इस के बाद उन की मुलाकातें होने लगीं. वे जब भी मिलते, घंटों एकदूसरे के साथ रहते. रोक्सेन को वाकर की नजदीकी बेहद सुकून देती थी. उस के मिलने से मन तो तृप्त हो जाता था, लेकिन तन की प्यास वैसी ही बनी रहती थी. वाकर एकांत में रोक्सेन के किसी अंग को छू लेता या होंठों को चूम लेता, तो उस की देह में आग सी लग जाती. मन करता कि वाकर की बांहों में समा जाए और उस से कहे कि वह उस के प्यासे तन को तृप्त कर दे. लेकिन वह ऐसा इसलिए नहीं कह पाती थी, क्योंकि वह जगह इस के लिए सुरक्षित नहीं होती थी.
पति की बेरुखी से विचलित वाकर की नजदीकी पा कर रोक्सेन ज्यादा दिनों तक अपनी इच्छा दबाए नहीं रह सकती थी. उस ने वाकर से सीधे तो नहीं कहा, लेकिन एक दिन घुमाफिरा कर अपने मन की बात कह ही दी, ‘‘वाकर, कहीं ऐसी जगह चलते हैं, जहां हम दोनों के अलावा कोई और न हो.’’
‘‘ठीक है, हम कल सुबह किंगस्टन झील पर पिकनिक मनाने चलते हैं.’’ वाकर ने रोक्सेन के दिल की मंशा भांप कर कहा.
अगले दिन पति काम पर चला गया और बच्चे स्कूल चले गए, तो रोक्सेन वाकर के साथ पिकनिक पर निकल गई. शहर से किंगस्टन झील लगभग 30 किलोमीटर दूर थी. वाकर अपनी लौरी से रोक्सेन को वहां ले गया. किंगस्टन एक छोटी सी झील थी. उस के दोनों ओर छोटेबड़े पहाड़ थे. वहां इक्कादुक्का लोग ही नजर आ रहे थे. वे भी प्रेमी युगल थे, जो इन्हीं की तरह एकांत की तलाश में यहां आए थे. रोक्सेन और वाकर भी एक छोटी सी पहाड़ी के पीछे जा पहुंचे. वहां से झील के आसपास का नजारा तो देखा जा सकता था, लेकिन उन तक किसी और की नजर नहीं पहुंच सकती थी. इसी का फायदा उठा कर वे एकदूसरे की बांहों में समा गए.