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अहमदाबाद में इंजीनियरिंग पढ़ने आई साल्वी ने कई पीजी देखे, पर उसे एक भी पसंद नहीं आया. किसी में सुबह का नाश्ता नहीं मिलता था तो कहीं किराया उस के अनुरूप नहीं था. जो पीजी उसे पसंद आता, वह उस के कालेज से कई किलोमीटर दूर पड़ता था. देखते भालते आखिरकार उसे एक पीजी मिल ही गया जो उस के कालेज से नजदीक भी था और उस के अनुरूप भी.

‘‘यहां तुम्हें साढ़े 8 हजार में 2 शेयरिंग वाला रूम मिलेगा. इन्हीं पैसों में तुम्हें सुबह का नाश्ता, दोपहर और रात के खाने के अलावा लौंड्री की भी सुविधा मिलेगी.’’ पीजी की मालकिन मनोरमा ने कहा.

‘‘जी मैडम,’’ साल्वी बोली.

‘‘यह मैडम मैडम नहीं चलेगा, दीदी बोलो मुझे, जैसे यहां की सारी लड़कियां बोलती हैं.’’ मनोरमा ने कहा, ‘‘और हां, एक महीने का भाड़ा एडवांस डिपौजिट करना पड़ेगा.’’

‘‘ठीक दीदी, मैं कल ही सारे पैसे दे दूंगी.’’ साल्वी बोली.

‘‘हूं…और एक बात, रात के 9 बजे के बाद पीजी से बाहर रहना मना है. बहुत हुआ तो साढ़े 9 बजे तक, उस से ज्यादा नहीं, समझी? वैसे कोई बौयफ्रैंड का चक्कर तो नहीं है न?’’ मनोरमा ने पूछा तो साल्वी ने ‘न’ में सिर हिला दिया.

‘‘वैरी गुड, वैसे कहां से हो तुम? हां, तुम्हारा कोई लोकल गार्जियन है?’’

‘‘जी, मैं पटना से हूं और मेरा कोई लोकल गार्जियन नहीं है दीदी,’’ अपने आप को खुद में समेटते हुए साल्वी ने कहा.

‘‘ठीक है तो फिर…’’ कह कर मनोरमा मुसकरा दी.

वैसे तो मनोरमा 44-45 साल की थी, पर उस ने अपने आप को इतना मेंटेन कर रखा था कि 30-32 से ज्यादा की नहीं लगती थी. देखने में भी वह किसी हीरोइन से कम नहीं लगती थी. ठाठ तो ऐसे कि पूछो मत. इतना बड़ा घर, 2-2 गाडि़यां, नौकरचाकर सब कुछ था उस के पास.

होता भी क्यों न, मनोरमा के पति का अमेरिका में अपना बिजनैस था. एक बेटा भी था जो मैंगलूर रह कर पढ़ाई कर रहा था. जब भी मौका मिलता, बाप बेटा मनोरमा से मिलने आ जाते थे. मनोरमा का भी जब मन होता, उन से मिलने चली जाती थी.

मनोरमा से बात कर के साल्वी अपने कमरे में पहुंची तो वहां उस की रूममेट निधि मिली. निधि ने मुसकरा कर साल्वी का स्वागत किया. आपसी परिचय के बाद निधि ने पूछा, ‘‘साल्वी, तुम कहां से हो?’’

‘‘जी, मैं पटना से.’’ साल्वी ने जवाब दिया.

‘‘ओह, और मैं इंदौर से.’’ कह कर निधि मुसकराई तो साल्वी भी मुसकरा दी.

‘‘यहां पढ़ने आई हो या नौकरी करने?’’ निधि ने सवाल किया.

‘‘जी, यहां के एक कालेज से मैं इंजीनियरिंग करने आई हूं और आप?’’ साल्वी बोली.

‘‘मैं नौकरी करती हूं,’’ निधि ने कहा.

साल्वी के साथ सोहम नाम का एक लड़का भी बीटेक कर रहा था. उस के साथ साल्वी की अच्छी दोस्ती हो गई थी. अच्छी दोस्ती होने का एक कारण यह भी था कि दोनों बिहार से थे. साल्वी ने जब यह बात अपने मम्मी पापा को बताई तो जान कर उन्हें बहुत अच्छा लगा कि चलो इतने बड़े अनजान शहर में कोई तो है अपने राज्य का.

सोहम ने ही साल्वी को बताया था कि उस से बड़ी उस की 2 बहनें हैं, जिन की अभी शादी होनी बाकी है. उस के पापा रेलवे में फोरमैन हैं और किसी तरह अपने परिवार का पालनपोषण कर रहे हैं. पिता को सोहम से उम्मीद है कि एक न एक दिन वह अपने घर की गरीबी जरूर दूर करेगा और उन का सहारा बनेगा.

‘‘लेकिन तुम्हारी पढ़ाई के खर्चे? वह सब कैसे हो पाता है?’’ साल्वी ने पूछा.

‘‘वैसे तो मेरा इस कालेज में मेरिट पर एडमिशन हुआ है, लेकिन फिर भी एडमिशन के वक्त पापा को जमीन का एक टुकड़ा बेचना पड़ा था, जो उन्होंने दीदी की शादी के लिए रखा था. फिर भी रहनेखाने के लिए भी तो पैसे चाहिए थे न, इसलिए मैं ने पार्टटाइम नौकरी कर ली. उस से मेरे पढ़ने और रहने खाने के खर्चे निकल जाते हैं.’’ सोहम ने चेहरे पर स्माइल लाते हुए बताया.

सोहम के बारे में जानने के बाद साल्वी उस से बहुत प्रभावित हुई, क्योंकि आज से पहले वह उस के बारे में इतना ही जान पाई थी कि वह बहुत बड़बोला और मस्तीखोर लड़का है. लेकिन आज उसे पता चला कि कालेज के बाद वह अपने दोस्तों के साथ टाइम पास नहीं करता, बल्कि कहीं पार्टटाइम नौकरी पर जाता है.

‘‘हैलो,’’ साल्वी के आगे चुटकी बजाते हुए सोहम ने पूछा, ‘‘कहां खो गईं मैडम?’’

‘‘मैडम!’’ अपने मोबाइल पर नजर डालते हुए साल्वी चौंक कर उठ खड़ी हुई.

‘‘मैडम से याद आया कि साढ़े 9 बजे के बाद पीजी से बाहर रहना मना है और देखो 10 बजने जा रहे हैं. अब मैं चलती हूं.’’

‘‘अरे 10 बज गए तो क्या हो गया? कौन सा आसमान फट गया? चलो, मैं तुम्हें पीजी तक छोड़ आता हूं और तुम्हारी उस मैडम से भी मिल लूंगा. वैसे भी तुम्हारा पीजी यहां पास में ही तो है.’’ कह कर सोहम उस के साथ चल दिया.

पीजी के नजदीक पहुंचते ही साल्वी ने उस से कहा, ‘‘सोहम, अब तुम यहां से लौट जाओ क्योंकि मनोरमा मैडम ने मुझे सख्त हिदायत दी है कि कोई लड़का पीजी के आसपास भी दिखाई नहीं देना चाहिए.’’ कह कर जैसे ही वह मुड़ी, मनोरमा मैडम बालकनी से उसे ही घूर रही थीं.

मैडम को देखते ही साल्वी घबरा गई. घबराहट के मारे उस की जुबान तालू से चिपक गई तो सोहम नीचे से बोला, ‘‘नमस्ते मैडम, हम एक ही कालेज में पढ़ते हैं इसलिए हमारी दोस्ती हो गई. वैसे भी मैं यहीं पास में ही रहता…’’ बोलते बोलते सोहम की भी घिग्घी बंध गई, जब मनोरमा की घूरती हुई नजर उस पर आ टिकी.

‘‘तुम ने तो कहा था कि तुम्हारा कोई बौयफ्रैंड नहीं, फिर?’’ मनोरमा साल्वी को घूरते हुए बोली.

‘‘नहीं दीदी, आप जैसा समझ रही हैं, वैसा कुछ भी नहीं है. हम लोग बस दोस्त हैं.’’ किसी तरह साल्वी बोल पाई.

‘‘देखो, बौयफ्रैंड रखना गलत बात नहीं है पर झूठ मुझे पसंद नहीं और वक्त तो देखो. वैसे लड़का अच्छा है.’’ कह कर मनोरमा मुसकराई तो दोनों की जान में जान आई.

‘‘कोई बात नहीं, तुम भी अंदर आ जाओ.’’ हुक्म मिलते ही सोहम भी साल्वी के पीछे लग गया.

‘‘साल्वी, तुम तो कहती थीं कि तुम्हारी मैडम बड़ी सख्त है, पर ये तो बड़ी रहमदिल है.’’ सोहम ने फुसफुसाते हुए कहा तो साल्वी ने उसे कोहनी मार कर चुप करने को कहा. यह करते हुए मनोरमा ने उसे देख लिया.

वह बोली, ‘‘क्या बातें हो रही हैं?’’

‘‘कुछ नहीं दीदी, यह कह रहा था कि अब मैं चलता हूं और कुछ नहीं.’’ साल्वी ने सोहम को इशारे से जाने के लिए कहा.

‘‘अरे इस में क्या है, आया है तो बैठने दो थोड़ी देर.’’ मनोरमा बोली.

सोहम यहां कब से है, कहां रहता है, किस चीज की पढ़ाई कर रहा है और उस के घर में कौनकौन हैं. यह सब जानने के बाद मनोरमा उस से काफी इंप्रैस हुई. फिर वह अपने बारे में भी बताने लगी, ‘‘तुम्हारी ही उम्र का मेरा भी एक बेटा है, जो मैंगलूर में मैडिकल की पढ़ाई कर रहा है.’’

धीरेधीरे सोहम की भी मनोरमा मैडम से अच्छी बनने लगी. अब वह जब भी वक्त मिलता बेधड़क मनोरमा मैडम के घर चला आता.  मनोरमा को भी उस का आना अच्छा लगता था. कुछ न कुछ छोटे मोटे काम, जो भी मनोरमा कहती, वह इसलिए कर दिया करता, क्योंकि कहीं न कहीं उस में उसे अपनी मां की छवि दिखाई देती थी.

फिर मनोरमा भी तो उसे अपने बेटे की तरह ही समझती थी. मनोरमा ने उस से यह भी कहा था कि वह उस के लिए एक अच्छी नौकरी देखेगी, जहां उसे ज्यादा सैलरी मिले और उस की पढ़ाई में भी हर्ज न हो. शायद इस लोभ से भी वह मनोरमा का कोई भी काम, जो वह कहती, हंसतेहंसते कर देता था.

जब सोहम का मनोरमा के यहां आनाजाना बढ़ गया तो एक दिन साल्वी बोली, ‘‘सोहम, क्या बात है, आजकल मनोरमा मैडम से बड़ी पट रही है तुम्हारी. कहीं कोई लोचा तो नहीं. देखो, उस औरत को कम मत समझना. मुझे तो वो बड़ी शातिर दिखती है और वैसे भी बिना अपने फायदे के वह किसी की भी मदद नहीं करती.’’

‘‘तुम लड़कियां भी न, कितनी बेकार की कहानियां बनाती हो. कितना अच्छा तो व्यवहार है उस का और तुम कहती हो कि बड़ी सख्त है.’’ कह कर सोहम ठहाका लगा कर हंसने लगा.

‘‘अच्छा छोड़ो ये सब बातें. चलो, आज हम कहीं बाहर खाना खाते हैं.’’

‘‘हांहां चलो, वैसे भी पीजी का खाना खा खा कर बोर हो गई हूं. मगर पैसे मैं दूंगी.’’ साल्वी बोली.

‘‘हां, ठीक है.’’

इस के बाद दोनों ने एक अच्छे होटल में जा कर खाना खाया. कुछ देर बातें कीं. फिर अपनेअपने रास्ते चल दिए. दोनों ऐसा अकसर छुट्टी के दिन करते थे. दोनों की छुट्टी बड़े मजे से गुजर जाती थी. इन की दोस्ती और पढ़ाई का भी हंसते खेलते एक साल चुटकियों में निकल गया. अब दूसरे साल का एग्जाम भी नजदीक था, सो सोहम और साल्वी अपनी अपनी पढ़ाई में जुट गए.

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