मध्य प्रदेश के जिला भिंड के गांव सिंहपुरा के रहने वाले सीधेसादे पंचम सिंह लड़ाईझगड़े से दूर रहकर शांतिपूर्वक जीवन गुजार रहे थे. उन्हें अपने परिवार की खुशियों से मतलब था, जिस में उन के मातापिता, एक भाई और एक बहन के अलावा पत्नी थी. शादी के कई साल बीत जाने के बाद भी वह पिता नहीं बन पाए थे.
कदकाठी से मजबूत पंचम सिंह निहायत ही शरीफ और मेहनती आदमी थे. अपनी खेतीबाड़ी में जीतोड़ मेहनत कर के वह अपने परिवार को हर तरह से सुखी रखने की कोशिश कर रहे थे. अब तक उन की उम्र लगभग 35 साल हो चुकी थी.
लेकिन एक बार हुए झगड़े में पंचम सिंह की ऐसी जबरदस्त पिटाई हुई कि उन के बचने की उम्मीद नहीं रह गई. इस के बावजूद पुलिस ने पिटाई करने वालों के बजाय बलवा करने के आरोप में उन्हें ही जेल भेज दिया. प्रताडि़त किया अलग से. यह सन 1958 की बात है.
दरअसल, गांव में पंचायत के चुनाव हो रहे थे. प्रचार अभियान जोरों पर था. पंचम की साफसुथरी छवि थी, जिस से गांव के ज्यादातर लोग उन्हें पसंद करते थे. इसलिए दबंग किस्म के लोगों की एक पार्टी ने चाहा कि वह उन के लिए प्रचार करें.
वे लोग गरीबों पर जुल्म किया करते थे, जो पंचम सिंह को पसंद नहीं था. लेकिन चाह कर भी वह इस बारे में कुछ नहीं कर सकते थे. उन्हें राजनीति में भी कोई विशेष रुचि नहीं थी, इसलिए उन्होंने उन का प्रचार करने से साफ मना कर दिया. तब उन्होंने उन्हें धमकाया.
इस का परिणाम यह निकला कि वह उस प्रत्याशी के प्रचार में जुट गए, जो उन दबंगों के विरोध में खड़ा था. पंचम की निगाह में उस का जीतना गांव वालों के लिए अच्छा था. इस का असर यह हुआ कि उन दबंगों ने उन्हें अकेले में घेर कर इस तरह पीटा कि उन के पिता उन्हें बैलगाड़ी से अस्पताल ले गए, जहां 20 दिनों तक उन का इलाज चला.