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चूंकि अशोक सिंह एक रसूखदार आदमी थे, इसलिए सिर्फ काल डिटेल्स के आधार पर उन पर हाथ नहीं डाला जा सकता था. लेकिन वह शक के घेरे में आ गए थे. थानाप्रभारी ने यह बात वरिष्ठ अधिकारियों को भी बता दी थी. वह अधिकारियों के निर्देश पर काररवाई करना चाहते थे. अधिकारियों ने कहा कि हत्यारा चाहे कितनी भी ऊंची रसूख वाला क्यों न हो, अगर उस के खिलाफ सबूत मिलते हैं तो उसे तुरंत गिरफ्तार कर लिया जाए. इस के बाद आशीष कांति अशोक सिंह के खिलाफ सबूत जुटाने लगे.

आशीष कांति को मुखबिर से सूचना मिली कि घटना से कुछ देर पहले अशोक सिंह का भांजा दीपक सिंह अजय विद्रोही से बातें करते हुए देखा गया था. उस समय उस के हावभाव ठीक नहीं लग रहे थे, वह घबराया हुआ भी था. इस बात की तसदीक मृतक के बेटे शुभम ने भी की थी. पुलिस के शक के दायरे में दीपक भी आ गया. फिर क्या था, पुलिस ने 4 अक्तूबर, 2015 को दीपक को पूछताछ के लिए उस के घर से दबोच लिया.

एएसपी (अभियान) संजीव कुमार सिंह के सामने दीपक से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ शुरू हुई. पहले तो वह उन्हें इधरउधर घुमाता रहा, लेकिन जब उन्होंने कुछ खास सबूत उस के सामने रखे तो उस के चेहरे का रंग फीका पड़ गया. दीपक को अपना जुर्म कबूल करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं दिखाई दिया तो उस ने अजय विद्रोही की हत्या की साजिश में खुद के शामिल होने की बात स्वीकार कर ली.

दीपक से पूछताछ के बाद इस इस्टू हाउस के मालिक अशोक सिंह, भूमाफिया जयप्रकाश अग्रवाल, जग्गा, शूटर रामबाबू सिंह, अजय सिंह, लोकेश सिंह, महेसी सिंह महेसिया और हरेंद्र बैठा के नाम सामने आए. केस का पूरी तरह से खुलासा हो चुका था. हत्या के इस मामले में शहर के रसूखदार लोगों के शामिल होने से पुलिस हैरान थी कि इन लोगों ने एक पत्रकार की हत्या क्यों की? यह अन्य अभियुक्तों के गिरफ्तार होने के बाद ही पता चल सकता था.

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