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सुबह के 8 बजे गरीब रथ एक्सप्रेस बांद्रा स्टेशन पर रुकी तो प्रीति बहुत खुश थी. उस की खुशी स्वाभाविक भी थी, क्योंकि मुंबई जैसे महानगर में इतनी अच्छी नौकरी मिलना आसान नहीं होता. स्टेशन पर उस समय बहुत भीड़ थी. ऐसा लगता था जैसे मनुष्यों का समुद्र ठाठें मार रहा हो.

प्रीति अकेली नहीं थी. उस के साथ उस के पिता अमर सिंह राठी, मौसा विनोद कुमार दाहिया और मौसी सुनीता दाहिया भी मुंबई आए थे. टे्रन से उतर कर ये सब लोग प्लेटफार्म से बाहर जाने के लिए आगे बढ़े. अभी ये लोग 20-25 कदम ही चले थे कि प्रीति ने अपने कंधे पर किसी के हाथ का दबाव महसूस किया. पिता और मौसामौसी आगे चल रहे थे. प्रीति को अजीब लगा तो उस ने झटके से पीछे मुड़ कर देखा.

प्रीति के पीछे एक युवक खड़ा था, जिस ने चेहरे पर कपड़ा बांध रखा था. उस के हाथ में च्यवनप्राश का डिब्बा था. प्रीति ने चौंक कर झटके से उस की ओर देखा तो उस ने पलक झपकते ही डिब्बे में भरा तरल पदार्थ उस के मुंह पर फेंक दिया. अगले ही पल प्रीति तेज जलन से तड़प उठी और फर्श पर गिर कर लोटने लगी. उस के चीखने की आवाज सुन कर उस के पिता, मौसा और मौसी ने पीछे पलट कर देखा. प्रीति पर तेजाब फेंका गया था और वह जलन से बुरी तरह छटपटा रही थी. जबकि तेजाब फेंकने वाला भीड़ में गुम हो गया था.

जरा सी देर में स्टेशन पर अफरातफरी मच गई. कुछ लोगों ने तेजाब फेंक कर भागने वाले युवक को देखा था. वह खुद को बचाते हुए प्लेटफार्म नंबर 3 पर आ कर रुकी गरीब रथ एक्सप्रेस के दूसरी ओर प्लेटफार्म नंबर 4 पर दिल्ली के लिए रवाना होने जा रही स्वराज एक्सप्रेस में चढ़ गया था. स्वराज एक्सप्रेस 90 सेकेंड में रवाना होने वाली थी.

उधर दर्द से छटपटाती प्रीति को प्लेटफार्म के फर्श पर लोटपोट होते देख उस के पिता अमर सिंह राठी, मौसा विनोद कुमार और मौसी सुनीता के होश उड़े हुए थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसी परिस्थिति में क्या करें. प्रीति का शरीर रक्तरंजित हो गया था और उस के कपड़ों और शरीर से धुआं उठ रहा था. तेजाब की कुछ बूंदें सुनीता दाहिया और 2 अन्य युवकों के ऊपर भी गिरी थीं. वे भी जलन से परेशान थे. उन युवकों ने तेजाब फेंकने वाले का पीछा भी किया था, लेकिन वे उसे पकड़ने में नाकामयाब रहे थे.

आननफानन में प्रीति को कुछ लोगों की मदद से पास ही के बांद्रा, खैरवाड़ी स्थित गुरुनानक अस्पताल ले जाया गया. वहां उसे तुरंत इमरजेंसी वार्ड में भरती कर के उस का उपचार शुरू किया गया. इस बीच यह खबर बांद्रा रेलवे स्टेशन के थाना जीआरपी तक पहुंच गई थी. सूचना मिलते ही जीआरपी के अफसर गुरुनानक अस्पताल पहुंच गए.

प्रीति राठी की हालत इतनी नाजुक थी कि कोई बयान देना तो दूर वह एक शब्द तक बोलने की स्थिति में नहीं थी. उस का चेहरा, आंखें, जुबान और श्वांस नली सब कुछ बुरी तरह जल चुके थे. डाक्टर उस के प्राथमिक उपचार में लगे हुए थे. पुलिस अफसरों ने प्रीति के पिता अमर सिंह राठी, मौसा विनोद कुमार दाहिया और मौसी सुनीता के बयान ले कर केस दर्ज कर लिया.

प्राथमिक उपचार के बाद प्रीति को भायखला के मसीना अस्पताल भेज दिया गया ताकि उसे बचाने की कोशिश की जा सके. उधर अस्पताल में शुरुआती जांच और लिखापढ़ी के बाद जीआरपी के अफसरों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. उन्होंने उन दोनों प्रत्यक्षदर्शी युवकों के बयान भी लिए, जिन्होंने उस युवक को तेजाब डालते और भागते हुए देखा था. साथ ही एक कुली, एक महिला और रेहड़ी-खोमचे वालों के बयान भी लिए गए. भिखारियों, बूट पौलिश वालों और फेरी वालों से भी पूछताछ की गई.

रेलवे स्टेशन पर लगे सीसी टीवी कैमरों की फुटेज भी देखी गई, लेकिन इस सब से कोई भी ऐसा सूत्र नहीं मिला, जिस से तेजाब फेंकने वाले युवक के बारे में कोई जानकारी मिल पाती. सीसीटीवी की एक फुटेज में तेजाब फेंकने वाला युवक भाग कर स्वराज एक्सप्रेस में चढ़ता तो नजर आ रहा था, लेकिन उस की शक्ल दिखाई नहीं दे रही थी. यह मात्र 10 सेकेंड की फुटेज थी.

तेजाब फेंकने वाला स्वराज एक्सप्रेस में चढ़ा तो था, पर इस बात की संभावना कम ही थी कि वह उसी टे्रन से दिल्ली गया होगा. उस टे्रन में चढ़ने की वजह से यह भी नहीं कहा जा सकता था कि वह दिल्ली का ही रहने वाला रहा होगा. दरअसल पुलिस इस संभावना को ज्यादा महत्त्व दे रही थी कि प्रीति के किसी दुश्मन ने यह काम किसी सुपारी किलर से कराया होगा.

इस मामले में पुलिस अफसरों की सोच यह भी थी कि इस तरह के हादसे अमूमन युवक युवतियों के एकतरफा प्यार मोहब्बत अथवा शादी-विवाह के असफल होने पर होते हैं. पुलिस टीम सोच रही थी कि हो न हो प्रीति राठी के मामले में भी ऐसा ही कुछ रहा हो. इस का पता लगाने के लिए गहराई में जाने की जरूरत थी. इस के लिए पुलिस ने प्रीति के पिता, मौसा और मौसी से विस्तृत पूछताछ की.

इस घटना को घटे 5 दिन बीत गए, लेकिन पुलिस किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी. इस बीच प्रीति के घर वाले और कई रिश्तेदार भी मुंबई पहुंच गए थे, क्योंकि वह जिंदगी और मौत के बीच जूझ रही थी. पुलिस ने प्रीति का बैकग्राउंड खंगालने के लिए उस के घर वालों और रिश्तेदारों से विस्तार से पूछताछ की. साथ ही उस के सहपाठियों की लिस्ट भी बनाई गई. इस लिस्ट में प्रीति के एक शुभचिंतक पवन सिन्हा का भी नाम आया. वह राठी परिवार का न केवल पड़ोसी था, बल्कि प्रीति का दोस्त भी था.

पवन सिन्हा पर पुलिस को संदेह इसलिए हुआ, क्योंकि वह प्रीति की छोटी बहन को बारबार फोन कर के प्रीति की तबीयत के बारे में पूछ रहा था. संदेह हुआ तो बांद्रा जीआरपी थाने से एक पुलिस टीम को दिल्ली भेजा गया. यह पुलिस टीम पवन सिन्हा को गिरफ्तार कर के मुंबई ले आई. पूछताछ में वह अपने आप को निर्दोष बताता रहा.

पुलिस ने अदालत से उस का रिमांड ले कर सख्ती से पूछताछ की. लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. पवन सिन्हा भले ही प्रीति पर तेजाब फेंकने की बात से इनकार करता रहा, पर कुछ सुबूत उस के खिलाफ जा रहे थे. पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे अदालत पर पेश कर के न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया. लेकिन बाद में प्रीति के पिता अमर सिंह राठी द्वारा उस का पक्ष लेने की वजह से उसे जमानत मिल गई.

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