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2 जून, 2010 में अभय कुरुंदकर की बदली स्थानीय आर्थिक अपराध शाखा में पीआई के पद पर कर दी गई. यहीं पर अभय कुरुंदकर की मुलाकात एपीआई अश्विनी बेंद्रे से हुई और वह उस का पहली ही नजर में उस का दीवाना हो गया. कुछ ही दिनों में उसे अश्विनी बेंद्रे की कमजोरी पता लग गई.

वह उन दिनों जिस वियोग की ज्वाला में जल रही थी, उस पर अभय कुरुंदकर ने धीरेधीरे मरहम लगाना शुरू किया. उस का मरहम काम कर गया. दोनों को जब मालूम हुआ कि वह एक ही जिले के रहने वाले हैं तो नजदीकियां और बढ़ गईं. धीरेधीरे उन के बीच गहरी दोस्ती हो गई थी.

भ्रष्ट अफसर की सोच हमेशा गलत ही चलती है

उन दिनों अश्विनी बेंद्रे सांगली से रोजाना अपनी ड्यूटी के लिए अपडाउन किया करती थी, जिस के कारण उन्हें काफी परेशानी होती थी. अभय कुरुंदकर ने सहानुभूति दिखाते हुए क्राइम ब्रांच औफिस के करीब ही यशवंतनगर में अपनी पहचान के एक राजनैतिक कार्यकर्ता की मदद से अश्विनी बेंद्रे को एक मकान किराए पर दिलवा दिया और खुद भी पास के विश्राम बाग में रहने लगा. कुरुंदकर को सरकारी गाड़ी मिली हुई थी, लेकिन वह सरकारी गाड़ी का उपयोग न कर के अपनी खुद की कार से औफिस आताजाता था. वह अश्विनी को भी अपने साथ कार में बिठा कर औफिस ले आता था.

अपने से 14 साल छोटी अश्विनी बेंद्रे को 55 वर्षीय पीआई अभय कुरुंदकर ने बड़ी ही चतुराई से अपने प्रेमजाल में उलझा लिया था. शादी का वादा कर वह उस की भावनाओं से खेलने लगा. जबकि वह स्वयं एक शादीशुदा और 2 बेटोंबेटियों का पिता था. उधर अश्विनी बेंद्रे एक बच्ची की मां होते हुए भी परकटे परिंदे की तरह पीआई अभय कुरुंदकर की बांहों में गिर गई.

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