आज से कुछ वर्ष पहले 15 नवंबर, 2009 को जब राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की एक अदालत ने एक शिक्षक को 1 लाख रुपए मुआवजे की सजा से दंडित किया था, जिस ने फैसले से ठीक 12 वर्ष पहले अपने छात्र को पूरे दिन निर्वस्त्र खड़ा रखा था, तब एक उम्मीद बंधी थी कि सम्माननीय शिक्षक समाज के वे सदस्य जो परिस्थितिवश अपने आचरण के विपरीत कदम उठा लेते हैं, कोई सबक लेंगे. उस समय अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश प्रतिभा रानी ने अपने फैसले में उक्त शिक्षक को निर्देश दिया था कि वह बतौर मुआवजा 1 लाख रुपए पीडि़त छात्र को अदा करे.
मार्च, 1997 को दिल्ली के एक राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय के शिक्षक पी सी गुप्ता ने उस 13 वर्षीय छात्र को विद्यालय के तालाब में नहाते हुए पकड़ लिया. वे इतने नाराज हुए कि उन्होंने पहले उसे जम कर पीटा, फिर पूरे समय तक विद्यालय में निर्वस्त्र खड़ा रखा. अभिभावकों ने उन के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, मुकदमा चला और 19 मार्च, 2007 को निचली अदालत ने गुप्ता को 1 वर्ष की कैद और ढाई हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई. गुप्ता ने निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी.
उन की उसी अपील के आलोक में अदालत ने यह फैसला दिया. लेकिन हालात सुधरने के बजाय लगातार बिगड़ते चले गए. न जाने हमारे देश के शिक्षकशिक्षिकाओं को आखिर क्या होता जा रहा है कि वे आएदिन अपनी करतूतों से अभिभावकों का विश्वास तारतार कर रहे हैं. कहीं छात्रछात्राओं की पिटाई हो रही है, तो कहीं यौन उत्पीड़न या उस का प्रयास.