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डा. पवित्रा जल्दी से जल्दी अमीर बनने के चक्कर में ऐसा फंसा कि मौत का सौदागर बनने के लिए तैयार हो गया. उस ने अपने काम के लिए चीन से ही एमबीबीएस की पढ़ाई कर डाक्टर बने अनिल कुमार को साथ में ले कर यह गोरखधंधा शुरू कर दिया.

चीन से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद डा. पवित्रा 5 साल पहले दिल्ली आया और उस के बाद 3 बड़े अस्पतालों जीटीबी अस्पताल, सुपर स्पैशियालिटी कैंसर इंस्टीट्यूट और दीपचंद बंधु अस्पताल में नौकरी की. जीटीबी अस्पताल में ही पवित्रा की दोस्ती डा. अनिल से हुई थी, जो बिहार का रहने वाला है. अनिल बेहद महत्त्वाकांक्षी था. उस से मुलाकात के बाद तो डा. पवित्रा के इरादों को पंख लग गए.

अमीर बनने के लिए नकली दवाइयों के धंधे में उतरने की तैयारी उस ने तेज कर दी. सब से पहले पवित्रा ने अपने ममेरे भाई शुभम मन्ना और दूसरे साथियों को इस में जोड़ना शुरू किया. मसलन, दवा कहां बनेगी, उस की पैकिंग कहां होगी, बाजार और ग्राहकों तक दवाइयां किस तरह पहुचेंगी. इस के लिए पूरी टीम बन गई.

किस का क्या काम रहेगा, सब कुछ तय हो गया. बेंगलुरु से बीटेक करने के बाद पवित्रा के ममेरे भाई शुभम ने कई मल्टीनैशनल कंपनियों में काम किया था. जब पवित्रा ने उसे कैंसर की नकली दवाइयों के धंधे के बारे में बता कर उस से होने वाले मुनाफे के बारे में बताया तो शुभम भी अपने भाई पवित्रा के साथ नकली दवाइयों के धंधे में जुड़ गया.

पवित्रा ने दवाओं के धंधे की देखरेख करने के लिए आईटीआई डिप्लोमा पास पंकज और अंकित को अपने पास नौकरी पर रख लिया. वह दवाओं को पैक करने के अलावा मार्केट में सप्लाई और कुरियर भी करते थे.

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