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इंसान की ख्वाहिशें आसमान को छूती हों तो उसे अपनी प्रगति बहुत छोटी नजर आती है. दीपक के साथ भी ऐसा ही था. वह अपने काम से संतुष्ट नहीं था. उस के पास अपनी एक सैकेंड हैंड कार थी. इसी दौरान उस की दोस्ती संदीप से हो गई. संदीप मूलरूप से मेरठ जनपद के कस्बा लावड़ का रहने वाला था और गाजियाबाद में किराए पर रहता था. वह एक इंस्टीट्यूट में बच्चों को कोङ्क्षचग देता था. वह भी अमीर बनने के सपने देखता था.

2 इंसानों की सोच यदि समान हों तो उन के ताल्लुकात गहरे होते देर नहीं लगती. दीपक व संदीप की दोस्ती भी वक्त के साथ गहरा गई. दोनों जब भी साथ बैठते, अपनी महत्त्वाकांक्षाओं की बात करते. दीपक अपनी प्लेसमेंट एजेंसी खोलना चाहता था. जबकि संदीप की ख्वाहिश थी कि उस का अपना कोङ्क्षचग सैंटर हो. इन कामों के लिए मोटी रकम चाहिए थी, लेकिन दोनों में से किसी के पास पैसा नहीं था. कमउम्र में ही वे बड़ी महत्वाकांक्षाओं के शिकार थे.

एक दिन दोनों साथ बैठे तो दीपक बोला, “कभी हमारे भी सुनहरे दिन आएंगे क्या?”

“इतना सीरियस क्यों है भाई, यह तो इंसान के अपने हाथ में है.” संदीप ने शांत लहजे में कहा तो दीपक मन मसोसते हुए बोला, “अपने हाथ में होता तो कब का बड़ा आदमी बन जाता. कभीकभी मन करता है कि कोई बड़ा हाथ मार कर एक ही झटके में जिंदगी संवार दूं.”

“अब की है तूने काम की बात. सोचता तो मैं भी यही हूं. तू कहे तो कुछ ऐसा करें, जिस से सारे संकट जड़ से मिट जाएं.”

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