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शाम होने के बाद वली भाई जुए के एक अड्डे पर जा पहुंचा. वहां कई तरीकों से जुआ खेला जाता था. ताश से, कैरम बोर्ड के खेल पर, लूडो पर, सड़क पर गुजरने वाली गाडि़यों के नंबरों पर, नोटों के नंबरों पर, मसलन भाई लोग आसपास होने वाले हर काम पर शर्त लगा देते थे.

वली भाई 5 आदमियों के ग्रुप में शामिल हो गया. उन में से एक शख्स ने, जिस का नाम कासिम भाई था, सौ रुपए के नोटों की गड्डी हाथ में पकड़ रखी थी और नोटों के नंबरों पर शर्त चल रही थी.

चारों जुआरी गड्डी के निचले नोट के पहले और आखिरी नंबर के बारे में ऐगी बैगी वाला अनुमान लगाते, जिस का अनुमान सही निकलता वह नोट उस का हो जाता.

वली भाई ने जाते ही कहा, ‘‘पहला नंबर ऐगी और दूसरा बैगी.’’ साथ ही सौ रुपए का नोट मेज पर डाल दिया. बाकी जुआरियों में से 2 ने पहला नंबर ऐगी बताया. दूसरे 2 ने दोनों नंबर बैगी बताए. कासिम अली ने नोट निकाल कर नंबर दिखाया तो वली भाई के सिवा किसी का अंदाजा ठीक नहीं निकला.

वली भाई कासिम अली के हाथ से नोट झपटते हुए बोला, ‘‘एक शर्त मेरे साथ भी हो जाए. 100 के 200 और 500 के हजार दूंगा.’’

हाजी सुलेमान कपाडि़या बोला, ‘‘किस पर शर्त लगाओगे?’’

वली भाई चांदीवाला जेब पर हाथ मारते हुए बोला, ‘‘मेरी जेब में कुछ रकम है. बोलो 5 हजार से कमती है या ज्यास्ती?’’

गफ्फार भाई छाते वाला बोला, ‘‘कौन सी जेब की बात करते हो, एक जेब की या सब जेबों की?’’

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