अगले दिन कोतवाली प्रभारी रीता यादव ने जेल जा कर हिना से पूछताछ की. जेल में उस ने अनिल की हत्या में अपना हाथ होने से साफ मना कर दिया. जेल में हिना पर कोई दबाव नहीं बनाया जा सकता था. वैसे भी वह काफी तेजतर्रार लग रही थी, इसलिए रीता यादव ने अदालत में उस के रिमांड की अर्जी लगाई.
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट सुनितचंद्र ने अर्जी मंजूर कर के 7 मई को हिना को 12 घंटे के पुलिस रिमांड पर दे दिया. हिना बहुत ही शातिर थी. पूछताछ में पहले तो वह पुलिस को बरगलाती रही, लेकिन जब उस ने देखा कि वह बचने वाली नहीं है तो वह फूटफूट कर रोने लगी.
पुलिस ने हिना को चुप करा कर लंबी पूछताछ की. इस पूछताछ में चौंकाने वाली जो कहानी निकल कर सामने आई, उस में अनिल ने अपनी सज्जनता और विश्वास की कीमत जान दे कर चुकाई थी.
हिना खान उर्फ रूबी कौसर मूलरूप से जिला मुरादाबाद के एक गांव के रहने वाले साबिद खान की बेटी थी. साबिद के परिवार में पत्नी शकीला के अलावा 5 बच्चे थे. हिना उन में सब से अधिक महत्वाकांक्षी थी. बचपन से ही वह ठाठबाट से रहने के सपने देखती आई थी.
साबिद की हैसियत ऐसी नहीं थी कि वह अपने बच्चों की हर ख्वाहिश पूरी कर पाता. आर्थिक तंगियों से जूझ कर उस ने किसी तरह बच्चों को बड़ा किया. बेटे काम से लग गए तो उस ने दोनों बड़ी बेटियों का निकाह कर दिया.
उसी बीच साबिद का इंतकाल हो गया तो परिवार की जिम्मेदारी बेटों पर आ गई. बाप के मरने के बाद हिना के दोनों भाई आपराधिक प्रवृत्ति के हो गए. तीसरी तक पढ़ी हिना अब तक जवान हो चुकी थी. वह काफी खूबसूरत थी.
भाइयों की वजह से पुलिस आए दिन घर पर दबिशें देने लगी तो परिवार में बिखराव की स्थिति बन गई. पुलिस जब बहुत ज्यादा परेशान करने लगी तो शकीला हिना और बेटों को ले कर दिल्ली आ गई और मौजपुर में रहने लगी.
दिल्ली बिलकुल हिना के सपनों जैसी थी. यहां के लोगों की चमकदमक वाली जीवनशैली, ऊंची इमारतें और उन के पास खड़ी महंगी कारें, इन सब ने हिना को खूब लुभाया. गांव में रह कर उस ने कभी सोचा भी नहीं था कि दुनिया इस तरह की भी है. हिना भले ही न के बराबर पढ़ी थी, लेकिन भाईबहनों में वह सब से ज्यादा तेजतर्रार थी.
गरीबी की वजह से हिना ने अपने जिन सपनों को कुचला था, दिल्ली आ कर वह उन्हें पूरा करना चाहती थी. खूबसूरत हिना को तमाम आंखें ताकती रहती थीं. इस से उसे जल्दी ही अपनी अहमियत का अंदाज हो गया.
हिना किसी भी तरह ऐशोआराम की जिंदगी हासिल करना चाहती थी. उसी बीच उस की दोस्ती आसिफ से हो गई. आसिफ हिना पर खूब पैसे खर्च करता था. वह उस के साथ दिल्ली के पार्कों और रेस्टोरेंटों में घूमती जरूर रही, लेकिन वह उस की मंजिल नहीं थी.
आसिफ को हिना की सच्चाई का पता तब चला, जब उस ने दरियागंज के रहने वाले एक अन्य युवक से दोस्ती कर ली. आसिफ को यह बात बेहद नागवार गुजरी. आखिर एक दिन संदिग्ध हालातों में उस ने आत्महत्या कर ली.
समय अपनी गति से चलता रहा और हिना उस के साथ खुले आकाश में पंख फैला कर उड़ने की कोशिश रहती रही.
दरियागंज के जिस युवक के साथ हिना ने दोस्ती और प्यार का सफर शुरू किया था, वक्त के साथ वह भी उसे छोटा मोहरा नजर आने लगा. लेकिन ऐसे लोग उसे बेहतरीन जिंदगी से रूबरू करा कर उस की अहमियत का अंदाजा जरूर कराते थे.
हिना ऐसे ही लोगों की बदौलत ऊंचाइयों को छूना चाहती थी. उस के संपर्क बढ़े तो उस ने उसे भी किनारे लगा दिया. उस युवक ने हिना के रवैए से आहत हो कर जहर खा लिया. लेकिन उस की किस्मत अच्छी थी कि समय पर इलाज मिल गया, जिस से वह बच गया.
अब तक हिना के सपनों को पंख लग चुके थे. वह पैसे वाले लोगों को इस्तेमाल करना भी सीख गई थी. उस की जिंदगी में इस तरह के लोग आतेजाते भी रहे. उधर शकीला उस का निकाह करना चाहती थी. हिना ने भी सोचा कि शायद निकाह से ही जिंदगी आराम से कट जाए, इसलिए उस ने निकाह कर लिया. निकाह के साल भर बाद उसे एक बेटी भी पैदा हुई.
हिना का पति उस की हसरतों को पूरी नहीं कर पा रहा, जिस से दोनों में अनबन रहने लगी. फिर जल्दी ही दोनों अलग हो गए. हिना बेटी को अपने साथ ले आई. वह कुछ ऐसा करना चाहती थी, जिस से जिंदगी आराम से कटे, क्योंकि उस का हर शौक महंगा था.
हिना की बहन मुमताज का भी पति से विवाद रहता था, जिस से वह भी मायके में ही रहती थी. जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए दोनों बहनों ने गाजियाबाद की ओर रुख किया. उन्होंने दिल्ली बौर्डर पर स्थित पौश इलाके वसुंधरा के सेक्टर-4 में एक फ्लैट किराए पर लिया और कुछ लोगों से संपर्क कर के प्रौपर्टी का धंधा शुरू कर दिया.
हिना खूबसूरत तो थी ही, तेजतर्रार भी थी. उसे लोगों से काम निकालने का हुनर भी बखूबी आता था, जिस से वह ठीकठाक कमाई करने लगी थी. यह सन 2011 की बात है.
उसी दौरान हिना के तार नकली नोटों के कारोबारियों से जुड़ गए. उस का संपर्क रफीक, नुरैन व मोइनुद्दीन से हुआ. ये तीनों नेपाल से बंगलादेश के रास्ते नकली नोट ला कर भारत के अलगअलग हिस्सों में खपाते थे. ये नकली नोट पाकिस्तान से आते थे. रफीक बिहार के गोपालगंज जिले का रहने वाला था तो नुरैन और मोइनुद्दीन उत्तरप्रदेश के देवरिया के रहने वाले थे.
भारत में 1 लाख रुपए नकली नोट 35 हजार रुपए में दिए जाते थे. दिल्ली या उस के आसपास के इलाकों तक आते आते इन की कीमत 50 हजार रुपए हो जाती थी. 15 हजार के फायदे के लिए लोग हिना से डील करने लगे.
दिल्ली और उस के आसपास के इलाकों में नकली नोटों की तस्करी की पूरी जिम्मेदारी हिना और मुमताज के हाथों में थी. उन के पास पैसा आने लगा तो रातोंरात उन के रंगढंग बदल गए. हिना के फ्लैट में सुखसुविधा की हर चीज आ गई. उस ने बढि़या कार भी खरीद ली.
दोनों बहनें प्रौपर्टी के बिजनैस की आड़ में नकली नोटों का धंधा कर रही थीं. राष्ट्रद्रोह का काम कर के वे ठाठ से रह रही थीं. बड़ेबड़े तस्कर उन से फोन पर संपर्क करते थे. उन तक नोट पहुंचाने का काम रफीक, नुरैन और मोइनुद्दीन करते थे. नकली नोट ट्रेन द्वारा ले जाए जाते थे, जबकि डील बसअड्डे पर होती थी. हिना के पास अब दौलत की कमी नहीं थी. अनापशनाप पैसा आया तो उसे शेखी बघारने का चस्का लग गया.
वेटर से ले कर दुकानदारों तक को वह हजार-पांच सौ का नोट देती तो बचे रुपए वापस नहीं लेती थी. लोग रुपए लौटाने लगते तो वह गर्व से कहती, ‘‘रख लीजिए, अगर हम ने बचे हुए रुपए वापस लिए तो यह हमारी तौहीन होगी.’’
दुकानदार या वेटर उसे ताकते रह जाते और उस की दरियादिली के कायल हो जाते. हिना का पर्स हमेशा नोटों से भरा रहता था. वह सौ, 2 सौ रुपए के सामान के भी हजार रुपए दे देती थी.