‘कठपुतली’ रिव्यू : लड़कियों के सीरियल किलर की रहस्यमयी स्टोरी

‘कठपुतली’ रिव्यू : लड़कियों के सीरियल किलर की रहस्यमयी स्टोरी – भाग 6

अर्जन इति को भागने को बोलता है. अंधेरे में मुठभेड़ होती है, क्रिस्टोफर अर्जन का गला दबाने लगता है, तभी इति वो ट्यून चला देती है. क्रिस्टोफर का ध्यान उधर जाते ही अर्जन क्रिस्टोफर को मार गिराता है, तभी दिव्या भी वहां आ जाती है. अर्जन, दिव्या और इति लिपट जाते हैं और फिल्म का नीरस अंत हो जाता है.

‘कठपुतली’ (Cuttputlli) एक थ्रिलर (Thriller) के रूप में डिजाइन की गई है, लेकिन कहानी और स्क्रीनप्ले में इतने झोल हैं कि दर्शक पहले ही किलर के बारे में समझ जाते हैं. लेखक तुषार त्रिवेदी और असीम अरोड़ा ने अपनी सहूलियत के हिसाब से इस मूवी को लिखा है और यह बात भूल गए कि दर्शक भी सोचने समझने की शक्ति रखते हैं. घुप्प अंधरे में किया फिल्मांकन दर्शकों को निराश करता है.

‘कठपुतली’ में क्राइम है, थ्रिल का कोई नामोनिशान नहीं. इसे देखते हुए आप के मन में क्रिमिनल को जान लेने की जिज्ञासा नहीं जागती. बेहद सपाट तरीके से कहानी आगे बढ़ती है. लगातार मर्डर होते रहते हैं. पर फिल्म में किसी तरह की इंटेसिटी नहीं है.

क्या सिर्फ हर 15 से 20 मिनट में एक मर्डर दिखा देना ही क्राइम थ्रिलर होता है? क्लाइमैक्स में जब इस सेटअप से पेबैक की बारी आती है तो फिल्म हाथ खड़े कर देती है. कहने को फिल्म एक साइकोलौजिकल थ्रिलर बताई जाती है लेकिन इस से बढिय़ा साइकोलौजिकल थ्रिलर (Psychological Thriller) तो राधिका आप्टे की ‘अहिल्या’ है, जो यूट्यूब पर फ्री में उपलब्ध है.

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फिल्म में अक्षय कुमार का काम औसत रहा. रकुलप्रीत सिंह को जो भी दृश्य मिले वो कहानी को आगे नहीं ले जाते. रकुल और अक्षय की उम्र का फर्क साफ नजर आता है.

सरगुन मेहता और चंद्रचूड़ सिंह अपने किरदारों में मिसफिट नजर आए. पुलिस महकमे में केवल अर्जन सेठी को ही होशियार दिखाया गया है, दूसरे पुलिस वाले बुद्धू नजर आते हैं. अर्जन भी केस की कडिय़ों को इतना धीमा जोड़ता है कि दर्शक उस से 2 चाल आगे रहते हैं और जान जाते हैं कि अब क्या होने वाला है.

रकुलप्रीत सिंह

रकुलप्रीत सिंह का जन्म एक पंजाबी परिवार में 10 अक्तूबर, 1990 को नई दिल्ली में हुआ था. उस ने अपनी शुरुआती पढ़ाई आर्मी पब्लिक स्कूल धौलाकुआं, दिल्ली से की है. उस के बाद उस ने गणित में दिल्ली यूनिवर्सिटी से स्नातक की पढ़ाई की थी. वह कालेज के दिनों में नैशनल लेवल की गोल्फ प्लेयर भी रह चुकी है.

उस ने अपने करिअर की शुरुआत बतौर मौडल की थी, उस के बाद उस ने मिस फेमिना इंडिया में हिस्सा लिया था, जिस में वह यह खिताब तो हासिल नहीं कर सकी, मगर उसे इस प्रतियोगिता के दौरान पैंटालून फेमिना, मिस फ्रेश फेस, फेमिना मिस टैलेंटेड, फेमिना मिस ब्यूटीफुल, मिस ब्यूटीफुल स्माइल, मिस ब्यूटीफुल आईज के खिताबों से नवाजा गया था.

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इस प्रतियोगिता के बाद रकुल के लिए हिंदी सिनेमा के दरवाजे खुल गए. उस ने कई तमिल तेलुगु फिल्मों में काम किया. रकुल ने हिंदी सिनेमा में अपनी एंट्री दिव्या कुमार की फिल्म ‘यारियां’ से की थी.

वह इस फिल्म में हिमांशु कोहली के अपोजिट नजर आई थी. यह फिल्म उस साल की पहली सफल फिल्म बौक्स औफिस पर साबित हुई थी. सालों तक एकदूसरे को डेट करने के बाद जैकी भगनानी और रकुलप्रीत सिंह ने 21 फरवरी, 2024 को गोवा में फैमिली और क्लोज फ्रेंड्स की मौजूदगी में सात फेरे लिए थे.

रकुल ने अमिताभ बच्चन के साथ फिल्म ‘मेडे’ में, आयुष्मान खुराना के साथ ‘डाक्टर जी’ में, जौन अब्राहम के साथ ‘अटैक’, अजय देवगन के साथ ‘रनवे 34’, ‘थैंक गौड’ जैसी फिल्मों में काम किया है. उस की फिल्म ‘छतरी वाली’ भी काफी चर्चित रही, जिस में उस ने एक कंडोम बनाने वाली कंपनी में जौब कर सेफ सैक्स को ले कर अच्छा संदेश दिया है. ‘कठपुतली’ फिल्म में भी रकुल के लिए कुछ करने को ज्यादा मौका नहीं मिला है.

सरगुन मेहता

सरगुन मेहता का जन्म 6 सितंबर, 1988 को चंडीगढ़ में हुआ था. वह एक अभिनेत्री, मौडल और टेलीविजन होस्ट है, जिसे मुख्य रूप से पंजाबी सिनेमा में उस के अभिनय के लिए जाना जाता है. सरगुन को 3 पीटीसी पंजाबी फिल्म पुरस्कार और 2 पंजाबी फिल्मफेयर पुरस्कार मिल चुके हैं.

उस ने अपने कालेज में थिएटर परफारमेंस में अभिनय करना शुरू किया और बाद में टेलीविजन भूमिकाओं में कदम रखा. साल 2009 में जी टीवी के ’12/24 करोल बाग’ धारावाहिक के साथ स्क्रीन पर अपनी शुरुआत की.

कलर्स टीवी में सीरियल ड्रामा सीरीज ‘फुलवा’ ने उस के करिअर को एक महत्त्वपूर्ण मोड़ दिया, जिस से उसे आलोचकों द्वारा खूब प्रशंसा मिली. उस ने डांस रियलिटी शो बुगीवुगी किड्स चैंपियनशिप को भी होस्ट किया.

मेहता ने अपनी फीचर फिल्म की शुरुआत साल 2015 की पंजाबी रोमांटिक कौमेडी ‘अंगरेजी’ से की, जो साल की दूसरी सब से अधिक कमाई करने वाली पंजाबी फिल्म के रूप में उभरी. फिल्म में अपने प्रदर्शन के लिए उसे सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पीटीसी पंजाबी फिल्म पुरस्कार मिला.

बाद में सरगुन अन्य सफल पंजाबी फिल्मों में दिखाई दी, जिन में ‘लव पंजाब’ और ‘लाहौरिए’ जैसी फिल्में शामिल हैं. उस ने 4 विभिन्न पुरस्कार समारोहों में 4 वर्षों में 7 सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार जीते हैं.

चंद्रचूड़ सिंह

चंद्रचूड़ सिंह का जन्म 11 अक्तूबर, 1968 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुआ था. चंद्रचूड़ सिंह की मां ओडिशा के बालनगिर के महाराजा की बेटी थीं और पापा बलदेव सिंह यूपी में अलीगढ़ की खैरा सीट से सांसद थे. चंद्रचूड़ सिंह को बचपन से ही ऐक्टिंग के साथ सिंगिंग करने का भी शौक था और इसी वजह से उस ने क्लासिकल की ट्रेनिंग भी ली थी.

यहां तक कि पढ़ाई पूरी करने के बाद स्कूल में म्यूजिक भी सिखाना शुरू कर दिया था और बच्चों को पढ़ाता भी था. इस के अलावा वह आईएएस की तैयारी भी कर रहा था, लेकिन इसी बीच फिल्मों के औफर मिलने की वजह से वह मुंबई आ गया.

चंद्रचूड़ ने अपनी शुरुआती पढ़ाई दून स्कूल, देहरादून से की थी. हिंदी सिनेमा में आने से पहले वह दून स्कूल में बतौर संगीत अध्यापक के तौर पर कार्यरत था. चंद्रचूड़ सिंह की शादी अवंतिका कुमारी से हुई है और उस के एक बेटा भी है.

अभिनेता चंद्रचूड़ सिंह ने अपने करिअर की शुरुआत साल 1990 में फिल्म ‘आवारगी’ से की थी. हालांकि यह फिल्म बीच में ही अटक गई और उस की पहली रिलीज फिल्म साल 1996 में आई ‘तेरे मेरे सपने’ थी.

इस फिल्म के औडिशन का टेप देखने के बाद गुलजार साहब ने उसे फिल्म ‘माचिस’ के लिए साइन किया. यह फिल्म ब्लौकबस्टर रही और चंद्रचूड़ सिंह स्टार बन गया. इस के बाद उसे खासतौर पर ‘जोश’ फिल्म के लिए काफी सराहना मिली.

उसे फिल्म ‘माचिस’ फिल्मफेयर के बेस्ट मेल डेब्यू अवार्ड से भी नवाजा गया था. उस के बाद वह फिल्म ‘दाग द फायर’ और ‘जोश’ जैसी फिल्मों में नजर आया. उस ने कई हिंदी फिल्मों में काम किया, लेकिन कुछ एक हिट फिल्म के अलावा उस की कोई भी फिल्म बौक्स औफिस पर कुछ खास नहीं चल सकी.

‘कठपुतली’ रिव्यू : लड़कियों के सीरियल किलर की रहस्यमयी स्टोरी – भाग 5

स्कूल की छुट्टी होने पर हेलमेट पहने एक बाइक सवार आता है और आयशा उस के साथ बाइक पर बैठ कर चली जाती है. पुलिस टीम उस के पीछेपीछे चलती है. लड़की को स्कूल से लेने कौन आता है और उसे घर से दूर सड़क पर क्यों छोड़ जाता है, यह बात दर्शकों की समझ में नहीं आती है.

लड़की को बाइक सवार एक मोड़ पर छोड़ कर जाता है, तभी एक ब्लू रंग की वैन, जिस का नंबर एचपी02 6587 है, उस के करीब आती है और आयशा गाड़ी के पास जाती है. परमार और अर्जन दूर से उस पर नजर रखते हैं, तभी एक गाड़ी बीच में आ कर खड़ी हो जाती है.

अर्जन और परमार गाड़ी से उतर कर उस तरफ जाते हैं, मगर वह लड़की और वह गाड़ी गायब हो जाती है. थोडी दूर आगे बढऩे पर दोनों की नजर लड़की पर पड़ती है, जो आइसक्रीम के ठेले के पास खड़ी है. उस से बातचीत में पता चलता है कि वह लड़की आयशा की जुड़वां बहन समाया है. आयशा तो स्कूल से माल रोड पर स्थित नृत्य कला की क्लास में चली गई.

एसएचओ परमार फोर्स को माल रोड जाने के लिए कहती है और अर्जन के साथ नृत्य कला क्लास की तरफ रवाना होती हैं. क्लास के अंदर घुसने के पहले ही सिंड्रेला डौल का बौक्स अर्जन को बाहर ही मिल जाता है.

आयशा का जीपीएस ट्रेस करने पर उस की लोकेशन बोझ हाइवे की मिलती है. गुलेरिया वहां से वायरलेस सेट पर कहता है कि वह लेन नंबर 3 में मेरे सामने है. इतने में वह मैजिशियन (यूके के अभिनेता जोशुआ लेक्लेयर) गुलेरिया पर अटैक कर के वहां से निकल जाती है.

मैजिशियन ऐसी जगह आयशा को ले कर जाती है, जहां पूरी तरह से अंधेरा है. आयशा काफी डरी होती है. वह वहां से बाथरूम जाने की कह कर निकलती है और एसआई अर्जन को फोन कर के बताती है कि वह उस मैजिशियन के बाथरूम में है. अर्जन उसे बाथरूम की खिड़की से बाहर निकलने को कहता है. तभी जीपीएस लोकेशन ट्रेस करने वाला कांस्टेबल अली अर्जन को बताता है कि आप आयशा से 50 मीटर की दूरी पर हैं.

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मैजिशियन के रूप में मिला साइको किलर

अर्जन आयशा को फिर से काल कर के कहता है कि वह एक रूम में है, जिस में पियानो रखा है तो आयशा बताती है कि वह उसी रूम से भाग कर आई है, उस रूम में ही मैजिशियन है. तभी मैजिशियन को सामने देख आयशा जोर से चीखती है. उसी समय अली बताता है कि आयशा भी उसी रूम में है, जहां आप हैं.

मैजिशियन आयशा को पकडऩे की कोशिश करती है, तभी अर्जन उस पर गोली चला कर आयशा के पास पहुंच जाता है. इसी दौरान मैजिशियन भाग जाती है. अर्जन आयशा को सुरक्षित बाहर निकाल लाता है.

एसएचओ परमार पूरे शहर की नाकेबंदी करवाती है. दिव्या अपने घर में पुलिस सायरन की आवाज सुन कर अर्जन को फोन लगाती है, तभी अर्जन मैजिशियन के भागने की जानकारी देता है. अपना खयाल रखने की बोल दिव्या मोबाइल को चार्ज में लगाती है तभी घर की बिजली गुल हो जाती है.

दिव्या मोमबत्ती जला कर आती है तो सामने उसी मैजिशियन को देख कर चौंक जाती है. इधर पुलिस टीम मैजिशियन के घर की तलाशी लेती है तो वहां से 2 ब्रिटिश पासपोर्ट मिलने की जानकारी एसआई अर्जन को देती है. बताए गए नाम से अर्जन को याद आता है कि 12 साल पहले कोई ब्रिटिश मैजिशियन एग्नेस फर्नांडीज अपने बेटे क्रिस्टोफर के साथ मनाली आई थी. और अब तक टीनएज स्टूडेंट से बदला ले रही है.

इधर दिव्या उस से बचने के लिए भागती है और फोन उठाती है, तभी मैजिशियन दिव्या को चोट पहुंचा कर गिरा देती है. उसी वक्त अर्जन दिव्या के घर पहुंचता है तो दिव्या बताती है कि मैजिशियन इति को ले कर गई है. अर्जन अंधेरे में ही उस की तलाश में निकल पड़ता है.

सुनसान घने अंधेरे में उसे एक जगह मूवमेंट्स दिखता है और दोनों तरफ से फायरिंग होती है. अर्जन इति के पास पहुंच जाता है, जैसे ही वह इति को ले जाना चाहता है, मैजिशियन अटैक करती है. फिल्मांकन इतना घटिया किया गया है कि कुछ भी स्पष्ट दिखाई नहीं देता.

दोनों की मुठभेड़ में मैजिशियन का विग गिर जाता है और सामने गंजे सिर के आदमी को देख कर अर्जन पहचान लेता है कि यह क्रिस्टोफर है. फिल्मांकन इतना घटिया किया गया है कि कुछ भी स्पष्ट दिखाई नहीं देता.

क्रिस्टोफर क्यों बना साइको किलर

क्रिस्टोफर अर्जन को अपनी कहानी सुनाता है कि 12 साल पहले उस की मां उसे इंडिया लाई थी. लेकिन मेरी बीमारी की वजह से उस की शक्लसूरत का सभी मजाक उड़ाते थे. सोफिया नाम की एक लड़की उसे अच्छी लगती थी, उसे इंप्रेस करने के लिए उस ने मैजिक सीखा, परंतु जब उस ने गुलाब का फूल दे कर उसे प्रपोज किया तो सोफिया ने उसे भलाबुरा कह कर नकार दिया.

उस दिन वह बहुत रोया, बाद में सोफिया को उस की मां माफी मांगने के लिए लाई, परंतु उसे माफी से नहीं, मौत देने से संतोष मिला. मां ने सोफिया की मौत की जिम्मेदारी अपने सिर ले ली. 12 साल के बाद जब वह जेल से बाहर आई तो रास्ते में एक्सीडेंट में उस की मौत हो गई, परंतु क्रिस्टोफर ने उसे जिंदा रखा.

उस ने मां का गेटअप ले कर स्कूलों में कई मैजिक शो किए. उसे अपने चेहरे से इतनी नफरत हो गई थी कि हर लड़की का चेहरा बिगाडऩे और उसे जान से मारने में मजा आने लगा.

पूरी फिल्म सीरियल किलर के इर्दगिर्द घूमती है, मगर उस के कैरेक्टर को सही तरीके से नहीं फिल्माया गया है. अंत में जिस जल्दबाजी में उस के कैरेक्टर को दिखाया गया है, वह दर्शकों को निराश करता है.

किलर को ढूंढने का जो ट्रैक है, उस में न तनाव है और न ही थ्रिल. किलर ऐसा क्यों कर रहा है, इस राज से परदा उठाया जाता है तो कोई खास रोमांच पैदा नहीं होता. किलर को जितना होशियार फिल्म में बारबार संवादों के जरिए बताया गया है, उतना होशियार वह फिल्म में दिखाई नहीं देता.

कहानी बताने के बाद क्रिस्टोफर कहता है, ”तू भी मरेगा.’’ और इति की तरफ इशारा कर के कहता है, ”पहले इसे मरता देख.’’

‘कठपुतली’ रिव्यू : लड़कियों के सीरियल किलर की रहस्यमयी स्टोरी – भाग 4

अचानक गायब हो जाती है एक और लड़की

इस के बाद अर्जन अपना चेहरा पानी से धो कर आता है, फिर उसे कोई फोन आता है और वह हौस्पिटल से रवाना हो जाता है. वह पायल के उसी बर्थडे सेलिब्रेशन में पहुंचता है तो पता चलता है पायल वहां से गायब हो गई है और घर पर वही डौल वाला बौक्स मिलता है.

पुलिस टीम, फोरैंसिक टीम के साथ तलाशी ले कर पायल की खोज में निकल जाती है. इधर घर पर गमगीन माहौल में दिव्या अर्जन को पानी ले कर आती है तो उस के हाथ में मोबाइल देख कर अर्जन उस के जीजा से उस वीडियो बनाने वाले लड़के के बारे में पूछता है. रिशु नाम का लड़का अभी घर के बाहर ही था, उस के मोबाइल की वीडियो क्लिप में पायल घर के बाहर जाती दिखाई देती है.

इधर पुलिस पूरे शहर की नाकेबंदी कर पायल की तलाश करती है, मगर उस का कोई पता नहीं चलता. जन्मदिन पार्टी की भीड़ में पायल को सीरियल किलर कैसे ले जाता है और उस का मर्डर कर के घर के बाहर रखी कार की डिक्की में उस की लाश छोड़ जाता है, यह कहानी दर्शकों के गले नहीं उतरती.

दूसरे दिन अर्जन बाइक से अपने जीजा के घर लौटता है. वहां जीजा बताता है कि बड़ी मुश्किल से उस ने पायल की मम्मी को सुलाया है, उसे यकीन है कि अर्जन पायल को कुछ नहीं होने देगा. तभी नरिंदर सिंह के मोबाइल पर काल आता है तो वह एक तरफ चला जाता है. उसी समय अर्जन की नजर घर के सामने खड़ी कार पर जाती है, जिस के पिछले हिस्से से एक प्लास्टिक पन्नी बाहर निकली दिखती है.

अर्जन कार की डिक्की खोलता है और तुरंत बंद करता है. तभी नरिंदर सिंह पास आ कर पूछता है क्या है. अर्जन छिपाने की कोशिश करता है, मगर नरिंदर जैसे ही कार की डिक्की खोल कर देखता है तो उस में पौलीथिन में लिपटी हुई पायल की लाश मिलती है. पायल की मौत पर वह बुरी तरह रोने लगता है तो अर्जन भी उसे संभालते हुए रो पड़ता है.

तभी पायल की मम्मी वहां आ जाती है तो दोनों आंसू पोंछ कर सब कुछ छिपाते हुए पायल को जल्द खोजने की बात करते हैं. नरिंदर अर्जन को कार ले जाने को कहता है. अर्जन आंखों में आंसू लिए पायल को पोस्टमार्टम के लिए हौस्पिटल ले जाता है. अर्जन गुलेरिया को फोन लगा कर पायल की डैडबौडी मिलने और पोस्टमार्टम के लिए हौस्पिटल लाने की सूचना देता है.

अर्जन के घर पहुंचने पर नरिंदर बताता है कि पायल के बारे में उस की मम्मी को सब कुछ बता दिया है. वह बुरी तरह टूट चुकी है, इसलिए उसे ले कर भिंड जा रहा है. जैसे ही अर्जन कार में बैठी दीदी से मिलता है, वह अर्जन से कहती है कि वादा कर अब किसी की बेटी नहीं जाएगी.

एक ट्यून ले जाती है साइको किलर तक

फिल्म के अगले दृश्य में डीएसपी एसआई अर्जन सेठी को गल्र्स स्कूल में बिना परमिशन फायर करने के आरोप में जांच पूरी होने तक सस्पेंड कर देता है. अर्जन अपनी सर्विस रिवौल्वर जमा कर चला जाता है.

एक तालाब के किनारे दिव्या बख्शी और अर्जन खड़े हैं, जहां अर्जन दिव्या से कहता है दीदी समझती है कि मैं किलर को पकड़ लूंगा, मगर बिना ड्यूटी और इनवेस्टीगेशन पावर के कैसे संभव है. वो शिकार पर निकलेगा फिर किसी लड़की को शिकार बनाएगा और हम कुछ नहीं कर पाएंगे.

यह बात थोड़ी दूर खेल रही इति के हियरिंग एड में रिकौर्ड हो जाती है, जिसे दिव्या डिलीट कर अर्जन को बताती है कि कोमल के पास भी यह हियरिंग एड थी और उस ने ही इसे सजेस्ट किया था. इस के बाद अर्जन  पोस्टमार्टम के समय कोमल के पास से मिली सामग्री की पड़ताल करता है तो उसे वो हियरिंग एड मिल जाता है. वह उसे औन करता है तो कोमल चीखचीख कर कह रही है ‘बचाओ मुझे मत मारो.’

इस के बाद उसे एक अलग ट्यून भी सुनाई देती है. इस ट्यून की पड़ताल में उसे म्यूजिक के जानकार से 2 बातें सुनने को मिलती हैं कि यह स्काटिश ट्यून है और जिसे आप ढूंढ रहे हैं वह ट्रेन पियानिस्ट है.

अर्जन उस ट्यून को पेन ड्राइव में ले कर रेलवे स्टेशन पर एनाउंसमेंट करवाने ले जाता है, जहां का कर्मचारी उसे स्टेशन मैनेजर की परमिशन का हवाला दे कर असमर्थता जताता है. तभी अर्जन को रोशनी नाम की रेडियो जौकी मिल जाती है, जो अपने रेडियो स्टेशन से उस ट्यून को बजा कर उस के कंपोजर को पहचानने के लिए कालर के लिए 10 हजार का गिफ्ट वाउचर देने का एनाउंसमेंट करती है.

कई कालर के जवाब आते हैं, लेकिन कोई सही जवाब नहीं मिलता. अर्जन जाने को होता है, तभी परवाणू से श्वेता नाम की कालर बताती है कि उस ने इस ट्यून को परवाणू के एपीएस स्कूल के एनुअल फंक्शन में सुना था.

अर्जन स्कूल के प्रिंसिपल से मिल कर फंक्शन की वीडियो रिकौर्डिंग देखता है तो वह ट्यून मैजिक शो के दौरान बजती है. उसी शो में स्टेज पर मैजिशियन के साथ समीक्षा भारती दिखाई देती है. स्कूल अथौरिटी उस मैजिशियन के बारे में कोई जानकारी नहीं दे पाते, तभी अर्जन दिव्या से उस के स्कूल में भी इस तरह के शो होने की तहकीकात करता है. दिव्या उसे बताती है कि उस के स्कूल में उस ओल्ड लेडी का  मैजिक शो हुआ था. वह गुलेरिया से अमृता के स्कूल के फंक्शन की वीडियो रिकौर्डिंग भी मंगाता है.

पूरी जांचपड़ताल के बाद अर्जन एसएचओ परमार को बताता है कि चारों लड़कियों के मर्डर में काफी समानता है. चारों के स्कूल में एक ओल्ड लेडी मैजिक शो कर के उन लड़कियों को स्टेज पर बुला कर इंप्रेस करती है और 2 दिन बाद किडनैपिंग कर के उन का मर्डर करती है.

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अब जा कर एसएचओ परमार को अर्जन की बातों पर भरोसा होता है और अर्जन से कहती है कि आज से हम तुम्हारे साथ हैं. वह डीएसपी से बात कर के किलर को खोजने के इस मिशन की जिम्मेदारी सौंपती है.

एसआई अर्जन सेठी के नेतृत्व में शहर के सभी स्कूलों की जांच की जाती है. एसएचओ परमार अर्जन को फोन कर के कहती है कि 14 जनवरी को सेंट पीटर्स स्कूल में एनुअल फंक्शन में मैजिक शो हुआ है, जिस में आयशा नाम की लड़की को वालेंटियर बनाया था तो अर्जन कहता है कि आज 16 जनवरी है. आप मेरे पहुंचने तक स्कूल की छुट्टी मत होने दीजिए.

परमार स्कूल जा कर प्रिंसिपल से मिलती है, तभी अर्जन भी पहुंच जाता है और आयशा की क्लास में सुरक्षा के 5 पौइंट बताता है. किसी तरह की परेशानी होने पर अपना मोबाइल नंबर बता कर वह आयशा के पास जा कर पूछता है कि आप ने नंबर नोट किया. उस के हां कहने पर वह नंबर डायल करने को कहता है और आयशा का नंबर सेव कर लेता है, फिर अपने अपने मोबाइल को छिपा कर रखने की हिदायत देता है.

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‘कठपुतली’ रिव्यू : लड़कियों के सीरियल किलर की रहस्यमयी स्टोरी – भाग 3

अगले दृश्य में स्कूल टीचर दिव्या से स्कूल की लड़की कोमल अपने पैरेंट्स की एनिवर्सरी के कारण आज का होमवर्क कल करने की परमीशन मांगती है तो दिव्या परमीशन देते हुए उस की तरफ से विश करने को कहती है. इस पर कोमल दिव्या मैम की आवाज की रिकौर्डिंग कर लेती है.

दिव्या कोमल से गैजेट्स के बारे में जानकारी हासिल करती है, फिर दोनों अपनेअपने आटो से घर चले जाते हैं. इधर कोमल जब रात 8 बजे तक घर नहीं लौटी तो मातापिता पुलिस थाने में कोमल की गुमशुदगी दर्ज कराने पहुंचते हैं.

सबइंसपेक्टर नरिंदर सिंह और अर्जन सेठी कोमल की पतासाजी के लिए दिव्या से पूछताछ करते हैं तो पता चलता है जिस आटोरिक्शा में वह गई थी, उस पर एक विशेष तरह का सिंबल बना हुआ था.

फिर वे शहर के सभी इलाकों में आटो के पीछे बने उस सिंबल की खोज में वे जाते हैं, तभी दिव्या को फोन आता है कि इति को कुछ लड़के परेशान कर रहे हैं. दिव्या अर्जन को बता कर चली जाती है.

दिव्या इति के स्कूल से उसे ले कर बाहर निकलती है तो कुछ लड़के जोर से हंस देते हैं तो इति घबरा जाती है. तभी अर्जन बाइक ले कर वहां पहुंचता है. उसे देख कर लड़के भाग जाते हैं. इति बाइक की सवारी करने का इशारा करती है तो अर्जन दिव्या और इति को बाइक से घर छोड़ता है.

अर्जन के इति के बारे में पूछने पर दिव्या बताती है कि इति उस की बहन की बेटी है, बीमारी की वजह से दीदी की मौत होने पर उस के पापा ने अपने पास रखने से इंकार कर दिया.

स्कूल टीचर आया शक के दायरे में

दिव्या के घर पर इति पेंटिंग्स बनाती है, जिसे देख कर दिव्या को याद आता है कि कोमल जिस आटो से गई थी, उस में वैसा ही सिंबल था और उस पर अंगरेजी में क्र्रष्टश्वक्र लिखा था. वह अर्जन को काल कर के बताना चाहती है, मगर उस का फोन बिजी आ रहा है.

इधर अर्जन हवलदार गुलेरिया (गुरप्रीत घुग्गी) के साथ बाइक से जा रहा है और मोबाइल पर किसी से टिंबर ट्रेल रोड पर लाश मिलने की सूचना देते हुए फोरैंसिक टीम भेजने को कहता है. तभी गुलेरिया की बाइक खराब होने पर वह आटोरिक्शा ले कर घटनास्थल पर पहुंचता है. तभी दिव्या काल कर के बताती है कि कोमल जिस आटो पर स्कूल से निकली थी, उस पर रेड कलर का स्टार बना था, जिस के नीचे अंगरेजी में क्र्रष्टश्वक्र लिखा था.

अर्जन सामने देखता है तो उसे समझ आता है कि वह इसी आटो से आया था. उसे आटो जाता दिखाई देता है तो पीछा कर के उसे पकड़ लेता है. जब अर्जन उसी आटोरिक्शा को रुकने के लिए बोलता है तो वह रुकता नहीं है. जब सामने से कोई वाहन रास्ता रोक लेता है तो आटो चालक रिक्शा छोड़ कर क्यों भागता है, इस सीन में भी कोई लौजिक समझ नहीं आता है.

आटोरिक्शा चालक को टौर्चर करने पर वह बताता है कि पुरुषोत्तम तोमर उस के आटो में आ कर बैठ जाता था और लड़कियों को अपने घर ले जाता था. जब पुलिस आटो चालक को ले कर पुरुषोत्तम तोमर के घर जाती है तो वह घर पर नहीं मिलता. लेकिन उस की फोटो देख कर नरिंदर सिंह बताता है कि यह पायल के स्कूल का मैथ्स टीचर है. उस के घर कोमल का बैग और बाहर वही डौल वाला बौक्स भी मिलता है. पुलिस समझती है कि कातिल यही स्कूल टीचर है.

अगले सीन में टीचर तोमर पायल को कम माक्र्स लाने पर टौर्चर कर के उस का यौनशोषण कर रहा होता है, तभी अर्जन और नरिंदर सिंह फोर्स ले कर पहुंचते हैं. पुलिस पायल और टीचर को बंद कमरे में देख कर तोमर की धुलाई करती है.

पुलिस की पिटाई से घायल तोमर हौस्पिटल में पुलिस को बताता है कि वह उस दिन कोमल के साथ आटो में गया था और बुक देने के बहाने कोमल को घर ले गया था. तोमर उसे पानी लाने के लिए अंदर जाता है और पानी में कोई दवा मिलाता है, जिसे कोमल देख लेती है. तभी वह बाहर से दरवाजा बंद कर भाग निकलती है. दूसरे दरवाजे से जब तक वह बाहर आता है, कोमल वहां से भाग जाती है.

तोमर की इस सच्चाई पर अर्जन और नरिंदर सिंह को यकीन नहीं होता और वे उसे हौस्पिटल में चांटा मार देते हैं. बाद में डाक्टर उन्हें रोक कर बाहर करता है. इधर डीएसपी को एसएचओ गुडिय़ा परमार केस सौल्व होने का श्रेय इंसपेक्टर मचान को देती है तो अर्जन को गुस्सा आता है. तभी उस का जीजा नरिंदर पायल के बर्थडे को सेलिब्रेट करने को कहता है.

अर्जन अपने जीजा नरिंदर को कार में रखा टेडी बियर दिखाता है और दोनों पायल के बर्थडे सेलिब्रेशन में जाते हैं, वहां अर्जन को दिव्या भी मिल जाती है. दिव्या अर्जन से उस की पसंद नापसंद पूछती है और फिर ताना मार कर कहती है कि तुम्हें तो बाबाजी के आश्रम में होना चाहिए. इतना कह कर वह वहां से जाने लगती है. तभी पायल के कहने पर अर्जन गाना गाता है तो दिव्या भी रुक जाती है.

आधी से अधिक फिल्म निकल जाने के बाद अर्जन और दिव्या के रोमांटिक सीन के साथ ‘ओ साथिया…’ गाना दर्शकों को सुकून देता है. पूरी फिल्म में केवल एक यही गाना है, दर्शक जिस के भरोसे हैं.

दिव्या और अर्जन की मुलाकातों में एकदो गाने और भी जुड़ जाते तो शायद फिल्म दर्शकों को बांधे रखती. फिल्म में रोमांस और फैमिली ड्रामा वाले जो दृश्य डाल दिए गए हैं. वह बिलकुल फिट नहीं लगते. निर्माता यदि ओटीटी के लिए फिल्म बना रहे हैं तो इस तरह के कामर्शियल फिल्मों के फार्मूलों से परहेज ही करना चाहिए था. गाना खत्म होने पर अर्जन को फोन आता है और वह जल्द आने की कहता हुआ वहां से चला जाता है.

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उधर हौस्पिटल में सेकेंड फ्लोर पर एडमिट पुरुषोत्तम तोमर ड्यूटी पर तैनात कांस्टेबल को अगवा कर लेता है. एसएचओ परमार उसे समझाने की कोशिश में आगे बढती है तो वह उस की पिस्टल छीन कर उस की कनपटी पर लगा कर पीछे की तरफ बढ़ता है, तभी अर्जन कुछ सोच कर नीचे की तरफ भागता है.

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तोमर पिस्टल की नोक पर परमार को ले कर लिफ्ट में घुस जाता है. लिफ्ट बंद होते ही पुलिस फोर्स नीचे की तरफ भागती है. नीचे लिफ्ट का दरवाजा खुलता है तो तोमर लिफ्ट में लुढ़क जाता है. बदहवास सी परमार पहले निकलती है. उस के बाद चेहरे पर खून के निशान लिए अर्जन बाहर आता है, जाहिर है अर्जन ने किसी तरह पहले से ही लिफ्ट में आ कर तोमर पर गोली चला कर परमार को बचा लिया.

लिफ्ट बंद होते ही गोली चलने की आवाज आती है. दर्शकों को समझ ही नहीं आता गोली किस ने चलाई.

‘कठपुतली’ रिव्यू : लड़कियों के सीरियल किलर की रहस्यमयी स्टोरी – भाग 2

पायल अपनी टीचर दिव्या बख्शी के सामने अपने मामा अर्जन का परिचय पापा के रूप में कराती है तो टीचर उसे गणित और अंगरेजी में कमजोर बताती है. इस पर अर्जन घर चल कर पायल को मारने की बात कहता है तो टीचर अर्जन को डांट देती है.

दरअसल, पायल ने टीचर को झूठ बोल कर यह बताया था कि उस की मां नहीं है. इसी दौरान पायल के मम्मीपापा भी वहां आ जाते हैं और पायल का झूठ सामने आ जाता है. यह दृश्य मौजूदा दौर की शिक्षा की पोल खोलता है, जिस में कम माक्र्स आने पर बच्चों को इतना भयभीत किया जाता है कि उन्हें झूठ बोलना पड़ता है.

स्कूल से बाहर आ कर पायल को उस की मम्मी मारने की कोशिश करती है तो अर्जन रोकता है और मैथ्स की कोचिंग लगाने का सुझाव देता है. मगर पायल की मम्मी उस का स्कूल चेंज करने की बात कह कर चली जाती है. इस के बाद जीजा नरिंदर अर्जन को एक फोटो की कौपी करा कर उसे शहर के इलाकों में पोस्टर लगाने को कहता है.

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अर्जन जब फोटो ले कर निकलता है तो एक चिल्ड्रन फेयर में उस की मुलाकात पायल की टीचर दिव्या बख्शी और उस की गूंगी और बहरी भांजी इति से होती है.

घर जा कर अर्जन डौल की फोटो देखता है तो उसे कुछ याद आता है. वह सीरियल किलर की पुरानी अखबार की कतरन निकालता है, जिस में स्कूल की लड़की को किडनैप कर के हत्या कर के इसी तरह की डौल मिली थी. वह इसी पुराने केस की फाइल निकलवाता है और एसएचओ परमार मैडम को कुछ क्लू देने की कोशिश करता है. मगर एसएचओ बुरी तरह डांट कर उस के आइडिया को नकार देती है.

इधर डेविड नाम के युवक को मर्डर के इल्जाम में अरेस्ट कर पूछताछ की जाती है तो वह बताता है कि वह लड़की को पसंद करता था. लड़की ने जब उसे भाव नहीं दिया तो उस ने जान से मारने की धमकी दी, परंतु मर्डर नहीं किया है.

इसी दौरान अर्जन सेठी एसएचओ परमार को सीरियल किलर के केस की हिस्ट्री दिखा कर कहता है कि इस केस का क्लू इस डौल से ही मिल सकता है, परंतु परमार मैडम उसे दुत्कारते हुए सिगरेट लेने के लिए भेज देती है. अर्जन बाहर गुमटी वाले से मैडम के लिए सिगरेट लेने आ जाता है, तभी पुलिस की गाडिय़ां सायरन बजाते हुए थाने से निकलती हैं.

गाड़ी से रवाना होते समय नरिंदर सिंह अर्जन को बताता है कि रेलवे ब्रिज के पास डैड बौडी मिली है. अर्जन भी वहीं पहुंचता है. आईकार्ड से डैडबौडी की पहचान स्कूल की लड़की अमृता राणा के रूप में होती है. पिछले 2 मर्डर की तरह इस हत्या में भी वही पैटर्न अपनाया गया है. अर्जन परवाणू में हुए समीक्षा भारती मर्डर केस की फाइल देखने परवाणू जाता है और समीक्षा के मातापिता के अलावा स्कूल जा कर कई लोगों से डौल के बारे में तहकीकात करता है.

साइको किलर तक पहुंचने की बनाई रणनीति

अगले सीन में पुलिस टीम पोस्टमार्टम करने वाली डाक्टर बताती हैं कि पूरे जीवन में उन्होंने इस तरह के मर्डर का पहला केस देखा है, जिस से लगता है किलर का मकसद मर्डर नहीं दर्द देना है और यह किसी सायको का काम हो सकता है.

तभी डीएसपी वहां पहुंचते हैं और एसएचओ परमार को डांट लगाते हैं. इस के बाद वह पूछते हैं एसआई अर्जन सेठी कौन है. अर्जन उन्हें सैल्यूट करता है तो डीएसपी उस से परवाणू वाले केस के संबंध में हुई इंक्वायरी के बारे में पूछते हैं.

अर्जन पूरी फाइल डीएसपी को दिखाता है. डाक्टर उस फाइल को देख कर कहती है कि मर्डर का पैटर्न एक सा है. इस सीन और डायलौग को देख कर दर्शक यह अंदाजा नहीं लगा पाते कि केस के संबंध में बताने वाली लेडी लाश का पोस्टमार्टम करने वाली डाक्टर है और आने वाला अफसर डीएसपी है.

एसआई अर्जन सेठी डीएसपी को कहता है कि सायको किलर का मकसद अपनी पब्लिसिटी करना और डर फैलाना है, उस को पावर से नहीं माइंड गेम से हराना है.

इसी दौरान अमृता के पैरेंट्स आते हैं और इमोशनली शाक की वजह से कहते हैं यह मेरी बेटी नहीं है. अर्जन डीएसपी से कहता है कि यदि किलर पब्लिसिटी चाहता है तो अभी हम मीडिया को इस बारे में कुछ न बताएं. किलर जहां भी है, वह एक गलती जरूर करेगा.

फिल्म आगे बढ़ती है, स्कूल में मैथ्स टीचर पुरुषोत्तम तोमर (सुजीत शंकर) पाइथागोरस प्रमेय पढ़ा रहा है. एक लड़की खड़ी हुई, जिसे टौर्चर कर के टीचर पूछता है कि समझ में आया? तभी इंसपेक्टर नरिंदर सिंह अपनी बेटी पायल को क्लास में ले कर आते हैं और टीचर को बताते हैं कि उन्होंने स्कूल चेंज कर आप के स्कूल में एडमिशन कराया है.

इधर एसआई अर्जन और नरिंदर सिंह पूरे शहर में खिलौनों की दुकान पर उस डौल की तलाश कर रहे हैं, जो किलर डैडबौडी के पास छोड़ता है.

जांच में यह तो पता चलता है कि लोकल वेबसाइट पर किसी ने बल्क में डौल का और्डर पोस्ट औफिस के जरिए किया था, परंतु एड्रेस की जगह पोस्ट बौक्स नंबर का यूज किया था.

अगले सीन में मैथ्स टीचर पुरुषोत्तम तोमर उसी लड़की को चाक फेंक कर मारता है. लड़की बुरी तरह डरी हुई है. टीचर उसे टौर्चर कर के कहता है कि मैथ्स में फेल हो कर मेरा और स्कूल का रिकौर्ड खराब करोगी. तभी स्कूल का चपरासी स्कूल में फंक्शन शुरू होने की सूचना देता है तो सभी बच्चे हाल में जाने लगते हैं, वह लड़की भी जाने को होती है तो टीचर उसे एक्स्ट्रा क्लास के बहाने रोक लेता है और पैरेंट्स को फोन करने की धमकी दे कर दरवाजा बंद कर के उस का यौन शोषण करता है.

फिल्म में मैथ्स टीचर तोमर नौवीं क्लास की लड़कियों को जिस तरह से शारीरिक रूप से प्रताडि़त करता है, वह बात हैरान करती है क्योंकि यह शहर का नामी स्कूल है. फिर कोई लड़की कभी इस के खिलाफ न तो आवाज उठाती है और न ही अपने पैरेंट्स से शिकायत करती है.

उधर स्कूल फंक्शन में मैजिक शो चल रहा और बच्चे उस का मजा ले रहे हैं. कुछ समय बाद टीचर और वह लड़की भी फंक्शन में आ कर बैठ जाते हैं. निर्माता निर्देशक चाहते तो फिल्म में मैजिक शो को बेहतर ढंग से प्रस्तुत कर के फिल्म को दर्शकों के लिए और भी इंटरेस्टिंग बना सकते थे, लेकिन इसे केवल लपेटा गया है.

‘कठपुतली’ रिव्यू : लड़कियों के सीरियल किलर की रहस्यमयी स्टोरी – भाग 1

कलाकार: अक्षय कुमार, रकुलप्रीत सिंह, सरगुन मेहता, चंद्रचूड़ सिंह, हृषिता भट्ट, गुरप्रीत घुग्गी, सुजीत शंकर,  जोशुआ लेक्लेयर आदि

निर्देशक: रंजीत एम. तिवारी

निर्माता: वाशु भगनानी, जैकी भगनानी,  दीपशिखा देशमुख

लेखक: राम कुमार और असीम अरोड़ा

पटकथा: तुषार त्रिवेदी

छायांकन: राजीव रवि

संपादन: चंदन अरोड़ा

ओटीटी: डिज्नी प्लस  हौटस्टार

फिल्म ‘कठपुतली’ (Cuttputlli) एक ऐसे सीरियल किलर (Serial Killer) की कहानी है जो स्कूल में मैजिक शो (Magic Show) कर के टीनएज लड़कियों को पहले इंप्रैस करता है और फिर उन का मर्डर करता है. सीरियल किलर खूबसूरत लड़कियों का मर्डर बेदर्दी के साथ करता है. लड़कियों के चेहरे पर वह वार करता है, उन के दांत तोड़ता है और आंखें निकाल लेता है. सीरियल किलर का रोल यूके के  कलाकार जोशुआ लेक्लेयर (Joshua LeClair) ने निभाया है.

निर्माता वाशु भगनानी (Vashu Bhagnani), जैकी भगनानी (Jackky Bhagnani), दीपशिखा देशमुख की डिज्नी प्लस हौटस्टार (Disney Plus Hotstar) पर आई फिल्म ‘कठपुतली’ विष्णु विशाल की तमिल फिल्म ‘रत्सासन’ (Ratsasan) का हिंदी रीमेक है, जिस में अक्षय कुमार (Akshay Kumar), रकुलप्रीत सिंह (Rakulpreet Singh), चंद्रचूड़ सिंह (Chandrachud Singh), सरगुन मेहता (Sargun Mehta) समेत कई स्टार्स हैं. इस का निर्देशन ‘बेल बौटम’ वाले डायरेक्टर रंजीत एम. तिवारी ने किया है.

निर्देशक रंजीत एम. तिवारी का निर्देशन औसत दरजे का है. ड्रामे को वह मनोरंजक नहीं बना पाए. फिल्म का पहला घंटा बेहद सुस्त लगता है. ऐसा लगता है कि कहानी को बिना मतलब की बातों से खींचा गया है.

तमिल फिल्म ‘रत्सासन’ साल 2018 में आई थी और यह परदे पर हिट साबित हुई थी. किसी भी फिल्म का रीमेक बनाने की सब से बड़ी चुनौती यह होती है कि वह हूबहू न लगे और दर्शकों को कुछ नया मिले. लेकिन निर्माता कुछ नया परोसने में नाकामयाब ही रहे. फिल्म तो रीमेक है ही, राइटर्स ने डायलौग भी यहांवहां से जुटाए हैं.

फिल्म में अक्षय कुमार ने एसआई अर्जन सेठी का रोल किया है. एक जगह वह स्कूल टीचर दिव्या बख्शी से कहता है, ‘पहले रब होते हैं, फिर होते हैं मांबाप. फिर आते हैं भाईबहन, फिर रिश्तेदार, फिर दोस्त, फिर पड़ोसी और उस के बाद आते हैं टीचर्स.’

इस के बाद दिव्या का रोल कर रही रकुलप्रीत सिंह कहती है, ‘क्या आप के घर में कुत्ते नहीं हैं? आप उन का नाम भी अपनी लिस्ट में रख लेते.’ यह डायलौग मशहूर कौमेडियन भुवन बाम के एक स्केच से उठाया हुआ है.

फिल्म ‘कठपुतली’ (Cuttputlli) को मसूरी और देहरादून में शूट किया गया था, लेकिन फिल्म में कहीं भी मसूरी और देहरादून के लोकेशन का जिक्र ही नहीं. इन सभी लोकेशन को हिमाचल प्रदेश के कसौली में होना बताया गया है. जिसे ले कर भी दर्शकों में नाराजगी है. क्योंकि मूवी के हीरो अक्षय कुमार को शूटिंग के दौरान ही मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने ब्रांड एंबेसडर बनाया था, बावजूद इस के फिल्म में उत्तराखंड का नाम नहीं है.

अक्षय कुमार की फिल्म ‘रक्षाबंधन’ फ्लौप होने के बाद ‘कठपुतली’ के फिल्म मेकर्स को अंदेशा था कि सिनेमाघरों में यह फ्लौप न हो जाए, यही सोच कर स्टार नेटवर्क को इस के राइट्स 150 करोड़ में बेचे गए हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक, ‘कठपुतली’ का बजट 100 करोड़ रुपए है.

इंट्रो के बाद ‘कठपुतली’ फिल्म की कहानी शुरू होती है, हिमाचल प्रदेश के परवाणू शहर की सुबह से. मल्होत्रा साहब कुत्ते को जंजीर से बांधे टहलने निकले हैं,  पीछे से बोहरा साहब आवाज दे कर उन के साथ हो लेते हैं.

दोनों की बातचीत के दौरान उन का कुत्ता हाथ छोड़ कर एक तरफ दौड़ लगा देता है, जहां उस के पीछे दोनों पहुंचते हैं. वहां पर पौलीथिन में लिपटी एक डैडबौडी मिलती है. पुलिस फोन करने पर पुलिस आती है और जांच में पता चलता है कि लाश एक 15 साल की स्कूल में पढऩे वाली लड़की की है.

फिल्म के अगले दृश्य में अर्जन सेठी (अक्षय कुमार) एक अखबार की न्यूज की कतरन अपने कमरे की दीवार पर चिपका कर अपने रूममेट को बताता है कि वह सीरियल किलर पर फिल्म बनाना चाहता है और पिछले 7 सालों से वह सीरियल किलर पर रिसर्च कर रहा है. उस का इंटरेस्ट सीरियल किलर की साइक्लोजी पर ज्यादा रहता है. उस के पिता पुलिस में थे और उस के पास साइक्लोजी का डिप्लोमा भी है.

इसी दौरान एक बुजुर्ग अंकल उस के कमरे में आ कर पूछते हैं कि उन की बीवी तो यहां नहीं आई तो अर्जन कहता है कि उन को गुजरे हुए 4 साल हो गए हैं. फिर वह बुजुर्ग मुसकरा कर नाचते हुए चले जाते हैं.

रूममेट के पूछने पर अर्जन बताता है कि यह अल्जाइमर के मरीज हैं. फिल्म में डाले गए इस अंकल वाले सीन को दिखाने की क्या आवश्यकता थी, यह दर्शकों की समझ से परे है.

उस के बाद अर्जन अपने रूममेट के साथ अपनी स्क्रिप्ट ले कर चंडीगढ़ जाता है और कई प्रोड्यूसरों से मिल कर सीरियल किलर पर फिल्म बनाने को कहता है. लेकिन उसे निराशा ही हाथ लगती है, क्योंकि प्रोड्यूसर उसे कुछ और ही लिखने को कहते हैं.

दोनों वापस आटोरिक्शा से लौटते हैं तो उस का दोस्त उसे समझाता है कि लंदन की पैदाइश कब तक आटो में धक्का खाएगा, कुछ पंजाब में रौक शौक क्यों नहीं लिख लेता. मगर अर्जन उस की बात मानने के बजाय उस से अगले दिन राखी के त्योहार पर कसौली जाने की बात कहता है.

सीन फिल्माने में दिखीं खामियां

अगले दिन अर्जन कसौली अपनी बहन सीमा (जिस का किरदार हृषिता भट्ट ने निभाया है) के घर जाता है, जहां उस का जीजा नरिंदर सिंह (चंद्रचूड़ सिंह) पुलिस इंसपेक्टर है. खाना खाते समय बहन उस से कुछ कामधंधा करने को कहती है, तभी जीजा उसे बताता है कि वह थोड़ी सी मेहनत कर पुलिस इंसपेक्टर बन सकता है. अर्जन जीजा की बात मान कर परीक्षा दे कर फिजिकल टेस्ट में भी पास हो कर सबइंसपेक्टर बन जाता है और उस की पोस्टिंग भी कसौली में हो जाती है.

अर्जन सेठी का सब इंसपेक्टर की परीक्षा पास करना और जल्द ही एसआई बनना इतना आसान बताया गया है कि यकीन ही नहीं होता. देश में बेरोजगारी चरम पर है और नौकरी के लिए करोड़ों बेरोजगार अपनी चप्पलें घिस रहे हैं, मगर अर्जन को उस के बाप की अनुकंपा नियुक्ति की तरह नौकरी आसानी से मिल जाती है, यह बात गले नहीं उतरती.

पहले दिन ड्यूटी पर जाते समय उस का जीजा नरिंदर उसे समझा देता है कि जो भी काम मिले, सिर हिला कर उसे करना है. थाने में सीनियर इंसपेक्टर रविचंद्र मचान (शाहिद लतीफ) उसे किसी मुलजिम को मारने को कहता है तो अर्जन मारने के बजाय उसे कहानी सुनाने लगता है. सीनियर इंसपेक्टर कहता है कि क्राइम इस के बस का नहीं है,  इसे स्टेशनरी सेक्शन में लगा देना चाहिए.

अगले सीन में एक लड़की अमृता घर से स्कूल जाने के लिए निकलती है और सड़क पर अपने डौगी को देख कर उसे पकड़ कर लाने को कहती है. तभी सड़क पर एक कार आ कर रुकती है. कार का अगला शीशा खुलता है और वह लड़की कार के पास जा कर मुसकराती है.

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इस के बाद के दृश्य में अमृता की मम्मी कुकर की सीटी की आवाज के साथ शेरू के भौकने पर अमृता के लिए आवाज लगाती है. वह बारबार आवाज देती है, मगर कोई जवाब नहीं मिलता तो वह घर से बाहर निकल कर आती है तो शेरू दिखाई देता है, जिस के गले में एक बौक्स बंधा हुआ है.

इस के बाद अमृता के मम्मीपापा उस की गुमशुदगी दर्ज कराने कसौली थाने पहुंचते हैं. एसएचओ गुडिय़ा परमार (सरगुन मेहता) को सारी डिटेल्स बता कर एक बौक्स दिखाते हैं जो शेरू ले कर आया था.

अमृता के सुबह स्कूल निकलने और तुरंत बाद उस के घर पर मम्मी द्वारा उसे खोजने और पुलिस थाने में गुमशुदगी दर्ज कराने को डायरेक्टर द्वारा बहुत जल्दबाजी में फिल्माया गया है. इस से पता ही नहीं चलता कि वह स्कूल से एक बजे आ जाती है और उस दिन शाम 6 बजे तक नहीं आई तो पुलिस में शिकायत की गई.

एसएचओ परमार जब बौक्स को खोलती है तो उस में बड़े बालों की एक सिंड्रेला डौल (कठपुतली) निकलती है, जिस के चेहरे पर खरोंच के निशान हैं. अर्जन बाहर से इस कठपुतली को बड़े गौर से देखता है. कत्ल के बाद बौक्स में जो सिंड्रेला डौल मिलती है, उसे कठपुतली समझ कर फिल्म का नाम रखा गया है, जो किसी भी लिहाज से ठीक नहीं है.

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दरअसल, कठपुतली राजस्थान की एक लोककला है, जिस में लकड़ी, कपड़े से बनाई पुतलियों (गुडिय़ों) को धागे के सहारे अंगुलियों से नचाया जाता है.

घर में जीजा नरिंदर शराब लेते हुए अर्जन को समझाता है कि मिसिंग केस के चक्कर में न पड़ कर वह स्टेशनरी का काम ही देखता रहे. जीजा नरिंदर अंदर बर्फ लेने जाता है, तभी भांजी पायल (रेने तेजानी) अपने स्कूल के रिपोर्ट कार्ड पर उस के सिग्नेचर करवाती है  और कल स्कूल ड्रौप करने को कहती है. दूसरे दिन वह भांजी को बाइक से उस के स्कूल ले कर जाता है और क्लास टीचर से मिलता है.

वेब सीरीज ‘दहाड़’ (रिव्यू) – भाग 3

स्कूली और कालेज की पढ़ाई दिल्ली में पूरी करने के बाद वह मुंबई आई, फिल्म इंडस्ट्री में अपना रास्ता बनाने की कोशिश करने के सिलसिले में वन बीएचके की दमघोंटू हवा में अकेले रहने लगी, तब उन्हें जो अनुभव मिले, वह फिल्म में जस के तस उतार दिए.

विवाहित रुचिका का कहना है कि महानगर में सफलता और आमदनी के आनंद की विक्षिप्त दौड़ है. इस ने अलगाव जन्म दिया है. वह अपने पति को लेखन के लिए प्रेरणास्रोत बताती है. अपनी पहली फिल्म का निर्देशन करने से पहले रुचिका ने टेलीविजन उद्योग में काम करने का अनुभव प्राप्त किया.

रुचिका का कहना है कि वह अपने आसपास के लोगों की अराजक और रैकेट से भरी जीवनशैली के बारे में लिखने के लिए आकर्षित होती है. निर्देशन की शुरुआत फिल्म “चुटकन की महाभारत’ में सहायक निर्देशक की भूमिका निभाई थी, जिसे राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था.

वैसे फिल्म निर्माण और उस से जुड़ी पूरी प्रक्रिया उस के लिए अलग थी. उस ने कठिन तरीके से सीखा और पहली फिल्म “आइसलैंड सिटी (हिंदी)’ का विचार 2008-09 के दौरान पूरा हुआ. इस की बदौलत वह 2012 में स्क्रीनराइटर्स लैब, वेनिस और फिल्म बाजार (गोवा) का भी हिस्सा बनी. फिर 2015 में 72वें वेनिस फिल्म फेस्टिवल में फेडोरा की विजेता बन गई.

राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम द्वारा बनाई गई 110 मिनट तक चलने वाले आइसलैंड सिटी में विनय पाठक, ब्रिक लेन फेम तनिष्ठा चैटर्जी और अमृता सुभाष जैसे मंझे हुए कलाकारों की भूमिकाएं थीं. क्राइम थ्रिलर ‘दहाड़’ में रीमा कागती और रुचिका ओबेराय कहानी कहने के बदलते चेहरे और ओटीटी स्पेस में भारतीय मूल के प्रभाव को बेहतरीन तरीके से नहीं दर्शा पाई हैं.

इस बारे में रुचिका ने उन चुनौतियों के बारे में बताया, जिस में कहानी को प्रामाणिक बनाना, प्रामाणिक स्थान ढूंढना, बोली के साथ प्रदर्शन को बेहतर बनाना था. साथ ही यह सुनिश्चित करना भी था कि हम इसे स्क्रीन पर एक कदम आगे ले जा कर लेखन के साथ न्याय कर रहे हैं या नहीं.

रीमा कागती

डिगबोई, असम की मूल निवासी रीमा कागती फिल्म निर्देशक और पटकथा लेखिका है. उस ने हिंदी की पहली फिल्म “हनीमून ट्रैवल्स प्राइवेट लिमिटेड निर्देशित की थी. उस के बाद नियो-नोयर, तलाश और ऐतिहासिक फिल्म ड्रामा “गोल्ड  (2018) का निर्देशन भी किया. इसी बीच उस ने जोया अख्तर के साथ मिल कर अक्तूबर, 2015 में “टाइगर बेबी फिल्म्स’ नाम की एक फिल्म और वेब स्टूडियो की स्थापना कर ली.

उस ने फरहान अख्तर (दिल चाहता है), (लक्ष्य), आशुतोष गोवारिकर (लगान), हनी ईरानी (अरमान) और मीरा नायर (वैनिटी फेयर) सहित कई प्रमुख निर्देशकों के साथ सहायक निर्देशक के रूप में भी काम किया है. इस से पहले वह एक्सेल एंटरटेनमेंट की सहयोगी रही है. उस की हाल की फिल्म “गोल्ड’ भी है, जो आजादी के बाद भारत के पहले ओलंपिक स्वर्ण पदक के बारे में है.

विजय वर्मा

‘दहाड़’ के सीरियल किलर की भूमिका में जान डालने की कोशिश करने वाले विजय वर्मा के बारे में यह कहना गलत नहीं हागा कि उस ने यहां तक पहुंचने में काफी संघर्ष किया है. इस दौर में मुश्किलों के कई पापड़ बेले. कई बार हार का सामना करना पड़ा, फिर भी अपने मुकाम पर पहुंचने के लिए हरसंभव कोशिश जारी रखी. …और फिर उस ने “गैंग औफ घोस्ट्स’, “पिंक’ और “मानसून शूटआउट’ जैसी फिल्में कीं.

हालांकि जबरदस्त पहचान “गली बौय’ फिल्म से मिली. “डार्लिंग्स’ के बाद तो वह एक स्टार बन गया. अब स्थिति यह बन गई है कि वह हर फिल्ममेकर की पसंद बन गया है. हाल ही में उस ने करीना कपूर के साथ भी सीरीज की है. उस की खास पहचान वेब सीरीज के लिए भी बन चुकी है. फिल्मों के भी औफर मिल रहे हैं. फिल्म तक पहुंचने की कहानी भी अपने आप में किसी फिल्म की पटकथा से कम नहीं है.

ऐक्टिंग के लिए वह घर से भाग गया था. इस कारण उन के पिता हाल तक काफी नाराज थे. उसे ऐक्टर बनने में किसी तरह का सपोर्ट नहीं मिला. पिता चाहते थे कि बेटा बिजनैस में साथ आ जाए. हैदराबाद के रहने वाले विजय वर्मा का न तो कोई फिल्मी कनेक्शन रहा और न ही कोई गौडफादर. वह पिता के साथ बिजनैस नहीं करना चाहते थे.

फिल्मों में प्रवेश के दौर में छोटीमोटी नौकरियां करने लगा. पेट्रोल पंप पर काम किया, पेट्रो कार्ड्स बेचे, सिम कार्ड बेच कर पैसे कमाए. काल सेंटर में नौकरी की. थोड़े पैसे जमा कर इवेंट मैनेजमेंट का कोर्स किया. उस फील्ड में भी काम करने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली.

ऐक्टिंग के बारे में विजय वर्मा ने बताया कि उसे इस का चस्का तब लग गया था, जब वह दोस्तों के साथ फिल्में देखता था और उन के सींस की ऐक्टिंग किया करता था. ऐक्टिंग का काम तो नहीं मिला, लेकिन हैदराबाद की एक बेकरी के लिए मौडलिंग का काम जरूर मिला. बाद में घर वालों को बताए बगैर फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट औफ इंडिया में अप्लाई कर दिया और सिलेक्ट हो गया.

पुणे में रह कर 2 साल की पढ़ाई पूरी की. उस के बाद काम की तलाश में मुंबई चला गया. पहला अभिनय का काम राज निदिमोरु और कृष्णा डीके की लघु फिल्म “शोर’ में मिला, जिसे फिल्म फेस्टिवल में काफी सराहा गया और उस साल न्यूयार्क में एमआईएएसी समारोह में सर्वश्रेष्ठ लघु फिल्म का पुरस्कार जीता.

सोहम शाह

हिंदी सिनेमा और वेब सीरीज का एक चिरपरिचित नाम सोहम शाह का भी है. वह फिल्म निर्माता और उद्योगपति भी है. उस ने 2009 में फिल्म “बाबर’ के साथ अपनी पहली उपस्थिति दर्ज की, जिस में उस की भूमिका के लिए 2012 में राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म “शिप औफ थीसियस’ के साथ चुना गया. इस शुरुआत के बाद शाह ने तलवार (2015) और “सिमरन’ (2017) में “अभिनय’ किया. उन की फिल्म “तुंबाड’ को भारी आलोचनात्मक प्रशंसा मिली.

सोहम शाह श्रीगंगानगर (राजस्थान) का रहने वाला है. अपना रियल एस्टेट का व्यवसाय है. फिल्में बनाने के लिए मुंबई चला आया था. कंटेंट फिल्म बनाने के लिए उस ने अपना खुद का प्रोडक्शन हाउस रीसायकलवाला फिल्म्स शुरू किया है. उस की पहली फिल्म समीक्षकों द्वारा प्रशंसित “शिप औफ थीसियस’ थी. इस फिल्म में उस ने एक सामाजिक रूप से अंजान स्टौक ब्रोकर की भूमिका निभाई थी. उस ने “शिप औफ थीसियस’ के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्माता का राष्ट्रीय पुरस्कार जीता था.

इस के बाद उसे मेघना गुलजार की “तलवार’ में एक पुलिस वाले की भूमिका की पेशकश की गई, जो 2008 के नोएडा दोहरे हत्याकांड पर आधारित थी. 2017 में शाह को हंसल मेहता की “सिमरन’ में कंगना रनौत के साथ कास्ट किया गया था. जिस प्रोजेक्ट पर शाह ने 6-7 साल तक काम किया. उस का अब तक का सब से महत्त्वाकांक्षी प्रोजेक्ट “तुंबाड’ रहा है. यह 12 अक्तूबर, 2018 को रिलीज हुआ और इसे आलोचकों और दर्शकों से समान रूप से प्रशंसा मिली.

उस की बहुचर्चित फिल्म “तुंबाड’ है, जिस का दूसरा भाग आने वाला है. इसे शाह खास नयापन लिए कहानी वाली फिल्म बताते हैं.

वेब सीरीज ‘दहाड़’ (रिव्यू) – भाग 2

शुरुआती कहानी है पकाऊ

शुरुआती एपिसोड्स में कहानी पक रही है, किरदार पनप रहे हैं तो इन खुलती परतों के बीच स्पीड अच्छी लगती है. लेकिन चौथे एपिसोड से 8वें एपिसोड तक कहानी बस गोलगोल धूम रही है. सस्पेंस की लेयर्स कम हो जाती हैं. शुरुआत से ही पता है कि सीरियल किलर कौन है, वह कैसे काम कर रहा है तो सस्पेंस या थ्रिल जैसा कुछ नहीं है, बल्कि कई बार पुलिस पर तरस आ रहा है कि ये कर क्या रही है.

‘दहाड़’ वेब सीरीज की सब से बड़ी कमजोरी है, इस के अधपके किरदार. शुरू से ले कर आखिर तक किसी भी किरदार की यात्रा नजर नहीं आती. पहले सीन में प्रेस की हुई ड्रेस पहने तन कर खड़ी अंजलि भाटी आखिरी सीन तक उसी अवतार में नजर आती है. इस किरदार की कोई इमोशनल जर्नी नहीं है, जिस से आप जुड़ें. लेकिन ये अकेली अंजलि के किरदार के साथ नहीं है, बल्कि किसी भी किरदार की परतों को खोलने की जहमत लेखक ने नहीं उठाई है.

जैसे खुद रिश्वत लेने के चक्कर में डिमोशन झेल रहा पारगी (सोहम शाह) आखिर अपनी पत्नी के पहली बार प्रेग्नेंट होने पर खुश क्यों नहीं है? इस बात के तर्क में वह कहता है, ‘दुनिया कितनी बेकार है, कैसेकैसे लोग हैं यहां. ऐसे में यहां बच्चे को कैसे पैदा किया जाए.

ऐसे ही शो के कई सीन हैं जो अनसुलझे या अधूरे से हैं. पूरा थाना अंजलि को भाटी साहब कह रहा है, लेकिन एक शख्स है जो उस के निकलते ही अगरबत्ती जला कर धुआं करता है.

इस सीरियल किलर की कहानी में कई ड्रामा हैं. इसी के तहत दहेज, लड़कियों पर शादी का दबाव बनाता परिवार, उसे बोझ साबित करते लोगों पर सटीक प्रहार हैं. ये सब साइड में हैं, जो आप को समझ आएगा, लेकिन आखिर आनंद स्वर्णकार कैसे पकड़ा जाएगा, यह खोजतेखोजते आप को 8 एपिसोड यानी साढ़े 7 घंटे का इंतजार करना होगा, जो थोड़ा बोझिल हो जाता है. डायरेक्टर ने यहां पका दिया है.

8 के बजाए अगर 6 एपिसोड में इस कहानी को कसा जाता तो ये सीरीज और भी पैनी हो सकती थी. राजस्थानी पृष्ठभूमि में रची इस कहानी में कलाकारों द्वारा स्थानीय भाषा की पकड़ दिखाई नहीं दी. उन की भाषा हरियाणवी सी लगने लगती है. कलाकारों की भाषा बारबार खटकती है.

ढंग से नहीं दहाड़ सकीं सोनाक्षी

पूरी सीरीज में सब से बारीक काम विजय वर्मा ने किया है. दरअसल, डायरेक्टर ने सीरीज में गुलशन देवैया, सोहम शाह, विजय वर्मा जैसे कलाकारों को उस स्तर पर जा कर इस्तेमाल ही नहीं किया गया है, जहां वह कुछ नया या कमाल कर पाएं. गुलशन देवैया सीरीज में बस अंजलि भाटी के मोहपाश में बंधा उस की थ्योरीज सुनता रहता है.

अंजलि, जिस के साथ बारबार जाति के आधार पर भेदभाव हो रहा है, पर खुद अपने थाने में अपने सीनियर देवीलाल सिंह पर चिल्ला पड़ती है. पारगी को तो वह नाम से बुलाती है. कहानी के ये सारे पहलू इसे काफी कमजोर बनाते हैं. ओटीटी पर अपनी इस पहली ‘दहाड़’ से सोनाक्षी अपने स्लो करिअर को एक स्पीड दे सकती थीं. लेकिन ये ‘दहाड़’ उस का कोई भी नया अंदाज या पहलू परदे पर नहीं उतार पाई. ये ‘दहाड़’ उतनी नहीं गूंजी जितनी गूंजनी चाहिए थी.

निर्देशक रीमा कागती के साथसाथ जोया अख्तर इस सीरीज की क्रिएटर, प्रोड्यूसर और स्क्रीनप्ले राइटर है. जहां जोया अख्तर को ‘जिंदगी ना मिलेगी दोबारा (2011)’ और गली बौय (2019)’ जैसी फिल्मों के लिए जाना जाता है. रीमा कागती ‘तलाश (2012)’ और ‘गोल्ड (2018)’ जैसी बड़ी फिल्मों का निर्देशन कर चुकी है.

चूंकि ‘दहाड़’ बौलीवुड वेब सीरीज है तो इस में प्रोपेगैंडा न हो ऐसा हो ही नहीं सकता है. ‘दहाड़’ जब शुरू होती है तो आप को पहले 5-10 मिनट में ही दिख जाता है कि इसे बनाने वाले लोगों की मंशा कितनी घटिया हो सकती है.

अंजलि भाटी बाकी साथियों की तरह अपने कोच के पांव नहीं छूती, क्योंकि वह कहती है कि उस के बाप ने ऐसा करने से मना किया है. उसे एक दलित थानेदार के किरदार में दिखाया गया है, जिसे विभाग में ही नहीं, हर जगह जातीय भेदभाव का सामना करना पड़ता है.

एक दलित एसआई, जो बिना हेलमेट बुलेट दौड़ाती फिरती है. वह हेलमेट नहीं पहनने का गलत संदेश देती दिख रही है. अंजलि की ऐक्टिंग इस में एकदम बोरिंग और चिड़चिड़ी टाइप की है. सीरीज में ठाकुरों की एक लड़की मुसलिम लड़के के साथ भाग जाती है और हिंदू संगठन पुलिस के कामकाज में बाधा डालते हैं. हिंदू कार्यकर्ताओं को उपद्रव करने वाला दिखाया गया है.

यह वेब सीरीज वास्तविकता को नकारने के लिए वामपंथियों के नैरेटिव को आगे बढ़ाने की कोशिश करती है. इस में यह बताने की कोशिश की गई है कि लव जिहाद कुछ होता ही नहीं है. मुसलिम लड़कों के प्यार में हिंदू लड़कियां स्वेच्छा से पड़ती हैं. सब से बड़ा प्रोपेगैंडा है कि हिंदू कार्यकताओं और हिंदू संगठनों को उपद्रवियों के रूप में चित्रित करना.

जाति का किया है अपमान

इस में दिखाया गया है कि एक हिंदूवादी विधायक और उस के कार्यकर्ता जहांतहां उपद्रव करते हैं, हिंसा करते हैं, मुसलिमों के खिलाफ हिंसा करते हैं और पुलिस के काम में बाधा डालते हैं. वेब सीरीज में विजय वर्मा मुख्य विलेन के किरदार में हैं. यह आदमी दरजनों लड़कियों को फंसा कर उन के साथ बलात्कार करता है और उन की हत्या कर देता है. जानबूझ कर बारबार एक सीरियल किलर के परिवार की जाति को हाइलाइट किया गया है, जो डायरेक्टर की ओछी मानसिकता को जाहिर करता है.

विलेन का पिता अंजलि भाटी (सोनाक्षी सिन्हा) पुलिस थानेदार को घर में घुसने से रोकता है, क्योंकि वह उसे नीची जाति का समझता है. फिर वह संविधान के डायलौग मारती हुई रेड मारने के लिए उस के घर में घुस जाती है.

क्या आप ने वास्तविक जिंदगी में कहीं ऐसा होते हुए देखा है? फिल्म का जो सब से अच्छा किरदार दिखाया गया है वो एक मुसलिम होता है. अंजलि किसी भी समस्या के समाधान और मार्गदर्शन के लिए उस के पास ही जाती है, उस ने उसे पढ़ाया होता है. इस तरह जहां विलेन को ठाकुर दिखाया गया है, उसे पकड़वाने में मदद करने वाला मुसलिम और उसे पकड़ने वाली दलित होती है. इस में कुछ भी बुरा नहीं है, बशर्ते जातियों पर विशेष जोर दिया जाए. इस में यही किया गया है.

वेब सीरीज में अंजलि को पूजापाठ करने से दूर भागते दिखाया गया है. क्या यह भी अपमानजनक नहीं है? इस वेब सीरीज में लड़के लड़की के बीच शादी के बिना अस्थायी रिश्तों पर जोर दिया गया है. इस से लगता है कि शायद डायरेक्टर को भी ऐसे रिश्ते में रहना पसंद होगा. इस से समाज में गलत संदेश जाता है.

इस की कहानी स्लो है, जिस से पूरी सीरीज काफी सुस्त दिखती है. स्क्रिप्ट के चलते कहानी बहुत धीरेधीरे आगे बढ़ती है, जिस से थ्रिलर और सस्पेंस का फील ही कई बार खत्म हो जाता है. वहीं सीरीज को एडिटिंग टेबल पर और वक्त मिलना चाहिए था, जिस से एडिटिंग और बेहतर हो सकती थी.

सीरीज में बैंकग्राउंड म्यूजिक पर भी और मेहनत हो सकती थी. ‘दहाड़’ देखने के बाद यह कहा जा सकता है कि निर्देशक रीमा का जादू इस में दिखा ही नहीं है. कुल मिला कर कहा जा सकता है कि ‘दहाड़’ को हरगिज नहीं देखना चाहिए. इसे तब देखा जा सकता है, जब आप के पास कोई और कंटेंट देखने का आप्शन नहीं है.

रुचिका ओबेराय

भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई) से पढ़ाई करने वाली रुचिका ओबेराय की पहचान ‘लस्ट स्टोरी’ और ‘आइलैंड सिटी’ से बन चुकी है. इन में रुचिका ने महानगरीय शहर को परदे पर बेहतर ढंग से उतारा. रुचिका ओबेराय के निर्देशन में बनी पहली फिल्म ‘आइलैंड सिटी’ थी.

वह भले ही अभी तक एक घरेलू नाम नहीं हैं, लेकिन रुचिका ओबेराय बौलीवुड की सब से रोमांचक प्रतिभाओं में से एक है. उस की पहली और एकमात्र फिल्म ‘आइलैंड सिटी’ को बौलीवुड फिल्म कहना इस का विस्तार होगा.

उस के बाद उस ने नेटफ्लिक्स की ‘लस्ट स्टोरीज’ को लिखा, जो जोया अख्तर द्वारा निर्देशित की गई थी. यह फिल्म गरिमा और शालीनता से भरपूर थी. नील भूपालम और भूमि पेडनेकर अभिनीत इस लघु फिल्म में मौन रहते हुए अपने भीतर के संघर्ष से निपटाने की कहानी को बहुत ही प्रभावशाली तरीके से दिखाया गया है. इस फिल्म के कथानक में अपने महानगरीय जीवन के अनुभव को समेटने की असफल कोशिश की गई है. उस ने बताया कि कैसे शहर अपनी असमानताओं में क्रूर है?