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पंजाब के शहर लुधियाना के रहने वाले अरुण वाही पेशे से चार्टर्ड एकाउंटेंट थे. उन का काम ही ऐसा था कि उन्हें औडिट करने के लिए विभिन्न कंपनियों, फर्मों में जाना पड़ता था. कभीकभी तो उन्हें औडिट के लिए लुधियाना से बाहर भी जाना पड़ता था.

18 दिसंबर, 2013 को भी वह लुधियाना से सुबह 4 बजे की ट्रेन पकड़ कर दिल्ली की किसी कंपनी का औडिट करने के लिए निकले. घर से निकलते समय उन्होंने पत्नी सोनिया वाही को बता दिया था कि वह दिल्ली से 1-2 दिन में लौटेंगे.

जिस दिन अरुण वाही दिल्ली के लिए निकले थे, उसी दिन दोपहर करीब 12 बजे लुधियाना में रहने वाले उन के एक दोस्त राजेंदर सिंह के पास फोन आया. राजेंदर सिंह पंजाब नेशनल बैंक में नौकरी करते थे. चूंकि फोन अरुण के नंबर से आया था, इसलिए उन्होंने काल रिसीव करते ही कहा, ‘‘पहुंच गए दिल्ली?’’

‘‘हां, यह दिल्ली पहुंच गए और अब हमारे कब्जे में हैं.’’ दूसरी तरफ से आई इस आवाज को सुन कर राजेंदर सिंह चौंके, क्योंकि वह आवाज अरुण की नहीं, किसी और की थी. राजेंदर सिंह ने उन से पूछा, ‘‘आप कौन हैं और कहां से बोल रहे हैं?’’

‘‘हम आबिद एंटरप्राइजेज, जनकपुरी दिल्ली से बोल रहे हैं. हम ने अरुण वाही को अपने पास ही रोक रखा है. अगर इन्हें छुड़ाना हो तो हमारे खाते में 4 लाख रुपए जमा करा दें, अन्यथा...’’

‘‘नहीं, आप अरुण को कुछ नहीं कहना. आप ने जितने पैसे मांगे हैं, मिल जाएंगे. लेकिन इस से पहले आप हमारी अरुण से बात तो करा दीजिए.’’ राजेंदर सिंह ने कहा.

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