तांत्रिक ने भभूत खिलाकर परिवार के तीन लोगों की ली बली

35साल का योगेश उर्फ पप्पू नामदेव अपनी 32 वर्षीय पत्नी सुनीता व 12 साल के बेटे दिव्यांश के साथ मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के बानापुरा के वार्ड नंबर 3 दुर्गा कालोनी में रहता था. योगेश पान की दुकान चलाता था, जबकि पत्नी सुनीता घर पर ही आटा चक्की और किराना दुकान चलाती थी.

4 नवंबर की सुबह को कालोनी के लोग अपनी जरूरत का सामान लेने किराना दुकान पर आ रहे थे, लेकिन अभी तक योगेश की दुकान का दरवाजा नहीं खुला था. पड़ोसी और कालोनी के लोग इस बात को ले कर आश्चर्य भी व्यक्त कर रहे थे कि आज योगेश की दुकान क्यों नहीं खुली. क्योंकि अकसर योगेश सुबह जल्दी उठ कर किराना दुकान खोल लेता था. आसपास रहने वाले लोग अपने घरों में दीवाली की तैयारियों में जुटे थे. योगेश के घर के सामने किसी तरह की हलचल न देख कर लोगों ने यह अनुमान लगाया कि आज अमावस्या है और योगेश शायद अपने परिवार के साथ नर्मदा नदी में स्नान करने आंवली घाट गया होगा.

कालोनी के लोगों को पता था कि योगेश के मातापिता आंवली घाट में पूजन सामग्री की दुकान चलाते हैं. अकसर ही पूर्णिमा और अमावस्या पर योगेश अपने परिवार के साथ वहां जाता रहता था. पिछले पखवाड़े ही वह अपने 8 साल के बेटे को भी वहां छोड़ आया था. दीवाली की शाम करीब 4 बजे थे. तभी योगेश के घर के सामने एक बाइक आ कर रुकी. उन्होंने दरवाजे पर दस्तक दी. दरअसल, योगेश के घर के सामने उस की दुकान की शटर लगा हुआ था. वहीं से हो कर उस के घर के अंदर जाने का रास्ता था.

काफी देर तक योगेश के घर का दरवाजा (शटर) खटखटाया, मगर किसी ने शटर नहीं खोला. आवाज सुन कर पड़ोसी भी आ गए. बाइक पर सवार लोगों ने उन्हें बताया कि वे बनापुरा के ही रहने वाले हैं, आज आंवली घाट नर्मदा स्नान करने गए थे. वहां पर नारियल प्रसाद खरीदते समय योगेश के पिता से परिचय हुआ तो उन्होंने कहा, ‘‘आज दीपावली का दिन है योगेश और बच्चों के लिए देवी मां का प्रसाद ले जाना.’’ योगेश के पिता के भेजे प्रसाद को देने के लिए वे काफी देर से शटर खटखटा रहे हैं, मगर कोई अंदर से उन की बात सुन ही नहीं रहा.

उन दोनों युवकों की बात सुन कर आसपास रहने वाले लोग आ गए और उन्होंने शटर को जोरजोर से पीटना शुरू कर दिया. अंदर से कोई जवाब न मिलने पर एक युवक ने खिड़की से झांक कर देखा तो उस की आंखें फटी रह गईं. अंदर का मंजर खौफनाक था. कमरे के अंदर योगेश, उस की पत्नी और बेटे के रक्तरंजित हालत में पलंग पर पड़े हुए थे. जैसे ही कालोनी में यह खबर फैली तो योगेश के घर के सामने कालोनी के लोग जमा होने लगे. इसी बीच किसी ने सिवनी मालवा पुलिस थाने में फोन कर के मामले की जानकारी दे दी.

सिवनी मालवा पुलिस थाने के टीआई जितेंद्र सिंह यादव को जैसे ही इस घटना की सूचना मिली, उन्होंने जिले के आला अधिकारियों को सूचना दी और पुलिस बल के साथ बनापुरा की दुर्गा कालोनी पहुंच गए. योगेश के मकान में सामने की तरफ 2 शटर लगे हुए थे. एक शटर में किराना दुकान, जबकि दूसरी में आटा चक्की लगी हुई थी. आटा चक्की वाले तरफ से ही योगेश के मकान में अंदर जाने का रास्ता था.

पुलिस के वहां पहुंचते ही जब आटा चक्की दुकान का शटर खोल कर देखा तो वह अंदर से बंद नहीं था. जैसे ही पुलिस टीम ने शटर को उठाया, वह आसानी से खुल गया. उसी रास्ते से पुलिस टीम ने योगेश के घर के अंदर प्रवेश किया. अंदर बैडरूम में एक पलंग पर योगेश नामदेव उर्फ पप्पू, पत्नी सुनीता नामदेव और दूसरे पलंग पर उस के 12 साल के बेटे दिव्यांश के शव पड़े हुए थे. तीनों के सिर पर चोट के साथ गले पर किसी धारदार हथियार के निशान साफ दिख रहे थे.

पलंग समेत आसपास दीवार पर खून के छींटे साफ दिखाई दे रहे थे. घर के कमरे में सामान बिखरा हुआ था. एक कमरे में जलता हुआ दीपक और पूजा की सामग्री रखी हुई थी. इस दिल दहला देने वाली घटना की खबर सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो चुकी थी. खबर मिलते ही होशंगाबाद जिले के एसपी डा. गुरुकरन सिंह, एएसपी अवधेश प्रताप सिंह, एसडीपीओ सौम्या अग्रवाल, फोरैंसिक टीम और डौग स्क्वायड मौके पर आ चुकी थी. घटना की खबर आंवली घाट में रहने वाले योगेश के पिता को दी गई. योगेश का एक बेटा अपने दादादादी के पास रहता था. खबर मिलते ही आंवली घाट से योगेश के मातापिता उस के बेटे को ले कर आ चुके थे. अपने बेटे, बहू और पोते की मौत के सदमे से उन का रोरो कर बुरा हाल था.

पुलिस ने तीनों शवों को बरामद कर दूसरे दिन सुबह सिवनी मालवा के सरकारी अस्पताल में पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया, जिस के बाद तीनों शवों को योगेश के 70 साल के बूढ़े पिता विनोद कुमार नामदेव को सौंप दिया गया. घर से तीनों की अर्थियां एक साथ निकलीं तो दुर्गा कालोनी के रहवासियों की आंखें नम हो गईं. दीवाली पर रोशनी की जगह कालोनी में चारों तरफ सन्नाटा पसरा रहा. एसपी गुरुकरण सिंह, एएसपी अवधेश प्रताप सिंह ने मौके पर जा कर जांचपड़ताल कर घटनास्थल के कमरे को पूरी तरह सील करने का आदेश दिया. और हत्यारों की तलाश के लिए एसडीपीओ सौम्या अग्रवाल, टीआई जितेंद्र सिंह यादव, जिला पुलिस लाइन से इंसपेक्टर उमाशंकर यादव, गौरव सिंह बुंदेला के नेतृत्व में 4 अलगअलग टीमें गठित कीं.

खोजी कुत्ते के द्वारा घटनास्थल का निरीक्षण कराया गया. खोजी कुत्ते के बानापुरा रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म-1 तक जा कर रुकने से यह अनुमान लगाया गया कि शायद हत्या के आरोपी वारदात को अंजाम देने के बाद किसी ट्रेन से या प्लेटफार्म से गुजरे होंगे. दुर्गा कालोनी में दीपावली का त्यौहार मातम में बदल चुका था. एक साथ हुए 3 मर्डर की वजह से कालोनी के लोग दहशत में थे. पुलिस ने दुर्गा कालोनी के लगभग दरजन भर महिला पुरुषों के बयान दर्ज कर हत्या के कारणों को जानने की कोशिश की.

नामदेव परिवार के 3 सदस्यों की हत्या की वजह जानने के लिए पुलिस ने मृतक योगेश के पिता विनोद नामदेव, माता रुकमणी एवं 8 साल के बेटे से आंवली घाट में जा कर गहन पूछताछ की.

‘‘आप के बेटे की किसी से कोई रंजिश थी क्या?’’ टीआई जितेंद्र सिंह ने विनोद नामदेव से पूछा.

‘‘नहीं साहब, पप्पू की किसी से कोई रंजिश नहीं थी, वह तो दिन भर अपनी दुकान पर ही रहता था.’’ विनोद ने कहा.

‘‘तो फिर किसी पर शक है तुम्हें?’’

‘‘नहीं साहब, कुछ समझ नहीं आ रहा. हां, इतना जरूर है कि पिछले 2 महीने से पप्पू के घर पर अजीब तरीके से चोरी हो रही थी.’’

‘‘तो फिर चोरी की रिपोर्ट दर्ज क्यों नहीं कराई.’’

‘‘साहब, पप्पू बताता था कि घर की अलमारी से बहू सुनीता के गहने और रुपए चोरी हो रहे थे, जिस का पता लगाने के लिए योगेश ने घर पर एक तांत्रिक से तांत्रिक क्रियाएं जरूर कराई थीं.’’

विनोद नामदेव के मुंह से तांत्रिक क्रियाएं कराने की बात सुन कर पुलिस टीम के कान खड़े हो गए. पुलिस ने घटनास्थल पर जलते हुए दीपक और पूजन सामग्री को देखा था, इस से पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि दीपावली के एक दिन पहले तंत्रमंत्र का खेल हुआ था.

‘‘तांत्रिक क्रियाएं करने वाला तांत्रिक कौन था?’’ पुलिस ने विनोद से पूछा.

‘‘साहब, हरदा जिले का गणेश काशिव अकसर योगेश के घर पर आ कर तंत्रमंत्र करता रहता था. वह चोरी गई वस्तुओं को वापस दिलाने के लिए तंत्रमंत्र का सहारा लेता था. घटना वाले दिन भी गणेश मुझ से बाइक में पैट्रोल भरवाने के लिए पैसे ले कर आया था.’’ विनोद नामदेव ने साफसाफ बता दिया.

पुलिस ने योगेश के घर सहित दुर्गा कालोनी में सुरक्षा बढ़ा कर आरोपियों की तलाश शुरू की तो कालोनी के लोगों से पता चला कि योगेश के घर तांत्रिक क्रियाओं को हरदा जिले के आदमपुर गांव का तांत्रिक गणेश काशिव अंजाम देता था. तांत्रिक पिछले कुछ दिनों से मृतक के घर बारबार आ रहा था. दीपावली के एक दिन पहले भी लोगों ने उसे योगेश के घर पर देखा था. पुलिस को तीनों मृतकों योगेश नामदेव, पत्नी सुनीता बाई व बच्चे दिव्यांश के शवों पर चोटों के निशान मिले थे. मृतकों के पास पूजा का स्थान एवं उस के पास पड़े खून के छींटे, जलता हुआ दीपक ये सभी साक्ष्य पुलिस के लिए तांत्रिक क्रियाओं की तरफ इशारा कर रहे थे.

योगेश के मौसेरे भाई से भी तांत्रिक गणेश के पूजा करने की बात पुलिस को पता चली. पुलिस की एक टीम हरदा जिले के हंडिया थाना क्षेत्र के गांव आदमपुर पहुंची और शक के आधार पर तांत्रिक गणेश काशिव को ले कर सिवनी मालवा आ गई. गणेश ने तांत्रिक क्रियाएं करने की बात तो स्वीकार कर ली, मगर हत्या की बात से अंजान बनने की कोशिश करता रहा. पुलिस ने जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो वह जल्दी ही टूट गया. पुलिस पूछताछ में तांत्रिक गणेश काशिव ने अपने साथी मोनू उर्फ मोहन बामने के साथ मिल कर 3-4 नवंबर, 2021 की रात 12 बजे अमावस्या को मृतक के घर पूजा करने और उन की हत्या करने का जुर्म कुबूल कर लिया.

आरोपी गणेश ने बताया कि उस ने इंद्रजाल नामक पुस्तक से तंत्र विद्या सीखी थी. उस ने पुलिस के सामने दावा किया कि वह गायब पैसा और गायब सामग्री को वापस दिलाने की तंत्र विद्या अच्छी तरह जानता है. वैज्ञानिक अविष्कारों के बावजूद भी पढ़ेलिखे परिवार द्वारा रुपए और गहने वापस पाने के लिए अंधविश्वास के चक्कर में पड़ कर तांत्रिक से तंत्रमंत्र कराने की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

70 साल के विनोद नामदेव मूलत: होशंगाबाद जिले के आंवली घाट के निवासी हैं. नर्मदा नदी के तट पर पूजन सामग्री की दुकान से उन के परिवार की रोजीरोटी चलती है. विनोद का एकलौता बेटा योगेश पढ़लिख कर जवान हुआ तो वह काम की तलाश में गांव से 30 किलोमीटर दूर बनापुरा आ गया. बनापुरा में योगेश ने पान की दुकान खोल ली. योगेश के बनाए पान के लोग दीवाने हो गए. योगेश की पान की दुकान चल पड़ी तो रोजाना हजारों रुपए की कमाई होने लगी. सन 2008 में योगेश की शादी सुनीता से हो गई. शादी के कुछ समय बाद ही बनापुरा की दुर्गा कालोनी में योगेश और सुनीता ने प्लौट ले कर मकान बना लिया.

2 बेटे दिव्यांश और अक्षांश के जन्म के बाद सुनीता के कहने पर योगेश ने घर पर आटा चक्की और छोटी सी किराना दुकान खोल ली. योगेश घर के बाहर पान की दुकान चलाता और सुनीता घर पर रह कर आटा चक्की और किराना दुकान चलाने लगी. सुबह बच्चों को स्कूल भेज कर वह दिन भर दुकान चलाने में व्यस्त रहती. 2021 के सितंबर महीने की बात है. सुनीता अपनी अलमारी में रखे गहने देख रही थी, मगर उसे उस की सोने की बालियां और अंगूठी नहीं मिल रही थी. परेशान हो कर उस ने अपने पति योगेश को यह बात बताई तो योगेश ने कहा, ‘‘अच्छे से देख लो सुनीता, तुम ने ये चीजें कहीं दूसरी जगह रख दी होंगी.’’

सुनीता ने अलमारी का कोनाकोना छान कर देख लिया, मगर उसे अंगूठी और कान की बालियां नहीं मिलीं. इस के हफ्ते भर बाद जब सुनीता ने अपना पर्स खोल कर देखा तो उस के करीब 5 हजार रुपए पर्स से गायब थे. सुनीता इस बात को ले कर परेशान रहने लगी. उस ने योगेश से कहा, ‘‘देखो, घर से रुपए और अंगूठी, कान की बालियां गायब हो गई हैं, जरूर कोई हमारे ऊपर जादूटोना कर रहा है.’’

‘‘तुम कैसी दकियानूसी बातें कर रही हो, घर से कैसे कोई चीज गायब हो सकती है, तुम्हें कुछ याद रहता नहीं. कहीं रख दी होगी.’’ योगेश ने उसे झिड़कते हुए कहा.

सुनीता के दिमाग में शक का कीड़ा घुस गया था, उसे लग रहा था कि किसी ने उस के रुपए और गहने गायब कर दिए हैं. इसी दौरान जब योगेश की मौसी का लड़का मनीष उस के घर आया तो सुनीता ने उसे रुपए और गहने गायब होने की बात बताई तो मनीष बोला, ‘‘भाभी, मैं एक तांत्रिक बंजारा बाबा को जानता हूं, वह लोगों के गुम हो गए सामान को वापस दिला देता है.’’

‘‘भैया, तुम बंजारा बाबा से बात कर लो न, मुझे भी मेरे रुपए और गहने वापस चाहिए.’’ सुनीता के तो जैसे मन की मुराद पूरी हो गई, उस ने चहकते हुए मनीष से कहा.

मनीष 2-3 दिन बाद बंजारा बाबा को ले कर योगेश के घर आ गया. बंजारा बाबा का असली नाम गणेश काशिव था. 25 साल का गणेश काशिव हरदा जिले के हंडिया थाना क्षेत्र के गांव आदमपुर का रहने वाला था. गणेश को जिस उम्र में स्कूल की किताबें पढ़नी चाहिए थीं, उस उम्र में वह तंत्रमंत्र की किताबें पढ़ने लगा था. तंत्रमंत्र और झाड़फूंक में उस का नाम आसपास के इलाकों में प्रसिद्ध हो गया था. गणेश झाड़फूंक और तांत्रिक साधना के लिए बनापुरा आता रहता था. वह लोगों को बताता था कि उस के पास इंद्रजाल नाम की पुस्तक है, जिस में जमीन में गड़े धन का पता लगाने और चोरी किया धन वापस करने के लिए तंत्रमंत्र करने के उपाय बताए गए हैं.

बंजारा बाबा अकसर अमावस्या की रात को सुनसान जगह पर तंत्र साधना करता था. उस के इस काम में मोहन बामने उर्फ मोनू उस की मदद करता था. 30 साल का मोनू भी उस के गांव के पास रीझगांव का रहने वाला था. हमारे समाज में अंधविश्वास की जड़ें भी अमरबेल की तरह इस तरह फैली हुई हैं कि पढ़ेलिखे लोग भी इसे छोड़ने को तैयार नहीं हैं. सुनीता और योगेश भी तांत्रिक के बिछाए इंद्रजाल में फंस ही गए. गणेश अकसर योगेश के घर आ कर कहता कि उस के घर में किसी प्रेत का साया है, इसी वजह से घर का सामान गायब हो रहा है. गणेश ने योगेश को 6 ताबीज बना कर देते हुए कहा था कि इन्हें घर के सभी लोग अपने गले में हमेशा पहन कर रखें तो प्रेत का साया उन का कुछ नहीं बिगाड़ सकता.

दीपावली के सप्ताह भर पहले गणेश ने सुनीता को बताया कि दीपावली के एक दिन पहले की रात में वह उस के घर आ कर तांत्रिक साधना करेगा, इस से उस के घर से गायब सभी सामान घर में आ जाएगा. उस ने तांत्रिक साधना के लिए कुछ सामान की लिस्ट बना कर उसे दी थी. योगेश काफी मशक्कत के बाद तांत्रिक क्रिया में उपयोग होने वाले सामान जुटा पाया था. तांत्रिक गणेश के बनाए प्लान के मुताबिक वह अपने सहयोगी मोनू को ले कर योगेश के घर रूप चौदस की शाम ही पहुंच गया.

गणेश ने इंद्रजाल नाम की तंत्रमंत्र से संबंधित पुस्तक में पढ़ा था कि अमावस्या की मध्यरात्रि में किसी की बलि चढ़ाने से उसे तांत्रिक शक्तियां प्राप्त हो जाती हैं. इन शक्तियों के द्वारा वह जमीन में गड़े धन का पता लगाने के साथ खोए हुए रुपए, जेवरात वापस ला सकते हैं. गणेश तंत्रमंत्र के जरिए उन शक्तियों को हासिल करना चाहता था. इसलिए उस ने अपने साथी मोनू की मदद से दीपावली के एक दिन पहले की मध्यरात्रि में तांत्रिक अनुष्ठान कर के बलि चढ़ाने का प्लान बनाया था.

योजना के मुताबिक, वे रात 9 बजे ही पूजापाठ की तैयारियों में लग गए थे. योगेश के घर में बने एक कमरे में दीपक जला कर पूजा में उपयोग होने वाले सामान को सजा कर रख लिया गया था. सुनीता पूजा की तैयारियों के साथ खाना बनाने की तैयारी भी कर रही थी, क्योंकि गणेश ने सुनीता से बोल दिया था कि खाना तैयार कर परिवार के लोग खा लें, तांत्रिक अनुष्ठान के बाद वह खाना खा कर ही घर जाएगा.

गणेश ने एक कागज की पुडि़या सुनीता को देते हुए कहा था कि इसे सब्जी में डाल देना, इस में अभिमंत्रित भभूत (भस्म) है, जो हर बला से सब को बचा कर रहेगी. सुनीता बहुत खुश थी, उसे भरोसा था कि बंजारा बाबा के द्वारा किए जाने वाले तांत्रिक अनुष्ठान से उस के गहने वापस मिल जाएंगे. बाबा द्वारा दी गई भभूत उस ने सब्जी में डाल दी. रात के 11 बजने वाले थे तभी बाबा ने सुनीता को बुला कर कहा, ‘‘आप तीनों खाना खा कर थोड़ा आराम कर लें, तांत्रिक अनुष्ठान में 2 घंटे से भी ज्यादा का समय लगेगा.’’

तांत्रिक अनुष्ठान देखने को बाबा ने पहले ही मना कर दिया था, इसलिए सुनीता, योगेश और दिव्यांश ने एक साथ बैठ कर खाना खाया और अपनेअपने पलंग पर लेट गए. बिस्तर पर पहुंचते ही वे कब बेहोश हो गए, उन्हें पता ही नहीं चला. इधर जैसे ही तांत्रिक अनुष्ठान खत्म हुआ तो बाबा ने मोनू को अंदर जा कर देखने को कहा. मोनू ने घर के अंदर जा कर देखा तो तीनों सो चुके थे. उस ने तसल्ली के लिए आवाज दे कर पुकारा, मगर योगेश का परिवार सब्जी में मिलाई गई जहरीली भभूत के असर से बेहोश हो चुका था.

मौके का फायदा उठा कर दोनों ने तांत्रिक क्रिया में इस्तेमाल की गई धारदार कुल्हाड़ी निकाल ली. देखते ही देखते तीनों के सिर पर जोरदार प्रहार कर उन का गला भी रेत दिया. कुल्हाड़ी के वार से खून के छींटे दोनों के कपड़ों पर पड़ चुके थे. तीनों का काम तमाम कर गणेश और मोनू ने अलमारी में रखे गहने और रुपए निकाले और सारा सामान समेट कर वे बाइक से भाग गए.

जिस ढंग से दोनों ने घटना को अंजाम दिया था, उन्हें पकड़े जाने का जरा भी खौफ नहीं था. इसलिए वे रात को ही अपनी बाइक से हरदा जिले के अपनेअपने गांव पहुंच गए थे. पुलिस की सघन पूछताछ में जब इस बात का खुलासा हुआ कि गणेश और मोनू तंत्रमंत्र के लिए बनापुरा आते थे, वे पुलिस की नजरों से ज्यादा दिन छिप नहीं सके. सिवनी मालवा पुलिस ने तांत्रिक गणेश और मोनू को उन के गांव से गिरफ्तार कर लिया. आरोपियों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 460, 380 के तहत अपराध दर्ज कर 8 नवंबर, 2021 को दोनों को कोर्ट में पेश कर एक दिन के पुलिस रिमांड पर ले कर पूछताछ में सारे मामले का खुलासा हुआ.

तांत्रिक की निशानदेही पर घटना में प्रयुक्त कुल्हाड़ी, खून से सने हुए कपड़े और योगेश के घर से चुराए हुए रुपए, सोने का मंगलसूत्र बरामद कर लिया. 10 नवंबर को दोनों को कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें होशंगाबाद जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों और मीडिया रिपोर्ट पर आधारित

200 लोगों को पैरों तले रौंद दिया हाथियों के झुंड ने

खतरे में हैं हाथी

इंसान अपने स्वार्थ के लिए हाथियों का शिकार करना बंद नहीं कर रहा है. तो वहीं गुस्सैल हाथियों की चपेट में आकर हर साल अनेक लोग अपनी जान से हाथ धो रहे हैं. आखिर इंसान और हाथियों के बीच क्यों बढ़ रहा है टकराव? और इस दिशा में सरकार ने उठाया है क्या कदम?

साइलेंट वैली नैशनल पार्क, केरल में 27 मई, 2020 को मादा हाथी की दर्दनाक मौत की दास्तान आप को जरूर याद होगी. 15 वर्ष की गर्भवती मादा हाथी को किसी सिरफिरे ने पटाखों से भरा अनानास खिला दिया था. पटाखे मुंह में फटने से उस का जबड़ा बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था. इस वजह से 2 सप्ताह तक वह न तो कुछ खा सकी और न पानी पी सकी. 

मादा हाथी को हुए असहनीय दर्द का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उसे इतनी जलन और दर्द हुआ कि वह कई दिनों तक झील में खड़ी रही. आखिरकार, कमजोरी से वह झील में गिरी और डूबने से उस की और गर्भ में पल रहे बच्चे की दर्दनाक मौत हो गई.

इस घटना के बाद वन्यजीव संरक्षण के लिए काम कर रहे संगठनों के लोगों ने काफी होहल्ला मचाया और वक्त गुजरते ही यह किस्सा भी लोगों की जुबान से गायब हो गया. भारत में हाथियों और इंसानों के बीच खूनी संघर्ष आज भी जारी है. दुनिया के कई देशों में हाथी अब भी संकट में हैं, भारत में पिछले 8 सालों में हाथियों की संख्या में इजाफा तो हुआ है, मगर हाथियों की मौत भी कम नहीं हुई है.

वल्र्ड एनिमल प्रोटेक्शन संस्था के अनुसार इंसानों और हाथियों के बीच संघर्ष की वजह से भारत में औसतन रोजाना एक व्यक्ति की मौत होती है, जिस में अधिकांश किसान होते हैं. पिछले 6 सालों में हाथियों और इंसानों के बीच टकराव में जितनी मौतें हुई हैं, उन में से 48 फीसदी केवल ओडिशा, पश्चिम बंगाल और झारखंड में हुई हैं. अगर असम, छत्तीसगढ़ और तमिलनाडु को भी इस में जोड़ दें तो इन 6 राज्यों में मरने वालों की संख्या 85 प्रतिशत है. 

इन राज्यों के किसानों की शिकायत रहती है कि जंगली हाथी उन की फसलें बरबाद कर रहे हैं, इस से उन्हें भारी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ रहा है. इन राज्यों के लोगों का कहना है कि आबादी वाले क्षेत्रों में जंगली हाथियों की घुसपैठ लगातार बढ़ रही है.

 

 

केंद्रीय वन मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार भारत में हाथी और इंसानों के टकराव में हर साल 400-500 लोगों की मौत होती है, जबकि 100 हाथियों को भी इस टकराव में जान गंवानी पड़ती है.

जिस तरह देश में बाघों के संरक्षण के लिए प्रोजेक्ट बनाया गया है, उसी तरह धरती के सब से विशालकाय और आलीशान जीव हाथी को भी बाघों की तरह शेड्यूल एक के तहत संरक्षण प्राप्त है. बावजूद इस के भारत समेत दुनिया के कई देशों में इन की स्थिति काफी दयनीय बनी हुई है. 

आलम यह है कि तकरीबन 4 लाख आबादी वाले अफ्रीकी हाथियों पर गंभीर संकट मंडरा रहा है और लगभग 40 हजार जनसंख्या वाले एशियाई हाथी विलुप्त होने की कगार पर हैं. हाथियों की स्थिति में सुधार लाने के लिए 12 अगस्त, 2012 से वार्षिक विश्व हाथी दिवस (World Elephant Day) मनाया जाता है, जिस का उद्ïदेश्य हाथी के प्रति लोगों को जागरूक करना और इंसानों व हाथियों के बीच होने वाले संघर्ष का स्थाई समाधान खोजना है.  

आज विलुप्त होने की कगार पर खड़े हाथियों को भी इंसानों से ऐसे ही वचन की जरूरत है. ताकि ये विशालकाय जीव न केवल एक सुरक्षित जिंदगी जी सके, बल्कि इसे गुलामी की बेडिय़ों से भी मुक्ति मिले.

हाथियों के संरक्षण के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1992 में केंद्रीय वन मंत्रालय द्वारा प्रायोजित हाथी परियोजना (Project Elephant) की शुरुआत की थी. इस प्रोजेक्ट के 3 मुख्य उद्ïदेश्य थे, पहला हाथियों, उन के प्राकृतिक निवास और उन के कारिडोर को सुरक्षित करना. दूसरा इंसानों व जानवरों के बीच होने वाले संघर्ष का समाधान तलाशना और तीसरा बंधुआ हाथियों की स्थिति में सुधार  लाना.

केंद्रीय वन मंत्रालय ने एलिफेंट प्रोजेक्ट के तहत वर्ष 2017 में देश में हाथियों की गणना कराई थी. इस गणना के मुताबिक देश में हाथियों की कुल संख्या 29,964 थी. इन से तकरीबन 3 हजार हाथी विभिन्न लोगों, संस्थाओं अथवा मंदिरों द्वारा बंधक बना कर रखे गए हैं. एशियाई हाथियों की सबसे ज्यादा संख्या भारत में है, जो पूरी दुनिया में मौजूद एशियाई हाथियों की कुल संख्या का तकरीबन 60 फीसदी है.

मंत्रालय की रिपोर्ट में भारत में इंसानों व हाथियों के बीच संघर्ष को बड़ी चुनौती बताया है. प्रत्येक वर्ष हाथियों की वजह से एलिफेंट रेंज के करीब रहने वाले किसानों को लाखों रुपए की फसल और संपत्ति का नुकसान झेलना पड़ता है. ऐसी स्थिति से निपटने और हाथियों के उचित प्रबंधन की जिम्मेदारी राज्य वन विभाग की है.

अलगअलग राज्यों में वन विभाग ने इंसान-हाथी संघर्ष को कम करने के लिए स्थानीय परिस्थितियों को देखते हुए अल्पकालिक और स्थाई योजनाएं तैयार की हैं. बावजूद हाथी और इंसान के बीच संघर्ष थमने का नाम नहीं ले रहा है.

वन्य जीवों को बचाने के लिए वन विभाग करोड़ों रुपए खर्च तो करता है, लेकिन न तो द्वंद्व रुक रहा है न ही हाथियों की मौत रुक रही है. विशेषज्ञ कहते हैं कि वन तब तक सलामत रहेगा, जब तक उस में वन्य जीव होंगे. 

हाथियों की कब्रगाह क्यों बना छत्तीसगढ़

पिछले 23 सालों में छत्तीसगढ़ में 70 हाथियों की मौत हो चुकी है. वहीं, उन के कुचलने से 195 इंसानों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है. यहां इंसान और हाथी की लड़ाई जारी है. आज भी हाथी कई मकानों पर हमला पर उन्हें ध्वस्त कर देते हैं.

 

 

 

इस के अलावा हाथी रहवास में कोल ब्लौक आरटीआई कार्यकर्ता और वन्यजीव प्रेमी सजल मधु ने बताया कि हाथियों की मौत के आंकड़े चौंकाने वाले हैं. एलिफैंट कारिडोर बनाने के बजाय हाथियों के रहवास क्षेत्र में 17 कोल ब्लौक की अनुमति दी जा चुकी है.

छत्तीसगढ़ के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) सुधीर अग्रवाल ने बताया कि छत्तीसगढ़ में  लेमरू और बादलखोल तमोर पिंगला नाम के 2 हाथी रिजर्व हैं. 

क्यों बढ़ रहा है हाथी और इंसानों में टकराव

बीते 3 सालों में हाथियों से जानमाल की संख्या भी बेहद बढ़ी है. इन 3 सालों में हाथियों की वजह से हुए नुकसान पर कुल 58,581 प्रकरण बनाए गए. इस में वन विभाग द्वारा साढ़े 53 करोड़ रुपए का मुआवजा बांटा गया. सब से अधिक मुआवजा प्रकरण कोरबा, सरगुजा, धरमजयगढ़, जसपुर, कटघोरा, महासमुंद और गरियाबंद में बांटा गया.

छत्तीसगढ़ के बाद मध्य प्रदेश का शहडोल संभाग हाथी और इंसानों के टकराव का नया केंद्र बन गया है. पिछले 4 सालों में हाथी और मानव संघर्ष में तकरीबन 25 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. वहीं हाथियों द्वारा बड़ी संख्या में ग्रामीणों के घरों को क्षतिग्रस्त कर फसलों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है. 

2018 में छत्तीसगढ़ की सीमा पार कर उमरिया जिले के बांधवगढ़ में 40 हाथियों का समूह यहां आ गया था, जिस ने अपना रहवास यहीं पर बना लिया है. इस समूह के सदस्यों की संख्या अब बढ़ कर 80 के करीब हो गई है और ये अलगअलग समूहों में बंट गए हैं. यही जंगली हाथी ग्रामीणों की फसलों और घरों को नुकसान पहुंचा रहे हैं.

बिगड़ैल हाथियों को काबू में करने के लिए बहुत सी बातों का ध्यान रखना जरूरी है. पिछले 20 सालों से छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में हाथियों को चला रहे चंद्रभान महावत टिप्स देते हुए बताते हैं कि कोई भी हाथी 2 चीजों से ही काबू में रहता है. एक प्यार दूसरा मार, प्यार से कंट्रोल करने पर हाथी हमेशा शांत रहता है और उस के गुस्से में आने के चांस कम ही रहते हैं. 

जब कभी हाथी बिगड़ भी जाते हैं तो बहुत जल्दी कंट्रोल में आ जाते हैं. लेकिन जो जानवर मार से काबू में आते हैं, अगर वह बिगड़ जाए तो बवाल मच जाता है. हाथी बहुत बड़ा जानवर होता है और उस के बिगडऩे पर स्थिति कंट्रोल से बाहर हो जाती है. कभीकभी ऐसी स्थिति बनती है कि केवल हथिनी ही उन को कंट्रोल कर पाती है.

चंद्रभान बताते हैं कि अगर हाथी बेकाबू हो कर रहवासी इलाके या किसानों के खेतों के आसपास हैं और आप चाहते हैं कि फसलों को नुकसान न हो. 

ऐसी स्थिति में पटाखे जला कर, ढोल बजा कर, तेज गाना बजा कर या किसी भी तरह का शोर मचा कर उन्हें भगाया जा सकता है. शोर सुन कर वह जंगल की तरफ चले जाते हैं. लेकिन उन के पास भूल कर भी न जाएं, बिगड़ैल हाथी के पास जाने पर जान का खतरा बना रहता है.

भारत में तेजी से हाथियों की संख्या में गिरावट हो रही है. इस की सब से बड़ी वजह इन का अवैध शिकार है. कुछ लोग इन का हाथी दांतों के लिए अवैध शिकार कर रहे हैं. हाथी दांत की विदेशी बाजार में काफी मांग रहती है. इस का फायदा उठाने के लिए शिकारी इन का धड़ल्ले से शिकार कर रहे हैं. 

इन के दांतों का इस्तेमाल साजसजावट की चीजों को बनाने से ले कर शक्तिवर्धक दवाओं तक में भी धड़ल्ले से हो रहा है. ब्लैक मार्केट में हाथी दांत की कीमत लगभग एक लाख रुपए से शुरू होती है.

अब तक का सब से लंबा हाथी दांत 138 इंच का दर्ज हुआ है, जिस का वजन लगभग 142 किलोग्राम था. आप को बता दें कि हाथी की सामान्य आयु 70 वर्ष तक होती है और वे स्पर्श, दृष्टि, गंध और ध्वनि से संवाद करते हैं. हाथी बहुत बुद्धिमान होते हैं तथा वे भावनात्मक रूप से भी काफी परिपूर्ण होते हैं. किसी करीबी की मृत्यु हो जाने पर उन्हें उदास या रोते हुए भी देखा गया है.

देश के हाथी प्रभावित 10 बड़े राज्यों में सब से कम हाथी छत्तीसगढ़ में हैं, लेकिन 9 राज्यों में हाथियों की संख्या की तुलना में हाथियों से जनहानि सब से अधिक छत्तीसगढ़ में हुई है. छत्तीसगढ़ में आज की स्थिति में 247 हाथी हैं. बीते 3 सालों में इन हाथियों ने 200 लोगों को मौत के घाट उतारा है. 

छत्तीसगढ़ की तुलना में कनार्टक, केरल, असम, तमिलनाडु, उत्तराखंड में कई गुना अधिक हाथी हैं. कनार्टक में 6 हजार से अधिक हाथी हैं, लेकिन हाथियों से 3 सालों में 69 लोगों की मौत हुई. 

अन्य राज्यों में भी हाथियों की संख्या 24 गुना अधिक है, लेकिन हाथी और मानव के बीच टकराव की संख्या बेहद कम है. छत्तीसगढ़ में हाथियों की संख्या सब से कम होने के बावजूद जिस तरह से हादसे बढ़ रहे हैं, उसे ले कर सवाल उठने लगे हैं. हाथियों की संख्या का डंग पद्धति से की गई गणना की रिपोर्ट केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी की है.

हाथी गांव की ओर न आएं, इस के लिए छत्तीसगढ़ में हाथी विकर्षण बैरिकेड लगाए गए हैं, ताकि हाथी गांव में न घुसें. प्रदेश में कुल 53 हाथी मित्र दलों का गठन किया गया है और सजग सौफ्टवेयर बनाया गया है. 

गांव में अलर्ट सिस्टम भी बनाया गया है, जिस के जरिए हाथी के करीब आते ही गांव वालों को अलर्ट कर दिया जाता है. प्रदेश के 9 से ज्यादा प्रभावित वनमंडलों में हाथियों की बिजली के करंट से मरने की घटनाओं को रोकने के लिए 4 निजी संस्थाओं के माध्यम से अवैध हुकिंग व खुले करंट तारों को ठीक कराने का काम भी किया गया है.

हाथियों के एक स्थान से दूसरे स्थान पर पलायन के कई  कारण हैं. दक्षिण भारत की स्थिति को देखें तो वहां के जंगलों में बड़ी संख्या में हाथी पाए जाते हैं. लेकिन विगत कुछ समय से दक्षिण भारत के जंगलों में घनेणी और रानमोडी जैसी वनस्पतियों की कमी होने की वजह से हाथियों सहित दूसरे शाकाहारी जीवों के लिए प्राकृतिक भोजन की कमी हो गई है. कमोबेश यही हालत पानी को ले कर नजर आते हैं. 

एशियाई हाथियों की संख्या में तेज गिरावट का एक कारण उन के आवासीय क्षेत्र का लगातार सिकुड़ता जाना है. विकास योजनाओं के कारण उन के रहने के ठिकाने तेजी से नष्ट हो रहे हैं. एशिया के कुछ हिस्सों में हाथी दांत के लिए हाथियों का व्यापक रूप से शिकार किया जाता है. नतीजतन उन की संख्या दिनबदिन घटती जा रही है.

हाथियों के अधिकांश आवासों से रेलमार्गों का जाल बिछ चुका है. सरकार ट्रेनों की संख्या और उन की गति को बढ़ाने के लिए नागरिकों की मांगों को अधिक तरजीह दे रही है. वहीं, तेज भागती ट्रेन की टक्कर में हाथियों की मृत्यु दर का आंकड़ा भी बढ़ता ही जा रहा है.

इस के अलावा हाथियों की संख्या घटने का एक कारण बिजली के तारों से उलझ कर करंट लगने से हादसे का शिकार होना भी है. कुछ सालों में हाथियों की ज्यादातर मौतें बिजली के झटके से हो रही हैं, क्योंकि ज्यादातर जंगली जगहों पर बिजली पहुंच तो गई है, लेकिन वहां अमूमन बिजली के नंगे तार लटके रहते हैं. 

इस तरह की लापरवाही का परिणाम यह होता है कि जब कभी कोई हाथी इन बिजली के तारों में फंस जाता है तो करंट से उस की मौत हो जाती है.

भारतीय हाथियों की ही यदि बात करें तो यह मुख्यत: मध्य एवं दक्षिणी पश्चिमी घाट, उत्तरपूर्व भारत, पूर्वी एवं उत्तरी भारत तथा दक्षिणी प्रायद्वीप के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं. इन्हें भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची-1 में तथा पशुपक्षियों की संकटग्रस्त प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय में शामिल किया गया है. 

कैसे होती है हाथियों की गणना

आप की जानकारी के लिए बता दें कि भारत में हर 5 साल में हाथियों की गिनती होती है. इस के लिए 4 अलग विधियों का इस्तेमाल पिछले साल किया गया था. 

इस में पहली विधि के अंतर्गत सभी राज्य सरकारों को आदेश दिया गया कि वो डिजिटल मैप तैयार करें, ताकि जंगलों और उन से बाहर मौजूद हाथियों की संख्या को दर्ज करना आसान किया जा सके. कुल मिला कर सरकार की कोशिश है कि हाथियों की मौजूदगी को जियोग्राफिकल इंफारमेशन सिस्टम पर भी लाया जा सके. 

इन की गणना की दूसरी विधि काफी पारंपरिक है. इस के तहत वन विभाग 2 या 3 लोगों की एक टीम बनाई जाती है और उन्हें 5 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र आवंटित कर दिया जाता है. ये टीमें हाथियों की उम्र और लिंग का रिकौर्ड तैयार करती हैं और उन की फोटो भी खींचती हैं.

तीसरी विधि में गणना करने वाले हाथी की लीद से इस की गिनती करते हैं. आप को बता दें कि एक हाथी एक दिन में 15-16 बार लीद करता है. इस के जरिए अंदाजा लगाया जाता है कि हाथियों का मूवमेंट कितना है और उन की सेहत कैसी है. हाथियों की उम्र का अंदाजा उन की ऊंचाई से लगाया जाता है. अमूमन वयस्क नर हाथी की ऊंचाई 8 फीट तक और मादा हाथी की 7 फीट होती है. 

हाथियों की गणना करने के चौथे तरीके में 2 या 3 वनकर्मियों की टीमें इस विधि में भी बनाई जाती हैं. यह टीम पानी के स्रोत के पास तैनात रहती हैं. यहां भी हाथियों की उम्र और लिंग का रिकौर्ड तैयार किया जाता है.

आमतौर पर जन्म लेने वाले हाथियों में नर और मादा हाथियों की संख्या लगभग बराबर रहती है. लेकिन उम्र बढऩे पर उन का अनुपात एक नर पर 2 या 3 मादा का हो जाता है. माना जाता है कि नर हाथी कमजोर माने जाते हैं. 

आमतौर पर हाथियों के झुंड को प्रतिवर्ष तकरीबन 350-500 वर्ग किलोमीटर पलायन करने के रूप में जाना जाता है. हाथियों को बचाने या इन की संख्या को बढ़ाने के मकसद से ही हाथी गलियारे का निर्माण किया गया था. भारत में इस तरह के करीब 101 गलियारे हैं, जिन में से सब से अधिक गलियारे पश्चिम बंगाल में स्थित हैं.

भारत में उपलब्ध 33 एलिफेंट रिजर्व 80,777 वर्ग किलोमीटर में फैले हैं. साल 2017 की गणना के मुताबिक सब से ज्यादा हाथी कर्नाटक में 6,049 हैं. 5,719 हाथी असम तथा 3,054 केरल में हैं. 

आप को बता दें कि भारत में हाथियों की पिछली गणना वर्ष 2012 में संपन्न हुई थी, जिस में हाथियों की संख्या 29,391 और 30,711 के मध्य आंकी गई थी. 

इन की यह गिनती झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ में की गई थी. जबकि साल 2007 में यह संख्या 27,657 से 27,682 तक थी. अगस्त 2017 में सामने आई रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हाथियों की कुल संख्या 27,312 दर्ज की गई.

झारखंड की ही यदि बात करें तो यहां पर हाथी राजकीय पशु घोषित है. यहां पर भी हाल के कुछ समय में हाथियों की संख्या में कमी आई है. यहां पर पिछली गणना में जहां हाथियों की संख्या 688 थी, वहां यह अब घट कर 555 रह गई है. यहां पर हाथियों की संख्या में हो रही कमी का एक कारण नक्सलियों के खिलाफ चल रहे अभियान को भी माना जा रहा है.

वन विभाग के मुताबिक इन औपरेशन की वजह से हाथी यहां से पलायन कर पड़ोसी राज्यों में जा रहे हैं. हाथियों की कम होती संख्या को देखते हुए ही 12 अगस्त, 2017 को विश्व हाथी दिवसके अवसर पर देश में इन के संरक्षण हेतु एक राष्ट्रव्यापी अभियान गज यात्राको केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री डा. हर्षवर्धन द्वारा लांच किया गया था. इस अभियान में हाथियों की बहुलता वाले 12 राज्यों को शामिल किया गया था.

क्यों किया जाता है हाथियों का शिकार 

इंसान और हाथी की दोस्ती और हाथी की रक्षा करने की सच्ची कहानी दिखाने वाले, दिल छू लेने वाले भारतीय वृत्तचित्र द एलिफेंट व्हिस्परर्सने आस्कर जीता था. 2023 में द एलिफेंट व्हिस्परर्सको बेस्ट डाक्यूमेंट्री शौर्ट फिल्म आस्कर अवार्ड मिला था. द एलिफेंट व्हिस्परर्स की कहानी मुदुमलाई नैशनल पार्क में बोम्मन और बेलि नाम के एक कपल की देखभाल में रघु नाम के एक अनाथ हाथी के बच्चे की है.

देश में साल 1986 से ही हाथी दांत की तस्करी पर प्रतिबंध लगा हुआ है. इस के बावजूद इस का अवैध व्यापार तेजी से फलफूल रहा है. वन्य जीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो के आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 2018 से 2022 तक के पिछले 5 सालों में देश भर के शिकारियों और व्यापारियों से 475 किलोग्राम हाथी दांत और इस की कलाकृतियां जब्त की गईं.

1976 में भारत वन्य जीव एवं वनस्पति की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर संधि साइट्स) में शामिल होने वाला 25वां देश बना. तब से वह हाथियों के संरक्षण के प्रयास में शामिल रहा है. 

लोकसभा में दिए गए एक प्रश्न के जबाब के अनुसार शिकारियों ने साल 2018 से 2022 तक 41 हाथियों को मार डाला, इन में से 12 हाथी अकेले मेघालय और 10 ओडिशा में मारे गए. शिकार के अलावा पिछले 5 सालों में 25 हाथियों को जहर दे कर भी मार दिया गया.

पहले केवल नर हाथियों को हाथी दांत के लिए शिकार किए जाने का खतरा था, क्योंकि मादाओं के दांत नहीं होते हैं. अब, शिकारी हर उस जानवर को मार रहे हैं जो उन्हें मिल रहा है, जिस में मादा और बच्चे भी शामिल हैं. शिकारी हाथियों को जहर भरे तीरों से अपना शिकार बनाते हैं.

हाथी धीरेधीरे जहरीले तीरों के आगे झुक जाते हैं तो शिकारी मौके पर ही अपने शिकार की खाल उतार देते हैं. हाथी की खाल की चीनी मांग को पूरा करने के लिए 2013 से म्यांमार में 100 से अधिक हाथियों का शिकार किया गया था. 

हाथियों को मार कर उन की खाल उतार कर बेचने का यह कारोबार म्यांमार और चीन से होते हुए दूसरे देशों तक फैल रहा है. हाथी की खाल के व्यापार का एक प्रमुख केंद्र अराजक बर्मी सीमावर्ती शहर मोंग ला है. यह म्यांमार के सब से महत्त्वपूर्ण बौद्ध तीर्थस्थलों में से एक, गोल्डन रौक के पास एक बाजार में भी फलफूल रहा है.

हाथी की त्वचा को सुखा कर पाउडर बनाया जाता है और नारियल के तेल के साथ मिला कर एक क्रीम बनाई जाती है. इस क्रीम का इस्तेमाल त्वचा रोगों के इलाज और पाचन संबंधी समस्याओं के इलाज में किया  जाता है. तस्कर हाथी की खाल का पाउडर और पैंगोलिन स्केल भी बनाते हैं. हाथी की त्वचा से मनके, कंगन जैसे आभूषण भी बनाए जाते हैं.

हाथियों की खूब होती है खातिरदारी

जंगली हाथी साल भर वन्य जीवों के रेस्क्यू, वन एवं वन्य जीवों के सरंक्षण में विशेष योगदान देते हैं, जिस के कारण पार्क प्रबंधन उन्हें कुछ दिनों के लिए उन की खातिरदारी कर उन्हें रेस्ट भी देता है. इस दौरान इन से रेस्क्यू या सरंक्षण का कोई काम नहीं लिया जाता. हाथी रिजर्व और नैशनल पार्क में हर साल इस तरह के कैंप चलाए जाते हैं.

खाने में हाथियों को गन्ना, केला, मक्का, आम, अनानास, नारियल परोसा जाता है. फिर उन्हें जंगल में छोड़ दिया जाता है. दोपहर में हाथियों को जंगल से फिर वापस ला कर और नहला कर कैंप में लाया जाता है. फिर इन्हें रोटी, गुड़, नारियल, पपीता खिला कर दोबारा जंगल में छोड़ दिया जाता है. 

कैंप में हाथी के लिए मौका होता है. अपने साथी को चुनने का भी. कैंप के बाद हाथी तरोताजा हो कर एक बार फिर पार्क के दुर्गम क्षेत्रों की सुरक्षा में अपनी महती भूमिका निभाने के लिए निकल जाते हैं.

जंगली जानवरों के संरक्षण के लिए वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन ऐक्ट साल 1972 में पास हुआ था. इस कानून के जरिए जंगली जानवरों का ही नहीं, पौधों की अलगअलग प्रजातियों के प्रोटेक्शन का भी ध्यान रखा गया है. इस के साथ ही इन की रिहाइश, जंगली जानवरों, पौधों और उन से बने उत्पादों के व्यापार को भी इसी के जरिए नियंत्रित किया जाता है.

42वें संशोधन अधिनियम 1976 के बाद वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन को राज्य की सूची से हटा कर समवर्ती सूची में डाल दिया गया था.  समयसमय पर इस ऐक्ट में कई संशोधन किए जा चुके हैं. 2002 में किए गए संशोधन के बाद जंगली जानवरों और वनस्पतियों को नुकसान पहुंचाने पर सजा और जुरमाने की राशि बढ़ा दी गई थी.

वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन ऐक्ट में यह प्रावधान किया गया है कि अगर कोई व्यक्ति किसी वन्यजीव पर हमला करता है तो उसे कम से कम 3 साल और ज्यादा से ज्यादा 7 साल तक की जेल की सजा हो सकती है. कम से कम 10 हजार रुपए जुरमाना भी हो सकता है.

फिर क्राइम के नेचर को देखते हुए यह जुरमाना 25 हजार रुपए तक बढ़ाया जा सकता है. यही नहीं, कोई व्यक्ति किसी चिडिय़ाघर में भी किसी वन्यजीव को परेशान करता है या उसे नुकसान पहुंचाता है तो उसे 6 महीने की सजा और 2 हजार रुपए का जुरमाना चुकाना पड़ सकता है.

यदि कोई व्यक्ति टाइगर या हाथी रिजर्व क्षेत्र में शिकार या फिर कोई क्राइम करता है तो उसे सजा तो होगी ही, जुरमाना 2 लाख रुपए तक का हो सकता है. सब से ज्यादा जुरमाने का प्रावधान वन्यजीवों के खिलाफ इसी अपराध में है. 

यही नहीं, यदि कोई व्यक्ति वन्यजीवों के किसी भी हिस्से का उपयोग करता है तो भी उसे सजा हो सकती है. उदाहरण के लिए यदि कोई मोर के पंख का इस्तेमाल करता है तो उसे 3 साल तक की सजा का प्रावधान वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन ऐक्ट में किया गया है.

हाथी लुप्तप्राय श्रेणी में है और इसे वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत शेड्यूल प्रथम में रखा गया है. इस का शिकार करना, बंदी बना कर रखना, अंगों का व्यापार करना प्रतिबंधित है. ऐसे मामलों में 3 से 7 साल तक की सजा का प्रावधान है.