बात उतनी बड़ी नहीं थी, लेकिन इतनी छोटी भी नहीं थी कि हलके में लिया जाता. उस के पीछे का मकसद और साजिश इतनी खतरनाक थी कि पूरी घटना जानने के बाद मैं दंग रह गया था. इस बात ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया था कि आजकल के बच्चे छोटीछोटी बातों को ले कर इतने बड़ेबड़े मंसूबे कैसे बना लेते हैं?
उस दिन मैं थोड़ी देर से थाने पहुंचा था. इस की वजह यह थी कि मेरे बेटे के स्कूल में सालाना समारोह था, इसलिए मुझे वहां जाना पड़ा था. थाने पहुंच कर मैं ने ड्यूटी अफसर परमजीत सिंह को बुला कर पूछा, “कोई खास बात तो नहीं है?”
“जी कोई खास बात नहीं, बस एक...”
परमजीत बात पूरी कर पाता, मुख्य मुंशी गुरजीत सिंह कुछ फाइलें ले कर हस्ताक्षर कराने आ गया. मैं ने फाइलों पर दस्तखत करते हुए परमजीत सिंह को हाथ से बैठने का इशारा किया. वह मेरे सामने पड़ी कुरसी पर बैठ गए. सभी फाइलोंपर दस्तखत कर के मैं ने मुंशी से 2 चाय भिजवाने को कहा.
मुंशी चला गया तो मैं परमजीत से मुखातिब हुआ, “हां, तो तुम क्या कह रहे थे?”
“सर, लगभग 12 बजे टोल नाके पर तैनात हमारे थाने के पुलिसकर्मियों के पास एक लड़की भागती हांफती आई. उस की हालत बता रही थी कि किसी बात को ले कर वह काफी परेशान थी. पुलिसकर्मियों ने आगे बढ़ कर उस की उस हालत की वजह पूछी तो उस ने हांफते हुए कहा कि वह सतलुज नदी में कोई पूजा सामग्री फेंकने आई थी. सामग्री फेंक कर जैसे ही वह लौटी 2 लडक़ों ने उसे पकड़ लिया और जबरदस्ती खींच कर खेतों में ले गए, जहां उन्होंने उस के साथ जबरदस्ती की. लडक़ों ने उस का मुंह दबा रखा था, जिस से वह चीख भी नहीं सकी.”