प्रदीप जिस शिप में काम करता था, वह काफी बड़ा था. वह वहां जो काम कर रहा था, उस में उसे मजा आ रहा था. फोन पर घर वालों से बात होती रहती थी. लेकिन 10 अप्रैल, 2014 को प्रदीप ने हरिदत्त को बताया कि अब उस से लेबर का काम कराया जाने लगा है. काम न करने पर उस की पिटाई की जाती है. उस का पासपोर्ट और अन्य कागजात भी ले लिए गए हैं. इसलिए वह चाह कर भी नहीं आ सकता.
हरिदत्त ने यह बात अंबुज कुमार को बताई तो उस ने कहा कि यह एक तरह की ट्रेनिंग है. यह ट्रेनिंग पूरी होते ही वह ऐश की जिंदगी जिएगा. इस के बाद हरिदत्त ने प्रदीप से बात करने की बहुत कोशिश की, लेकिन उन की बात नहीं हो सकी. जिस फोन से वह प्रदीप से बात करते थे, वह बंद हो गया था. तब उन्होंने आईपीएसआर मेरिटाइम के औफिस फोन कर के प्रदीप से बात कराने की गुजारिश की.
6 मई, 2014 को हरिदत्त से प्रदीप की बात कराई गई. लेकिन प्रदीप की आवाज ऐसी थी कि वह जो कह रहा था, हरिदत्त की समझ में नहीं आ रहा था. तब दूसरी ओर से किसी ने कहा, ‘‘अंकल, प्रदीप की तबीयत खराब है इसलिए वह ठीक से बात नहीं कर पा रहा है. मुझे उस की देखभाल के लिए लगाया गया है.’’
‘‘क्या हुआ उसे?’’ हरिदत्त शर्मा ने पूछा.
‘‘इस का गला खराब है. आप चिंता न करें, इसे छुट्टी पर भेजा जा रहा है.’’ दूसरी ओर से कह कर फोन काट दिया गया.
बेटे की तबीयत खराब होने की बात सुन कर हरिदत्त शर्मा घबरा गए. उन्होंने उसी समय आईपीएसआर मेरिटाइम के औफिस फोन किया तो उन का फोन नहीं उठाया गया. 7 मई को वह इंस्टीट्यूट गए तो वहां डा. अकरम खान मिला. उस ने पूरी बात उसे बताई तो उस ने विकास को फोन किया तो उस ने कहा, ‘‘मैं इस समय दुबई में हूं. 2-4 दिनों बाद वहां जाऊंगा तो प्रदीप के बारे में बताऊंगा, क्योंकि वह जिस जहाज पर है, उस का नंबर मेरे पास नहीं है.’’
इस के बाद अकरम ने कहा, ‘‘शर्माजी, आप बेटे की चिंता न करें, वहां विकास सर हैं. आप बुराड़ी से यहां आने के बजाय हमारे इंद्रलोक के औफिस जा कर प्रदीप के बारे में पता कर सकते हैं.’’
9 मई, 2014 को किसी ने हरिदत्त को फोन कर के बताया कि प्रदीप ठीक हो गया है. उसे अस्पताल से छुट्टी मिल गई है. वह जल्दी ही शिप जौइन कर लेगा. 11 मई को हरिदत्त शर्मा की प्रदीप के दोस्त से बात हुई तो उस ने बताया कि प्रदीप मैडिकली अनफिट है. इसलिए उसे शिप जौइन नहीं कराया जा रहा है. उसे दोबारा ट्रीटमेंट के लिए अस्पताल ले जाया गया है.
यह सुन कर हरिदत्त शर्मा परेशान हो उठे. बेटे की चिंता में वह कई दिनों से अपनी ड्यूटी पर नहीं गए. उन के पास विकास का फोन नंबर था. उन्होंने विकास को फोन किया, लेकिन विकास ने फोन नहीं उठाया.
हरिदत्त ने आईपीएसआर मेरिटाइम के औफिस फोन किया तो वहां से उन्हें सिर्फ तसल्ली मिली. कुछ देर बाद हरिदत्त शर्मा के मोबाइल पर एक मैसेज आया, जिसे विकास ने भेजा था. उस ने एक नंबर भेज कर उस पर अगले दिन फोन करने को कहा.
12 मई को सुबह 8-9 बजे के बीच उन्होंने उस नंबर पर कई बार फोन किया लेकिन फोन किसी ने नहीं उठाया. तब वह आईपीएसआर मेरिटाइम के इंद्रलोक औफिस पहुंचे. वहां रेखा मिली. रेखा के पास गौतम बैठा था.
रेखा ने गौतम से बात की तो उस ने विकास को फोन कर के प्रदीप शर्मा के बारे में पूछा. तब विकास ने बताया कि प्रदीप की तबीयत ठीक नहीं है, वह अस्पताल में भरती है. उसी समय विकास ने गौतम के मोबाइल पर प्रदीप का एक फोटो भेजा, वह फोटो देख कर हरिदत्त शर्मा को लग रहा था कि वह किसी अस्पताल के बेड पर चादर ओढ़े लेटा है.
विकास से बात करने के बाद गौतम ने कहा, ‘‘विकास सर कह रहे हैं कि प्रदीप इस समय ईरान में है. अगर पासपोर्ट हो तो एक आदमी देखरेख के लिए उस के पास जा सकता है.’’
हरिदत्त के पास पासपोर्ट नहीं था. वह अपने ऐसे किसी रिश्तेदार के बारे में सोचने लगे, जिस के पास पासपोर्ट हो. उन का एक भांजा था भरत, जो भारतीय सेना में था. वह उस समय छुट्टियों पर आया हुआ था. उन्होंने भरत को फोन कर के प्रदीप के बारे में बता कर ईरान जाने को कहा तो उस ने कहा, ‘‘मामाजी, मेरा पर्सनली पासपोर्ट नहीं है. जब कभी हमारा टूर बाहर जाता है तो सेना की ओर से एक निश्चित अवधि के लिए पासपोर्ट बनवा दिया जाता है.’’
जब कोई नहीं मिला तो हरिदत्त शर्मा खुद ही जाने के बारे में सोचने लगे. उन्हें किसी ने बताया था कि ज्यादा फीस दे कर अर्जेंट पासपोर्ट भी बनवाया जा सकता है. उन्होंने गौतम से कहा, ‘‘मैं अर्जेंट सर्विस से अपना पासपोर्ट बनवा कर खुद ही बेटे के पास जाऊंगा.’’
इतना कह कर हरिदत्त शर्मा घर के लिए चल पड़े. वह कुछ ही दूर पहुंचे थे कि दोपहर ढाई बजे के करीब उन के फोन पर इंस्टीट्यूट से फोन आया. उन्होंने फोन रिसीव किया तो गौतम ने उन्हें जो खबर दी, उस से उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उस ने कहा था कि प्रदीप की मौत हो चुकी है, इसलिए वह पासपोर्ट न बनवाएं.
हरिदत्त शर्मा रोते हुए घर पहुंचे तो वहां कोहराम मच गया. प्रदीप की मां राधा तो बेहोश हो गईं. बेटे की मौत से शर्मा परिवार पूरी तरह बरबाद हो गया था. प्रदीप के कजिन प्रभात ने गौतम को फोन कर के पूछा कि ईरान में ट्रक एक्सीडेंट में जिन 10 भारतीयों की मौत हुई है, उन में प्रदीप भी था क्या?
तब गौतम ने कहा, ‘‘प्रदीप की मौत एक्सीडेंट से नहीं, टीबी से हुई है. उस की मौत 10 मई को हुई थी.”
यह जान कर हरिदत्त हैरान रह गए कि जब प्रदीप की 2 दिन पहले मौत हो गई थी तो यह बात छिपाई क्यों गई. टीबी से मौत होने की बात भी उन के गले नहीं उतर रही थी, क्योंकि इंडिया से जाने से पहले इंस्टीट्यूट ने प्रदीप का मैडिकल चैकअप कराया था. जिस कंपनी में उस की नौकरी लगी थी, उस ने भी उस का मैडिकल परीक्षण कराया था.
प्रभात परिवार के कुछ लोगों के साथ ईरान की एंबेसी गए. और प्रदीप के पासपोर्ट की डिटेल दे कर प्रदीप के बारे में बताने को कहा. एंबेसी से पता चला कि इस पासपोर्ट नंबर का प्रदीप शर्मा ईरान में नहीं है. इस का मतलब इंस्टीट्यूट वाले झूठ बोल रहे थे. सभी लोग दिल्ली पुलिस मुख्यालय पहुंचे. उस समय रात के करीब 8 बज चुके थे. मुख्यालय में कोई पुलिस अधिकारी नहीं मिला तो उन्होंने 100 नंबर पर फोन कर के कहा कि उन का बच्चा मिसिंग है, उस की कोई जानकारी नहीं मिल रही है.
पीसीआर की गाड़ी पुलिस मुख्यालय के बाहर खड़े हरिदत्त के पास पहुंची तो उन्होंने पीसीआर से पूरी कहानी सुनाई. हरिदत्त शर्मा थाना बुराड़ी के अंतर्गत रहते थे, इसलिए पुलिस वालों ने उन्हें थाना बुराड़ी जाने की सलाह दे कर इस बात की सूचना थाना बुराड़ी पुलिस को वायरलैस द्वारा दे दी.
इस मामले की काररवाई की जिम्मेदारी थाना बुराड़ी के सबइंसपेक्टर विश्वनाथ झा को सौंपी गई. लेकिन जब हरिदत्त ने थाना बुराड़ी पुलिस को पूरी बात बताई तो उन से कहा गया कि जिस इंस्टीट्यूट ने प्रदीप शर्मा को विदेश भेजा है, वह दक्षिणी दिल्ली के थाना महरौली क्षेत्र में है, इसलिए उन्हें अपनी शिकायत के लिए थाना महरौली जाना होगा. अब तक रात काफी हो चुकी थी, इसलिए सभी घर चले गए.