‘मैं न तो पाकिस्तानी हूं और न ही हिंदुस्तानी, मैं एक इंसान हूं और कहीं भी रहूं जीने का हक रखती हूं.’ जेल की चारदीवारी से पहली बार बाहर की दुनिया देखने निकली वह मासूम अपनी बात कहते हुए भावुक हो गई. यह लड़की थी हिना.

हिना के जीवन में 2 नवंबर का दिन उस के लिए किसी दूसरे जन्म से कम नहीं था. 11 साल पहले 8 नवंबर, 2006 को हिना का जन्म पंजाब के अमृतसर की सेंट्रल जेल में हुआ था. जेल में जन्म लेने की वजह से जेल के सभी कैदी उसे कान्हा और राधा नामों से बुलाते थे.

हिना की अम्मी फातिमा का कहना था कि हिना तो जेल की बेटी है. मुझे तो यह गम है कि मेरे अनचाहे गुनाह की सजा मेरी बेटी को भुगतनी पड़ रही है. लेकिन दूसरी ओर खुशी इस बात की है कि हिना को सभी कैदी बहुत प्यार करते हैं.

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हिना का जन्मदिन मुझे भी याद नहीं, लेकिन हिना का जन्म जेल में हुआ है, इसलिए सभी कैदियों सहित पूरा जेल स्टाफ जन्माष्टमी के दिन उस का जन्मदिन मनाते हैं. भले ही मैं मुसलमान हूं, पाकिस्तान से हूं लेकिन जिस तरह से हिना को कोई कान्हा तो कोई राधा कह कर प्यार करता है, दुलारता है, यह देख मेरी आंखें बरस पड़ती हैं.

पाकिस्तान के गुजरांवाला निवासी सैफुद्दीन की पत्नी फातिमा, उस की बहन मुमताज और नानी रशीदा बेगम 8 मई, 2006 को समझौता एक्सप्रेस से दोपहर 2 बज कर 20 मिनट पर भारत-पाक बौर्डर के अटारी रेलवे स्टेशन पर पहुंची थीं. साढ़े 5 बजे फातिमा, मुमताज व रशीदा बेगम के पासपोर्ट की चैकिंग की गई.

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