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पन्ना जिले का वर्तमान स्वरूप पन्ना और अजयगढ़ रियासत, चरखारी, बिजावर, छतरपुर और यूनाइटेड प्रोविंस को मिला कर हुआ है. मूलरूप से 13वीं शताब्दी तक गोंड बस्ती रहे पन्ना को महाराजा छत्रसाल बुंदेला ने अपनी राजधानी बनाया था.

अप्रैल, 1949 के पहले यह विंध्य प्रदेश का हिस्सा था. जब पहली नवंबर, 1956 को मध्य प्रदेश का पुनर्गठन हुआ, तब यह मध्य प्रदेश में मिलाया गया था. पन्ना जिले का नाम यहां स्थित पद्मावती देवी मंदिर के नाम पर रखा गया है. यह जिला हीरे की खान के अलावा प्राचीन और सुंदर मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है.

हीरे से लबरेज बताई जाने वाली खदान में कई किसानों की निजी और कुछ जमीन सरकार की है. सरकारी जमीन पर खनन के लिए खनिज कार्यालय से परमिशन लेनी पड़ती है. निजी जमीन पर आमतौर पर 2 तरह के अनुबंध होते हैं. एक में कुछ रुपए ले कर खनन की अनुमति दी जाती है, जबकि दूसरे में जमीन मालिक हीरा मिलने पर 25 प्रतिशत का हिस्सेदार होता है. ज्यादातर अनुबंध 25 प्रतिशत हिस्सेदारी वाले ही होते हैं.

यदि किसी किसान के खेत में खुदाई (खनन) करना है तो उस किसान का सहमति पत्र खनन विभाग में जमा कराना होता है. आमतौर पर जमीन मालिक इस के एवज में 25 प्रतिशत का अनुबंध करते है. इस का मतलब है कि यदि हीरा मिला हो तो उस जमीन मालिक को हीरे की कुल कीमत का 25 प्रतिशत हिस्सा मिल जाता है.

अकसर दूसरी परत में मिलता है हीरा

चाल वाली मिट्टी में हीरा मिलने की संभावना ज्यादा होती है. इसे धो कर साफ किया जाता है और हीरा खोजा जाता है. हीरा मिट्टी की दूसरी लेयर में मिलता है. इसे चाल की लेयर कहा जाता है. चाल उस मिट्टी की परत को कहते हैं, जिस में पत्थर व हीरे मिक्स होते हैं. यही मिट्टी बेहद काम की होती है, जो हीरा उगलती है.

जब तक चाल की मिट्टी मिलती है, उस गहराई तक खुदाई होती है. इस मिट्टी को स्टोर किया जाता है. खुदाई में मिले बड़ेबड़े पत्थरों में हीरे मिलने की सब से अधिक संभावना होती है.

निकाली गई मिट्टी को 3 स्तर पर धोया जाता है, इस के बाद उसे सुखा कर हीरा तलाशा जाता है.

पन्ना जिले में 11 स्थानों पर हीरा मिलता है. पन्ना में जंगल सहित कुछ अन्य क्षेत्र भी चिह्नित हुए हैं, लेकिन अभी वहां हीरा खनन की अनुमति नहीं है. पन्ना जिले में इस वित्तीय वर्ष में 745 खदानों के पट्टे स्वीकृत हुए हैं. इस में सब से अधिक 317 खदान के पट्टे कृष्णा कल्याणपुर (पटी) में आवंटित किए गए हैं. पटी क्षेत्र में हाई क्वालिटी का हीरा मिलता है. इस साल अब तक 235.94 कैरेट के 90 हीरे कार्यालय में जमा कराए हैं,  इन की शुरुआती कीमत 3.79 करोड़ रुपए आंकी गई है.

ऐसे तय होती है हीरे की कीमत

हीरा औफिस में रोज खनन करने वाले लोग चमकीले पत्थर दे कर जाते हैं, जिन की जांच की जाती है. कुछ ही भाग्यशाली होते हैं जिन के जीवन में हीरा चमक लाता है.

पन्ना के हीरा अधिकारी रवि पटेल के बताते हैं, ‘कलर, क्लियरिटी, कट और वजन से हीरे की कीमत तय होती है. सब से अच्छा हीरा जैम क्वालिटी में ई और डी श्रेणी का माना जाता है. पन्ना में अमूमन ई श्रेणी का हीरा मिल जाता है. जैम क्वालिटी के हीरे की अंगूठी और दूसरी ज्वैलरी बनती है, जबकि दूसरा इंडस्ट्रियल ब्लैक हीरा होता है. इस का ग्लास कटिंग सहित दूसरी व्यावसायिक गतिविधियों में उपयोग होता है. इस की कीमत कम होती है. हीरा 50 हजार से ले कर 15 लाख रुपए कैरेट तक बिक सकता है.’

पन्ना में सन 1961 में हीरा कार्यालय बनाया गया था, तभी से हर 3 महीने में हीरे की नीलामी होती है. हीरे की नीलामी में गुजरात, मुंबई, दिल्ली, हैदराबाद सहित कई राज्यों के व्यापारी आ कर बोली लगाते हैं. पट्टे पर खदान ले कर हीरा तलाश करने वाले मजदूर को तुआदार कहा जाता है.

खुदाई के दौरान मिलने वाले हीरे की जांच कराने के बाद तुआदार हीरा कार्यालय में उसे जमा कराता है. हीरा कार्यालय द्वारा वजन और हीरे की क्वालिटी के आधार पर उस की न्यूनतम कीमत तय की जाती है. इस के बाद नीलामी होती है.

अधिकतम कीमत में हीरा नीलाम किया जाता है. 11.50 प्रतिशत टैक्स काट कर बकाया राशि तुआदार मतलब हीरा खोजने वाले को दे दी जाती है.

हीरे के नाम पर होती है ठगी

हीरा अधिकारी रवि पटेल के औफिस में आए दिन ठगी की शिकायतें भी प्राप्त होती रहती हैं. ऐसी ही एक शिकायत सरकोहा निवासी घनश्याम यादव ने की थी.

घनश्याम का कहना है कि उसे अगस्त 2022 में अपने खेत की जुताई के दौरान 12 कैरेट के 3 हीरे मिले थे. खबर मिलते ही घनश्याम का एक परिचित मुंबई में रहने वाला नंदकिशोर उर्फ नंदू लाला उस के घर आया.

घनश्याम ने तीनों हीरे उसे चैक कराने को दे दिए. नंदकिशोर बोला, ‘‘भाई, यहां पर इन की परख सही नहीं होगी. तुम कहो तो इन्हें मैं मुंबई ले जा कर चैक कराऊंगा. वहां इन की सही कीमत मिलेगी.’’

घनश्याम ने यह सोच कर हीरे नंदकिशोर को दे दिए कि शायद बड़े शहर में उसे मिले हीरों के ज्यादा दाम मिल जाएं.

मुंबई जा कर नंदकिशोर ने उसे बताया कि उस के हीरे तो साधारण कंकड़पत्थर हैं. इसी बीच उसे पता चला कि नंदू लाला ने उस के हीरे 70 लाख में बेच दिए. वह न तो उस के हीरे लौटा रहा और न ही पैसे दे रहा.

पन्ना जिले में हीरा मिलने की सच्ची कहानियों के अलावा अफवाहों का बाजार भी गर्म रहता है और यहीं से ठगी का कारोबार भी चलता है. हीरे के नाम पर ठगी का धंधा भी यहां खूब फलफूल रहा है. वैसे तो पन्ना में हीरा खरीदने की एकमात्र जगह सरकारी हीरा औफिस है.

यहां के हीरा अधिकारी रवि पटेल बताते हैं कि पन्ना में जितने भी हीरे लोगों को मिलते हैं, उन का केवल एक प्रतिशत ही हीरा औफिस तक आ पाता है, क्योंकि यहां भी दलाल और ठगी का काम करने वाले मजदूरों से औनेपौने दाम में हीरा खरीद लेते हैं.

जब किसी को हीरा मिलता है तो वह उसे अपने स्तर पर चैक करता है. फिर व्यापारी या बिचौलिए को यकीन हो जाता है कि सही में हीरा है तो उसे लालच दे कर सस्ते दाम पर खरीद लेते हैं. असल में इस में लोगों का ही घाटा होता है.

अगर हीरे की नीलामी होगी तो 100 व्यापारी उसे खरीदने आएंगे तो बढ़चढ़ कर बोली लगाएंगे. ऐसे में उस के दाम बढ़ने की संभावना ज्यादा होती है. लेकिन लोग यह नहीं समझ पाते. वे सरकारी कायदेकानून के चक्कर में न पड़ कर तुरंत बिचौलियों से नकद दाम लेना सुविधाजनक मानते हैं.

यहां पहाड़ी के रास्ते पर छतरपुर जिले के बक्सबाहा के बाबूलाल कुशवाहा को खुदाई में ब्लैक डायमंड जैसे पत्थर मिले थे. वे बताते  हैं कि टीवी पर न्यूज देख कर पता चला था कि यहां हीरा मिल रहा है. तो हम भी किस्मत आजमाने यहां चले आए. यहां आ कर 100 रुपए का तसला और खुदाई करने के लिए  250 रुपए का एक सब्बल खरीदा.

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