पुलिस के अनुसार पिंटू सेंगर 20 जून, 2020 को अपनी इनोवा कार से जेके कालोनी आशियाना स्थित समाजवादी पार्टी के पूर्व जिलाध्यक्ष चंद्रेश सिंह के घर जाने के लिए निकला था. कार को उस का ड्राइवर रूपेश चला रहा था. चंद्रेश के घर के सामने पहुंचने पर फोन पर बात करते हुए पिंटू सेंगर अपनी कार से नीचे उतर गया और फिर सड़क के किनारे खड़े हो कर बात करने लगा.
इसी बीच 2 बाइकों पर सवार हो कर आए 4 बदमाशों ने पिंटू सेंगर पर चारों तरफ से ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी. प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार हेलमेट लगाए हमलावरों ने करीब 15 फायर सीधेसीधे पिंटू सेंगर के ऊपर किए. गोली लगने के बाद लहूलुहान हो कर पिंटू सेंगर जमीन पर गिर पड़ा.
इस के बाद चारों बदमाश जाजमऊ की ओर फरार हो गए थे. वहीं इस घटना के बाद पूरे क्षेत्र में दहशत का माहौल छा गया था. चालक रूपेश के शोर मचाने पर आगे आए लोग आननफानन में सेंगर को निजी अस्पताल ले गए, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया था.
मृतक नरेंद्र सिंह उर्फ पिंटू सेंगर पर चकेरी, किदवई नगर और कोहना थाने में कुल 28 केस दर्ज थे. पिंटू सेंगर गैंगस्टर और गुंडा एक्ट की काररवाई के साथ भूमाफिया भी घोषित हो चुका था. उस पर हत्या के प्रयास, प्रौपर्टी हथियाने, हत्या, रंगदारी जैसे संगीन धाराओं में केस दर्ज थे. पिंटू सेंगर ने 2007 में बसपा से विधायक का चुनाव लड़ा था, हालांकि उसे चुनाव में हार मिली थी. पिंटू सेंगर ने राजनीति में अच्छी पकड़ बना रखी थी और उस ने अपने विरोधियों की करोड़ों की प्रौपर्टी जब्त कराई थी.
नरेंद्र सिंह 4 भाइयों में सब से बड़ा था. उस का छोटा भाई धर्मेंद्र एयरफोर्स से रिटायर्ड था. उस से छोटा भाई देवेंद्र उर्फ बबलू भारतीय सेना में था और सब से छोटा भाई शैलेंद्र फील्ड गन फैक्ट्री में काम करता था. पिंटू सेंगर के पिता सोने सिंह भी फील्ड गन फैक्ट्री से रिटायर्ड थे.
पिंटू सेंगर हत्याकांड की सुपारी 40 लाख रुपए में तय हुई थी. इस में राशिद कालिया को 10 लाख रुपए मिलने थे. पुलिस का दबाव बढऩे पर वह बिना पैसा लिए ही फरार हो गया था.
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मायावती को चांद पर जमीन दी थी नरेंद्र सेंगर ने
राशिद कालिया द्वारा गोली से ढेर हुए कानपुर के बसपा नेता नरेंद्र सिंह सेंगर उर्फ पिंटू सेंगर ने 15 जनवरी, 2010 को बसपा सुप्रीमो मायावती को चांद पर जमीन देने का बेशकीमती तोहफा दिया था. उस ने 16 जनवरी, 2010 को मीडिया से बातचीत में बताया था कि उस ने अमेरिका स्थित लुनर रिपब्लिक सोसाइटी से चांद पर 3 एकड़ का टुकड़ा खरीदा था.
पिंटू सेंगर ने पत्रकारों को जमीन खरीद संबंधी कागजात भी दिखाए थे, जिस पर लुनर रिपब्लिक सोसाइटी की सचिव हेड्स बार्टन के हस्ताक्षर थे. कागजात पर जमीन की कीमत का जिक्र नहीं था. उस समय पिंटू सेंगर ने संवाददाताओं को जानकारी देते हुए बताया था कि जब मैं बहनजी को यह उपहार दे रहा हूं तो कीमत मेरे लिए मायने नहीं रखती.
हालांकि मायावती के लिए चांद पर जमीन खरीदने की बात कह कर पिंटू सेंगर को पार्टी से निकाल दिया था. बाद में पिंटू सेंगर ने दोबारा पार्टी जौइन कर ली थी. यह भी कहा जाता था कि पिंटू सेंगर सांसद रही फूलन देवी का भी बहुत करीबी था. वर्ष 2010 में वह भोगनीपुर से विधायक का चुनाव लडऩे की तैयारी में था.
राशिद कालिया जिस पिंटू सेंगर की हत्या में वांछित था, उसे 20 जून, 2020 को कानपुर के थानाक्षेत्र में कत्ल किया गया था. इस मामले में पुलिस ने 15 आरोपियों को जेल भेजा था. इन में से कक्कू नाम के आरोपी की जेल में ही मौत हो गई थी. पिंटू सेंगर को मारने के लिए 4 शूटर पलसर और केटीएम बाइकों पर सवार हो कर आए थे.
पुलिस के मुताबिक पलसर बाइक को अहसान कुरैशी चला रहा था जबकि उस के पीछे राशिद कालिया बैठा था. वहीं केटीएम बाइक फैसल कुरैशी चला रहा था और उस के पीछे आरोपी सलमान बैठा था. उन चारों ने मिल कर स्वचालित हथियारों से एक साथ गोलियां बरसा कर पिंटू सेंगर को मौत के घाट उतार दिया था.
कानपुर के चर्चित बसपा नेता पिंटू सेंगर मर्डर केस के मुख्य शूटर राशिद कालिया का एनकाउंटर होने के बाद पिंटू सेंगर परिवार ने राहत की सांस ली थी. पिंटू सेंगर के मर्डर के बाद उन का पूरा परिवार दहशत में था. पिंटू सेंगर के घर वालों को कभी मुकदमा वापस लेने तो कभी पैरवी नहीं करने की धमकियां कई बार मिली थीं, लेकिन परिवार कभी भी पीछे नहीं हटा था.
इस संबंध में मृतक पिंटू सेंगर के भाई धर्मेंद्र सेंगर ने मीडिया से बातचीत में कहा, ”मेरे सगे भाई पिंटू सेंगर की हत्या 20 जून, 2010 को दिनदहाड़े गोलियों से भून कर कर दी गई थी.
”शूटर राशिद कालिया और उस के गैंग ने पप्पू स्मार्ट से सुपारी ले कर इस निर्मम हत्या को अंजाम दिया था. पप्पू स्मार्ट गिरोह के मुख्य शूटर राशिद कालिया को झांसी में उत्तर प्रदेश एसटीएफ ने एनकाउंटर में मार गिराया.
”उस की मौत की खबर मिलने के बाद अब हमारे पूरे परिवार ने चैन की सांस ली है. इस गैंग के मुखिया पप्पू स्मार्ट और सभी सदस्यों का इसी तरह से एनकाउंटर होना चाहिए. हमारे परिवार के लोग दहशत के चलते ठीक से जी नहीं पा रहे थे.’’
बसपा नेता पिंटू सेंगर की मौत के बाद उस के भाई धर्मेंद्र सिंह केस की पैरवी कर रहे हैं. उन्होंने खुद आरोपियों को फांसी की सजा तक पहुंचाने के लिए कानून की पढ़ाई की. मौजूदा समय में धर्मेंद्र सिंह सेंगर एलएलबी फाइनल ईयर में हैं.
धर्मेंद्र का कहना है कि वह केस की अच्छी तरह से पैरवी कर के एकएक आरोपी को फांसी की सजा तक पहुंचाने की कोशिश करेंगे, ऐसा दृढ़ निश्चय उन्होंने कर रखा है. इसीलिए वह कानून की पढ़ाई कर रहे हैं.
वहीं दूसरी ओर पिंटू सेंगर का केस लड़ रहे वकील संदीप शुक्ला ने राशिद कालिया के एनकाउंटर के बाद अपनी प्रतिक्रिया दी है.
संदीप शुक्ला ने कहा, ”राशिद कालिया ने भाड़े पर इतने मर्डर किए कि उस का पुलिस रिकौर्ड कहीं भी दर्ज तक नहीं है, आज तक उन का खुलासा भी नहीं हो पाया है. इस तरह के शूटर का एनकाउंटर जनता के लिए राहत की बात है. इस तरह के अपराधियों को पालने वाले पप्पू स्मार्ट जैसे अपराधियों को संरक्षण देने वालों के खिलाफ भी कड़ी से कड़ी काररवाई होनी चाहिए.’’
(कहानी पुलिस सूत्रों पर आधारित, कथा में मनोहर नाम परिवर्तित है.)
सुपारी किलर राशिद कालिया मूलरूप से उत्तर प्रदेश के शहर महोबा का रहने वाला था, लेकिन कानपुर में ही उस का बचपन बीता था और कानपुर से ही उस ने अपराध जगत में अपना पहला कदम रखा था.
उस का बचपन कानपुर बेगमपुरवा के जम्मे वाली पार्क से क्रिकेट खेलने से शुरू हुआ था. कुछ मोहल्ले की आबोहवा ऐसी थी कि अपनी दबंगई से राशिद उर्फ कालिया ने बम बनाना सीखा और फिर यहीं से उस के अपराध की दुनिया में कदम रखा था.
राशिद की लंबाई जब औसत से कुछ ज्यादा हुई तो लोग उसे राशिद ऊंट के नाम से जानने लगे. बातबात पर बमबाजी और गोली चलाना उस का शौक बन गया था. यहीं से उस की दहशत का दौर शुरू हुआ और उस के बाद उसे चरस, स्मैक की लत लग गई.
तब उस समय के क्रिमिनल शफीक बोल्ट, सरताज चिट्ठा, पप्पू चिकना और रईस हनुमान का उस ने साथ पकड़ लिया. कुछ दिनों तक इन शातिर अपराधियों की शागिर्दी करने के बाद राशिद का कद बढ़ता चला गया.
राशिद कालिया के खिलाफ 20 साल पहले कानपुर के चकेरी थाने में पहला मुकदमा दर्ज हुआ था. इस के 15 साल के बाद झांसी में मोहसिन के अपहरण के बाद हत्या से उस का नाम चर्चा में आया था. अपराध की दुनिया में उस ने फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा और एक के बाद एक हत्याएं करता चला गया. कई हत्याओं में तो पुलिस उस का सुराग भी नहीं लगा सकी.
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प्रेमिका के पिता के साथ बनाया था भोर के लुटेरों का गैंग
राशिद कालिया की इसी बीच रेलवे कालोनी में रहने वाले एक अपराधी से नजदीकियां बढ़ीं और उस के घर आनेजाने के दौरान उस की बेटी से मोहब्बत शुरू हो गई. उस के बाद राशिद ने अपनी प्रेमिका के पिता के साथ ही भोर के लुटेरों का गैंग खड़ा कर दिया था.
चुन्नीगंज बस अड्डे से निकलने वाले कारोबारी, रेलवे स्टेशन से निकलने वाले यात्रियों से लूटपाट करने वाले इस राशिद के गैंग ने पुलिस की नाक में दम कर के रख दिया था.
वेश बदलने में माहिर प्रेमिका के पिता और राशिद ने मिल कर माल रोड पर विल्स सिगरेट कंपनी के कैश को लूटा. इस के बाद इस गैंग ने पीछा कर के दोपहिया वाहनों की लूट और चेन स्नैचिंग की ताबड़तोड़ कई वारदातों को अंजाम दिया.
राशिद उर्फ कालिया के खिलाफ सब से पहला मुकदमा चकेरी थाने में 2003 में दर्ज हुआ था. इसी साल दूसरा मुकदमा भी चकेरी थाने में, फिर 2006 में रेलबाजार थाने और फिर एक के बाद एक 13 मुकदमे राशिद कालिया के खिलाफ दर्ज हो गए थे.
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10 जिलों में थी राशिद कालिया की दहशत, उस के बाद पेशेवर शूटर बन गया
यूपी एसटीएफ के अनुसार छोटेमोटे अपराध करने वाले राशिद कालिया की 2009 में झांसी में मोहसिन के अपहरण और हत्या के बाद पेशेवर शूटर के रूप में उस की पहचान उभरने लगी. एक के बाद एक उस ने भाड़े में कई हत्याओं को अंजाम दिया.
कानपुर, झांसी से ले कर उत्तर प्रदेश के 10 से ज्यादा जिलों में उस ने कई हत्याएं कीं और फिर फरार हो गया. कोई पता ही नहीं लगा सका था कि आखिर ये हत्याएं किस ने की थीं.
शार्प शूटर राशिद उर्फ कालिया इतने शातिराना अंदाज में वारदात को अंजाम देता था कि उस का सुराग लगाना पुलिस के लिए बड़ा मुश्किल हो जाता था. यही वजह है कि राशिद कालिया ने दरजनों मर्डर किए, लेकिन उन के सुराग पुलिस की लिखापढ़ी में आज भी दर्ज तक नहीं हैं.
एक से 10 लाख रुपए में राशिद कालिया हत्या की सुपारी ले लिया करता था. पिंटू सेंगर का प्रोफाइल बड़ा होने के कारण उस ने 10 लाख रुपए की सुपारी ली थी और अपने गैंग के साथ पिंटू सेंगर को बीच चौराहे पर घेर कर हत्या कर के फरार हो गया था.
ठिकाने बदलने में माहिर था राशिद कालिया
उत्तर प्रदेश के झांसी में हुए एसटीएफ के एनकाउंटर में मारा गया राशिद कालिया बिना मोबाइल और सोशल मीडिया एकांउट के भी अपराध के कौन्ट्रैक्ट ले लेता था. उस ने शहर में 4 ठिकाने बना रखे थे, जहां से वह सुपारी उठाता था. इन ठिकानों पर ही उसे कौन्ट्रैक्ट मिलते थे और फिर वहीं पर उसे रकम भी मिल जाती थी. अपराध से कमाई गई रकम राशिद उर्फ कालिया अपने ससुराल वालों व घर वालों के बीच बांट दिया करता था.
वह अपना कोई भी फोन नहीं रखता था लेकिन कौन्ट्रैक्टर को पता रहता था कि राशिद के लिए मैसेज कहां भेजना है. राशिद कालिया के इन ठिकानों के बारे में एसटीएफ ने उत्तर प्रदेश पुलिस को जानकारी दी है. उस के बाद उन पर विस्तृत जांच शुरू कर दी गई है.
राशिद की एक खास बात और थी कि वह घटना को अंजाम दे कर दोबारा फिर उसी ठिकाने पर पहुंच जाता था और वहां से कौन्ट्रैक्ट देने वालों से पैसे लेने के बाद फिर से अंडरग्राउंड हो जाता था.
शहर में उस ने बाबूपुरवा, बजरिया, चिश्ती नगर और चमनगंज में ठिकाने बना रखे थे. एसटीएफ के प्रवक्ता के अनुसार सन 2004 में बाबूपुरवा क्षेत्र में एक हत्या हुई थी, उस में पुलिस ने फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी. उस केस में पुलिस को राशिद के शामिल होने की पूरी आशंका थी, मगर पुलिस को राशिद के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिले थे.
लगभग 8-9 साल पहले लखनऊ के चिनहट में राशिद कालिया ने एक डकैती की घटना को अंजाम दिया था, मगर इस मामले में वह दूसरे नाम से जेल चला गया था. बाद में पुलिस को इस बात की जानकारी हुई, मगर तब तक वह जमानत पर बाहर आ गया था.
आपराधिक घटनाओं में राशिद हर महीने लाखों रुपए कमा लेता था, मगर खुद पर उस का केवल हजार रुपए माह का खर्चा था. राशिद का ससुर बस चलाता था. राशिद और उस के ससुराल वाले घर बदलने में बड़े माहिर थे. हर 3-4 महीने में वह अपने ठिकाने बदल लेते थे, ताकि पुलिस उन्हें परेशान न कर सके.
40 लाख में ली थी बसपा नेता नरेंद्र सेंगर की सुपारी
उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के जन्मदिन पर चर्चा में आए बसपा नेता नरेंद्र सिंह उर्फ पिंटू सेंगर जिस ने मायावती को चांद पर जमीन उपहार में देने की बात कही थी, उस की 20 जून, 2020 की दोपहर को हत्या कर दी गई थी.
मूलरूप से गोगूमऊ निवासी नरेंद्र सिंहउर्फ पिंटू सेंगर चकेरी के मंगला विहार में परिवार के साथ रहता था और छात्र राजनीति के बाद राजनीतिक दलों में सक्रिय हो गया था. बसपा की सीट पर पिंटू सेंगर छावनी क्षेत्र से विधानसभा का चुनाव लड़ा था. उस समय उस की मां शांति देवी गजनेर की कठेठी से जिला पंचायत सदस्य थीं और पिता सोने सिंह गोगूमऊ के प्रधान थे.
गैंगस्टर रहे पिंटू सेंगर की हत्या (Pintu Sengar Murder) जिन 4 शूटरों ने की थी, उन में राशिद कालिया (Rashid Kalia) मुख्य आरोपी था. सवा लाख के इनामी बदमाश राशिद कालिया ने ही कट्टा अड़ा कर आखिरी गोली दागी थी पिंटू सेंगर को. पिंटू को कुल 19 गोलियां मारी गई थीं.
वारदात में 4 शूटरों राशिद कालिया उर्फ वीरू के अलावा सलमान बेग, फैसल कुरैशी और एहसान शामिल थे. चारों अपराधी पिंटू पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा कर जब भाग रहे थे, तभी पिंटू सेंगर को जमीन से खड़ा होते देख बाइक सवार राशिद कालिया (Sharp Shooter Rashid Kalia) दोबारा पिंटू सेंगर के पास आया और उस के सीने पर कट्टा सटा कर उसे आखिरी गोली मार कर मौत के घाट उतार दिया था.
उत्तर प्रदेश एसटीएफ (UP STF) के एनकाउंटर स्पैशलिस्ट (Encounter Specialist) इंसपेक्टर घनश्याम यादव (Inspector Ghanshyam Yadav) एक विशेष गश्त पर थे, तभी उन का मोबाइल फोन बजने लगा. इंसपेक्टर यादव ने मोबाइल पर नंबर देखा तो वह उन के विश्वस्त मुखबिर मनोहर (परिवर्तित नाम) का नंबर था.
”हां, कहो मनोहर कैसे फोन किया?’’ इंसपेक्टर यादव ने फोन रिसीव करते हुए कहा.
”हुजूर एक खास खबर है,’’ मनोहर ने फुसफुसाते हुए कहा.
”खबर क्या है बताओ न!’’ इंसपेक्टर ने पूछा.
”साहब, खबर बहुत बड़ी और बहुत गोपनीय है. मिल कर ही बता सकता हूं. आप बताइए, आप अभी कहां पर हैं?’’ मनोहर ने कहा.
इंसपेक्टर घनश्याम यादव ने मुखबिर को अपने पास बुला लिया. थोड़ी ही देर बाद मनोहर ने पहुंच कर जो खबर इंसपेक्टर यादव को दी, वह भी सुन कर एकदम चौंक से गए थे.
इंसपेक्टर धनश्याम यादव ने तुरंत मनोहर को अपनी गाड़ी में बिठाया और सीधे डीएसपी संजीव कुमार दीक्षित के पास ले गए. संजीव दीक्षित ने जब यह खबर सुनी तो फिर सीधे एसटीएफ के अपर पुलिस महानिदेशक (एडीजी) अमिताभ यश तक पहुंच गई. उन्होंने इस खबर का तत्काल संज्ञान लेने के लिए उचित दिशानिर्देश जारी कर दिए.
पिछले काफी समय से एसटीएफ के अपर पुलिस महानिदेशक अमिताभ यश (ADG Amitabh Yash) के निर्देश पर इनामी और भाड़े पर हत्या करने वाले दुर्दांत अपराधियों की धरपकड़ के लिए एक विशेष अभियान चला रहे थे, जिस के सुखद परिणाम सामने भी आ रहे थे.
कानपुर में 3 साल पहले बीएसपी नेता और प्रौपर्टी डीलर पिंटू सेंगर की हत्या में राशिद कालिया उर्फ घोड़ा का नाम आया था. एफआईआर में राशिद कालिया आरोपी भी था. लंबे समय से पुलिस को उस की तलाश थी, लेकिन सफेदपोशों के तगड़े नेटवर्क के कारण राशिद कालिया हर बार पुलिस से बचता चला आ रहा था.
इस दुर्दांत अपराधी की खबर सुनने के बाद एसटीएफ के डिप्टी एसपी संजीव दीक्षित और इंसपेक्टर घनश्याम यादव ने मऊरानी पुलिस टीम के साथ झांसी में डेरा डाल दिया. 18 नवंबर, 2023 मंगलवार की सुबह मुखबिर की सटीक सूचना पर जब उत्तर प्रदेश की एसटीएफ ने पुलिस टीम के साथ झांसी के मऊरानीपुर में जब राशिद उर्फ कालिया की चारों तरफ से घेराबंदी की तो दुर्दांत अपराधी राशिद ने एसटीएफ की टीम पर ही गोलियों की बौछार कर दी.
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बदमाश की तरफ से चलाई गोली टीम का नेतृत्व कर रहे डिप्टी एसपी संजीव कुमार दीक्षित और एसटीएफ के इंसपेक्टर घनश्याम यादव को लगी. दोनों ही अधिकारी चूंकि बुलेटप्रूफ जैकेट पहने हुए थे, इसलिए उन्हें ज्यादा नुकसान नहीं हुआ. दोनों पुलिस अधिकारी घायल हो गए.
इस के बाद एसटीएफ ने स्वचालित हथियारों से राशिद पर फायरिंग करनी शुरू कर दी. एसटीएफ की तरफ से की गई फायरिंग में गोली राशिद कालिया को लग गई और वह जमीन पर गिर पड़ा.
गंभीर हालत में राशिद कालिया को उपचार के लिए मऊरानीपुर सीएचसी ले जाया गया, जहां प्राथमिक उपचार के बाद डाक्टरों ने उसे झांसी मैडिकल कालेज के लिए रेफर कर दिया. झांसी मैडिकल कालेज में डाक्टरों ने राशिद उर्फ कालिया को मृत घोषित कर दिया.
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लखनऊ में एसटीएफ के अतिरिक्त महानिदेशक (एडीजी) अमिताभ यश ने मीडिया को विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि राशिद उर्फ कालिया की पहचान सुनिश्चित करना बड़ा मुश्किल था, क्योंकि उत्तर प्रदेश पुलिस के पास पिछले 20 सालों से राशिद उर्फ कालिया की कोई तसवीर नहीं थी. पुलिस कई वर्षों से इस अज्ञात अपराधी का पीछा कर रही थी.
उन्होंने कहा कि कुछ लोगों की मदद से कालिया की पहचान का पता लगाया गया, जिन्होंने उस की पहचान की और 18 नवंबर शनिवार सुबह करीब 7 बजे झांसी के मऊरानीपुर इलाके के पास उस के स्थान और गतिविधि के बारे में जानकारी दी, जहां पर वह एक व्यक्ति को मारने की सुपारी लेने के बाद उसे निशाना बनाने आया था.
राशिद उर्फ कालिया अपने खतरनाक मंसूबे में एक बार फिर कामयाब होता, इस से पहले ही एसटीएफ ने उस की घेराबंदी कर दी.
एडीजी अभिताभ यश ने कहा कि मारे गए बदमाश राशिद कालिया पर 40 हत्याओं सहित कई आपराधिक मामले थे और उस पर कानपुर पुलिस कमिश्नरेट से एक लाख रुपए का और झांसी पुलिस की ओर से 25 हजार रुपए का इनाम घोषित था. उन्होंने कहा कि कालिया के आपराधिक रिकौर्ड में कई हाईप्रोफाइल मामले शामिल थे.
इस में सब से उल्लेखनीय मामला वर्ष 2020 में कुख्यात गैंगस्टर से राजनेता बने पिंटू सेंगर की हत्या का था. एडीजी ने बताया कि राशिद कालिया कानून से बचने के लिए हमेशा लोप्रोफाइल रहता था, इस में उसे विशेषज्ञता हासिल थी. उस के नाम अकेले कानपुर में 13 गंभीर अपराध दर्ज थे.
राशिद कालिया महोबा का मूल निवासी था, लेकिन वह कानपुर, लखनऊ और झांसी में भी सक्रिय था. गिरफ्तारी से बचने के लिए वह अकसर अपना स्थान बदलता रहता था.
उन्होंने कहा कि आरोपी के पास से पुलिस ने एक फैक्ट्री निर्मित पिस्तौल, 2 बुलेट मैगजीन, एक देसी बंदूक और साथ ही उस के पास से कारतूस और एक बाइक बरामद की. यह वही बाइक थी, जिस पर राशिद कालिया मुठभेड़ के समय सवार था.
यूपी एसटीएफ के एडीजी अमिताभ यश राशिद कालिया एनकाउंटर के बाद फिर सुर्खियों में आ गए. अब तक अमिताभ यश ने डकैत ददुआ और विकास दुबे सहित कई नामी अपराधियों को मार गिराने में सफलता अर्जित की है. माफिया अतीक अंसारी के बेटे का एनकाउंटर करने में भी वह काफी चर्चा में आए थे.
पिछले साल उत्तर प्रदेश में 8 आईपीएस अधिकारियों का तबादला और प्रमोशन किया गया था, जिन में अमिताभ यश भी शामिल थे. पहले आईजी के पद पर रह चुके अमिताभ यश को 2022 में एसटीएफ (स्पैशल टास्क फोर्स) का चीफ नियुक्त किया गया था.
गुरविंदर जरूरतमंद था, वह एक लड़की से प्रेम करता था और लड़की के घर वाले शादी के लिए तैयार नहीं थे. अपनी प्रेमिका से शादी करने के लिए उस ने घर से भाग कर कोर्टमैरिज करने की योजना बनाई थी और इस सब के लिए उसे पैसों की सख्त जरूरत थी.
बलविंदर ने जब गुरविंदर को मनदीप की हत्या के बदले 15 लाख रुपए देने का औफर दिया तो वह झट से तैयार हो गया. बलविंदर ने उस से कहा कि वह जिस दिन हत्या करेगा, उस दिन 5 लाख रुपए और बाकी के 10 लाख रुपए वह एक साल की किस्तों में देगा. इस पर गुरविंदर राजी हो गया था.
मनदीप की हत्या की सुपारी लेने के बाद गुरविंदर ने 4 महीने पहले मनदीप की रेकी करनी शुरू कर दी थी. गुरविंदर को पता था कि मनदीप कितने बजे घर से निकलता है और कहां कहां जाता और रुकता है.
गुरविंदर को इतना तक पता था कि मनदीप कौन सी जगह पर कितना समय गुजारता है. पेंच यहां फंसा कि वह हत्या करेगा कैसे? उस के पास हथियार तक नहीं था.
इस के लिए उस ने बलविंदर से 20 हजार रुपए हथियार खरीदने के लिए मांगे. पैसे ले कर वह कुछ समय पहले बलविंदर के साथ फिरोजपुर गया और .32 बोर के रिवौल्वर की 6 गोलियां खरीदीं. वहीं उस ने गोली चलाने की भी ट्रेनिंग ली और खरीदी हुई 6 गोलियों में से एक गोली भी चलाई. बाकी की बची 5 गोलियां उस ने मनदीप की हत्या करने के लिए रख ली थीं.
गोलियां खरीदने के बाद बलविंदर ने गुरविंदर से पूछा कि बिना रिवौल्वर के गोली कैसे चलाओगे? तब गुरविंदर टालमटोल करता रहा. लेकिन उस ने इस का इंतजाम पहले ही कर लिया था.
गुरविंदर की मां डाबा इलाके में रहने वाले एक प्रौपर्टी डीलर के घर खाना पकाने का काम करती थी और वहीं रहती थी. गुरविंदर भी अकसर वहीं रहता था. वह कभीकभार जसपाल बांगड़ स्थित अपने घर भी चला जाता था. उसे अपने मालिक के बारे में पूरी जानकारी थी कि वह सुबह 11 बजे से पहले घर से नहीं निकलते. उस के मालिक के पास भी .32 बोर की रिवौल्वर थी. वह पिछले डेढ़ महीने से मालिक बिल्ला की रिवौल्वर ले कर घर से निकल जाता था. वारदात वाले दिन भी आरोपी बिल्ला का रिवौल्वर ले कर चला गया था.
गुरविंदर ने बलविंदर को यह नहीं बताया था कि उस के पास रिवौल्वर है या नहीं, इसलिए बलविंदर को गुरविंदर पर शक होने लगा कि वह काम कर पाएगा या नहीं. इस के लिए उस ने अपने एक खास दोस्त अमनपाल से बात की और कहा वह गुरविंदर की रेकी करे. गुरविंदर जहां मनदीप की रेकी कर रहा था, वहीं बलविंदर के कहने पर अमनपाल गुरविंदर की रेकी करने लगा था.
वारदात वाले दिन सुबह अमनपाल और गुरविंदर एक स्कूल के पास मिले और वारदात को अंजाम देने के बाद फिर से वहीं मिलने की बात की. जिस समय गुरविंदर सिंह वारदात को अंजाम देने दुगरी फेज-1 पहुंचा और मनदीप के इंतजार में कार के पास खड़ा हो गया, जबकि अमनपाल दूसरी तरफ खड़ा उस पर नजर रखे हुए था.
जैसे ही गुरविंदर ने मनदीप को गोलियां मारीं तो अमनपाल ने तुरंत बलविंदर को फोन कर बता दिया कि काम हो गया है. वारदात को अंजाम देने के बाद गुरविंदर अमनपाल से मिला और उसे पूरा यकीन दिलाने के लिए रिवौल्वर से निकाले हुए 5 खाली खोखे दे दिए.
उस के बाद वह अपने घर गया और अपने मालिक की रिवौल्वर रख कर कपड़े बदले. फिर वह बलविंदर से पैसे लेने के लिए निकल पड़ा. पर इस घटना के बाद बलविंदर ने अपना फोन बंद कर दिया था.
गुरविंदर का बयान दर्ज करने के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर अमनपाल को गिरफ्तार कर लिया और हत्या में प्रयोग रिवौल्वर भी दुगरी से बरामद कर ली.
13 अक्तूबर को पुलिस ने गुरविंदर और अमनपाल को अदालत में पेश कर पूछताछ के लिए 2 दिन के रिमांड पर लिया. विस्तार से पूछताछ करने के बाद आरोपी गुरविंदर और अमनपाल को पुन: 15 अक्तूबर को अदालत में पेश किया गया, जहां अदालत के आदेश पर उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.
दूसरी ओर मृतक मनदीप बंसल के घर वालों और व्यापार मंडल के सदस्यों ने अस्पताल में हंगामा खड़ा कर दिया था. वे मनदीप का पोस्टमार्टम नहीं होने दे रहे थे. उन की मांग थी कि जब तक सभी हत्यारे पकड़े नहीं जाएंगे, लाश का पोस्टमार्टम नहीं होने देंगे. पुलिस कमिश्नर सुखचैन सिंह गिल ने अस्पताल पहुंच कर उन्हें समझाया और आश्वासन दिया, तब कहीं जा कर मृतक का पोस्टमार्टम किया गया.
सिविल अस्पताल के 3 डाक्टरों डा. रिपुदमन, डा. गुरिंदरदीप ग्रेवाल और डा. दविंदर के पैनल ने लाश का पोस्टमार्टम किया. रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि मनदीप की पीठ पर 2 गोलियां दाईं तरफ और 2 बाईं तरफ लगीं, जो दिल और फेफड़े में जा घुसीं, जिस से उस की मौत हो गई थी. एक गोली उस की बाजू में लगी थी.
दूसरी तरफ वारदात में प्रयोग किए गए रिवौल्वर के असली मालिक का रहस्य पुलिस के लिए बरकरार था. पहले गुरविंदर की तरफ से बताया गया कि जिस घर में वह रहता है, उस ने उस के मालिक बिल्ला का रिवौल्वर चुरा कर मनदीप की हत्या की थी.
लेकिन जब पुलिस ने रिकौर्ड खंगाला तो सामने आया कि बिल्ला के पास रिवौल्वर है ही नहीं. पुलिस द्वारा बरामद किया गया रिवौल्वर उसी इलाके के रहने वाले एक अन्य व्यक्ति का था. जब पुलिस ने उस तक पहुंचने की कोशिश की तो वह घर से फरार हो गया.
सूत्रों के अनुसार मामले में एक कांग्रेसी नेता मैदान में उतर आया था, जो एक स्वयंभू प्रधान को बचाना चाहता था. उस की भूमिका इस हत्याकांड में है या नहीं, पुलिस इस मामले की भी जांच करेगी. इस हत्याकांड का मास्टरमाइंड बलविंदर सिंह कथा लिखने तक नहीं पकड़ा गया था.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
कुछ रिश्ते कुदरत तय करती है, जो मर्यादाओं और खून के धागों से बंधे होते हैं. कुछ रिश्ते समाज बनाता है, जो मजबूरी की सलाखों में जकड़े होते हैं. और कुछ रिश्ते ऐसे भी होते हैं जो दिल की धड़कनों पर सवार, चाहत की मझदार में तैरते हैं. मनदीप बंसल और शादीशुदा कर्मजीत कौर का इसी तरह का संबंध था. दोनों अच्छे दोस्त तो थे ही, इन के बीच अच्छाखासा रोमांटिक अफेयर भी था.
जब कोई इंसान अपनी जिंदगी के अहम फैसले को बिना सोचेसमझे या लापरवाही से लेता है, तो ऐसा कर के वो जुए की बाजी खेल रहा होता है. अगर जीत गए तो ठीक, लेकिन हार हुई तो उस की अपनी जिंदगी और कइयों की जिंदगियां इस कदर बरबाद होती हैं कि संभलने का दूसरा मौका तक हाथ नहीं आता है.
बलविंदर ने पत्नी को लाख समझाने का प्रयास किया, लेकिन पत्नी पर इस का फर्क नहीं पड़ा. क्योंकि अब पानी उस के सिर के ऊपर से गुजर चुका था. करीब 2 साल पहले मंदीप और कर्मजीत कौर घर से भाग गए. इस से बलविंदर की बड़ी बदनामी हुई. शर्म के मारे वह समाज में किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहा.
उस ने अपने स्तर पर दोनों की तलाश शुरू की, पर 2 दिनों बाद वे दोनों अपनेअपने घर लौट आए. पत्नी के इस शर्मनाक कारनामे से बलविंदर किसी से आंख मिलाने लायक नहीं रहा. पत्नी के वापस आ जाने के बाद उस ने बिना किसी से कोई बात किए और बिना कुछ कहे रातोंरात अपना गुरु अंगतदेव नगर वाला मकान छोड़ दिया. वह अपने परिवार के साथ कोठी नंबर-9, खन्ना एन्क्लेव, धांधरा रोड पर आ कर रहने लगा था. इस बात को पूरे 2 साल बीत चुके थे और लगभग सभी लोग इस बात को भूल भी चुके थे.
अपनी तफ्तीश को आगे बढ़ाने से पहले पुलिस के सामने यह बात लगभग पूरी तरह से साफ हो गई थी कि अपनी बेइज्जती का बदला लेने के लिए ही बलविंदर ने मनदीप की हत्या करवाई थी. अब पुलिस का टारगेट भाड़े के वे हत्यारे थे, जिन्होंने इस घटना को अंजाम दिया था. सो उन की तलाश में पुलिस ने पूरे क्षेत्र के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगालनी शुरू की. सीसीटीवी कैमरों की फुटेज में हत्यारे का चेहरा स्पष्ट दिखाई दे रहा था. वह बाइक पर आया था और वारदात को अंजाम दे कर निकल गया था.
हत्यारा कैमरे में कैद तो हो गया था पर पुलिस अभी पता नहीं लगा पाई थी कि वह कौन शख्स है. इसी बीच पुलिस को सूचना मिली कि दुगडी मार्केट में एक बाइक लावारिस खड़ी है. पुलिस ने वह बाइक अपने कब्जे में ले ली. पुलिस ने जब आगे की जांच की तो पता चला कि 5 अक्तूबर को वह बाइक गुरुद्वारा आलमगीर साहब के बाहर से चोरी हुई थी. चोरी की रिपोर्ट उस ने थाना डेहलों में दर्ज करवाई थी.
पुलिस ने जांच की तो जानकारी मिली कि वह बाइक वही थी, जो सीसीटीवी कैमरे में दिखी थी. इस का मतलब यह हुआ कि हत्यारे ने चोरी की बाइक से वारदात को अंजाम दिया था.
कैमरे में कैद हत्यारा वैसे तो पुलिस के सामने था पर सफलता अभी बहुत दूर थी. सीसीटीवी फुटेज से पुलिस को यह भी जानकारी मिल गई थी कि मौके पर हत्यारे ने आधे घंटे तक इंतजार किया था. इस का मतलब यह था कि मंजीत की हत्या की प्लानिंग बहुत पहले ही बना ली गई थी. हत्यारे ने वारदात को अंजाम देने के लिए पूरी रेकी की हुई थी.
मौका देख कर उस ने मनदीप को गोली मारी और फरार हो गया. प्रत्यक्षदर्शियों ने भी यही बताया था कि हत्यारा 9 बजे के करीब उस निर्माणाधीन कोठी के सामने आ कर खड़ा हो गया था. उस ने फरार होने के लिए ही बाइक सीधी कर के लगा रखी थी. वह वहां काफी समय तक मनदीप का इंतजार करता रहा था.
बहरहाल पुलिस ने काफी भागदौड़ करने के बाद हत्यारे की पहचान कर ली थी. उस का नाम गुरविंदर सिंह था और वह शिमला पुरी का रहने वाला था. गुरविंदर के बारे में अधिक जानकारी जुटाई तो पुलिस को पता चला कि गुरविंदर कंप्यूटर हार्डवेयर इंजीनियर है. वह किसी कंप्यूटर हार्डवेयर की दुकान पर काम करता था.
गुरविंदर के बारे में जानकारी मिलते ही पुलिस ने चारों ओर अपना जाल बिछा दिया. काफी मेहनत के बाद पुलिस ने वारदात के 15 घंटों बाद मनदीप हत्याकांड के सुपारी किलर शूटर गुरविंदर को दुगडी से धर दबोचा.
थाने में पुलिस के उच्चाधिकारियों के सामने जब उस से पूछताछ की तो उस ने बड़ी आसानी से अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि उसी ने बलविंदर के कहने पर मनदीप की हत्या का सौदा 15 लाख रुपए में तय किया था.
15 लाख रुपए उसे एक साल की अवधि में किस्तों के रूप में मिलने थे. पेशगी के तौर पर उसे 20 हजार रुपए अवैध रिवौल्वर खरीदने के लिए दे दिए गए थे और एक हजार रुपए उसे मनदीप की हत्या से कुछ समय पहले दिए गए थे.
बाकी 5 लाख रुपए मनदीप की हत्या करने के बाद देना तय हुआ था. यानी ये पैसे सुपारी किलर गुरविंदर की शादी से एक दिन पहले 13 अक्तूबर को देने थे. गुरविंदर पर इसी बात का दबाव था. इसी वजह से उस ने सही समय पर मनदीप की हत्या कर भी दी थी.
अब उसे कौंट्रैक्ट की पहली किस्त के 5 लाख रुपए मिलने थे. इस से पहले कि उसे सुपारी की यह 5 लाख रुपए की किस्त मिलती, पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. गुरविंदर को अब भी उम्मीद थी कि बलविंदर उसे पैसे देगा क्योंकि कौंट्रैक्ट के अनुसार समय रहते उस ने मनदीप की हत्या कर दी थी.
14 अक्तूबर को मनजीत बंसल को अपनी नई कोठी में गृहप्रवेश करना था और 14 अक्तूबर को ही गुरविंदर की भी शादी होनी थी. शादी में खर्च किए जाने वाले रुपए उसे मनदीप की हत्या करने के बाद ही मिलने थे.
बलविंदर सिंह और हार्डवेयर की दुकान पर काम करने वाले आरोपी गुरविंदर की मुलाकात करीब 6 महीने पहले हुई थी. जल्द ही वह दोनों एकदूसरे के दोस्त बन गए थे. गुरविंदर सिंह ने बातोंबातों में बलविंदर सिंह को बताया था कि 14 अक्तूबर को उस की शादी है और उसे काफी पैसों की जरूरत है.
गुरविंदर की शादी वाली बात को ध्यान में रखते हुए बलविंदर ने मनदीप को मौत के घाट उतारने की पूरी प्लानिंग बनाई. 2 साल से उस के अंदर जो चिंगारी धीरेधीरे सुलग रही थी अब उसे बुझाने का समय आ गया था. वैसे भी बीते 2 सालों में वह खामोश नहीं बैठा था.
अपनी बेइज्जती का बदला लेने के लिए उस ने अपनी कोशिशें जारी रखी थीं और सही समय का इंतजार कर रहा था. दूसरे उस के पास ऐसा कोई आदमी भी नहीं था, जो इस काम को अंजाम तक पहुंचा सकता. उसे गुरविंदर जैसे जरूरतमंद आदमी की तलाश थी.
आर्किटेक्ट मनदीप बंसल उर्फ मिंटी मशहूर बिल्डर था. वह ठेके पर बड़ीबड़ी बिल्डिंग बनाने के साथसाथ प्लौट खरीद कर उन पर कोठियां बना कर बेच देता था. इस काम में उसे अच्छाखासा मुनाफा हो जाता था. सिविल इंजीनियर मनदीप को भवन निर्माण का बड़ा तजुर्बा था. लुधियाना शहर में उस की गिनती बड़े बिल्डरों में होती थी. हालांकि उस के पिता सुरिंदर सिंह कपड़े के व्यापारी थे, पर मिंटी ने भवन निर्माण के क्षेत्र में काफी नाम कमाया था.
मनदीप 3 भाईबहन थे. सब से बड़े थे सुरजीत सिंह बंसल, जो कपड़े का व्यापार करते थे. दूसरे नंबर पर मनदीप था और सब से छोटी बहन थी रवनीत कौर. सुरजीत को छोड़ कर मनदीप और रवनीत अभी अविवाहित थे. लगभग 2 साल पहले बंसल परिवार गुरु अंगतदेव नगर में रहता था.
फिर अचानक उन्हें वह घर छोड़ कर खन्ना एन्क्लेव, धांदरा रोड पर किराए की एक कोठी में रहना पड़ा. बंसल परिवार के गुरु अंगतदेव नगर छोड़ने के पीछे की भी एक अहम कहानी है, जिस ने आगे चल कर एक बहुत बड़े अपराध को जन्म दिया था.
बहरहाल, खन्ना एन्क्लेव में रहते हुए बंसल बंधुओं ने लुधियाना के ही शहीद भगत सिंह नगर में एक प्लौट खरीद कर उस पर एक विशाल कोठी का निर्माण करवाया, जो लगभग पूरा हो चुका था. मुहूर्त के अनुसार उन्हें दिनांक 14 अक्तूबर, 2018 को नई कोठी में गृहप्रवेश करना था. इस के लिए सभी तैयारियां पूरी हो चुकी थीं. उन्होंने घर का सारा सामान भी बांध लिया था.
11 अक्तूबर की सुबह 9 बजे मनदीप बंसल अपनी एक निर्माण साइट दुगरी फेज-1 की कोठी नंबर-196 पर चल रहे काम को देखने गया था. यह कोठी सरदार सुखविंदर सिंह की थी, जिस का निर्माण मनदीप करवा रहा था. निर्माणाधीन कोठी पर मनदीप पूरे एक घंटे तक रुका. इस के बाद उसे दूसरी साइट पर जाना था.
ठीक 10 बज कर 2 मिनट पर मनदीप कोठी से बाहर निकल कर अपनी इंडिका कार के पास आया और कार में बैठने के लिए जैसे ही उस ने ड्राइविंग सीट का दरवाजा खोलना चाहा, तभी कार के पीछे छिपा एक बाइक सवार अचानक वहां आया और उस ने मनदीप पर रिवौल्वर से अंधाधुंध फायरिंग कर दी थी.
उस ने मनदीप पर 5 गोलियां दागीं. इस के बाद वह वहां से निकल गया. गोलियां लगते ही मनदीप कटे पेड़ की तरह लहरा कर जमीन पर गिर गया.
गोलियों की आवाज सुन कर लोग वहां जमा हो गए. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि हत्यारा कौन था और उस ने मनदीप पर गोलियां क्यों चलाईं. निर्माणाधीन कोठी का मालिक सुखदेव सिंह भी दौड़ता हुआ बाहर आ गया. उस ने मनदीप को सहारा दे कर कुरसी पर बिठा कर पानी पिलाने की कोशिश की, पर मनदीप की हालत गंभीर थी, उस ने अस्पताल चलने के लिए कहा.
सुखदेव ने इस घटना की सूचना मनदीप के घर वालों और पुलिस को दे दी और मनदीप को डीएमसी अस्पताल ले गया. पर अस्पताल पहुंचते ही डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. तब तक मनदीप का बड़ा भाई सुरजीत और पुलिस भी वहां पहुंच गई.
सूचना मिलते ही लुधियाना पुलिस कमिश्नर डा. सुखचैन सिंह गिल, एडीसीपी सुरिंदर लांबा, एसीपी (क्राइम) सुरिंदर मोहन, एसीपी रमनदीप सिंह भुल्लर, सीआइए स्टाफ-2 के इंचार्ज राजेश शर्मा और थाना दुगरी प्रभारी इंसपेक्टर राजेश ठाकुर घटनास्थल पर पहुंच गए.
सुरजीत बंसल की तरफ से अज्ञात के खिलाफ धारा 302, 120 बी और 25, 27, 54, 59 आर्म्स ऐक्ट के तहत दुगरी थाने में रिपोर्ट दर्ज कर ली गई.
घटनास्थल का मुआयना करने पर पुलिस को वहां से खाली कारतूस का कोई खोखा नहीं मिला था, जो हैरानी वाली बात थी. आखिर गोलियों के खाली खोखे कहां गायब हो गए?
पुलिस इसे आंतकवादी हमले से भी जोड़ कर देख रही थी. एडीसीपी डा. सुखचैन सिंह ने मनदीप बंसल हत्याकांड को जल्द सुलझाने के लिए पुलिस की कई टीमें बनाईं. इस वारदात के बाद शहर में दहशत का माहौल था. पुलिस टीमें कई एंगल्स और थ्यौरियों पर काम कर रही थीं.
पुलिस सब से पहले यह पता करने में जुट गई कि क्या मृतक की किसी से कोई दुश्मनी तो नहीं थी. इस दिशा में एक ऐसा नाम उभर कर सामने आया था, जिस पर पुलिस को शक हुआ. वह नाम था मृतक के पूर्व पड़ोसी बलविंदर सिंह का.
जांच का दायरा जैसेजैसे आगे बढ़ा, वैसे वैसे यह बात भी स्पष्ट होती चली गई कि बलविंदर सिंह ही मनदीप का हत्यारा हो सकता है. इसी के साथ 2 साल पहले बंसल बंधुओं के गुरु अंगतदेव नगर वाली कोठी को छोड़ने की वजह भी स्पष्ट हो गई.
पुलिस ने बलविंदर के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो वारदात के समय उस के फोन की लोकेशन उस के घर न्यू अमर कालोनी की आ रही थी. इस का मतलब साफ था कि शातिर बलविंदर ने यह काम खुद न कर के किराए के किसी हत्यारे से करवाया होगा.
एक पुलिस टीम बलविंदर के घर भेजी गई पर वह अपने घर नहीं मिला, शायद वह फरार हो गया था. दरअसल पुलिस का ध्यान बलविंदर की ओर इस कारण गया था कि जब उन्होंने मृतक के भाई सुरजीत से बात की तो यह पता चला कि आज से 2 साल पहले मृतक और बलविंदर पड़ोसी हुआ करते थे और उन के बीच अच्छाखासा याराना था. दोनों हम प्याला हम निवाला दोस्त थे. इतना ही नहीं, दोनों का एकदूसरे के घर भी काफी आनाजाना था.
बलविंदर का स्पेयर पार्ट्स का बिजनैस था. बलविंदर की पत्नी कर्मजीत कौर बहुत खूबसूरत थी. लोग उस की एक झलक पाने के लिए तरसते थे. उस का झुकाव अविवाहित मनदीप बंसल की ओर हो गया था. बाद में मनदीप और कर्मजीत के बीच अवैध संबंध बन गए थे, जिस का बलविंदर को जल्द ही पता चल गया था.
तब उस ने अपनी पत्नी को समझाने के साथसाथ मनदीप को भी अपने घर आने से रोक दिया था. मोहल्ले दारी देखते हुए एक टाइम तो मनदीप ने अपने आप को रोक लिया था पर कर्मजीत कौर नहीं मानी. वह कोई न कोई बहाना कर मनदीप से मिलने उस के घर पहुंच जाती थी.
बलविंदर अपनी पत्नी कर्मजीत पर नजर रखे हुए था. उसे पत्नी की एकएक हरकत की जानकारी मिल जाती थी. इस बात को ले कर उस के घर हर समय क्लेश रहने लगा था. बलविंदर और कर्मजीत के बीच रिश्ते अब सामान्य नहीं रह गए थे. उन के रिश्तों और शादीशुदा जिंदगी में जहर घुल चुका था.
गलत संगत की वजह से वह किशोरावस्था से ही गंदी आदतों का शिकार हो गया. पिता से उसे मनचाहा जेब खर्च मिलता ही था, इसलिए उस के तमाम दोस्त भी थे. उन के साथ वह नशा करता, जुआ खेलता और बाजारू लड़कियों के साथ अय्याशी करता.
इन बातों की जानकारी जब मामन को हुई तो उन्होंने अशोक को जेब खर्च देना बंद कर दिया. लेकिन अब तक अशोक पूरी तरह बिगड़ चुका था. पैसे न मिलने पर वह घर में चोरी करने लगा. अब तक वह 24 साल का हो चुका था. मामन ने सोचा कि अगर उस का विवाह कर दें तो जिम्मेदारी पडऩे पर शायद वह सुधर ही जाए.
उन्होंने अशोक का विवाह रोशनी से कर दिया. लेकिन वह नहीं सुधरा. वह पहले की ही तरह शराब पीता और बाजारू औरतों के पास जाता. पत्नी उसे रोकती तो वह उस के साथ मारपीट करता. तंग आ कर मामन ने अशोक को घर से निकाल दिया. उसे और उस की पत्नी के रहने के लिए दूसरा मकान दे दिया. वह कोई कामधंधा कर सके, इस के लिए उसे 7 लाख रुपए भी दिए.
अशोक चाहता तो इतने से अपनी गृहस्थी चला सकता था. लेकिन उस ने कामधंधा करने के बजाय सारे रुपए अपनी गंदी आदतों में उड़ा दिए. पति की गलत आदतों और रोजरोज की मारपीट से तंग आ कर रोशनी पति का साथ छोड़ कर मायके में रहने लगी थी. साथ ही उस ने तलाक का मुकदमा भी दायर कर दिया. उन दिनों अशोक राजा हरिश्चंद्र अस्पताल में गार्ड की नौकरी करता था.
अदालत में तलाक का मुकदमा चला और सन्ï 2010 में अदालत ने निर्णय दिया कि अशोक रोशनी को हर महीने 20 हजार रुपए गुजाराभत्ता देगा. अशोक को जो वेतन मिलता था, उस से उस का ही खर्च पूरा नहीं होता था. इसलिए वह लोगों से रुपए उधार ले कर अपने शौक पूरा करता था. धीरेधीरे उस पर 70 लाख रुपए का कर्ज हो गया था.
जब काफी दिन हो गए तो कर्ज देने वाले उस से अपना रुपया मांगने लगे. इसी बीच अशोक को अस्पताल की एक नर्स से प्यार हो गया. पैसे न होने की वजह से वह उस की फरमाइशें पूरी नहीं कर पा रहा था. वह उस नर्स से शादी करना चाहता था. कर्ज चुकाने और शादी के लिए उसे पैसे चाहिए थे. इस के लिए वह पिता से मिला और उन से 2 करोड़ रुपए मांगे.
मामन ने उसे लताड़ते हुए कहा, “2 करोड़ तो क्या, मैं तुम्हें 2 पैसे भी नहीं दूंगा. मैं ने सोच लिया है कि मेरा बेटा मर चुका है. तुम से अब मेरा कोई संबंध नहीं है. आइंदा तुम मुझ से मिलने भी मत आना.”
अक्टूबर, 2014 में अशोक को एक वकील के जरिए पता चला कि मामन उसे अपनी संपत्ति से बेदखल कर के सारी संपत्ति सोनम के नाम करवा रहे हैं. यह जान कर अशोक क्रोध में पागल हो उठा और शराब पी कर मामन के पास पहुंच गया. जब वह उन से गालीगलौज करने लगा तो मामन ने उसे दुत्कारते हुए कहा, “मैं ने तो पहले ही कहा था कि मेरा कोई बेटा नहीं है. था भी तो मैं ने उसे मरा मान लिया है. मेरी संपत्ति में अब तुम्हारा कोई हक नहीं है.”
“मैं तुम्हें सारी प्रौपर्टी सोनम के नाम नहीं करने दूंगा.”
“क्या करेगा तू…?” मामन चीखे.
“तुम्हें जिन्दा नहीं रहने दूंगा.”
“धमकी देता है मुझे.”
“धमकी नहीं, सच कह रहा हूं. अगर तुम ने आधी संपत्ति मेरे नाम नहीं की तो मैं तुम्हें मरवा दूंगा. मेरी समझ में यह नहीं आता कि तुम वक्त से पहले क्यों मरना चाहते हो?”
“निकल जा यहां से.”
“इस का मतलब तुम नहीं मानोगे. तो ठीक है, मरने की तैयारी कर लो. लेकिन एक बार और सोच लेना. मरने के बाद क्या ले जा सकोगे यहां से. तुम्हारी मौत के बाद सबकुछ मेरा और सोनम का ही होगा.”
“जीतेजी मैं तुझे एक पैसा नहीं दूंगा.”
“यानी तुम ने मरने का फैसला कर लिया है. चलता हूं, अब हम जीते जी कभी नहीं मिलेंगे.” हंसता हुआ अशोक चला गया.
अशोक नरेला सैक्टर ए-6 में रहने वाले नीतू उर्फ काला को जानता था. उसे पता था कि काला सुपारी किलर है. वह काला से मिला और उसे 20 लाख रुपए में पिता के कत्ल की सुपारी दे दी. उस ने कर्ज ले कर एडवांस के रूप में उसे 14 लाख रुपए दे भी दे दिए. बाकी रकम उस ने काम होने के 2-3 महीने बाद जमीन बेच कर देने को कहा.
नीतू उर्फ काला ने अपने आपराधिक सहयोगी जितेंद्र उर्फ ङ्क्षटकू के साथ मिल कर मामन के कत्ल की योजना बनाई. दोनों ने कई दिनों तक मामन की गतिविधियों पर नजर रखी. मामन को ठिकाने लगाने के लिए उसे सुबह का समय ठीक लगा. दोनों ने बिजनौर से एक मोटरसाइकिल चोरी की और हत्या के लिए एक गुप्ती भी वहीं से खरीदी.
योजना के अनुसार, 2 नवंबर, 2014 की सुबह दोनों ने चोरी की मोटरसाइकिल से मामन का पीछा किया और गुप्ती से गोद कर उन की हत्या कर दी. उन्होंने मोटरसाइकिल वहीं जंगल में छोड़ दी और हरियाणा चले गए. इस के बाद वे जबतब अशोक से फोन पर बात करते रहे.
जब दोनों को पता चला कि अशोक ने 2 एकड़ जमीन 90 लाख रुपए में बेची है तो उन्होंने फोन कर के अपनी बकाया रकम मांगी. लेकिन अशोक ने 70 लाख रुपए का कर्ज अदा करने के बाद जो पैसे बचे थे, उन्हें अय्याशी में खर्च कर दिए थे.
बकाया रकम के लिए दोनों की अशोक से अकसर झड़प होती रहती थी. नीतू और ङ्क्षटकू को जब पता चला कि अशोक के नाम पिता की आधी संपत्ति होने वाली है और वह करोड़ों की है तो वे उस से 4 करोड़ रुपए मांगने लगे. रकम न देने पर वे उसे पुलिस से सच्चाई बताने की धमकी दे रहे थे.
एक दिन जब नरेला स्थित शराब के ठेके पर नीतू और ङ्क्षटकू की अशोक से झड़प हो रही थी, तभी वहां मौजूद मुखबिर ने उन की बातें सुन ली थीं. उस के बाद उस ने सारी बातें अशोक कुमार को बता दी थीं. इस तरह मामन की हत्या का राज खुल गया और हत्यारे पकड़े गए.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित