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उदयभान ने सुमन का मोबाइल ठीक कर के अपना नंबर डायल कर के चैक किया. ऐसा उस ने इसलिए किया था, जिस से उसे सुमन का नंबर मिल जाए. इस के बाद उदयभान ने सुमन का मोबाइल उस के हाथ पर रखा तो सुमन ने पूछा, ‘‘कितने रुपए हुए?’’

उदयभान ने सुमन के चेहरे पर नजरें जमा कर मुसकराते हुए कहा, ‘‘बुरा न मानो तो एक बात कहूं सुमन?’’

‘‘अच्छी बात कहोगे तो बुरा क्यों मानूंगी?’’ सुमन ने कहा.

‘‘तुम पैसे देने के बजाय मैं जब भी तुम्हें फोन करूं, मुझ से बात कर लेना.’’ उदयभान ने आग्रह सा किया.

सुमन को भी उदयभान अच्छा लगता था, इसलिए उस ने कहा, ‘‘ठीक है, लेकिन कोई ऐसीवैसी बात मत करना.’’

सुमन की इस बात से उदयभान को मानो मुहमांगी मुराद मिल गई. शाम को दुकान बंद कर के वह घर के लिए चला तो उसे सुमन की याद आ गई. उस ने तुरंत फोन मिला दिया. 2-4 बार घंटी बजने के बाद उस के कानों में सुमन की चहकती आवाज पड़ी तो वह समझ गया कि उस के फोन करने से सुमन खुश है.

इस तरह सुमन और उदयभान के बीच फोन पर बातों का सिलसिला शुरू हुआ तो दिनोंदिन बढ़ता ही गया. कुछ दिनों बाद फोन पर समय तय कर के दोनों मिलने भी लगे. इस के बावजूद भी दोनों के बीच फोन पर घंटों बातें होती रहती थीं. धीरेधीरे स्थिति यह हो गई कि वे एकांत में मिलने के लिए बेचैन रहने लगे. आखिर इस के लिए उन्होंने मौका निकाल ही लिया.

2 साल पहले की बात है. राममूर्ति का पूरा परिवार किसी रिश्तेदार के यहां दावत में गया था. सुमन पेट दर्द का बहाना कर के घर पर ही रुक गई थी. उस की वजह से चाची को भी रुकना पड़ा था. रात का खाना खा कर सुमन की चाची सो गई तो उस ने फोन कर के उदयभान को घर पर ही बुला लिया. उस के बाद तो पूरी रात उन की अपनी थी. रात 3 बजे तक उदयभान सुमन के साथ रहा. उस रात दोनों को एकदूसरे से जो सुख मिला, उस के लिए दोनों  लालायित ही नहीं रहने लगे, बल्कि इस के लिए हमेशा मौके की तलाश में रहने लगे.

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