रुद्राक्ष की हत्या हुए 15 दिन से ज्यादा बीत चुके थे. दीपावली का त्योहार भी निकल गया था. एडीजी (अपराध) अजीत सिंह शेखावत इस मामले को ले कर चिंतित भी थे और बेचैन भी. वह ठीक से सो तक नहीं पा रहे थे. उन्हें जयपुर से कोटा आए कई दिन हो गए थे. पुलिस महानिदेशक ओमेंद्र भारद्वाज उन से रोजाना रिपोर्ट ले रहे थे. मुख्यमंत्री कार्यालय के अधिकारी भी लगातार उन से संपर्क बनाए हुए थे. पुलिस की विफलता और लोगों में बढ़ता जनाक्रोश मीडिया में सुर्खियां बना हुआ था.
शेखावत की परेशानी वाजिब थी. मामला एक मासूम के अपहरण और हत्या का था, जिस में अपराधी अंकुर पाडि़या की हकीकत भी पता चल चुकी थी और पुलिस ने उस के खिलाफ सुबूत भी जुटा लिए थे. लेकिन अंकुर पुलिस को चकमा पर चकमा दे रहा था. पुलिस डालडाल रहती, तो वह पातपात चलता. पुलिस उस की चालों को समझ ही नहीं पा रही थी.
पुरानी कहावत है कि बकरे की मां आखिर कब तक खैर मनाएगी. इस मामले में भी यही हुआ. घटना के 18 दिनों बाद आखिर 27 अक्टूबर को अंकुर पुलिस के हत्थे चढ़ ही गया. उसे उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में एक होटल से गिरफ्तार कर लिया गया.
होटल में वह फर्जी नाम से रुका हुआ था. संयोग से अंकुर के भाई अनूप से की गई पूछताछ में उन के कारनामों और भविष्य की साजिशों का ऐसा घिनौना चेहरा सामने आया कि पुलिस भी हतप्रभ रह गई.
रुद्राक्ष का अपहरण कर के उस की हत्या करने वाला मुख्य आरोपी अंकुर इतना शातिर था कि वह आत्महत्या की झूठी कहानी गढ़ कर राजस्थान से बाहर ऐश की जिंदगी जीने के सपने देख रहा था. उस ने अपना हुलिया भी बदल लिया था. पहचान छिपाने के लिए उस ने सिर के बाल कटवा लिए थे और दाढ़ी बढ़ा ली थी.