Emotional Story : बेऔलाद मांबाप का दर्द

सुरेश और वंदना बेऔलाद थे. उम्र ढल चुकी थी, सो दोनों ने एक बच्चा गोद लेने की सोची. बच्चा मिल भी गया लेकिन जब सुरेश ने बच्चे की मां की आंखों में तैरते दर्द को देखा तो उसे लगा कि उन पतिपत्नी का दर्द उस से बड़ा नहीं है. जब तक बीजी और बाबूजी जिंदा थे और सुमन की शादी नहीं हुई थी, तब तक सुरेश और वंदना को बेऔलाद होने की उदासी का अहसास इतना गहरा नहीं था. घर की रौनक उदासी के अहसास को काफी हद तक हलका किए रहती थी. लेकिन सुमन की शादी के बाद पहले बाबूजी, फिर जल्दी ही बीजी की मौत के बाद हालात एकदम से बदल गए.

घर में ऐसा सूनापन आया कि सुरेश और वंदना को बेऔलाद होने का अहसास कटार की तरह चुभने लगा. उन्हें लगता था कि ठीक समय पर कोई बच्चा गोद न ले कर उन्होंने बहुत बड़ी गलती की. लेकिन इसे गलती भी नहीं कहा जा सकता था. अपनी औलाद अपनी ही होती है, इस सोच के साथ वंदना और सुरेश आखिर तक उम्मीद का दामन थामे रहे. लेकिन उन की उम्मीद पूरी नहीं हुई. कई रिश्तेदार अपना बच्चा गोद देने को तैयार भी थे, लेकिन उन्होंने ही मना कर दिया था. उम्मीद के सहारे एकएक कर के 22 साल बीत गए. अब घर काटने को दौड़ता था. भविष्य की चिंता भी सताने लगी थी. इस मामले में सुरेश अपनी पत्नी से अधिक परेशान था. आसपड़ौस के किसी भी घर से आने वाली बच्चे की किलकारी से वह बेचैन हो उठता था. बच्चे के रोने से उसे गले लगाने की ललक जाग उठती थी.

सुबह सुरेश और वंदना अपनीअपनी नौकरी के लिए निकल जाते थे. दिन तो काम में बीत जाता था. लेकिन घर आते ही सूनापन घेर लेता था. सुरेश को पता था कि वंदना जितना जाहिर करती है, उस से कहीं ज्यादा महसूस करती है. कभीकभी वंदना के दिल का दर्द उस की जुबान पर आ भी जाता. उस वक्त वह अतीत के फैसलों की गलती मानने से परहेज भी नहीं करती थी. वह कहती, ‘‘क्या तुम्हें नहीं लगता कि अतीत में किए गए हमारे कुछ फैसले सचमुच गलत थे. सभी लोग बच्चा गोद लेने को कहते थे, हम ने ऐसा उन की बात मान कर गलती नहीं की?’’

‘‘फैसले गलत नहीं थे वंदना, समय ने उन्हें गलत बना दिया.’’ कह कर सुरेश चुप हो जाता. ऐसे में वंदना की आंखों में एक घनी उदासी उतर आती. वह कहीं दूर की सोचते हुए सुरेश के सीने पर सिर रख कर कहती, ‘‘आज तो हम दोनों साथसाथ हैं, एकदूसरे को सहारा भी दे सकते हैं और हौसला भी. मैं तो उस दिन के खयाल से डर जाती हूं, जब हम दोनों में से कोई एक नहीं होगा?’’

‘‘तब भी कुछ नहीं होगा. किसी न किसी तरह दिन बीत जाएंगे. इसलिए ज्यादा मत सोचा करो.’’ सुरेश पत्नी को समझाता, लेकिन उस की बातों में छिपी सच्चाई को जान कर खुद भी बेचैन हो उठता.

भविष्य तो फिलहाल दीवार पर लिखी इबारत की तरह एकदम साफ था. सुरेश को लगता था कि वंदना भले ही जुबान से कुछ न कहे, लेकिन वह किसी बच्चे को गोद लेना चाहती है. घर के सूनेपन और भविष्य की चिंता ने सुरेश के मन को भी भटका दिया था. उसे भी लगता था कि घर की उदासी और सूनेपन में वंदना कहीं डिप्रैशन की शिकार न हो जाए. लेकिन एक बड़ा सवाल यह भी था कि उम्र के इस पड़ाव पर किसी बच्चे को गोद लेना क्या समझदारी भरा कदम होगा? सुरेश 50 की उम्र पार कर चुका था, जबकि वंदना भी अगले साल उम्र के 50वें साल में कदम रखने जा रही थी. ऐसे में क्या वे बच्चे का पालनपोषण ठीक से कर पाएंगे? काफी सोचविचार और जद्दोजहद के बाद सुरेश ने महसूस किया कि अब ऐसी बातें सोचने का समय नहीं, निर्णय लेने का समय है.

बच्चा अब उस की और वंदना की बहुत बड़ी जरूरत है. वही उन के जीवन की नीरसता, उदासी और सूनेपन को मिटा सकता है. सुरेश ने इस बारे में वंदना से बात की तो उस की बुझी हुई आंखों में एक चमक सी आ गई. उस ने पूछा, ‘‘क्या अब भी ऐसा हो सकता है?’’

‘‘क्यों नहीं हो सकता, हम इतने बूढ़े भी नहीं हो गए हैं कि एक बच्चे को न संभाल सकें.’’ सुरेश ने कहा.

बच्चे को गोद लेने की उम्मीद में वंदना उत्साह से भर उठी. लेकिन सवाल यह था कि बच्चा कहां से गोद लिया जाए. किसी अनाथालय से बच्चा गोद लेना असान नहीं था. क्योंकि गोद लेने की शर्तें और नियम काफी सख्त थे. रिश्तेदारों से भी अब कोई उम्मीद नहीं रह गई थी. किसी अस्पताल में नाम लिखवाने से भी महीनों या वर्षों लग सकते थे. ऐसे में पैसा खर्च कर के ही बच्चा जल्दी मिल सकता था. मगर बच्चे की चाहत में वे कोई गलत और गैरकानूनी काम नहीं करना चाहते थे. जब से दोनों ने बच्चे को गोद लेने का मन बनाया था, तब से वंदना इस मामले में कुछ ज्यादा ही बेचैन दिख रही थी. शायद उस के नारी मन में सोई ममता शिद्दत से जाग उठी थी. एक दिन शाम को सुरेश घर लौटा तो पत्नी को कुछ ज्यादा ही जोश और उत्साह में पाया.

वह जोश और उत्साह इस बात का अहसास दिला रहा था कि बच्चा गोद लेने के मामले में कोई बात बन गई है. उस के पूछने की नौबत नहीं आई, क्योंकि वंदना ने खुद ही सबकुछ बता दिया. वंदना के अनुसार, वह जिस स्कूल में पढ़ाती थी, उस स्कूल के एक रिक्शाचालक जगन की बीवी को 2 महीने पहले दूसरी संतान पैदा हुई थी. उस के 2 बेटे हैं. जगन अपनी इस दूसरी संतान को रखना नहीं चाहता था. वह उसे किसी को गोद देना चाहता था.

‘‘उस के ऐसा करने की वजह?’’ सुरेश ने पूछा, तो वंदना खुश हो कर बोली, ‘‘वजह आर्थिक हो सकती है. मुझे पता चला है, जगन पक्का शराबी है. जो कमाता है, उस का ज्यादातर हिस्सा पीनेपिलाने में ही उड़ा देता है. शराब की लत की वजह से उस का परिवार गरीबी झेल रहा है. मैं ने तो यह भी सुना है कि शराब की ही वजह से जगन ने ऊंचे ब्याज पर कर्ज भी ले रखा है. कर्ज न लौटा पाने की वजह से लेनदार उसे परेशान कर रहे हैं. सुनने में आया है कि एक दिन उस का रिक्शा भी उठा ले गए थे. उन्होंने बड़ी मिन्नतों के बाद उस का रिक्शा वापस किया था. मुझे लगता है, जगन अपना यह दूसरा बच्चा किसी को गोद दे कर जिम्मेदारी से छुटकारा पाना चाहता है. इसी बहाने वह अपने सिर पर चढ़ा कर्ज भी उतार देगा.’’

‘‘इस का मतलब वह अपनी मुसीबतों से निजात पाने के लिए अपने बच्चे का सौदा करना चाहता है?’’ सुरेश ने व्यंग्य किया.

‘‘कोई भी आदमी बिना किसी स्वार्थ या मजबूरी के अपना बच्चा किसी दूसरे को क्यों देगा?’’ वंदना ने कहा तो सुरेश ने पूछा, ‘‘जगन की बीवी भी बच्चा देने के लिए तैयार है?’’

‘‘तैयार ही होगी. बिना उस के तैयार हुए जगन यह सब कैसे कर सकता है?’’

वंदना की बातें सुन कर सुरेश सोच में डूब गया. उसे सोच में डूबा देख कर वंदना बोली, ‘‘अगर तुम्हें ऐतराज न हो तो मैं जगन से बच्चे के लिए बात करूं?’’

‘‘बच्चा गोद लेने का फैसला हम दोनों का है. ऐसे में मुझे ऐतराज क्यों होगा?’’ सुरेश बोला.

‘‘मैं जानती हूं, फिर भी मैं ने एक बार तुम से पूछना जरूरी समझा.’’

2 दिनों बाद वंदना ने सुरेश से कहा, ‘‘मैं ने स्कूल के चपरासी माधोराम के जरिए जगन से बात कर ली है. वह हमें अपना बच्चा पूरी लिखापढ़ी के साथ देने को राजी है. लेकिन इस के बदले 15 हजार रुपए मांग रहा है. मेरे खयाल से यह रकम ज्यादा नहीं है?’’

‘‘नहीं, बच्चे न तो बिकाऊ होते हैं और न उन की कोई कीमत होती है.’’

‘‘मैं जगन से उस का पता ले लूंगी. हम दोनों कल एकसाथ चल कर बच्चा देख लेंगे. तुम कल बैंक से कुछ पैसे निकलवा लेना. मेरे खयाल से इस मौके को हमें हाथ से नहीं जाने देना चाहिए.’’ वंदना ने बेसब्री से कहा.

उस की बात पर सुरेश ने खामोशी से गर्दन हिला दी. अगले दिन सुरेश शाम को वापस आया तो वंदना तैयार बैठी थी. सुरेश के आते ही उस ने कहा, ‘‘मैं चाय बनाती हूं. चाय पी कर जगन के यहां चलते हैं.’’

कुछ देर में वंदना 2 प्याले चाय ला कर एक प्याला सुरेश को देते हुए बोली, ‘‘वैसे तो अभी पैसों की जरूरत नहीं लगती. फिर भी तुम ने बैंक से पैसे निकलवा लिए हैं या नहीं?’’

‘‘हां.’’ सुरेश ने चाय की चुस्की लेते हुए उत्साह में कहा.

चाय पी कर दोनों घर से निकल पड़े. आटोरिक्शा से दोनों जगन के घर जा पहुंचे. जगन का घर क्या 1 गंदी सी कोठरी थी, जो काफी गंदी बस्ती में थी. उस के घर की हालत बस्ती की हालत से भी बुरी थी. छोटे से कमरे में एक टूटीफूटी चारपाई, ईंटों के बने कच्ची फर्श पर एक स्टोव और कुछ बर्तन पड़े थे. कुल मिला कर वहां की हर चीज खामेश जुबान से गरीबी बयां कर रही थी. जगन का 5 साल का बेटा छोटे भाई के साथ कमरे के कच्चे फर्श पर बैठा प्लास्टिक के एक खिलौने से खेल रहा था, जबकि उस की कुपोषण की शिकार पत्नी तीसरे बच्चे को छाती से चिपकाए दूध पिला रही थी. इसी तीसरे बच्चे को जगन सुरेश और वंदना को देना चाहता था. जगन ने पत्नी से बच्चा दिखाने के लिए मांगा.

पत्नी ने खामोश नजरों से पहले जगन को, उस के बाद सुरेश और वंदना को देखा, फिर कांपते हाथों से बच्चे को जगन को थमा दिया. उसी समय सुरेश के मन में शूल सा चुभा. उसे लगा, वह और वंदना बच्चे के मोह में जो करने जा रहे हैं, वह गलत और अन्याय है. जगन ने बच्चा वंदना को दे दिया. बच्चा, जो एक लड़की थी सचमुच बड़ी प्यारी थी. नाकनक्श तीखे और खिला हुआ साफ रंग था. वंदना के चेहरे के भावों से लगता था कि बच्ची की सूरत ने उस की प्यासी ममता को छू लिया था. बच्ची को छाती से चिपका कर वंदना ने एक बार उसे चूमा और फिर जगन को देते हुए बोली, ‘‘अब से यह बच्ची हमारी हुई जगन. लेकिन हम इसे लिखापढ़ी के बाद ही अपने घर ले जाएंगे. कल रविवार है. परसों कचहरी खुलने पर किसी वकील के जरिए सारी लिखापढ़ी कर लेंगे. एक बात और कह दूं, बच्चे के मामले में तुम्हारी बीवी की रजामंदी बेहद जरूरी है. लिखापढ़ी के कागजात पर तुम्हारे साथसाथ उस के भी दस्तखत होंगे.’’

‘‘हम सबकुछ करने को तैयार हैं.’’ जगन ने कहा.

‘‘ठीक है, हम अभी तुम्हें कुछ पैसे दे रहे हैं, बाकी के सारे पैसे तुम्हें लिखापढ़ी के बाद बच्चा लेते समय दे दूंगी.’’

जगन ने सहमति में गर्दन हिला दी. इस के बाद वंदना ने सुरेश से जगन को 3 हजार रुपए देने के लिए कहा. वंदना के कहने पर उस ने पर्स से 3 हजार रुपए निकाल कर जगन को दे दिए. जगन को रुपए देते हुए सुरेश कनखियों से उस की पत्नी को देख रहा था. वह बच्चे को सीने से कस कर चिपकाए जगन और सुरेश को देख रही थी. सुरेश को जगन की पत्नी की आंखों में नमी और याचना दिखी, जिस से सुरेश का मन बेचैन हो उठा. जगन के घर से आते समय सुरेश पूरे रास्ते खामोश रहा. बच्चे को सीने से चिपकाए जगन की पत्नी की आंखें सुरेश के जेहन से निकल नहीं पा रही थीं, सारी रात सुरेश ठीक से सो नहीं सका. जगन की पत्नी की आंखें उस के खयालों के इर्दगिर्द चक्कर काटती रहीं और वह उलझन में फंसा रहा.

अगले दिन रविवार था. दोनों की ही छुट्टी थी. वंदना चाहती थी कि बच्चे को गोद लेने के बारे में किसी वकील से पहले ही बात कर ली जाए. इस बारे में वह सुरेश से विस्तार से बात करना चाहती थी. लेकिन नाश्ते के समय उस ने उसे उखड़ा हुआ सा महसूस किया. उस से रहा नहीं गया तो उस ने पूछा, ‘‘मैं देख रही हूं कि जगन के यहां से आने के बाद से ही तुम खामोश हो. तुम्हारे मन में जरूर कोई ऐसी बात है, जो तुम मुझ से छिपा रहे हो?’’

सुरेश ने हलके से मुसकरा कर चाय के प्याले को होंठों से लगा लिया. कहा कुछ नहीं. तब वंदना ही आगे बोली. ‘‘हम एक बहुत बड़ा फैसला लेने जा रहे हैं. इस फैसले को ले कर हम दोनों में से किसी के मन में किसी भी तरह की दुविधा या बात नहीं होनी चाहिए. मैं चाहती हूं कि अगर तुम्हारे मन में कोई बात है तो मुझ से कह दो.’’

चाय का प्याला टेबल पर रख कर सुरेश ने एक बार पत्नी को गहरी नजरों से देखा. उस के बाद आहिस्ता से बोला, ‘‘जगन के यहां हम दोनों एक साथ, एक ही मकसद से गए थे वंदना. लेकिन तुम बच्चे को देख रही थी और मैं उसे जन्म देने उस की मां को. इसलिए मेरी आंखों ने जो देखा, वह तुम नहीं देख सकीं. वरना तुम भी अपने सीने में वैसा ही दर्द महसूस करती, जैसा कि मैं कर रहा हूं.’’

वंदना की आंखों में उलझन और हैरानी उभर गई. उस ने कहा, ‘‘तुम क्या कहना चाहते हो, मैं समझी नहीं?’’

सुरेश के होठों पर एक फीकी मुसकराहट फैल गई. वह बोला, ‘‘जगन के यहां से आने के बाद मैं लगातार अपने आप से ही लड़ रहा हूं वंदना. बारबार मुझे लग रहा है कि जगन से उस का बच्चा ले कर हम एक बहुत बड़ा गुनाह करने जा रहे हैं. मैं ने तुम्हारी आंखों में औलाद के न होने का दर्द देखा है. मगर मुझे जगन की बीवी की आंखों में जो दर्द दिखा, वह शायद तुम्हारे इस दर्द से भी कहीं बड़ा था. इन दोनों दर्दों का एक ही रंग है, वजह भले ही अलगअलग हो.’’

बहुत दिनों से खिले हुए वंदना के चेहरे पर एकाएक निराशा की बदली छा गई. उस ने उदासी से कहा,‘‘लगता है, तुम ने बच्चे को गोद लेने का इरादा बदल दिया है?’’

‘‘मैं ने बच्चा गोद लेने का नहीं, जगन के बच्चे को गोद लेने का इरादा बदल दिया है.’’

‘‘क्यों?’’ वंदना ने झल्ला कर पूछा.

‘‘जगन एक तरह से अपना कर्ज उतारने के लिए बच्चा बेच रहा है. वंदना यह फैसला उस का अकेले का है. इस में उस की पत्नी की रजामंदी बिलकुल नहीं है. जब वह बच्चे को अपने सीने से अलग कर के तुम्हें दे रही थी. तब मैं ने उस की उदास आंखों में जो तड़प और दर्द देखा था, वह मेरी आत्मा को आरी की तरह काट रहा है. हमें औलाद का दर्द है. अपने इस दर्द को दूर करने के लिए हमें किसी को भी दर्द देने का हक नहीं है.’’

सुरेश की इस बात पर वंदना सोचते हुए बोली, ‘‘हम बच्चा लेने से मना भी कर दें तो क्या होगा? जगन किसी दूसरे से पैसे ले कर उसे बच्चा दे देगा. हम जैसे तमाम लोग बच्चे के लिए परेशान हैं.’’

‘‘अगर हम बच्चा नहीं लेते तो किसी दूसरे को भी जगन को बच्चा नहीं देने देंगे.’’

‘‘वह कैसे?’’ वंदना ने पूछा.

‘‘जगन अपना कर्ज उतारने के लिए बच्चा बेच रहा है. अगर हम उस का कर्ज उतार दें तो वह बच्चा क्यों बेचेगा? पैसे देने से पहले हम उस से लिखवा लेंगे कि वह अपना बच्चा किसी दूसरे को अब नहीं देगा. इस के बाद अगर वह शर्त तोड़ेगा तो हम पुलिस की मदद लेंगे. साथ ही हम बच्चा गोद लेने की कोशिश भी करते रहेंगे. मैं कोई ऐसा बच्चा गोद नहीं लेना चाहता, जिस के पीछे देने वाले की मजबूरी और जन्म देने वाली मां का दर्द और आंसू हो.’’

सुरेश ने जब अपनी बात खत्म की, तो वंदना उसे टुकरटुकर ताक रही थी.

‘‘ऐसे क्या देख रही हो?’’ सुरेश ने पूछा तो वह मुसकरा कर बोली, ‘‘देख रही हूं कि तुम कितने महान हो, मुझे तुम्हारी पत्नी होने पर गर्व है.’’

सुरेश ने उस का हाथ अपने हाथों में ले कर हलके से दबा दिया. उसे लगा कि उस की आत्मा से एक बहुत बड़ा बोझ उतर गया है.

देश की सब से उलझी मर्डर मिस्ट्री : हड्डी के स्क्रू से खुला राज

देश की सब से उलझी मर्डर मिस्ट्री : हड्डी के स्क्रू से खुला राज – भाग 4

सुजित के दोस्त सुरेश पर कसा शिकंजा

आखिर कुछ दिनों बाद एक छोटा सा सुराग टौम के हाथ लग गया. सुजित के दोस्तों के बारे में पता करते करते उन के सामने एक नाम आया सुरेश का. वह सुजित का खास दोस्त था. वह आटो चलाता था. पता चला था कि जिन दिनों शकुंतला गुम हुई थीं, उन दिनों वह शकुंतला के घर 2-3 बार दिखाई दिया था. एक बार तो रात 2 बजे वह शकुंतला के घर के पास आटो ले कर जाते हुए दिखाई दिया था और उस समय उस के आटो में कोई बड़ा सामान भी था.

टौम के लिए इतनी जानकारी पर्याप्त थी. उन्होंने तत्काल सुरेश को उठा लिया और थाने ला कर पूछताछ शुरू कर दी, “सुरेश, तुम सुजित को पहचानते थे?”

“जी, वह मेरा दोस्त था. बहुत भला आदमी था. बेचारा चला गया.” सुरेश ने जवाब में कहा.

“वह भला था या बुरा, यह मैं तय कर लूंगा. तुम सिर्फ उसी बात का जवाब दो, जो मैं पूछूं और दूसरी बात यह कि अब सुजित जीवित नहीं है, इसलिए उस के सभी गुनाहों की सजा तुझे अकेले ही भोगनी है, यह सोच कर जवाब देना. सच बोलोगे तो सजा कम हो सकती है, वरना भोगोगे.”

सुरेश को पसीना आ गया. टौम ने पूछा, “तुम शकुंतला को जानते थे?”

“नहीं. कौन शकुंतला?” सुरेश ने कहा.

इसी के साथ उस के बाएं गाल पर 2 तमाचे पड़े. तमाचे इतने जोरदार थे कि उस की आंखों के सामने सितारे नाचने लगे तो कानों में भंवरे गुनगुनाने लगे. टौम ने कहा, “अभी तो सिर्फ भंवरे ही गुनगुना रहे हैं. सच नहीं बोला तो शेर और बाघ की गर्जना सुनाई देगी. मैं उस शकुंतला की बात कर रहा हूं, तुम आटो ले कर जिस के घर के चक्कर लगा रहे थे. जिसे तुम ने और सुजित ने मिल कर मार डाला. उस के बाद सीमेंट और कंक्रीट के साथ भर कर सरोवर में फेंक दिया. याद आया… हत्यारा कहीं का.”

टौम की आवाज डराने वाली थी. सुरेश घबरा गया. उस ने कहा, “साहब, हत्या मैं ने नहीं की है. हत्या सुजित ने की है.”

टौम नीचे बैठ कर बोले, “ठीक है, जो भी है सचसच और विस्तार से बताओ.”

इस के बाद सुरेश ने जो बताया, वह इस प्रकार था.

सुजित अस्वती को धोखा दे रहा था. वह शादीशुदा था, फिर भी खुद को कुंवारा बता कर अस्वती के घर में उस के साथ रह रहा था. शकुंतला को इस बात की जानकारी हो गई थी. पर यह बात वह बेटी को बता कर उस का दिल नहीं तोडऩा चाहती थी. इसलिए उस ने सुजित को समझाया कि वह उस की बेटी के जीवन से चला जाए, पर सुजित नहीं माना.

सुरेश ने उगल दिया सारा राज

शकुंतला को लगा कि सुजित सीधे नहीं मानने वाला तो उस ने उसे धमकाया कि अगर उस ने अस्वती को नहीं छोड़ा तो वह सारी हकीकत अस्वती को बता देगी. शकुंतला की इस धमकी से सुजित घबरा गया. उस ने अस्वती को मां के खिलाफ भडक़ाना शुरू कर दिया, दूसरी ओर साथ ही साथ शकुंतला की हत्या की योजना भी बनाता रहा.

एक्सीडेंट के बाद शकुंतला को चिकन पौक्स हो गया. अस्वती बच्चों को ले कर लौज में रहने चली गई तो सुजित को शकुंतला की हत्या करने के मौका मिल गया. उस ने सुरेश से बात कर के मदद मांगी. सुरेश ने हत्या करने के अलावा दूसरी अन्य मदद का आश्वासन दिया.

इस के बाद 22 सितंबर, 2016 को दोनों बाजार से एक ड्रम, सीमेंट, कंक्रीट, रस्सी आदि खरीद कर ले आए. यह सारा सामान सुरेश शकुंतला के घर पहुंचा कर चला गया. यह सारा सामान देख कर शकुंतला ने उस से पूछा भी, पर बिना कुछ बोले ही वह चला गया था. उसी रात सुजित शकुंतला के घर गया और गला दबा कर उसे मौत के घाट उतार दिया. उस के बाद लाश को ड्रम में डाल कर ऊपर से सीमेंट और कंक्रीट भर कर पैक कर दिया. इस के बाद रात को सुरेश को फोन किया.

सुरेश आटो ले कर शकुंतला के घर आया तो ड्रम को आटो में रख कर दोनों पनंगद सरोवर पर ले गए और ड्रम को पानी के अंदर डुबो कर अपनेअपने घर चले गए.

इतनी बात बता कर सुरेश ने कहा, “साहब, इतनी भर बात है. इस के आगे मैं कुछ नहीं जानता. मैं ने हत्या करने में कोई मदद नहीं की थी.”

टौम ने कहा, “हत्या में मदद नहीं की, पर अपराध को छिपाने और लाश को ठिकाने लगाने का तो अपराध किया है.” कह कर मार्च 2023 में सुरेश को गिरफ्तार कर लिया.

इस के बाद उस का वह आटो भी जब्त कर लिया गया, जिस से उस ने लाश को ठिकाने लगाया था. सारे सबूत जुटाने के बाद सुरेश को अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

आखिर इंसपेक्टर सी.बी. टौम ने एक ऐसा केस हल कर दिया था, जिस में न मरने वाले का पता था, न कोई सबूत था, फिर भी अपराधी पकड़ा गया था. इस तरह का काम सी.बी. टौम जैसे होशियार पुलिस वाले ही कर सकते हैं.

देश की सब से उलझी मर्डर मिस्ट्री : हड्डी के स्क्रू से खुला राज – भाग 3

सुजित अच्छा आदमी नहीं था. उस ने अस्वती को धोखा दिया था. सागिर नाम की लडक़ी के साथ उस का विवाह हो गया था और उस से उसे एक बच्चा भी था, लेकिन अस्वती को उस ने यह सब नहीं बताया था. उसे बेवकूफ बना कर उस से प्यार कर लिया था और खुद को कुंवारा बता कर उस के साथ रह रहा था.

उस ने अस्वती से कहा था कि कुछ दिनों में अपने मांबाप से बात कर के वह उस से विवाह कर लेगा. तब तक वह अपनी मां के घर में उसे रहने दे. अस्वती मान गई थी. शकुंतला के न चाहते हुए भी अस्वती और सुजित घर में पतिपत्नी की तरह रहने लगे थे. सुजित सप्ताह में 3 दिन अस्वती के साथ रात में रुकता था और घर के सदस्य की तरह रहता था.

इस के बाद फिर अस्वती से पूछताछ हुई. इस बार इंसपेक्टर टौम ने थोड़ी सख्त आवाज में कहा, “अस्वती, अब हमारे पास समय कम है, इसलिए मेरा टेंपरेचर हाई हो रहा है. तुम ने पहले भी हम से बहुत कुछ छिपाया है. लेकिन इस बार सब कुछ सचसच बताओ. और हां, एक बात बता दूं. तुम्हारी मां शकुंतला का मर्डर हो गया है और उस ड्रम में जो हड्डियां मिली थीं, वे तुम्हारी मां की थीं.”

अस्वती के प्रेम प्रसंग से खुले नए राज

टौम के रुख से अस्वती को लगा कि अब अगर उस ने सही जवाब नहीं दिया तो पुलिस सख्ती कर सकती है. इसलिए उस ने कहा, “साहब, हत्या वत्या के बारे में तो मैं कुछ नहीं जानती, पर अंतिम दिनों में जो हुआ था, वह मैं बताए देती हूं. मैं अपने प्रेमी सुजित के साथ अपनी मां के घर में रहती थी. वह सप्ताह में 3 दिन मेरे साथ रहता था, उस के बाद अपने मांबाप के पास चला जाता था. मेरे बच्चों का भी वह खूब खयाल रखता था.

“उसी बीच पहली सितंबर, 2016 को मां का एक्सीडेंट हो गया तो उन्हें वीकेएम अस्पताल में भरती कराया. बाएं पैर में फ्रैक्चर होने की वजह से स्क्रू लगाना पड़ा. 15 दिनों तक उन्हें अस्पताल में रहना पड़ा. 15 सितंबर, 2016 को अस्पताल से छुट्टी होने के बाद वह घर आईं. इस के बाद हम सभी मां के घर में ही रहते रहे. 19 सितंबर, 2016 को मां को चिकन पौक्स हो गया. इस के अलावा भी अन्य इंफेक्शन थे, जिस की वजह से मैं बच्चों को ले कर एक स्थानीय लौज में रहने चली गई थी और सुजित अपने मांबाप के पास चला गया था.”

थोड़ी देर रुक कर अस्वती ने आगे कहा, “एक सप्ताह बाद 26 सितंबर, 2016 को मैं मां के घर वापस आई तो सुजित वहीं था. मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ तो मैं ने उस से पूछा. उस ने कहा कि वह अपना कुछ सामान भूल गया था, उसे लेने आया था. उस ने यह भी बताया कि वह 2 दिन पहले यहां आया था. तब मेरी मां शकुंतला किसी मिशनरी की नर्स के साथ दिल्ली चली गई हैं और वह यह कह कर गई हैं कि अब वह उसी के साथ वहीं रहेंगी.”

इतना कह कर अस्वती रुकी. उस ने इंसपेक्टर टौम की ओर देखा और एक लंबी सांस ले कर आगे कहा, “साहब, आप को लग रहा होगा कि मैं ने उस की बात पर विश्वास कैसे कर लिया? सच कहूं साहब, मेरी मां मेरे और सुजित के संबंधों को ले कर बहुत किचकिच करती थीं. इसलिए वह चली गईं, यह जान कर मैं बहुत खुश हुई. मैं ने सुजित से ज्यादा पूछताछ नहीं की और न ही पुलिस में केस किया.”

“तुम्हें पता नहीं है अस्वती कि तुम्हारी मां किचकिच क्यों करती थी?” टौम ने कहा, “क्योंकि सुजित तुम्हें धोखा दे रहा था. वह शादीशुदा था. उस की पत्नी ही नहीं, एक बच्चा भी था. वह तुम्हें छोड़ कर बाकी के दिनों में मांबाप के पास नहीं, पत्नी के पास रहता था.”

अस्वती के प्रेमी सुजित के सुसाइड से उलझी गुत्थी

इंसपेक्टर टौम के इस खुलासे से अस्वती के पैरों तले से जमीन खिसक गई. टौम ने हंसते हुए कहा, “अब मैं जो कहने जा रहा हूं अस्वती, उसे सुन कर तुम्हें बहुत बड़ा सदमा लगेगा. तुम्हारी मां की हत्या किसी और ने नहीं, सुजित ने ही की है. कुछ समय बाद मैं सारे सबूत के साथ फिर आऊंगा.”

इतना कह कर केरल के शरलौक होम्स इंसपेक्टर टौम चले गए. टौम को पूरा शक था कि सुजित ने ही शकुंतला को मारा है. पर किस तरह और क्यों मारा, यह उन की समझ में नहीं आ रहा था. इस मामले में सब से बड़ी दिक्कत यह थी कि सुजित मर चुका था. 7 जनवरी, 2018 को सीमेंट और कंक्रीट से भरे ड्रम से शकुंतला की हड्डियां, 5 सौ और सौ के नोट के साथ कुछ अन्य सामान मिला था. उस के 2 दिन बाद ही 9 जनवरी, 2018 को सुजित ने आत्महत्या कर ली थी.

जिस पर शक था, वह मर चुका था और जिस की हत्या हुई थी, उस की लाश भी नहीं मिली थी. टौम को शक था कि शायद ड्रम मिल गया था, इसलिए अपनी पोल खुल जाने के डर से सुजित ने भी मौत को गले लगा लिया था, पर टौम मामले की सच्चाई तक पहुंचना चाहते थे. इसलिए उन्होंने तय कर लिया था कि सुजित भले जीवित नहीं है, पर उस ने ही शकुंतला की हत्या की है, यह बात वह साबित कर के रहेंगे. उन्होंने फिर से पूरे तनमन से इनवैस्टीगेशन शुरू कर दी.

commissioner MP Dinesh

अस्वती 19 सितंबर, 2016 को शकुंतला को छोड़ कर लौज में रहने गई थी और 26 सितंबर को वापस आई तो मां नहीं थी. सुजित था और उसी ने बताया था कि मां दिल्ली चली गई हैं और अब वह वहीं रहेंगी. इस से टौम को लगा कि जो कुछ भी हुआ है, वह 19 सितंबर और 25 सितंबर के बीच हुआ है.

शक की सुई सुजित पर टिकी थी. इसलिए इंसपेक्टर टौम ने जांच की शुरुआत वहां से की, जहां सुजित नौकरी करता था और उस के दोस्तों से. पूछताछ का दौर चल पड़ा. सुजित के दोस्तों और पड़ोसियों के बारे में पता किया गया, साथ ही यह भी पता किया जा रहा था कि जिस ड्रम से हड्डियां मिली थीं, वह कहां से खरीदा गया था.

देश की सब से उलझी मर्डर मिस्ट्री : हड्डी के स्क्रू से खुला राज – भाग 2

यह जानकारी जुटाने के लिए टौम के नेतृत्व में 5 बड़ी टीमें बनाई गई थीं. पांचों टीमें रातदिन पता करने में लग गईं. आखिर केरल के वीकेएम अस्पताल में जिन रोगियों को ये 6 स्क्रू लगाए गए थे, उन छह के छहों रोगियों की जानकारी मिल गई.

पैर में स्क्रू लगवाने वाली मरीज शकुंतला मिली लापता

उन 6 में से 5 रोगियों का पता तो चल गया, वे पांचों सहीसलामत थे. अब छठें रोगी के घर जाना बाकी था. वह 54 साल की महिला रोगी थी, जिस का नाम था शकुंतला. उस का पता नहीं चल रहा था. पुलिस एक बार फिर अस्पताल पहुंची, जहां शकुंतला का औपरेशन हुआ था.

सारा डाटा खंगाला गया, लेकिन उस में शकुंतला के नाम के अलावा और कोई जानकारी नहीं मिली. तब पुलिस ने विजिटर्स की लिस्ट देखी. उस में एक नाम कई बार दिखाई दिया, जो शकुंतला से मिलने आती रहती थी. उस का नाम था अस्वती दामोदरन. विजिटर्स लिस्ट से उस का पता भी मिल गया.

victim-shakunthala

पुलिस को लगने लगा कि अब जल्दी ही वह कातिल और कत्ल के मोटिव तक पहुंच सकेगी. पर यह सब इतना आसान नहीं था, जितना पुलिस ने सोच लिया था. अभी रहस्य से परदा उठाने के लिए पुलिस को बहुत मेहनत करनी थी. पुलिस अस्वती के घर पहुंची.

पुलिस ने जब अस्वती से शकुंतला के बारे में पूछा तो उस ने कहा, “साहब, मुझे मेरी मां शकुंतला को देखे तो 2 साल हो गए हैं. वह गायब हैं. मुझे उन के बारे में कुछ नहीं पता.”

अस्वती की बात सुन कर पुलिस हैरान रह गई. इंसपेक्टर टौम ने कहा, “बेकार की बातें मत करो. सब कुछ विस्तार से बताओ. क्या उन का कोई एक्सीडेंट हुआ था या वह गिर गई थीं. तुम उन्हें अस्पताल ले गई थी?”

अस्वती ने थोड़ा घबरा कर कहा, “साहब, मेरी मां और मुझ में पटती नहीं थी. अपनी शादी के बाद मैं उन के साथ रहती थी. एक सितंबर, 2016 को मैं उन के साथ स्कूटी से जा रही थी तो ट्रक वाले ने टक्कर मार दी थी, जिस में उन के बाएं पैर में फ्रैक्चर हो गया था. मैं उन्हें वीकेएम अस्पताल ले गई थी. वहां उन के पैर में स्क्रू लगाया गया था.

इलाज के बाद 19 सितंबर, 2016 को उन से मिलने गई थी. लेकिन इस के बाद उन से मिलने गई तो वह नहीं मिलीं. मुझे पता चला कि वह किसी काम से दिल्ली गई हैं. उस के बाद से मेरी उन से मुलाकात नहीं हुई है.”

इंसपेक्टर टौम ने कहा, “तुम्हारी सगी मां गायब हो गई और तुम ने पुलिस में शिकायत भी नहीं की?”

“नहीं साहब, पुलिस में शिकायत नहीं की. क्योंकि हम दोनों में बिलकुल नहीं बनती थी. मुझे लगा कि हमारे झगड़ों से परेशान हो कर वह कहीं चली गई हैं. वह कहीं भी रहें, मुझ से क्या मतलब? इसलिए मैं ने शिकायत नहीं की थी.” अस्वती ने कहा.

इंसपेक्टर टौम और उन के साथी मन ही मन हंस रहे थे. क्योंकि उन्हें पता था कि अस्वती एकदम अधूरी जानकारी दे रही थी. उस के जवाब से अनेक सवाल खड़े हो रहे थे. पर पुलिस के लिए तो इस समय यह जानकारी पर्याप्त थी कि ड्रम में मिली हड्डियों में जो स्क्रू मिला था, वह शकुंतला के पैर की हड्डी में जो लगा था, वही था. इस के लिए पुलिस ने अस्वती का डीएनए टेस्ट भी कराया, जो मैच कर गया था. इस का मतलब शकुंतला मर चुकी थी. इस से यह निश्चित हो गया था कि ड्रम में मिली हड्डियां शकुंतला की ही थीं.

अब सवाल यह था कि शकुंतला को मारा किस ने? क्यों और किसलिए मारा? उस का बेटी से ऐसा क्या झगड़ा था कि मां चली जाए तो बेटी 2-2 साल तक उस के बारे में पता भी न करे? सवाल अनेक थे और जवाब शून्य थे. इन सवालों के जवाब पाने के लिए इंसपेक्टर टौम ने शकुंतला और अस्वती के बारे में जानकारी जुटानी शुरू की.

शकुंतला की बेटी से हुई पूछताछ

अस्वती की कर्म कुंडली खंगालने पर असली कहानी सामने आ गई. अस्वती सुधी नाम के एक लडक़े से प्यार करती थी, जबकि शकुंतला को उस का उस लडक़े से प्यार करना पसंद नहीं था. इसलिए अस्वती ने भाग कर सुधी से विवाह कर लिया था. पर उस का यह प्रेमविवाह ज्यादा दिनों तक नहीं टिक सका.

2 साल बाद 2016 में जनवरी महीने के आसपास अस्वती सुधी को छोड़ कर मां के साथ रहने के लिए कोच्चि आ गई. शकुंतला पति से अलग रहती थी और लौटरी के टिकट बेच कर गुजारा करती थी.

उसी दौरान अस्वती की मुलाकात टी.एम. सुजित नाम के एक व्यक्ति से हुई. सुजित ‘सोसायटी फार प्रिवेंशन औफ क्रुएल्टी टू एनिमल्स’ (एसपीसीए) नाम की संस्था में नौकरी करता था. दोनों में प्यार हो गया तो सुजित अस्वती की मां के घर में ही उस के साथ रहने लगा.

अस्वती ने पुलिस को यह बात नहीं बताई थी. यह जानकारी मिलने के बाद एक बार फिर पुलिस अस्वती से पूछताछ करने उस के घर पहुंची. अस्वती के सामने आते ही इंसपेक्टर टौम ने पूछा, “अस्वती, तुम्हारा प्रेमी सुजित कहां है? तुम ने अपने पहले विवाह के बारे में भी मुझ से कुछ नहीं बताया था.”

इंसपेक्टर टौम की ये बातें सुन कर अस्वती रो पड़ी. रोते हुए उस ने कहा, “साहब, सुजित की तो 20 दिन पहले मौत हो गई है. 9 जनवरी, 2018 को किसी कारणवश उस ने आत्महत्या कर ली और हम सभी को छोड़ कर चला गया.”

killer-sujith-barrel-case

यह जानकारी पुलिस के लिए चौंकाने वाली थी. क्योंकि 7 जनवरी, 2018 को पुलिस को पनंगद सरोवर के किनारे वह ड्रम मिला था, जिस में शकुंतला की हड्डियां थीं. इस के 2 दिन बाद जब यह समाचार अखबारों में सनसनी मचाए था तो 9 जनवरी को सुजित ने आत्महत्या कर ली थी. अब सवाल यह था कि यह इत्तफाक था या इस में कोई रहस्य था. यह घटना संदेह पैदा करने वाली थी.

अब पुलिस सुजित की कुंडली खंगालने लगी. उस की कहानी बड़ी ही पेचीदा निकली.

देश की सब से उलझी मर्डर मिस्ट्री : हड्डी के स्क्रू से खुला राज – भाग 1

यह कहानी है केरल के अर्नाकुलम जिले के कोच्चि शहर की. इस शहर से जुड़े कुंबलम में पनंगद नाम का एक सुंदर सरोवर है. एक दिन इसी सरोवर के किनारे एक ड्रम दिखाई दिया. 2-3 दिनों तक किसी ने उस ड्रम की ओर ध्यान नहीं दिया. पर इस के बाद में लोगों को लगा कि ड्रम से दुर्गंध आ रही है. इसलिए 7 जनवरी, 2018 को मछली पकडऩे वाले और कुछ दुकानदारों ने मिल कर इस बात की सूचना स्थानीय पुलिस को दी.

स्थानीय पुलिस ने आ कर उस ड्रम को देखा. ड्रम सीमेंट और कंक्रीट से पैक था. दुर्गंध का पता लगाने के लिए पुलिस ने ड्रम को  तोडऩे का आदेश दिया. पहले प्लास्टिक का ड्रम तोड़ा गया. उस के बाद छेनी और हथौड़ी से जम गई सीमेंट और कंक्रीट को तोड़ा जाने लगा. लोगों को यही लग रहा था कि इस में शायद कोई लाश हो. पर ऐसा कुछ भी नहीं निकला. उस में से मानव हड्डियों के केवल कुछ टुकड़े निकले, वे बचेखुचे और टूटेफूटे थे. इस में जबड़ों के अलावा पैर की हड्डियों के एकदो टुकड़े थे तो एकाध हाथ के तो एकदो मानव जबड़े के थे.

barrel-case-kerala

इस के साथ उस ड्रम से जो मिला था, वह हैरान करने वाला था. उस में से कपड़ों के चिथड़े, बालों का गुच्छा, रस्सी के टुकड़े और 3 करंसी नोट निकले थे. इन 3 नोटों में एक सौ का नोट था और 2 पांच सौ के. पुलिस ने ये सभी चीजें जब्त कर लीं और जांच के लिए भेज दिया.

अगले दिन यानी 8 जनवरी, 2018 को यह समाचार तमाम स्थानीय अखबारों में छपा और शहर में चर्चा का विषय बन गया. पुलिस के लिए यह केस काफी उलझा हुआ और पेचीदा था, क्योंकि न तो लाश थी और न कोई चेहरा मोहरा. यह भी पता नहीं चल रहा था कि मरने वाला स्त्री था या पुरुष?

प्राथमिक जांच में ही पुलिस को पता चल गया था कि यह केस बहुत ही रहस्यमय है. इसलिए उन्होंने इस मामले को अर्नाकुलम (साउथ) पुलिस स्टेशन में ट्रांसफर कर दिया और इस की जांच की जिम्मेदारी विशेषकर सर्कल इंसपेक्टर सी.बी. टौम को सौंप दी गई थी.

Inspector-Siby-Tom

सी.बी. टौम नाम इनवैस्टीगेशन की दुनिया में केरल का जानामाना नाम है. वह केरल में शरलौक होम्स के रूप में जाने जाते हैं और लोग उन्हें ‘टौम्स’ कहते भी हैं. जब उन के पास जांच के लिए यह मामला आया तो वह भी रोमांचित हो उठे और इस मामले की इनवैस्टीगेशन में लग गए. उन के साथ उन्हीं की तरह एक अन्य होशियार इनवैस्टीगेशन और मैडिकल अफसर हैं, जिस का नाम है डा. एन.के. उन्मेश.

मानव शरीर की उन हड्डियों का पोस्टमार्टम हुआ. इस के अलावा अन्य जांचें भी हुईं. केवल हड्डियों के कुछ टुकड़ों से हत्यारे तक पहुंच पाना आसान नहीं था. हकीकत में यह इनवैस्टीगेशन काफी मुश्किल थी. 3 दिनों की जांच के बाद इंसपेक्टर सी.बी. टौम, उन के साथी डा. एन.के. उन्मेश और पुलिस के अन्य अधिकारियों ने एक मीटिंग की.

कंकाल में पाए गए स्क्रू से शुरू हुई जांच

इस मीटिंग में सी.बी. टौम ने कहा, “यह केस बहुत ही पेचीदा है. इस में अनेक लेयर निकलेंगी. मरने वाले की पहचान तो दूर की बात रही, अभी तो यह भी पता नहीं है कि मरने वाला पुरुष है या स्त्री. हां, इस में से एक बाल का गुच्छा जरूर मिला है.”

“पर बाल की लंबाई से यह साबित नहीं किया जा सकता कि मरने वाला पुरुष था या स्त्री.” मीटिंग में बैठे एक अन्य पुलिस अधिकारी ने कहा.

“आप का कहना अपनी जगह सही है.” टौम ने कहा, “वह बाल 50 सेंटीमीटर लंबे हैं. जनरली महिलाओं के ही बाल लंबे होते हैं. पर आजकल तो लडक़े भी इस तरह बाल रखते हैं. इसलिए निश्चित रूप से कुछ भी कहना मुश्किल है,” टौम ने कहा.

“अभी तो यह भी पता नहीं है कि हत्या कब हुई थी?”

“अभी हड्डियों की पूरी तरह जांच नहीं हो पाई है. पर मेरा अनुभव जो कहता है, उस के अनुसार यह मर्डर 8 नवंबर, 2016 के पहले हुआ होगा.” डा. एन.के. उन्मेश ने कहा.

“आप अपने अनुभव से ऐसा कैसे कह सकते हैं?” एक पुलिस अधिकारी ने हैरानी से पूछा.

तब सी.बी. टौम ने शरलौक होम्स की अदा में जवाब दिया, “सर, ड्रम से 3 करंसी नोट मिले हैं, जिन में 2 पांच सौ के हैं और एक सौ का है. हम जानते हैं कि भारत में 8 नवंबर, 2016 की रात से नोटबंदी लागू हुई थी, जिस में पांच सौ के नोट बंद हो गए थे. मरने वाले के पास ये नोट थे, जो ड्रम में मिले हैं. इसलिए हत्या 8 नवंबर के पहले ही की गई होगी.”

टौम की बात सभी को सही लगी. पर 2 साल पहले गायब हुए व्यक्ति की तलाश करना पुलिस को मुश्किल लग रहा था. क्योंकि यह भी पता नहीं था कि गायब होने वाला स्त्री है या पुरुष? यह भी पता नहीं था कि वह गायब कहां से हुआ था? गायब होने वाले की उम्र कितनी थी और वह गायब कब हुआ था?

3 दिन बीत गए थे. 11 जनवरी, 2018 को डा. एन.के. उन्मेश हड्डियों की जांच कर रहे थे, तभी उन्हें हड्डियों के टुकड़ों से एक ‘स्क्रू’ और एक ‘वाशर’ मिला. वह स्क्रू 6.6 सेंटीमीटर लंबा और 2.5 सेंटीमीटर चौड़ा था. जिस हड्डी के टुकड़े से वह मिला था, वह हड्डी का टुकड़ा मरने वाले के बाएं पैर की एड़ी के हिस्से का था और स्क्रू उसी में लगा था.

शायद वह स्क्रू काफी समय पहले लगाया गया था, इसलिए कंपनी वगैरह का नाम आसानी से पढऩे में नहीं आ रहा था. डा. एन.के. उन्मेश ने तुरंत इस बात की जानकारी इंसपेक्टर टौम को देते हुए कहा, “मुझे हड्डियों से एक स्क्रू मिला है. यह बहुत बड़ा सुराग बन सकता था, पर अफसोस की बात यह है कि इस पर कंपनी वगैरह का नाम काफी धुंधला हो गया है, जो पढऩे में नहीं आ रहा है.”

यह सुन कर इंसपेक्टर टौम उछल पड़े, “समझ लीजिए भाई, सुराग मिल गया. तुम जल्दी से वह स्क्रू ले कर यहां आ जाओ.”

थोड़ी देर में डा. उन्मेश उन के पास पहुंच गए. इस के बाद इंसपेक्टर टौम ने अपने हाई रेजुलेशन कैमरे से स्क्रू की फोटोग्राफी शुरू कर दी. कई घंटे की मेहनत के बाद उन्हें एक छोटा सा, पर महत्त्वपूर्ण सुराग उन के हाथ लग गया. उस स्क्रू के टौप पर धुंधला हो चुका कंपनी का नाम पढऩे में आ गया.

जिन मरीजों के स्क्रू लगाए, उन की की गई जांच

वह नाम था PITKAR. टौम ने तुरंत इस नाम को कंप्यूटर पर सर्च किया. पता चला कि यह पुणे की एक कंपनी है, जो पूरे देश में इस तरह के स्क्रू की सप्लाई करती है. इस स्क्रू का उपयोग सर्जरी में किया जाता है.

अब यह पता करना था कि इस तरह के स्क्रू का उपयोग अर्नाकुलम जिले में किसकिस अस्पताल में होता है? इस स्क्रू का उपयोग किस रोगी के लिए किया गया था? लेकिन इन दोनों सवालों का जवाब तलाशना किसी चुनौती से कम नहीं था. एक पूरा जिला, उस में अनेक इलाके और कस्बे और उन में हजारों अस्पताल. उन में लाखों रोगियों में किसी एक रोगी पर इस तरह की सर्जरी हुई होगी. इतना सब पता करना था, उस में भी निश्चित समय का पता नहीं था.

टौम ने कहा, “टास्क बड़ा है तो हम भी कम नहीं हैं. हम अलगअलग टीमें बना कर 2016 से पता लगाने की शुरुआत करते हैं कि उस साल इस कंपनी ने किसकिस अस्पताल में यह स्क्रू भेजे गए थे.”

screw-se-khula-raaj

इस के बाद कंपनी से संपर्क किया गया. कंपनी ने बिक्री के आधार पर जानकारी दी कि साल 2016 में कुल 161 स्क्रू सप्लाई किए गए थे, जिस में 155 तो गुजरात और महाराष्ट्र में भेजे गए थे और 6 केरल में सप्लाई किए गए थे. इस के बाद यह पता किया गया कि केरल में कहां और किस रोगी को यह स्क्रू लगाया गया था.