19 जनवरी, 2022 को अमेरिका से लगी कनाडा सीमा के पास मिनेसोटा राज्य के एमर्शन शहर के नजदीक कनाडा की ओर मेनिटोबा रौयल कैनेडियन माउंटेन पुलिस (आरसीएमपी) ने अमेरिका में चोरीछिपे यानी अवैध रूप से घुस रहे 7 लोगों को गिरफ्तार किया था. इन लोगों से पता चला कि इन के 4 लोग और थे, जो पीछे छूट गए हैं.
पीछे छूट गए लोगों की तलाश में जब आरसीएमपी के जवानों ने सीमा की तलाशी शुरू की तो उन्हें सीमा के पास बर्फ में ढके 4 शव मिले.
आरसीएमपी के जवानों ने जिन 7 लोगों को गिरफ्तार किया था, वे गुजरात के गांधीनगर के आसपास के रहने वाले थे. इस से उन जवानों ने अंदाजा लगाया कि ये मृतक भी शायद उन्हीं के साथी होंगे.
बर्फ में जमी मिली चारों लाशों में एक पुरुष, एक महिला, एक लड़की और एक बच्चे की लाश थी. ये लाशें सीमा से 10 से 13 मीटर की दूरी पर कनाडा की ओर पाई गई थीं. मेनिटोबा रायल कैनेडियन पुलिस ने लाशों की तलाशी ली तो उन के पास मिले सामानों में बच्चे के उपयोग में लाया जाने वाला सामान मिला था.
अंदाजा लगाया गया कि इन की मौत ठंड से हुई है. बर्फ गिरने की वजह से उस समय वहां का तापमान माइनस 35 डिग्री सेल्सियस था.
अगले दिन जब यह समाचार वहां की मीडिया द्वारा प्रसारित किया गया तो भारत के लोग भी स्तब्ध रह गए थे.
खबर में मृतकों के गुजरात के होने की संभावना व्यक्त की गई थी, इसलिए उस समय गुजरात से कनाडा गए लोगों के भारत में रहने वाले परिजन बेचैन हो उठे. सभी लोग कनाडा गए अपने परिजनों को फोन करने लगे.
उसी समय गांधीनगर की तहसील कलोल के गांव डिंगुचा के रहने वाले बलदेवभाई पटेल का बेटा जगदीशभाई पटेल भी अपनी पत्नी, बेटी और बेटे के साथ कनाडा गया था. इसलिए उन्हें चिंता होने लगी कि कहीं उन का बेटा ही तो सीमा पार करते समय हादसे का शिकार नहीं हो गए. उन का बेटे से संपर्क भी नहीं हो रहा था.
सच्चाई का पता लगाने के लिए उन्होंने कनाडा स्थित दूतावास को मेल किया, पर कुछ पता नहीं चला. पता चला 9 दिन बाद.
पुलिस को चारों लाशों की पहचान कराने में 9 दिन लग गए थे. 9 दिन बाद 27 जनवरी, 2022 को आरसीएमपी की ओर से रोब हिल द्वारा अधिकृत रूप से भारतीय उच्चायोग को सूचना दी गई कि चारों मृतक भारत के गुजरात राज्य के जिला गांधीनगर के डिंगुचा गांव के रहने वाले थे. चारों मृतक एक ही परिवार के थे.
उन की पहचान बलदेवभाई पटेल के बेटे जगदीशभाई पटेल (39 साल), बहू वैशाली पटेल (37 साल), पोती विहांगी पटेल (11 साल) और पोते धार्मिक पटेल (3 साल) के रूप में हुई थी.
यह परिवार 12 जनवरी को कनाडा जाने की बात कह कर घर से निकला था और वहां पहुंच कर फोन करने की बात कही थी.
यह परिवार उसी दिन कनाडा के टोरंटो शहर पहुंच गया था. इस के बाद यह परिवार 18 जनवरी को मैनिटोबा प्रांत के इमर्शन शहर पहुंचा था और 19 जनवरी को पूरे परिवार की लाशें मेनिटोबा प्रांत से जुड़ी अमेरिका कनाडा सीमा पर कनाडा सीमा में 12 मीटर अंदर मिली थीं.
दूसरी ओर जब पता चला कि यह परिवार अवैध रूप से अमेरिका में घुस रहा था तो गुजरात के डीजीपी आशीष भाटिया ने पटेल परिवार को गैरकानूनी रूप से विदेश भेजने से जुड़े लोगों से ले कर पूरी जांच की जिम्मेदारी सीआईडी क्राइम ब्रांच की एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग ब्रांच को सौप दी.
जिस के लिए डिप्टी एसपी सतीश चौधरी के नेतृत्व में टीम गठित कर जांच शुरू भी कर दी गई थी.
विदेशमंत्री एस. जयशंकर ने भी इस घटना को गंभीरता से लिया. जिस की वजह से भारत, अमेरिका और कनाडा की जांच एजेसियां इस मामले की संयुक्त रूप से जांच करने लगीं.
पता चला है कि अमेरिका की पुलिस ने डिंगुचा गांव के पटेल परिवार के 4 सदस्यों सहित 11-12 अन्य लोगों को अवैध रूप से सीमा पार कराने के आरोप में फ्लोरिडा के स्टीव शैंड नामक एजेंट को गिरफ्तार किया था.
चारों लाशें कनाडा में थीं. अंतिम संस्कार के लिए के लिए जब उन्हें भारत लाने की बात चली तो पता चला कि एक लाश लाने में करीब 40 लाख रुपए का खर्च आएगा. मतलब करोड़ों का खर्च था. इसलिए तय हुआ कि चारों मृतकों का अंतिम संस्कार कनाडा में ही करा दिया जाए.
और फिर किया भी यही गया. चारों मृतकों का अंतिम संस्कार वहीं करा दिया गया. चूंकि अमेरिका, कनाडा में पटेल बहुत बड़ी संख्या में रहते हैं, इसलिए मृतकों का अंतिम संस्कार करने में कोई दिक्कत नहीं आई थी. क्योंकि इस परिवार की मदद के लिए पटेल समाज आगे आ गया था.
इतना ही नहीं, अमेरिका और कनाडा के रहने वाले पटेलों ने जगदीशभाई पटेल के परिवार के लिए 66 हजार डालर की रकम इकट्ठा भी कर के भेज दी है.
जगदीशभाई पटेल गुजरात के जिला गांधीनगर की तहसील कलोल के गांव डिंगुचा के रहने वाले थे. उन के पिता बलदेवभाई पटेल पत्नी मधुबेन और बड़े बेटे महेंद्रभाई पटेल के साथ डिंगुचा में ही रहते हैं. उन के साथ ही बड़े बेटे का परिवार भी रहता है.
बलदेवभाई गांव के संपन्न आदमी थे. उन के पास अच्छीखासी जमीन, इसलिए उन्हें किसी चीज की कमी नहीं थी. बड़े बेटे महेंद्रभाई की शादी पहले ही हो गई थी. जगदीश भी गांव के स्कूल में नौकरी करने लगा तो पिता ने उस की भी शादी कर दी.
शादी के बाद जब जगदीशभाई को बिटिया विहांगी पैदा हुई तो वह बेटी की पढ़ाई अच्छे से हो सके, इस के लिए पत्नी वैशाली और बेटी विहांगी को ले कर कलोल आ गए थे.
जगदीश ने गांव की अपनी स्कूल की नौकरी छोड़ दी थी. कलोल में परिवार के खर्च के लिए उन्होंने बिजली के सामानों की दुकान खोल ली थी. कलोल आने के बाद उन्हें बेटा धार्मिक पैदा हुआ था. सब कुछ बढि़या चल रहा था. बेटी विहांगी 11 साल की हो गई थी तो बेटा 3 साल का हो गया था. इस बीच उन्हें न जाने क्यों विदेश जाने की धुन सवार हो गई.
दरअसल, गुजरात और पंजाब में विदेश जाने का कुछ अधिक ही क्रेज है. डिंगुचा गांव में करीब 7 हजार की जनसंख्या में से 32 सौ से 35 सौ के आसपास लोग विदेश में रहते हैं. इसी वजह से इस गांव के लोगों में विदेश जा कर रहने का बड़ा मोह है.
ऐसा ही मोह जगदीश के मन में भी पैदा हो गया था. तभी तो वह एक लाख डालर (75 लाख) रुपए खर्च कर के एजेंट के माध्यम से अमेरिका जाने को तैयार हो गए थे. वह चले भी गए थे, पर उन के और उन के परिवार का दुर्भाग्य ही था कि बौर्डर पर बर्फ गिरने लगी और उन का पूरा परिवार ठंड की वजह से काल के गाल में समा गया.
यह कोई पहली घटना नहीं है. इस तरह की अनेक हारर स्टोरीज इतिहास के गर्भ में छिपी हैं. मात्र कनाडा ही नहीं, मैक्सिको की सीमा से भी लोग गैरकानूनी रूप से अमेरिका में प्रवेश करते हैं. आज लाखों पाटीदार (पटेल) यूरोप और अमेरिका में रह रहे हैं.
अमेरिका विश्व की महासत्ता है. सालों से गुजरातियों ने ही नहीं, दुनिया के तमाम देशों के लोगों में अमेरिका जाने का मोह है. क्योंकि अमेरिका में कमाने के तमाम अवसर हैं. गुजरात के पटेल सालों से अमेरिका जा कर रह रहे हैं. अमेरिका की 32 करोड़ की आबादी में आज 20 लाख से अधिक भारतीय हैं, जिन में 10 लाख लोग पाटीदार हैं.
गैरकानूनी रूप से किसी को भी अमेरिका ही नहीं बल्कि किसी भी देश में नहीं जाना चाहिए. कलोल के पास के डिंगुचा गांव के पटेल परिवार की करुणांतिका जितना हृदय को द्रवित करने वाली है, उतनी ही आंखें खोलने वाली भी है.
एक समय अमेरिका में 10 लाख रुपए में गैरकानूनी रूप से प्रवेश हो जाता था. लेकिन अब यह एक करोड़ तक पहुंच गया है. इस धंधे को कबूतरबाजी कहा जाता है. इस तरह के कबूतरबाज रोजीरोटी की तलाश और अच्छे जीवन की चाह रखने वाले गुजराती परिवारों के साथ धोखेबाजी करते हैं और इस के लिए तमाम एजेंट गुजरात में भी हैं.
अमेरिका या कनाडा से फरजी स्पांसर लेटर्स मंगवा कर विजिटर वीजा पर उन्हें अमेरिका में प्रवेश करा देते हैं और फिर वे सालों तक गैरकानूनी रूप से अमेरिका में रहने के लिए संघर्ष करते रहते हैं. उन्हें कायदे की नौकरी न मिलने की वजह से होटलों या रेस्टोरेंट में साफसफाई या वेटर की नौकरी करनी पड़ती है.
यह एक तरह से दुर्भाग्यपूर्ण ही है. सोचने वाली बात यह है कि जो लोग करोड़ों रुपए खर्च कर के चोरीछिपे अमेरिका जाते हैं, वे 50 या सौ करोड़ की आसामी नहीं होते. वे बेचारे वेटर और क्वालिटी लाइफ की तलाश में अपना मकान, जमीन या घर के गहने बेच कर जाते हैं.
इस की वजह यह होती है कि देश में उन के लिए नौकरी नहीं होती. वे बच्चों को अच्छी शिक्षा या अच्छा इलाज दे सकें, उन के पास इस की व्यवस्था नहीं होती.
ऐसा ही कुछ सोच कर जगदीशभाई ने भी 75 लाख रुपए खर्च किए. पर उन का दुर्भाग्य था कि अच्छे जीवन की तलाश में उन्होंने जो किया, वह उन का ही नहीं, उन के पूरे परिवार का जीवन लील गया.
रोजगार और अच्छे भविष्य के लिए गुजराती अमेरिका, कनाडा और आस्ट्रेलिया जैसे देशों में जान को खतरे में डाल कर गैरकानूनी रूप से घुसते हैं. जब इस बारे में पता किया गया तो जो जानकारी मिली, उस के अनुसार एजेंट को पैसा वहां पहुंचने के बाद मिलता है.
गुजरात से हर साल हजारों लोग गैरकानूनी रूप से विदेश जाते हैं. इस में उत्तर गुजरात तथा चरोतर के पाटीदार शामिल हैं. विदेश जाने की चाह रखने वाले परिवार मात्र आर्थिक ही नहीं, सामाजिक और शारीरिक यातना भी सहन करते हैं.
इस समय इमिग्रेशन की दुनिया में कनाडा का बोलबाला है. जिन्हें कनाडा हो कर अमेरिका जाना होता है या कनाडा में ही रहना होता है, उन के लिए कनाडा के वीजा की डिमांड होती है. इस समय जिन एजेंटों के पास कनाडा का वीजा होता है, उस में स्टीकर के लिए वे ढाई लाख रुपए की मांग करते हैं.
गैरकानूनी रूप से विदेश जाने के लिए सब से पहले समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति से बात की जाती है. अगर कोई स्वजन विदेश में है तो उस से सहमति ली जाती है. इस के बाद तांत्रिक से दाना डलवाने यानी धागा बंधवाने का भी ट्रेंड है. तांत्रिक की मंजूरी के बाद एजेंट को डाक्यूमेंट सौंप दिए जाते हैं.
यहां हर गांव का एजेंट तय है. एजेंट समाज की संस्था या मंडल से संपर्क करता है. मंडल या संस्था एक व्यक्ति या परिवार का हवाला लेता है, जहां रुपए की डील तय होती है.
अगर समाज का प्रतिष्ठित व्यक्ति एजेंट का हवाला नहीं लेता तो जमीन, घर लिखाया जाता है. एक व्यक्ति का एक करोड़ रुपया और कपल का एक करोड़ 30 लाख रुपया एजेंट लेता है. अगर बच्चे या अन्य मेंबर हुए तो यह रकम बढ़ जाती है.
डील के बाद समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति की भूमिका शुरू होती है. समाज का प्रतिष्ठित व्यक्ति रुपए की जिम्मेदारी लेता है तो एजेंट डाक्यूमेंट का काम शुरू करता है. यह स्वीकृति किसी भी कीमत पर बदल नहीं सकती. अगर बदल गई तो समाज में परिवार की बहुत बेइज्जती होती है.
एजेंट पहले कानूनी तौर पर वीजा के लिए आवेदन करता है. रिजेक्ट होने के बाद गैरकानूनी रूप से खेल शुरू होता है.
जिस देश के लिए वीजा आन अराइवल होता है, उस देश के लिए प्रोसेस शुरू होता है. वहां पहुंचने पर विदेशी एजेंट मनमानी शुरू कर देता है. महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार तक करता है.
कभीकभी तो रातदिन सौ किलोमीटर तक पैदल चलाता है. माइनस 40 डिग्री सेल्सियस तापमान में सुनसान जंगलों और बर्फ पर संघर्ष करना पड़ता है. अगर कोई ग्रुप से छूट गया या पीछे रह गया तो उस का इंतजार नहीं किया जाता. उसे उस के हाल पर छोड़ दिया जाता है. जैसा जगदीशभाई और उन के परिवार के साथ हुआ.
इस स्थिति में कभीकभी मजबूरी में बर्फ, जंगल या फायरिंग रेंज में आगे बढ़ना पड़ता है. ऐसे में अमेरिकी बौर्डर पर पहुंच कर 3 औप्शन होते हैं. पहला औप्शन है अमेरिकी सेना के समक्ष सरेंडर कर देना. दूसरा औप्शन होता है कि वह अपने देश में सुरक्षित नहीं है और तीसरा औप्शन है कि अमेरिका में अपने सोर्स से छिपे रहना.
इस के बाद कंफर्मेशन होने के बाद पेमेंट होता है. अमेरिका में कदम रखते ही दलाल एक फोन करने देता है. समाज के उस प्रतिष्ठित व्यक्ति से सिर्फ ‘पहुंच गया’ कहने दिया जाता है. इस कंफर्मेशन के बाद भारत में दलाल को रुपए मिल जाते हैं.
समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति को 5 से 10 प्रतिशत मिला कर देने की डील होती है. पास में पैसा न हो और अमेरिका जाना हो तो समाज की मंडली से आर्थिक मदद मिलती है. अमेरिका पहुंच कर रकम मंडल में जमा करा दी जाती है.
करीब 100 करोड़ जितनी रकम का हवाला पड़ गया है. ईमानदारी ऐसी कि यह रकम समय पर अदा कर दी जाती है. ऐसा ही कुछ जगदीशभाई पटेल के भी मामले में हुआ था. पर वह अमेरिका में कदम नहीं रख पाए.
अमेरिका-कनाडा की सीमा पर काल के गाल में समाए जगदीशभाई पटेल और उन के परिवार वालों के लिए 7 फरवरी, 2022 को उन के गांव डिंगुचा में शोक सभा का आयोजन किया गया.
जगदीशभाई और उन के परिवार के लिए पूरा देश दुखी है. पर इस हादसे के बाद क्या कबूतरबाजी बंद होगी? कतई नहीं. लोग इसी तरह जान जोखिम में डाल कर विदेश जाते रहेंगे. क्योंकि विदेश का मोह है ही ऐसा.