पुलिस ने मुन्ना को दिल दहला देने वाली यातनाएं दे कर जुर्म कबूल करवा लिया कि उस के सोनू व उस की 10 वर्षीय बेटी दिव्या से नाजायज संबंध थे. दिव्या के रेप व मर्डर की बात कबूल करा कर उसे कानपुर कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया. लेकिन पुलिस की इस कहानी को सोनू भदौरिया ने सिरे से खारिज कर दिया और कहा कि मुन्ना बेगुनाह है. पुलिस ने उसे झूठा फंसाया है. मीडिया वालों ने मुन्ना लोध की गिरफ्तारी पर संदेह जता कर छापा तो पुलिस तिलमिला उठी.
सोनू भदौरिया व उस की बेटी दिव्या के चारित्रिक हनन तथा मुन्ना लोध को झूठा फंसाने को ले कर शहर की जनता में फिर से गुस्सा फूट पड़ा. उन्होंने पुलिस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया.
महिला मंच की नीलम चतुर्वेदी, अनीता दुआ, पार्षद आरती दीक्षित, गीता निषाद, श्रम संगठन के ज्ञानेश मिश्रा तथा स्कूली बच्चों ने जगहजगह धरनाप्रदर्शन शुरू कर दिए. बड़े प्रदर्शन से पुलिस बौखला गई और उस ने प्रदर्शन कर रही महिलाओं पर लाठियां बरसानी शुरू कर दीं. पुलिस ने उन पर शांति भंग करने का मुकदमा भी दर्ज कर दिया.
एसपी (ग्रामीण) लालबहादुर व सीओ लक्ष्मीनारायण की शासन में पकड़ मजबूत थी. इसी का लाभ उठा कर उन्होंने पुलिस बर्बरता कायम रखी. सोनू भदौरिया की मदद को जो भी आगे आया, पुलिस अफसरों ने उसे प्रताडि़त किया और झूठे मुकदमे में फंसा दिया. पुलिस रात में दरवाजा खटखटा कर लोगों को डराने लगी.
महिला दरोगा शालिनी सहाय सोनू भदौरिया को धमकाती कि वह केस वापस ले ले. साथ ही सोनू को शहर छोड़ कर गांव चली जाने का भी दबाव बनाया गया. वह उस की बेटी दीक्षा से कहती थी कि वह मां से कहे कि उसे शहर में नहीं गांव में जा कर रहना है.