आखिर 23 तारीख आ गई. सुबहसुबह सेठ वली भाई चांदीवाला को याद आया कि उस के पास अच्छे वक्त की यादगार के रूप में सोने की एक अंगूठी पड़ी थी, जिसे उस ने किसी अलमारी या संदूक में रख छोड़ा था. यह खयाल आते ही वह छलांग मार कर बिस्तर से उठा और अंगूठी की तलाश शुरू कर दी. उस की बीवी उस वक्त बावर्चीखाने में मसरूफ थी.
तलाशी के दौरान वह सोचने लगा कि कहीं वह अंगूठी अमीर बाई के हाथ न लग गई हो. लेकिन 15-20 मिनट के बाद उसे अंगूठी मिल गई तो वह उसे हथेली पर रख कर उस के वजन का अंदाजा लगाने की कोशिश करने लगा. इत्तफाक से तभी अमीर बाई कमरे में पहुंच गई. वली भाई ने जल्दी से मुट्ठी बंद कर ली और मुसकरा कर बीवी की तरफ देखने लगा.
अमीर बाई ने पहले खुली हुई अलमारी की तरफ शक की नजरों से देखा. फिर वली भाई की बंद मुट्ठी की तरफ देखते हुए बोली, ‘‘ये क्या है? इधर क्या तलाश रहे हो?’’
‘‘कुछ नहीं, कुछ नहीं.’’ वली भाई ने जल्दी से कहा, ‘‘बीड़ी का बंडल तलाश कर रहा था.’’
‘‘मुझे सब मालूम है,’’ अमीर बाई बोली, ‘‘तुम जेवर तलाश कर रहे हो. लेकिन इधर कुछ नहीं मिलेगा. मैं ने उसी दिन सारा जेवर मां के घर रखवा दिया था. और ये मुट्ठी में क्या है?’’
‘‘वाह री अमीर बाई कर्नाटकी, तूने तो वह गाना याद दिला दिया— नन्हेमुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है. मुट्ठी में है तकदीर हमारी, हम ने किस्मत को बस में किया है.’’