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अमर पुरी ने उसे अपना चेहरा गौर से देखते पाया तो वह चौंकते हुए बोला, ‘‘मेरे चेहरे पर क्या तलाश कर रहे हैं आप? क्या मैं आप को जानापहचाना लग रहा हूं?’’

‘‘मैं तुझ से पहले कभी नहीं मिला, यहां तेरा चेहरा देख कर रुक गया. तेरे ललाट की रेखाएं देखने के बाद मेरे पांव खुदबखुद रुक गए हैं.’’ वह व्यक्ति गंभीर स्वर में बोला.

‘‘ऐसा क्या लिखा है मेरे ललाट

पर?’’ अमर पुरी ने मुसकरा कर पूछा.

‘‘तेरे ललाट की रेखाएं कह रही हैं कि तेरा जन्म जलेबियां तलने के लिए नहीं हुआ है. तू तो लोगों का भला करने के लिए पैदा हुआ है.’’

अमर पुरी हंस पड़ा. हंसते हुए ही बोला, ‘‘यहां मेरा खुद का भला नहीं हो पा रहा है. मैं लोगों का भला कैसे करूंगा?’’

‘‘तेरे माथे की रेखाएं तो यही कह रही हैं बेटा.’’ वह व्यक्ति पहले की अपेक्षा और अधिक गंभीर हो गया, ‘‘तू लोगों का भला ही करेगा, लोग तेरे नाम की माला जपेंगे और तेरे चरणों की धूल अपने माथे से लगाएंगे.’’

नागा बाबा की भविष्यवाणी से हुआ प्रभावित अमर पुरी को लगा, यह कोई पहुंचा हुआ संत है, तभी ऐसी बातें कर रहा है. उस ने जलेबी तलना बंद कर दीं. हाथ पानी से धोने के बाद वह तौलिए से हाथ साफ कर के उस व्यक्ति से बोला, ‘‘आप यहां आ कर बैठिए, आप की रहस्यमयी बातों ने मेरी जिज्ञासा बढ़ा दी है. आप बैठ कर बताइए, आप कौन हैं और मेरे विषय में ऐसी अजीब भविष्यवाणी किस आधार पर कर रहे हैं?’’

वह व्यक्ति आ कर अंदर रखी कुरसी पर बैठ गया. फिर उस ने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘मैं नागा बाबा हूं. मुझे इसी नाम से पुकार सकते हो तुम. मैं ने बरसों कठोर साधाना कर के तंत्रमंत्र विद्या सीखी है. उसी तंत्रमंत्र विद्या के बूते मैं ने तुम्हारे ललाट की रेखाएं पढ़ी हैं, तुम जलेबी तलने के लिए पैदा नहीं हुए हो. तुम्हारे ललाट की रेखाएं बता रही हैं कि तुम एक पहुंचे हुए संत महात्मा बनोगे, लोग तुम्हारे चरण धो कर पीएंगे.’’

‘‘लेकिन मुझ में तो ऐसा कोई गुण है नहीं नागा बाबा कि लोग मेरे चरण धो कर पीएं. मैं तो एक साधारण सा व्यक्ति हूं.’’ अमर पुरी विनम्र भाव से बोला.

‘‘तुम्हारे ललाट की रेखाएं जो कह रही हैं, मैं ने वही बताया है. एक साधारण व्यक्ति से पहुंचे हुए संत कैसे बनोगे, यह तुम्हें वक्त बताएगा. वक्त बदलेगा, अवश्य बदलेगा, तुम्हें इंतजार करना पड़ेगा और प्रयास भी.’’ नागा बाबा ने कहा और उठ कर खड़ा हो गया.

‘‘बाबा, आप बैठिए और मुझे कुछ सेवा करने का मौका दीजिए.’’ अमर पुरी उस नागा बाबा को उठता देख कर जल्दी से बोला.

‘‘नहीं बेटा, मैं तुझ से सेवा नहीं करवाऊंगा, मेरे पास समय नहीं है चलता हूं.’’ नागा बाबा ने कहा और लंबेलंबे कदम बढ़ाता हुआ वहां से आगे बढ़ गया.

अमर पुरी उसे हैरान नजरों से देखता रहा, जब वह आंखों से ओझल हो गया तो अमर पुरी उस के द्वारा की गई भविष्यवाणी की गहराई से उतर कर सोचने लगा कि वह कब और किस प्रकार पहुंचा हुआ संत बनेगा. काफी सोचने के बाद भी उसे कुछ रास्ता नजर नहीं आया तो भट्ठी जला कर वह फिर से जलेबी तलने लगा.

इसे अमर पुरी की किस्मत का खेल कहें या कुछ और. उस नागा बाबा के अपने जीवन में आने के बाद अमर पुरी का मन जलेबी बेचने के धंधे से ऊबने लगा. एक दिन उस ने अपना स्टाल बंद कर दिया और टोहाना छोड़ कर लापता हो गया.

2 साल बाद अमर पुरी फिर से टोहाना में प्रकट हुआ. उस वक्त उस का हुलिया पूरी तरह बदला हुआ था. उस के चेहरे पर दाढ़ीमूंछ थी और सिर के बाल बढ़े हुए थे. ललाट पर लंबा तिलक, शरीर पर सफेद धोतीकुरता और कंधे पर जरी की किनारी वाला दुपट्टा पड़ा था. उस का व्यक्तित्व इस वेश में बहुत प्रभावशाली लग रहा था.

अंधविश्वास में जीने वालों को लगा निचोड़ने

टोहाना में आ कर उस ने एक मंदिर में डेरा डाल लिया और वहां आने वाले भक्तों की समस्याओं का समाधान करने का धंधा शुरू कर दिया. इस के लिए उस ने कुछ निठल्ले व्यक्तियों को पैसों का लालच दे कर अपने आप को सिद्ध तांत्रिक और बड़ा ज्योतिषी बतलाने का प्रचार आरंभ करवा दिया.

उस के द्वारा निर्धारित व्यक्ति मंदिर में आने वाले भक्तों को अमर पुरी को पहुंचा हुआ सिद्ध पुरुष बता कर उस के द्वारा सफल उपाय करने की बातें बता कर फांसते और अमर पुरी के पास भेज देते. न जाने कैसे पांचवीं

फेल अमर पुरी ने तंत्रमंत्र की कुछ किताबों को पढ़ कर कच्चापक्का ज्ञान हासिल कर लिया था.

अशिक्षित ही नहीं, पढ़ेलिखे लोग भी जो अंधविश्वास के अंधेरे में जीते आ रहे थे, अमर पुरी को अपनी समस्याएं बता कर उपाय पूछते.

सड़क पर जलेबी का स्टाल लगाने वाला अमर पुरी बातूनी और चंट चालाक बन चुका था. अपनी बातों के चक्रव्यूह में वह उन अज्ञानी, पढ़ेलिखे लोगों को ऐसा फांसता कि वह मोटा चढ़ावा चढ़ा कर अपनी समस्याओं का उपाय पूछते और उन का समाधान ले कर वापस लौट जाते.

यह एक कटु सत्य है कि यदि 10-15 लोगों पर अपने तंत्रमंत्र का हुनर दिखाया जाए तो उन में से 2-4 पर उस का मानसिक प्रभाव अवश्य पड़ता है. जिन्हें लाभ पहुंचता था, वह अमर पुरी की तंत्रविद्या का खूब बखान करते. इस से अमर पुरी को चढ़ावा चढ़ाने वालों की संख्या बढ़ती गई.

मंदिर में अमर पुरी के पास आने वालों से अव्यवस्था फैलने लगी तो पुजारी ने अमर पुरी को मंदिर के बाहर अपनी दुकान लगाने के लिए कह दिया. अमर पुरी ने मंदिर के साथ में खाली पड़ा एक कमरा किराए पर ले लिया और अपने अधकचरे ज्ञान की दुकान उस कमरे में चलाने लगा.

अमर पुरी का यह काम जम गया. पैसा बरसने लगा तो उस के पुराने व्यसनों ने सिर उठाना शुरू कर दिया. वह कीमती सिगरेट और शराब पीने लगा. उस के गुर्गे या यूं कह लिया जाए उस के कथित धर्मशिष्यों की मंडली उस के इर्दगिर्द रात को जमा होती तो फिर शौक का धुआं कमरे में उड़ाया जाता.

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