प्रेमलीला ने लील ली जान

ओमप्रकाश जितना सीधासादा था, उतना ही मेहनती भी था. गांव में इधरउधर बैठने के बजाय वह अपने खेती के काम में लगा रहता  था. उस के खेतों में अच्छी पैदावार होती थी. इसी वजह से गांव के लोग उस की पीठ पीछे भी तारीफ करते थे. ओमप्रकाश के घर के पास ही संतोष रावत रहता था. शादीशुदा होते हुए भी दूसरी महिलाओं से नजदीकी बढ़ाना उस की आदत में शुमार था.

एक दिन वह ओमप्रकाश के घर गया. वहां उस की पत्नी सुनीता मिली. वह उस से ओमप्रकाश की तारीफ  करते हुए बोला, ‘‘भाभी, तुम भैया को ऐसा क्या खिलाती हो कि दिनरात खेतों में जुटे रहते हैं, फिर भी नहीं थकते. मेरे घर वाले कहते हैं कि मेहनत करने का सबक ओमप्रकाश से सीखो.’’

पति की प्रशंसा सुन कर सुनीता मुसकराई, लेकिन बोली कुछ नहीं. संतोष ने समझा कि वह पति की तारीफ सुन कर मन ही मन गदगद हो रही है. इसलिए उस ने ओमप्रकाश की तारीफ के पुल बांधना जारी रखा.

‘‘सुबह से देर शाम तक खेत में ही तो जुटे रहते हैं. जबकि आदमी को घर की तरफ ध्यान देना भी जरूरी होता है. घर में जो काम करना चाहिए, वह तो करते नहीं.’’ सुनीता ने कहा.

संतोष के दिमाग में बिजली सी कौंधी. वह सोचने लगा कि ऐसा कौन सा काम है, जो भैया घर पर नहीं करते. जिज्ञासा शांत करने के लिए वह बोला, ‘‘भाभी, मैं तुम्हारी बात समझा नहीं. ऐसा कौन सा काम है जो भैया नहीं करते?’’

मन की भड़ास निकालने के लिए सुनीता ने जैसे ही मुंह खोला, तभी उस की जेठानी कमला आ गई. वे दोनों आपस में बतियाने लगीं तो संतोष वहां से चला गया.

ओमप्रकाश उत्तर प्रदेश के जिला बाराबंकी के गांव सलोनीपुर मजरा खिजना का रहने वाला था. उस का विवाह करीब 6 साल पहले सीतापुर के महमूदाबाद थाना के जसमंडा गांव की रहने वाली सुनीता से हुआ था. सुनीता खूबसूरत थी, इसलिए उस से शादी कर के ओमप्रकाश बहुत खुश था. बाद में सुनीता 2 बेटों और 1 बेटी की मां बनी.

संतोष ओमप्रकाश को बड़ा भाई मानता था. ओमप्रकाश भी छोटा भाई मान कर उस का पूरा खयाल रखता था. इसी वजह से संतोष उस के घर आताजाता रहता था. सुनीता और संतोष में खूब पटती थी. उन के बीच हंसीमजाक भी चलता रहता था.

सुनीता द्वारा कही गई बात संतोष के जेहन में घूम रही थी. वह समझ गया था कि सुनीता ओमप्रकाश से संतुष्ट नहीं है. अगर वह संतुष्ट होती तो पति की तारीफ सुन कर खुश हो जाती और कुछ न कुछ जरूर कहती. वह किस वजह से असंतुष्ट थी, यह तो वही जानती होगी. लेकिन संतोष का मन कह रहा था कि वह दैहिक रूप में असंतुष्ट होगी. लेकिन ऐसा होता तो उस के आंगन में 3 बच्चे नहीं खेल रहे होते.

संतोष ने काफी सोचा, लेकिन वह सुनीता की असंतुष्टि का कारण नहीं जान पाया. हकीकत जानने के लिए अगले दिन दोपहर में वह सुनीता के घर जा पहुंचा.

उस समय सुनीता घर में अकेली थी. संतोष उस के पास जा कर बैठ गया. दोनों ने मुसकान बिखेर कर एकदूसरे के प्रति मन की खुशी जाहिर की. बातचीत का सिलसिला जुड़ा तो संतोष के मन की बात होंठों पर आ गई, ‘‘भाभी, कल तुम जो बात कह रही थीं, कमला भाभी के आ जाने की वजह से अधूरी रह गई थी. आखिर वह क्या बात है?’’

सुनीता ने गहरी नजरों से संतोष को देखा. फिर वह मुसकरा कर बोली, ‘‘लगता है कि कल से तुम इसी उधेड़बुन में लगे हो.’’

‘‘नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं है, लेकिन कोई बात अधूरी रह जाए तो मन को मथती रहती है.’’ संतोष बोला.

‘‘उसी बात को जानने के लिए बेचैन हो?’’ सुनीता ने पूछा.

‘‘हां भाभी,’’ संतोष बोला.

‘‘मान लो, मैं बता भी दूंगी तो उस से क्या फायदा होगा? जो काम वह नहीं करते, उसे तुम कर दोगे?’’ सुनीता ने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा.

सुनीता की आंखों में छाए नशे और बातों से संतोष अच्छी तरह समझ गया कि वह क्या चाहती है. इसलिए वह भी उसी अंदाज में बोला, ‘‘भाभी, मैं तुम्हारी हर तरह की सेवा करने को मैं तैयार हूं. कुछकुछ तुम्हारी भावनाओं को समझ भी रहा हूं.’’

‘‘संतोष सोच लो, तुम शादीशुदा हो. बीवी के होते हुए तुम मेरे लिए टाइम निकाल पाओगे?’’

‘‘उस की चिंता मत करो. उसे भनक तक नहीं लगेगी. सच तो यह है कि भाभी, मैं तुम्हें बहुत दिनों से प्यार करता हूं, लेकिन तुम से कहने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था.’’ संतोष ने सुनीता के नजदीक आते हुए कहा.

उस समय कमरे में उन दोनों के अलावा कोई और नहीं था. इसलिए दोनों खुद पर काबू न रख सके और उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कर लीं. अवैध संबंधों की राह बहुत ढलवां होती है. कोई भी आदमी इस पर एक बार कदम रख देता है तो वह फिसलता ही जाता है. संतोष और सुनीता ने शादीशुदा होते हुए भी ऐसे रास्ते पर कदम रखा था, जिस का खामियाजा हमेशा गलत ही होता है. दोनों ही अपनेअपने जीवनसाथी को धोखा दे कर अपना स्वार्थ पूरा करते रहे. उन्होंने वासना की आग में सारी मर्यादाओं को जला कर राख कर दिया.

पाप की गठरी अधिक दिनों तक बंधी नहीं रहती. एक न एक दिन उस की गांठ खुल ही जाती है. धीरेधीरे दोनों के नाजायज संबंधों की भनक गांव के लोगों को भी लग गई. गांव में अपनी बदनामी होते देख सुनीता संतोष से दूरी बनाने लगी. लेकिन संतोष उस का पीछा छोड़ने को तैयार नहीं था. वह जबतब उस के यहां आता रहा.

इसी साल मार्च में ओमप्रकाश का भांजा विकास घर आया. 18 साल का विकास उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के गांव इब्राहीमपुर में रहता था. विकास शारीरिक रूप से मजबूत था.

उसे देख कर पथभ्रष्ट हो चुकी सुनीता के मन में लालच के बीज अंकुरित होने लगे. इस से पहले भी उस ने विकास को कई बार देखा था, लेकिन इस बार उस की सोच बदल गई थी. सुनीता ने विकास की खूब आवभगत की. वह कई दिनों तक मामा के घर रुका रहा. इस दौरान सुनीता विकास के इर्दगिर्द मंडराती रही. मौका देख वह उस से हंसीमजाक भी करती थी.

कुछ दिन रुकने के बाद जब विकास वापस जाने लगा तो सुनीता विकास का हाथ थाम कर बोली, ‘‘विकास, अब कब आओगे?’’

मामी के इस तरह हाथ पकड़ने से विकास के शरीर में सनसनाहट सी दौड़ गई. उस का मन तो कर रहा था कि वह वहां से अभी न जाए, लेकिन पापा का फोन आ गया था, जिस से उसे वहां से उसी समय जाना पड़ रहा था. उस ने सुनीता को मन की बात बताते हुए कहा, ‘‘मामी, वैसे तो मेरा यहां से जाने का मन नहीं कर रहा है. लेकिन मैं जल्दी ही लौट आऊंगा.’’

‘‘ठीक है, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.’’

विकास ने मामी के खूबसूरत चेहरे पर नजरें जमाईं तो उस की आंखों में प्यार का मूक आमंत्रण था.

विकास अपने घर तो वापस आ गया, लेकिन उस के मनमस्तिष्क में मामी का खूबसूरत बदन और उस के द्वारा कहे शब्द ही घूम रहे थे. उस का घर पर भी मन नहीं लग रहा था. कुछ दिनों बाद ही वह अपने मन में मामी की नजदीकी हासिल करने के सपने संजोए उस के घर आ गया.

विकास को आया देख सुनीता की खुशी का ठिकाना न रहा. वह अब जल्द ही अपनी हसरतें पूरी करना चाहती थी. एक दिन उस ने विकास से पूछा, ‘‘विकास क्या तुम ने किसी लड़की से प्यार किया है?’’

‘‘क्यों.’’ विकास ने मुसकरा कर पूछा.

‘‘बताओ तो सही.’’ कह कर सुनीता विकास के करीब आ गई.

‘‘एक है, लेकिन पता नहीं वह भी मुझ से प्यार करती है या नहीं.’’

‘‘तुम्हें उस के सामने प्यार का इजहार करना चाहिए.’’ सुनीता ने कहा.

‘‘सोचा कहीं बुरा न मान जाए. अच्छा मामी यह बताओ, अगर उस की जगह तुम होती तो क्या करतीं?’’

‘‘मेरे ऐसे भाग्य कहां.’’ कह कर सुनीता उदास हो गई.

‘‘फिर भी बताओ तो सही. तुम्हारा क्या जवाब होता?’’

‘‘तो मैं तुम्हारे गले में बांहों का हार पहना देती. मगर विकास तुम यह मुझ से क्यों पूछ रहे हो?’’ सुनीता ने मासूमियत से पूछा.

‘‘क्योंकि वह और कोई नहीं, तुम ही हो. मैं तुम से प्यार करता हूं और तुम्हें बांहों में भर कर खूब प्यार लुटाना चाहता हूं.’’ विकास की आंखों में वासना के लाल डोरे उभर आए थे.

‘‘बिलकुल बुद्धू हो, औरत की आंखों की भाषा पढ़ना भी नहीं जानते.’’

सुनीता की बात सुन कर विकास ने उसे अपनी बांहों में भर कर उस के चेहरे को चूम लिया. सुनीता ने भी उसे अपने अनुभव के जलवे दिखाने शुरू कर दिए. कुछ ही देर में उन के बीच ऐसे संबंधों ने जन्म ले लिया, जिसे समाज अवैध कहता है.

विकास का वहां ज्यादा दिनों तक रहना रिश्तों में शक पैदा कर सकता था, इसलिए कुछ दिनों बाद वह वहां से चला गया और थोड़ेथोड़े दिनों बाद मामी से मिलने आने लगा. इस तरह उन का यह खेल लंबे समय तक चलता रहा. ओमप्रकाश को इस की भनक तक न लगी. 24 अगस्त, 2013 को सीतापुर जिले की महमूदाबाद थाना पुलिस को गांव याकूबनगर के पास एक आदमी की लाश पड़ी होने की सूचना मिली.

लाश की खबर मिलते ही थानाप्रभारी सुभाषचंद्र तिवारी अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. लाश याकूबनगर से पैतेपुर गांव जाने वाली सड़क पर पड़ी थी. उन्होंने देखा कि उस की गरदन पर गहरे घाव थे, जबकि बाकी शरीर पर भी कई जगह चोटों के निशान थे. घाव किसी धारदार हथियार के लग रहे थे. वहां पर तमाम लोग इकट्ठा थे. पुलिस ने उन से लाश की शिनाख्त करानी चाही, लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका. थानाप्रभारी ने आवश्यक काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय, सीतापुर भेज दिया.

अगले दिन समाचारपत्रों में लाश मिलने का समाचार फोटो सहित छपा, इस के बावजूद लाश की शिनाख्त के लिए कोई थाने नहीं आया. लाश की शिनाख्त होने के बाद ही केस की काररवाई संभव थी. इसलिए पुलिस यह पता लगाने में जुट गई कि कहीं आसपास के जिलों के किसी थाने से इस हुलिया का आदमी तो लापता नहीं है. पुलिस की इस काररवाई का भी कोई नतीजा नहीं निकला.

13 सितंबर  को देशराज रावत नाम का एक आदमी थाना महमूदाबाद पहुंचा. उस ने बताया कि वह बाराबंकी के बड्डूपुर थानाक्षेत्र में सलोनीपुर गांव का रहने वाला है. उस का बेटा संतोष 23 अगस्त से गायब है.

थानाप्रभारी सुभाषचंद्र तिवारी ने याकूबनगर के पास से जो अज्ञात लाश बरामद की थी, उस के कपड़े और फोटो देशराज को दिखाए. कपड़े और फोटो देखते ही देशराज रोने लगा. उस ने कहा कि यह सब सामान उस के बेटे का ही है. लाश की शिनाख्त होने पर थानाप्रभारी ने राहत की सांस ली. उन्होंने देशराज रावत से मालूमात की तो उस ने बताया कि संतोष 23 अगस्त को घर से गायब हुआ था. गांव में ही रहने वाले ओमप्रकाश की पत्नी सुनीता के साथ उस के नाजायज संबंध थे. उस ने शक जताया कि उस के बेटे की हत्या सुनीता या उस के घर वालों ने की होगी.

देशराज रावत से अहम जानकारी मिलने के बाद इंसपेक्टर सुभाषचंद्र तिवारी ने अपनी तहकीकात शुरू की तो इस बात की पुष्टि हो गई कि संतोष और सुनीता के बीच अवैध संबंध थे. उन्हें यह भी पता चला कि संतोष के गायब होने के एक दिन पहले ही वह अपने मायके आ गई थी. उस का मायका महमूदाबाद थानाक्षेत्र के जसमंडा गांव में था. संतोष की लाश उस के गांव से कुछ दूर मिलने से जाहिर होता था कि उस की हत्या में सुनीता का हाथ हो सकता है.

पुलिस सुनीता की तलाश में जुट गई और मुखबिर की सूचना पर उसे 19 सितंबर को मोतीपुर गांव से गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उस ने संतोष की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि संतोष की हत्या में उस के साथ उस का भांजा व प्रेमी विकास और उस का जेठ सियाराम भी शामिल था.

पूछताछ में सुनीता ने बताया कि संतोष उस के गले की हड्डी बनता जा रहा था. उस की वजह से वह पूरे गांव में बदनाम हो गई थी, लेकिन वह था कि उस का पीछा छोड़ने को तैयार नहीं तैयार था. उस से पीछा छुड़ाने के लिए उस ने उसे मौत के घाट उतारने की योजना बनाई.

यह सब अकेली सुनीता के बस की बात नहीं थी. इस के लिए उस ने विकास को तैयार करने का मन बनाया. उस ने रोते हुए विकास से कहा, ‘‘विकास, संतोष ने मेरा जीना हराम कर दिया है. जहां भी जाती हूं, उस की वजह से मुझे बदनामी झेलनी पड़ती है. वह मेरा किसी हाल में पीछा नहीं छोड़ रहा है.’’

सुनीता को रोते देख कर विकास का दिल भर आया. उस ने कहा, ‘‘रोओ मत मामी, मैं हूं न. अगर वह तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ रहा तो उसे यह दुनिया ही छोड़नी पड़ेगी.’’ कहते हुए विकास के चेहरे पर कठोरता आ गई.

यह देख कर सुनीता मन ही मन खुश हुई, लेकिन फिर संभल कर बोली, ‘‘तुम सही कह रहे हो, यही एक तरीका है. लेकिन इस के लिए मेरे जेठ यानी तुम्हारे बड़े मामा सियाराम को भी तैयार करना होगा. तीन लोगों के साथ होने से संतोष बच के नहीं निकल पाएगा.’’

विकास ने सहमति दे दी. इस के बाद उस ने बड़े मामा सियाराम से बात की और घर की इज्जत को बचाने का वास्ता दे कर उसे साथ देने के लिए राजी कर लिया. फिर तीनों ने बैठ कर संतोष को ठिकाने लगाने की योजना बनाई.

योजनानुसार 22 अगस्त, को सुनीता अपने बच्चों के साथ विकास और सियाराम को ले कर अपने मायके आ गई. 23 अगस्त को सुनीता ने संतोष को फोन कर के मिलने के लिए गांव जसमंडा बुलाया. सुनीता के बुलाने पर संतोष तुरंत बाराबंकी से बस द्वारा लखनऊ होते हुए पहले सीतापुर के कस्बा महमूदाबाद पहुंचा और वहां से सुनीता द्वारा बताई गई जगह पर पहुंच गया.

विकास और सियाराम उस जगह पर पहले ही छिप कर बैठ गए थे. उस समय रात के करीब 9 बज रहे थे. वादे के अनुसार सुनीता संतोष को निश्चित जगह पर मिल गई और उस से बातें करती हुई चलने लगी. वह याकूबपुर गांव के पास पहुंचे ही थे कि अंधेरे का फायदा उठा कर पीछेपीछे आ रहे विकास और सियाराम ने संतोष को दबोच कर जमीन पर गिरा लिया. इस के बाद उन्होंने बांके से उस पर ताबड़तोड़ वार करने शुरू कर दिए. कुछ ही देर में संतोष की मौत हो गई. बांके को वहीं पास की झाडि़यों में छिपा कर तीनों वहां से फरार हो गए.

अगले दिन 20 सितंबर को विकास और सियाराम को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर उन से पूछताछ की. उन्होनें भी अपना जुर्म कुबूल कर लिया. थानाप्रभारी सुभाषचंद्र तिवारी ने सुनीता, विकास और सियाराम के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर के उन्हें मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

झोपड़ी में रह कर महलों के ख्वाब – भाग 3

जिस दिन मल्लिका को प्रवीण के साथ जाना था, वह सास से बाजार जाने की बात कह कर घर से निकली थी. सुबह की निकली मल्लिका जब रात तक घर नहीं लौटी तो सास ने उस की तलाश शुरू की. घर में कोई था नहीं, इसलिए फोन कर के खासखास रिश्तेदारों को बुला लिया. जब मल्लिका का कुछ पता नहीं चला तो कृष्णा को फोन किया गया.

पत्नी के लापता होने की सूचना मिलते ही कृष्णा आ गया. उस ने पत्नी की गुमशुदगी दर्ज करा दी तो पुलिस भी मल्लिका की तलाश करने लगी.

प्रवीण मल्लिका को ले कर पहले जरार में रह रही अपनी बहन के यहां गया. बहन प्रीति ने जब मल्लिका के बारे में पूछा तो प्रवीण ने बताया कि यह उस की पत्नी है. उस ने उस से शादी कर ली है. खूबसूरत मल्लिका को देख कर प्रीति बहुत खुश हुई. उस ने भाई और कथित भाभी मल्लिका की खूब आवभगत की.

बहन के घर रहते हुए प्रवीण ने मल्लिका के साथ नागपुर जाने की योजना बनाई. 18 अक्टूबर, 2014 को छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस से उस ने रिजर्वेशन भी करवा लिया. लेकिन न जाने क्यों उस ने रिजर्वेशन कैंसिल करा दिया और मल्लिका को ले कर रुनकता स्थित अपने कमरे पर आ गया.

मल्लिका ने रुनकता स्थित प्रवीण का कमरा और क्लिनिक देखा तो सन्न रह गई. वह जो सोच कर प्रवीण के साथ आई थी, यहां उस का एकदम उलटा था. प्रवीण की असलियत जान कर वह बेचैन हो उठी. उस ने गाड़ीबंगला, नौकरचाकर का जो सपना देखा था, उस सब पर पानी फिर गया था.

मल्लिका समझ गई कि उस के साथ धोखा हुआ है. लेकिन अब वह फंस चुकी थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे. सिर्फ शारीरिक सुख से तो जिंदगी बीत नहीं सकती थी, इसलिए वह इस बात पर विचार करने लगी कि आगे क्या किया जाए.

प्रवीण अगले दिन मल्लिका को ताजमहल दिखाने ले गया. वहां उस ने उस के साथ फोटो भी खिंचवाए. प्रवीण शायद मल्लिका के मन की बात भांप गया था, इसलिए वह उसे समझाने लगा कि जल्दी ही वह दूसरा मकान ले लेगा. बाजार में कोई अच्छी सी दुकान ले कर बढि़या क्लिनिक खोल लेगा. अभी तक वह अकेला रहता था, इसलिए उसे किसी बात की चिंता नहीं थी, लेकिन उस के आ जाने से उसे चिंता होने लगी है.

दीवाली पर प्रवीण मल्लिका के साथ अपनी बहन के यहां जरार गया, लेकिन अगले ही दिन वापस आ गया. प्रवीण की लाख कोशिश के बावजूद मल्लिका का मन बदल चुका था. वह समझ गई थी कि यहां जल्दी कुछ बदलने वाला नहीं है. उसे बेटे की भी याद आने लगी थी. उसे अपनी गलती का अहसास हो गया था, इसलिए उस ने जरार से रुनकता आते समय रास्तें में ही प्रवीण से कह दिया था कि इस स्थिति में वह उस के साथ नहीं रह सकती.

घर पहुंच कर मल्लिका वापस जाने की तैयारी करने लगी. प्रवीण उसे समझाने लगा कि अब वह उस के बिना अकेला नहीं रह पाएगा. प्रवीण को इस बात की भी चिंता सता रही थी कि मल्लिका अपने साथ जो लाखों के गहने और नकद ले आई है, उसे भी अपने साथ ले जाएगी. फिर तो इतनी मेहनत कर के भी वह कंगाल का कंगाल रह जाएगा.

25 अक्टूबर को भैया दूज थी, इसलिए क्लिनिक बंद थी. पूरा दिन प्रवीण मल्लिका को समझाता रहा, लेकिन किसी भी तरह मल्लिका रुकने को तैयार नहीं थी. प्रवीण को मल्लिका के जाने की उतनी चिंता नहीं थी, जितनी चिंता उस के गहनों और रुपयों को साथ ले जाने की थी. इसलिए उस ने सोच लिया कि भले ही उसे मल्लिका की हत्या करनी पड़े, लेकिन वह साथ लाया माल मल्लिका को ले नहीं जाने देगा.

यही सोच कर वह रात 8 बजे के आसपास मुस्तकीम की दुकान से कोल्ड ड्रिंक की 2 बोतलें खरीद लाया. मल्लिका की नजर बचा कर उस ने एक बोतल में नशे की दवा मिला दी. इस के बाद उस बोतल को मल्लिका को दे कर दूसरी बोतल खुद पीने लगा. कोल्ड ड्रिंक पीते हुए भी उस ने मल्लिका से कहा कि वह जिद छोड़ दे.

लेकिन मल्लिका ने साफसाफ कह दिया कि अब वह यहां रुक कर जिंदगी बरबाद करने वाली नहीं है. इस के बाद प्रवीण चुप हो गया. कोल्ड ड्रिंक पी कर मल्लिका बेहोश हो गई तो खिड़की दरवाजा बंद कर के प्रवीण ने बांका से मल्लिका का गला रेत दिया. बेहोश होने की वजह से मल्लिका चीख भी नहीं सकी.

गुस्से में प्रवीण ने मल्लिका की हत्या तो कर दी, लेकिन लाश देख कर परेशान हो उठा कि अब क्या करे. उसे पुलिस और कानून का डर सताने लगा.

पुलिस से बचने के लिए उस ने कहीं और भाग जाने का विचार किया. लाश को कंबल से ढक कर वह कमरे से बाहर निकल कर दरवाजे पर ताला लगा कर सड़क पर चलने लगा. मल्लिका के कुछ गहने और 15 सौ रुपए नकद उस के पास थे. वह उन्हीं से कहीं दूर जा कर अपनी गृहस्थी बसाना चाहता था. लेकिन उसे लग रहा था कि वह कहीं भी चला जाए, पुलिस और कानून से बच नहीं पाएगा.

सुबह किसी ने कस्बे से थोड़ी दूर पर रेल की पटरी के किनारे एक क्षतविक्षत लाश देखी. पुलिस को सूचना दी गई तो थाना सिंकदरा के थानाप्रभारी आशीष कुमार सिंह पुलिस बल के साथ वहां पहुंच गए. मृतक के पास एक बैग था, जिस की तलाशी में कुछ कपड़े और गहने के साथ 15 सौ रुपए मिले. इस के बाद मृतक की तलाशी में उस की जेब से आधार कार्ड मिल गया, जिस से उस की शिनाख्त हो गई. वह लाश किसी और की नहीं, रुनकता कस्बे में क्लिनिक चलाने वाले डा. प्रवीण विश्वास की थी.

पुलिस को जब बताया गया कि इस के घर में इस की नवविवाति पत्नी भी है तो थानाप्रभारी ने उसे सूचना देने के लिए एक सिपाही को भेजा. कमरे में बाहर से ताला बंद था. अब सवाल यह था कि उस की पत्नी कहां गई. किसी ने खिड़की की झिरी से झांक कर देखा तो अंदर एक महिला की लाश दिखाई दी. पुलिस ने ताला तोड़वाया तो पता चला कि अंदर पड़ी लाश उस की नवविवाहिता पत्नी की थी.

पुलिस ने काररवाई कर के दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दीं. प्रवीण के कमरे में मिली डायरी से उस के बहनोई श्रवण विश्वास का फोन नंबर मिल गया तो पुलिस ने उसे फोन कर के डा. प्रवीण की आत्महत्या और उस की पत्नी की हत्या की सूचना दे दी. श्रवण पत्नी प्रीति के साथ रुनकता पहुंचा. इस के बाद पुलिस ने उसी की ओर से प्रवीण के खिलाफ मल्लिका की हत्या का मुकदमा दर्ज करने के बाद आत्महत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

पुलिस को डा. प्रवीण विश्वास के पास से एक मंगलसूत्र, एक जोड़ी कान के टौप्स, 2 जोड़ी बच्चों के चांदी के कड़े और 15 सौ रुपए नकद मिले थे. मल्लिका कान में टौप्स, गले में चेन, अंगूठियां और नाक में जो कील पहने थी, वे उस के शरीर पर मौजूद थे.

पुलिस ने मल्लिका के पास से मिले मोबाइल फोन से एक नंबर मिलाया, संयोग से वह उस के पति कृष्णा का था. बातचीत के बाद पुलिस ने जब उसे मल्लिका की हत्या की सूचना दी तो उस ने जल्दी से जल्दी आगरा पहुंचने की बात कही.

कृष्णा ने कहा ही नहीं, बल्कि अगले दिन अपने चाचा विश्वजीत के साथ आगरा आ पहुंचा. उस ने आगरा में ही मल्लिका का अंतिम संस्कार कर दिया. उस का कहना था कि मल्लिका अपने साथ लाखों के गहने और नकदी ले कर आई थी. डा. प्रवीण के घर वालों ने भी उस का आगरा में ही अंतिम संस्कार कर दिया था. इस तरह स्वार्थ में अंधे प्रवीण ने प्यार की हत्या तो की ही, आत्महत्या कर के अपने साथ एक और घर बरबाद कर दिया.

झोपड़ी में रह कर महलों के ख्वाब – भाग 2

जब मल्लिका की बातों ने उसे प्यार में पागल कर दिया तो कामधाम छोड़ कर प्रवीण 24 परगना जा पहुंचा. मल्लिका को उस ने अपने आने की सूचना दे दी थी, इसलिए घर पहुंचते ही उस ने मल्लिका से मिलने का स्थान और समय तय कर लिया.

मल्लिका ने उसे अगले दिन 24 परगना के बसस्टाप पर दोपहर को बुलाया था. प्रवीण तय जगह पर खड़ा इधरउधर देख रहा था. थोड़ी देर में उसे एक खूबसूरत औरत आती दिखाई दी. वह मन ही मन सोचने लगा कि अगर यही मल्लिका होती तो कितना अच्छा होता.

प्रवीण उस औरत को एकटक ताकते हुए मल्लिका के बारे में सोच रहा था कि तभी वह औरत फोन निकाल कर किसी को फोन करने लगी. प्रवीण के फोन की घंटी बजी तो उस का दिल धड़क उठा. उस ने जल्दी से फोन रिसीव किया तो दूसरी ओर से पूछा गया, ‘‘कहां हो तुम?’’

‘‘तुम्हारे सामने ही तो खड़ा हूं.’’ प्रवीण के मुंह से यह वाक्य अपने आप निकल गया.

कान से फोन लगाए हुए ही उस औरत ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तो तुम हो प्रवीण?’’

‘‘हां, मैं ही प्रवीण हूं, जिसे तुम इतने दिनों से तड़पा रही हो.’’

‘‘अब तड़पने की जरूरत नहीं है. क्योंकि मैं तुम्हारे सामने खड़ी हूं.’’

मल्लिका को देख कर प्रवीण फूला नहीं समाया, क्योंकि उस ने अपने ख्वाबों में मल्लिका की जो तसवीर बनाई थी, वह उस से कहीं ज्यादा खूबसूरत थी. वह लग भी ठीकठाक परिवार की रही थी.

‘‘यहीं खड़े रहोगे या चल कर कहीं एकांत में बैठोगे.’’ मल्लिका ने कहा तो प्रवीण को होश आया.

प्रवीण उसे एक रेस्टोरैंट में ले गया. चायनाश्ते के साथ बातचीत शुरू हुई तो मल्लिका ने गंभीरता से कहा, ‘‘प्रवीण, तुम सचसच बताना, मुझे कितना प्यार करते हो और मेरे लिए क्या कर सकते हो?’’

‘‘अगर प्यार करने की कोई नापतौल होती तो नापतौल कर बता देता. बस इतना समझ लो कि मैं तुम्हें जान से भी ज्यादा प्यार करता हूं. अब इस से ज्यादा क्या कह सकता हूं.’’ प्रवीण ने मल्लिका के हाथ पर अपना हाथ रख कर कहा.

‘‘जब तुम मुझे इतना प्यार करते हो तो मुझे भी अब तुम्हें अपने बारे में सब कुछ बता देना चाहिए, क्योंकि मैं ने अभी तक तुम्हें अपने बारे में कुछ नहीं बताया है. प्रवीण मैं शादीशुदा ही नहीं, मेरा 10 साल का एक बेटा भी है. मेरा पति कुवैत में रहता है, जिस की वजह से हमारी मुलाकातें 2 साल में सिर्फ कुछ दिनों के लिए हो पाती हैं. मैं यहां सासससुर के साथ रहती हूं. पति के उतनी दूर रहने की वजह से प्यार के लिए तड़पती रहती हूं.’’

मल्लिका की सच्चाई जानसुन कर प्रवीण सन्न रह गया. जैसे किसी ने उसे आसमान से जमीन पर पटक दिया हो. जिसे वह जान से ज्यादा प्यार करता था, वह किसी और की अमानत थी, यह जान कर उस के मुंह से शब्द नहीं निकले. उस की हालत देख कर मल्लिका ने कहा, ‘‘तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं प्रवीण. मैं भी तुम्हें उतना ही प्यार करती हूं, जितना तुम. मैं तुम्हारे लिए पति और बेटा तो क्या, यह दुनिया तक छोड़ सकती हूं.’’

प्रवीण ने होश में आ कर कहा, ‘‘सच, तुम मेरे लिए सब को छोड़ सकती हो?’’

‘‘हां, तुम्हारे लिए मैं सब को छोड़ ही नहीं सकती, जान तक दे सकती हूं, लेकिन तुम मुझे मंझधार में मत छोड़ना. तुम डाक्टर हो, इसलिए मेरे दिल का दर्द अच्छी तरह समझ सकते हो. बोलो, धोखा तो नहीं दोगे?’’ मल्लिका गिड़गिड़ाई.

मल्लिका की इस बात से प्रवीण ने थोड़ी राहत महसूस की. इस के बाद कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘अच्छा, यह बताओ. अब तुम सिर्फ मेरी बन कर रहोगी न?’’

‘‘हां, अब मैं सिर्फ तुम्हारी ही हो कर रहना चाहती हूं, सिर्फ तुम्हारी,’’ मल्लिका ने कहा, ‘‘चलो, अब यहां से कहीं और चलते हैं.’’

प्रवीण मल्लिका को पूरी तरह अपनी बनाना चाहता था, इसलिए उस ने एक मध्यमवर्गीय होटल में कमरा बुक कराया और मल्लिका को उसी में ले गया. एकांत में होने वाली बातचीत में प्रवीण जान गया कि मल्लिका के मायके और ससुराल वाले काफी संपन्न लोग हैं. उस का पति कुवैत में नौकरी करता था. उस समय भी वह लगभग 4-5 तोले सोने के गहने पहने थी.

होटल के उस कमरे में एकांत का लाभ उठा कर प्रवीण ने मल्लिका को अपनी बना लिया. उस ने मल्लिका के बारे में तो सब कुछ जान लिया, लेकिन अपने बारे में उस ने सिर्फ इतना ही बताया था कि वह डाक्टर है और अभी उस की शादी नहीं हुई है.

प्रवीण के डाक्टर होने का मतलब मल्लिका ने यह लगाया था कि वह पढ़ालिखा होगा, इसलिए अन्य डाक्टरों की तरह यह भी खूब पैसे कमा रहा होगा. यही सोच कर वह उस के साथ रहने के बारे में सोच रही थी.

जबकि स्थिति इस के विपरीत थी. प्रवीण झोला छाप डाक्टर था. उस ने क्लिनिक जरूर खोल ली थी, लेकिन उस की कमाई से किसी तरह उस का खर्च पूरा होता था. मल्लिका के बारे में जान कर अब वह उस की बदौलत अपना भाग्य बदलने के बारे में सोच रहा था.

मल्लिका की शादी 24 परगना के थाना गोपालपुर के कस्बा चलमंडल के रहने वाले कृष्णा से हुई थी. 24 परगना शहर में उस की विशाल कोठी थी. ससुराल में मल्लिका को किसी चीज की कमी नहीं थी. कमी सिर्फ यही थी कि पति कुवैत में रहता था और वह यहां सासससुर के साथ रहती थी. वह पति के साथ रहना चाहती थी, जबकि कृष्णा उसे कुवैत ले जाने को तैयार नहीं था. उस का कहना था कि अगर दोनों कुवैत चले गए तो मांबाप यहां अकेले पड़ जाएंगे.

मल्लिका बेटे अपूर्ण में मन लगाने की कोशिश करती थी, लेकिन बेटा बड़ा हो गया तो उसे पति की कमी खलने लगी थी. उस की जवान उमंगे तनहाई में दम तोड़ने लगी थीं. उस के जिस्म की भूख उसे बेचैन करने लगी थी. ऐसे में ही उस का फोन गलती से प्रवीण के मोबाइल पर लग गया तो दोनों की दोस्ती ही नहीं हुई, अब मेलमिलाप भी हो गया था. उस के बाद उस की जैसे दुनिया ही बदल गई थी.

मुलाकात के बाद जिस्म की भूख भी बढ़ गई और प्यार भी. कुछ दिन गांव में रह कर प्रवीण वापस आ गया. अब दोनों के बीच लंबीलंबी बातें होने लगीं. मल्लिका उस के सहारे आगे की जिंदगी गुजारने के सपने देखने लगी थी. क्योंकि उसे पता था कि कृष्णा में कोई बदलाव आने वाला नहीं है, इसलिए उस की परवाह किए बगैर एक दिन उस ने प्रवीण से कहा, ‘‘भई, इस तरह कब तक चलेगा. आखिर हमें कोई न कोई फैसला तो लेना ही होगा.’’

‘‘इस विषय पर फोन पर बात नहीं हो सकती. दुर्गा पूजा पर मैं घर आऊंगा तो बैठ कर बातें करेंगे.’’ प्रवीण ने कहा और घर जाने की तैयारी करने लगा.

दुर्गा पूजा के दौरान दोनों की मुलाकात हुई तो तय हुआ कि इस बार प्रवीण आगरा जाएगा तो मल्लिका भी उस के साथ चलेगी. वहां दोनों शादी कर के आराम से रहेंगे. उस समय मल्लिका ने यह भी नहीं सोचा कि कृष्णा घरपरिवार से उतनी दूर उस के और बच्चे के सुख के लिए ही पड़ा है. अपने जिस्म की भूख मिटाने के लिए उस ने अपने 10 साल के बेटे की चिंता भी नहीं की.

झोपड़ी में रह कर महलों के ख्वाब – भाग 1

पश्चिम बंगाल के जिला 24 परगना के थाना गोपालनगर के गांव पावन के रहने वाले प्रभात विश्वास गांव में रह कर खेती करते थे. पत्नी, 2 बेटों  और एक बेटी के उन के परिवार का गुजरबसर इसी खेती की कमाई से होता था. उसी की कमाई से वह बच्चों को पढ़ालिखा भी रहे थे और सयानी होने पर बेटी की शादी भी कर दी थी.

प्रभात ने बेटी प्रीति की शादी अपने ही जिले के गांव चलमंडल के रहने वाले श्रवण विश्वास के साथ की थी. श्रवण विश्वास झोला छाप डाक्टर था, जो चांदसी दवाखाना के नाम से उत्तर प्रदेश के जिला आगरा के थाना वाह के कस्बा जरार में अपनी क्लिनिक चलाता था.

श्रवण की क्लिनिक बढि़या चल रही थी, इसलिए उस से प्रेरणा ले कर प्रभात विश्वास का बड़ा बेटा प्रवीण भी बहनोई की तरह झोला छाप डाक्टर बनने के लिए पढ़ाई के साथसाथ किसी डाक्टर के यहां कंपाउंडरी करने लगा था. ग्रेजुएशन करतेकरते वह डाक्टरी के काफी गुण सीख गया तो बहनोई की तरह अपनी क्लिनिक खोलने के बारे में सोचने लगा.

क्लिनिक खोलने की पूरी तैयारी कर के प्रवीण आगरा के कस्बा जरार में क्लिनिक चला रहे अपने बहनोई श्रवण के पास आ गया. कुछ दिनों तक बहनोई के साथ काम करने के बाद जब उसे लगा कि अब वह खुद क्लिनिक चला सकता है तो वह अपनी क्लिनिक खोलने के लिए स्थान खोजने लगा.

प्रवीण के एक परिचित पी.के. राय आगरा के ही कस्बा रुनकता में क्लिनिक चलाते थे. उन्हीं की मदद से उस ने रुनकता में एक दुकान ले कर बंगाली दवाखाना के नाम से क्लिनिक खोल ली. रहने के लिए हाजी मुस्तकीम के मकान में 8 सौ रुपए महीने किराए पर एक कमरा ले लिया. मुस्तकीम का अपना परिवार सामने वाले मकान में रहता था. उस मकान में केवल किराएदार ही रहते थे. डा. प्रवीण का कमरा अन्य किराएदारों से एकदम अलग था.

प्रवीण विश्वास दिन भर अपनी क्लिनिक पर रहता था और रात को कमरे पर आ जाता. अकेला होने की वजह से उसे अपने सारे काम खुद ही करने पड़ते थे. वह जिस हिसाब से मेहनत कर रहा था, उस हिसाब से उस की कमाई नहीं हो रही थी. इसलिए अपने हालात से वह खुश नहीं था. लेकिन उस का व्यवहार ऐसा था कि उस से हर कोई खुश रहता था.

इस के बावजूद प्रवीण की किसी से दोस्ती नहीं हो पाई थी. इस की वजह शायद यह भी थी कि वह एक ऐसे प्रांत का रहने वाला था, जहां का खानपान, रहनसहन और बात व्यवहार सब कुछ वहां के रहने वालों से अलग था.

इस स्थिति में प्रवीण थोड़ा परेशान सा रहता था. एक दिन वह किसी सोच में डूबा था कि उस के फोन की घंटी बजी. उस का फोन डुअल सिम वाला था. एक सिम उस ने आगरा के नंबर का डाल रखा तो दूसरा सिम 24 परगना के नंबर का था. वैसे यहां 24 परगना वाले नंबर की कोई जरूरत नहीं थी, लेकिन उस ने अपना पुराना नंबर इसलिए बंद नहीं किया था कि घर जाने पर शायद इस की जरूरत पड़े.

घंटी बजी तो प्रवीण की नजर मोबाइल के स्क्रीन पर गई. फोन 24 परगना वाले सिम के नंबर पर आया था. स्क्रीन पर जो नंबर उभरा था, वह भी 24 परगना का ही लग रहा था. प्रवीण ने जल्दी से फोन रिसीव कर लिया, ‘‘हैलो, कौन…?’’

उस के हैलो कहते ही दूसरी ओर से किसी लड़की ने मधुर आवाज में कहा, ‘‘सौरी, गलती से आप का नंबर लग गया.’’

प्रवीण कुछ कहता, उस के पहले ही फोन कट गया. लड़की की आवाज ऐसी थी, जैसे किसी ने कान में शहद घोल दिया है. प्रवीण का मन एक बार फिर उस की आवाज सुनने के लिए होने लगा. आवाज पलट कर फोन कर के ही सुनी जा सकती थी. लेकिन यह ठीक नहीं था. इसलिए वह सोचने लगा कि फोन करने पर लड़की बुरा मान सकती है. लेकिन मन नहीं माना तो डरतेडरते उस ने पलट कर फोन कर ही दिया.

दूसरी ओर से फोन रिसीव कर के लड़की ने कहा, ‘‘अपनी गलती के लिए मैं ने सौरी तो कह दिया. अब कितनी बार माफी मांगूं?’’

‘‘आप गलत सोच रही हैं. मैं ने आप को फोन इसलिए नहीं किया कि आप दोबारा माफी मांगें. आप की आवाज मुझे बहुत प्यारी लगी, उसे सुनने के लिए मैं ने फोन किया है. मैं आप की आवाज सुनना चाहता हूं. इसलिए आप कुछ अपनी कहें और कुछ मेरी सुनें.’’

प्रवीण का इतना कहना था कि उस के कानों में खिलखिला कर हंसने की आवाज पड़ी. प्रवीण खुश हो गया कि लड़की ने उस की इस हरकत का बुरा नहीं माना. हंसी रोक कर उस ने कहा, ‘‘तो यह क्यों नहीं कहते कि आप मुझ से दोस्ती करना चाहते हैं.’’

‘‘यही समझ लीजिए,’’ प्रवीण ने कहा, ‘‘आप को मेरा प्रस्ताव मंजूर है?’’

‘‘क्यों नहीं, बातचीत से तो आप अच्छेखासे पढे़लिखे लगते हैं?’’

‘‘जी, मैं डाक्टर हूं.’’

‘‘कहां नौकरी करते हैं?’’ लड़की ने पूछा.

‘‘नौकरी नहीं करता, मेरी अपनी क्लिनिक है.’’

‘‘तब तो मैं आप को अपना दोस्त बनाने को तैयार हूं.’’

इस तरह दोनों में दोस्ती हो गई तो बातचीत का सिलसिला चल पड़ा. प्रवीण 24 परगना का रहने वाला था तो वह लड़की भी वहीं की रहने वाली थी. लड़की ने अपना नाम मल्लिका बताया था. लेकिन सब उसे मोनिका कह कर बुलाते थे. प्रवीण ने भी उसे अपना नाम बता दिया था.

दोनों की ही भाषा बंगाली थी, इसलिए दोनों अपनी भाषा में बात करते थे. प्रवीण ने मल्लिका को यह भी बता दिया था कि वह रहने वाला तो 24 परगना का है, लेकिन उस की क्लिनिक उत्तर प्रदेश के आगरा के एक कस्बे में है.

धीरेधीरे दोनों में लंबीलंबी बातें होने लगीं. इसी तरह 6 महीने बीत गए. प्रवीण ने मल्लिका को अपने बारे में काफी कुछ बता दिया था, लेकिन मल्लिका ने अपने बारे में कभी कुछ नहीं बताया था. वह प्रवीण के लिए रहस्य बनी रही.

प्रवीण ने जब उस पर दबाव डाला तो एक दिन उस ने कहा, ‘‘यही क्या कम है कि मैं तुम से प्यार करती हूं. बस तुम मुझे अपनी प्रेमिका के रूप में जानो.’’

मल्लिका ने जब कहा कि वह उस से प्यार करती है तो प्रवीण ने कहा, ‘‘मैं तुम से मिलना चाहता हूं.’’

‘‘यह तो बड़ी अच्छी बात है. मैं भी तुम से मिलना चाहती हूं. तुम्हारी जब इच्छा हो, आ जाओ. समझ लो मैं तुम्हारा इंतजार कर रही हूं.’’ मल्लिका ने कहा.

मल्लिका का इस तरह आमंत्रण पा कर प्रवीण फूला नहीं समाया. वह इस बात पर विचार करने लगा कि मल्लिका को अपनी जिंदगी में आने के लिए तैयार कैसे करे. अब वह सपनों में जीने लगा था. इस तरह के सपनों की दुनिया बहुत ही रंगीन और हसीन होती है. उस ने अपने प्यार को कल्पनाओं का रंग दे कर एक खूबसूरत चेहरे का अक्स बना लिया था. हर वक्त वह उसी में खोया रहता था. वह 24 परगना जा कर मल्लिका से मिलना चाहता था, लेकिन मौका नहीं मिल रहा था.

ऐसी भी एक सीता

बेवफा पत्नी और प्रेमी की हत्या

एक अधूरी प्रेम कहानी

जवानी बनी जान की दुश्मन

ऐसी भी एक सीता – भाग 4

पत्नी की बदचलनी की कहानी सुन कर रामानंद का खून खौल उठा था. उस ने वहीं से फोन पर सीतांजलि को सुधर जाने की नसीहत दी और न सुधरने पर इस का बुरा अंजाम भुगतने को भी डराया, लेकिन वह कहां पति से डरने वाली थी. पति जितना उसे गालियां देता था, डराताधमकाता था, वह उतनी ही प्रेमी बृजमोहन के करीब बढ़ती जाती थी.

रामानंद ने फरवरी 2023 में पत्नी को फोन कर के बता दिया था कि 5 अप्रैल, 2023 को दुबई से फ्लाइट से रवाना होगा और 6 अप्रैल को शाम तक घर पहुंच आएगा. उस के बाद जो निर्णय लेना होगा, वहीं औन द स्पौट लेगा.

सीतांजति ने जब से पति के वापसी की बात सुनी थी, उस की आंखों की नींद और दिल का चैन उड़ गया था. इस बारे में उस ने अपने प्रेमी बृजमोहन को बताया, ”अब कोई उपाय करो, वह विदेश से वापस लौट रहा है. तुम से बिछड़ कर मैं जिंदा नहीं रह सकती. मैं तुम्हारे बिना मर जाऊंगी. बड़े मर्द बनते हो न, मुझे यहां से उड़ा ले चलो, नहीं तो हमारे प्यार के रास्ते के कांटे को हमेशा के लिए उखाड़ फेंको.’‘

उस दिन के बाद से दोनों मिल कर रामानंद की हत्या की योजना बनाते रहे. इस योजना में बृजमोहन ने अपने बचपन के दोस्त अभिषेक चौहान को शामिल कर लिया था. वह उसी के गांव का रहने वाला था और मध्य प्रदेश में जौब करता था.

बृजमोहन और अभिषेक के बीच में गहरी दोस्ती थी और दोनों ही हमप्याला हमनिवाला थे. दोनों एक साथ बचपन की गलियों में खेले और बड़े हुए. साथसाथ पढ़े और शरारतें भी साथसाथ कीं.

इसलिए जब बृजमोहन ने अपने प्यार का वास्ता दे कर प्रेमिका के पति को रास्ते से हटाने की बात कही थी तो वह मना नहीं कर सका और उस की खतरनाक योजना में शामिल हो कर सच्ची दोस्ती निभाने का वायदा किया.

6 अप्रैल, 2023 की सुबह रामानंद फ्लाइट से लखनऊ पहुंचा और पत्नी को बता दिया कि वह लखनऊ पहुंच गया है और वहां से प्राइवेट बस से गोरखपुर पहुंच जाएगा. सीतांजलि ने यह बात बृजमोहन को बता दी कि पति फलां नंबर की बस में सवार है और लखनऊ से घर आ रहा है.

बृजमोहन अपने साथी अभिषेक चौहान के साथ लखनऊ में ही रुका था. इस की योजना थी रामानंद को लखनऊ में ही मौत के घाट उतार दे, ताकि किसी को उस पर शक न हो.

पते की बात तो यह थी कुछ दिनों की छुट्टी ले कर बृजमोहन दिल्ली से गोरखपुर घर आया था. घर आना तो सिर्फ एक बहाना था, असल बात प्रेम की राह के कांटा बने रामानंद को हटाना था.

5 अप्रैल, 2023 को घर वालों से बृजमोहन तथा अभिषेक यह कह कर घर से निकले कि वह अपने नौकरी पर वापस लौट रहे हैं, दिल्ली नौकरी पर जाने की बजाय दोनों लखनऊ रुक गए और रामानंद के आने का इंतजार करने लगे थे.

खैर, जिस प्राइवेट बस में रामानंद सवार था, उसी बस में सामने वाली सीट पर बृजमोहन और अभिषेक हुलिया बदल कर बैठ गए थे, ताकि रामानंद उसे पहचान न सके. दोनों ने बस में ही उसे मारने की कई बार कोशिश की, लेकिन वे अपने इरादों में कामयाब नहीं हो पाए और लखनऊ से गोरखपुर पहुंच गए.

इधर सीतांजलि पति की मौत की खबर सुनने के लिए उतावली हुई जा रही थी कि कब उस का प्रेमी फोन कर के उसे ये अच्छी खबर सुनाए.

दोपहर एक बजे के करीब जैसे ही बृजमोहन का फोन आया, सीतांजलि बड़ी उत्सुकता से फोन झपट कर कान से सटा कर बोली, ”क्या हुआ? फोन करने में इतनी देर क्यों लगा दी?’‘

”क्या करूं, बात ही कुछ ऐसी है.’‘ रोआंसी आवाज में बृजमोहन ने कहा.

” मुझे पहेलियां मत बुझाओ. क्या हुआ, साफसाफ बताओ टारगेट पूरा हुआ कि नहीं.’‘

”नहीं, टारगेट पूरा नहीं हुआ. बस में इतनी सवारियां थीं कि कहीं मौका ही नहीं मिला टारगेट पूरा करने के लिए.’‘ बृजमोहन सफाई देते हुए बोला.

”कोई बात नहीं. बाजी अभी भी हमारे हाथ में है, शिकार तो जरूर बनेगा वो हमारा.’‘ कह कर उस ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

सीतांजलि खुद के हाथों खुद का सुहाग मिटाने की जिद पर अड़ी थी. उस ने तय कर लिया था कि पति को मौत देनी है तो देनी है. विधवा बनना है तो बनना है. इस के लिए उस ने पहले कई तैयारियां कर रखी थीं. इधर बृजमोहन और अभिषेक बस से गोरखपुर उतर गए और टैंपो से सहजनवां जा पहुंचे, जो प्रेमिका के घर से 3-4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित था.

इधर रामानंद सहीसलामत घर पहुंच गया था. खाने में सीताजंलि ने रात में मटन पकाया था. उस ने अपने हिस्से का खाना निकाल कर बाकी पूरे खाने में नींद की 6 गोलियां बारीक पाउडर बना कर मिला दीं. और वही खाना पति, सास, ससुर और देवर को खिला दिया. खाना खाने के कुछ ही देर बाद सब के सब नींद की आगोश में समा गए थे. रामानंद भी अपने कमरे में जा कर खर्राटे भरने लगा था.

सीतांजलि ने पति को हिलाडुला कर देखा, वह बेसुध बिस्तर पर पड़ा हुआ था. उसे जब पूरा यकीन हो गया कि वह गहरी नींद में है तो उस ने प्रेमी बृजमोहन को घर आने के लिए फोन किया. प्रेमिका का फोन आते ही बृजमोहन दोस्त को साथ ले कर पैदल ही चल दिया और घर के पीछे से साड़ी के सहारे दोनों छत पर होते हुए दबे पांव कमरे में पहुंचे. उस समय रात के यही कोई 11 बज रहे थे.

फिर क्या था? सीतांजलि ने अपना दुपट्टा प्रेमी बृजमोहन की ओर बढ़ाया. दुपट्टा संभालते हुए बृजमोहन ने नफरत से रामानंद को देखा. उस का नथुना गुस्से से फूलपिचक रहा था. सीतांजलि ने दोनों हाथों से पति के दोनों पैर काबू किए तो अभिषेक ने उस के सीने पर सवार हो कर अपने मजबूत हाथों से उस के दोनों हाथ जकड़ लिए तभी बृजमोहन उस के गले में दुपट्टा डाल कर कस दिया. थोड़ी देर में उस के प्राणपखेरू उड़ नहीं गए.

तीनों मिल कर उसे मौत के घाट उतार चुके थे. अब लाश ठिकाने लगाने की बारी थी. इस बीच पत्नी सीतांजलि ने पति का मोबाइल फोन पटक कर तोड़ दिया था. फिर तीनों मिल कर लाश ऊपर छत पर ले गए और साड़ी के सहारे लाश नीचे उतार कर एकएक कर छत से नीचे उतरे. सीतांजलि घर में ही रह गई.

बृजमोहन और अभिषेक कपड़े में लाश को लपेट कर गांव के बाहर तालाब तक पहुंचे और कपड़े से लाश निकाल कर उसे पानी में फेंक कर बस पकड़ कर लखनऊ निकल गए. फिर जब सुबह हुई और रामानंद घर पर नहीं मिला और उस की खोजबीन शुरू हुई तो उस की लाश गांव के बाहर पानी में मिली.

पुलिस ने तीनों आरोपियों सीतांजलि, बृजमोहन विश्वकर्मा और अभिषेक चौहान के खिलाफ आईपीसी की धारा 302, 201, 120बी और 34 के तहत मुकदमा दर्ज कर के 2 आरोपियों सीताजंलि और बृजमोहन को जेल भेज दिया, जबकि तीसरा आरोपी अभिषेक चौहान कथा लिखने तक फरार था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

ऐसी भी एक सीता – भाग 3

इंसपेक्टर मदन मोहन मिश्र ने केस के खुलने की जानकारी एसएसपी गौरव ग्रोवर और एसपी (नार्थ) मनोज अवस्थी को बताई तो दोनों अधिकारियों ने फरार दोनों आरोपियों को पकड़ने के लिए पुलिस की 2 टीमें गठित कीं. एक टीम को लखनऊ तो दूसरी टीम को मध्य प्रदेश रवाना कर दिया.

लखनऊ के गोमती नगर से पुलिस ने बृजमोहन विश्वकर्मा को गिरफ्तार कर अदालत में पेश कर ट्रांजिट रिमांड पर ले कर 11 अप्रैल को गोरखपुर ले आई. उसी दिन शाम 4 बजे पुलिस लाइन के मनोरंजन कक्ष में एसएसपी गौरव ग्रोवर ने एक पत्रकार वार्ता आयोजित कर पत्रकारों को इस केस के खुलासे की जानकारी दी.

पुलिस पूछताछ में रामानंद विश्वकर्मा की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

30 वर्षीय रामानंद विश्वकर्मा मूलरूप से उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के थाना गीडा के मल्हीपुर गांव का रहने वाला था. पिता रामप्रीत विश्वकर्मा के 3 बच्चों में 2 बेटे और एक बेटी थी. रामानंद दूसरे नंबर का था. बेटी रंजना सब से बड़ी थी और मंझले रामानंद से छोटा एक बेटा और था. यही रामप्रीत का खुशहाल परिवार था.

रामप्रीत किसान थे. खेतीबाड़ी कर के अपने परिवार का भरणपोषण करते थे. खैर, बेटी सयानी हो चुकी थी. उन्होंने बेटी के लिए योग्य वर तलाशना शुरू कर दिया था. उस की शादी खजनी थाना क्षेत्र के गांव रामपुर पांडेय में कर दी थी.

उस के बाद साल 2020 के सितंबर में गोरखपुर के चिलुआताल की रहने वाली सीतांजलि के साथ मंझले बेटे रामानंद की शादी कर एक और बड़ी जिम्मेदारी से मुक्त हो गए. अब बचा था एक छोटा बेटा तो वह अभी पढ़ रहा था, इसलिए उस की तरफ उन का कोई खास ध्यान नहीं था.

सीतांजलि बहुत सुंदर थी, शारीरिक रूप से भी. उसे पत्नी के रूप में पा कर रामानंद बहुत खुश था, क्योंकि उस ने जैसे जीवनसाथी का सपना देखा था, सीतांजलि उस के सपनों पर खरी उतरी थी. ऐसा नहीं था कि सपने सिर्फ रामानंद ने ही देखे, बल्कि सीतांजलि ने अपने मन में जिस राजकुमार की छवि उकेरी थी, वह रामानंद ही था.

यानी पतिपत्नी ने एकदूसरे को ले कर जो सपने देखे थे, उन के वह सपने पूरे हो चुके थे. दोनों एकदूसरे को जीवनसाथी के रूप में पा कर फूले नहीं समाए थे. वह पत्नी को सीता कह कर पुकारता था.

जिन दिनों रामानंद की शादी हुई थी, उन दिनों रामानंद कोई नौकरीचाकरी नहीं करता था. ऐसा नहीं था कि निकम्मा अथवा आलसी था बल्कि उस का सपना विदेश में रह कर नौकरी करना था और परिवार को अपने साथ रखना था. इस के लिए उस ने अपना पासपोर्ट बनवा रखा था और वीजा के लिए कानूनी प्रक्रिया शुरू कर दी थी.

फरवरी 2021 में रामानंद विश्वकर्मा दुबई नौकरी करने चला गया. वह नईनवेली पत्नी को छोड़ कर विदेश चला तो गया, लेकिन उस का मन पत्नी सीताजंलि के पास ही रह गया. उस की याद में वह दिनरात तड़पता था. उधर सीतांजलि जब भी बिस्तर पर लेटती थी, पति का खालीपन उसे काटने को दौड़ता था.

अभी तो उस ने पति को भरपूर निगाहों से देखा भी नहीं था. उस की मेहंदी का रंग हथेली से उतरा भी नहीं था कि पति उसे विरह की अग्नि में जलता हुआ छोड़ चला गया था.

रामानंद की जब शादी हुई थी, तब उस की शादी में उस के बहनोई का छोटा भाई बृजमोहन विश्वकर्मा भी आया था. जयमाल के दौरान सीतांजलि सजसंवर कर दुलहन के रूप में जब स्टेज पर आई थी, उस की मोहिनी सूरत देख कर बृजमोहन मुग्ध हो गया था. बहुत देरतक वह उसे एकटक निहारता ही रहा.

वह जन्नत की किसी हूर से कम नहीं लग रही थी, लेकिन वह तो किसी और की अमानत थी. वह हाथ मलता रह गया था. फिर यह सोच कर निश्ंिचत हो गया था कि वह आएगी तो साले के घर ही न, फिर आगे क्या करना होगा, सोचा जाएगा.

उस दिन से बृजमोहन सलहज सीतांजलि का दीवाना हो गया था. फिलहाल उस ने अपनी चाहत को अपने सीने में दबाए रखा और वक्त का इंतजार करने लगा था.

चूंकि बृजमोहन का भाई के साले रामानंद की पत्नी के साथ मजाक का रिश्ता था ही और इसी के चक्कर में उस का साले के घर आनाजाना कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था. भाई की ससुराल जब भी वह आता था तो सीतांजलि के पास ज्यादा वक्त बिताता था. यह बात रामानंद को अच्छी नहीं लगती थी, लेकिन संकोची स्वभाव का रामानंद मना भी नहीं कर पा रहा था. अलबत्ता पत्नी को ही डांटता था. पति के इस व्यवहार से सीतांजलि दुखी रहती थी. जबकि उस के दिल में न खोट थी और न ही मन में मैल.

बृजमोहन जब भी साले रामानंद के घर आता था, तब पतिपत्नी के बीच तीखी नोंकझोंक हो जाती थी. उसे शक था कि पत्नी के साथ बृजमोहन का टांका भिड़ा हुआ है, जबकि उस की ओर से ऐसी कोई बात थी ही नहीं.

कीचड़ में खिले कमल के समान वह पवित्र थी. उस के मन मंदिर में पति की ही मूरत बसी थी, लेकिन जब पति ने उस पर ज्यादा ही शक करना शुरू किया तो उसे पति से जैसे चिढ़ हो गई. वह उस के मन से उतर गया और उस का आकर्षण बृजमोहन की ओर बढ़ गया था.

किस ने और किस तरह की रामानंद की हत्या

इसी बीच रामानंद दुबई कमाने चला गया था. पति के घर से जाते ही बृजमोहन का रास्ता खुल गया था. कहने को तो वह दिल्ली की एक प्राइवेट कंपनी में इंजीनियर की नौकरी करता था, लेकिन उस का अधिकांश समय सीतांजलि की बांहों में बीतता था.

जैसे इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपता, वैसे ही सीतांजलि और बृजमोहन का रिश्ता भी नहीं छिप सका. भले ही पति बाहर चला गया था तो क्या हुआ? घर पर उस के सासससुर रहते थे. उन की आंखों पर गांधारी वाली पट्टी बंधी थी.

उन्हें सब दिखता था और वे सब समझते थे. उन्होंने बहू को समझाया भी था कि पतन के जिस रास्ते पर वह चल पड़ी है, वहां बदनामी के सिवाय कुछ नहीं मिलता है. घरपरिवार की इज्जत की खातिर घिनौना खेल खेलना बंद कर दे. लेकिन ससुर की बात सुन कर बहू के कान पर जूं तक रेंगी थी.

बृजमोहन और सीतांजलि की मोहब्बत शबाब पर थी. प्यार में दोनों इस कदर अंधे हो चुके थे कि उन्हें सिवाय मोहब्बत के कुछ भी नहीं दिखता था. दोनों ने साथ जीनेमरने की कसमें भी खा ली थीं और यह भी फैसला कर लिया था कि उन की मोहब्बत के बीच में जो भी रोड़ा आएगा, उसे हमेशाहमेशा के लिए रास्ते से हटा दिया जाएगा, चाहे पति ही क्यों न हो.

इधर बहू सीतांजलि की घिनौनी करतूतों की वजह से गांवसमाज में रामप्रीत की थूथू हो रही थी. उन के समझाने का बहू पर कोई असर नहीं हो रहा था. अब पानी सिर के ऊपर बहने लगा था तो पूरी बात उन्होंने बेटे रामानंद को बता दी.