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देश की राजधानी दिल्ली के बिलकुल पास स्थित उद्योगों व कौरपोरेट जगत में विश्वस्तरीय पहचान बना चुके नोएडा में छोटेबड़े रईसों की कोई कमी नहीं है. यहां के विभिन्न सैक्टरों में यूं तो एक से बढ़ कर एक कोठिया बनी हैं, लेकिन सैक्टर-51 स्थित एक बंगलेनुमा कोठी नंबर ए-10 पिछले कुछ समय से खासी चर्चाओं में थी. यह कोठी खास महज इसलिए नहीं थी कि उस की 3 मंजिला बनावट जुदा थी, बल्कि इसलिए कि वह उत्तर प्रदेश सरकार के एक ऐसे अफसर की कोठी थी, जिसे सारा देश उस के कारनामों के लिए जान गया था.

आसपास रहने वाले लोग तो चर्चा करते ही थे, उधर से गुजरने वाले लोग भी इस कोठी को अलग नजरिए से देखते थे. पहले वहां पर लालनीली बत्ती वाली गाडिय़ों का खूब आवागमन रहता था. इस के बावजूद कम लोग ही कोठी के अंदर जा पाते थे. तगड़ी कदकाठी वाला कोठी का मालिक पूरे रुआब से रहता था. वह आसपास के लोगों से बात तक नहीं करता था.

लेकिन पिछले चंद महीनों में इस कोठी की रौनक जाती रही. लग्जरी गाडिय़ां तो दूर गिनेचुने लोग ही वहां आतेजाते थे. लोगों का ध्यान भी इस कोठी की तरफ से हटना शुरू हो गया था, लेकिन 3 फरवरी, 2016 को न सिर्फ कोठी, बल्कि उस का मालिक भी एक बार फिर चर्चाओं में आ गया. इस की वजह यह थी कि कोठी के मालिक को देश की सब से बड़ी जांच एजेंसी सेंट्रल ब्यूरो औफ इन्वैस्टीगेशन (सीबीआई) ने गिरफ्तार कर लिया था.

गिरफ्तार किए गए शख्स का नाम था यादव सिंह. नोएडा/ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रैसवे अथौरिटी का सस्पैंड चीफ इंजीनियर. वह सरकारी तंत्र का इतना बड़ा भ्रष्ट अफसर था कि उस के कारनामों ने बड़ेबड़े घपलों को भी मात दे दी थी. उस का रसूख और हैसियत ऐसी थी कि आला दर्जे के अधिकारी भी उस से एक मिनट की मुलाकात के लिए तरसते थे.

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