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अखिलेश सरकार आई तो यादव सिंह पर शिकंजा कसने की तैयारी की गई. 950 करोड़ के टेंडर घोटाले में अथौरिटी के चीफ इंजीनियर के खिलाफ 13 जून, 2012 को थाना सैक्टर-39 में विभिनन धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया गया. इस बार यादव सिंह को सस्पैंड कर दिया गया.

विरोधी खुश हुए कि यादव सिंह अब लपेटे में आ जाएगा, क्योंकि मामला काफी बड़ा था. लेकिन यह विरोधियों की सोच थी. उन की खुशफहमी को तब झटका लगा, जब यादव सिंह ने अपने दिमागी गणित का फार्मूला मौजूदा सरकार में भी चला दिया. सस्पैंड होने के बावजूद अथौरिटी में यादव सिंह का हस्तक्षेप बराबर बना रहा. बड़े आवंटनों में यादव सिंह की सहमति ली जाती थी. इस रसूख का नतीजा यह निकला कि नोएडा पुलिस ने यादव सिंह को इस मामले में क्लिीनचिट दे दी और अदालत में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी.

फिर कभी इस घोटाले पर सवाल खड़ा न हो, इसलिए इस मामले की सीबीसीआईडी जांच भी हुई, लेकिन यादव सिंह इस में भी बच गया. कुछ महीनों की गर्दिशों के बाद यादव सिंह को न केवल बहाल कर दिया गया, बल्कि प्रमोशन भी मिला. उसे यमुना एक्सप्रेस वे अथौरिटी का चीफ इंजीनियर बना दिया गया.

एक बार फिर यादव सिंह को पंख लगे. वह अपने रसूख को बरकरार रख कर मजे से नौकरी करने लगा. इस के बाद एक तरह से उस की ताकत और भी बढ़ गई थी. अब उस का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता था. यादव सिंह औडी जैसी महंगी लग्जरी गाडिय़ा रखता था. लेकिन वह अपनी कारों पर सरकारी ड्राइवर नहीं रखता था.

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