इराक में जो हिंसा फैली थी, उस से टिकरित के उस विशाल अस्पताल के मरीज अस्पताल छोड़ कर जाने लगे थे. सोना, वीना और उस की अन्य साथी नर्सें टेलीविजन और मोबाइल फोन पर इंटरनेट के माध्यम से समाचार देख कर जानकारी प्राप्त करने के साथ समय काट रही थीं.
लेकिन जल्दी ही टेलीविजन भी बंद हो गया और इंटरनेट भी. अब वे बाहर की दुनिया से पूरी तरह कट गईं. उन्हें बिलकुल भी पता नहीं चलता था कि बाहर क्या हो रहा है. वे बस उतना ही जानती थीं, जो उन की खिड़कियों से दिखाई देता था.
सोना और उस की साथी नर्सें बाहर की दुनिया से पूरी तरह कटी थीं, इसलिए उन्हें असलियत का पता नहीं था. वे सिर्फ यही जानती थीं कि केवल टिकरित में ही स्थानीय 2 गुटों के बीच लड़ाई चल रही है. लेकिन जब बारबार तेज धमाकों से अस्पताल की बिल्डिंग थर्राने लगी तो उन्हें लगा कि यहां तो युद्ध हो रहा है. यह संदेह होते ही सभी नर्सें कांप उठीं. उन्हें सामने मौत नाचती नजर आने लगी. अपने बचाव का उन के पास कोई रास्ता नहीं था, इसलिए वे एकदूसरे के गले लग कर रोने लगीं. कोई आश्वासन देने वाला नहीं था, इसलिए खुद ही चुप भी हो गईं.
धमाके लगातार हो रहे थे. डरीसहमी नर्सें किसी तरह एकएक पल काट रही थीं. उन के पास खानेपीने का सामान भी कुछ ही दिनों का बचा था. तभी स्वास्थ्य विभाग के एक रहमदिल अधिकारी मदद के लिए आ गए. अगर उन्होंने साहस न दिखाया होता तो इन नर्सों को भूखी रहना पड़ता. उस अधिकारी ने अपनी ओर से सभी नर्सों के लिए अगले 2 सप्ताह के भोजन की व्यवस्था कर दी थी.
वह अधिकारी अस्पताल के नजदीक ही रहते थे. इसलिए नर्सें उन के मोबाइल पर जैसे ही मिस काल करतीं, वह तुरंत उन की मदद के लिए आ जाते थे. लेकिन जून के अंत में उन्होंने कहा कि अब वह उन की मदद नहीं कर पाएंगे. क्योंकि आईएसआईएस लड़ाके आगे बढ़ते आ रहे हैं, जो जल्दी ही इस अस्पताल पर भी कब्जा कर लेंगे. इसलिए वह यहां से जा रहे हैं. उस समय तक अस्पताल की सुरक्षा के लिए 2 फौजी तैनात थे. लेकिन उस अधिकारी के जाते ही, वे भी गायब हो गए थे.
सचमुच अगले दिन लड़ाके अस्पताल पहुंच गए. वे काले कपड़े पहने हुए थे. आंखों पर काला चश्मा लगाए वे अपने चेहरे को काले दुपट्टे से ढांपे हुए थे. उन्हें देख कर नर्सें बुरी तरह से डर गईं. वे लड़ाके बुरी तरह से जख्मी अपने साथियों को ले कर आए थे. लड़ाकों ने नर्सों से उन की मरहमपट्टी कराने के बाद अगले दिन यानी 30 जून की शाम तक अस्पताल को खाली करने के लिए कहा.
लड़ाकों के जाने के बाद नर्सों ने एक बार फिर राजदूत अजय कुमार और केरल के मुख्यमंत्री ओमन चांडी को फोन किया. दोनों ने ही नर्सों को सलाह दी कि लड़ाके जैसा कहते हैं, वे वैसा ही करें. क्योंकि उन की बात न मानना उन के लिए प्राणघातक सिद्ध हो सकता है. संयोग से उस शाम लड़ाके नहीं आए. इसीलिए उस दिन संकट टल गया.
इस के अगले दिन केरल सरकार के आप्रवासी केरलवासी मामलों के विभाग से नर्सों को फोन कर के उन्हें वहां से निकालने के लिए उन के पासपोर्ट के नंबर तथा अन्य जानकारी ली गई.
2 जुलाई को अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में ऐसा धमाका हुआ कि ब्लड बैंक सहित वह पूरा हिस्सा ढह गया. इसी के साथ पूरा अस्पताल हिल उठा. इस धमाके से नर्सें थरथर कांपने लगीं. चारों ओर उसी तरह के धमाके हो रहे थे. अस्पताल के पास ही कई इमारतें जल रही थीं. चारों ओर आग की लपटें, जली कारें और ट्रक दिखाई दे रहे थे.
उस दिन भी कुछ लड़ाके आए और सभी नर्सों से कहा कि वे अपना सामान बांध कर तैयार हो जाएं, शाम को उन्हें उन के साथ चलना है. इतना कह कर लड़ाके चले गए. उन के जाते ही नर्सों ने एक बार फिर राजदूत अजय कुमार और मुख्यमंत्री ओमन चांडी को फोन किया. दोनों ने सभी नर्सों को आश्वासन देने के साथ शांति से रहने को कहा और बताया कि भारत सरकार उन्हें हरसंभव वहां से किसी भी तरह निकालने की कोशिश में लगी है. मुख्यमंत्री ओमन चांडी ने उन से यह भी कहा कि वह लगातार भारत सरकार की विदेशमंत्री सुषमा स्वराज के संपर्क में हैं.
संयोग से उस शाम भी लड़ाके नहीं आए, जिस से नर्सों ने थोड़ी राहत महसूस की. लेकिन अगले ही दिन वे दोपहर के आसपास फिर आ धमके. उन्होंने सभी नर्सों को 15 मिनट में अस्पताल से बाहर आने को कहा. उन का कहना था कि वे इस अस्पताल को अभी बम से उड़ाएंगे और उन्हें अपने साथ मोसुल ले जाएंगे.
नर्सों ने तुरंत भारतीय दूतावास को फोन किया. दूतावास के अधिकारी ने उन से कहा कि वे लड़ाकों से छोड़ देने की विनती करें. अगर वे मान जाते हैं तो कोई बात नहीं. अगर नहीं मानते हैं तो वे जैसा कहते हैं, सभी लोग वैसा ही करो. इसी के साथ उस अधिकारी ने यह भी कहा कि अगर स्थिति ज्यादा बिगड़ती है तो सरकार उन्हें बचाने के लिए कमांडो का उपयोग भी कर सकती हैं.
उन नर्सों को ले जाने के लिए इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस) के 4 लड़ाके आए थे. वे काले कपड़े पहने थे और चेहरे पर काला दुपट्टा बांधे थे. आंखों पर काला चश्मा भी लगाए थे. सभी के कंधों पर एसाल्ट राइफलें लटक रही थीं. उन के आदेश का पालन करते हुए नर्सें अपना सामान समेट रही थीं कि तभी उन लड़ाकों में से एक ने मुड़ कर अपनी एसाल्ट राइफल की नाल अस्पताल की ऊपरी मंजिल की ओर कर के तड़ातड़ गोलियां चला दीं.
उसी मंजिल पर बने कमरों में सोना, वीना और उस की साथी नर्सें रहती थीं. जब से बम धमाके हो रहे थे और गोलियां चल रही थीं, ये नर्सें यहीं पर शरण लिए हुए थीं. लेकिन उस युवा लड़ाके ने जो गोलियां चलाई थीं. उस से उस मंजिल पर लगे शीशे टूटने लगे. उन शीशों के टुकड़े कुछ नर्सों के ऊपर गिरे, जिस से वे बुरी तरह से जख्मी हो कर खून से लथपथ हो गईं. बाकी नर्सें चीखतीचिल्लाती उन घायल नर्सों की ओर दौड़ीं.
लड़ाकों ने सभी नर्सों को बाहर खड़ी बस में चढ़ने को कहा. नर्सें जल्दीजल्दी बस में सवार होने लगीं. नर्सें बस में सवार हो रही थीं, तभी उस विशाल अस्पताल में एक जोरदार धमाका हुआ. उस से उठा काला धुआं चारों ओर फैलने लगा. धुएं के बाद ऊंचीऊंची उठती आग की लपटें दिखाई दीं. अस्पताल से बाहर निकलते समय नर्सों ने देखा कि पिछले दिन हुए धमाके से गिरी दीवारों पर खून लगा था. चारों ओर मांस के लोथडे़ बिखरे थे.