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अभी सड़क पर मैं ने कदम रखा ही था कि दाईं तरफ से एक तेज रोशनी मेरे करीब आ कर रुक गईं. फिर मैं ने आंसुओं से धुंधलाई हुई आंखों से एक शख्स को गाड़ी से उतर कर अपनी तरफ बढ़ते देखा. वह कोई मर्द था.

‘‘अंधी हैं आप? अभी मेरी गाड़ी के नीचे आ जातीं.’’ उस शख्स ने मेरे सामने आ कर गुस्से से कहा.

‘‘प्लीज, मुझे बचा लीजिए. मैं कुछ दरिंदों के चंगुल से निकल कर भागी हूं.’’ मैं ने रोते हुए कहा. वह गौर से मेरा जायजा ले रहा था.

‘‘रात को तनहा भटकने वाली लड़कियों के पीछे दरिंदे लग ही जाते हैं.’’ उस ने रुखाई से कहा. मैं फूटफूट कर रोने लगी.

वह शख्स बौखला गया, ‘‘मोहतरमा! खुदा के लिए चुप हो जाएं. अगर इस वक्त कोई यहां आ गया तो आप को यों रोती हुई और आप का हुलिया देख कर न जाने मेरे बारे में किस गलतफहमी में पड़ जाए.’’

तब मैं ने एक नजर खुद पर डाली. मेरे कपड़े कई जगह से फट गए थे. रेतमिट्टी से अटी हुई हालत बेहद खराब थी. मैं ने जल्दी से दुपट्टे को ठीक किया.

‘‘आप को कहां जाना है?’’ उस ने पूछा.

मैं ने बिना उस की ओर देखे उसे अपने इलाके का नाम बताया.

‘‘बैठिए.’’ उस ने एक गहरी सांस ले कर कहा.

‘‘मगर...’’ मैं ने कहना चाहा.

‘‘अगरमगर कुछ नहीं. आप को मुझ पर भरोसा करना होगा, वरना मैं चलता हूं. आप किसी भरोसे वाले का इंतजार करें.’’ वह कुछ गुस्से से बोला, ‘‘मुमकिन है कि पीछे से वही बदमाश आ जाएं, जिन से बच कर आप भागी हैं.’’

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