मुंबई में शायद वह कामयाब हो भी जाता, लेकिन जिन दिनों वह रवींद्र भवन में काम करता था, उन्हीं दिनों उस की मुलाकात इसी इलाके के 2 बदमाशों उजेब और अजीज उल्ला से हुई थी. ये दोनों नशा करने और कराने के लिए रवींद्र भवन के पास ही मंडराते रहते थे. इन दोनों की संगत में पड़ कर राम नशा करने लगा था. लेकिन इस के एवज में उसे अपना शोषण कराना पड़ता था.
अजीज और उजेब ने उस का पीछा मुंबई तक किया तो वह परेशान हो उठा. उस में इन बदमाशों से टकराने की हिम्मत नहीं थी. मुंबई से पहले वह भोपाल आया और फिर भोपाल से विदिशा आ गया. लेकिन इन दोनों बदमाशों से उसे छुटकारा नहीं मिला. ये दोनों विदिशा जा कर उस का शोषण करने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे. राम नायडू जब बहुत परेशान हो गया तो उस ने अपने भोपाल वाले मामा के साथ मिल कर विदिशा में अजीज उल्ला की हत्या कर दी.
यह सन 2003 की बात है. उस का यह जुर्म छुपा नहीं रह सका. पुलिस ने राम नायडू और उस के मामा को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. सन 2006 में हत्या का आरोप साबित होने पर अदालत ने उसे और उस के मामा को आजीवन उम्रकैद की सजा सुनाई.
सन 2011 तक राम नायडू जेल में रहा. इसी बीच ग्वालियर हाईकोर्ट में दायर राम नायडू और उस के मामा की जमानत याचिका मंजूर हो गई. मामाभांजा दोनों जमानत पर जेल से बाहर आ गए. राम नायडू बाहर तो आ गया, पर उस के सामने हजार तरह की दुश्वारियां मुंह बाए खड़ी थीं. उस के ऊपर कातिल का ठप्पा लगा था. ऐसे में उसे नौकरी मिलना मुश्किल था. जबकि कोई कामधंधा वह जानता नहीं था, जिस से अपना गुजरबसर कर लेता.