करीब साढ़े 3 साल पहले सन 2016 के जनवरी माह में दलित छात्र रोहित वेमुला ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली थी. हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में पीएचडी की पढ़ाई करने वाले दलित स्कालर रोहित के मानसिक उत्पीड़न का मामला उस समय देशभर में गूंजा था. रोहित ने अपनी जान देने से पहले एक सुसाइड नोट लिखा था, जिस में कई मार्मिक टिप्पणियां थीं.

इस सुसाइड नोट में लिखी गई बातों पर उस समय देश भर में जम कर बहस हुई. जातिवादी व्यवस्था को देश का सब से बड़ा खतरा बताया गया. शिक्षण संस्थानों, कालेजों और यूनिवर्सिटी कैंपस में बढ़ते जातिवाद पर रोक लगाने की मांग उठी. संविधान में वर्णित समानता और सामाजिक सुरक्षा के अधिकारों की रक्षा पर भी जोर दिया गया.

इन बातों को 3 साल से ज्यादा का समय बीत गया. इस दौरान कई बार इन मुद्दों पर गर्मागर्मी के बीच बहस और चर्चाएं होती रहीं लेकिन धरातल पर कोई बदलाव नहीं आया. स्कूल से ले कर उच्च शिक्षा के प्रतिष्ठानों में रैगिंग होती रही. कभी शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना तो कभी मौखिक रूप से अभद्र टीका टिप्पणियां.

रैगिंग के नाम पर हर साल हजारों विद्यार्थी अपने सीनियर्स का भयावह व्यवहार झेलते रहे और उन के इशारों पर नाचते रहे. मैडिकल, इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट जैसे उच्च शिक्षा के संस्थानों में रैगिंग के नाम पर कई बार सीनियर विद्यार्थियों का अमानवीय व्यवहार सामने आया.

मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने शिक्षण संस्थानों में रैगिंग के खिलाफ कड़े निर्देश जारी किए हुए हैं. कई राज्यों में रैगिंग पर रोक लगाने के लिए सख्त कानून भी बनाए गए हैं. सुप्रीम कोर्ट की बैंच ने 11 फरवरी, 2009 को स्पष्ट कहा था कि रैगिंग में लिप्त पाए गए विद्यार्थियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के सख्ती से पालन कराने के निर्देश भी दिए गए. इस के बावजूद अभी तक रैगिंग की घटनाएं नहीं रुकीं हैं.

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