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हम ने उस की हिफाजत का ठेका नहीं ले रखा है. उलटे यह सब करने की गुंडों को शह व छूट दे रखी है. शुक्र इस बात का है कि ऐसी वारदातों के वक्त सभ्य समाज के ये शरीफजादे गुंडों का साथ नहीं देते, यह उन का एहसान है, सामाजिक सरोकारों और नैतिक जिम्मेदारियों की तो बात करना बेमानी है.

अहम सवाल अब पुरुष मानसिकता का है जो औरत को ‘सामान’, ‘आइटम’, ‘पटाखा’, ‘फुलझड़ी’ और ललितपुर के गुंडों की भाषा में कहें तो ‘माल’ समझता व कहता है. अकेली लड़की को देख वे उस पर हमला करते हैं तो उन्हें मालूम रहता है कि कोई कुछ नहीं बोलेगा.

इस वारदात ने साबित कर दिया है कि दबंग वे लोग नहीं हैं जो कान में ईयरफोन लगाए दीनदुनिया से बेखबर गीतसंगीत सुनते रहते हैं, फेसबुक और वाट्सऐप पर चैट करते रहते हैं. लंबीलंबी बातें, बहसें नैतिकता और आदर्शों की करते हैं. असल दबंग वे हैं जो सरेआम एक लड़की का पर्स लूट कर उसे मरने के लिए फेंक देते हैं और फिर हाथ झाड़ कर चलते बनते हैं.

कैब और बलात्कार

29 वर्षीय रीतिका (बदला नाम) गुड़गांव की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में एग्जीक्यूटिव है. जाहिर है नए जमाने की उन करोड़ों युवतियों में से एक है जो अपने बलबूते पर नौकरी करते सम्मान और स्वाभिमान से जिंदगी गुजार रही हैं.

शुक्रवार, 5 दिसंबर यानी वारदात के दिन रीतिका ने शाम 7 बजे अपनी शिफ्ट खत्म होने के बाद एक रैस्टोरैंट में दोस्तों के साथ डिनर लिया. उस के एक दोस्त ने उसे अपने वाहन पर बसंत विहार छोड़ा जहां से उसे अपने घर इंद्रलोक जाना था.

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