घर वालों ने रंजीत मेला सिंह के दोस्त नारायण बापूराव इंगले को फोन किया, जिन से मिलने वह चिंचवड़ गांव गए थे. इंगले ने बताया कि रंजीत तो उन के घर से साढ़े 12 बजे ही निकल गए थे. उन्हें तो घर पहुंच जाना चाहिए था.

अब घर वाले सोच में पड़ गए कि जब वह दोपहर को ही इंगले के घर से निकल गए थे तो घर आने के बजाय कहां चले गए? अगर कहीं और गए थे तो घर में बताया क्यों नहीं? फिर उन का फोन स्विच्ड औफ क्यों है? घर वालों के मन में तरहतरह के सवाल उठने लगे.

महाराष्ट्र के पुणे में उबालेनगर एरिया के रहने वाले पंजाब ऐंड सिंध बैंक से रिटायर बैंक मैनेजर रंजीत मेला सिंह एक अच्छी जिंदगी जी रहे थे. वह इस के हकदार भी थे. क्योंकि पूरी जवानी उन्होंने बैंक की नौकरी में गंवा दी थी. रिटायर होने पर उन्हें बैंक से ठीकठाक पेंशन मिल रही थी, जिस से वह अपने भरेपूरे परिवार के साथ आराम से रह रहे थे.

एक दिन सुबह रंजीत मेला सिंह अपने एक दोस्त नारायण बापूराव इंगले से मिलने उस के घर गए. नारायण बापूराव इंगले पुणे के पास चिंचवड़ गांव के पार्वती अपार्टमेंट की दूसरी मंजिल पर बने फ्लैट में रहता था. वह एक इंडस्ट्रियलिस्ट था. उस की स्माल स्केल इंडस्ट्रीज थी. वह पैसे वाला तो था ही, काफी प्रभावशाली व्यक्ति भी था.

रंजीत मेला सिंह और नारायण बापूराव इंगले की काफी पुरानी दोस्ती थी. इसलिए रंजीत मेला सिंह अकसर उस से मिलने उस के घर जाया करते थे.

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