14 सितंबर, 2017 को उत्तराखंड की राजधानी देहरादून स्थित पुलिस मुख्यालय में चल रही उस बैठक में कई पुलिस अधिकारी मौजूद थे. इस मीटिंग में 11 सितंबर को फरार हुए देश के सब से बड़े किडनी सौदागर डा. अमित की गिरफ्तारी को ले कर रायमशविरा हो रहा था.
डा. अमित की सैकड़ों करोड़ की संपत्ति थी और वह हाईप्रोफाइल लाइफ जीता था. उसे विश्व की 14 भाषाओं का ज्ञान था, सैकड़ों बार विदेश यात्रा कर चुका था. उस के व्यावसायिक तार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जुड़े थे.
खाड़ी देशों के अमीर शेखों से ले कर कई देशों के लोग उस के क्लाइंट रह चुके थे. वह अपने देश के गरीबों को रुपयों का लालच दे कर उन की किडनी खरीद कर अमीरों को बेचता था. डा. अमित राउत किडनी सौदागर भी था और किडनी ट्रांसप्लांट करने वाला डाक्टर भी. इस काम में वह लाखों के वारेन्यारे करता था.
विचारविमर्श के बाद मीटिंग खत्म हो गई. डीजीपी अनिल कुमार रतूड़ी के निर्देशन में डीआईजी पुष्पक ज्योति और एसएसपी निवेदिता कुकरेती इस पूरे मामले की मौनिटरिंग कर रही थीं. सभी की नजर डा. अमित राउत पर टिकी थी.
दरअसल, 11 सितंबर, 2017 की सुबह देहरादून की एसएसपी निवेदिता कुकरेती को सूचना मिली थी कि डोईवाला थाना क्षेत्र के लाल तप्पड़ स्थित उत्तराखंड डेंटल कालेज में बने गंगोत्री चैरिटेबल हौस्पिटल में किडनी निकालने और ट्रांसप्लांट करने का अवैध कारोबार किया जा रहा है. यह भी पता चला था कि जो 4 लोग किडनी बेचने के लिए आए थे, वे हरिद्वार के रास्ते दिल्ली जाने वाले हैं.
एसएसपी ने अविलंब एक पुलिस टीम का गठन कर दिया, जिस में थाना डोईवाला के इंसपेक्टर ओमबीर सिंह रावत, हरिद्वार के इंसपेक्टर प्रदीप बिष्ट, एसआई सुरेश बलोनी, दिनेश सती, राकेश पंवार, महिला एसआई मंजुल रावत, आदित्या सैनी, कांस्टेबल गब्बर सिंह, भूपेंद्र सिंह, विनोद, नीरज और राजीव को शामिल किया गया. पुलिस टीम ने सप्तऋषि चौकी के पास चैकिंग अभियान शुरू कर दिया. इसी बीच पुलिस ने एक इनोवा कार नंबर यूए 08 टीए 5119 को रोका. कार की चालक सीट पर एक युवक बैठा था, जबकि कार की पिछली सीट पर 2 महिलाएं व 3 पुरुष बैठे थे.