2 मई, 2014 को दोपहर 11 बजे दक्षिण पश्चिमी दिल्ली के थाना बिंदापुर के ड्यूटी औफिसर को पुलिस कंट्रोलरूम द्वारा वायरलैस से एक मैसेज मिला. मैसेज यह था कि मटियाला इलाके के सुखराम पार्क स्थित मकान नंबर आरजेड-54, 55 के बंद कमरे से बदबू आ रही है. ड्यूटी औफिसर ने यह सूचना थानाप्रभारी किशोर कुमार को बताई तो वह समझ गए कि कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है.
उन का अनुभव था कि बंद कमरों से बदबू आने के ज्यादातर मामलों में कमरे से लाश ही मिलती है. इसलिए यह खबर मिलते ही वह एसआई सुरेंद्र सिंह को साथ ले कर सूचना में दिए पते पर रवाना हो गए. इस के कुछ देर बाद इंसपेक्टर सत्यवीर जनौला भी सुखराम पार्क की तरफ निकल गए.
पुलिस अधिकारी जब उपरोक्त पते पर पहुंचे तो वहां अशोक कुमार सेठ नाम का आदमी मिला. वही उस मकान का मालिक था. अशोक कुमार अपने मकान में एक जनरल स्टोर चलाता था. पुलिस को फोन उस के बेटे अंकुश ने किया था. अशोक पुलिस को अपने मकान के उस कमरे के पास ले गया, जहां से तेज बदबू आ रही थी. पुलिस ने भी कमरे के पास पहुंच कर बदबू महसूस की. उस कमरे के दरवाजे पर ताला लटका हुआ था.
थानाप्रभारी ने अशोक कुमार सेठ से पूछा, ‘‘इस कमरे में कौन रहता था?’’
‘‘सर, इस कमरे में एक लड़की और 2 लड़के रहते थे. 2 दिन से ये दिखाई नहीं दे रहे. आज हमें कमरे से बदबू आती महसूस हुई तो शक हुआ. फिर 100 नंबर पर फोन कर दिया.’’ अशोक ने बताया.