खराब हो गया था. मुझे आप से ही पता चला है कि रूपा की हत्या हो गई है.’’
‘‘तुम्हारी रूपा से आखिरी मुलाकात कब हुई थी?’’
‘‘सगाई के बाद हम लोग एक बार मिले थे. वैसे मोबाइल पर हम बराबर बातें करते रहते थे.’’ राहुल के जवाबों से पुलिस समझ गई कि वह हद से ज्यादा चालाक भी है और झूठ बोलने में माहिर भी. लेकिन जब पुलिस ने उस के साथ सख्ती की तो वह टूट गया.
पहले वह खामोश हो कर शून्य को ताकता रहा, फिर उस ने कुबूल कर लिया कि रूपा की हत्या उस ने ही की थी और यह आइडिया उसे शाहरूख खान की फिल्म बाजीगर देख कर आया था. रूपा की हत्या की उस ने जो वजह बताई वह एक युवा लड़की के विश्वास व भावनाओं के साथ खिलवाड़ के बाद बेरहमी से हुए कत्ल की कहानी थी.
किसान परिवार में जन्मी रूपा होनहार युवती थी. उस की ख्वाहिश थी कि वह बड़ी हो कर पुलिस विभाग में नौकरी करे. यह सर्वविदित है कि उद्देश्य अगर पहले ही साफ हो जाए तो मंजिल तक पहुंचने की राहें आसान हो जाती हैं. रूपा के साथ भी ऐसा ही कुछ था. रूपा का परिवार आर्थिक रूप से बहुत ज्यादा सक्षम नहीं था. वह चाहती थी कि बड़ी हो कर परिवार के लिए कुछ करे.
इंसान की जिंदगी कई तरह की राहों से हो कर गुजरती है. इन राहों में बहुत से लोग मिलते बिछड़ते हैं. इन लोगों में किस से करीबी रिश्ते बन जाएं कोई पता नहीं होता. कालेज के दिनों में ही रूपा की मुलाकात विशेष कुमार से हुई. विशेष कुमार जिला मेरठ के खेखड़ा थाना क्षेत्र के गांव का रहने वाला था.
रूपा सुंदर व हंसमुख स्वभाव की थी. विशेष उसे पसंद करता था. वह पढ़ने में भी मेहनती था. विचार मिले तो दोनों के बीच दोस्ती हो गई. विशेष की पारिवारिक हालत काफी खराब थी. वह किसी भी तरह अपनी पढ़ाई पूरी कर के नौकरी करना चाहता था.
रूपा उन युवतियों में से थी जो दूसरों की पीड़ा को अपनी समझते हैं. एक दिन विशेष को परेशान देख रूपा ने उस से पूछा तो उस ने बताया कि वह फीस का इंतजाम नहीं कर पा रहा है. हो सकता है, फीस न भर पाने के कारण उसे पढ़ाई छोड़नी पड़े.
रूपा उस की बात सुन कर गंभीर हो गई. उस ने विशेष को समझा कर आश्वासन दिया कि वह उस की मदद करेगी. उस ने किसी तरह इंतजाम कर के विशेष को फीस के रुपए दे दिए. इस से वह बहुत खुश हुआ.
बीए करने के दौरान ही 2011 में उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही के पद के लिए वैकेंसी निकलीं तो रूपा और विशेष ने तय किया कि वह इस के लिए प्रयास करेंगे. दोनों ने एकसाथ पंजीकरण फार्म भरा. चयन के लिए प्रतियोगी टेस्ट हुए, तो रूपा का चयन हो गया जबकि विशेष रह गया. इस से रूपा को तो दुख पहुंचा ही विशेष भी मन मार कर रह गया. रूपा का परिवार बेटी के पुलिस में जाने से खुश था. कुछ महीनों के प्रशिक्षण के बाद रूपा को तैनाती मिल गई.
2013 में रूपा का स्थानांतरण बुलंदशहर जनपद में हो गया. विशेष चूंकि अब तक कहीं नौकरी नहीं कर पाया था इसलिए वह परेशान रहता था. वक्त वक्त पर रूपा उस की आर्थिक मदद करती रहती थी. दोनों की इच्छा विवाह करने की थी, लेकिन रूपा का परिवार उस के परिवार की माली हालत की वजह से इस के लिए तैयार नहीं हुआ.
विशेष ने सोचा था कि उसे कमाऊ पत्नी मिलेगी तो उस के आर्थिक संकट दूर हो जाएंगे. रिश्ता नहीं होने से वह निराश हो गया. नतीजतन उस के दिल में प्रतिशोध की चिंगारी भड़कने लगी. उस ने मन ही मन फैसला कर लिया कि वह रूपा को किसी और की भी नहीं होने देगा. लेकिन उस ने अपने इरादे कभी जाहिर नहीं होने दिए. यह अलग बात थी कि मांगने पर रूपा उसे पैसे भेज देती थी.
रूपा की तैनाती देहात के थाने में थी. वहां उसे काफी दिक्कत होती थी. इसलिए वह शहर में आना चाहती थी. इसी दौरान उस की मुलाकात सिपाही सुशील जावला से हो गई. सुशील अपराध शाखा में तैनात था और मूल रूप से नव सृजित जिला शामली के थाना कांधला क्षेत्र के गांव भभीसा का रहने वाला था. वह काफी तेज तर्रार था. अधिकारियों के संपर्क में रहने से डिपार्टमेंट में उस की अच्छी पकड़ थी.
रूपा पहली ही नजर में सुशील के दिल में उतर गई. भावनात्मक स्वभाव की रूपा पुलिस की नौकरी में भले ही आ गई थी, लेकिन उस में न तो पुलिस जैसी तेजी थी और न ही उसे जमाने का तजुर्बा था. सुशील ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया तो रूपा भी इनकार नहीं कर सकीं.
रूपा ने अपनी समस्या सुशील को बता दी थी. सुशील चाहता था कि रूपा पूरी तरह उस के जाल में फंस जाए, इसलिए उस ने अधिकारियों से अपने संबंधों का फायदा उठा कर रूपा को शहर लाने के प्रयास शुरू कर दिए. इस प्रयास में उसे सफलता मिली, जिस की बदौलत रूपा को शहर कोतवाली में तैनाती मिल गई.
दोनों के बीच मुलाकातों बातों का सिलसिला बढ़ा तो सुशील ने प्रेम का इजहार कर के रूपा के सामने शादी का प्रस्ताव रखा. एक तो सुशील अपनी ही जाति का था. दूसरे था भी मेरठ की तरफ का रहने वाला. इसलिए रूपा को यह ठीक लगा. उस ने सोचा कि सुशील भी चूंकि सरकारी नौकरी में है इसलिए दोनों का जीवन सुखमय रहेगा. शादी की बात करते समय सुशील ने एक बात साफ कर दी थी कि वह शादी 2 साल से पहले नहीं करेगा. उस ने चूंकि रूपा को खूब सपने दिखाए थे, इसलिए वह 2 साल बाद भी शादी करने को तैयार थी.