बिस्तर पर लेटी आसमा अपनी मोहब्बत की निशानी के तौर पर आने वाले बच्चे की कल्पनाओं में डूबी थी. मां बनने का अहसास उस की भावनाओं को ममता के दरिया में बहाए ले जा रहा था. उस ने बचपन से गरीबी देखी थी, लेकिन जब से उस की जिंदगी में मोहम्मद कलाम दाखिल हुआ था, खुशियां जैसे उस की झोली में खुदबखुद चली आई थीं.
सांवली रंगत वाली आसमा भले ही बहुत खूबसूरत नहीं थी, लेकिन उस की दिल की खूबसूरती का कलाम कायल हो गया था. हर इंसान का अपना मिजाज होता है. वह उस की छोटीबड़ी सभी गलतियों को नजरअंदाज कर के खुशियों को तरजीह देता था. आसमा शबनमी सोच के सागर में और डूबती, तभी उसे अपने सिरहाने किसी के खड़े होने का अहसास हुआ. बेखयाली में उस ने देखा और मुसकरा दिया, क्योंकि वह उस का शौहर कलाम था, “अरे आप कब आए?”
“अभीअभी, जब तुम कहीं खयालों में गुम थीं. वैसे क्या सोच रही थीं?” कलाम ने बैठते हुए पूछा.
“आप के ही बारे में सोच रही थी. मैं तुम्हारे साथ बहुत खुश हूं कलाम.”
इस पर कलाम ने मुसकरा कर कहा, “तुम्हारी अहमियत मेरी जिंदगी में सांसों से भी कहीं ज्यादा है आसमा. दुनिया के हर खजाने को मैं तुम्हारी खुशियों के लिए कुरबान कर सकता हूं.”
“मेरी खुशकिस्मती, जो मुझे तुम जैसा नेक शौहर मिला.”
“फर्ज अदायगी में मेरी नेकियां सलामत रहें.”
“एक दिन आप की नेकियां हमारी और आने वाले बच्चे की इज्जत अफजाई का सबब बनेंगी.”
“आसमा, कल मुझे किसी काम से मेरठ जाना होगा.”
“तुम इतनी मेहनत करते हो, अकसर बाहर जाते रहते हो, ऐसा क्या जरूरी काम है?”