दौड़भाग कर के जरीना थक गई तो झूठ बोल कर उस ने एक घर में नौकरी पा ली. उस का काम बहुत अच्छा था, इसलिए घर वाले उसे पसंद करने लगे. उस ने वहां 7-8 महीने काम किया होगा कि एक दिन उस की पुरानी मालकिन वहां गई.
उस की वहां कोई रिश्तेदारी थी. जरीना को वहां देख कर वह चौंकी. इस के बाद जरीना को मक्कार और चोर बता कर उस ने उसे वहां से हटवा दिया.
एक बार फिर जरीना सड़क पर आ गई. अपनी हालत पर तरस खा कर एक बार उस के दिमाग में आया कि अब वह लोगों को बुरा बन कर दिखा दे. लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकी. काम छूट जाने से खाने के लाले पड़ गए. झुग्गी का किराया भी देना पड़ता था.
झुग्गी मालिक ने उस से कहा कि वह चाहे तो झुग्गी में बिना किराया दिए रह सकती है. लेकिन जरीना उस की इस मेहरबानी का मतलब समझ रही थी. झुग्गी मालिक की नीयत ठीक नहीं थी. लेकिन जरीना ने निश्चय कर रखा था कि वह अपनी इज्जत को खराब नहीं करेगी. इसलिए वह उस की बातों में नहीं आई.
उस के दिन इतने खराब हो गए कि दिहाड़ी पर भी काम मिलना बंद हो गया. झुग्गी का किराया तो देना ही था. एक दिन ऐसा भी आ गया कि उस के पास न पैसे थे, न कुछ खाने को. मजबूरी में पड़ोसन के घर गई तो उस ने 2 रोटियां और दाल दी.
इस तरह कब तक काम चल सकता था. कोई राह नहीं सूझी तो वह एक मस्जिद के सामने बैठे भिखारियों के साथ जा बैठी. लोग नमाज पढ़ कर निकले तो भिखारियों के साथ उस के सामने भी पैसे फेंके. इस के बाद वह घरघर जा कर भीख मांगने लगी. इस तरह वह भिखारिन बन गई.