पत्नी और बच्चों के फरजी मर्डर की असली कहानी

महीनों बीत जाने के बाद भी जब पुलिस ने मुकदमा दर्ज नहीं किया तो सुखवती ने मजबूर हो कर न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. मामले की नजाकत को समझते हुए अदालत ने एसएसपी राजेश यश को फटकार लगाई. एसएसपी ने एसपी (सिटी) ज्ञानेंद्र कुमार सिंह को लाइन पर लिया. एसपी ज्ञानेंद्र सिंह ने रक्सा के एसएचओ को सख्त आदेश दिया कि वह सुखवती की बेटी छाया और 2 बच्चों की हत्या का मुकदमा दर्ज कर जरूरी काररवाई करें.

अदालत के आदेश पर 13 दिसंबर, 2023 को रक्सा पुलिस ने पति चंदन, देवर मनोज व विनोद, सास कलावती और एक अन्य व्यक्ति के खिलाफ छाया और उस के 2 बच्चों की हत्या और शव गायब करने का मुकदमा दर्ज कर आगे की काररवाई शुरू कर दी.

दरअसल, 50 वर्षीया सुखवती कुशवाहा बेटी छाया और उस के 2 बेटों (नातियों) निखिल (7 वर्ष) और जयदेव (4 वर्ष) के ससुराल से रहस्यमय तरीके से गायब होने को ले कर बुरी तरह परेशान थी.

19 जनवरी, 2023 के बाद से तीनों का कहीं पता नहीं चल रहा था. वह अपनी तरफ से बेटी और नातियों का पता लगा कर थक चुकी थी. जब तीनों का कहीं पता नहीं चला तो सुखवती रक्सा थाने में पहुंची और बेटी के पति चंदन, देवर मनोज और विनोद, सास कलावती और एक अन्य व्यक्ति पर हत्या की आशंका जताते हुए उन के खिलाफ रिपोर्ट लिखाने की लिखित तहरीर एसएचओ प्रदीप सिंह को दी. यह मामला उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के डेली गांव का था.

SSP- RAJESH YASH

           एसएसपी राजेश यश

मामला गंभीर था, पुलिस ने सुखवती की तहरीर ले कर अपने पास रख ली और जरूरी काररवाई करने की आश्वासन दे कर उसे घर भेज दिया था. लेकिन पता नहीं क्यों पुलिस को यह मामला हत्या का नहीं, बल्कि कुछ और ही लग रहा था. इधर सुखवती बेटी के ससुरालियों पर मुकदमा दर्ज कराने के लिए थाने के चक्कर काटती रही, लेकिन पुलिस मुकदमा दर्ज करने के बजाए उसे टालती रही.

सुखवती का दामाद चंदन मध्य प्रदेश के दतिया का रहने वाला था. जैसे ही उसेे पता चला कि उस की सास ने उस के और उस के दोनों भाइयों तथा मां के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया है, वैसे ही चारों पुलिस से बचने के लिए घर छोड़ कर फरार हो गए.

इधर झांसी पुलिस नामजद आरोपियों को गिरफ्तार करने जब दतिया पुलिस के साथ उन के घर पहुंची तो सभी आरोपी घर छोड़ कर फरार हो चुके थे.

पुलिस का शक पुख्ता हो गया कि छाया और उस के दोनों बेटों की हत्या कर शव गायब करने के पीछे जरूर इन्हीं का हाथ होगा तभी तो वे घर छोड़ कर फरार हैं. आरोपियों के फरार होने से पुलिस खाली हाथ झांसी लौट आई और पूरी काररवाई की रिपोर्ट सीओ स्नेहा तिवारी को दे दी.

C.O. SNEHA TIWARI

चंदन इस बात को ले कर अच्छाखासा परेशान था कि जब उस ने पत्नी और बेटों को मारा ही नहीं तो सास ने उसे और उस के घर वालों को झूठे आरोप में क्यों फंसाया? जबकि सच यह था कि वह पत्नी और बच्चों को उस के मायके डेली गांव के बाहर छोड़ कर अपने घर वापस लौट आया था. तो फिर अचानक वे तीनों वहां से कहां गायब हो गए? आखिर उन्हें जमीन निगल गई या आसमान खा गया? वह गई तो गई कहां, यह उस की समझ में नहीं आ रहा था.

कहां गायब हो गई छाया बच्चों के साथ

चंदन और उस के घर वालों को पूरा यकीन था कि उन पर लगाए गए आरोप सरासर गलत और बेबुनियाद हैं. वह सोच रहे थे कि अगर तीनों की हत्या हुई होती तो उन के शव कहीं न कहीं तो बरामद हुए होते. कहीं ऐसा तो नहीं कि वो जिंदा हों और उन्हें नाहक परेशान करने के लिए सास सुखवती ने यह मनगढ़ंत कहानी बना कर झूठा मुकदमा दर्ज कराया हो.

दरअसल, बात 19 जनवरी, 2023 की है. चंदन पत्नी छाया और दोनों बेटों निखिल और जयदेव को अपनी ससुराल के गांव के बाहर छोड़ कर वापस अपने घर दतिया लौट आया था. पत्नी और बच्चों को मायके पहुंचाने की चंदन की मजबूरी बन गई थी.

मजबूरी यह थी कि सालों से दोनों के बीच आए दिन झगड़े होते रहते थे. उन के बीच विवाद की खाई दिन पर दिन गहरी होती जा रही थी. फिर नौबत हाथापाई पर बन आई थी. रोजरोज की कलह से चंदन बुरी तरह ऊब चुका था.

घर का माहौल ऐसा हो गया था कि सामने थाली में परोसा हुआ निवाला भी सुकून से निगला नहीं जा रहा था. इसलिए उस ने पत्नी को उस के मायके छोडऩे का फैसला ले लिया था और यही सोच कर उसे मायके उसे बच्चों सहित पहुंचा दिया था, लेकिन ताज्जुब की बात यह थी कि छाया दोनों बच्चों के साथ रहस्यमय तरीके से गायब हो गई थी.

इधर छाया की मां सुखवती की अपनी बेटी से बात नहीं हो पा रही थी. धीरेधीरे महीनों बीत गए. न तो छाया का फोन मां (सुखवती) को आता था और न ही उस के फोन करने पर छाया को काल ही लगती थी. इसे ले कर सुखवती बुरी तरह परेशान रहती थी. इस से पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ था. सुखवती यही सोच कर हमेशा परेशान रहती थी कि बात आखिर क्या है.

चंदन भी अपनी सफाई में सास सुखवती को बता चुका था कि उस ने 19 जनवरी, 2023 को छाया और दोनों बच्चों को डेली गांव के बाहर छोड़ दिया था. सुखवती को दामाद की बात पर तनिक भी यकीन नहीं था कि जो वह कह रहा है वह सच हो सकता है.

सुखवती ने चंदन पर आरोप लगाते हुए कहा, ”सचसच बता दो दामादजी, बेटी और नाती कहां है? नहीं तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा. अगर नहीं बताया तो बेटी और नातियों के कत्ल के जुर्म में एकएक को जेल की चक्की न पिसवाया तो मेरा भी नाम सुखवती नहीं होगा. समझे.’’

चंदन चुप बैठने वालों में से नहीं था. सास को पलटवार जबाव दिया, ”चाहे जिस की कसम खिला दो सासूमां, मेरा जवाब एक ही होगा. मैं ने पत्नी और बच्चों को नहीं मारा है. जानबूझ कर भला कोई अपने ही अंगों को नुकसान पहुंचाता है? तो फिर आप ने कैसे सोच लिया कि मैं ने उन्हें मार डाला है. मुझे तो लगता है कि कहीं आप ने ही तो नहीं उन्हें मार डाला और इलजाम हमारे सिर थोप रही हैं. लेकिन मैं भी पीछे हटने वालों में से नहीं हूं, इस बात का पता लगा कर रहूंगा कि वो हैं तो हैं कहां? समझीं. मैं पूरे यकीन के साथ कह सकता हूं पत्नी और बच्चे जिंदा हैं.’’

दामाद के खिलाफ क्यों लिखाई रिपोर्ट

सास और दामाद के बीच में रस्साकशी जारी थी. सास सुखवती को दामाद की किसी भी बात पर रत्ती भर भरोसा नहीं हो पा रहा था कि वह जो कह रहा है, सच कह रहा है. यह सोच कर वह और भी ज्यादा परेशान और दुखी थी. बेटी और बच्चों को मारा नहीं तो वो कहां हैं? जबकि एक साल होने जा रहा है. अगर वह जिंदा होती तो एक भी बार मां की सुध नहीं लेती?

खैर, सुखवती की समझ में जो आया, जो उचित समझा, उस ने वही किया था. अदालत ने रक्सा पुलिस को कठोर हिदायत दी थी कि जांच की प्रतिदिन की रिपोर्ट कोर्ट को मिलनी चाहिए और जल्द से जल्द इस मामले से परदा उठना चाहिए. मामला कोर्ट के संज्ञान में आने के बाद से इस केस को ले कर मीडिया ने तूफान खड़ा कर दिया था. पुलिस की रोज भद पिट रही थी. लेकिन काररवाई जहां से चली थी, वहीं आ कर ठप्प पड़ी थी.

SP. CIY- GYANENDRA KUMAR SINGH

  एसपी ज्ञानेंद्र कुमार सिंह

पत्नी और बच्चों को ले कर चंदन परेशान तो था ही, साथ ही उस ने अपने जानपहचान और नातेरिश्तेदारों से भी कह रखा था कि छाया और बच्चों के बारे में कोई जानकारी मिले तो उसे जरूर इत्तला कर दें. जहां चाह होती है, वहीं राह मिल भी जाती है.

बात 14 मार्च, 2024 की है. चंदन को उस के मोबाइल पर एक वीडियो क्लिप मिली, जिस में स्कूल के छोटेछोटे बच्चे कार्यक्रम करते नजर आ रहे थे. उन्हीं बच्चों के बीच कार्यक्रम करते हुए 2 बच्चे ऐसे भी दिखे, जिन्हें देख कर आश्चर्य के मारे चंदन की आंखें फटी की फटी रह गईं. वे दोनों बच्चे कोई और नहीं, बल्कि उस के दोनों बेटे निखिल और जयदेव थे.

यह देख कर चंदन की खुशियों का ठिकाना नहीं था, क्योंकि जिन की हत्या कर शव छिपाने का झूठा आरोप उस पर और उस के घर वालों पर लगाया गया था, वो जिंदा हैं. इस का मतलब साफ था कि छाया और उस के बच्चे तीनों जिंदा हैं.

उस वीडियो में स्कूल का एक बैनर लगा था, जिस पर स्कूल का नाम और पता लिखा था. वह मध्य प्रदेश का सीहोर जिला था. स्कूल का पता मिल जाने पर चंदन सीहोर पहुंच गया और उस ने इस बात का पता लगा लिया कि छाया जिंदा है. वह वहां अपने प्रेमी के साथ रह रही है. सीहोर में ही उस ने चायनाश्ते की दुकान खोल रखी है.

झांसी से मध्य प्रदेश कैसे पहुंची छाया और उस के बच्चे

पूरी जानकारी इकट्ठी करने के बाद चंदन रक्सा थाने के इंसपेक्टर प्रदीप सिंह के पास पहुंचा और अपनी पत्नी छाया और दोनों बच्चों के जिंदा होने की जानकारी दी. यह जानकारी मिलने के बाद वह भी चौंक गए.

उन्होंने इस सूचना से सीओ स्नेहा तिवारी को अवगत करा. यह बात 15 मार्च, 2024 की थी. एसपी ज्ञानेंद्र कुमार सिंह के आदेश पर सीओ स्नेहा तिवारी ने आननफानन में एक मीटिंग बुलाई और छाया व दोनों बच्चों को सहीसलामत बरामद कर झांसी तक लाने की जिम्मेदारी एसएचओ प्रदीप सिंह को सौंप दी. एसएचओ ने उसी दिन दोपहर को रक्सा थाने से 2 एसआई और एक लेडी कांस्टेबल शीला को सीहोर के लिए रवाना कर दिया.

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उसी दिन रात करीब 10 बजे झांसी पुलिस सीहोर (मध्य प्रदेश) पहुंच गई और सीहोर पुलिस की मदद से छाया और उस के दोनों बच्चों को उस के घर से सहीसलामत बरामद कर लिया. वह अपने प्रेमी सोबरन के साथ रह रही थी. तभी पता चला कि छाया के पास प्रेमी से 3 माह का एक बेटा भी है.

इस सफलता पर पुलिस फूली नहीं समा रही थी. पिछले कई महीने से जिस छाया और उस के बच्चों की हत्या कर शव गायब करने की चर्चा सुर्खियों में बनी हुई थी, उस का खुलासा हो गया था. मां और बच्चे तीनों जिंदा पुलिस के सामने खड़े थे.

सीहोर गई झांसी पुलिस ने सीओ स्नेहा तिवारी को पूरी बात बता दी और सीहोर से पुलिस छाया, उस के बच्चों और प्रेमी सोबरन साहू को हिरासत में ले कर झांसी रवाना हो गई.

16 मार्च की सुबह साढ़े 10 बजे पुलिस सभी को ले कर पुलिस लाइंस पहुंची. वहां सीओ स्नेहा तिवारी ने छाया और उस के बेटों से पूछताछ की. पूछताछ में छाया ने पुलिस को बताया कि वह अपनी मरजी से अपने प्रेमी के साथ भागी थी और प्रेमी के साथ ही जीवन बिताना चाहती है. ससुराल पक्ष का इस में कोई दोष नहीं है.

पूछताछ करने के बाद शाम 3 बजे सीओ स्नेहा तिवारी ने पुलिस लाइंस में एक प्रैस कौन्फ्रैंस आयोजित की और पत्रकारों के साथसाथ उन्होंने छाया की मां सुखवती को भी बुलाया था ताकि वह भी सच से रूबरू हो जाए. सुखवती और पत्रकारों के सामने जब तीनों को पेश किया गया तो छाया और उस के बच्चों को देख कर सभी हैरान रह गए.

खैर, करीब डेढ़ साल से छाया और उस के बच्चे एक बड़ा प्रश्न बन कर सभी को परेशान किए जा रहे थे, उस का खुलासा हो गया था और सब से ज्यादा सुकून चंदन और उस के घर वालों को मिला था. जो कई माह से बचते बचाते इधरउधर छिपते फिर रहे थे. तीनों के सहीसलामत जिंदा बरामद होने के बाद उन्होंने राहत की सांस ली और अपने घर वापस लौटे.

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              सोबरन साहू

इधर पुलिस ने प्रेमी सहित चारों को अदालत में पेश किया. चीखचीख कर छाया ने अदालत के सामने कहा कि वह अपनी ससुराल नहीं जाना चाहती, बच्चों को साथ ले कर प्रेमी सोबरन के साथ जीवन बिताना चाहती है. वह अपनी मरजी से प्रेमी के साथ गई थी. इस में ससुराल वालों का कोई दोष नहीं है.

पूरी बातें सुनने के बाद अदालत ने छाया और उस के बच्चों को नारी निकेतन भेज दिया और सोबरन को जेल. सुखवती को पता नहीं था कि उस की बेटी और नाती जिंदा हैं. इसीलिए उस ने बेटी के ससुराल वालों पर गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज करवा दिया था. सीओ स्नेहा तिवारी ने कहा कि जब मामले का पटाक्षेप हो गया है तो जल्द ही इस मुकदमे में फाइनल रिपोर्ट लगा कर मुकदमा बंद कर दिया जाएगा.

छाया के बयान के बाद इस मामले की कहानी इस तरह सामने आई—

28 वर्षीय छाया कुशवाहा मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला झांसी के रक्सा थाने के डेली गांव की रहने वाली थी. माखन कुशवाहा के 3 बच्चों में छाया उस की सब से बड़ी बेटी थी. छाया से छोटे 2 और बेटे थे. कुल मिला क र 5 सदस्यों वाला परिवार था. माखन सब्जी विक्रेता था.

यह तो सच है लड़कियों को सयानी होने में समय नहीं लगता है. बचपन की गलियों को छोड़ पंख लगाए कब जवानी की दहलीज पर खड़ी हो जाती हैं, पता ही नहीं चलता. कुछ ऐसा ही माखन कुशवाहा के साथ भी हुआ. छाया कब जवान हो गई, घर वालों को पता ही नहीं चला. जब पता चला तो मांबाप को उस की शादी की चिंता सताने लगी.

चिंता सताती भी क्यों नहीं, वह तो कीचड़ में खिले कमल जैसी खूबसूरत थी. तितली जैसी स्वच्छंद, पंख पसारे आसमान में उड़ती फिरती थी. सामान्य कदकाठी की गोरी रंगत वाली छाया रंगीनमिजाज की थी. इसीलिए तो आशिकों की कतारें लगी थीं, लेकिन उस ने किसी आशिक भौंरे को पास फटकने का मौका नहीं दिया.

पति और ससुराल में मस्त थी छाया

माखन कुशवाहा का परिवार मध्यमवर्गीय था. वह नहीं चाहते थे कि परिवार के मानसम्मान पर कोई बट्टा लगे. वह बेटी के जल्द से जल्द हाथ पीले कर देना चाहते थे. थोड़े से प्रयास के बाद छाया की शादी मध्य प्रदेश के दतिया के रहने वाले चंदन कुशवाहा के साथ कर दी गई. यह बात साल 2016 की है.

विदा हो कर छाया ससुराल पहुंची. ससुराल का प्यारदुलार पा कर वह फूली नहीं समा रही थी. कुंवारे मन में जिस सपनों के राजकुमार की कल्पना की थी, वैसा ही उस का पति मिला था. प्यार से हराभरा ससुराल पा कर वह खुद को धन्य मानती थी.

चंदन प्राइवेट जौब करता था. महीने की सैलरी के आधे पैसे घर खर्च के लिए निकाल कर बाकी के पैसे पत्नी के हाथों पर ला कर रख देता था. उस की हर ख्वाहिश उन्हीं पैसों से पूरी करता था. छाया ने कभी पति की किसी भी बात को ले कर किसी से भी शिकायत नहीं की थी. हंसमुख और मिलनसार स्वभाव का चंदन पत्नी को हर तरह से खुश रखता था.

शादी के 6 महीने बाद छाया ससुराल से विदा हो कर मायके आई. एक बार पगफेरे की रस्म पूरी हो जाने के बाद वह ससुराल और मायके दोनों जगह मिला कर रहती थी. अब तक वह एक बच्चे की मां भी बन चुकी थी. इसी बीच उस की जिंदगी के रंगीन पन्नों पर सोबरन साहू नामक युवक की एक नई प्रेम कहानी जुड़ गई थी. प्रेम कहानी ने छाया के जीवन को अस्तव्यस्त कर दिया था.

दरअसल, हुआ यूं था कि मध्य प्रदेश के करैरा का रहने वाला सोबरन साहू झांसी नौकरी की तलाश में आया था. उस ने छाया के घर में किराए का एक कमरा लिया था और वहीं रह कर नौकरी की तलाश कर रहा था. उसे नौकरी मिली नहीं तो उस ने ठेले पर सब्जी बेचने का काम शुरू किया. सोबरन एक मेहनती युवक था. उसे ठेले पर सब्जी बेचने में कोई गुरेज नहीं था. बल्कि इस से उसे अच्छी आमदनी हो जाती थी.

सोबरन समय का सताया हुआ इंसान था. पूरी दुनिया में साल 2019 में कोरोना महामारी फैली थी, जिस ने असंख्य लोगों को असमय काल का भाजन बनाया था. सोबरन की पत्नी रूबी भी कोरोना में जान गंवा चुकी थी. तब उस के पास छोटा बच्चा था. पत्नी की असमय मौत हो जाने से वह पूरी तरह टूट गया था.

मांबाप ने बच्चे को पालपोस कर बड़ा किया. बूढ़े मांबाप ने उसे दूसरी शादी करने की सलाह दी लेकिन सोबरन ने शादी करने से मना कर दिया. साल 2020-21 में कोरोना महामारी का दौर थमा और पटरी पर जिंदगी रेंगने लगी तो वह करैरा से झांसी आ गया था और वहीं किराए के कमरे में रह रहा था.

सुंदर और गोरी छाया पर जब से सोबरन की नजरें पड़ी थी, उस के दिल में एक अजीब सी सिहरन पैदा हुई थी. अनायास सोबरन छाया की ओर खिंचा चला जा रहा था. उसे यह नहीं समझ आ रहा था कि ये उस के साथ क्या हो रहा है. वह क्यों छाया की ओर खिंचा चला जा रहा.

जबकि वह यह भी जानता था कि छाया शादीशुदा है. ऐसा सोचना भी गलत होता है, लेकिन उसे इस से कोई लेनादेना नहीं था. उसे तो बस छाया अच्छी लगती थी और वह उस के दिल के किसी कोने में घर कर गई, बस वह यही जानता था.

पुरुषों की नजरों को पढऩे की कला नारी में होती है. छाया भी सोबरन की आशिकी भरी निगाहों को भांप गई थी. फिर क्या था, छाया के मन में भी सोबरन के लिए प्यार ने अपनी जगह बना ली थी. वह भी उसे चाहने लगी थी. धीरेधीरे दोनों एकदूसरे के करीब आते गए और अपने दिल की बात एकदूसरे को बता कर प्यार का इजहार कर दिया.

छाया ने पति से क्यों बनाई दूरी

दरअसल, मौका देख कर सोबरन ने अपना अतीत छाया के सामने परोस दिया था कि उस ने अपने बच्चे की परवरिश की खातिर अपनी नींद को खिलौना बना कर कांख में दबा लिया था. बड़े ही कष्टों और तकलीफों से उस ने बच्चे को पाला था.

इस की पीड़ा छाया के दिल में घर कर गई थी. उस के बाद से उस का झुकाव सोबरन की ओर बढ़ता चला गया था और वह उसे दिल दे बैठी थी.

सोबरन की महबूबा बनने के बाद छाया का मन ससुराल में कम मायके में ज्यादा लगने लगा था. इसी वजह से छाया मायके में ज्यादा रहती थी. अचानक से मायके के प्रति प्रेम उमडऩे से चंदन कुछ हैरान और परेशान सा रहने लगा था. उस की समझ में यह बात आ नहीं रही थी कि आखिर पत्नी का मायके से इतना लगाव कैसे हो गया. इस से पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ था.

पत्नी की हरकत उसे बड़ी अजीब सी लग रही थी, लेकिन वह समझ नहीं पा रहा था कि माजरा क्या है? यह बात वह किसी से पूछ भी नहीं सकता था, लेकिन शक चंदन के मन में कुंडली मार ली. इस बात का जल्द से जल्द पता लगाने का उस ने पक्का फैसला भी कर लिया था. ये बात साल 2021 की थी.

उस दिन के बाद से चंदन पत्नी पर कड़ी नजर रखने लगा था. एक दिन की बात है. समय रात का हो रहा था. घर का सारा कामकाज निबटा कर छाया अपने बिस्तर पर सोने पहुंची. देखा पति चंदन पहले ही बिस्तर पर सोया पड़ा था. छाया उसे हिलाडुला कर यह जानता चाहती थी कि पति सचमुच गहरी नींद में है या कच्ची नींद में है. छाया ने सोचा कि वह गहरी नींद में जा चुका था. क्यों उस के हिलाने डुलाने से उस पर कोई असर नहीं हुआ था.

छाया जब पूरी तरह से निश्चिंत हो गई थी कि पति गहरी नींद में सो रहा है तो वह दबेपांव बैड से उतरी और अलमारी की ओर बढ़ी, जहां उस ने अपना काले रंग का बड़ा बैग रखा था. बैग की चेन खोल कर उस में से एक चमचमाता मोबाइल फोन निकाला और फिर चेन बंद कर के झट से बैड पर आ कर पति के बगल में लेट गई.

मोबाइल फोन का स्विच औन कर प्रेमी सोबरन से धीमी आवाज में प्यारभरी बातें करने लगी. बीचबीच में पलट कर वह देख लेती थी कि पति जागा तो नहीं है और कहीं बातें तो नहीं सुन रहा है, वरना कयामत आ जाएगी.

जिस मोबाइल से छाया बात कर रही थी उसे सोबरन ने उसे बतौर गिफ्ट दिया था बातचीत करने के लिए, ताकि उन का प्यार राज बना रहे और आराम से बातें भी होती रहें. लेकिन दोनों के प्यार का यह खेल ज्यादा दिनों तक परदे में नहीं रह सका था.

दरअसल, चंदन सोने का नाटक कर रहा था. वह पत्नी की बातें सुन रहा था कि इतनी रात गए वह किस से बातें कर रही है. उस की बातें सुन कर उस का शक यकीन में बदल गया कि पत्नी का किसी गैरमर्द के साथ चक्कर चल रहा है.

उस समय उस ने उस से कुछ नहीं कहा ताकि पत्नी को शक न हो जाए. बहरहाल, चंदन की आंखों से नींद कोसों दूर जा चुकी थी. वह रात भर करवटें बदलता रहा. पत्नी के बारे में सोचतेसोचते कब उस की आंखें लग गईं उसे पता ही नहीं चला. आंखें तब खुलीं, जब सूरज सिर पर चढ़ आया था

पत्नी को देखते ही रात वाली बातें उसे याद आ गईं और दिल पर लगा जख्म हरा हो गया. लेकिन सच्चाई पत्नी के सामने नहीं आने दी. इस के बाद चंदन ने पत्नी की सच्चाई सामने लाने की ठान ली और अपनी जांचपड़ताल शुरू कर दी.

उसे जल्द ही पता चल गया कि पत्नी का मायके में किराए पर रह रहे किराएदार सोबरन के साथ चक्कर चल रहा है. जब चंदन ने पत्नी की पूरी सच्चाई इकट्ठी कर ली तो एक दिन रात के समय एकांत में उस के सामने परोसते हुए पूछा, ”ये क्या है छाया, तुम्हें घरपरिवार के मानसम्मान का कोई खयाल भी है?’’

”मतलब? मैं समझी नहीं आप क्या कह रहे हैं?’’ छाया चौंकते हुए बोली.

”ठीक है, मैं तुम्हें मतलब समझा देता हंू.’’ पत्नी की आंखों में आंखें डाले चंदन ने आगे कहा, ”देखो, अपनी हरकतों से बाज आ जाओ. जो तुम कर रही हो, अच्छा नहीं कर रही हो.’’

”वही तो जानना चाहती हूं कि मैं ने ऐसा क्या कर दिया, जिस से इस घर पर पहाड़ टूट गया?’’ छाया झल्ला कर बोली. उसे शक हो गया था कि कहीं उस के प्यार वाली बात पति को पता तो नहीं चल गई.

”इधरउधर की बात से तो अच्छा है कि मैं सीधे मुद्दे पर आ जाऊं. यह बताओ, सोबरन से तुम्हारा क्या संबंध हैï? तुम कब से जानती हो उसे?’’

पत्नी के प्रेमी का ऐसे खुला राज

पति के मुंह से सोबरन का नाम सुनते ही छाया के चेहरे पर हवाइयां उडऩे लगीं. ऐसा लगा जैसे उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई हो. आश्चर्य के मारे उस की आंखें फटी की फटी रह गई थीं. छाया यह सोचसोच कर परेशान हो रही थी कि चंदन को कैसे पता उस के रिश्तों के बारे में? आखिर उसे किस ने बताया?

उस रात चंदन ने पत्नी को खूब समझाया कि उस का अपना घरपरिवार है. समाज में इज्जत है. जो हुआ उसे बुरा सपना समझ कर भूल जाए और अपने परिवार के लिए जियो. तुम्हारी गलतियों को माफ करने के लिए मैं तैयार हूं. नहीं तो मेरे घर में ऐसी कुल्टा औरत के लिए कोई जगह नहीं है.

पति के समझाने का उस पर कोई असर नहीं हुआ था. प्रेमी सोबरन का साथ छोडऩे के लिए वह हरगिज तैयार नहीं थी और पति से साफ शब्दों में कह भी दिया कि सोबरन के बिना मैं जी नहीं सकती.

पत्नी का निर्लज्जता भरा जवाब सुन कर चंदन ठगा सा रह गया. गुस्से में उस का शरीर कांपने लगा. उस की आंखें गुस्से से सुर्ख हो गईं. पति का ऐसा रौद्र रूप देख कर एक पल के लिए छाया भी दहशत में आ गई थी, लेकिन बेहया की तरह उस के सामने डटी रही. इस के बाद दोनों के बीच एक गहरी खाई खुद गई थी. विवादों ने मधुर रिश्तों के बीच अपना डेरा जमा लिया था. सोबरन को ले कर आए दिन घर में कलह होने लगी थी.

पानी जब सिर से ऊपर बहने लगा तो चंदन ने पत्नी की पूरी सच्चाई अपने मांबाप और अपने भाइयों को बता दी. बहू के अनैतिक पतन की कहानी सुन कर घर वालों के बदन में आ लग गई. कोई भी इज्जतदार परिवार बहू की इस हरकत को सहन नहीं कर सकता था. चंदन के घर वाले भी इसे सहन करने के लिए तैयार नहीं थे. नतीजा रोजरोज घर में कलह बढ़ती गई.

पत्नी के साथ सख्ती करने के बजाए उसे सहीसलामत उस के घर (मायके) पहुंचा देने में ही चंदन ने भलाई समझी. वह 19 जनवरी, 2023 को छाया और दोनों बच्चों को मायके (डेली) गांव के बाहर छोड़ कर वापस अपने घर लौट आया था.

पति की बंदिशों से छाया आजाद हो चुकी थी. वह लौट कर मायके जाना नहीं चाहती थी. सोच रही थी जब मांबाप पूछेंगे तो उन को क्या जबाव देगी, इसलिए उस ने एक प्लान बनाया. उस ने फोन कर के प्रेमी सोबरन को गांव के बाहर बुलाया. उस समय सोबरन घर (डेली) पर ही था.

प्रेमिका की काल रिसीव कर सोबरन उस से मिलने गांव के बाहर पहुंचा, जहां छाया सामान और दोनों बच्चों के साथ खड़ी थी. छाया ने सोबरन से सारी बातें कह सुनाई और इसी समय यहां से कहीं दूर चलने की अपनी जिद पर अड़ गई.

मरता क्या न करता. सोबरन उसी समय छाया और दोनों बच्चों को ले कर मध्य प्रदेश की उद्योगनगरी जिला सीहोर जा पहुंचा. वहां दोनों ने अपने तरीके से अपनी नई जिंदगी शुरू की. सीहोर में उन्होंने किराए का कमरा लिया और जीवन की नई पारी की शुरुआत की.

दोनों ने मिल कर सीहोर तहसील में चायनाश्ते और पूरीकचौरी की दुकान खोली और मजे से जीने लगे. सोबरन को पा कर छाया बहुत खुश थी और छाया को पा कर सोबरन ने पत्नी की कमी पूरी कर ली थी.

धीरेधीरे 4 महीने का समय बीत गया था. छाया ने न तो मां का हालचाल लिया था और न उस के बारे में कोई समाचार ही मिल पा रहा था. जबकि ऐसा कभी नहीं हुआ था कि 15 दिनों में एक बार फोन कर के छाया ने मां का हालचाल न लिया हो, पहली बार ऐसा हुआ था जब 4 महीने का समय बीत गया था और उस ने मां का समाचार नहीं लिया था.

ताज्जुब की बात तो यह थी कि मां सुखवती जब बेटी के फोन पर काल करती तो उस का फोन स्विच औफ बताता या नेटवर्क क्षेत्र से बाहर आता था. बेटी का कहीं पता नहीं चल रहा था.

यह देख कर सुखवती चिंतित और परेशान हो गई थी. जब दामाद को फोन कर बेटी के बारे में पूछती थी तो दामाद का ऊलजुलूल जवाब सुन कर कर परेशान हो जाती थी.

चंदन ने क्यों ली राहत की सांस

सासू मां को दामाद चंदन ने जवाब दे दिया कि छाया से अब उस का कोई रिश्ता नहीं है. उस ने चरित्रहीनता का चोला ओढ़ा है, उस के बाद से हमेशा हमेशा के लिए रिश्ता खत्म हो गया. अब वह आजाद है, जिस के साथ रहना चाहे, घर बसाना चाहे रह सकती है, घर बसा सकती है. फिलहाल मैं ने उसे 19 जनवरी, 2023 को मायके पहुंचा दिया था.

दामाद का जवाब सुन कर सुखवती चौंक गई. बेटी को मायके छोड़ा होता तो घर पर ही होती, लेकिन वह घर पहुंची ही नहीं. चंदन भी सासूमां का सवाल सुन कर अवाक रह गया था कि छाया घर नहीं पहुंची तो 4 माह से कहां है?वो एक अबूझ पहेली बन गई थी.

परेशान हो कर सुखवती ने बेटी की ससुराल वालों पर हमला बोल दिया था. उस ने दामाद, सास और देवरों पर बेटी और नातियों की हत्या कर शव छिपाने का आरोप लगाया था. सास के आरोप से चंदन और उस के घर वाले परेशान हो गए थे कि उस ने उसे नुकसान तो पहुंचाया ही नहीं, फिर ये क्यों बेवजह हमें हत्या के आरोप में फंसा रही है.

इधर सुखवती को थाने से न्याय नहीं मिला तो उस ने अदालत का सहारा लिया. अदालत के आदेश पर छाया की ससुराल वालों पर हत्या कर शव गायब करने का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. मुकदमा दर्ज होते ही छाया के ससुराल वाले फरार हो गए.

चंदन को यकीन था कि छाया जिंदा है और वह अपने प्रेमी के साथ ही कहीं रह रही होगी. फिर फरारी के दौरान ही उस ने छाया का पता लगाना शुरू किया और अपने लक्ष्य में कामयाब हो गया. एक गुमनाम वीडियो ने छाया और दोनों बेटों के जिंदा होने का सबूत दे दिया.

फिर क्या था, करीब सवा साल से छाया और उस के बच्चे रहस्य बने थे, पटाक्षेप हो गया था. सुखवती को बेटी की करतूत पता नहीं थी. जब सच्चाई उस के सामने आई तो वह भी हैरान रह गई थी. फिलहाल उस ने भी बेटी से मुंह मोड़ लिया था. छाया को प्रेमी सोबरन से एक बेटा पैदा हुआ.

कथा लिखे जाने तक छाया और उस के तीनों बच्चे नारी निकेतन में थे, प्रेमी सोबरन जेल में बंद था. छाया ने कानून से गुजारिश की है कि वह अपनी ससुराल लौटना नहीं चाहती है, वह अपने प्रेमी के साथ बाकी जीवन बिताना चाहती है.

कथा लिखने तक पुलिस मामले की जांच के बाद फाइनल रिपोर्ट लगाने की तैयारी कर रही थी. चंदन और उस के घर वाले अपने घर लौट आए थे और उन्होंने राहत की सांस ली.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अवैध संबंधों में हुई थी भाजपा नेता की हत्या

उत्तर प्रदेश के महानगर कानपुर के एसएसपी अखिलेश कुमार मीणा को दोपहर 12 बजे के करीब थाना फीलखाना से सूचना मिली कि भाजपा के दबंग नेता सतीश कश्यप तथा उन के सहयोगी ऋषभ पांडेय पर माहेश्वरी मोहाल में जानलेवा हमला किया गया है. दोनों को मरणासन्न हालत में हैलट अस्पताल ले जाया गया है.

मामला काफी गंभीर था, इसलिए वह एसपी (पूर्वी) अनुराग आर्या को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल पर थाना फीलखाना के थानाप्रभारी इंसपेक्टर देवेंद्र सिंह मौजूद थे. सत्तापक्ष के नेता पर हमला हुआ था, इसलिए मामला बिगड़ सकता था.

इस बात को ध्यान में रख कर एसएसपी साहब ने कई थानों की पुलिस और फोरैंसिक टीम को घटनास्थल पर बुला लिया था. माहेश्वरी मोहाल के कमला टावर चौराहे से थोड़ा आगे संकरी गली में बालाजी मंदिर रोड पर दिनदहाड़े यह हमला किया गया था. सड़क खून से लाल थी. अखिलेश कुमार मीणा ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया. इस के बाद फोरैंसिक टीम ने अपना काम किया.

घटनास्थल पर कर्फ्यू जैसा सन्नाटा पसरा हुआ था. दुकानों के शटर गिरे हुए थे, आसपास के लोग घरों में दुबके थे. वहां लोग कितना डरे हुए थे, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता था कि वहां कोई कुछ भी कहने सुनने को तैयार नहीं था. बाहर की कौन कहे, छज्जों पर भी कोई नजर नहीं आ रहा था. यह 29 नवंबर, 2017 की बात है.

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घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद अखिलेश कुमार मीणा हैलट अस्पताल पहुंचे. वहां कोहराम मचा हुआ था. इस की वजह यह थी कि जिस भाजपा नेता सतीश कश्यप तथा उन के सहयोगी ऋषभ पांडेय पर हमला हुआ था, डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया था. पुलिस अधिकारियों ने लाशों का निरीक्षण किया तो दहल उठे.

मृतक सतीश कश्यप का पूरा शरीर धारदार हथियार से गोदा हुआ था. जबकि ऋषभ पांडेय के शरीर पर मात्र 3 घाव थे. इस सब से यही लगा कि कातिल के सिर पर भाजपा नेता सतीश कश्यप उर्फ छोटे बब्बन को मारने का जुनून सा सवार था.

अस्पताल में मृतक सतीश कुमार की पत्नी बीना और दोनों बेटियां मौजूद थीं. सभी लाश के पास बैठी रो रही थीं. ऋषभ की मां अर्चना और पिता राकेश पांडेय भी बेटे की लाश से लिपट कर रो रहे थे. वहां का दृश्य बड़ा ही हृदयविदारक था. अखिलेश कुमार मीणा ने मृतकों के घर वालों को धैर्य बंधाते हुए आश्वासन दिया कि कातिलों को जल्दी ही पकड़ लिया जाएगा.

अखिलेश कुमार मीणा ने मृतक सतीश कश्यप की पत्नी बीना और बेटी आकांक्षा से हत्यारों के बारे में पूछताछ की तो आकांक्षा ने बताया कि उस के पिता की हत्या शिवपर्वत, उमेश कश्यप और दिनेश कश्यप ने की है. एक महिला से प्रेमसंबंधों को ले कर शिवपर्वत उस के पिता से दुश्मनी रखता था. उस ने 10 दिनों पहले धमकी दी थी कि वह उस के पिता का सिर काट कर पूरे क्षेत्र में घुमाएगा.

मृतक सतीश कश्यप ने इस की शिकायत थाना फीलखाना में की थी, लेकिन पुलिस ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया और एक महिला सपा नेता के कहने पर समझौता करा दिया. अगर पुलिस ने मामले को गंभीरता से लिया होता और शिवपर्वत पर काररवाई की होती तो आज भाजपा नेता सतीश कश्यप और ऋषभ पांडेय जिंदा होते.

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अखिलेश कुमार मीणा ने मृतक ऋषभ के घर वालों से पूछताछ की तो उस की मां अर्चना पांडेय ने बताया कि उन का बेटा अकसर नेताजी के साथ रहता था. वह उन का विश्वासपात्र था, इसलिए वह जहां भी जाते थे, उसे साथ ले जाते थे. आज भी वह उन के साथ जा रहा था. ऋषभ स्कूटी चला रहा था, जबकि नेताजी पीछे बैठे थे. रास्ते में कातिलों ने हमला कर के दोनों को मार दिया.

मृतक सतीश कश्यप की बेटी आकांक्षा ने जो बताया था, उस से साफ था कि ये हत्याएं प्रेमसंबंध को ले कर की गई थीं. इसलिए एसएसपी साहब ने थानाप्रभारी देवेंद्र सिंह को आदेश दिया कि वह लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर तुरंत रिपोर्ट दर्ज करें और हत्यारों को गिरफ्तार करें.

मृतक सतीश कश्यप के घर वालों ने शिवपर्वत पर हत्या का आरोप लगाया था, इसलिए देवेंद्र सिंह ने सतीश कश्यप के बड़े भाई प्रेम कुमार की ओर से हत्या का मुकदमा शिवपर्वत व 2 अन्य अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कर काररवाई शुरू कर दी.

जांच में पता चला कि बंगाली मोहाल का रहने वाला शिवपर्वत नगर निगम में सफाई नायक के पद पर नौकरी करता था. वह दबंग और अपराधी प्रवृत्ति का था. उस के इटावा बाजार निवासी राकेश शर्मा की पत्नी कल्पना शर्मा से अवैधसंबंध थे. इधर कल्पना शर्मा का मिलनाजुलना सतीश कश्यप से भी हो गया था. इस बात की जानकारी शिवपर्वत को हुई तो वह सतीश कश्यप से दुश्मनी रखने लगा. इसी वजह से उस ने सतीश की हत्या की थी.

शिवपर्वत को गिरफ्तार करने के लिए एसपी अनुराग आर्या ने एक पुलिस टीम बनाई, जिस में उन्होंने थाना फीलखाना के थानाप्रभारी इंसपेक्टर देवेंद्र सिंह, चौकीप्रभारी फूलचंद, एसआई आशुतोष विक्रम सिंह, सिपाही नीरज, गौतम तथा महिला सिपाही रेनू चौधरी को शामिल किया.

शिवपर्वत की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरू किए, लेकिन वह पकड़ा नहीं जा सका. इस के बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार करने के लिए उस के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगाया तो उस की लोकेशन के आधार पर उसे फूलबाग चौराहे से गिरफ्तार कर लिया गया. शिवपर्वत को गिरफ्तार कर थाना फीलखाना लाया गया.

एसपी अनुराग आर्या की मौजूदगी में उस से पूछताछ की गई तो उस ने बिना किसी बहानेबाजी के सीधे सतीश कश्यप और ऋषभ पांडेय की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि उस की प्रेमिका कल्पना शर्मा की बेटी की शादी 30 नवंबर को थी. इस शादी का खर्च वही उठा रहा था, जबकि सतीश कश्यप भी शादी कराने का श्रेय लूटने के लिए पैसे खर्च करने लगे थे. यही बात उसे बुरी लगी थी.

उस ने उन्हें चेतावनी भी दी थी, लेकिन वह नहीं माने. उस की नाराजगी तब और बढ़ गई, जब कल्पना शर्मा ने सतीश कश्यप को भी शादी में निमंत्रण दे दिया. इस के बाद उस ने सतीश कश्यप की हत्या की योजना बनाई और शादी से एक दिन पहले उन की हत्या कर दी. ऋषभ को वह नहीं मारना चाहता था, लेकिन वह सतीश कश्यप को बचाने लगा तो उस पर भी उस ने हमला कर दिया. इस के अलावा वह जिंदा रहता तो उस के खिलाफ गवाही देता.

पूछताछ के बाद पुलिस ने उस से हथियार, खून सने कपड़े बरामद कराने के लिए कहा तो उस ने फेथफुलगंज स्थित जगमोहन मार्केट के पास के कूड़ादान से चाकू और खून से सने कपडे़ बरामद करा दिए. बयान देते हुए शिवपर्वत रोने लगा तो अनुराग आर्या ने पूछा, ‘‘तुम्हें दोनों की हत्या करने का पश्चाताप हो रहा है क्या?’’

शिवपर्वत ने आंसू पोंछते हुए तुरंत कहा, ‘‘सर, हत्या का मुझे जरा भी अफसोस नहीं है. मैं यह सोच कर परेशान हो रहा हूं कि मेरी प्रेमिका इस बात को ले कर परेशान हो रही होगी कि पुलिस मुझे परेशान कर रही होगी.’’

सतीश कश्यप और ऋषभ की हत्याएं कल्पना शर्मा की वजह से हुई थीं, इसलिए पुलिस को लगा कि कहीं हत्या में कल्पना शर्मा भी तो शामिल नहीं थी. इस बात का पता लगाने के लिए पुलिस टीम ने कल्पना शर्मा के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि घटना से पहले और बाद में शिवपर्वत की उस से बात हुई थी.

इसी आधार पर पुलिस पूछताछ के लिए कल्पना को भी 3 दिसंबर, 2017 को थाने ले आई, जहां पूछताछ में उस ने बताया कि सतीश कश्यप उर्फ छोटे बब्बन की हत्या की योजना में वह भी शामिल थी. इस के बाद देवेंद्र सिंह ने उसे भी साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. शिवपर्वत और कल्पना शर्मा से विस्तार से की गई पूछताछ में भाजपा नेता सतीश कश्यप और उन के सहयोगी ऋषभ पांडेय की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

महानगर कानपुर के थाना फीलखाना का एक मोहल्ला है बंगाली मोहाल. वहां की चावल मंडी में सतीश कश्यप अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी बीना के अलावा 2 बेटियां मीनाक्षी, आकांक्षा और एक बेटा शोभित उर्फ अमन था.

सतीश कश्यप काफी दबंग था. उस की आर्थिक स्थिति भी काफी अच्छी थी, इसलिए वह किसी से भी नहीं डरता था. इस की वजह यह थी कि उस का संबंध बब्बन गैंग के अपराधियों से था. इसीलिए बाद में उसे लोग छोटे बब्बन के नाम से पुकारने लगे थे.

इसी नाम ने सतीश को दहशत का बादशाह बना दिया था.फीलखाना के बंगाली मोहाल, माहेश्वरी मोहाल, राममोहन का हाता और इटावा बाजार में उस की दहशत कायम थी. लोग उस के नाम से खौफ खाते थे. उस पर तमाम मुकदमे दर्ज हो गए. वह हिस्ट्रीशीटर बन गया. 10 सालों तक इलाके में सतीश की बादशाहत कायम रही. लेकिन उस के साथ घटी एक घटना से उस का हृदय परिवर्तित हो गया. उस के बाद उस ने अपराध करने से तौबा कर ली.

दरअसल उस के बेटे का एक्सीडेंट हो गया, जिस में उस की जान बच गई. इसी के बाद से सतीश ने अपराध करने बंद कर दिए. अदालत से भी वह एक के बाद एक मामले में बरी होता गया.

अपराध से किनारा करने के बाद सतीश राजनीति करने लगा. पहले वह बसपा में शामिल हुआ. सपा सत्ता में आई तो वह सपा में चला गया. सपा सत्ता से गई तो वह भाजपा में आ गया. राजनीति की आड़ में वह प्रौपर्टी डीलिंग का धंधा करता था. वह विवादित पुराने मकानों को औने पौने दामों में खरीद लेता था. इस के बाद उस पर नया निर्माण करा कर महंगे दामों में बेचता था. इस में उसे अच्छी कमाई हो रही थी.

ऋषभ सतीश कश्यप का दाहिना हाथ था. उस के पिता राकेश पांडेय इटावा बाजार में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी अर्चना के अलावा बेटा ऋषभ और बेटी रेनू थी. वह एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे. 8वीं पास कर के ऋषभ सतीश कश्यप के यहां काम करने लगा था.

वह उम्र में छोटा जरूर था, लेकिन काफी होशियार था. सतीश कश्यप का सारा काम वही संभालता था. हालांकि सतीश का बेटा अमन और बेटी आकांक्षा भी पिता के काम में हाथ बंटाते थे, लेकिन ऋषभ भी पूरी जिम्मेदारी से सारे काम करता था. इसलिए सतीश हमेशा उसे अपने साथ रखते थे. एक तरह से वह घर के सदस्य जैसा था.

बंगाली मोहाल में ही शिवपर्वत वाल्मीकि रहता था. उस के परिवार में पत्नी रामदुलारी के अलावा 2 बेटियां थीं. वह नगर निगम में सफाई नायक था. उसे ठीकठाक वेतन तो मिलता ही था, इस के अलावा वह सफाई कर्मचारियों से उगाही भी करता था. लेकिन वह शराबी और अय्याश था, इसलिए हमेशा परेशान रहता था. उस की नजर हमेशा खूबसूरत महिला सफाईकर्मियों पर रहती थी, जिस की वजह से कई बार उस की पिटाई भी हो चुकी थी.

एक दिन शिवपर्वत इटावा बाजार में बुटीक चलाने वाली कल्पना शर्मा के घर के सामने सफाई करा रहा था, तभी उस की आंख में कीड़ा चला गया. वह आंख मलने लगा और दर्द तथा जलन से तड़पने लगा. उसे परेशान देख कर कल्पना शर्मा ने रूमाल से उस की आंख साफ की और कीड़ा निकाल दिया. कल्पना शर्मा की खूबसूरत अंगुलियों के स्पर्श से शिवपर्वत के शरीर में सिहरन सी दौड़ गई. वह भी काफी खूबसूरत थी, इसलिए पहली ही नजर में शिवपर्वत उस पर मर मिटा.

इस के बाद शिवपर्वत कल्पना के आगेपीछे घूमने लगा, जिस से वह उस के काफी करीब आ गया. वह उस पर दिल खोल कर पैसे खर्च करने लगा. कल्पना अनुभवी थी. वह समझ गई कि यह उस का दीवाना हो चुका है. कल्पना का पति राजेश कैटरर्स का काम करता था. वह अकसर बाहर ही रहता था. ज्यादातर रातें उस की पति के बिना कटती थीं, इसलिए उस ने शिवपर्वत को खुली छूट दे दी, जिस से दोनों के बीच मधुर संबंध बन गए.

नाजायज संबंध बने तो शिवपर्वत अपनी पूरी कमाई कल्पना पर उड़ाने लगा, जिस से उस के अपने घर की आर्थिक स्थिति खराब हो गई. पत्नी और बच्चे भूखों मरने लगे. पत्नी वेतन के संबंध में पूछती तो वह वेतन न मिलने का बहाना कर देता. पर झूठ कब तक चलता. एक दिन रामदुलारी को पति और कल्पना शर्मा के संबंधों का पता चल गया. वह समझ गई कि पति सारी कमाई उसी पर उड़ा रहा है.

औरत कभी भी पति का बंटवारा बरदाश्त नहीं करती तो रामदुलारी ही कैसे बरदाश्त करती. उस ने पति का विरोध भी किया, लेकिन शिवपर्वत नहीं माना. वह उस के साथ मारपीट करने लगा तो आजिज आ कर वह बच्चों को ले कर मायके चली गई. इस के बाद तो शिवपर्वत आजाद हो गया. अब वह कल्पना के यहां ही पड़ा रहने लगा. उस की बेटी उसे पापा कहने लगी.

खूबसूरत और रंगीनमिजाज कल्पना शर्मा की सतीश कश्यप से भी जानपहचान थी. सतीश की उस के पति राजेश से दोस्ती थी. उसी ने कल्पना से उस को मिलाया था. उस के बाद दोनों में दोस्ती हो गई, जो बाद में प्यार में बदल गई थी. लेकिन ये संबंध ज्यादा दिनों तक नहीं चल सके. दोनों अलग हो गए थे.

कल्पना शर्मा की बेटी सयानी हुई तो वह उस की शादी के बारे में सोचने लगी. बेटी की शादी धूमधाम से करने के लिए वह मकान का एक हिस्सा बेचना चाहती थी. सतीश कश्यप को जब इस बात का पता चला तो वह कल्पना शर्मा से मिला और उस का मकान खरीद लिया. मकान खरीदने के लिए वह कल्पना शर्मा से मिला तो एक बार फिर दोनों का मिलना जुलना शुरू हो गया. सतीश ने उसे आश्वासन दिया कि वह उस की बेटी की शादी में हर तरह से मदद करेगा.

मदद की चाह में कल्पना शर्मा का झुकाव सतीश की ओर हो गया. अब वह शिवपर्वत की अपेक्षा सतीश को ज्यादा महत्त्व देने लगी. एक म्यान में 2 तलवारें भला कैसे समा सकती हैं? प्रेमिका का झुकाव सतीश की ओर देख कर शिवपर्वत बौखला उठा. उस ने कल्पना शर्मा को आड़े हाथों लिया तो वह साफ मुकर गई. उस ने कहा, ‘‘शिव, तुम्हें किसी ने झूठ बताया है. हमारे और नेताजी के बीच कुछ भी गलत नहीं है.’’

कल्पना शर्मा ने बेटी की शादी तय कर दी थी. शादी की तारीख भी 30 नवंबर, 2017 रख दी गई. गोकुलधाम धर्मशाला भी बुक कर लिया गया. वह शादी की तैयारियों में जुट गई. शिवपर्वत शादी की तैयारी में हर तरह से मदद कर रहा था. लेकिन जब उसे पता चला कि सतीश कश्यप भी शादी में कल्पना की मदद कर रहा है तो उसे गुस्सा आ गया.

शिवपर्वत ने कल्पना शर्मा को खरीखोटी सुनाते हुए कहा कि अगर सतीश उस की बेटी की शादी में आया तो ठीक नहीं होगा. अगर उस ने उसे निमंत्रण दिया तो अनर्थ हो जाएगा. प्रेमिका को खरीखोटी सुना कर उस ने सतीश को फोन कर के धमकी दी कि अगर उस ने कल्पना से मिलने की कोशिश की तो वह उस का सिर काट कर पूरे इलाके में घुमाएगा. देखेगा वह कितना बड़ा दबंग है.

शिवपर्वत सपा का समर्थक था. सपा के कई नेताओं से उस के संबंध थे. उस के भाई भी सपा के समर्थक थे और उस का साथ दे रहे थे. सतीश ने शिवपर्वत की धमकी की शिकायत पुलिस से कर दी. सीओ कोतवाली ने शिवपर्वत को थाने बुलाया तो वह सपा नेताओं के साथ थाने आ पहुंचा. सपा नेताओं ने विवाद पर लीपापोती कर के समझौता करा दिया.

शिवपर्वत के मना करने के बावजूद कल्पना शर्मा ने बेटी की शादी का निमंत्रण सतीश कश्यप को दे दिया था. जब इस की जानकारी शिवपर्वत को हुई तो उस ने कल्पना शर्मा को आड़ेहाथों लिया. तब कल्पना ने कहा कि सतीश कश्यप दबंग है. उस से डर कर उस ने उसे शादी का निमंत्रण दे दिया है. अगर वह चाहे तो उसे रास्ते से हटा दे. इस में वह उस का साथ देगी.

‘‘ठीक है, अब ऐसा ही होगा. वह शादी में शामिल नहीं हो पाएगा.’’ शिवपर्वत ने कहा.

इस के बाद उस ने शादी के एक दिन पहले सतीश कश्यप की हत्या करने की योजना बन डाली. इस के लिए उस ने फेरी वाले से 70 रुपए में चाकू खरीदा और उस पर धार लगवा ली. 29 नवंबर की सुबह सतीश किसी नेता से मिल कर घर लौटे तो उन्हें किसी ने फोन किया. फोन पर बात करने के बाद वह ऋषभ के साथ स्कूटी से निकल पड़े. पत्नी बीना ने खाने के लिए कहा तो 10 मिनट में लौट कर खाने को कहा और चले गए.

करीब 11 बजे वह बालाजी मंदिर मोड़ पर पहुंचे तो घात लगा कर बैठे शिवपर्वत ने स्कूटी रोकवा कर उन पर हमला कर दिया. सतीश कश्यप सड़क पर ही गिर पड़े. सतीश को बचाने के लिए ऋषभ शिवपर्वत से भिड़ गया तो उस ने उस पर भी चाकू से वार कर दिया. ऋषभ जान बचा कर भागा, लेकिन आगे गली बंद थी. वह जान बचाने के लिए घरों के दरवाजे खटखटाता रहा, लेकिन किसी ने दरवाजा नहीं खोला.

पीछा कर रहे शिवपर्वत ने उसे भी घायल कर दिया. ऋषभ जमीन पर गिर पड़ा. इस पर शिवपर्वत का गुस्सा शांत नहीं हुआ. लौट कर उस ने सड़क पर पड़े तड़प रहे सतीश कश्यप पर चाकू से कई वार किए. एक तरह से उस ने उस के शरीर को गोद दिया. इस के बाद इत्मीनान से चाकू सहित फरार हो गया.

शिवपर्वत ने इस बात की सूचना मोबाइल फोन से कल्पना शर्मा को दे दी थी. इस के बाद रेल बाजार जा कर कपड़ों की दुकान से उस ने एक जींस व शर्ट खरीदी और सामुदायिक शौचालय जा कर खून से सने कपड़े उतार कर नए कपड़े पहन लिए और फिर रेलवे स्टेशन पर जा कर छिप गया.

इस वारदात से इलाके में दहशत फैल गई थी. दुकानदारों ने शटर गिरा दिए थे और गली के लोग घरों में घुस गए थे. लेकिन किसी ने घटना की सूचना पुलिस और सतीश कश्यप के घर वालों को दे दी थी.

खबर पाते ही सतीश कश्यप की पत्नी बीना अपनी दोनों बेटियों मीनाक्षी और आकांक्षा तथा बेटे अमन के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचीं. उन की सूचना पर ऋषभ के पिता राकेश और मां अर्चना भी आ गईं. थाना फीलखाना के प्रभारी देवेंद्र सिंह भी आ गए. उन्होंने घायलों को हैलट अस्पताल भिजवाया और वारदात की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दे दी.

पूछताछ के बाद थाना फीलखाना पुलिस ने अभियुक्त शिवपर्वत और कल्पना शर्मा को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उन की जमानतें नहीं हुई थीं. कल्पना शर्मा के जेल जाने से उस की बेटी का रिश्ता टूट गया.

सोचने वाली बात यह है कि शिवपर्वत को मिला क्या? उस ने जो अपराध किया है, उस में उसे उम्रकैद से कम की सजा तो होगी नहीं. उस ने जिस कल्पना के लिए यह अपराध किया, क्या वह उसे मिल पाएगी? उस ने अपनी जिंदगी तो बरबाद की ही, साथ ही कल्पना और उस की बेटी का भी भविष्य खराब कर दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कोबरा से डसवाने वाली प्रेमिका

15 जुलाई, 2023 की सुबह सैर पर निकले कुछ लोगों की नजर नाले के पास खड़ी एक कार पर पड़ी. पोलो कार वहां पर काफी समय से खड़ी थी. कार स्टार्ट थी, लेकिन काफी समय से न तो उस कार में कोई आया और न ही कार से बाहर निकला. कार के सभी शीशे भी पूरी तरह से बंद थे. इस कार को इस तरह से खड़े देख वहां पर राहगीर जमा हो गए थे.

तभी एक व्यक्ति ने हिम्मत जुटाई और कार का दरवाजा खोला तो उस कार की पिछली सीट पर एक व्यक्ति बैठा हुआ था. लेकिन कार का दरवाजा खुलने के बाद भी उस व्यक्ति ने किसी तरह की प्रतिक्रिया नहीं की, जिस से लोगों का शक हुआ. वहां पर मौजूद लोगों ने उस व्यक्ति को कई बार आवाज लगाई, लेकिन उस की तरफ से कोई उत्तर नहीं मिला.

तब तक वहां पर काफी भीड़ इकट्ठी हो गई थी. उसी भीड़ में मौजूद एक व्यक्ति ने उसे पहचानते हुए बताया कि वह रामबाग कालोनी रामपुर रोड हल्द्वानी का होटल मालिक अंकित चौहान पुत्र धर्मपाल चौहान है. अंकित की पहचान होते ही उस के एक परिचित ने उस के छोटे भाई अभिमन्यु को सूचना दी. साथ ही वहां पर मौजूद लोगों ने हल्द्वानी कोतवाली में फोन कर इस की सूचना दे दी थी.

अंकित के इस हालत में मिलने की सूचना पाते ही उस का छोटा भाई अभिमन्यु और कोतवाल हरेंद्र चौधरी पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए थे. पुलिस ने कार खोल कर स्थिति का जायजा लिया. पुलिस ने अंकित चौहान को आवाज देते हुए हिलाया तो वह सीट पर ही लुढक़ गया. उस की नाक के पास हाथ लगा कर सांस चैक की तो उस की सांस नहीं चल रही थी.

पुलिस की मदद से भाई अभिमन्यु अंकित को ले कर सीधा सुशीला तिवारी अस्पताल गया, जहां पर उसे देखते ही डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया. उस के बाद अंकित के शव को मोर्चरी ले जाया गया. जहां पर उस की मौत की खबर सुन कर परिचितों के साथसाथ सगेसंबंधियों की भीड़ लग गई. अंकित के पापा की कई साल पहले किसी बीमारी के चलते मौत हो गई थी.

घर में मां ऊषा देवी के अलावा भाईबहन रहते थे. 5 दिन पहले ही अंकित की मां ऊषा देवी अपनी बेटियों के साथ माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए गई हुई थी. उस वक्त सभी कटरा के पास थे. अंकित की मौत की सूचना पाते ही वे वहां से घर की तरफ वापस चल पड़े.

उधर पुलिस उस के शव को मोर्चरी में रखवा कर सीधे उस की कार के पास पहुंची. पुलिस ने गहनता से कार की जांचपड़ताल की. जिस वक्त सूचना पर पुलिस कार के पास पहुंची थी, कार स्टार्ट थी और एसी भी चल रहा था. लेकिन उस जांचपड़ताल के दौरान पुलिस को ऐसी कोई संदिग्ध वस्तु नहीं मिली, जिस से अंकित की मौत का पता चल सके.

जांच के दौरान पुलिस को कार से 53 हजार रुपए नकद और एक मोबाइल फोन भी मिला था. मोबाइल अंकित का ही था.  शुरुआती जांच में पुलिस ने अनुमान लगाया कि अंकित की मौत कार्बन मोनोआक्साइड गैस से हुई होगी. लेकिन इस के बावजूद भी पुलिस संशय में थी कि अंकित पिछली सीट पर क्यों बैठा था? उस वक्त उस की कार भी लौक नहीं थी. उस के सभी शीशे भी पूरी तरह से बंद थे.

इस में भी सब से बड़ा सवाल यह उठता था कि अगर अंकित पिछली सीट पर बैठा था तो उस की कार कौन चला रहा था. अंकित के पिछली सीट पर बैठे होने से यह तो पक्का हो ही गया था कि उस कार में उस के अलावा भी कोई दूसरा व्यक्ति रहा होगा.  पुलिस ने अपनी काररवाई कर मृतक की लाश का पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया था.

पोस्टमार्टम के दौरान डाक्टरों को मृतक के शरीर पर किसी भी तरह के निशान नहीं मिले. लेकिन उस के दोनों ही पैरों पर एक जैसे सर्पदंश जैसे निशान जरूर नजर आए थे. जिस से कयास लगाया जा रहा था कि अंकित वहां पर पेशाब करने गाड़ी से उतरा होगा और उसी दौरान उस के पैरों में सांप ने काट लिया हो. लेकिन इस बात के भी 2 पहलू थे. अगर सांप काटता तो एक ही पैर में काटता. लेकिन उस के दोनों ही पैरों में एक जैसे ही निशान मिले थे. जिस से अंकित की मौत का मामला उलझता ही जा रहा था.

सोमवार को पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली. जिस में साफ लिखा गया था कि अंकित की मौत सांप के काटने से ही हुई थी. लेकिन इस बात को उस के घर वाले बिलकुल भी मानने को तैयार नहीं थे. कारण वही था कि अगर उस के पैर में सांप ने ही काटा था तो एक ही सांप ने उस के दूसरे पैर में ठीक उसी जगह पर कैसे काटा? उस के बाद उस की मौत का दूसरा पहलू यह भी था कि वह पिछली सीट पर क्यों बैठा पाया गया?

इस मामले को ले कर मृतक अंकित चौहान की बहन ईशा चौहान की तरफ से पुलिस को एक लिखित तहरीर दी गई थी, जिस के आधार पर पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कर लिया.

व्यापारियों के दबाव में आई पुलिस

अंकित के घर वालों के साथसाथ कुछ व्यापारियों की जिद के आगे पुलिस की एक न चली. व्यापारियों के दबाव के चलते नैनीताल के एसएसपी पंकज भट्ट ने तत्काल अधीनस्थों के साथ एक मीटिंग की. उस के बाद पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों से मृत्यु के कारणों के संबंध में चर्चा करने के बाद पुलिस अन्य पहलुओं को ले कर फिर से उस की जांच में जुट गई.

केस के खुलासे के लिए एसएसपी पंकज भट्ट ने एक पुलिस टीम का गठन किया. टीम में कोतवाल हरेंद्र चौधरी, एसएसआई विजय मेहता, महेंद्र प्रसाद, मंगलपड़ाव चौकीप्रभारी जगदीप नेगी, एसआई कुमकुम धानिक, मंडी चौकीप्रभारी गुलाब कांबोज, इसरार नबी, घनश्याम रौतेला, चंदन नेगी, अरुण राठौर, बंशीधर जोशी, छाया, एसओजी प्रभारी राजवीर नेगी, कुंदन कठावत, त्रिलोक रौतेला, दिनेश नागर, अनिल गिरि, भानुप्रताप व अशोक को शामिल किया.

जिस जगह अंकित की कार खड़ी पाई गई थी, उस से काफी दूरी पर एक सीसीटीवी कैमरा लगा हुआ था. पुलिस ने उस की फुटेज निकाल कर चैक की तो रात के 12 बजे के समय घटनास्थल पर एक कार की लाइट दिखाई दी थी. जिस के कुछ समय बाद ही कार की लाइट बंद हो गई थी. उस के बाद उस कार के पास एक और कार आ कर रुकी, जो थोड़ी देर बाद ही वहां से चली गई थी.

मृतक के दोनों पैरों में एक ही जैसे 2 निशान मिलने से पुलिस को भी शक था कि कहीं किसी ने जानबूझ कर तो सांप से कटवा कर उस की हत्या तो नहीं कर दी. उसी शक की बुनियाद पर पुलिस ने अपनी जांच आगे बढ़ाई. पुलिस ने फिर से मृतक के घर वालों से पूछताछ की.

घर वालों ने बताया कि रामपुर रोड छठ पूजा स्थल के पास रामबाग कालोनी से शुक्रवार की देर शाम वह अपनी कार सेनिकला था. लेकिन देर रात तक वह घर नहीं पहुंचा. घर वालों ने उस का देर रात तक इंतजार किया. अंकित कई बार होटल में ही सो जाता था. जिस के कारण उन्हें उस की कोई चिंता नहीं थी. उस के साथ उस रात क्या हुआ पता नहीं.

यह सब जानकारी जुटाने के बाद पुलिस के पास एक ही रास्ता बचा था. वह था अंकित के मोबाइल की काल डिटेल्स खंगालना. पुलिस को पूरी उम्मीद थी कि उस की मौत का राज जरूर उस के मोबाइल से ही मिल सकता है. यही सोच कर पुलिस ने अंकित के मोबाइल की काल डिटेल्स खंगाली तो उस में एक फोन नंबर ऐसा सामने आया, जिस पर अंकित की सब से ज्यादा बातें होती थीं. वह नंबर था हल्द्वानी के बरेली रोड गोरापड़ाव क्षेत्र में रहने वाली माही आर्या उर्फ डौली का. लेकिन वह उस वक्त बंद आ रहा था.

उस के बाद पुलिस ने माही के फेसबुक और इंस्टाग्राम पर सर्च किया तो सभी अकाउंट बंद मिले. इस केस की तह तक जाने के लिए पुलिस को एक छोटा सा क्लू मिला तो पुलिस ने माही के मोबाइल की भी काल डिटेल्स निकलवाई. जिस से जानकारी मिली कि कई दिन से उस की लगातार 2 मोबाइल नंबरों पर बातें हो रही थीं. उस में एक नंबर था दीप कांडपाल का और दूसरा रमेश नाथ का. इन नंबरों के मिलते ही पुलिस ने इन को डायल किया तो ये दोनों नंबर भी बंद पाए गए.

काल डिटेल्स से मिली सफलता

इन दोनों नंबरों के बंद आने से पुलिस को एक आशा की किरण दिखाई दी. पुलिस को लगा कि जरूर अंकित की मौत का राज इन्हीं 2 फोन नंबरों में छिपा हुआ है. इस तरह से कड़ी से कड़ी जोड़ते हुए पुलिस ने दीप कांडपाल की काल डिटेल्स खंगाली तो उस में भी एक ऐसा नंबर मिला, जिस पर वह हर रोज बातें करता था.

पुलिस उसी नंबर पर काल कर किसी तरह से उस के पास पहुंचने में कामयाब हो गई. उस युवक ने बताया कि वह दीप कांडपाल के साथ मिल कर शराब का कारोबार करता है. दीप कांडपाल दिल्ली, हरियाणा से शराब ला कर हल्द्वानी और उस के आसपास के क्षेत्र में सप्लाई करता है.

पुलिस ने उस युवक को अपनी गिरफ्त में ले कर पूछताछ की तो उस ने बताया कि माही आर्या अंकित चौहान की गर्लफ्रैंड है. वह हर रोज रात में उसी से मिलने जाता था. हर रात वह उसी के साथ खातापीता था. शराब पीने के बाद वह गालीगलौज भी करता था, जिस से माही आर्या तंग आ गई थी. उस के बाद से ही दोनों के संबंधों में खटास आने लगी थी.

पुलिस ने रमेशनाथ, दीप कांडपाल और माही के फोन नंबरों को पहले ही सर्विलांस पर लगा रखा था. सभी नंबर काफी समय से बंद चल रहे थे. लेकिन अचानक ही रमेश नाथ का मोबाइल औन हुआ. उसी दौरान पुलिस को उस की लोकेशन मिल गई. लोकेशन मिलते ही पुलिस आननफानन में उस के पीछे लग गई.

पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए रमेश नाथ को बरेली से गिरफ्तार कर लिया. रमेश नाथ एक सपेरा था. सपेरे को गिरफ्तार कर पुलिस ने उस से कड़ी पूछताछ की. उस ने अंकित हत्याकांड का खुलासा कर दिया. रमेश नाथ ने स्वीकार किया कि अंकित की हत्या उस के द्वारा लाए गए सांप से कटवा कर ही की गई थी.

सपेरे रमेश नाथ ने बताया कि वह हल्द्वानी में मानपुर पश्चिम में किराए के मकान में रहता है. वहीं से वह घरघर जा कर मांगने, खाने व सांप पकडऩे का काम करता है. रमेश नाथ ने पुलिस को जानकारी देते हुए बताया कि अब से लगभग 7-8 महीने पहले एक युवक ने उसे माही उर्फ डौली से मिलवाया था.

युवती को किसी ज्योतिष ने बताया था कि उस पर कालसर्प योग है, जिस के उपचार के लिए किसी जहरीले नाग की पूजा करनी होगी. उस के बाद उस का कालसर्प योग खत्म हो जाएगा. सपेरे ने उस वक्त माही की मांग पर उसे एक सांप ला कर दिया था. जिस के बाद से सपेरे का उस के घर आनाजाना शुरू हो गया था.

सपेरा रमेश नाथ ने खोला मुंह

माही के घर पर अंकित चौहान, दीप कांडपाल, नौकर रामऔतार और नौकरानी ऊषा का आनाजाना लगा रहता था. उसी दौरान एक दिन अंकित को छोड़ कर सभी माही के घर पर मौजूद थे. उसी दौरान दीप कांडपाल ने उसे बताया, “अंकित ने माही को परेशान कर रखा है. माही अब अंकित को प्यार नहीं करती. माही अब मुझ से प्यार करती है, लेकिन अंकित फिर भी उसे तंग करता रहता है. कभी भी वह उस के घर आ जाता है और शराब पी कर मारपीट करता है. उस ने इस का जीना हराम कर रखा है.

“माही की परेशानी को देख कर मुझे गुस्सा भी आ जाता है. मन करता है कि उस का खेल खत्म ही कर दूं. लेकिन पुलिस हम पर शक करके तुरंत ही गिरफ्तार कर लेगी. इसलिए हम चाहते हैं कि तुम हमें एक जहरीला सांप ला कर दे दो, जिस से कटवा कर हम उस की हत्या कर सकें. जिस से लोगों को लगे कि सांप के काटने से अंकित की मौत हो गई.”

इस काम के बदले माही ने उसे, नौकर रामऔतार व नौकरानी ऊषा को 10-10 हजार रुपए भी दिए.

यह जानकारी मिलते ही पुलिस ने माही के नौकर और उस की नौकरानी की तरफ ध्यान दौड़ाया. पुलिस दिनरात एक कर के नौकर रामऔतार के पीछे पड़ी तो उस का कनेक्शन पीलीभीत से जुड़ा हुआ मिला. पुलिस जैसेतैसे कर के रामऔतार के घर पहुंची तो पता चला कि वह नेपाल भाग गया है. इस जानकारी के मिलते ही पुलिस टीम नेपाल पहुंची.

नेपाल पहुंचते ही पुलिस ने वहां के तमाम होटल और कैसीनो भी छान मारे. लेकिन कहीं भी रामाऔतार का पता नहीं चल सका. उस के बाद नेपाल की सीमा पर भी निगरानी रखी,लेकिन कहीं भी कोई सफलता नहीं मिली. उस के बाद पुलिस टीम ने इन चारों की तलाश में दिल्ली व पीलीभीत में डेरा डाल दिया. साथ ही पुलिस ने माही समेत चारों पर 25-25 हजार का इनाम भी घोषित कर दिया था.

आरोपियों तक पहुंचने के लिए पुलिस ने पहले ही मुखबिरों को लगा रखा था. उसी दौरान 23 जुलाई, 2023 को पुलिस को एक मुखबिर से सूचना मिली कि दीप कांडपाल और उस की प्रेमिका माही आर्या पुलिस की पकड़ से बचने के लिए रुद्रपुर की कोर्ट में सरेंडर करने जा रहे हैं.

यह जानकारी मिलते ही पुलिस और एसओजी की टीम ने घेराबंदी कर दोनों को कोर्ट में पेश होने से पहले ही गिरफ्तार कर लिया. दोनों को गिरफ्तार कर पुलिस टीम उन्हें हल्द्वानी कोतवाली ले आई. कोतवाली लाते ही माही आर्या ने सहज ही अपना जुर्म कुबूल कर लिया. उस ने स्वीकार किया कि उस ने ही सपेरे से सांप मंगा कर अंकित को कटवाया था, जिस के कारण ही उस की मौत हुई थी.

पुलिस के सामने उस ने अपनी जिंदगी की जो फाइल खोल कर रखी, उस से इश्क, सैक्स, धोखा और कत्ल की लंबी कहानी उभर कर सामने आई.

स्कूल टाइम में ही बहक गई थी माही

नैनीताल जिले के हल्द्वानी शहर से रामपुर रोड पर लगभग 3 किलोमीटर दूर एक गांव पड़ता है प्रेमपुर लोश्यानी. माही आर्या उर्फ डौली का जन्म इसी गांव के एक साधारण परिवार में हुआ था. भले ही माही आर्या ने एक साधारण परिवार में जन्म लिया था. लेकिन जितनी देखनेभालने में वह खूबसूरत थी, उस से कहीं ज्यादा महत्त्वाकांक्षी भी थी. गरीबी में जन्म लेने के बाद उस का पालनपोषण भी आर्थिक तंगी में ही हुआ. लेकिन उस की खूबसूरती ने गरीबी के आगे भी हार नहीं मानी थी.

जैसेजैसे उस ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा, उस की सुंदरता में और भी निखार आता गया. जिस के कारण वह आसपड़ोसियों की भी चहेती बनी हुई थी. गरीबी से लड़तेझगड़ते उस ने किसी तरह से हाईस्कूल पास कर लिया. लेकिन हालात से हार कर उसे अपनी आगे की पढ़ाई बंद करनी पड़ी.

हाईस्कूल तक आतेआते कई युवक उस की खूबसूरती के दीवाने बन गए थे. उन सब में उस का सब से ज्यादा चहेता था विपिन कुमार (काल्पनिक नाम). स्कूल में सब से ज्यादा उस का टाइम उसी के साथ व्यतीत होता था. विपिन उस के दुखदर्द को भलीभांति समझता था.

यही कारण था कि माही सब से ज्यादा उसी पर विश्वास करती थी, जिस के कारण दोनों के बीच गहरी दोस्ती हो गई थी. उसी दोस्ती के सहारे माही ने उसे अपना जीवनसाथी बनाने का प्रण भी कर लिया था. उसी दौरान दोनों के बीच अवैध संबंध भी स्थापित हो गए थे. यह सिलसिला दोनों के बीच काफी समय चलता रहा. लेकिन उन की यह प्रेमगाथा जल्दी ही जगजाहिर हो गई. जिस के कारण माही पर उस के घर वालों की पाबंदी लग गई और उस की आगे की पढ़ाई पर रोक लग गई.

आगे की पढ़ाई पर रोक लगते ही माही तिलमिला उठी. वह विपिन के वियोग में घुटघुट कर जीने लगी. उस के बाद भी दोनों ने जैसेतैसे मोबाइल के द्वारा संपर्क बनाए रखा. अपने घर वालों की पाबंदी से तंग आ कर माही ने विपिन पर घर से भागने का दबाव बनाया तो उस ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया.

विपिन ने अपने घर वालों से माही के साथ शादी करने की बात रखी तो उन्होंने उसे अपनाने से साफ मना कर दिया. यह बात सुनते ही माही को जिंदगी का सब से बड़ा झटका लगा. जब उस के घर वालों को पता चला कि वह अभी भी विपिन की पीछे पड़ी हुई है तो उन्होंने उसे घर से निकाल दिया. यह 2008 की बात है.

माही के साथ हुआ गैंगरेप

उस के बाद वह जिंदगी और मौत से संघर्ष करते हुए इधरउधर भटकने लगी. उस वक्त उस की खूबसूरती ही उस के लिए अभिशाप बन गई थी. घर वालों ने ठुकराया तो वह हल्द्वानी आ गई. हल्द्वानी आते ही उस के साथ गैंगरेप की घटना घटी. जिस से आहत हो कर उस ने अधिक मात्रा में नींद की गोलियां खा लीं.

उस की हालत बिगड़ गई. लेकिन जैसे ही उसे होश आया तो उस ने अपने को एक बूढ़ी औरत के घर में पाया. उस के ठीक होने तक उस बूढ़ी औरत ने उस की खूब सेवा की. बूढ़ी औरत की तरफ से सहानुभूति मिलते ही वह उसी के पास रहने लगी. लेकिन कुछ ही दिन बाद उसे पता चला कि वह उस औरत के पास आने के बाद एक दलदल में फंस कर रह गई.

हालांकि वह औरत बड़े लोगों के यहां पर काम कर के अपनी गुजरबसर करती थी. लेकिन उस के कुछ ऐसी औरतों से भी संबंध थे, जो जिस्मफरोशी के धंधे से जुड़ी थीं. माही ने जिंदगी से हार मानने हुए उन्हीं औरतों के साथ काम करना शुरू कर दिया. जहां पर रह कर माही की आर्थिक स्थिति सुधरी तो उसे पैसे का लालच आने लगा.

उसी धंधे के सहारे वह कुछ ही दिनों में पैसों में खेलने लगी और जल्दी ही उस ने शहर के बड़ेबड़े लोगों के साथ मजबूत संबंध बना लिए थे. उसी दौरान उस पर शहर के एक नामीगिरामी कांग्रेस नेता की कृपा बरसी और वह मकान मालिक बन बैठी.

उस कांग्रेसी नेता ने उस से खुश हो कर हल्द्वानी के गोरापड़ाव में उस का मकान ही बनवा दिया था. मकान बनते ही माही उस घर में अकेली ही ठाटबाट से रहने लगी थी. यही नहीं, उस ने अपने घर के कामकाज के लिए एक नौकरानी और नौकर भी रख लिया था.

कालगर्ल माही के ठाटबाट और रहनसहन से हल्द्वानी के पूर्व सभासद का बेटा भी उस के संपर्क में आया. वह माही की सुंदरता पर रीझ गया और उस ने उस के साथ दोस्ती करने के बाद उस से शादी भी कर ली थी. सभासद के बेटे के साथ शादी करने के बाद वह कुछ दिन अपनी ससुराल में रही.

लेकिन शादी के बाद भी उस की पुरानी हरकतें छूटने को तैयार नही थीं. जिस से उस के ससुराल वाले बुरी तरह से तंग आ चुके थे. यही कारण रहा कि कुछ ही दिनों में उसे शादी जैसा बंधन अखरने लगा. उस के बाद वह ट्रांसपोर्ट नगर स्थित अपनी ससुराल छोड़ कर गोरापड़ाव में अपने घर आ कर रहने लगी थी.

जिस्म परोस कर कमाने लगी पैसे

अपनी ऊंची ख्वाहिशों के कारण माही समाज में अकेली ही रह गई थी. उस ने अपने जिस्म को बेच कर इतना पैसा  कमा लिया था कि वह ऐशोआराम की जिंदगी जी रही थी. एक बार वह जिस्मफरोशी के धंधे में उतरी तो उस ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. अपने जिस्म के बूते पर उस ने जो चाहा उसे हासिल कर लिया. उसी वक्त उस ने एक कार खरीदने का मन बनाया.

कार खरीदने का मन बनाते ही उस ने पुरानी कार की तलाश शुरू कर दी थी. अंकित चौहान पुरानी कार खरीदनेबेचने का काम करता था. वह कार खरीदने के लिए उस से मिली. माही की खूबसूरती देखते ही अंकित चौहान भी उस का दीवाना हो गया. उसी बहाने से अंकित चौहान ने उस का मोबाइल नंबर भी ले लिया था.

फिर दोनों में जल्दी ही दोस्ती भी हो गई. धीरेधीरे दोनों की नजदीकियां बढ़ीं तो वह भी उस के घरेलू कामों में उस की सहायता करने लगा था. अंकित हर रोज रात को माही के पास जाता था. वहीं पर रात का खाना खाता और उस के साथ ही रात रंगीन करता था. माही को पता था कि अंकित बहुत बड़ी प्रौपर्टी का मालिक है. उस के पास उस का अपना होटल भी है.

यही सोच कर उस ने उस के साथ शादी करने का मन बनाया. उस ने कई बार उस से शादी करने वाली बात भी कही, लेकिन उस ने एक कान से सुन कर दूसरे कान से बाहर निकाल दिया. जिस से माही को लगने लगा था कि वह केवल उस की देह का ही दीवाना है.

उसी दौरान माही को जानकारी मिली कि वह उस के साथसाथ किसी अन्य युवती से भी प्यार करता है. यह जानकारी मिलते ही माही परेशान हो उठी. फिर माही ने उस से पूरी तरह से पीछा छुड़ाने का मन बना लिया था. लेकिन इस के बावजूद अंकित उस पर अपना ही अधिकार जमाता था. हर रात उसी के साथ खातापीता और फिर उसे मारनेपीटने भी लगा था.

अंकित के व्यवहार से वह समझ गई कि वह उस से किसी भी कीमत पर शादी करने वाला नहीं. वह केवल उस के शरीर का ही उपयोग कर रहा है. उस के बाद धीरेधीरे उस के मन में अंकित के प्रति नफरत पैदा हो गई थी.

दीप कांडपाल बना नया प्रेमी

साल 2016 में उस की मुलाकात मोटाहल्दू निवासी दीप कांडपाल से हुई. दीप कांडपाल शराब बेचने का अवैध धंधा करता था. उस के साथ ही वह प्रौपर्टी खरीदनेबेचने का काम भी करता था. उस के पास काफी रुपयापैसा था. दीप कांडपाल भी उस की खूबसूरती पर इस कदर लट्टू हुआ कि उसे देखते ही पहली मुलाकात में उस से दोस्ती कर ली.

दीप कांडपाल से दोस्ती होते ही माही ने अंकित की अनदेखी करना शुरू कर दिया था. माही के लिए मर्द बदलना कपड़े बदलने के बराबर हो चुका था. कुछ ही दिनों में उस ने दीप कांडपाल के साथ भी संबंध बना लिए. वह भी उस के घर आनेजाने लगा था. यही नहीं, दीप कांडपाल ने उसे प्रौपर्टी डीलिंग के काम में अपने साथ रख लिया था.

माही ने पहले से ही अपने घर के काम के लिए ऊषा, उस के पति रामऔतार को रख रखा था. ऊषा ही माही के घर के कामकाज करने के साथ ही उस का खाना भी बनाती थी. माही के घर के सामने ही एक खाली प्लौट पड़ा हुआ था. ऊषा ने वहीं पर एक झोपड़ी डाल कर अपना बसेरा बना लिया था. अंकित ऊषा से बुरी तरह से चिढ़ता था. उस का भी एक कारण था कि ऊषा हर वक्त उसी के घर पर पड़ी रहती थी.

अंकित की मारपीट से बचने के लिए वह कभीकभी खाना भी वहीं पर खाती थी, जिस के कारण वह ऊषा देवी और उस के पति को अपनी अय्याशी में बाधा मानता था. जबकि उस से तंग आ कर दीपू कांडपाल, रामऔतार व उस की पत्नी ऊषा से उस की घनिष्ठता बढ़ गई थी.

अंकित से परेशान एक दिन माही ने किसी ज्योतिष को अपना हाथ दिखाया. तब उस ज्योतिष ने माही का हाथ देखते हुए बताया कि उस पर कालसर्प दोष चल रहा है, उस से छुटकारा पाने के लिए उसे कालसर्प दोष की पूजा करानी होगी. उस के लिए एक जहरीले नाग की जरूरत होगी.

अब से लगभग 8 महीने पहले माही की मुलाकात सपेरे रमेश नाथ से हुई. रमेश नाथ गलीगली घूम कर अपनी रोजीरोटी चलाता था. रमेश नाथ से मिल कर उस ने उस से एक जहरीला सांप लाने को कहा. रमेश नाथ जंगल से एक सांप पकड़ कर लाया. उस के बाद माही ने अपने घर में कालसर्प दोष की पूजा कराई. जिस के बाद उस ने रमेश नाथ को अपना गुरु मान लिया था.

रमेश नाथ तभी से बराबर उस के संपर्क में बना हुआ था. उसी आनेजाने के दौरान माही ने सपेरे रमेश नाथ के साथ भी अबैध संबंध बना लिए थे. वही पर रमेश नाथ की मुलाकात दीप कांडपाल, ऊषा और उस के पति रामऔतार से हुई.

अंकित नहीं छोड ऱहा था माही का पीछा

हालांकि माही ने अंकित से बात करना बिल्कुल ही बंद कर दिया था, इस के बावजूद अंकित उस का पीछा छोडऩे को तैयार न था. अंकित से तंग आ कर एक दिन माही स्कूटी से उस के घर के पास पहुंची और उस से कहा कि वह आज उस के घर वालों से उस की शिकायत करने आई है.

यह बात सुनते ही अंकित ने उसे उस वक्त तो समझाबुझा कर वापस भेज दिया. लेकिन कुछ ही दिनों में वह फिर से अपनी हरकतों पर आ गया. अंकित ने सोचा यह सब उस की नौकरानी ऊषा ही करा रही है. अंकित ने उस पर शक किया. उस के बाद उस ने खाली प्लौट के मालिक से शिकायत कर कहा कि वह बंगालन है वह आप के प्लौट पर टोनाटोटका भी करा सकती है. यह बात सुनते ही उस प्लौट के मालिक ने अपने प्लौट से उस की झोपड़ी हटवा दी.

इस मामले में दीप कांडपाल और अंकित में भी मनमुटाव हो गया था. झोपड़ी हटने के बाद ऊषा और उस का पति रामऔतार माही के घर पर ही रहने लगे थे. इस सब से तंग आ कर माही ने दीप कांडपाल के साथ मिल कर अंकित को मारने का प्लान बनाया.

अंकित को मौत की नींद सुलाने की योजना बनते ही माही और दीप कांडपाल ने एक टीवी सीरियल देखना शुरू किया. जिस से उन्हें सहज ही अंकित को मौत देने का कोई उचित तरीका मिल सके. सीरियल देख कर उन्हें सब से अच्छा तरीका सांप से कटवा कर मौत की नींद सुलाने का अच्छा लगा. उन के लिए सांप की व्यवस्था करने के लिए रमेश नाथ मौजूद था.

माही ने तुरंत ही रमेश नाथ को फोन कर के अपने घर बुला लिया. उस के बाद माही, दीप कांडपाल, ऊषा, रामऔतार और रमेश नाथ सब एक हो गए. जब अंकित को मौत की नींद सुलाने का पक्का प्लान बन गया तो माही ने रमेश नाथ से एक सांप की व्यवस्था करने को कहा.

उसी दौरान 6 जुलाई, 2023 को रमेश को फोन पर किसी ने बताया कि पंचायतघर के पास ब्यूटीपार्लर में एक सांप घुसा हुआ है. यह जानकारी मिलते ही रमेश नाथ ने मौके पर जा कर कोबरा प्रजाति का वह सांप पकड़ कर अपने पास रख लिया. यह बात उस ने माही और दीप कांडपाल को भी बता दी.

कोबरा से डसवा कर प्रेमी को दी मौत

सांप की व्यवस्था होते ही माही ने 8 जुलाई, 2023 को अंकित को मौत की नींद सुलाने का प्लान बनाया. क्योंकि उस दिन अंकित का बर्थडे था. उस दिन अंकित माही के घर पहुंचा और वहां पर मौजूद सभी लोगों के साथ शराब पी कर मौजमस्ती की. लेेकिन उस दिन ये लोग अंकित को मारने में नाकामयाब रहे.

उस के बाद 14 जुलाई को योजनानुसार माही ने अंकित को अपने घर बुलाया. उस दिन माही के घर दीप कांडपाल, सपेरा रमेश नाथ, नौकरानी ऊषा और उस का पति रामऔतार सभी मौजूद थे. माही ने सपेरे रमेश नाथ, ऊषा और उस के पति को इस मामले में सहयोग करने के लिए 10-10 हजार रुपए भी दिए.

अंकित के आने से पहले माही ने चारों को मंदिर वाले कमरे में रहने को कहा था. अंकित के आते ही वह उसे ले कर अपने बैडरूम में चली गई. माही ने वहीं पर पहले से ही जहर मिली शराब रख रखी थी. अंकित के साथ प्यार का नाटक करते हुए उस ने उसे जहरीली शराब पिला दी. जिस के पीते ही वह बेहोश हो गया.

अंकित के बेहोश होते माही ने चारों को बाहर बुला लिया. माही ने चारों आरोपियों की सहायता से उसे बैड पर उलटा लिटा कर उस के ऊपर एक कंबल डाल दिया. उस को उलटा लिटाते ही दीप कांडपाल ने उस के हाथ पकड़े और ऊषा व उस के पति ने उस के पैर पकड़े. उस के बाद सपेरे ने कोबरे से उस के पैर में डसवाया. फिर सभी उस के खत्म होने का इंतजार करने लगे.

लेकिन 10 मिनट गुजर जाने पर भी अंकित के शरीर में यूं ही हलचल होती रही. जिस के बाद फिर से दूसरे पैर में कोबरा से डसवा दिया, ताकि वह जल्दी खत्म हो जाए. इस के कुछ देर बाद ही अंकित की मौत हो गई.

लाश नहीं लगा सके ठिकाने

अंकित की हत्या करने के बाद उस की लाश को भुजियाघाट के पास फेंकने की योजना थी. अंकित की मौत हो जाने के बाद उस के शव को उसी की कार की पिछली सीट पर डाला. दीप कांडपाल कार चला रहा था. रमेश नाथ अगली सीट पर बैठा था.

रात के 11 बजे दोनों कार में शव डाल कर भुजियाघाट पहुंचे, लेकिन उस वक्त वहां पर कुछ कारें खड़ी थीं. जिस के कारण उन्हें वहां पर शव फेंकने का मौका नहीं मिला. इस की जानकारी दीप कांडपाल ने माही को दी और फिर कार को ले कर तीनपानी रेलवे क्रौसिंग के पास पहुंचे.

माही ने पहले ही दिल्ली के लिए कार बुक कर रखी थी. दीप कांडपाल से बात होते ही माही नौकर नौकरानी को साथ ले कर रेलवे क्रौसिंग पर पहुंची. उस के बाद अंकित की कार का एसी औन कर कार स्टार्ट कर के छोड़ दी. बाद में सभी आरोपी दिल्ली के लिए बुक कार से फरार हो गए.

माही की एक बहन की शादी दिल्ली में हुई थी. दिल्ली पहुंचते ही माही ने अपनी बहन से कहा कि हम 5 लोग तेरे घर पर आ रहे हैं. लेकिन उस की बहन उस की हरकतों को अच्छी तरह से जानती थी. इसी कारण उस ने उसे अपने घर आने से मना कर दिया.

उस के बाद पांचों ने रात दिल्ली में गुजारी और अगले ही दिन बस से बरेली पहुंचे. जहां पर पहुंचते ही सपेरा रमेश नाथ अपने गांव भोजीपुरा जाने की बात करने लगा. रमेश के अलग होने से पहले ही माही ने उस से कहा था कि वह अपना मोबाइल बंद ही रखे अन्यथा उस के कारण हम मुसीबत में भी फंस सकते हैं.

बरेली से नौकर नौकरानी दीप कांडपाल और माही को साथ ले कर अपने घर चले गए. उस के बाद वहां से नेपाल भाग गए. इन चारों से अलग होते ही रमेश नाथ ने अपना मोबाइल औन कर लिया था. उस ने सोचा था कि अगर किसी की काल भी आई तो वह उसे उठाएगा ही नहीं. लेकिन उसे पता नहीं था कि मोबाइल औन होते ही पुलिस उस के पास पहुंच जाएगी.

दुनिया में सब से ज्यादा शातिर इंसान का दिमाग ही होता है. जिस को चाहे जैसे यूज करो. इस केस की मास्टमाइंड रही जहरीली प्रेमिका माही उर्फ डौली ने भी यही सोचा था कि वह अंकित को सांप से कटवा कर पाकसाफ बच जाएगी. लेकिन पुलिस के लंबे हाथों से वह नहीं बच पाई.

इस मर्डर केस का खुलासा करने वाली टीम को एसएसपी पंकज भट्ट ने 5 हजार रुपए बतौर पुरस्कार देने की घोषणा की.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

शादी के लिए टीवी ऐंकर प्रणव का अपहरण

29 वर्षीय भोगिरेड्डी तृष्णा ने एक मैट्रिमोनी ऐप पर एक युवक की तसवीर जैसे ही देखी, वह उस के प्रति आकर्षित हो गई थी. उसे अपने दिल में उस के प्रति धड़कन सी महसूस होने लगी थी. तृष्णा ने उस के प्रोफाइल को गौर से पढ़ा तो एक ही नजर में दिल चुराने वाले अंजान शख्स का नाम प्रणव सिस्टला था, जो एक सौफ्टवेयर इंजीनियर होने के साथ एक प्रसिद्ध तेलुगू टीवी शो का ऐंकर व वेब सीरीज का अभिनेता भी था.

वह पहली ही नजर में उसे अपना दिल दे बैठी थी. इस के बाद धीरेधीरे दोनों के बीच इंस्टाग्राम और वाट्सऐप के जरिए बातचीत होने लगी. दोनों एकदूसरे से अब अपने दिल की बातें भी शेयर करने लगे थे.

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तृष्णा तो उसे अपना दिल ही दे बैठी थी. तभी एक दिन टीवी ऐंकर ने उसे मैसेज में लिखा, ”तृष्णा, मैं शेयर मार्केट व अन्य फाइनैंशियल कंपनियों में अपना पैसा इनवैस्ट करता रहता हूं, जिस से मुझे करोड़ों का फायदा होता है. तुम्हारे लिए मेरी ओर से एक औफर है, क्या तुम स्वीकार करना चाहोगी?’’

अपने प्रेमी की ओर से ऐसा मैसेज पा कर तृष्णा का तो दिल पहले से ही बागबाग हो उठा था. उस ने लिखा, ”प्रणव, मैं ने तो अपना दिल तुम्हारी फोटो देख कर ही दे दिया था. तुम्हारी हर बात मुझे मंजूर है.’’

उस के बाद प्रणव ने उसे 40 लाख रुपए इनवैस्ट करने को कहा तो तृष्णा तुरंत तैयार हो गई और उस ने टीवी एंकर के बताए अनुसार बैंक खाते में उसी दिन 40 लाख रुपए ट्रांसफर करवा दिए.

जब से तृष्णा ने टीवी एंकर प्रणव के बताए खाते में 40 लाख रुपए डाले थे, तब से ही उस ने अपना इंस्टाग्राम और वाट्सऐप नंबर ब्लौक कर दिया था.

40 लाख गंवाने के बाद हुआ असली टीवी एंकर प्रणव सिस्टला से परिचय

इन सब बातों से तृष्णा का माथा एकदम से ठनक सा गया था. उस ने जब मैट्रिमोनी की साइट ठीक से देखनी शुरू की तो उस में उसे फोन नंबर मिल गया. तृष्णा ने तुरंत उस मोबाइल पर फोन कर दिया.

”हैलो, आप कौन बोल रहे हैं? मुझ से क्या काम है?’’ दूसरी ओर से एक पुरुष स्वर सुनाई दिया.

”देखिए, मैं भोगिरेड्डी तृष्णा बोल रही हूं. आप कौन बोल रहे हैं?’’ तृष्णा ने पूछा.

”मैं प्रणव सिस्टला बोल रहा हूं, बताइए मुझे आप ने क्यों फोन किया है?’’ दूसरी ओर से सुनाई पड़ा.

”आप ने लोगों को ठगने का कोई धंधा खोल रखा है क्या? बताओ, मेरे भेजे हुए 40 लाख रुपए का तुम ने क्या किया? तुम तो एक धोखेबाज इंसान निकले.’’ तृष्णा ने चीखते हुए कहा.

”देखिए मैम, लगता है आप भी दूसरे लोगों की तरह चैतन्य की धोखाधड़ी का शिकार हो गई हैं. मुझे पहले भी कुछ लोगों की ओर से इस बारे में शिकायत आ चुकी है, जिस के बाद मैं ने अपने इंस्टाग्राम और फेसबुक के माध्यम से लोगों को सावधान रहने की चेतावनी दी थी. इस में मेरा कोई दोष नहीं है,’’ प्रणव ने विनम्रता से कहा.

इस का मतलब साफ था कि प्रणव सिस्टला के नाम से चैतन्य रेड्डी ठगी का काम कर रहा था. उस के बाद प्रणव ने पुलिस स्टेशन जा कर शिकायत की कि उस की तसवीर का चैतन्य रेड्डी नामक व्यक्ति गलत इस्तेमाल कर लोगों से धोखाधड़ी कर रहा है.

उस की शिकायत पर पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर ली और केस वहीं पर बंद हो गया. हालांकि हैदराबाद पुलिस धोखेबाज चैतन्य को अभी तक गिरफ्तार करने में कामयाब नहीं हो पाई है.

तृष्णा प्रणव पर क्यों डाल रही थी शादी का दबाव

चैतन्य रेड्डी द्वारा भारत मैट्रिमोनी पर फरजी अकाउंट बनाने की जब सिस्टला ने पुलिस में शिकायत की, तब से चैतन्य रेड्डी फरजी अकाउंट बंद कर फरार हो गया था. उस के बाद से तृष्णा हर दिन प्रणव को फोन करने लगी थी. पहले तो वह 2-3 बार ही फोन करती थी, मगर कुछ दिनों से वह दिनरात कई बार प्रणव को फोन करने लगी थी.

एक दिन तो तृष्णा ने अपने दिल की बात प्रणव से कह ही डाली थी. जब प्रणव ने उस का फोन उठाया तो तृष्णा ने कहा, ”प्रणव, एक बात कई दिनों से मैं आप से कहना चाह रही थी, यदि आप नाराज न हों तो क्या मैं कह सकती हूं?’’

”तृष्णा, देखो मैं बहुत बिजी रहता हूं, आप बारबार फोन कर देती हैं जिस के कारण मैं डिस्टर्ब हो जाता हूं. हां बोलो, क्या कहना चाहती थी आप?’’ प्रणव ने कहा.

”प्रणवजी, मैं ने जिस दिन आप की फोटो मैट्रिमोनी साइट पर देखी थी, बस उसी दिन से मेरे मनमंदिर में आप की छवि घर कर गई है. मुझे अपने 40 लाख रुपए खोने का बिलकुल भी मलाल नहीं, मुझे तुम मिल गए तो सचमुच दुनिया की सब से बड़ी खुशी मिल गई है.

”अब मैं शादी करूंगी तो केवल तुम्हीं से करूंगी. बोलो, करोगे न तुम मुझ से शादी? मुझे कहीं तुम मझधार में तो नहीं छोड़ोगे? मैं तुम्हें यकीन दिलाती हूं कि मैं कभी तुम्हें शिकायत का मौका नहीं दूंगी. मैं जिंदगी की सारी खुशियां तुम्हारे कदमों में डाल दूंगी. तुम सुन रहे हो न प्रणव!’’ तृष्णा ने आखिरकार अपने दिल की बात प्रणव से कह ही डाली.

”देखो तृष्णा, ये प्यार व्यार से मैं काफी दूर रहता हूं. अच्छा होगा कि तुम ये नाटक किसी और के साथ करो तो बेहतर होगा. मेरे पास तुम्हारी इस तरह की फालतू बातें सुनने के लिए बिलकुल भी वक्त नहीं है.’’ कहते हुए प्रणव ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

रोजरोज तृष्णा की ओर से इस तरह की बातें सुनसुन कर अब प्रणव काफी बोर और परेशान हो चुका था. उस ने तंग आ कर तृष्णा का मोबाइल नंबर ही ब्लौक कर दिया था.

प्रणव की कार पर क्यों लगाया ट्रैकर

भोगिरेड्डी तृष्णा प्रणव सिस्टला को इस कदर चाहने लगी थी कि उस ने उस से शादी का मन ही बना लिया था. उस ने अपने दिल की बात प्रणव को फोन पर भी बता दी थी, मगर दूसरी तरफ प्रणव ने तृष्णा का मोबाइल नंबर ही ब्लौक कर दिया था.

प्रणव के इस कदम से तृष्णा बुरी तरह से बौखला गई थी. उस के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी. उस ने अपनी एक कंपनी से अपने 4 जूनियर साथियों, जोकि अपराधी प्रवृत्ति के थे, से बात की. उस ने उन्हें एक बड़ी रकम का लालच दे कर प्रणव सिस्टला की गाड़ी में एक एयरटैग (जीपीएस) ट्रैकर लगवा दिया था. इस के बाद वह प्रणव की हर गतिविधि पर नजर रखने लगी थी.

तृष्णा अभी भी इस बात का इंतजार कर रही थी कि प्रणव उस के फोन नंबर को अनब्लौक कर देगा, लेकिन जब 3 महीने तक भी प्रणव ने उस का नंबर अनब्लौक नहीं किया तो वह प्रतिशोध में बेहद आक्रामक हो गई थी.

शादी के लिए किया ऐंकर का अपहरण

जब प्रणव की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली तो तृष्णा ने प्रणव का अपहरण करने की योजना बना डाली. उस ने अपने कार्यालय में काम करने वाले कुछ कर्मचारियों को अपनी इस योजना में शामिल कर लिया.

उस ने अपने एक कर्मचारी को इस अपहरण के लिए 50 हजार रुपए एडवांस भी दे दिए. प्रणव की गाड़ी में तो तृष्णा ने पहले से ही जीपीएस ट्रैकर लगवा रखा था, जिस से वह उस की हर गतिविधि पर नजर रख रही थी. वह बस मौके की तलाश में थी.

आखिरकार 11 फरवरी, 2024 की रात को उन्हें मौका मिल गया और तृष्णा के भाड़े के बदमाशों ने प्रणव का अपहरण कर लिया और अपहरण के बाद उसे तृष्णा के औफिस ले जा कर उसे तृष्णा के सुपुर्द कर दिया.

”अच्छा तो इन सब के पीछे तुम थी? मेरा जबरन किडनैप क्यों करवा लिया तुम ने? आखिर मुझ से क्या चाहती हो तुम?’’ प्रणव ने चीखते हुए कहा.

”मेरे भोले प्रेमी, इतना गुस्सा तुम्हारे चेहरे पर कुछ अच्छा नहीं लगता. लगता है तुम्हारी खातिरदारी करनी ही पड़ेगी. शायद जब तुम्हें मार पड़ेगी, तब मेरी बात तुम समझ पाओगे!’’ तृष्णा ने गुस्से से कहते हुए अपने शागिर्दों को इशारा कर दिया.

इशारा मिलते ही तृष्णा के किराए के चारों बदमाश प्रणव सिस्टला पर बुरी तरह से टूट पड़े थे, उन्होंने मिल कर लातघूंसों और बेल्ट से अच्छी तरह से प्रणव की पिटाई कर दी, जिस से वह लहूलुहान हो कर जमीन पर गिर पड़ा था.

”हां, कैसी लगी खातिरदारी मेरे प्रणवजी? तसल्ली हो गई या अभी और करनी है?’’ तृष्णा ने रिवौल्विंग चेयर पर बैठेबैठे घूमते हुए मुसकराते हुए पूछा.

अब तक प्रणव सिस्टला अच्छी तरह से समझ चुका था कि उस का पाला वाकई काफी धुरंधरों से पड़ चुका है.

इधर प्रणव सिस्टला लहूलुहान हो कर फर्श पर गिरा पड़ा था तो दूसरी तरफ तृष्णा और उस के किराए के गुंडे प्रणव की स्थिति देख कर ठहाके लगा रहे थे. प्रणव की स्थिति अब करो या मरो की हो गई थी. वह अब इस बात को अच्छी तरह से समझ चुका था कि ऐसी स्थिति में उन लोगों से किसी तरह समझौता हो तो कम से कम अपनी जान तो बचा ली जाए.

वैसे भी प्रणव केवल एक सौफ्टवेयर इंजीनियर ही नहीं बल्कि एक मंझा हुआ कलाकार भी था ,जो स्क्रिप्ट पर अभिनय भी करता था. उस के अंदर का कलाकार अब पूरी तरह से जाग चुका था. वह जमीन पर घुटनों के बल बैठा हुआ था. उस के दोनों हाथ रस्सी से बंधे हुए थे.

”मैम, आखिर आप मुझ से क्या चाहती हैं? मैं आप की हर बात मानने के लिए तैयार हूं.’’ प्रणव बड़े मायूस स्वर में बोला.

”अच्छा तो अब आया है ऊंट पहाड़ के नीचे. पहले मेरा नंबर ब्लौक कर दिया, अब कह रहे हो कि मैं हर बात मानने के लिए तैयार हूं.’’ तृष्णा ने बड़ी अदा से मुसकराते हुए कहा.

”जी, मैं अभी आप का नंबर अनब्लौक कर दूंगा.’’ प्रणव घिघियाते हुए बोला.

”मुझ से बातें करोगे न?’’ तृष्णा ने पूछा.

”जी, जब आप का मन करे, आप मुझ से बातें कर सकती हैं. अब तो मैं रोज आप से खुद बातें किया करूंगा.’’ प्रणव बोला.

”मुझ से शादी करोगे या नहीं? अभी बता दो?’’ जब तृष्णा ने यह पूछा तो प्रणव ने बड़े नाटकीय अंदाज में जवाब दिया, ”तृष्णाजी, आप ने मेरी इतनी पिटाई करवा दी. इस समय तो मैं बुरी तरह से घायल हूं. लेकिन मैं वादा करता हूं कि तुम्हारे साथ ही शादी करूंगा. लेकिन अभी मुझे थोड़ा वक्त चाहिए.’’

”ये हुई न बात! मैं तुम्हारे पौजिटिव एटीट्यूट से बहुत खुश हूं प्रणव. बोलो, अब तुम क्या चाहते हो?’’ तृष्णा ने खुश होते हुए कहा.

”तृष्णाजी, मैं ने आप से फोन पर बातें करने का और शादी करने का वायदा तो कर लिया है न. प्लीज, अभी आप मुझे मेरे घर जाने की अनुमति दें तो आप की बहुत मेहरबानी होगी!’’ प्रणव ने बड़े शायराना अंदाज में यह बात कही तो तृष्णा खुश हो गई थी, ”प्रणव, तुम्हें अपने आदमियों के साथ तुम्हारे घर पर छुड़वा दूं. आप की तबीयत शायद ठीक सी नहीं लग रहा है.’’ तृष्णा ने कहा.

”तृष्णाजी, जब आप के आदमी मुझे मेरे घर छोडऩे जाएंगे तो मुझे इस हालत में देख कर किसी को भी शक हो जाएगा, क्योंकि मैं बहुत अधिक घायल अवस्था में हूं. वैसे मैं अपनी गाड़ी खुद ड्राइव कर के अपने घर तक अकेले जा सकता हूं. फिर मैं अकेले रहूंगा तो कोई न कोई बहाना जरूर बना लूंगा, किसी को बिलकुल भी शक नहीं होगा,’’ प्रणव बोला.

उस के बाद प्रणव वहां से अपनी गाड़ी में बैठ कर चला गया.

तृष्णा के चंगुल से छूट कर प्रणव घर जा रहा था. वह अब तक के 2 सालों के तृष्णा के व्यवहार को पूरी तरह समझ चुका था. वह जान चुका था कि तृष्णा एक सामान्य व्यवहार वाली युवती नहीं, बल्कि मानसिक रोग से पीडि़त है और अपनी खुशी के लिए कुछ भी कर सकती है.

प्रणव ने अब आखिरी फैसला कर लिया था कि वह तृष्णा की इस हरकत को कभी माफ नहीं करेगा और उस के खिलाफ पुलिस में शिकायत अवश्य करेगा ताकि भविष्य में वह तृष्णा के कहर से बच सके.

जब प्रणव गाड़ी चला रहा था तो उस समय तक सुबह के 6 बज चुके थे. वह सीधा उप्पल पुलिस स्टेशन में पहुंचा और एसएचओ एन. इलेक्शन रेड्डी को अपनी लिखित शिकायत दे दी.

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        एसएचओ इलेक्शन रेड्डी

एसएचओ इलेक्शन रेड्डी ने जब शिकायत पढ़ी और प्रणव से विस्तृत पूछताछ की तो उन का माथा भी ठनक गया. एसएचओ ने इस घटना की खबर तुरंत अपने उच्च अधिकारियों को दी. पुलिस ने तुरंत तत्परता दिखाते हुए भोगिरेड्डी तृष्णा को गिरफ्तार कर लिया.

इस घटना के संबंध में मीडिया को विस्तृत जानकारी देते हुए हैदराबाद मल्काजगिरी के सहायक पुलिस आयुक्त (एसीपी) पुरुषोत्तम रेड्डी ने कहा, ”उप्पल पुलिस स्टेशन के तहत मल्काजगिरी उपखंड के निवासी सौफ्टवेयर इंजीनियर और टीवी एंकर प्रणव सिस्टला ने भोगिरेड्डी तृष्णा नाम की महिला के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज कराया था, जो उस से जबरदस्ती शादी करना चाहती थी, लेकिन प्रणव ने उस से शादी करने से इंकार कर दिया.

उक्त महिला तृष्णा को उप्पल पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है और अन्य की तलाश जारी है. तकनीकी साक्ष्यों का उपयोग करते हुए मामला दर्ज कर लिया गया है और अब उसे अदालत भेजा जाएगा.’’

भोगिरेड्डी तृष्णा केवल एक या दो नहीं, बल्कि पूरी 8 स्टार्टअप कंपनियों के निदेशक (डायरेक्टर) जैसे उच्च पद पर थी. जेएनटीयूएच कालेज औफ इंजीनियरिंग हैदराबाद से इनफार्मेशन टेक्नोलौजी से बीटेक करने के बाद भोगिरेड्डी तृष्णा ने इंडियन इंस्टीट्यूट औफ मैनेजमेंट, कोझिकोड से बिजनैस एडमिनिस्ट्रैशन से एमबीए की पढ़ाई पूरी की थी. तृष्णा की तेलुगू, अंगरेजी, हिंदी और तमिल भाषाओं पर अच्छी पकड़ है.

भोगिरेड्डी तृष्णा कारपोरेट मामलों के मंत्रालय (एमसीए) में निदेशक के रूप में पंजीकृत निदेशक है. वह आई सिक्योर क्लाउड टेक्नोलोजीज प्राइवेट लिमिटेड, तृष्णा सोशल बाट्स टेक्नोलोजिज प्राइवेट लिमिटेड,

तृष्णा ट्रिशन पिक्सेलाइड्स प्राइवेट लिमिटेड, तृष्णा ब्रांडबे सोशल प्राइवेट लिमिटेड, मार्श मेलोकौस्मेटिक्स प्राइवेट लिमिटेड, गरुड़ सेवेन फूड्स एंड बेवरेजेज प्राइवेट लिमिटेड, फार्मूला ओप्स टेक प्राइवेट लिमिटेड में डायरेक्टर थी. इस के अलावा वह एक्सट्रीम कम्यूट टेक्नोलौजीज प्राइवेट लिमिटेड में निदेशक रह चुकी है.

टीवी ऐंकर प्रणव सिस्टला ने सोशल मीडिया पर शेयर की कहानी

प्रणव सिस्टला हैदराबाद से है. हैदराबाद के सेंट पौल स्कूल से अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद उस ने सीवीआर कालेज औफ इंजीनियरिंग हैदराबाद से इलैक्ट्रिक ऐंड कम्युनिकेशन में बीटेक की पढ़ाई पूरी की थी. एक सौफ्टवेयर इंजीनियर होने के साथसाथ वह एक मौडल, अभिनेता और टीवी एंकर के रूप में भी काम कर रहा था. उस ने ‘लघु जर्नी’ नामक फिल्म में भी अभिनय किया था.

इस के अलावा प्रणव ने ‘वेब सीरीज अन्ना सीजन-2’ और ‘सौफ्टवेयर सत्यभामा’ वेब सीरीज में भी अभिनय किया है. प्रणव एक तेलुगु ऐंकर भी है, जिस ने कई कार्यक्रमों की मेजबानी भी की. इस के अतिरिक्त प्रणव वेब सीरीज ‘ट्विन सिस्टर्स’ में भी अभिनय कर रहा है, जो अभी रिलीज नहीं हुई है.

अपने अपहरण कांड को ले कर तरहतरह की खबरों और कहानियों की पृष्ठभूमि में ऐंकर प्रणव ने सोशल मीडिया पर खुद 3 पेज का एक पत्र जारी करते हुए अपने प्रशंसकों से कहा कि उन्होंने इस मामले में अभी तक किसी से भी मुलाकात नहीं की है. वह हैदराबाद पुलिस को अपना काम करने में सहयोग करेंगे.

इस अपहरण कांड में भोगिरेड्डी तृष्णा सहित कुल 5 लोग शामिल हैं. प्रणव का कहना है कि अजनबियों ने मेरी इंस्टाग्राम तसवीरों का उपयोग कर के वैवाहिक वेबसाइटों पर फरजी अकाउंट बनाए और मेरी फोटो का गलत उपयोग कर के लोगों को गुमराह करते रहे. मुझे पता नहीं कि वह (भोगिरेड्डी तृष्णा) कौन है. मैं ने उसे पहले कभी नहीं देखा. फोन पर बात नहीं हुई.

प्रणव ने आगे बताया कि उस ने पिछले साल सितंबर में मुझ से इंस्टाग्राम पर संपर्क किया था, जब कुछ मेरी समझ में नहीं आया तो मैं ने उसे सुझाव दिया कि मैं साइबर पुलिस में शिकायत कर रहा हूं. उसे भी साइबर पुलिस में शिकायत करनी चाहिए.

उस ने आगे लिखा है कि चाहे कुछ भी हो, परिणाम हमेशा सुखद ही होते हैं. इस घटनाक्रम में किसी को मेरे लिए दुखी होने या खेद महसूस करने की जरूरत नहीं.

इस घटना से दुनिया को पता चल गया है कि कैसेकैसे साइबर अपराध हो रहे हैं. मैं तो यही चाहता हूं कि कोई भी व्यक्ति साइबर क्राइम का शिकार न हो. इस के साथ ही प्रणव सिस्टला ने सभी को सलाह ही कि ‘नौकरी, ऋण, लौटरी और सब से महत्त्वपूर्ण विवाह जैसे घोटालों का शिकार आप में से कोई न बने.’

कहानी लिखे जाने तक हैदराबाद पुलिस भोगिरेड्डी तृष्णा को जेल भेज चुकी थी, जबकि उस के 4 अन्य साथियों की पुलिस सरगरमी से तलाश कर रही थी.

प्यार का जुनून बन जाता है बीमारी

आमतौर पर किसी का पीछा करना, ब्लैकमेल करना, लगातार मैसेज और काल करना आदि स्टाकिंग कहलाता है. लेकिन यदि मनोवैज्ञानिकों की मानें तो यह औब्सेसिव लव डिसऔर्डर भी हो सकता है. अमेरिकी हेल्थ वेबसाइट ‘हेल्थलाइन’ के अनुसार, ‘औब्सेसिव लव डिसऔर्डर (डीएलडी) एक तरह की साइकोलौजिकल कंडीशन है, जिस में लोग किसी एक शख्स पर असामान्य रूप से मंत्रमुग्ध हो जाते हैं और उन्हें लगता है कि वो उस से प्यार करते हैं.

उन्हें फिर धीरेधीरे ऐसा लगने लगता है कि उस शख्स पर सिर्फ उन का हक है और उसे बदले में उन से प्यार करना चाहिए. अगर दूसरा शख्स उन से प्यार नहीं करता तो वे इसे स्वीकार नहीं कर पाते. वो दूसरे शख्स और उस की भावनाओं पर पूरी तरह से काबू पाना चाहते हैं, जोकि इस डिसऔर्डर के अंदर आती है.

यदि हम इस के लक्षणों की बात करें तो इस बीमारी से महिला और पुरुष दोनों ही औब्सेसिव लव डिसऔर्डर के शिकार हो सकते हैं.

इस के कई कारण हो सकते हैं, परंतु मुख्य रूप से किसी के ऊपर एकाएक अधिक आकर्षित होना, खुद पर नियंत्रण न हो पाना और उस के बारे में लगातार सोचते रहना, सामने वाले के रिजेक्शन को स्वीकार न कर पाना, दूसरे की भावनाओं को न समझ कर उसे काबू करने की कोशिश करना, उस के आगे हर तरह के रिश्ते को भूल जाना, उसे बारबार मैसेज या फिर काल करना, उस का बारबार सोशल मीडिया स्टाक करना, लगातार उसे ब्लैकमेल करना या उस पर अपनी बात को मनवाने के लिए दवाब बनाना हो सकता है.

इस के बारे में साइकोथेरेपिस्ट का कहना है कि इस की कई वजहें हो सकती हैं. औब्सेसिव लव डिसऔर्डर की कोई एक ही वजह हो, ऐसा जरूरी नहीं है. कई बार इस का संबंध दूसरी मानसिक तकलीफों से भी होता है. मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी कुछ ऐसी समस्याएं भी औब्सेसिव लव डिसऔर्डर की वजह बन सकती हैं.

वहीं दूसरी ओर साइकोथेरेपिस्ट का इस के बारे में कहना है कि हम कई बार औब्सेसिव लव डिसऔर्डर को बेइंतहा प्यार और दीवानगी समझने की गलती कर बैठते हैं, जबकि ऐसा नहीं होता. उन के मुताबिक औब्सेसिव डिसऔर्डर से पीडि़त व्यक्ति न सिर्फ खुद को नुकसान पहुंचाता है बल्कि किसी दूसरे इंसान को भी मुश्किल और मुसीबत में डाल सकता है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है.

कविता की प्रेम कविता का अंजाम

18 नवंबर की सुबह 8 बज कर 9 मिनट पर पूर्वी दिल्ली के थाना गाजीपुर को फोन पर सूचना मिली कि गाजीपुर के पेपर मार्केट में सीएनजी पंप के सामने खड़े एक ट्रक के पिछले टायर के आगे एक युवक की रक्तरंजित लाश पड़ी है. लाश मिलने की सूचना पर एएसआई धर्मसिंह, हेड कांस्टेबल राजकुमार को साथ ले कर मोटरसाइकिल से पेपर मार्केट पहुंचे. वहां एक 22 पहियों वाली विशालकाय ट्रक खड़ी थी, जिस के बाईं तरफ पहिए के नीचे एक युवक की लाश पड़ी थी, जिस की गरदन को बेरहमी से रेता गया था. गरदन के नीचे काफी खून पड़ा था.

मृतक लाल रंग की चैकदार शर्ट और ग्रे कलर की पैंट पहने हुए था. हत्या का मामला था. एएसआई ने तत्काल इस की सूचना गाजीपुर के थानाप्रभारी अमर सिंह को दे दी. थोड़ी देर में थानाप्रभारी अमर सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए और लाश का बारीकी से मुआयना करने लगे.

मृतक नंगे पैर था और उस के पैर फुटपाथ की तरफ थे. उस का नंगे पैर होना शक पैदा करता था कि उस की हत्या किसी और जगह की गई होगी. उस की गरदन पर दाहिनी ओर किसी धारदार हथियार का गहरा घाव था.

थानाप्रभारी ने आसपास के लोगों और वहां से आनेजाने वालों को रोक कर मृतक की शिनाख्त कराने की कोशिश की. लेकिन उस की शिनाख्त नहीं हो पाई. तब उन्होंने क्राइम टीम बुला कर लाश और घटनास्थल की फोटो करा लीं और लाश 7 घंटे के लिए लालबहादुर शास्त्री अस्पताल की मोर्चरी में रखवा दी.

एएसआई राजेश को घटनास्थल की निगरानी के लिए छोड़ कर थानाप्रभारी अमर सिंह थाने लौट आए. उन्होंने थाने में आइपीसी की धारा 302 के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ मामला दर्ज करा दिया. इस केस की तफ्तीश की जिम्मेदारी उन्होंने स्वयं अपने हाथ में ली. थानाप्रभारी अमर सिंह ने अब तक की सारी काररवाई का ब्यौरा एसीपी आनंद मिश्रा और डीसीपी ओमबीर सिंह को दे दिया.

कल्याणपुरी के एसीपी आनंद मिश्रा ने थानाप्रभारी अमर सिंह, सब इंसपेक्टर सोनू तथा कांस्टेबल नीरज की एक टीम बना कर इस मामले को जल्द से जल्द हल करने के आदेश दिए. पुलिस टीम इस ब्लाइंड मर्डर केस की जांच में जुट गई. थानाप्रभारी टीम के साथ गाजीपुर के पेपर मार्केट में घटनास्थल पर पहुंचे और उन्होंने हत्या से जुड़े संभावित सुरागों की तलाश में वहां के पासपड़ोस के बहुत से लोगों से पूछताछ की. लेकिन उन्हें वहां ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं मिला जो मृतक को पहचानता हो.

कई घंटे तक घटनास्थल की खाक छानने के बाद भी जब अमर सिंह को इस हत्याकांड से जुड़ा कोई सुराग नहीं मिला तो वह वापस थाने लौट आए. उन्होंने सभी निकटवर्ती थानोंं को इस वारदात की जानकारी दे कर उन के यहां हाल ही में गुम हुए लोगों के बारे में पूछताछ की, लेकिन किसी का भी हुलिया मृतक के हुलिए से मेल नहीं खा रहा था.

उसी दिन शाम के वक्त एक औरत अपने 2 जानने वालों के साथ गाजीपुर थाने के ड्यूटी औफिसर के पास पहुंची. उस ने बताया कि उस का पति मिथिलेश ओझा पिछली रात से घर वापस नहीं लौटा है. वह नोएडा में नौकरी करता था. उस ने अपने पति का फोटो भी दिखाया. जब थाने में मौजूद ड्यूटी औफिसर ने उसे अज्ञात मृतक की फोटो दिखाई तो उसे देखते ही वह बुरी तरह से बिलख उठी.

उस ने रोते हुए बताया कि यह फोटो उस के पति मिथिलेश ओझा का है. इस के बाद उसे लाश दिखाने के लिए लालबहादुर शास्त्री अस्पताल की मोर्चरी में ले जाया गया, जहां उस ने लाश को देखते ही उस की शिनाख्त अपने पति मिथिलेश ओझा के रूप में कर दी.

लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद उसे थाना गाजीपुर ला कर फिर से पूछताछ की गई. उस ने बताया कि उस का नाम कविता है. वह अपने पति और 2 बच्चों के साथ दल्लूपुरा में किराए के एक मकान में रहती है. कल यानी 16 नवंबर को उस का पति रोज की तरह सुबह घर से काम पर नोएडा के लिए निकला था. वह नोएडा के सेक्टर 63 स्थित एक प्राइवेट कंपनी में ड्राइवर था.

काम खत्म होने के बाद वह रात को 9 बजे तक घर लौट आता था. लेकिन कल रात वह घर नहीं लौटा. पति के नहीं लौटने से वह बहुत परेशान थी. उस ने पति के मोबाइल पर काल भी की लेकिन उस का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ आ रहा था.

कविता ने अपने सभी नातेरिश्तेदारों को फोन कर के पति के बारे में पूछा. लेकिन उसे कहीं से भी मिथिलेश के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. पूरे दिन पति को इधरउधर तलाश करने के बाद वह अपने जीजा अरविंद मिश्रा और पति के दोस्त विजय कुमार के साथ पति की गुमशुदगी दर्ज करवाने थाने आ गई.

कविता के पति मिथिलेश ओझा के कातिलों का सुराग हासिल करने के लिए उस से मिथिलेश की किसी से संभावित दुश्मनी के बारे में पूछताछ की गई. उस ने बड़ी मासूमियत से बताया कि उस का पति बहुत मिलनसार स्वभाव का था. उस की किसी से दुश्मनी नहीं थी. उस की बात सुन कर थानाप्रभारी अमर सिंह सोच में पड़ गए.

दरअसल, ऐसा कोई कारण जरूर था, जिस की वजह से बीती रात उस के पति मिथिलेश ओझा की हत्या हो गई थी. अब या तो कविता को अपने पति की हत्या के कारण की जानकारी नहीं थी, या वह जानबूझ कर पुलिस से कुछ छिपा रही थी. निस्संदेह यह तफ्तीश का विषय था. थानाप्रभारी ने कविता से उस के और उस के पति के साथ उस के सभी नजदीकी परिजनों के मोबाइल नंबर पूछ कर अपनी डायरी में नोट कर लिए. इस के बाद उन्होंने कविता को घर जाने को इजाजत दे दी.

जब इन सभी नंबरों की काल डिटेल्स मंगवाई गई तो विजय कुमार और कविता के फोन नंबरों की काल डिटेल्स की जांच पड़ताल के दौरान थानाप्रभारी अमर सिंह की आंखें चमक उठीं. उन्होंने देखा कि दोनों के बीच मोबाइल पर अकसर बातें होती थीं. घटना वाले दिन शाम के वक्त विजय ने ही मिथिलेश के मोबाइल पर आखिरी काल की थी. यह देख कर उन्हें विजय कुमार और मृतक की पत्नी कविता पर शक हुआ.

उन्होंने विजय को थाने बुला कर उस के और कविता के बीच होने वाली बातचीत के बारे में पूछताछ की. पहले तो विजय कुमार ने उन्हें अपनी बातों से बरगलाने की कोशिश की, लेकिन बाद में वह टूट गया. उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. कविता से भी उस के तथा विजय के संबंधों के बारे में काफी पूछताछ की गई.

पूछताछ के दौरान कविता ने स्वीकार किया कि उस के और विजय कुमार के बीच अवैध संबंध हैं, लेकिन पति की हत्या में उस की संलिप्तता नजर नहीं आई. जबकि विजय ने अपने इकबालिया बयान में बताया कि उस ने अपने दूसरे साथी दुर्गा प्रसाद के साथ मिल कर इस जघन्य वारदात को अंजाम दिया था.

विजय को उसी वक्त गिरफ्तार कर लिया गया. विजय की सुरागरसी पर उस के साथी दुर्गाप्रसाद को भी उसी दिन उस के घर दल्लूपुरा से गिरफ्तार कर लिया गया. पूछताछ के दौरान उस ने मिथिलेश की हत्या में शामिल होने की बात स्वीकार कर ली. दोनों आरोपियों के बयान तथा कविता से हुई पूछताछ के बाद मिथिलेश ओझा की हत्या की एक ऐसी सनसनीखेज दास्तान उभर कर सामने आई.

35 वर्षीय मिथिलेश ओझा बिहार के जिला रोहतास का मूल निवासी था. अपनी पत्नी कविता तथा 2 बच्चों के साथ वह नोएडा के हरौला गांव में किराए के मकान में रहता था. वह नोएडा के सेक्टर-63 स्थित एक प्राइवेट कंपनी की लोडर गाड़ी चलाता था. उस की पत्नी कविता सुंदर और चंचल स्वभाव की थी.

उन्हीं दिनों हरौला गांव मं विजय कुमार ने सुनार की दुकान खोली. दुकान की ओपनिंग के मौके पर उस ने बिहार के लोगों को अपनी दुकान पर आमंत्रित किया था. उस प्रोग्राम में कविता भी काफी सजधज कर आई थी. विजय की नजर जब कविता पर पड़ी तो वह उसे एकटक देखता रह गया. विजय को अपनी तरफ देखता देख कर वह एकदम शरमा गई.

उस वक्त वहां बहुत सारे लोग एकत्र थे, इसलिए विजय ने कविता से कुछ नहीं कहा. फिर भी प्रोग्राम के दौरान उस ने चलाकी से कविता से उस का नाम और मोबाइल नंबर ले लिया. कविता को भी विजय का यह अपनापन बहुत अच्छा लगा. वहां से जाते वक्त उस ने अपने घर का पता बता कर उसे अपने घर चाय पीने के लिए आमंत्रित किया.

एक दिन बाद ही विजय कविता से मिलने उस के घर जा पहुंचा. विजय को अपने घर आया देख कर कविता बहुत खुश हुई. उस ने विजय को बिठा कर उस की खूब आवभगत की. थोड़ी देर के बाद कविता का पति मिथिलेश ओझा भी वहां आ गया. कविता ने विजय का परिचय मिथिलेश से कराया तो वह बड़ी गर्मजोशी से मिला. विजय ने बताया कि वह भी बिहार के रोहतास का रहने वाला है.

कुछ देर वहां रहने के बाद विजय वहां से चला गया, लेकिन इस दौरान आंखों ही आंखों में अपने दिल की बात कविता पर जाहिर कर दी. जवाब में कविता ने भी उस की ओर देख कर आंखों के इशारे से यह जता दिया कि जो आग उस के दिल में लगी है, वही आग उस के सीने में भी धधक रही है.

इस तरह कविता के घर आतेजाते विजय और कविता का मिलनाजुलना शुरू हो गया. एक दिन विजय जानबूझ कर कविता के घर उस समय पहुंचा, जब मिथिलेश घर में नहीं था. कविता ने विजय को घर में बिठा कर उस से मीठीमीठी बातें शुरू कर दीं.

विजय को इसी दिन का इंतजार था. उस ने कविता कोे दरवाजा बंद करने का इशारा किया तो कविता ने धीरे से दरवाजा बंद कर दिया और उस के पास आ कर बैठ गई. एकांत का फायदा उठाते हुए विजय ने कविता को अपनी बांहों में भर लिया.

प्रेमी की गर्म सांसों में पिघल कर कविता ने उसे मनमानी करने की खूली छूट दे दी. उस दिन के बाद जब भी उन्हें मौका मिलता, वे जमाने की आंखों से छिप कर शारीरिक संबंध बना लेते थे. इस तरह 4-5 साल किसी को भी उन के प्रेमिल संबंधों की जानकारी नहीं हुई.

लेकिन बाद में कुछ लोगों ने मिथिलेश को बताया कि उस की गैरमौजूदगी में विजय उस के घर आता है और काफी देर तक रुकता है. यह जानने के बाद मिथिलेश ने कविता को डांटा और भविष्य में विजय से नहीं मिलने को कहा. उस वक्त तो कविता ने उस की बात मान ली, लेकिन बाद में उस का मिलनाजुलना बदस्तूर जारी रहा.

कुछ दिन तक तो मिथिलेश को लगा कि उस की पत्नी सुधर गई है, लेकिन बाद में जब उसे पता चला कि उस की गैरहाजिरी में कविता और विजय का मिलनाजुलना बदस्तूर जारी है तो इस से परेशान हो कर वह हरौला छोड़ कर दिल्ली के दल्लूपुरा में शिफ्ट हो गया.

दूसरी ओर विजय कुमार कविता के इश्क में इस तरह पागल था कि जिस दिन उस की कविता से बात नहीं होती थी, उस के दिल को चैन नहीं मिलता था. कविता के नोएडा से दिल्ली आ जाने के बाद वह सारा दिन कविता से मिलने के बारे में सोचता रहता था.

जब उसे कविता की बहुत याद सताती तो वह उस के मोबाइल पर बातें कर के अपने दिल की चाहत बयां कर लिया करता था. कुछ दिनों के बाद विजय ने कविता से उस के घर का पता पूछा और उस से मिलने उस के घर आना शुरू कर दिया.

अभी मिथिलेश ओझा दल्लूपुरा में नया शिफ्ट हुआ था. वहां उसे जानने वालों की संख्या बहुत कम थी. उस के घर कौन कब आता है… कब जाता है, इस से किसी को कोई मतलब नहीं था. विजय कभी कविता से मिलने उस के घर आ जाता तो कभी कविता उस से मिलने चली जाती थी.

विजय के पास इंडिका कार थी. वह कविता को कार में बिठा कर लौंग ड्राइव पर ले जाता. रास्ते में कहीं एकांत जगह पर कार खड़ी कर के दोनों अपनी वासना की आग ठंडी कर लेते थे. इस तरह कविता और विजय दोनों मिथिलेश की आंखों में धूल झोंक कर काफी दिनों तक शारीरिक संबंध बनाते रहे.

घटना से कुछ दिन पहले एक दिन मिथिलेश ओझा के मकान मालिक ने उसे अपने घर पर बुला कर कहा कि उस ने कल उस के दोस्त विजय की मोटर साइकिल पर कविता को बैठे देखा था. कविता विजय की मोटरसाइकिल के पीछे उस की कमर में हाथ डाले बैठी थी.

यह सुन कर मिथिलेश के तनबदन में आग लग गई. उस ने मकान मालिक का शुक्रिया अदा किया और घर लौट कर कविता को खूब डांट पिलाई. दूसरे दिन वह अपने दोस्त विजय से मिला और उसे अपने घर आने से मना कर के धमकी दी कि अगर उस ने कविता से मिलनाजुलना नहीं छोड़ा तो अपने भतीजे मुन्ना की मदद से उस की हत्या करा देगा.

विजय मिथिलेश की बात सुन कर डर गया. वह जानता था कि गुड़गांव में रहने वाला मिथिलेश का भतीजा मुन्ना कई खतरनाक बादमाशों को जानता है और अगर मुन्ना चाहे तो बड़ी आसानी से बदमाशों से उस की हत्या करा सकता है. दूसरे वह कविता के बिना भी रह नहीं सकता था.

मिथिलेश की धमकी के बाद विजय के मन में सदा यह डर बना रहता था कि अगर उस ने मिथिलेश को अपने रास्ते से नहीं हटाया तो किसी भी दिन उस की हत्या की जा सकती है. इस बारे में कई दिनों तक सोचने के बाद उस ने मन में मिथिलेश की हत्या करने का इरादा बना लिया. लेकिन यह बात उस ने कविता को नहीं बताई.

एक दिन उस ने अपने दोस्त दुर्गा प्रसाद को विश्वास में ले कर उसे पूरी बात बताई. साथ ही कहा भी कि अगर वह मिथिलेश की हत्या में उस का साथ दे तो इस के बदले उसे अच्छी खासी रकम देगा.

40 वर्षीय दुर्गाप्रसाद दिल्ली में छोटामोटा काम कर के अपने परिवार की गुजरबसर कर रहा था. उस की बड़ी बेटी शादी के लायक हो गई थी, इसलिए उसे बड़ी रकम की जरूरत थी. वह विजय कुमार का साथ देने के लिए राजी हो गया. बदले में विजय ने उस की बेटी की शादी में आर्थिक मदद करने की बात मान ली.

17 नवंबर, 2017 की शाम विजय कुमार ने फोन कर के दुर्गाप्रसाद को अपनी दुकान पर बुलाया. दुकान के बाहर उस की सिल्वर कलर की इंडिका कार खड़ी थी.

योजना के अनुसार दोनों कार में सवार हो कर नोएडा के सेक्टर-11 की रेड लाइट पर पहुंच कर मिथिलेश ओझा के काम से लौटने का इंतजार करने लगे. करीब साढ़े 8 बजे मिथिलेश ओझा अपनी साइकिल पर उधर से आता हुआ दिखाई दिया तो विजय ने उसे आवाज दे कर बुला लिया.

फिर उस से बातें करते हुए अपनी कार के पास आ कर बोला, ‘‘यार, बड़ी सर्दी हो रही है, चलो कार में बैठ कर बातें करते हैं.’’ बातें करतेकरते विजय कार की ड्राइविंग सीट पर बैठ गया और मिथिलेश ओझा ने अपनी साइकिल वहीं पर खड़ी कर दी और कार की पिछली सीट पर बैठे दुर्गा प्रसाद की बगल में जा बैठ गया.

मिथिलेश से विजय ने कहा कि एक जगह चलना है. उस की बात सुन कर मिथिलेश ओझा उस के साथ जाने को राजी हो गया. इस के बाद कार टी पौइंट से हो कर कोंडली में शराब के ठेके के पास पहुंची. वहां से शराब की बोतल और कोल्डड्रिंक ले कर विजय ने कार में बैठ कर तीनों के लिए पैग बनाए.

इसी बीच मिथिलेश की नजर बचा कर विजय ने मिथिलेश के पैग में नींद की गोलियां मिला कर उसे पैग पीने के लिए दे दिया. थोड़ी देर में आने वाली मौत की आहट से बेखबर मिथिलेश जाम से जाम टकराने के बाद शराब की चुस्कियां लेने लगा. बोतल की शराब खत्म होने पर भी जब मिथिलेश को अधिक नशा नहीं हुआ, तब विजय फिर ठेके पर पहुंचा और शराब का एक अद्धा और खरीद लाया.

विजय और दुर्गा प्रसाद ने कम शराब पी और मिथिलेश को जानबूझ कर इतनी अधिक पिला दी जिस से वह बेहोश हो गया. उस के बेहोश होते ही विजय और दुर्गा प्रसाद एक दूसरे की ओर देख कर मुसकराए.

विजय कार चलाते हुए गाजीपुर के पेपर मार्केट में पहुंचा, जहां एक सुनसान सी जगह पर 22 पहियों वाला ट्रक खड़ा था. उस के बराबर कार में रोक कर विजय पिछली सीट पर पहुंचा और दुर्गा प्रसाद की मदद से एक रस्सी से मिथिलेश का गला घोंट दिया.

मिथिलेश की हत्या करने के बाद दोनों ने उस की लाश को घसीट कर कर की पिछली सीट से नीचे उतारा और उस विशालकाय ट्रक के पिछले पहिए के सामने रख दिया. विजय ने दुर्गा प्रसाद से सड़क पर निगरानी करने के लिए कहा और खुद एक पेपर कटर ले कर बेदर्दी से मिथिलेश का गला रेत दिया.

विजय ने सोचा कि रात के अंधेरे में ड्राइवर ट्रक चलाएगा तो मिथिलेश का चेहरा बुरी तरह कुचला जाएगा, जिस से पुलिस उस की शिनाख्त नहीं कर पाएगी. मिथिलेश की जेब में रखे कागजात, मोबाइल फोन और उस की चप्पलनिकाल कर विजय और दुर्गा प्रसाद कार से वापस नोएडा के टी प्वाइंट पर पहुंचे. रास्ते में उन्होंने मिथिलेश की चप्पल, मोबाइल की बैटरी फेंक दी. इस के बाद दुर्गाप्रसाद को उस के घर दल्लूपुरा में छोड़ कर विजय अपने घर लौट गया.

सुबह साढ़े 7 बजे विजय फिर लाश के पास पहुंचा तो ट्रक को वहीं खड़ा देख कर उसे डर सा लगा. उस ने वहीं से दुर्गा प्रसाद को फोन कर के मिथिलेश की साइकिल को रात वाली जगह से हटा कर कहीं पर छिपा देने के लिए कहा. इस के बाद वह अपने घर आ गया.

थोड़ी देर बाद उस के मोबाइल पर कविता का फोन आया. कविता ने उसे बताया कि रात में उस का पति घर नहीं लौटा है. उसकी बात सुन कर वह सहानुभूति का नाटक करने उस के घर दल्लूपुरा पहुंचा. फिर वह कविता और उस के जीजा अरविंद मिश्रा के साथ मिथिलेश ओझा की गुमशुदगी दर्ज कराने के लिए गाजीपुर थाने पहुंच गया.

थानाप्रभारी अमर सिंह ने 11 नवंबर को मिथिलेश हत्याकांड में दोनों आरोपियों विजय कुमार और दुर्गा प्रसाद को दिल्ली के कड़कड़डुमा की अदालत में पेश कर दिया, जहां से उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

कनाडा से मिला सुराग : प्यार में जिम ट्रेनर बना कातिल

करीब ढाई साल पहले पति विनोद बराड़ा की हत्या कराने के बाद निधि ने पति के इंश्योरेंस के 50 लाख रुपए और करोड़ों की संपत्ति पर कब्जा कर लिया था, लेकिन कनाडा से मिले एक क्लू के बाद पुलिस ने जब इस केस की दोबारा जांच की तो हत्या का ऐसा खुलासा हुआ कि पुलिस अधिकारी भी चौंक गए.

पानीपत (हरियाणा) पुलिस के एसपी अजीत सिंह शेखावत उस दिन बेहद उलझन में थे, क्योंकि  उन के पास पिछले 2 दिनों से वाट्सऐप पर लगातार एक विदेशी फोन नंबर से मैसेज आ रहा था. मैसेज भेजने वाले ने बताया था कि सदर थाना क्षेत्र की परमहंस कुटिया कालोनी में ढाई साल पहले 15 दिसंबर, 2021 को विनोद बराड़ा नाम के व्यक्ति की घर में घुस कर देव वर्मा उर्फ दीपक नाम के व्यक्ति ने 2 गोलियां मार कर हत्या कर दी थी.

मैसेज भेजने वाले ने खुद को मृतक विनोद बराड़ा का भाई बताते हुए दावा किया था कि उसे शक है कि इस हत्याकांड को देव वर्मा से अंजाम दिलवाया गया है. अगर पुलिस ठीक से जांच करे तो इस हत्याकांड के मास्टरमाइंड और कारण दोनों सामने आ सकते हैं.

वाट्सऐप मैसेज के कारण उलझन में फंसे एसपी अजीत सिंह ने सीआईए-3 के प्रभारी इंसपेक्टर दीपक कुमार को अपने पास बुलाया और उन्हें मैसेज दिखा कर मैसेज भेजने वाले का पता करने और विनोद बराड़ा नाम के व्यक्ति की हत्या से जुड़ी जानकारी जुटाने के काम पर लगा दिया.

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     मृतक विनोद बरारा पत्नी निधि के साथ

2 दिन बाद सीआईए-3 के इंसपेक्टर दीपक कुमार ने बताया कि वाट्सऐप पर आए ये मैसेज आस्ट्रेलिया के नंबर से भेजे गए थे और वह किसी प्रमोद कुमार का नंबर है. प्रमोद कुमार मृतक विनोद बराड़ा का छोटा भाई है, जो आस्ट्रेलिया में रहता है. इस के अलावा इंसपेक्टर दीपक कुमार ने रिकौर्ड रूम से निकलवाई गई विनोद बराड़ा हत्याकांड की फाइल भी उन के सामने रख दी.

अजीत सिंह शेखावत ने जब हत्याकांड की फाइल का अध्ययन किया तो अचानक ही इस मामले में उन की दिलचस्पी बढऩे लगी. क्योंकि देखने में यह एक सीधासादा और बदला लेने के लिए हुई हत्या का केस नजर आ रहा था.

दरअसल, हुआ यूं था कि पानीपत शहर में परमहंस कुटिया कालोनी में अपनी पत्नी निधि और एक बेटे व बेटी के साथ रहने वाला विनोद बराड़ा सुखदेव नगर में एक कंप्यूटर सेंटर चलाता था.

5 अक्तूबर, 2021 की शाम विनोद बराड़ा परमहंस कुटिया के गेट पर बैठा था, तभी पंजाब नंबर की एक पिकअप गाड़ी के ड्राइवर ने विनोद बराड़ा को सीधी टक्कर मार दी थी. इस एक्सीडेंट में विनोद की जान तो बच गई, लेकिन उस की दोनों टांगे टूट गईं.

विनोद के पड़ोस में रहने वाले उस के चाचा वीरेंद्र सिंह ने सिटी थाने में आरोपी गाड़ी चालक के खिलाफ केस दर्ज करवा दिया था. पुलिस ने गाड़ी के चालक पंजाब के भटिंडा निवासी देव वर्मा उर्फ दीपक को शहर थाना पुलिस ने लापरवाही से गाड़ी चलाने के आरोप में गिरफ्तार कर उस की गाड़ी जब्त कर के उसे जेल भेज दिया था. 3 दिन बाद वाहन चालक देव वर्मा की कोर्ट से जमानत भी हो गई.

लेकिन इस के करीब 15 दिन बाद देव वर्मा परमहंस कुटिया कालोनी में विनोद बराड़ा के घर पहुंच गया. वह दुर्घटना के लिए माफी मांगने लगा और विनोद से कहने लगा कि उस के खिलाफ दर्ज मुकदमा वापस ले ले.

लेकिन विनोद ने समझौता करने से मना कर दिया, क्योंकि उस के कारण वह अपनी टांगें तुड़वा चुका था. लेकिन ऐसा लगता था कि ऐक्सीडेंट करने वाली गाड़ी का चालक देव वर्मा कोई सनकी या पागल इंसान था, क्योंकि जातेजाते वह विनोद बराड़ा को समझौता नहीं करने का अंजाम भुगतने की धमकी दे कर चला गया.

घर में घुसा और मार दी गोली

विनोद बराड़ा ऐसे लागों को अच्छी तरह जानता था, इसलिए इस बात को वह एक पागल आदमी की बात समझ कर भूल गया. लेकिन देव वर्मा नहीं भूला. इस बात की रंजिश उस ने इस हद तक कर ली कि देव वर्मा 15 दिसंबर, 2021 को पिस्तौल ले कर विनोद के घर पर आया और अंदर घुस कर दरवाजा बंद कर कुंडी लगा ली.

यह देख किचन में काम कर रही विनोद की पत्नी शोर मचाते हुए घर के बाहर भागी और पड़ोस में रहने वाले चाचा ससुर वीरेंद्र को सहायता के लिए पुकारने लगी. 1-2 पड़ोसियों के साथ वीरेंद्र सिंह जब विनोद के घर पहुंचे तो पाया कि विनोद के कमरे की कुंडी अंदर से बंद थी.

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            आरोपी देव वर्मा

दरवाजा खोलने की कोशिश की, लेकिन दरवाजा नहीं खुला. इस के बाद उन्होंने खिड़की से देखा तो आरोपी देव ने विनोद को बैड से नीचे गिरा कर पिस्तौल से कमर और सिर में गोली मार दी.

इस के बाद जैसे ही वह कमरे का दरवाजा खोल कर बाहर निकला तो वीरेंद्र सिंह ने अपने बेटे यश और एक पड़ोसी चंदन के साथ आरोपी देव को मौके पर ही पहले तो काबू किया, उस के बाद पड़ोसियों के साथ मिल कर जम कर पीटा. फिर पुलिस को बुला कर उस के हवाले कर दिया था.

वीरेंद्र सिंह खून से लथपथ अपने भतीजे विनोद को अग्रसेन हौस्पिटल ले कर गए. वहां डाक्टरों ने विनोद को मृत घोषित कर दिया. पति की मौत पर वीरेंद्र की पत्नी निधि का रोरो कर बुरा हाल था.

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वीरेंद्र सिंह की शिकायत पर थाना सिटी में हत्या का मुकदमा दर्ज कर कानूनी काररवाई अमल में लाई गई. इस मामले में पुलिस ने हत्या के आरोप में आरोपी देव वर्मा को जेल भेज दिया. उस ने अपना गुनाह कुबूल कर लिया था. कुछ महीने बाद पुलिस ने उस के खिलाफ हत्या की चार्जशीट भी अदालत में दाखिल कर दी. इस मामले में ट्रायल भी शुरू हो गया था.

वैसे तो फाइल पढऩे से एसपी अजीत सिंह शेखावत को ये साधारण केस ही लगा था. लेकिन अचानक वाट्सऐप पर विनोद के भाई प्रमोद के मैसेज का खयाल आते ही उन के जेहन में सवाल उठा कि देव के ऊपर दर्ज हुए ऐक्सीडेंट का केस तो एक मामूली केस था. इसलिए इस में समझौता न करने पर आखिर कोई हत्या क्यों करेगा. क्योंकि सड़क हादसे के केस में न ही बहुत ज्यादा सजा होती है और ये धारा भी जमानती होती है. जबकि हत्या के केस में उम्रकैद से ले कर फांसी तक हो सकती है. फिर देव वर्मा ने ऐसा घातक काम क्यों किया.

आस्ट्रेलिया वाले भाई ने दिया खास क्लू

एसपी अजीत सिंह को यहीं से शक शुरू हो गया. उन्हें लगा कि कहीं न कहीं कोई ऐसी वजह जरूर है, जिस के कारण प्रमोद भाई की हत्या में अन्य लोगों के शामिल होने का शक जता रहा है.

उन्हें लगा कि प्रमोद ने जो दावा किया है, कहीं न कहीं उस के पीछे कोई वजह जरूर होगी. उन्होंने तय किया कि सारा माजरा समझने के लिए उन्हें प्रमोद से बात करनी होगी. लिहाजा उन्होंने प्रमोद को वाट्सऐप पर एक मैसेज भेजा कि वह उन से बात करे.

जिस के बाद प्रमोद ने उन से वाट्सऐप पर आस्ट्रेलिया से बात की. प्रमोद ने बताया कि वह पिछले 15 सालों से आस्ट्रेलिया में नौकरी करता है. भाई की हत्या के बाद उस ने अपने पिता हरेंद्र सिंह व भाई प्रमोद के बड़े बेटे हर्ष को अपने पास ही बुला लिया था.

”प्रमोदजी, मैं आप से यह जानना चाहता हूं कि आप को इस बात का कैसे शक है कि आप के भाई की हत्या में देव वर्मा के अलावा कोई और भी शामिल है?’’ एसपी अजीत सिंह शेखावत ने प्रमोद से सवाल किया तो उस ने जो जवाब दिया उसे सुन कर शेखावत के कान खड़े हो गए.

प्रमोद ने बताया कि उस के भाई विनोद बराड़ा (48 वर्ष) का जब ऐक्सीडेंट हुआ था तो उस के बाद से भाई विनोद और भाभी निधि में अकसर किसी न किसी बात को ले कर झगड़ा होता रहता था. प्रमोद ने बताया कि उस के भाई ने एक बार बातों बातों में इशारा किया था कि निधि अपने जिम ट्रेनर के साथ इश्क के चक्कर में पड़ी हुई है.

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                        जिम ट्रेनर सुमित उर्फ बंटू पुलिस कस्टडी में 

यह बात भाई विनोद को पता चल गई थी, इसी बात को ले कर दोनों में झगड़ा होता था. इस के अलावा जब विनोद की हत्या हो गई तो उस के बाद उस की भाभी निधि का व्यवहार भी एकदम बदल गया था. वह उस के पिता हरेंद्र सिंह से बदतमीजी से बात करने लगी थी.

उस के भाई विनोद के इंश्योरेंस के 50 लाख रुपए में से निधि ने परिवार को फूटी कौड़ी भी नहीं दी. उस ने सारी प्रौपर्टी और दुकान मकान पर एक तरह से अपना हक कायम कर लिया था. इतना ही नहीं, वह परिवार वालों से बिना अनुमति लिए अकसर कईकई दिनों के लिए बाहर घूमने चली जाती थी.

इतना ही नहीं, जब अदालत में देव वर्मा के खिलाफ उस के भाई की हत्या का ट्रायल शुरू हुआ तो अचानक निधि मार्च, 2022 में कोर्ट में अपने बयान से मुकर गई और उस ने देव को पहचानने से ही इंकार कर दिया कि हत्या वाले दिन वह उस के घर आया था.

प्रमोद ने एसपी अजीत सिंह शेखावत को बताया कि उसे लगा कि हो न हो उस के भाई की हत्या में निधि या उस के किसी करीबी की भी मिलीभगत हो सकती है. इसीलिए उस ने अपने पिता को जो भाई की हत्या के बाद से निधि के पास रहने लगे थे, उन्हें व भतीजे हर्ष को भारत से अपने पास ही बुला लिया.

प्रमोद बराड़ा से पूरी बात जानने के बाद शेखावत की समझ में सारा माजरा आ गया. उन्होंने प्रमोद से कहा, ”मिस्टर प्रमोद, आप जल्द से जल्द भारत आ जाइए, हम आप का केस फिर से इनवेस्टिगेट करा रहे हैं.’’

प्रमोद ने उन्हें आश्वस्त कर दिया कि वह अगले हफ्ते तक भारत आ जाएगा.

ढाई साल बाद फिर से शुरू हुई जांच में क्या मिला

इस के बाद एसपी अजीत सिंह ने मामले की गंभीरता को समझते हुए सीआईए-3 प्रभारी इंसपेक्टर दीपक कुमार को इस मामले की गोपनीय तरीके से जांच करने और कानूनी प्रक्रिया अपनाने का आदेश दिया. इंसपेक्टर दीपक कुमार ने इस केस की जांच के लिए एक अलग टीम बना कर उस में शामिल पुलिसकर्मियों को अलगअलग काम पर लगा दिया.

एक टीम ने अदालत में चल रही काररवाई की फाइल की कौपी हासिल की तो एक टीम ने मृतक के चाचा वीरेंद्र सिंह को बुला कर उन से केस से जुड़ी जानकारी हासिल की. पुलिस ने हत्या के आरोपी देव वर्मा के मोबाइल की पुरानी डिटेल्स निकाल कर उस की भी छानबीन शुरू कर दी.

इस दौरान विनोद के चाचा वीरेंद्र से निधि का मोबाइल नंबर भी हासिल कर लिया और उस की पिछले 3 सालों की सारी काल डिटेल्स निकलवा ली.

एक टीम को अदालत में दर्ज केस की फाइल में लगे सबूतों को स्टडी करने के काम पर लगा दिया गया. जब जांच आगे बढ़ी तो कडिय़ां भी जुडऩे लगीं. सामने आया कि विनोद की हत्या के आरोपी देव वर्मा की विनोद की हत्या से 4 महीने पहले से सुमित उर्फ बंटू  नाम के युवक से लगातार बातचीत होती थी.

पुलिस ने जब बंटू के फोन नंबर की काल डिटेल निकाली तो पता चला कि वह गोहाना का रहने वाला है और पानीपत शहर में सेक्टर 11/12 की मार्केट में ‘योर बौडी फिटनैस सेंटर’ में जिम ट्रेनर था. मृतक विनोद बराड़ा की पत्नी निधि से सुमित उर्फ बंटू काफी बातचीत करता था.

दोनों के बीच विनोद की हत्या से काफी पहले से ही बातचीत व वाट्सऐप मैसेज के आदानप्रदान का सिलसिला चल रहा था. निधि के मोबाइल के काल रिकौर्ड से भी पता चला कि वह लगातार सुमित उर्फ बंटू से बातचीत करती थी.

इतना ही नहीं, जब पुलिस ने निधि के बैंक खाते की डिटेल निकाली तो पता चला कि वह अब तक अपने बैंक खाते से करीब 20 लाख रुपए निकाल चुकी थी.

इस तमाम जांच से अब तक यह बात तो साफ हो गई कि इस पूरे मामले में कहीं न कहीं निधि और सुमित उर्फ बंटू विनोद बराड़ा के हत्यारोपी देव वर्मा के साथ जुड़ रहे थे और वह एक पूरी कड़ी थी, जो साबित करती थी कि विनोद बराड़ा की हत्या में उन का हाथ है.

एक सप्ताह के बाद प्रमोद भी भारत आ गया और वह पानीपत पहुंच कर एसपी अजीत सिंह शेखावत से मिला. उस ने रूबरू हो कर उन्हें सारी कहानी सुनाई.

इस दौरान पुलिस टीम ने फाइल का दोबारा गहनता से अध्ययन किया और नए साक्ष्यों का संदर्भ दे कर कोर्ट से अनुमति ले कर विनोद बराड़ा केस की दोबारा से आधिकारिक जांच करने की अनुमति मांगी. अच्छी बात यह रही कि अदालत ने अनुमति भी दे दी, फिर पुलिस ने जांच शुरू कर दी.

पुलिस टीम ने विनोद की हत्या के बाद उस के घर में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज जब्त की थी, जो अदालत में जमा थी. पुलिस टीम ने नई जांच के संदर्भ में जब इस सीसीटीवी फुटेज को दोबारा देखा तो साफ हो गया कि वारदात वाले दिन निधि ने अपने पति विनोद बराड़ा को बचाने की कोई कोशिश नहीं की थी.

सीसीटीवी  फुटेज में साफ दिखाई दे रहा था कि आरोपी ने घर के अंदर आते ही विनोद की पत्नी निधि को नमस्ते किया और फिर वह विनोद के कमरे में घुस गया. तभी निधि अपनी बेटी के साथ घर से बाहर भाग गई. इस के बाद कमरा अंदर से बंद कर आरोपी ने विनोद की गोली मार कर हत्या कर दी.

सीसीटीवी फुटेज में निधि अपनी बेटी के साथ बाहर भागती दिखाई दी. इस के थोड़ी देर बाद बाहर से 2 लोग अंदर आए और दरवाजा खोलने की कोशिश करने लगे, लेकिन तब तक शूटर अंदर कुंडी लगा कर विनोद बराड़ा को गोलियां मार चुका था.

किन सबूतों पर गिरफ्तार किए गए आरोपी

पुलिस के पास अब शक के दायरे में आए सभी आरोपियों को हिरासत में ले कर पूछताछ करने के पर्याप्त आधार थे. लिहाजा पुलिस ने सब से पहले देव वर्मा से गहनता से पूछताछ करने के लिए 3 जून, 2024 को जेल से उसे 5 दिनों की रिमांड पर लिया. देव से कड़ी पूछताछ हुई तो उस ने चौंकाने वाली जानकारी दी.

इस के बाद सीआईए टीम ने 7 जून, 2024 को आरोपी सुमित उर्फ बंटू को सेक्टर 11/12 की मार्केट स्थित उस के जिम से हिरासत में लिया और कड़ी पूछताछ शुरू कर दी. पहले तो वह खुद को बेगुनाह बता कर पुलिस को गुमराह करने की कोशिश करता रहा, लेकिन जब उसे निधि और देव वर्मा से हुई बातचीत की काल डिटेल्स दिखाई गई तो उस ने अपना गुनाह स्वीकार लिया.

पुलिस ने आरोपी सुमित उर्फ बंटू को गिरफ्तार कर कोर्ट से उसे 7 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया. उस ने जो जानकारी दी, उस के बाद 10 जून, 2024 को निधि को भी हिरासत में ले लिया गया.

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                                             एसपी अजीत सिंह शेखावत

तीनों आरोपियों को आमनेसामने बैठा कर जब एसपी अजीत सिंह शेखावत ने खुद पूछताछ की तो ढाई साल पहले हुई विनोद बराड़ा की हत्या की असल कहानी सामने आ गई.

आरोपी सुमित उर्फ बंटू ने पुलिस को बताया कि साल 2021 में वह पानीपत के एक जिम में ट्रेनिंग देता था. विनोद की पत्नी निधि भी वहां एक्सरसाइज करने के लिए आती थी. निधि खूबसूरत और जवान होने के साथ चंचल स्वभाव की थी. सुमित भी हंसमुख स्वभाव का था, दोनों की दोस्ती हो गई. दोनों आपस में काफी बातचीत करने लगे.

निधि और सुमित की दोस्ती कब शारीरिक आकर्षण में बदल गई, पता ही नहीं चला. दरअसल, निधि का पति विनोद उसे प्यार तो बहुत करता था, लेकिन उस के प्यार में वो कशिश नहीं थी, जो निधि को बांध कर रख सके. इसीलिए जब उसे अपने मिजाज के सुमित से लगाव हुआ तो वह पूरी तरह उस के बहाव में बह गई.

कहते हैं इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. ऐसा ही हुआ. जिम जातेजाते अचानक निधि की जीवनशैली में बदलाव और उस का बातबात में चीजों को छिपाने से विनोद को लगा कि कहीं न कहीं दाल में कुछ काला हैं. उस ने निधि की निगरानी की तो जल्द ही पता चल गया कि वह अपने जिम ट्रेनर सुमित के इश्क में डूबी हुई है.

विनोद को उन दोनों के बारे में पता चला तो उस का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. जिस बीवी को उस ने खुद से ज्यादा चाहा और उस के मुंह से निकली हर फरमाइश पूरी की, उस ने उस के साथ धोखा कैसे कर दिया. इस के बाद विनोद निधि के साथ झगड़ा भी करने लगा. सुमित से भी उस की जम कर कहासुनी हुई.

लेकिन जब तक ये हुआ, पानी सिर से उपर जा चुका था. निधि और सुमित साथ जीनेमरने की कसमें खा चुके थे.

जब विनोद ने निधि पर हाथ छोडऩा शुरू किया तो विनोद के लिए उस के दिल में बचा हुआ प्यार भी खत्म हो गया. लिहाजा दोनों ने मिल कर फैसला लिया कि विनोद से छुटकारा पाने के लिए उस की हत्या करवा दी जाए. इस के बाद इस बात पर मंथन शुरू हो गया और लंबी बातचीत के लिए उन्होंने विनोद को ऐक्सीडेंट में मरवाने का फैसला कर लिया.

सुमित उर्फ बंटू का एक जानकार ट्रक ड्राइवर था देव वर्मा उर्फ दीपक, जो भटिंडा के बलराज नगर का रहने वाला था. उस के परिवार में 2 बच्चे व पत्नी थी. उस ने देव को अपने भरोसे में ले कर कहा कि अगर वह एक्सीडेंट कर के विनोद बराड़ा की हत्या कर देगा तो उसे 5 लाख रुपए देगा. इतना ही नहीं, वह उस की जमानत भी करा देगा और एक्सीडेंट करने के लिए गाड़ी भी खरीद कर देगा.

हत्या करने के क्यों बनाए 2 प्लान

देव मुफलिसी की जिंदगी जी रहा था, इसलिए वह लालच में आ गया और यह काम करने के लिए तैयार हो गया.

सुमित ने देव को पंजाब के नंबर की एक पुरानी लोडिंग पिकअप गाड़ी खरीद कर दे दी. इस के बाद देव विनोद की लगातार रेकी करने लगा कि वह किस वक्त घर से निकलता है, कब घर लौटता है.

देव वर्मा ने 5 अक्तूबर, 2021 को इसी पिकअप गाड़ी से विनोद को सीधी टक्कर मार कर उस का ऐक्सीडेंट कर दिया. उस वक्त विनोद परमहंस कुटिया कालोनी के गेट पर बैठा था. ऐक्सीडेंट में विनोद की मौत तो नहीं हुई, लेकिन उस की दोनों टांगें टूट गईं. इस मामले में देव गिरफ्तार हो गया और उस की 3 दिन में जमानत भी हो गई. पहली प्लानिंग फेल हो चुकी थी. लिहाजा निधि और सुमित ने फिर से प्लानिंग बनाई और दोनों ने गोली मार कर विनोद को मरवाने का प्लान बनाया.

उन्होंने देव वर्मा की जमानत करवाई और उस को दोबारा से विनोद की हत्या के लिए राजी किया और वादा किया कि उसे 5 लाख रुपए और दिए जाएंगे तथा उस के परिवार तथा बच्चों की पढ़ाई के साथ मुकदमा लडऩे का खर्च भी वही उठाएंगे. बाद में चश्मदीद गवाह के रूप में गवाह बनने के बाद निधि अपने बयान से भी मुकर जाएगी.

प्लान फुलप्रूफ था, इसलिए पैसे के लालच में देव वर्मा फिर से तैयार हो गया. सुमित ने उसे अवैध पिस्तौल व कारतूस खरीद कर दे दिए. हथियार उपलब्ध करवाने के बाद पहले देव को माफी मांगने के बहाने विनोद बराड़ा के पास भेजा गया.

समझौता नहीं होने के बाद अंजाम भुगतने की धमकी भी दिलाई गई ताकि पूरी तरह लगे कि उस ने इंतकाम लेने के लिए विनोद की हत्या की. इस के बाद 15 दिसंबर, 2021 को देव वर्मा ने घर में घुस कर तमंचे से विनोद बराड़ा की गोली मार कर हत्या कर दी.

सुमित व निधि ने हत्या की जैसी स्क्रिप्ट लिखी थी, सब कुछ वैसा ही हुआ और विनोद की हत्या के आरोप में देव वर्मा जेल चला गया. चूंकि ओपन व शट केस था और देव वर्मा हत्या के बाद मौके पर ही पकड़ा गया था, इसलिए पुलिस ने भी उस वक्त गहनता से जांच नहीं की और वह जेल चला गया. सुमित उर्फ बंटू जेल में बंद देव के केस और घर पर परिवार का पूरा खर्च खुद देता रहा था. प्लान के अनुसार निधि मार्च 2024 में अदालत में अपनी गवाही से मुकर गई.

निधि ने विनोद की हत्या के बाद अपनी आगे की जिंदगी के लिए एक पूरी योजना बना रखी थी. इस योजना के मुताबिक, पहले विनोद का कत्ल होना था. इस के बाद उस की प्रौपर्टी और इंश्योरेंस की रकम से शूटर की डिमांड पूरी करनी थी और ये सब होने के बाद जिम ट्रेनर सुमित के साथ जिंदगी शुरू करनी थी.

निधि अपनी हवस की आग में इस कदर अंधी थी कि विनोद की हत्या के कुछ दिन बाद वह बहाने से सुमित के साथ घूमने मनाली भी गई. लोग हैरान थे कि अपने पति को खोने वाली निधि के चेहरे से गम के आंसू इतनी जल्दी कैसे सूख गए. शायद किसी को इस बात का अंदाजा नहीं था कि उस पूरे हत्याकांड को अंजाम देने वाली निधि ही थी.

तीनों आरोपियों से रिमांड अवधि में पूछताछ पूरी होने के बाद पुलिस ने देव वर्मा के साथ निधि व सुमित को भी हत्या व साजिश रचने का आरोपी मान कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेजा गया. इतना ही नहीं, अब आरोपियों के खिलाफ ऐक्सीडेंट केस में भी भादंवि धारा 307 और 120बी जोड़ ली गई है.

—कहानी पुलिस जांच व दिए गए तथ्यों पर आधारित

17 महीने से छिपी लाश का रहस्य

नाले के पास बिना सिर वाला एक धड़ पड़ा हुआ है, जिस के बदन पर नीले कलर की टीशर्ट पर लाल सफेद लाइनिंग साफ नजर आ रही थी. मरने वाले के हाथ में लोहे का कड़ा और पीले लाल कलर का धागा बंधा हुआ था. उस के शरीर के निचले हिस्से में लाल रंग की अंडरवियर और बनियान थी. सिर के बाल  तथा दाढ़ी व मूंछ में मेहंदी कलर लगा हुआ था. जिस जगह यह सिर कटा धड़ पड़ा हुआ था, उस के कुछ ही दूरी पर एक प्लास्टिक की बोरी भी पड़ी हुई थी.

पुलिस टीम ने जब उस बोरी को खोला तो उस में मृतक का सिर मिला. पहली नजर में हत्या का मामला दिख रहा था. लिहाजा उन्होंने सीन औफ क्राइम मोबाइल यूनिट के प्रभारी डा. आर.पी. शुक्ला को मौके पर बुला लिया.

फोरैंसिक एक्सपर्ट डा. आर.पी. शुक्ला ने मौका मुआयना कर शव को देख कर बताया कि मरने वाले की उम्र 35 साल से अधिक लग रही है. लाश को देखने से प्रतीत हो रहा है कि लाश महीनों पुरानी है और उस की गरदन काट कर हत्या की गई होगी.

एफएसएल टीम ने मौकामुआयना कर वैज्ञानिक साक्ष्य एकत्र कर धड़ को संजय गांधी मैडिकल कालेज की फोरैंसिक शाखा भेज दिया. यह बात 26 अक्तूबर, 2022 की है.

सोशल मीडिया पर यह खबर जंगल की आग की तरह फैलते ही कुछ ही घंटों में पुलिस को पता चल गया कि बिना सिर वाली लाश पास के गांव ऊमरी में रहने वाले 42 साल के रामसुशील पाल की है.

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           एसपी नवनीत भसीन

रीवा जिले के एसपी नवनीत भसीन ने मऊगंज थाने की टीआई श्वेता मौर्य, एसआई लालबहुर सिंह, एएसआई आदि के नेतृत्व में एक टीम का गठन कर जल्द ही रामसुशील की हत्या का खुलासा करने का निर्देश दिया.

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         टीआई श्वेता मौर्य

पुलिस टीम जांच करने जब ऊमरी गांव पहुंची तो पूछताछ में पता चला कि रामसुशील ऊमरी गांव में रहने वाले साधारण किसान मोहन पाल का सब से बड़ा बेटा था. वह पेशे से ड्राइवर था. अपने पेशे की वजह से वह कईकई महीने तक घर से बाहर रहता था.

रामसुशील की पहली पत्नी की मौत के बाद करीब 4 साल पहले उस ने मिर्जापुर निवासी रंजना पाल से विवाह किया था. शादी के शुरुआती समय तो सब ठीकठाक चलता रहा, मगर कुछ समय बाद ही दोनों के बीच मनमुटाव हो गया था.

पुलिस टीम ने जब घर के आसपास रहने वाले लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि रामसुशील तो पिछले डेढ़ साल से गांव में किसी को दिखा ही नहीं. जब गांव के लोग पूछताछ करते तो पत्नी रंजना बताती कि उस का पति काम के सिलसिले में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर गया है.

पुलिस को रामसुशील के घर जा कर यह भी मालूम हुआ कि रंजना भी कुछ दिनों पहले अपने बच्चों को ले कर मायके मिर्जापुर गई हुई है. इस वजह से पुलिस के शक की सूई रंजना की तरफ ही घूम रही थी. लिहाजा पुलिस की एक टीम रंजना की तलाश के लिए मिर्जापुर भेजी गई.

पुलिस ने सख्ती दिखाते हुए रंजना से पूछताछ की तो उस ने पति की मौत की पूरी कहानी बयां कर दी.

मध्य प्रदेश के रीवा जिले के मऊगंज जनपद पंचायत के छोटे से गांव ऊमरी श्रीपथ में रहने वाले किसान मोहन पाल के 3 बेटों में 42 साल का रामसुशील सब से बड़ा था. उस के बाद अंजनी पाल और सब से छोटा 30 साल का गुलाब था.

रामसुशील पेशे से ट्रक ड्राइवर था. उस की पहली शादी 22 साल की उम्र में हो गई थी. एक बेटे और बेटी के जन्म के बाद वह अपनी पत्नी के साथ बुरा व्यवहार करने लगा था. नशे की लत और उस की प्रताडऩा से तंग आ कर पत्नी ने आग लगा कर आत्महत्या कर थी.

उस समय उस के बच्चों की उम्र कम थी, इसलिए समाज के लोगों ने रामसुशील के मातापिता को बच्चों की परवरिश के लिए उस की दूसरी शादी करने की सलाह दी.

उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में रहने वाली रंजना पाल भी पति की मारपीट से तंग आ कर मायके में रह रही थी. उस के 2 बेटे थे. समाज के लोगों ने यही सोच कर दोनों की शादी करा दी कि दोनों के बच्चों की परवरिश होने लगेगी.

इस तरह ढह गई मर्यादा की दीवार

रामसुशील नशे का आदी होने की वजह से घरपरिवार की जिम्मेदारियों से बेखबर रहता था. लिहाजा दोनों के बीच तकरार बढऩे लगी.

रामसुशील का परिवार गांव में घर के 3 हिस्सों में अलगअलग रहता था. एक हिस्से में रामसुशील का परिवार, दूसरे हिस्से में उस का भाई अंजनी पाल अपनी पत्नी और बच्चों के साथ, जबकि सब से छोटा भाई गुलाब  मातापिता के साथ रहता था. उस समय गुलाब की शादी नहीं हुई थी.

रामसुशील काम के सिलसिले में अकसर 15-15 दिन घर से बाहर रहता था. इस का फायदा उठाते हुए रंजना का झुकाव अपने देवर गुलाब की तरफ हो गया. उस समय गुलाब 30 साल का गोराचिट्टा जवान व कुंवारा था.

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   आरोपी गुलाब पाल

गुलाब भाभी का लाडला देवर था, परंतु रामसुशील की बुरी आदतों की वजह से अपने भाइयों से नहीं पटती थी. रामसुशील पैतृक संपत्ति का ज्यादा भाग खुद उपयोग कर रहा था. इस वजह से उस के भाई भी उस से नफरत करते थे.

ऐसे में रंजना ने गुलाब पर डोरे डालने शुरू कर दिए. गुलाब उम्र की जिस दहलीज पर खड़ा था, वहां पर शादीशुदा नाजनखरों वाली भाभी रंजना के बिछाए प्रेम जाल में वह फंस ही गया. लिहाजा जल्द ही दोनों के बीच अवैध संबंध हो गए.

इस के बाद तो गुलाब और रंजना का इश्क परवान चढऩे लगा था. जब भी उन्हें मौका मिलता, वे अपनी हसरतों को पूरा कर लेते. लेकिन कहते हैं कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. यही हाल हुआ भौजाई रंजना और देवर गुलाब के इश्क का. आखिर पति रामसुशील को देवर भौजाई के चोरीछिपे चल रहे इश्क का पता चल ही गया.

एक दिन शराब के नशे में चूर रामसुशील जब घर पहुंचा तो रंजना पर बरस पड़ा, ”छिनाल, तूने आखिर अपनी औकात दिखा ही दी. गुलाब के साथ रंगरलियां मना रही है.’’

रामसुशील ने भद्दी गालियां देते हुए रंजना की पिटाई कर दी. अब तो आए दिन दोनों के बीच झगड़ा आम बात हो गई थी. जब रामसुशील गुस्से में रंजना की पिटाई करता तो प्रेमी गुलाब के सीने पर सांप लोट जाता.

छोटा भाई क्यों बना जान का दुश्मन

रोजरोज अपनी प्रेमिका की पिटाई से उसे दुख पहुंचता. एक दिन मौका पा कर गुलाब ने रंजना से साफसाफ कह दिया, ”भौजी, हम से तुम्हारा दर्द देखा नहीं जाता. आखिर कब तक जुल्म सहती रहोगी.’’

”कुछ समझ भी नहीं आता, आखिर ऐसे मर्द के साथ मैं निभाऊं कैसे.’’ रंजना बोली.

”मेरी तो इच्छा है कि ऐसे मर्द को तुम्हारी जिंदगी से हमेशा के लिए दूर कर दूं, फिर हमारे प्यार में कोई अड़चन ही नहीं होगी.’’ गुलाब रंजना से बोला.

”लेकिन यह काम इतना आसान नहीं है. यदि यह राज किसी को पता चल गया तो जेल में चक्की पीसेंगे हम दोनों.’’ रंजना ने आशंका व्यक्त करते हुए कहा.

”मेरे पास एक प्लान है, तुम अगर मानो तो किसी को कानोकान खबर नहीं होगी.’’ गुलाब चहकते हुए बोला.

”बताओ, ऐसा कौन सा प्लान है तुम्हारे पास?’’ रंजना बोली.

”भौजी, मैं बाजार से चूहे मारने वाली दवा ला कर दूंगा, तुम चुपचाप खाने में मिला कर रामसुशील भैया को खिला देना.’’ गुलाब बोला.

”फिर… घर के लोगों को क्या बताएंगे कि कैसे मर गए?’’ रंजना आगे की मुश्किल देखते हुए बोली.

”तुम इस की चिंता मत करो. रातोंरात मैं लाश को ठिकाने लगा दूंगा और लोगों से कह देंगे कि भैया काम के सिलसिले में बाहर गए हुए हैं.’’ गुलाब रंजना को आश्वस्त करते हुए बोला.

गुलाब और रंजना का प्यार अब घर वालों को भी पता चल चुका था. गुलाब के रंजना से संबंधों की भनक पिता मोहन पाल को लगी तो उन्होंने माथा पीट लिया. समाज में ऊंचनीच न होने के भय से उन्होंने यह सोच कर गुलाब की शादी कर दी कि शादी होते ही वह अपनी भाभी से दूर रहने लगेगा.

मगर शादी होने के बाद भी गुलाब की रंजना से नजदीकियां कम नहीं हुईं. गुलाब की पत्नी भी गुलाब की इन हरकतों से परेशान थी. गुलाब अपनी नवविवाहिता पत्नी पर फिदा होने के बजाय रंजना भाभी की जवानी के गुलशन का भंवरा बना हुआ था. गुलाब की नईनवेली पत्नी जब गुलाब को रंजना से दूर रहने को कहती तो वह उलटा उस के साथ ही मारपीट करने लगता.

रामसुशील जब भी घर आता तो वह देखता कि गुलाब रंजना के इर्दगिर्द घूमता रहता है. इस बात को ले कर वह गुलाब को भलाबुरा भी कह चुका था. गुलाब अपने भाई से जब जमीन के बंटवारे की बात कहता तो रामसुशील उसे डराधमका कर चुप करा देता.

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         आरोपी अंजनी पाल

जमीनजायदाद के बंटवारे को ले कर जब भी उन का आपसी विवाद होता तो उस के चाचा रामपति और उस के लड़के सूरज और गुड्डू भी गुलाब और अंजनी का पक्ष लेते. इस से रामसुशील अपने चाचा और उन के बेटों के साथ गालीगलौज करता.

समोसे की चटनी में मिलाया जहर

रामसुशील से तंग आ कर 2021 के मई महीने में रंजना और गुलाब ने रामसुशील को रास्ते से हटाने का प्लान बनाया और एक रात रंजना ने घर पर स्वादिष्ट समोसे बनाए.

समोसे खाने का रामसुशील शौकीन था, उसे टमाटर की चटनी के साथ समोसे खाना बहुत अच्छा लगता था. रंजना ने समोसे के साथ परोसी गई चटनी में चूहे मारने की दवा मिला दी थी.

रामसुशील चटखारे मार कर समोसे खा गया, मगर उसे इस बात का पता नहीं था कि उस की पत्नी ने जो प्यार जता कर समोसे परोसे हैं, उस में उस की मौत छिपी हुई थी.

पेट भर समोसे खा लेने के बाद रामसुशील सोने चला  गया. बच्चों के सोने के बाद जब रंजना रात के करीब 12 बजे पति के बिस्तर पर पहुंची तो उस ने हिलाडुला कर पति की नब्ज टटोली.

कोई हलचल न पा कर रंजना ने गुलाब को फोन कर खबर कर दी. गुलाब भी इसी पल का इंतजार कर रहा था. उस ने जमीन के बंटवारे में हिस्सा दिलाने का लालच दे कर अपने भाई अंजनी पाल को भी साथ ले लिया.

जैसे ही गुलाब और अंजनी भाभी के बुलावे पर रामसुशील के पास कमरे में पहुंचे तो रामसुशील को बेहोश देख कर बहुत खुश हुए. उन्हें लगा कि भाई जिंदा न बचे, इसलिए अपने साथ लाए धारदार हथियार से गुलाब ने रामसुशील का गला काट कर भाई अंजनी की मदद से धड़ और सिर प्लास्टिक की बोरी में भर दिया.

दूसरे दिन सुबह जल्दी उठ कर अंधेरे में ही गुलाब लाश वाली बोरी को साइकिल पर लाद कर अपने चाचा रामपति पाल के खेत पर पहुंच गया. वहां चाचा के लड़के सूरज और गुड्डू की मदद से भूसा रखने वाले कमरे में उस ने लाश की बोरी दबा दी.

इस काम में चाचा के बेटों गुड्डू पाल और सूरज पाल ने इसलिए मदद की क्योंकि एक बार जमीनी विवाद में इन का झगड़ा रामसुशील से हो गया था, तब रामसुशील ने पूरे गांव के सामने उन का अपमान किया था. अपने अपमान का बदला लेने के लिए वे गुलाब के इस प्लान में शामिल हो गए.

सुबह जब बच्चे सो कर उठे तो उन्हें रंजना ने बताया कि उस के पापा काम के सिलसिले में बाहर गए हैं. रामसुशील को रास्ते से हटाने के बाद गुलाब और रंजना के प्रेम की राह आसान हो गई थी. अब वे अपनी मरजी के मुताबिक जिंदगी जी रहे थे. गुलाब अपनी बीवी की उपेक्षा कर भाभी रंजना पर अपनी कमाई लुटा रहा था. रंजना भी गुलाब की दीवानगी का खूब फायदा उठा रही थी.

17 महीने बाद कैसे खुला राज

लाश को छिपाए करीब 17 महीने बीतने को थे, परंतु हर समय गुलाब के मन में पकड़े जाने का भय बना रहता था. गुलाब के चाचा रामपति को जब इस बात का पता चला तो वह गुलाब पर लाश को वहां से हटाने का दबाव बनाने लगे थे.

उन्होंने साफतौर पर कह दिया था, ”भूसा भरने वाले कमरे से वह जल्द ही लाश को हटा दे, नहीं तो वह पुलिस को सब कुछ बता देंगे.’’

पशुओं के लिए रखा भूसा भी खत्म होने को था. 25 अक्तूबर, 2022 की रात को गुलाब ने लाश वाली बोरी ला कर पास के गांव निबिहा के नाले के पास फेंक दी और घर जा कर चैन की नींद सो गया.

अगली सुबह रामसुशील की लाश मिलते ही गुलाब राज खुलने के डर से भयभीत हो गया और उस ने फोन लगा कर रंजना को बताते हुए सचेत कर दिया था.

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                                                    हिरासत में आरोपी

सूचना मिलने पर मऊगंज थाने की टीआई श्वेता मौर्य पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंची और सिर व धड़ बरामद कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिए. पुलिस जांच में रंजना से पूछताछ की गई तो थोड़ी सख्ती से रंजना जल्दी ही टूट गई और पुलिस को उस ने सच्चाई बता दी.

देवरभाभी के प्रेम और वासना की आग में अंधे हो कर रामसुशील को ठिकाने लगा कर यही समझ बैठे थे कि वे पुलिस की आंखों में धूल झोंक कर कानून की नजरों से बच जाएंगे, परंतु उन का यह भ्रम जल्दी ही टूट गया.

17 महीने तक भूसे के ढेर में दबी लाश जब बाहर निकली तो रामसुशील की हत्या का पूरा सच सामने आ गया.

पुलिस ने गुलाब, रंजना के साथ उस के भाई अंजनी व चाचा रामपति को भादंवि की धारा 302 और 201 के तहत मामला कायम कोर्ट में पेश किया, जहां से रंजना को महिला जेल रीवा और गुलाब, अंजनी और रामपति को उपजेल मऊगंज भेज दिया.

कथा लिखे जाने तक 2 आरोपी जेल में बंद थे और उन के खिलाफ आरोपपत्र कोर्ट में पेश किया जा चुका था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मंगेतर की जिद ने ले ली जान

उस युवती की उम्र कोई ज्यादा नहीं होगी. 20-22 साल के आसपास की थी वह. एकएक अंग सांचे में ढला हुआ था. ऐसा लग रहा था कि किसी मूर्तिकार ने बहुत फुरसत से उसे तराशा है. उस की हिरणी सी आंखों में गजब का आकर्षण था, उस के संतरे की फांक जैसे पतले और रसीले होंठों की मुसकान बरबस मन को मोह लेती थी. यौवन रस से भरपूर उस की जवानी उफान पर थी.

सुलतान की नजरें उस हसीन युवती पर से हट ही नहीं रही थीं. हटतीं भी कैसे. पार्टी के जश्न में आई हुई अनेक युवतियों में एक वह ही हसीन और बला की खूबसूरत नजर आ रही थी.

वह हसीना लाल रंग की शार्ट कुरती और मखमली शरारा पहने हुई थी. वक्ष पर गुलाबी रंग का सितारों जड़ा दुपट्टा था, जो उस के कंधे से बारबार फिसल रहा था. जब उस का दुपट्टा फिसलता था, उस के उन्नत उभारों की झलक मिल जाती थी, जो दिल की धड़कनें बढ़ा देती थीं.

वह हसीन युवती अपनी सहेली से बातें कर रही थी, किंतु तिरछी नजर से वह सुलतान को भी घूर रही थी. शायद उसे यह अहसास हो गया था कि वह युवक उसे बहुत देर से देख रहा है.

सुलतान को जैसे उस का कोई खौफ नहीं था. होता भी क्यों, भला उस की आंखों का क्या दोष, वह हसीन चीजों को तो ताकेंगी ही. वह अपनी आंखों से उस युवती की खूबसूरती को अपलक ताक रहा था.

एकाएक वह हसीन युवती अपनी जगह से हिली. उस ने सुलतान को फाड़ खाने वाली नजरों से देखा, फिर उस की तरफ बढ़ गई. सुलतान संभल कर खड़ा हो गया. उस की आंखें अब भी उस युवती के ऊपर जमी हुई थीं.

वह युवती पास आ कर रुकी और नागिन की तरह फुंफकार कर बोली, ”ऐ मिस्टर, यह क्या बदतमीजी है.’’

सुलतान ने चौंकने का शानदार अभिनय किया, ”क्या आप ने मुझ से कुछ कहा?’’

”नहीं,’’ युवती ने उसे घूरा, ”यहां आप का जिन्न खड़ा है, मैं उसी से कह रही हूं.’’

”तो कहिए, आप को किस ने रोका है.’’

”ऐ मिस्टर, मैं आप से कह रही हूं.’’

”मेरा नाम सुलतान है मिस हसीना.’’ सुलतान ने मुसकरा कर कहा.

”मेरा नाम भी हसीना नहीं, शमा है.’’ युवती ने झुंझला कर कहा, ”मैं काफी देर से देख रही हूं, आप मुझे घूर रहे हैं.’’

”आप बेहद हसीन हैं इसलिए. हसीन चीज को देखना गुनाह नहीं हो सकता.’’ सुलतान ने सादगी से कहा.

”मैं इसे गुस्ताखी कहूंगी. यहां पार्टी में मैं अकेली तो नहीं हूं, जो मुझे ही देखा जाए.’’

”कमाल हो तुम.’’ सुलतान तुरंत तुम पर उतर आया, ”कभी आईना देखना. इस महफिल में तुम से हसीन कोई भी नहीं है.’’

”तुम बातूनी और चालाक हो.’’ शमा झुंझला कर बोली.

”शुक्रिया मेरी तारीफ के लिए.’’

”मुझे तुम से हसीन युवती यहां नजर आती तो मैं उसे देखता, लेकिन सच कह रहा हूं, तुम्हारे मुकाबले में एक भी लड़की यहां नहीं है.’’

”लेकिन मिस्टर सुलतान, इस तरह युवतियों को घूरना अच्छे इंसान को शोभा नहीं देता. मैं काफी देर से देख रही थी, तुम एकटक मुझे ही देखे जा रहे थे, इसलिए मुझे यहां आना पड़ा.’’ इस बार शमा कुछ नरम लहजे में बोली.

सुलतान ने आह भरी, ”मशविरे के लिए शुक्रिया. वैसे इतनी गुस्ताखी कर चुका हूं तो एक गुस्ताखी और कर लेता हूं. क्या मुझे बताओगी, तुम कहां रहती हो?’’

”क्या करोगे जान कर?’’ शमा ने उसे घूरा.

”तुम्हारे घर आऊंगा और तुम्हारे अब्बा से तुम्हारा हाथ मागूंगा.’’

”शक्ल देखी है आईने में?’’ शमा ने मुंह बिगाड़ा, ”लंगूर जैसे लगते हो तुम.’’

सुलतान हंसा, ”निकाह के बाद तुम्हें अपनी उछलकूद से खूब हंसाऊंगा. इस लंगूर के साथ तुम्हारी जिंदगी हंसीखुशी से गुजर जाएगी.’’

”ख्वाब देखते रहो. मेरे लिए एक से एक खूबसूरत लड़कों की लाइन लगी हुई है. मैं तुम्हें घास नहीं डालने वाली.’’

”देखूंगा.’’ सुलतान इस बार गंभीर हो गया, ”तुम मुझे घास भी डालोगी और प्यार से मुझ से गले भी मिलोगी.’’

”इतना कौंफीडेंस है तुम्हें.’’ शमा ने उसे घूरा.

”हां, मेरी जिंदगी भी अब रोशन इसी शमा से होगी. यह याद रखना.’’ सुलतान दृढ़ स्वर में बोला.

”मुंह धो लेना किसी गटर के पानी से. तुम्हारी यह हसरत कभी पूरी नहीं होगी.’’ शमा ने कहा और पांव पटकती हुई अपनी सहेली की तरफ बढ़ गई.

सुलतान मुसकरा कर उस ओर बढ़ गया जहां कोल्ड ड्रिंक सर्व की जा रही थी. शमा उस के जज्बात भड़का गई थी. सुलतान ठंडा पी कर उन जज्बातों को शांत करना चाहता था.

आज मौसम बहुत सर्द था. नवंबर महीने का बेहद ठंडा दिन कह सकते है इसे. मंसूर ऊपर से नीचे तक गरम कपड़े पहन कर काम पर आया था. वह दिल्ली के विश्वास नगर में स्थित एक मकान के फस्र्ट फ्लोर पर आ कर बंद दरवाजे के पास बैठ गया था, क्योंकि शानू अभी तक नहीं आया था. इस फ्लोर की चाबी शानू के पास ही रहती थी.

इस फ्लोर पर मोहम्मद सुलतान ने फ्लिपकार्ट के डिलीवरी होने वाले सामानों का गोदाम बना रखा था. शानू और मंसूर वहीं पर पैकिंग का काम करते थे.

पौलीथिन में पैक मिली लड़की की लाश

सर्दी से मंसूर कांप रहा था. वह चाहता था कि शानू जल्दी से आ जाए ताकि दरवाजा खोल कर वह इत्मीनान से कमरे में बैठ सके. दोपहर 2 बजे शानू आया. वह भी गरम जैकेट, टोपी पहने था.

”कितनी देर से बैठे हो?’’ उस ने मंसूर से पूछा.

”बाद में पूछना यार. जल्दी से दरवाजा खोल, मेरी कुल्फी जम रही है.’’

शानू ने जेब से चाबी निकाल कर दरवाजे पर लटक रहा ताला खोलते हुए कहा, ”आज कल से ज्यादा ठंड है.’’

मंसूर बोला नहीं. शानू ने जैसे ही ताला खोला, मंसूर दरवाजे को धकेल कर अंदर आ गया.

शानू भी अंदर आ गया. उस ने लाइट जलाई और दरवाजा बंद कर के कुरसी की तरफ बढ़ा तो सामने दीवार से टिके एक बड़े से पौलीथिन बैग को देख चौंक पड़ा.

”इतना बड़ा बैग यहां कहां से आ गया, हमारे यहां से तो छोटे बंडल पैक होते हैं.’’

”सुलतान ने माल मंगवाया होगा. यह तो सुलतान ही बताएगा कि उस ने फ्लिपकार्ट से क्या आइटम मंगवाया है.’’ मंसूर ने बैग पर एक सरसरी नजर डाल कर कहा और कुरसी सरका कर बैठ गया. शानू भी बैठ गया.

यह सुलतान का औफिसनुमा गोदाम था. वह यहां ईकामर्स कंपनी फ्लिपकार्ट का माल मंगवा कर औनलाइन बेचता था. मंसूर और शानू उस के इस काम में हैल्पर थे. सुलतान ने इन्हें अच्छी तनख्वाह पर काम पर लगा रखा था.

दोनों बहुत भरोसे के आदमी थे. सुलतान के इस औफिस की एक चाबी शानू के पास रहती थी, एक सुलतान अपने पास रखता था. सुलतान की गैरमौजूदगी में औफिस खोल लेता था. उन की ड्यूटी डेढ़ बजे से रात 9 बजे तक की थी.

दोनों अपने काम में लग गए. जो माल का और्डर सुलतान ने रजिस्टर में दर्ज किया हुआ था, उस की वह पैकिंग बनाने में लग गए. वे काम में इस कदर मशगूल हुए कि उन्हें समय का कुछ पता ही नहीं चला.

शाम के साढ़े 6 बजे मंसूर उठा और बाथरूम की ओर वह गया. जब वह वापस आया तो उस ने दीवार से सटे बैग की ओर देखा. उस में से हलकी बदबू आ रही थी.

नथुनों को सिकोड़ कर उस ने लंबी सांस खींची तो उस का जी खराब हो गया. तेज बदबू आ कर नाक में समा गई थी.

”यार शानू, तुझे कुछ बदबू सी आ रही है क्या?’’ मंसूर ने पूछा.

”हां. मैं काफी समय से महसूस कर रहा हूं कि कमरे में अजीब सी बदबू भरी है ऐसी जैसे कोई चीज सड़ रही हो यहां. तू खामोशी से काम कर रहा था, इसलिए मैं ने कुछ नहीं बोला. यह बदबू इस पौलीथिन बैग से आ रही है. मैं ने अभी जोर से सांस ली तो मुझे यह महसूस हुई है. जरा देख तो इस में क्या चीज है.’’ मंसूर ने कहा.

शानू अपनी कुरसी से खड़ा हो गया. पौलीथिन बैग के पास आ कर उस ने उस की रस्सी खोली तो उस के मुंह से दहशत भरी चीख निकल गई.

”लाऽऽश…’’

लाश का नाम सुनते ही मंसूर घबरा गया. वह लपक कर पास आ गया. उस ने बैग के खुले मुंह से अंदर झांका तो उस के हाथपांव कांप गए. वह घबरा कर पीछे हट गया.

”शानू, इस में किसी युवती की लाश है. यहां से भाग चलते हैं.’’

”भागने से तो हम ही फंस जाएंगे.’’ शानू हिम्मत बटोर कर बोला, ”सभी जानते हैं हम यहां दोपहर की ड्यूटी में काम करने आते हैं.’’

”तो क्या करें?’’ मंसूर ने पूछा.

”पुलिस को फोन करते हैं. ऐसा करने से हमारी जिम्मेदारी पुलिस महसूस करेगी और हम लपेटे में नहीं आएंगे.’’

”चल, तू जैसा ठीक समझे. नीचे पब्लिक बूथ से हम पुलिस को यहां लाश मिलने की जानकारी दे देते हैं.’’

शानू ने सिर हिलाया और मंसूर के साथ वह पहली मंजिल से नीचे गली में आ गया. नीचे पब्लिक बूथ से शानू ने उसी समय फर्श बाजार थाने की पुलिस को विश्वास नगर की गली नंबर-10 के मकान नंबर डी-510 में एक युवती की लाश पड़ी होने की सूचना दे दी. दोनों इस वक्त काफी डरे हुए थे.

मंसूर ने कांपती हुई आवाज में शानू से कहा, ”तुम सुलतान को भी फोन कर दो. वह यहां आ जाएगा.’’

शमा की किस ने की थी हत्या

शानू ने अपने मोबाइल से सुलतान को फोन मिलाया तो दूसरी ओर से स्विच्ड औफ होने की सूचना मिली. काफी समय तक वह सुलतान से संपर्क करने की कोशिश करता रहा, लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ ही बताता रहा.

इसी बीच वहां पर पुलिस जीप आ गई. पुलिस जिप्सी से इंसपेक्टर बाबूलाल उतरे. उन के साथ 3 पुलिसकर्मी भी थे.

शानू और मंसूर उन के पास आ गए. बाबूलाल ने दोनों को सिर से पांव तक देखा और पूछा, ”क्या तुम ने ही पुलिस को फोन किया था?’’

”हां सर!’’

”लाश कहां है?’’

”आप साथ आइए.’’ शानू हिम्मत बटोर कर बोला और सीढिय़ों से उन को ऊपर ले आया. कमरे में ला कर उस ने पौलीथिन बैग दिखा दिया.

इंसपेक्टर बाबूलाल ने आगे बढ़ कर पौलीथिन बैग को टटोला. अंदर युवती की लाश देख कर उन्होंने सब से पहले इस की जानकारी उच्चाधिकारियों को दे दी. फोरैंसिक टीम को भी उन्होंने इत्तला दे दी. उन्होंने उच्चाधिकारियों के आने तक कमरे का निरीक्षण किया और शानू तथा मंसूर से पूछताछ करते रहे.

”यहां क्या काम होता है?’’

”साहब हमारे मालिक का नाम मोहम्मद सुलतान है. यहां पर वह ईकामर्स फ्लिपकार्ट से माल मंगवा कर औनलाइन सप्लाई करते हैं. मैं और मंसूर उन के पास काम करते हैं.’’

”यह लाश यहां गोदाम में किस ने ला कर रखी?’’

”मालूम नहीं साहब. मैं शानू और मेरा साथी मंसूर दोपहर 2 बजे काम पर आए थे. एक चाबी मेरे पास रहती है. मैं ने ताला खोला था. यह पौलीथिन बैग मुझे और मंसूर को कमरे में घुसते ही नजर आ गया था. हम ने सोचा सुलतान ने माल मंगवाया होगा. ज्यादा इस पर ध्यान न दे कर हम काम करने में व्यस्त हो गए. 2-ढाई घंटे बाद मंसूर और मुझे बदबू महसूस हुई तो मैं ने बैग देखने की इच्छा से इस का मुंह खोल दिया. अंदर नजर पड़ी तो दहशत से मेरी चीख निकल गई. अंदर युवती की लाश देख कर हम घबरा गए. हम ने पब्लिक बूथ से फोन कर के थाने में इत्तला दे दी.’’

”मोहम्मद सुलतान आज नहीं आया क्या?’’ इंसपेक्टर बाबूलाल ने पूछा.

”वह सुबह आते हैं. किसी दिन नहीं आते तो फोन से हमारी बात हो जाती है. आज वह यहां आए थे या नहीं, मालूम नहीं. उन का फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा है.’’

”सुलतान का नंबर लिखवा दो मुझे.’’

शानू ने सुलतान का नंबर बता दिया. इंसपेक्टर बाबूलाल ने यह नंबर अपने फोन से मिलाया तो उन्हें भी स्विच्ड औफ होने का संदेश सुनाई दिया.

नीचे डीसीपी रोहित मीणा, एडीशनल डीसीपी राजीव कुमार, एसीपी विजय नागर (शाहदरा) और एसीपी गुरुदेव आ गए थे. वह सब ऊपर कमरे में आ गए. फोरैंसिक टीम भी उन के साथ आ गई थी. फोरैंसिक टीम ने डीसीपी रोहित मीणा के इशारे पर अपना काम शुरू कर दिया. पौलीथिन बैग के ऊपर से फिंगरप्रिंट्स उठाने के बाद उस की फोटोग्राफी की गई, फिर उस में से लाश को बाहर निकाला गया.

यह 20-22 साल की जवान युवती की लाश थी. उस के हाथपांव रस्सी से बंधे हुए थे और गले में चुन्नी लिपटी हुई थी. चुन्नी से उस का गला घोंटा लगता था, क्योंकि युवती की आंखें दम घुटने से फट पड़ी थीं. वह छरहरे जिस्म वाली खूबसूरत युवती थी.

शानू और मंसूर उस युवती की लाश देख कर हैरत में आ गए थे. इंसपेक्टर बाबूलाल ने यह बात महसूस की तो शानू के पास आ गए.

”कौन है यह युवती?’’ शानू के चेहरे पर नजरें जमा कर उन्होंने धीरे से पूछा.

”इस का नाम शमा है साहब, यह हमारे मालिक की मंगेतर है.’’

”ओह!’’ इंसपेक्टर बाबूलाल ने होंठ सिकोड़े, ”तुम्हारा मालिक सुलतान मोबाइल स्विच्ड औफ कर के बैठा है. जाहिर है उस ने अपनी मंगेतर की गला घोंट कर हत्या कर दी और फरार हो गया.’’

”ऐसा नहीं है साहब. हमारे मालिक सुलतान तो शमा भाभी को दिल से प्यार करते रहे हैं.’’ शानू ने अपनी बात कही तो इंसपेक्टर बाबूलाल मुसकरा दिए, ”ऐसी बात है तो वह फोन स्विच्ड औफ क्यों कर के बैठा है.’’

”यह तो मैं नहीं बता सकता, साहब.’’

”शमा कहां रहती है और तुम्हारे मालिक सुलतान का ठिकाना कहां है, सब सहीसही हमें नोट करवा दो. झूठ बोलोगे तो मैं तुम्हें अंदर कर दूंगा.’’

शानू ने शमा और सुलतान के एड्रैस इंसपेक्टर बाबूलाल को बता दिए.

मंगेतर सुलतान पर हुआ शक

डीसीपी रोहित मीणा और एडिशनल डीसीपी राजीव कुमार ने लाश का बारीकी से निरीक्षण किया. यह युवती का गला घोंट कर हत्या किए जाने का मामला था. फोरैंसिक टीम ने अपनी ओर से सारे सबूत एकत्र कर लिए थे.

इंसपेक्टर बाबूलाल ने अधिकारियों को शानू द्वारा पूछताछ में मिली सारी जानकारी दे दी.

पुलिस को मृतका का नाम और पता मालूम हो गया था. उन का पूरापूरा संदेह सुलतान पर जा रहा था. उन्होंने इंसपेक्टर बाबूलाल को निर्देश दिया कि वह मोहम्मद सुलतान को दोषी मान कर अपनी जांच करें. इस के बाद उच्चाधिकारी वहां से चले गए.

लाश की कागजी काररवाई निपटाने के बाद उसे पोस्टमार्टम हेतु सरकारी अस्पताल भेज दिया गया.

इंसपेक्टर बाबूलाल ने सुलतान का फोन फिर मिलाया, किंतु वह अभी भी स्विच औफ ही आ रहा था. थाने आ कर उन्होंने मुकदमा संख्या 548/23, आईपीसी की धारा 302/201 के अंतर्गत मामला रजिस्टर में दर्ज कर लिया.

उसी दिन 25 नवंबर, 2023 की रात करीब 10 बजे शमा के परिजन थाना फर्श बाजार (शाहदरा) पहुंचे. उन्होंने थाने में शमा की गुमशुदगी दर्ज करवाई. उस वक्त इंसपेक्टर बाबूलाल थाने में ही मौजूद थे.

पुलिस की 2 टीमें जुटीं जांच में

शमा की हत्या का केस डीसीपी रोहित मीणा ने उन्हें ही देखने के लिए कहा था और इस सिलसिले में वह फर्श बाजार के एसएचओ अमूल त्यागी के साथ बैठ कर विचारविमर्श कर रहे थे. तभी एक सिपाही ने यह सूचना दी कि शमा नाम की लड़की की गुमशुदगी दर्ज करवाने उस के परिजन आए हैं. इंसपेक्टर बाबूलाल और एसएचओ अमूल त्यागी उठ कर अपने कक्ष से बाहर आ गए. वहां बाहर शमा की अम्मी और चाचा खड़े थे.

”आप ही शमा की गुमशुदगी दर्ज करवाने आई हैं?’’ इंसपेक्टर बाबूलाल ने पूछा.

”जी साहब, मेरी बच्ची सुबह अपने काम पर गई थी, वह अभी तक वापस नहीं आई है. हम यहां उस की गुमशुदगी दर्ज करवाने आए हैं. आप मेरी बच्ची को ढूंढ दीजिए.’’ शमा की अम्मी गिड़गिड़ाते हुए बोली.

”शमा कहां काम करती थी?’’

”जी हेडगेवार हौस्पिटल के पास ब्यूटी पार्लर है, वह वहीं काम करने जाती थी.’’

”आप को किसी पर संदेह है क्या?’’

”मुझे सुलतान पर शक है, साहब. मेरी बेटी शमा उस से प्यार करती है. उसी के साथ शमा की शादी हम लोगों ने तय कर दी है लेकिन…’’

”लेकिन क्या?’’ बाबूलाल ने शमा की अम्मी के चेहरे पर नजरें जमा कर पूछा.

”सुलतान चालाक है, वह मेरी बेटी के लायक नहीं है, लेकिन शमा की खातिर हमें सुलतान की मम्मी के आगे झुकना पड़ा है. अब देखें आप, हम दोपहर से सुलतान को फोन लगा रहे हैं, लेकिन वह फोन उठा ही नहीं रहा है. अब तो उस का फोन भी बंद हो गया है.’’

”वह फोन उठाएगा भी नहीं,’’ इंसपेक्टर बाबूलाल गंभीर हो गए, ”क्योंकि वह शमा की हत्या कर के फरार हो गया है.’’

इंसपेक्टर बाबूलाल के मुंह से यह सुनते ही शमा की मां दहाड़े मार कर रोने लगी. अन्य परिजन भी गमगीन हो गए. कुछ देर तक वहां पर गम का माहौल बना रहा. फिर शमा की मां ने सिसकते हुए पूछा, ”यह आप किस आधार पर कह रहे हैं कि मेरी बेटी शमा की हत्या हो गई है.’’

”हम ने शाम को विश्वास नगर की गली नंबर 10 से शमा की लाश बरामद की है. उस को गला घोंट कर मारा गया है. अब उस की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल में है, आप लोग वहां जा कर पोस्टमार्टम के बाद लाश को अपने कब्जे में ले कर उस का क्रियाकर्म करवाइए. मैं आप लोगों के साथ सिपाही यतेंद्र को भेज रहा हूं.’’

”साहब, मेरी बेटी का कातिल सुलतान ही है. विश्वास नगर में गली नंबर-10 में उसी का गोदाम है. मेरी बेटी उसी से मिलने उस के गोदाम पर गई होगी, जहां उस ने शमा की हत्या कर दी.’’ शमा की मां ने भर्राए गले से कहा.

”हमें भी सुलतान पर शक है. उस की तलाश की जा रही है.’’ इंसपेक्टर बाबूलाल ने कहा फिर कांस्टेबल यतेंद्र को समझा कर उन लोगों को जिला अस्पताल के लिए भेज दिया.

मामला दिल्ली ईस्टर्न रेंज के एडिशनल सीपी सागर कलसी की जानकारी में आ चुका था, इसलिए डीसीपी रोहित मीणा ने शमा की हत्या में संदिग्ध मोहम्मद सुलतान को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस और स्पैशल स्टाफ की एक टीम गठित कर दी.

टीम में थाना फर्श बाजार (शाहदरा) के इंसपेक्टर बाबूलाल, एएसआई दीपक (टेक्नीकल सर्विस) डा. विजय खोखर, एसआई सुनील (स्पैशल स्टाफ शाहदरा), हैडकांस्टेबल शशांक (फर्श बाजार थाना), कांस्टेबल यतेंद्र, एसआई पंकज कसाना और स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर विकास कुमार को शामिल किया गया. इस टीम का नेतृत्व विकास कुमार को सौंपा गया था.

इस टीम ने विश्वास नगर की गली नंबर 10 को जोडऩे वाले मुख्य मार्ग पर लगे सीसीटीवी कैमरों को चैक किया. सुलतान के घर दबिश दी गई, लेकिन वह घर नहीं मिला. उस की मां नूरजहां ने पुलिस पर आरोप मढ़ा कि वह उस के बेटे सुलतान को फंसाना चाहती है. वह तो खुद 25 नवंबर से लापता है.

नूरजहां ने 26 नवंबर को फर्श बाजार थाने में जा कर सुलतान के गुम होने की सूचना लिखवा दी. उस ने कहा कि वह कल 25 नवंबर को सुबह ही शमा के घर न्यू संजय अमर कालोनी में जा कर सुलतान का रिश्ता शमा से तय कर आई है. ऐसे में सुलतान अपनी मंगेतर शमा की हत्या क्यों करेगा. सुलतान से चिढऩे वाले किसी व्यक्ति ने सुलतान का अपहरण कर लिया है.

पुलिस उस के किसी तर्क को मानने को तैयार नहीं थी. चूंकि सुलतान कल से ही लापता था और उस ने फोन भी औफ कर लिया था, शक उसी पर जा रहा था कि वह अपनी मंगेतर शमा की हत्या कर के फरार हो गया है.

पुलिस टीम ने सुलतान के फोन की लोकेशन मालूम करने के लिए उस का नंबर सर्विलांस पर लगा दिया. आखिर 27 नवंबर, 2023 को पुलिस को सफलता मिली. सर्विलांस टीम को उस के फोन की लोकेशन मुंबई की मिली.

तुरंत एक टीम मुंबई भेज दी गई. उस ने सर्विलांस की मदद से आखिर में मुंबई के मुलुंद इलाके से सुलतान को दबोच लिया. वहां पुलिस औपचारिकता पूरी करने के बाद टीम 28 नवंबर को सुलतान को दिल्ली ले कर चल दी. दिल्ली पहुंच कर उसे कोर्ट में पेश कर के 3 दिन की रिमांड पर ले लिया गया.

सुलतान ने क्यों की मंगेतर शमा की हत्या

रिमांड में पूछताछ हुई तो सुलतान ने चुपचाप स्वीकार कर लिया कि उस ने 25 नवंबर, 2023 की शाम को अपने विश्वास नगर वाले औफिस में शमा का उसी की चुन्नी से गला घोंट कर हत्या कर दी थी. शव छिपाने के उद्ïदेश्य से उस ने शमा की लाश बड़े पौलीथिन बैग में हाथपांव बांध कर ठूंस दी थी. वह उसे ठिकाने नहीं लगा सका. डर की वजह से वह लाश औफिस में छोड़ कर ताला बंद कर के भाग गया था.

उस ने नई दिल्ली से रात 10 बजे मुंबई के लिए ट्रेन पकड़ ली थी. रास्ते में उस ने शमा का फोन फेंक दिया था. उस ने शमा को क्यों मारा, इस सवाल पर उस ने बताया, ”3 साल पहले शमा को मैं ने एक पार्टी में देखा था, तभी उस के लिए मेरे दिल में प्यार जाग गया था. शमा गुरूर से भरी थी, वह मुझ से शुरू में दोस्ती नहीं करना चाहती थी, लेकिन मैं उसे बारबार फोन करता रहा तो वह पिघल गई और मुझ से मिलने आने लगी. मैं और शमा 3 साल से गहरे अटूट प्यार में बंधे खुशीखुशी जी रहे थे. मैं शमा को अपनी पत्नी बनाना चाहता था.

”मेरे पिता मोहम्मद सलाउद्दीन गांव चिरइया, जिला मोतिहारी (बिहार) में रहते है. मेरी मां नूरजहां दिल्ली में मेरी बड़ी बहन के पास रहती है. मैं भी फर्श बाजार में बहन के साथ रहता हूं. मेरी 5 बहनें हैं. 3 की शादी हो गई है. 2 कुंवारी हैं. मैं फ्लिपकार्ट कंपनी के माल को औनलाइन बेचने का खुद का काम करता हूं. विश्वास नगर में राजीव शर्मा के फ्लैट में मैं ने फस्र्ट फ्लोर पर अपना औफिस बना रखा है. यह फ्लैट गली नंबर 10 में है. मेरे साथ मंसूर और शानू भी काम करते थे.

”मैं शमा को दिल से चाहता था, लेकिन मैं ने उसे किसी दूसरे युवक से बातें करते देख लिया था. शमा का मेरी तरफ झुकाव भी कम होने लगा था. मैं परेशान था, इसलिए मैं ने फोन कर के शमा को 25 नवंबर को विश्वास नगर बुलाया. वह ब्यूटी पार्लर में नौकरी करती है. मेरी उम्र 19 साल है, जबकि 4 साल बड़ी शमा 23 साल की है. शमा काम पर नहीं गई, वह सुबह मेरे औफिस में आ गई थी. शानू और मंसूर 2 बजे औफिस में आते थे.

”शमा को मैं ने प्यार से समझाया कि वह मुझ से प्यार करती है, शादी करना चाहती है तो दूसरे युवक से बात न करे. शमा ने कहा कि मैं उसे दूसरे युवक से बातें करने से नहीं रोकूंगा. मेरा मन जहां चाहेगा, मैं वहां हंसूंगी बोलूंगी. शादी के बाद भी यही होगा.

”साहब, बहुत समझाने पर भी शमा नहीं मानी तो मैं ने गुस्से में उसे नीचे पटक दिया और चुन्नी से उस का गला घोंट कर मार दिया. मुझे उस की हत्या करने का दुख है, लेकिन वह जिद्दी थी, इसलिए मैं ने उसे मार दिया.’’

सुलतान ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया था. पुलिस ने उसे फिर से कोर्ट में पेश कर दिया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

समाज की डोर पर 2 की फांसी

डेयरी संचालक भूरा राजपूत अपना काम निपटा कर वापस घर आया तो उस की नजर घरेलू कामों में लगीं बेटियों पर पड़ी. उन की 4 बेटियों में 3 तो घर में थीं लेकन सब से बड़ी बेटी शैफाली घर में नजर नहीं आई. उन्होंने पत्नी से पूछा, ‘‘रेनू, शैफाली दिखाई नहीं दे रही. वह कहीं गई है क्या?’’

‘‘अपनी सहेली शिवानी के घर गई है. कह रही थी, उस की किताबें वापस करनी हैं.’’ रेनू ने पति को बताया.

पत्नी की बात सुन कर भूरा झल्ला उठा, ‘‘मैं ने तुम्हें कितनी बार समझाया है कि शैफाली को अकेले घर से मत जाने दिया करो, लेकिन मेरी बात तुम्हारे दिमाग में घुसती कहां है. उसे जाना ही था तो अपनी छोटी बहन को साथ ले जाती. उस पर अब मुझे कतई भरोसा नहीं है.’’

पति की बात सही थी. इसलिए रेनू ने कोई जवाब नहीं दिया.

शैफाली सुबह 10 बजे अपनी मां रेनू से यह कह घर से निकली थी कि वह शिवानी को किताबें वापस कर घंटा सवा घंटा में वापस आ जाएगी. लेकिन दोपहर एक बजे तक भी वह घर नहीं लौटी थी. उसे गए हुए 3 घंटे हो गए थे. जैसेजैसे समय बीतता जा रहा था, वैसेवैसे रेनू और उस के पति भूरा की चिंता बढ़ती जा रही थी.

रेनू बारबार उस का मोबाइल नंबर मिला रही थी, लेकिन उस का मोबाइल स्विच्ड औफ था. जब भूरा से नहीं रहा गया तो शैफाली का पता लगाने के लिए घर से निकल पड़ा. उस ने बेटे अशोक को भी साथ ले लिया था.

शैफाली की सहेली शिवानी का घर गांव के दूसरे छोर पर था. भूरा राजपूत वहां पहुंचा तो घर का दरवाजा अंदर से बंद था. भूरा ने दरवाजा खटखटाया तो कुछ देर बाद शिवानी के भाई संदीप ने दरवाजा खोला. शैफाली के पिता को देख कर संदीप घबरा गया. लेकिन अपनी घबराहट को छिपाते हुए उस ने पूछा, ‘‘अंकल आप, कैसे आना हुआ?’’

भूरा गुस्से में बोला, ‘‘शैफाली और शिवानी कहां हैं?’’

‘‘अंकल शैफाली तो यहां नहीं आई. मेरी बहन शिवानी मातापिता और भाई के साथ गांव गई है. वे लोग 2 दिन बाद वापस आएंगे.’’ संदीप ने जवाब दिया.

संदीप की बात सुन कर भूरा अपशब्दों की बौछार करते हुए बोला, ‘‘संदीप, तू ज्यादा चालाक मत बन. तू ने मेरी भोलीभाली बेटी को अपने प्यार के जाल में फंसा रखा है. तू झूठ बोल रहा है कि शैफाली यहां नहीं आई. उसे जल्दी से घर के बाहर निकाल वरना पुलिस ला कर तेरी ऐसी ठुकाई कराऊंगा कि प्रेम का भूत उतर जाएगा.’’

‘‘अंकल मैं सच कह रहा हूं, शैफाली नहीं आई. न ही मैं ने उसे छिपाया है.’’ संदीप ने फिर अपनी बात दोहराई.

यह सुनते ही भूरा संदीप से भिड़ गया. उस ने संदीप के साथ हाथापाई की. फिर पुलिस लाने की धमकी दे कर चला गया. उस के जाते ही संदीप ने दरवाजा बंद कर लिया. यह बात 13 जून, 2019 की है. भूरा राजपूत लगभग 2 बजे पुलिस चौकी मंधना पहुंचा.  संयोग से उस समय बिठूर थाना प्रभारी विनोद कुमार सिंह भी चौकी पर मौजूद थे.

भूरा ने उन्हें बताया, ‘‘सर, मेरा नाम भूरा राजपूत है और मैं कछियाना गांव का रहने वाला हूं. मेरे गांव में संदीप रहता है. उस ने मेरी बेटी शैफाली को बहलाफुसला कर अपने घर में छिपा रखा है. शायद वह शैफाली को साथ भगा ले जाना चाहता है. आप मेरी बेटी को मुक्त कराएं.’’

चूंकि मामला लड़की का था. थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह पुलिस के साथ कछियाना गांव निवासी संदीप के घर जा पहुंचे. घर का मुख्य दरवाजा बंद था. थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने दरवाजे की कुंडी खटखटाई, साथ ही आवाज भी लगाई. लेकिन अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई.

संदीप के दरवाजे पर पुलिस देख कर पड़ोसी भी अपने घरों से बाहर आ गए. वे लोग जानने की कोशिश कर रहे थे कि आखिर संदीप के घर ऐसा क्या हुआ जो पुलिस आई है. जब दरवाजा नहीं खुला तो थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह सहयोगी पुलिसकर्मियों के साथ पड़ोसी विजय तिवारी की छत से हो कर संदीप के घर में दाखिल हुए.

घर के अंदर एक कमरे का दृश्य देख कर सभी पुलिस वाले दहल उठे. कमरे के अंदर संदीप और शैफाली के शव पंखे के सहारे साड़ी के फंदे से झूल रहे थे. इस के बाद गांव में कोहराम मच गया. भूरा राजपूत और उस की पत्नी रेनू बेटी का शव देख कर फफक पड़े. शैफाली की बहनें भी फूटफूट कर रोने लगीं. पड़ोसी विजय तिवारी ने संदीप द्वारा आत्महत्या करने की सूचना उस के पिता दिनेश कमल को दे दी.

थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने प्रेमी युगल द्वारा आत्महत्या करने की बात वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ देर बाद एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन तथा सीओ अजीत कुमार घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया.

उस के बाद पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया और फंदों से लटके शव नीचे उतरवाए. मृतक संदीप की उम्र 20-22 वर्ष थी, जबकि मृतका शैफाली की उम्र 18 वर्ष के आसपास. मौके पर फोरैंसिक टीम ने भी जांच की.

टीम ने मृतक संदीप की जेब से मिले पर्स व मोबाइल को जांच के लिए कब्जे में ले लिया. मृतका शैफाली की चप्पलें और मोबाइल भी सुरक्षित रख ली गईं. पुलिस टीम ने वह साड़ी भी जांच की काररवाई में शामिल कर ली जिस से प्रेमीयुगल ने फांसी लगाई थी.

दोनों के परिजनों ने लगाए एकदूसरे पर आरोप

अब तक मृतक संदीप के मातापिता  व भाईबहन भी गांव से लौट आए थे और शव देख कर बिलखबिलख कर रोने लगे. संदीप की मां माधुरी गांव जाने से पहले उस के लिए परांठा सब्जी बना कर रख कर गई थी. संदीप ने वही खाया था.

पुलिस अधिकारियों ने मृतकों के परिजनों से घटना के संबंध में पूछताछ की और दोनों के शव पोस्टमार्टम हेतु लाला लाजपत राय अस्पताल कानपुर भिजवा दिए. मृतकों के परिजन एकदूसरे पर दोषारोपण कर रहे थे, जिस से गांव में तनाव की स्थिति बनती जा रही थी. इसलिए पुलिस अधिकारियों ने सुरक्षा की दृष्टि से गांव में पुलिस तैनात कर दी. साथ ही आननफानन में पोस्टमार्टम करा कर शव उन के घर वालों को सौंप दिए.

कानपुर महानगर से 15 किलोमीटर दूर जीटी रोड पर एक कस्बा है मंधना. जो थाना बिठूर के क्षेत्र में आता है. मंधना कस्बे से कुरसोली जाने वाली रोड पर एक गांव है कछियाना. मंधना कस्बे से मात्र एक किलोमीटर दूर बसा यह गांव सभी भौतिक सुविधाओं वाला गांव है.

भूरा राजपूत अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता है. उस के परिवार में पत्नी रेनू के अलावा एक बेटा अशोक तथा 4 बेटियां शैफाली, लवली, बबली और अंजू थीं. भूरा राजपूत डेयरी चलाता था. इस काम में उसे अच्छी आमदनी होती थी. उस की आर्थिक स्थिति मजबूत थी.

भाईबहनों में बड़ी शैफाली थी. वह आकर्षक नयननक्श वाली सुंदर युवती थी. वैसे भी जवानी में तो हर युवती सुंदर लगती है. शैफाली की तो बात ही कुछ और थी. वह जितनी खूबसूरत थी, पढ़ने में उतनी ही तेज थी. उस ने सरस्वती शिक्षा सदन इंटर कालेज मंधना से हाईस्कूल पास कर लिया था. फिलहाल वह 11वीं में पढ़ रही थी.

पढ़ाई लिखाई में तेज होने के कारण उस के नाज नखरे कुछ ज्यादा ही थे. लेकिन संस्कार अच्छे थे. स्वभाव से वह तेजतर्रार थी, पासपड़ोस के लोग उसे बोल्ड लड़की मानते थे.

कछियाना गांव के पूर्वी छोर पर दिनेश कमल रहते थे. उन के परिवार में पत्नी माधुरी के अलावा 2 बेटे थे. संदीप उर्फ गोलू, प्रदीप उर्फ मुन्ना और बेटी शिवानी थी. दिनेश कमल मूल रूप से कानपुर देहात जनपद के रूरा थाने के अंतर्गत चिलौली गांव के रहने वाले थे. वहां उन की पुश्तैनी जमीन थी. जिस में अच्छी उपज होती थी. दिनेश ने कछियाना गांव में ही एक प्लौट खरीद कर मकान बनवा लिया था. इस मकान में वह परिवार सहित रहते थे. वह चौबेपुर स्थित एक फैक्ट्री में काम करते थे.

दिनेश कमल का बेटा संदीप और बेटी शिवानी पढ़ने में तेज थे. इंटरमीडिएट पास करने के बाद संदीप ने आईटीआई कानपुर में दाखिला ले लिया. वह मशीनिस्ट ट्रेड से पढ़ाई कर रहा था.

शैफाली की सहेली का भाई था संदीप

शिवानी और शैफाली एक ही गांव की रहने वाली थीं, एक ही कालेज में साथसाथ पढ़ती थीं. अत: दोनों में गहरी दोस्ती थीं. दोनों सहेलियां एक साथ साइकिल से कालेज आतीजाती थीं. जब कभी शैफाली का कोर्स पिछड़ जाता तो वह शिवानी से कौपी किताब मांग कर कोर्स पूरा कर लेती और जब शिवानी पिछड़ जाती तो शैफाली की मदद से काम पूरा कर लेती. दोनों के बीच जातिबिरादरी का भेद नहीं था. लंच बौक्स भी दोनों मिलबांट कर खाती थीं.

एक रोज कालेज से छुट्टी होने के बाद शिवानी और शैफाली घर वापस आ रही थीं. तभी रास्ते में अचानक शैफाली का दुपट्टा उस की साइकिल की चेन में फंस गया. शैफाली और शिवानी दुपट्टा निकालने का प्रयास कर रही थीं, लेकिन वह निकल नहीं रहा था.

उसी समय पीछे से शिवानी का भाई संदीप आ गया. वह मंधना बाजार से सामान ले कर लौट रहा था. उस ने शिवानी को परेशान हाल देखा तो स्कूटर सड़क किनारे खड़ा कर के पूछा, ‘‘क्या बात है शिवानी, तुम परेशान दिख रही हो?’’

‘‘हां, भैया देखो ना शैफाली का दुपट्टा साइकिल की चेन में फंस गया है. निकल ही नहीं रहा है.’’

‘‘तुम परेशान न हो, मैं निकाल देता हूं.’’ कहते हुए संदीप ने प्रयास किया तो शैफाली का दुपट्टा निकल गया. उस रोज संदीप और शैफाली की पहली मुलाकात हुई. पहली ही नजर में दोनों एकदूसरे की ओर आकर्षित हो गए. खूबसूरत शैफाली को देख कर संदीप को लगा यही मेरी सपनों की रानी है. हृष्टपुष्ट स्मार्ट संदीप को देख कर शैफाली भी प्रभावित हो गई.

सहेली के भाई से हो गया प्यार

उसी दिन से दोनों के दिलों में प्यार की भावना पैदा हुई तो मिलन की उमंगें हिलोरें मारने लगीं. आखिर एक रोज शैफाली से नहीं रहा गया तो उस के कदम संदीप के घर की ओर बढ़ गए. उस रोज शनिवार था. आसमान पर घने बादल छाए थे, ठंडी हवा चल रही थी. संदीप घर पर अकेला था. वह कमरे में बैठा टीवी पर आ रही फिल्म ‘एक दूजे के लिए’ देख रहा था. तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. संदीप ने दरवाजा खोला तो सामने खड़ी शैफाली मुसकरा रही थी.

‘‘शिवानी है?’’ वह बोली.

‘‘वह तो मां के साथ बाजार गई है, आओ बैठो. मैं शिवानी को फोन कर देता हूं.’’ संदीप ने कहा.

‘‘मैं बाद में आ जाऊंगी.’’ शैफाली ने कहा ही था कि मूसलाधार बारिश शुरू हो गई.

‘‘अब कहां जाओगी?’’

‘‘जी.’’ कहते हुए शैफाली कमरे में आ गई और संदीप के पास बैठ कर फिल्म देखने लगी.

कमरे का एकांत हो 2 युवा विपरीत लिंगी बैठे हों, और टीवी पर रोमांटिक फिल्म चल रही हो तो माहौल खुदबखुद रूमानी हो जाता है. ऐसा ही हुआ भी शैफाली ने फिल्म देखते देखते संदीप से कहा, ‘‘संदीप एक बात पूछूं?’’

‘‘पूछो?’’

‘‘प्यार करने वालों का अंजाम क्या ऐसा ही होता है.’’

‘‘कोई जरूरी नहीं.’’ संदीप ने कहा, ‘‘प्यार  करने वाले अगर समय के साथ खुद अनुकूल फैसला लें और समझौता न कर के आगे बढ़ें तो उन का अंत सुखद होगा.’’

‘‘अपनी बात तो थोड़ा स्पष्ट करो.’’

‘‘देखो शैफाली, मैं समझौतावादी नहीं हूं. मैं तो तुरत फुरत में विश्वास करता हूं और दूसरे मेरा मानना है कि जो चीज सहज हासिल न हो उसे खरीद लो.’’

‘‘अच्छा संदीप अगर मैं कहूं कि मैं तुम से प्यार करती हूं, तब तुम मेरा प्यार हासिल करना चाहोगे या खरीदना पसंद करोगे?’’

शैफाली के सवाल पर संदीप चौंका. उस का चौंकना स्वाभाविक था. वह यह तो जानता था कि शैफाली बोल्ड लड़की है, लेकिन उस की बोल्डनैस उसे क्लीन बोल्ड कर देगी, वह नहीं जानता था. संदीप, शैफाली के प्रश्न का उत्तर दे पाता, उस के पहले ही शिवानी मां के साथ बाजार से लौट आई. आते ही शिवानी ने चुटकी ली, ‘‘शैफाली, संदीप भैया से मिल लीं. आजकल तुम्हारे ही गुणगान करता रहता है ये.’’

‘‘धत…’’ शैफाली ने शरमाते हुए उसे झिड़क दिया. फिर कुछ देर दोनों सहेलियां हंसी मजाक करती रहीं. थोड़ा रुक कर शैफाली अपने घर चली गई.

बढ़ने लगा प्यार का पौधा

उस दिन के बाद दोनों में औपचारिक बातचीत होने लगी. दिल धीरेधीरे करीब आ रहे थे. संदीप शैफाली को पूरा मानसम्मान देने लगा था. जब भी दोनों का आमना सामना होता, संदीप मुसकराता तो शैफाली के होंठों पर भी मुसकान तैरने लगती. अब दोनों की मुसकराहट लगातार रंग दिखाने लगी थी.

एक रविवार को संदीप यों ही स्कूटर से घूम रहा था कि इत्तेफाक से उस की मुलाकात शैफाली से हो गई. शैफाली कुछ सामान खरीदने मंधना बाजार गई थी. चूंकि शैफाली के मन में संदीप के प्रति चाहत थी. इसलिए उसे संदीप का मिलना अच्छा लगा. उसने मुसकरा कर पूछा, ‘‘तुम बाजार में क्या खरीदने आए थे?’’

‘‘मैं बाजार से कुछ खरीदने नहीं बल्कि घूमने आया था. मुझे पंडित रेस्तरां की चाय बहुत पसंद है. तुम भी मेरे साथ चलो. तुम्हारे साथ हम भी वहां एक कप चाय पी लेंगे.’’

‘‘जरूर.’’ शैफाली फौरन तैयार हो गई.

पास ही पंडित रेस्तरां था. दोनों जा कर रेस्तरां में बैठ गए. चायनाश्ते का और्डर देने के बाद संदीप शैफाली से मुखातिब हुआ, ‘‘बहुत दिनों से मैं तुम से अपने मन की बात कहना चाह रहा था. आज मौका मिला है, इसलिए सोच रहा हूं कि कह ही दूं.’’

शैफाली की धड़कनें तेज हो गईं. वह समझ रही थी कि संदीप के मन में क्या है और वह उस से क्या कहना चाह रहा है. कई बार शैफाली ने रात के सन्नाटे में संदीप के बारे में बहुत सोचा था.

उस के बाद इस नतीजे पर पहुंची थी कि संदीप अच्छा लड़का है. जीवनसाथी के लिए उस के योग्य है. लिहाजा उस ने सोच लिया था कि अगर संदीप ने प्यार का इजहार किया तो वह उस की मोहब्बत कबूल कर लेगी.

‘‘जो कहूंगा, अच्छा ही कहूंगा.’’ कहते हुए संदीप ने शैफाली का हाथ पकड़ा और सीधे मन की बात कह दी, ‘‘शैफाली मैं तुम से प्यार करने लगा हूं.’’

शैफाली ने उसे प्यार की नजर से देखा, ‘‘मैं भी तुम से प्यार करती हूं संदीप, और यह भी जानती हूं कि प्यार में कोई शर्त नहीं होती. लेकिन दिल की तसल्ली के लिए एक प्रश्न पूछना चाहती हूं. यह बताओ कि मोहब्बत के इस सिलसिले को तुम कहां तक ले जाओगे?’’

साथ निभाने की खाईं कसमें

‘‘जिंदगी की आखिरी सांस तक.’’ संदीप भावुक हो गया, ‘‘शैफाली, मेरे लफ्ज किसी तरह का ढोंग नहीं हैं. मैं सचमुच तुम से प्यार करता हूं. प्यार से शुरू हो कर यह सिलसिला शादी पर खत्म होगा. उस के बाद हमारी जिंदगी साथसाथ गुजरेगी.’’

शैफाली ने भी भावुक हो कर उस के हाथ पर हाथ रख दिया, ‘‘प्यार के इस सफर में मुझे अकेला तो नहीं छोड़ दोगे?’’

‘‘शैफाली,’’ संदीप ने उस का हाथ दबाया, ‘‘जान दे दूंगा पर इश्क का ईमान नहीं जाने दूंगा.’’

शैफाली ने संदीप के होंठों को तर्जनी से छुआ और फिर उंगली चूम ली. उस की आंखों की चमक बता रही थी कि उसे जैसे चाहने वाले की तमन्ना थी, वैसा ही मिल गया है.

शैफाली और संदीप की प्रेम कहानी शुरू हो चुकी थी. गुपचुप मेलमुलाकातें और जीवन भर साथ निभाने के कसमेवादे, दिनों दिन उन का पे्रमिल रिश्ता चटख होता गया. दोनों का मेलमिलाप कराने में शैफाली की सहेली शिवानी अहम भूमिका निभाती रही.

एक दिन प्यार के क्षणों में बातोंबातों में संदीप ने बोला, ‘‘शैफाली, अपने मिलन के अब चंद महीने बाकी हैं. मैं कानपुर आईटीआई से मशीनिस्ट टे्रड का कोर्स कर रहा हूं. मेरा यह आखिरी साल है. डिप्लोमा मिलते ही मैं तुम से शादी कर लूंगा.’’

संदीप की बात सुन कर शैफाली खिलखिला कर हंस पड़ी.

संदीप ने अचकचा कर उसे देखा, ‘‘मैं इतनी सीरियस बात कर रहा हूं और तुम हंस रही हो.’’

‘‘बचकानी बात करोगे तो मुझे हंसी आएगी ही.’’

‘‘मैं ने कौन सी बचकानी बात कह दी?’’

‘‘शादी की बात.’’ शैफाली ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘बुद्धू शादी के बाद पत्नी की सारी जिम्मेदारियां पति की हो जाती हैं. एक पैसा तुम कमाते नहीं हो, मुझे खिलाओगे कैसे? मेरे खर्च और शौक कैसे पूरे करोगे?’’

‘‘यह मैं ने पहले से सोच रखा है,’’ संदीप बोला, ‘‘डिप्लोमा मिलते ही मैं दिल्ली या नोएडा जा कर कोई नौकरी कर लूंगा. शादी के बाद हम दिल्ली में ही अपनी अलग दुनिया बसाएंगे.’’

बनाने लगे सपनों का महल

संदीप की यह बात शैफाली को मन भा गई. दिल्ली उस के भी सपनों का शहर था. इसीलिए संदीप ने उस से दिल्ली में बसने की बात कही तो उस का मन खुशी से झूम उठा.

संदीप और शैफाली का प्यार परवान चढ़ ही रहा था कि एक दिन उन का भांडा फूट गया. हुआ यूं कि उस रोज शैफाली अपने कमरे में मोबाइल पर संदीप से प्यार भरी बातें कर रही थी. उस की बातें मां रेनू ने सुनीं तो उन का माथा ठनका. कुछ देर बाद उन्होंने उस से पूछा, ‘‘शैफाली, ये संदीप कौन है? उस से तुम कैसी अटपटी बातें करती हो?’’

शैफाली न डरी न लजाई, उस ने बता दिया, ‘‘मां संदीप मेरी सहेली शिवानी का भाई है. गांव के पूर्वी छोर पर रहता है. बहुत अच्छा लड़का है. हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं.’’

रेनू कुछ देर गंभीरता से सोचती रही, फिर बोली, ‘‘बेटी अभी तो तुम्हारी पढ़ने लिखने की उम्र है. प्यारव्यार के चक्कर में पड़ गई. वैसे तुम्हारी पसंद से शादी करने पर मुझे कोई एतराज नहीं है. किसी दिन उस लड़के को घर ले अना, मैं उस से मिल लूंगी और उस के बारे में पूछ लूंगी. सब ठीकठाक लगा तो तुम्हारे पापा को शादी के लिए राजी कर लूंगी.’’

3-4 दिन बाद शैफाली ने संदीप को चाय पर बुला लिया. होने वाली सास ने बुलाया है. यह जान कर संदीप के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. उसे विश्वास हो था कि शैफाली के घर वालों की स्वीकृति के बाद वह अपने घर वालों को भी मना लगा. उस ने अभी तक अपने मांबाप को अपने प्यार के बारे में कुछ भी नहीं बताया था. घर में उस की बहन शिवानी ही उस की प्रेम कहानी जानती थी.

शैफाली की मां रेनू ने संदीप को देखा तो उस की शक्ल सूरत, कदकाठी तो उन्हें पसंद आई. लेकिन जब जाति कुल के बारे में पूछा तो रेनू की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. संदीप दलित समाज का था.

नहीं बनी शादी की बात

संदीप के जाने के बाद रेनू ने शैफाली को डांटा, ‘‘यह क्या गजब किया. दिल लगाया भी तो एक दलित से. राजपूत और दलित का रिश्ता नहीं हो सकता. तू भूल जा उसे, इसी में हम सब की भलाई है. समाज उस से तुम्हारा रिश्ता स्वीकर नहीं करेगा. हम सब का हुक्कापानी बंद हो जाएगा. तुम्हारी अन्य बहनें भी कुंवारी बैठी रह जाएंगी. भाई को भी कोई अपनी बहनबेटी नहीं देगा.’’

शैफाली ने ठंडे दिमाग से सोचा तो उसे लगा कि मां जो कह रही हैं, सही बात है. इसलिए उस ने उस वक्त तो मां से वादा कर लिया कि वह संदीप को भूल जाएगी. लेकिन वह अपना वादा निभा नहीं सकी. वह संदीप को अपने दिल से निकाल नहीं पाई.

संदीप के बारे में वह जितना सोचती थी उस का प्यार उतना ही गहरा हो जाता. आखिर उस ने निश्चय कर लिया कि चाहे जो भी हो, वह संदीप का साथ नहीं छोड़ेगी. शादी भी संदीप से ही करेगी.

भूरा राजपूत को शैफाली और संदीप की प्रेम कहानी का पता चला तो उस ने पहले तो पत्नी रेनू को आड़े हाथों लिया, फिर शैफाली को जम कर फटकार लगाई. साथ ही चेतावनी भी दी, ‘‘शैफाली, तू कान खोल कर सुन ले, अगर तू इश्क के चक्कर में पड़ी तो तेरी पढ़ाई लिखाई बंद हो जाएगी और तुझे घर से बाहर जाने की इजाजत नहीं मिलेगी.’’

घर वालों के विरोध के कारण शैफाली भयभीत रहने लगी. वह अच्छी तरह जान गई थी कि परिवार वाले उस की शादी किसी भी कीमत पर संदीप के साथ नहीं करेंगे. उस ने यह बात संदीप को बताई तो उस का दिल बैठ गया. वह बोला, ‘‘शैफाली घर वाले विरोध करेंगे तो क्या तुम मुझे ठुकरा दोगी?’’

‘‘नहीं संदीप, ऐसा कभी नहीं होगा., मैं तुम से प्यार करती हूं और हमेशा करती रहूंगी. हम साथ जिएंगे, साथ मरेंगे.’’

‘‘मुझे तुम से यही उम्मीद थी, शैफाली.’’ कहते हुए संदीप ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. उस की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे.

रेनू अपनी बेटी शैफाली पर भरोसा करती थीं. उन्हें विश्वास था कि समझाने के बाद उस के सिर से इश्क का भूत उतर गया है. इसलिए उन्होंने शैफाली के घर से बाहर जाने पर एतराज नहीं किया. लेकिन उस का पति भूरा राजपूत शैफाली पर नजर रखता था. उस ने  पत्नी से कह रखा था कि शैफाली जब भी घर से निकले, छोटी बहन के साथ निकले.

संदीप ने बुला लिया शैफाली को

13 जून, 2019 की सुबह 8 बजे संदीप के पिता दिनेश कमल अपनी पत्नी माधुरी बेटी शिवानी तथा बेटे मुन्ना के साथ अपने गांव चिलौली (कानपुर देहात) चले गए. दरअसल, बरसात शुरू हो गई थी. उन्हें मकान की मरम्मत करानी थी. उन्हें वहां सप्ताह भर रुकना था. जाते समय संदीप की मां माधुरी ने उस से कहा, ‘‘बेटा संदीप, मैं ने पराठा, सब्जी बना कर रख दी है. भूख लगने पर खा लेना.’’.

मांबाप, भाईबहन के गांव चले जाने के बाद घर सूना हो गया. ऐसे में संदीप को तन्हाई सताने लगी. इस तनहाई को दूर करने के लिए उस ने अपनी प्रेमिका शैफाली को फोन किया, ‘‘हैलो, शैफाली आज मैं घर पर अकेला हूं. घर के सभी लोग गांव गए हैं. तुम्हारी याद सता रही थी. इसलिए जैसे भी हो तुम मेरे घर आ जाओ.’’

‘‘ठीक है संदीप, मैं आने की कोशिश करूंगी.’’ इस के बाद शैफाली तैयार हुई और मां से प्यार जताते हुए बोली, ‘‘मां, कुछ दिन पहले मैं अपनी सहेली शिवानी से कुछ किताबें लाई थी. उसे किताबें वापस करने उस के घर जाना है. घंटे भर बाद वापस आ जाऊंगी.’’ मां ने इस पर कोई ऐतराज नहीं किया.

शैफाली किताबें वापस करने का बहाना बना कर घर से निकली ओर संदीप के घर जा पहुंची. संदीप उस का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. उस के आते ही संदीप ने उसे बांहों में भर कर चुंबनों की झड़ी लगा दी. इस के बाद दोनों प्रेमालाप में डूब गए.

दोनों ने लगा लिया मौत को गले

इधर भूरा राजपूत घर पहुंचा तो उसे अन्य बेटियां तो घर में दिखीं पर शैफाली नहीं दिखी. उस ने पत्नी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह सहेली के घर किताबें वापस करने लगने लगी थी. यह सुनते ही भूरा का मथा ठनका. उसे शक हुआ कि शैफाली बहाने से घर से निकली है और प्रेमी संदीप से मिलने गई है.

भूरा ने कुछ देर शैफाली के लौटने का इंतजार किया, फिर उस की तलाश में घर से निकल से निकल पड़ा. वह सीधा संदीप के घर पहुंचा. संदीप घर पर ही था. शैफाली के बारे में पूछने पर उस ने भूरा से झूठ बोल दिया कि शैफाली उस के घर नहीं है. शैफाली को ले कर भूरा की संदीप से हाथापाई भी हुई फिर वह पुलिस लाने की धमकी दे कर वहां से पुलिस चौकी चला गया.

संदीप ने शैफाली को घर में ही छिपा दिया था. पिता की धमकी से वह डर गई थी. उस ने संदीप से कहा, ‘‘संदीप, घर वाले हम दोनों को एक नहीं होने देंगे. और मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकती. अब तो बस एक ही रास्ता बचा है वह है मौत का. हम इस जन्म में न सही अगले जन्म में फिर मिलेंगे.’’

संदीप ने शैफाली को गौर से देखा फिर बोला, ‘‘शैफाली मैं भी तुहारे बिना नहीं जी सकता. मैं तुम्हारा साथ दूंगा. इस के बाद दोनों ने मिल कर पंखे के कुंडे से साड़ी बांधी और साड़ी के दोनों किनारों का फंदा बनाया, एकएक फंदा डाल कर दोनों झूल गए. कुछ ही देर में उन की मौत हो गई.

इधर भूरा राजपूत अपने साथ पुलिस ले कर संदीप के घर पहुंचा. बाद में पुलिस को कमरे में संदीप और शैफाली के शव फंदों से झूले मिले. इस के बाद दोनों परिवारों में कोहराम मच गया.

इश्क में अंधी मां का गुनाह

11 साल के वंश (Vansh) और 7 साल के यश (Yash) की लाशें गन्ने के खेत में पड़ी थीं. उन की हत्या गला घोंट कर की गई थी. दोनों ही बच्चे स्कूल की ड्रेस में थे. दोनों भाइयों की लाशें देख कर पुलिस का कलेजा भी कांप उठा था. पुलिस ने मौके पर ही फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया था. मौके की सारी काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने दोनों बच्चों की लाशें पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दीं.

सोनीपत (Sonipat), हरियाणा के खूबसूरत पिकनिक स्थल सिटी पार्क के अंदर दाखिल हो कर रूबी ने इधरउधर नजरें दौड़ाईं. अंदर घास पर और पेड़ों के नीचे अनेक प्रेमी जोड़े सिर से सिर जोड़े बैठे प्रेमालाप में मग्न दिखाई दिए. उन में वह नहीं था, जिस के लिए रूबी अपना काम छोड़ कर यहां आई थी.

रूबी का मन उदास हो गया. निराशा उसे घेरती इस से पहले ही किसी ने उस के पीछे से उस की आंखों पर हथेलियां रख दीं, एक चहकता स्वर रूबी के कानों से टकराया, ”पहचानो कौन?’’

”नितिन,’’ रूबी खुशी से चहक पड़ी. उस ने हाथ बढ़ा कर आंखें बंद करने वाले के हाथ पकड़ लिए और उस की तरफ पलट गई.

उस के सामने नितिन खड़ा मुसकरा रहा था. वह फूलों के डिजाइन वाली शानदार शर्ट और आसमानी रंग की जींस पहने हुए था, पैरों में काले रंग के स्पोट्र्स शूज थे. आधुनिक कपड़ों में उस की पर्सनैल्टी बहुत प्रभावित कर रही थी.

नितिन को ऊपर से नीचे तक हैरानी से देखते हुए रूबी बोली, ”आज तो बहुत जंच रहे हो.’’

”तुम भी तो कयामत बरपा रही हो जान,’’ नितिन ने उस के गाल पर चिकोटी काटते हुए कहा.

”तुम्हें यहां न देख कर मैं निराश हो गई थी,’’ रूबी ने विषय बदला, ”कहां रह गए थे?’’

”यहीं था, उस पेड़ के पीछे खड़ा तुम्हारी राह देख रहा था. तुम्हें छकाने के लिए पेड़ की ओट में छिप गया था.’’

”छिपे क्यों?’’ रूबी ने हैरानी से पूछा.

”देख रहा था, मुझे न पा कर तुम कितनी बेचैन होती हो.’’

रूबी ने गहरी सांस भरी. नितिन की बांहों को थाम कर वह भावुक स्वर में बोली, ”मैं तुम्हारे बगैर एक पल भी नहीं रह पाऊंगी नितिन, यह मुझे आज महसूस हुआ. यहां तुम नजर नहीं आए तो मेरा दिल तड़प उठा था. मैं यूं उदास हो गई, जैसे मेरी अपनी कोई प्यारी चीज गुम हो गई हो.’’

नितिन ने रूबी को बांहों में ले लिया, ”मेरा भी हाल तुम्हारे जैसा ही है रूबी. तुम्हें बगैर एक बार देखे मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता. तुम्हारे लिए मैं बेचैन हो जाता हूं.’’

”तो फिर मुझे हमेशा के लिए अपना क्यों नहीं बना लेते तुम?’’

”अपनाऊंगा मेरी जान, इसी विषय पर बात करने के लिए मैं ने तुम्हें आज काम से नागा कर यहां बुलाया है.’’ नितिन थोड़ा गंभीर हो गया, ”आओ, कहीं बैठ कर बात करते हैं.’’

रूबी की कमर में हाथ डाले नितिन पार्क में एक पेड़ की तरफ बढ़ गया, उस पेड़ के आसपास कोई जोड़ा नहीं बैठा था. एकदम सन्नाटे भरी जगह थी वह. दोनों पेड़ से सट कर बैठ गए.

”तुम मुझे कितना चाहती हो रूबी?’’ नितिन ने रूबी की आंखों में झांकते हुए पूछा.

”अपनी जान से ज्यादा.’’ रूबी तपाक से बोली, ”लेकिन तुम ऐसा क्यों पूछ रहे हो?’’

”तुम शादीशुदा हो न रूबी?’’ नितिन एकदम गंभीर हो गया.

”शादीशुदा हूं नहीं, थी नितिन. मैं ने अपने पति से 4 साल पहले तलाक ले लिया था. यह बात मैं ने तुम्हें उसी वक्त बता दी थी, जब तुम प्यार का इजहार करने पहली बार मेरे करीब आए थे.’’

”हां. तब तुम ने यह भी बताया था कि तुम अपनी स्वर्गवासी बहन के 2 बच्चे पाल रही हो.’’

”तब तुम ने आज यह सवाल क्यों उठाया है?’’

”इसलिए कि तुम्हारा मुझ से शादी करने के बाद फिर से अपने पूर्वपति की ओर झुकाव तो नहीं हो जाएगा.’’

रूबी ने नितिन को घूरा, ”दारू पी कर आए हो क्या आज?’’ रूबी तिलमिला गई, ”यदि मुझे ऐसा ही करना होता तो मैं तुम्हारी ओर प्यार भरा हाथ नहीं बढ़ाती, कभी का अपने पूर्व पति की चौखट पर चली जाती. लेकिन मैं ने ऐसा नहीं किया. मैं ने अपने पति से तलाक लिया है. 4 साल से उस से अलग रह रही हूं. 4 साल बहुत होते हैं नितिन. मैं ने पति को छोड़ कर अकेला जीना सीख लिया है. तुम मेरी जिंदगी में आने वाले दूसरे मर्द हो, तुम्हें मैं ने अपना दिल दिया है, मैं तुम से सच्ची मोहब्बत करती हूं. यदि तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है तो हम रास्ता बदल लेते हैं.’’

”ऐसा मत कहो रूबी, तुम मेरी जान हो, मेरी जिंदगी हो.’’ नितिन का स्वर भीग गया. उस की आंखों में आंसू आ गए.

”रास्ता बदलने की बात फिर कभी मत करना. मैं जी नहीं पाऊंगा तुम्हारे बगैर,’’ रूबी ने तेवर ढीले कर लिए. उस ने अपनी बाहें फैला दीं और नितिन को अपनी ओर खींच लिया. नितिन उस के सीने से बच्चे की तरह सट गया. अब दोनों की ही आंखें बरस रही थीं. यह उन के प्यार का सच्चा सबूत हो सकता था.

22 फरवरी, 2024 को अच्छी धूप खिली थी. सोनीपत के सिविल लाइंस थाने के एसएचओ सतबीर सिंह कक्ष से बाहर धूप में बैठे अखबार देख रहे थे, तभी एक 30-32 साल की महिला बदहवासी की हालत में वहां आई.

एसएचओ सतबीर ने अखबार एक ओर कर के उस महिला को गौर से देखते हुए पूछा, ”क्या हुआ, तुम इतनी घबराई हुई क्यों हो?’’

”साहब, मेरे बच्चे गुम हो गए हैं.’’

”बच्चे…’’ एसएचओ चौंके, ”कितने बच्चे गुम हुए हैं तुम्हारे?’’

”2 बच्चे साहब. कल दोनों सुबह स्कूल गए थे, लेकिन तब से अभी तक घर नहीं लौटे हैं.’’ कहते हुए महिला रोने लगी.

एसएचओ उठ कर खड़े हो गए. उन्होंने हैरानी से पूछा, ”कल बच्चे स्कूल गए थे और घर नहीं लौटे. वे दोपहर में घर आते होंगे तब कल से अभी तक तुम यह गुमशुदगी दर्ज करवाने यहां क्यों नहीं आई?’’

”साहब, मैं एक फैक्ट्री में काम करने जाती हूं. सुबह जाती हूं तो शाम को ही लौटती हूं. कल बच्चों को स्कूल भेज कर मैं काम पर चली गई थी. शाम को लौटी तो मुझे घर के दरवाजे पर ताला लगा दिखा. जबकि रोज घर का दरवाजा खुला मिलता था. मैं ने सोचा बच्चे आसपड़ोस में जा कर बैठ गए होंगे. मैं ने आसपास के घरों में उन्हें तलाश किया.

मुझे पड़ोसियों ने बताया कि उन्होंने बच्चों को दोपहर में यहां नहीं देखा. वह घर लौटे या नहीं, उन लोगों को नहीं मालूम. तब मैं बहुत घबरा गई. मैं ने बच्चों के स्कूल जा कर पता किया तो वहां मौजूद चौकीदार ने बताया कि बच्चे दोपहर को स्कूल बंद हुआ तो घर के लिए चले गए थे. मैं रात भर इधरउधर जानपहचान वालों के घर दौड़ती रही, लेकिन बच्चे कहीं भी नहीं मिले. साहब, मेरे बच्चों का किसी ने अपहरण कर लिया है. आप उन्हें ढूंढ दीजिए,’’ महिला जोरजोर से रोने लगी.

”चुप हो जाओ.’’ एसएचओ ने उसे सांत्वना देते हुए कहा, ”रोने से बच्चे नहीं मिलेंगे. बैठ जाओ और विस्तार से सब बताओ मुझे.’’

महिला कुरसी पर बैठ गई. उस ने दुपट्टे से अपने आंसू पोंछे तो एसएचओ ने एक सिपाही से पानी मंगवा कर महिला को पीने को दिया. जब वह थोड़ा सामान्य हुई तो एसएचओ ने दूसरी कुरसी पर बैठते हुए पूछा.

”क्या नाम है तुम्हारा?’’

”जी रूबी.’’

”जो बच्चे गुम हुए हैं उन के नाम, उम्र बताओ.’’

”बड़े का नाम वंश है साहब, उम्र 11 वर्ष है. दूसरे का नाम यश है, वह 7 साल का है.’’

”इन के पिता का नाम क्या है?’’

”बच्चों के पिता का नाम राहुल है साहब, लेकिन उस से मेरा 7 साल बाद तलाक हो गया था. मैं उस से अलग आदर्श नगर की गली नंबर 5 में बच्चों के साथ रहती हूं साहब. एक फैक्ट्री में काम कर के अपना और बच्चों का पेट भरती हूं.’’

”बच्चे किस स्कूल में पढ़ते थे?’’ एसएचओ सतवीर सिंह ने पूछा.

”वह मशद मोहल्ला में स्थित स्कूल में पढ़ते थे साहब, आप उन्हें तलाश करवाइए साहब. मैं अपने बच्चों के बगैर जिंदा नहीं रह पाऊंगी,’’ रूबी फिर से रोने लगी .

”बच्चों के फोटो लाई हो तुम?’’

”जी हां, साहब.’’ रूबी ने कहने के बाद चोली में रखे पर्स से निकाल कर दोनों बच्चों के फोटो एसएचओ को दे दिए.

एसएचओ ने रूबी के दोनों बच्चों की गुमशुदगी को अज्ञात के खिलाफ धारा-365 के अंतर्गत दर्ज करवा कर रूबी से 2-3 सवाल और पूछे. फिर उसे यह आश्वासन दे कर रूबी को घर भेज दिया कि उस के बच्चों की तलाश में कोई कोरकसर नहीं छोड़ी जाएगी.

एसएचओ सतबीर ने रूबी के 2 बच्चों के लापता होने की जानकारी डीसीपी नरेंद्र कादयान और एसीपी नरसिंह को भी दे दी.

2 बच्चों का अपहरण बहुत गंभीर बात थी. डीसीपी नरेंद्र कादयान ने इस मामले की जांच के लिए सेक्टर-7 की एंटी गैंगस्टर यूनिट को जिम्मेदारी सौंपते हुए एसएचओ सतबीर सिंह को भी पूरी तरह मामले में सक्रिय रहने का निर्देश दे दिया.

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एसआई सबल सिंह

एंटी गैंगस्टर यूनिट का गठन आपराधिक गतिविधियों में लिप्त गैंगस्टर्स और पेचीदा केसेस के लिए किया गया था. इस यूनिट के इंचाज इंसपेक्टर अजय धनखड़ थे. इन की टीम में एसआई रविकांत, सबल सिंह, एएसआई संदीप, जितेंद्र, हैडकांस्टेबल प्रदीप और सिपाही विनोद कुमार थे.

इंसपेक्टर अजय धनखड़ ने रूबी के बच्चों वंश और यश के फोटो एसएचओ सतबीर सिंह से ले कर सभी थानों में फ्लैश करवा दिए. थानों में सूचना भिजवा दी गई कि इन बच्चों के विषय में कोई भी जानकारी मिलने पर एंटी गैंगस्टर यूनिट, सेक्टर-7 को सूचित किया जाए.

यूनिट की टीम सब से पहले रूबी से पूछताछ करने उस के घर गली नंबर- 5 आदर्श नगर पहुंच गई. रूबी घर पर ही थी. उस ने बच्चों के विषय में पूछताछ करने पर इस टीम को भी वही सब कुछ बताया, जो वह सिविल लाइंस थाने के एसएचओ सतबीर को कल सुबह बता कर आई थी.

”तुम्हारा पति से तलाक क्यों हुआ था?’’ इंचार्ज धनखड़ ने उस से सवाल पूछा.

”मेरा पति राहुल और उस के परिवार वाले अच्छे लोग नहीं थे साहब, मुझे शादी के बाद से ही छोटीछोटी बातों पर परेशान करते थे. राहुल दारू पीता था और घर वालों के उकसाने पर मुझे मारता था. मैं उस के 2 बच्चों की मां बन गई, फिर भी राहुल का व्यवहार मेरे प्रति पहले जैसा ही रहा. वह घर वालों के कहने पर चलने वाला अक्खड़ इंसान था. आखिर तंग आ कर मैं ने उस से कोर्ट द्वारा तलाक ले लिया और यहां रहने लगी.’’

”बच्चे तो राहुल के भी थे, उस ने अपने बच्चे तुम्हें कैसे सौंप दिए?’’

”वह बच्चे नहीं देता साहब. यह तो मैं ने कोर्ट से गुहार लगाई कि बच्चे छोटे हैं, उन्हें मैं ही पाल सकती हूं, इन का बाप दारूबाज और लापरवाह इंसान है. वह बच्चों को ठीक से नहीं संभाल पाएगा, तब कोर्ट ने बच्चों को मेरे हवाले कर दिया था.’’

”तुम्हारा पति राहुल कहां रहता है, उस का पता बताओ.’’

”वह विकास नगर में रहता है साहब.’’ रूबी ने कहने के बाद राहुल का पता टीम इंचार्ज को लिखवा दिया. फिर रोते हुए बोली, ”साहब, वंश और यश मेरी आंखों के तारे हैं, मेरे बुढ़ापे का सहारा वही बनते साहब. आप मेरे बच्चों की तलाश कर के उन्हें मेरी झोली में डाल दीजिए.’’

”तुम्हें किसी पर शक है? ऐसा व्यक्ति जो तुम्हारे साथ दुश्मनी रखता हो?’’

”यहां आप आसपड़ोस में मेरे व्यवहार के बारे में पूछताछ कर लें, मैं सभी के साथ अच्छे पड़ोसी की तरह रहती आई हूं. यहां सभी मेरे बच्चों से बहुत प्यार करते थे, इसलिए यहां तो मेरे बच्चों का कोई दुश्मन नहीं हो सकता. हां, मुझे राहुल पर शक है, वह बच्चों को अपने साथ रखने के लिए उन का अपहरण कर सकता है. आप उस से पूछताछ करिए.’’

”ठीक है, हम राहुल से पूछताछ कर लेंगे. तुम्हें यदि बच्चों के बारे में कुछ भी पता चले तो हमें खबर देना.’’

रूबी को हिदायत दे कर इस टीम ने रूबी के आसपड़ोस में उस के बच्चों वंश और यश से रूबी के व्यवहार के विषय में जानकारी जुटाई. उन्हें बताया गया कि रूबी अपने बच्चों से बहुत प्यार करती थी, वह यहां सब के साथ मेलमिलाप के साथ रहती है. उस के बच्चों से सभी प्यार करते हैं. दोनों बच्चे बहुत मासूम और हंसमुख हैं, उन्हें जल्दी तलाश किया जाए.

इंचार्ज अजय धनखड़ ने उन्हें यह आश्वासन दिया कि रूबी के बच्चों को शीघ्र सकुशल तलाश कर के रूबी को सौंप दिया जाएगा. टीम रूबी के पूर्वपति से पूछताछ करने के लिए विश्वास नगर के लिए रवाना हो गई.

एंटी गैंगस्टर यूनिट की टीम ने राहुल के बारे में धारणा बनाई थी कि वह नशेड़ी स्वभाव और अक्खड़ दिमाग वाला व्यक्ति होगा, लेकिन जब टीम राहुल के घर गई तो शांत स्वभाव वाले दुबले पतले व्यक्ति ने उन का स्वागत किया. यह राहुल था.

राहुल को देख कर नहीं लगता था कि वह नशा करता होगा. इस टीम को अपने दरवाजे पर देख कर उस ने बहुत हैरानी से पूछा, ”कौन हैं आप लोग? मैं ने आप को पहले कभी नहीं देखा.’’

”हम हरियाणा पुलिस की एंटी गैंगस्टर यूनिट से हैं, तुम से मिलने आए हैं.’’ एसआई सबल सिंह ने बताया.

”ओह!’’ राहुल चौंक कर बोला, ”आप सब अंदर आ कर बैठिए.’’

टीम में 7 लोग थे, वे अंदर आ गए.

यह साधारण सा कमरा था, बहुत व्यवस्थित और साफसुथरा. अंदर पलंग और सोफा था. एंटी गैंगस्टर यूनिट के लोग पलंग और सोफा पर बैठ गए.

”क्या सेवा करूं मैं आप लोगों की?’’ हाथ जोड़ कर राहुल ने शिष्टाचार दर्शाते हुए पूछा, ”ठंडा लेंगे या गरम?’’

”हम कुछ देर पहले ही लंच कर के तुम्हारे पास आए हैं, इसलिए परेशान मत होओ. सामने बैठ जाओ, हमें तुम से कुछ पूछताछ करनी है.’’ राहुल स्टूल खींच कर उस पर बैठ गया, ”पूछिए साहब, आप मुझ से क्या पूछना चाहते हैं?’’

”राहुल, तुम्हारे बच्चे वंश और यश का 21 फरवरी को किसी ने अपहरण कर लिया है.’’ टीम इंचार्ज अजय धनखड़ ने गंभीर स्वर में कहा तो राहुल कुछ पल के लिए हैरान रह गया.

”क्या कह रहे हैं साहब,’’ राहुल विचलित हो कर अपनी जगह खड़ा हो गया, ”किस ने किया मेरे बच्चों का अपहरण?’’

”यह हम तुम से पूछने आए हैं, तुम्हारी पूर्वपत्नी रूबी का कहना है कि तुम ने बच्चों का अपहरण किया है.’’

”झूठ बोलती है साहब रूबी, भला मैं अपने बच्चों का अपहरण क्यों करूंगा. मेरी तो वे आंखों के तारे हैं, साहब.’’

”तुम्हारे बच्चे 21 फरवरी को स्कूल गए थे, तभी से वे घर नहीं लौटे हैं. रूबी ने उन्हें हर जगह ढूंढ लिया है. तुम्हें किसी पर शक है?’’ राहुल कुछ देर शांत बैठा कुछ सोचता रहा. फिर एकदम से बोला, ”साहब, यह काम रूबी ही कर सकती है, बच्चे रूबी ने ही लापता किए हैं. नाम मेरा ले रही है.’’

”रूबी बच्चों को अपनी जान से ज्यादा चाहती है, वह अपने ही बच्चों को भला क्यों गायब करेगी.’’

”उसे अपने प्रेमी से शादी रचानी है साहब. बच्चों को उस ने लापता ही नहीं किया होगा, हो सकता है कि उस ने बच्चों का अहित भी कर दिया हो.’’ राहुल आक्रोश में आ गया, ”मैं ने तलाक के समय ही कोर्ट से प्रार्थना की थी कि बच्चे मुझे सौंपे जाएं, मैं बाप हूं उन का, लेकिन कोर्ट ने बच्चे उस निर्लज्ज रूबी के हवाले कर दिए. आज अपनी आशिकी में अंधी हो कर उस ने बच्चों को गायब कर दिया है.’’

राहुल द्वारा बताई गई बात ने सभी को चौंका दिया. यूनिट इंचार्ज अजय धनखड़ ने हैरानी से पूछा, ”क्या तुम दावे के साथ कह रहे हो कि रूबी का कोई आशिक भी है.’’

”आशिक है साहब, मुझ से तलाक लेने के बाद ही रूबी उस के प्रेमजाल में फंस गई थी.’’

”उस का नामपता, ठिकाना जानते हो तुम?’’

”हां, नितिन पुत्र राकेश सिंह. साहब, यह बागपत के बरनावा गांव का है, वह सेक्टर-27, कबीरपुर में किराए पर रहता है. यहां बढ़ई का काम करता है. मेरे बच्चों का अपहरण इस ने ही रूबी के कहने पर किया होगा.’’

”तुम ने हमें नई जानकारी दी है. हम नितिन को चैक करते हैं.’’ टीम इंचार्ज अजय धनखड़ उठते हुए बोले. वह टीम के साथ बाहर आ गए. राहुल की जानकारी से इस केस में नया मोड़ आ गया था.

एंटी गैंगस्टर यूनिट (क्राइम ब्रांच) की टीम को राहुल के बयान से एक नई राह मिल गई थी. वह उसी दिशा में काम कर रही थी. 2 दिन बीत गए थे, लेकिन अभी तक रूबी के लापता हुए दोनों बेटों वंश और यश का कुछ पता नहीं चला था. रूबी 2 दिनों से थाना सिविल लाइंस के चक्कर लगा रही थी, उस का रोरो कर बुरा हाल हो गया था.

एसएचओ सतबीर उसे एक ही बात कहते, ”धीरज रखो, तुम्हारे बच्चों की खोज जारी है, वह शीघ्र मिल जाएंगे. उन्हें सकुशल हासिल किया जाएगा.’’

इधर एंटी गैंगस्टर यूनिट के एसआई सबल सिंह टीम के साथ उस स्कूल में पहुंच गए थे, जहां वंश और यश पढ़ते थे. स्कूल प्रशासन का कहना था, ”21 फरवरी को दोनों बच्चों को उन की मां रोज की तरह स्कूल छोडऩे आई थी. दोनों बच्चे दोपहर में स्कूल की छुट्टी होने तक स्कूल में ही थे. फिर छुट्टी के बाद अपने घर के लिए निकल गए थे.’’

बच्चे स्कूल से अपने घर आदर्श नगर के लिए पैदल ही जाते थे तो जाहिर सी बात थी स्कूल और घर के बीच ही उन का अपहरण किया गया होगा.

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                                                 मृतक यश और वंश

एंटी गैंगस्टर यूनिट टीम स्कूल के आसपास लगे सीसीटीवी चैक करना चाहती थी. स्कूल के सामने वाली सड़क पर सीसीटीवी कैमरा था, जो मुख्य दरवाजे को कवर कर रहा था. यूनिट टीम ने उस सीसीटीवी कैमरे की फुटेज हासिल कर के देखी तो उन के चेहरे खुशी से चमक उठे.

21 फरवरी की फुटेज में वंश और यश स्कूल के मेनगेट से थोड़ा आगे एक बाइक पर बैठते दिखाई दे गए. बाइक को पकड़ कर जो व्यक्ति खड़ा था, वह लंबे कद वाला दुबलापतला था. एंटी गैंगस्टर यूनिट वाले उसे उस कैमरे की फुटेज में नहीं पहचान पाए. आगे लगे दूसरे कैमरों की फुटेज देखी गई तो यूनिट के लोगों की बांछें खिल गईं.

आगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज में उस बाइक वाले का चेहरा साफ दिखाई दे रहा था. वंश और यश बाइक के पीछे जिस इत्मीनान से बैठे थे, उस से लग रहा था कि वह बाइक वाले से अच्छी तरह परिचित हैं. अनुमान लगाया गया कि यह रूबी का प्रेमी नितिन ही होगा.

नितिन को दबोचना जरूरी था. क्योंकि बच्चे वही ले कर गया था. एंटी गैंगस्टर यूनिट के टीम प्रभारी अजय घनखड़ के नेतृत्व में सेक्टर-27 के कबीरपुर में पहुंच गई. नितिन का घर ढूंढने में उन्हें ज्यादा वक्त नहीं लगा.

यह यूनिट टीम अभी नितिन के घर पहुंची भी नहीं थी कि घर की छत से कोई भागने के चक्कर में नीचे कूदा. यूनिट की टीम उस की तरफ दौड़ी, लेकिन वह कूद कर भागने लायक नहीं रह गया था. उस की टांग टूट गई थी. दर्द से वह बुरी तरह चीखने लगा था.

”कौन हो तुम?’’ टीम इंचार्ज अजय धनखड़ ने उसे घूरते हुए पूछा.

”नितिन,’’ वह दर्द से कराहते हुए बोला.

एंटी गैंगस्टर यूनिट टीम ने उसे वैन में डाल लिया और सोनीपत के जिला अस्पताल में ले आए. उसे वहां उपचार के लिए भरती करवा दिया गया. डाक्टरों को जब मालूम हुआ कि यह व्यक्ति मुलजिम है और साथ में पुलिस की टीम है तो उस की टूटी हुई टांग का तुरंत एक्सरे आदि कर के प्लास्टर चढ़ा दिया गया. नितिन दर्द सह सके, इस के लिए उसे पेनकिलर दवा दे दी गई.

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                                                          हत्यारोपी नितिन

जब नितिन थोड़ा सामान्य हुआ तो एंटी गैंगस्टर यूनिट इंचार्ज अजय धनखड़ ने उस से पूछताछ शुरू की. बगैर भूमिका बांधे उन्होंने नितिन से सवाल किया, ”नितिन, तुम 21 फरवरी को वंश और यश को स्कूल पास से बाइक पर बिठा कर कहां ले गए थे?’’

”हम घूमने गए थे साहब,’’ नितिन ने हलकी कराहट के साथ बताया, ”बच्चे कई दिनों से घूमने की जिद कर रहे थे मुझ से.’’

”ओह!’’ अजय घनखड़ उस के सफेद झूठ पर मुसकराए, ”घूमने गए थे तो, तुम ने वापसी में दोनों बच्चों को कहां छोड़ा था? बच्चे तो उस दिन घर पहुंचे ही नहीं.’’

”मैं ने तो दोनों को आदर्श नगर में ही छोड़ा था साहब, मुझे नहीं पता फिर बच्चे कहां गए.’’ इस बार भी उस ने सफेद झूठ बोला था.

अजय धनखड़ ने उस के प्लास्टर वाली टांग पर जोर से प्रहार किया तो नितिन दर्द से बिलबिला कर बुरी तरह चीखा.

”झूठ बोलोगे तो मैं तुम्हारी टांग दोबारा तोड़ दूंगा. मुझे सचसच बताओ, वंश और यश कहां हैं?’’

”मैं ने उन्हें मार दिया साहब,’’ नितिन ने कराहते हुए खुलासा किया तो एंटी गैंगस्टर यूनिट की टीम के लोग स्तब्ध रह गए.

थोड़ी देर तक सभी सदमे में रहे. टीम इंचार्ज अजय धनखड़ ने चुप्पी तोड़ी, ”तुम ने बच्चों की हत्या कहां की थी?’’

”साहब, बागपत के पास बाघु और नौराजपुर गांव के बीच में गौरीपुर गांव के गन्ने के खेत हैं. मैं दोनों बच्चों को घुमाने के बहाने से गन्ने के खेत में ले गया और बारीबारी से उन की गरदन दबा कर उन्हें मार दिया है. उन की लाश गन्ने के खेत में ही छिपा दी थी मैं ने.’’ नितिन बोला.

”एक बात बताओ, तुम और रूबी एकदूसरे से गहरा प्रेम करते थे फिर तुम को वंश और यश की हत्या करने की क्यों सूझी. उन मासूम बच्चों से तुम्हें क्या परेशानी थी?’’ प्रभारी अजय धनखड़ ने पूछा.

”साहब, वे बच्चे राहुल के थे. रूबी मुझ पर शादी का दबाब डाल रही थी. मैं उसे अपनाने को तैयार था, लेकिन मैं नहीं चाहता था कि मेरे साथ शादी के बंधन में बंध जाने के बाद वह पिछली शादी की यादें मेरे घर, मेरी जिंदगी में लाए. पहले रूबी कहती थी कि बच्चे उस की स्वर्गवासी बहन के हैं. बाद में मुझे मालूम हुआ कि बच्चे रूबी के ही हैं.

”इस बात पर मेरा रूबी से कई बार झगड़ा हुआ, लेकिन रूबी बच्चों को खुद से दूर करने को राजी नहीं हुई तो मैं ने मन ही मन कठोर निर्णय कर लिया कि मैं बच्चों को रास्ते से हटाने के लिए उन की हत्या कर दूंगा.

”मैं ने यही किया. रूबी ने थाने में बच्चों की गुमशुदगी लिखवा दी थी. तब मैं ने रूबी को बता दिया कि मैं वंश और यश की हत्या कर चुका हूं. रूबी थोड़ी देर रोई, फिर मेरे प्यार की खातिर वह खामोश हो गई. अब वह मुझ से शादी करना चाहती है.’’ नितिन इतना बता कर चुप हो गया.

”कैसी खुदगर्ज औरत है यह. मां के नाम पर कलंक.’’ टीम इंचार्ज बड़बड़ाए.

दोनों बच्चे अब इस दुनिया में नहीं रहे थे. उन की मौत की खबर रूबी को देने पर उसे किसी प्रकार का शाक नहीं लगना था, क्योंकि वह पहले से ही यह बात जानती थी. हां, इस खबर से यदि किसी को दुख पहुंचता तो वह रूबी का पूर्वपति राहुल था. उसे बच्चों की हत्या हो जाने की खबर देना आवश्यक थी.

यूनिट के प्रभारी अजय धनखड़ ने फोन द्वारा राहुल को फौरन सोनीपत के जिला अस्पताल में आने को कह दिया. उन्होंने टीम के एएसआई जितेंद्र और हैडकांस्टेबल प्रदीप को रूबी को यहां लाने के लिए भेज दिया. इन लोगों को यह हिदायत दी गई कि वह रूबी से अभी कुछ न बताएं.

करीब आधा घंटे में राहुल जिला अस्पताल आ गया. वह हैरान था कि यूनिट टीम के इंचार्ज अजय धनखड़ ने उसे अस्पताल में क्यों बुलाया है. उसे अजय धनखड़ बाहर गेट पर ही मिल गए. अजय धनखड़ उसे ले कर उस कमरे में आ गए जहां पर नितिन को रखा गया था.

”इसे पहचानते हो राहुल?’’ अजय धनखड़ ने नितिन की ओर इशारा कर के पूछा.

”यही तो रूबी का प्रेमी है साहब.’’ राहुल ने हैरानी से कहा, ”यह यहां? इस हाल में कैसे है?’’

अजय धनखड़ गंभीर हो गए, ”तुम्हारे बेटों की हत्या की है इस ने, हम इसे पकडऩे इस के घर गए, यह छत से भागने के इरादे से कूदा तो टांग टूट गई.’’

दोनों बेटों की हत्या हो जाने की बात पर राहुल रो पड़ा. टीम इंचार्ज उसे कंधा थपथपा कर सांत्वना देते रहे.

कुछ देर के लिए वहां का माहौल बोझिल बना रहा, फिर राहुल आंसू पोंछता हुआ एक स्टूल पर जा कर बैठ गया. उस ने रूबी को उस कक्ष में टीम के लोगों के साथ अंदर आता देख लिया था.

एएसआई जितेंद्र और हैडकांस्टेबल प्रदीप के साथ रूबी वहां आई थी. अपने प्रेमी नितिन को बैड पर पड़ा देख कर वह समझ गई कि वंश और यश की हत्या का भेद अब भेद नहीं रह गया है. वह मुंह छिपा कर रोने लगी.

”तुम्हारे आंसू अब किसी की सहानुभूति नहीं बटोर सकते रूबी, तुम मां नहीं मां के नाम पर कलंक हो. अपनी मांग में नितिन का सिंदूर सजाने के लिए तुम ने दोनों बेटों की बलि चढ़वा दी.’’ अजय धनखड़ मुंह बिगाड़ कर बोले, ”यह मालूम होते हुए भी कि नितिन तुम्हारे बच्चों की हत्या कर चुका है. तुम पुलिस के साथ उन को ढूंढ लेने की नौटंकी करती रही हो, तुम भूल गई कि अभी हम लोग जिंदा हैं, ऐसे केस का राज जगजाहिर करने के लिए हम रातदिन एक कर देते हैं.’’

”मैं प्यार में अंधी हो गई थी साहब, अपने स्वार्थहित में मैं ने अपने फूल जैसे बच्चों को खो दिया.’’ रूबी कहने के बाद फूटफूट कर रोने लगी.

टीम इंचार्ज अजय धनखड़ आगे की काररवाई में लग गए थे.

एंटी गैंगस्टर यूनिट टीम रात के समय नितिन और रूबी को साथ ले कर बागपत पहुंच गई. गौरीपुर गांव से संबधित थाने में यहां आने का मकसद बता कर उन्होंने आमद दर्ज करवाई. एसएचओ ने एसीपी नरेंद्र प्रताप सिंह को सूचना दी तो वह आधी रात को थाना में आ गए. बिना समय गंवाए सभी नितिन द्वारा बताए जा रहे गौरीपुर गांव में उस गन्ने के खेत में पहुंच गए, जहां नितिन ने वंश और यश की हत्या कर दिए जाने की बात कुबूली थी.

नितिन ने टौर्च की रोशनी में खेत में छिपा कर रखी लाशें बरामद करवा दीं. दोनों बच्चों के शरीर पर स्कूल की ड्रैस थी. उन की लाशें देख कर रूबी दहाड़े मार कर रोने लगी. वहां मौजूद सभी पुलिस वालों की आंखें भी नम हो गईं.

भारी मन से वहां की कागजी काररवाई पूरी की गई और रात के 4 बजे बच्चों की लाश ले कर एंटी गैंगस्टर यूनिट टीम वापस सोनीपत के लिए रवाना हो गई.

सिविल लाइंस थाना सेक्टर-27 में पहुंच कर टीम इंचार्ज अजय धनखड़ ने वंश और यश की लाशें पोस्टमार्टम हेतु जिला अस्पताल भिजवा दीं. नितिन ने इन बच्चों की हत्या का आरोप स्वीकार कर लिया था. उस के खिलाफ भादंवि की धारा 365, 302, 364 आईपीसी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

एंटी गैंगस्टर टीम की सफलता पर उन्हें बधाई देने पुलिस कमिश्नर सतीश वालान, डीसीपी नरेंद्र कादयान और एसीपी नरसिंह थाने में आ गए. इस मामले में एसएचओ सतबीर सिंह, कोर्ट के पास वाली ओल्ड चौकी इंचार्ज एसआई रोहित तथा एसआई शिव माणी और हैडकांस्टेबल टीकम का भी योगदान था. सभी की पीठ थपथपा कर उच्चाधिकारियों ने शाबाशी दी.

नितिन और रूबी को उसी दिन कोर्ट में पेश किया गया. नितिन को न्यायिक हिरासत में जेल भेजा गया. रूबी की ओर से उस के पिता हरपाल सिंह ने बेटी की शक्ल देखने से मना कर दिया था, अत: कोर्ट ने रूबी को नारी निकेतन भेज दिया.

पोस्टमार्टम हो जाने के बाद दोनों बच्चों के शव राहुल को सौंप दिए गए. उस ने परिजनों के साथ नम आंखों से बच्चों का अंतिम संस्कार कर दिया. अब उस के पास बच्चों की यादों के अलावा कुछ भी नहीं बचा था.