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‘‘कमबख्त, कमीनी किसे फोन कर रही थी? हिंदुस्तान कर रही थी ना? अगर तुझे उन  पिल्लों से इतनी ही मोहब्बत थी तो यहां मरने क्यों चली आई? अगर तेरी हरकतें ऐसी ही रहीं तो तू एक न एक दिन मुझे जेल भिजवा कर रहेगी.’’ कह कर असलम ने मेरे हाथ से रिसीवर ले कर पटक दिया और मुझे ऐसा धक्का दिया कि मैं सिर के बल गिर पड़ी.

इस के बाद मुझे गंदीगंदी गालियां देते हुए बाहर से ताला लगाया और सीढि़यां उतर गया. असलम जितना चालाक था, उतना ही फुर्तीला और ताकतवर भी था. वह गले तक काले धंधों में डूबा था. अमेरिका की पुलिस सरगर्मी से उस की तलाश कर रही थी. मेरी बदकिस्मती यह थी कि उस के हर जुर्म में मैं बराबर की हिस्सेदार थी. यही एक वजह थी कि चाह कर भी मैं उस के घर से निकल नहीं पा रही थी.

मेरे पास अब आंसू बहाने के अलावा दूसरा कोई उपाय नहीं था? इस के लिए मैं किसी और को दोष भी नहीं दे सकती थी. मैं ने जो किया था, उसर की सजा मुझे मिल रही थी.

असलम जिसे मैं ने जीजान से चाहा था, जिस के लिए मैं ने अपना घर, पति और तीन प्यारेप्यारे मासूम बच्चों को भुला दिया था, आज वही असलम मुझ से इस तरह बदसलूकी करेगा, मैं ने सपने में भी नही सोचा था. जब से मैं अमेरिका आई हूं, तब से मेरा यही हाल है. ताले में बंद रहना और उस के हर नाजायज धंधे में शामिल होना.  मेरी खूबसूरती का इस से अच्छा इस्तेमाल और क्या हो सकता था. हर वह काम, जो असलम वर्षों में नहीं कर सका था, उसे मैं ने चुटकी बजा कर अपनी खूबसूरत अदाओं से कर दिया था.

मैं जब भी भागने की कोशिश करती, वह बेरहमी से मेरी पिटाई करता. उस की गिरफ्त से निकलना मेरे लिए नामुमकिन था. लेकिन मैं हिम्मत हारने वालों में नहीं हूं, मैं एक बार, सिर्फ एक बार अपने उन मासूम बच्चों को सीने से लगा कर प्यार करना चाहती हूं, जिन्हें 10 साल पहले मैं असलम के प्यार में पागल हो कर हिंदुस्तान छोड़ आई थी.

बच्चों की याद त्रिशूल बन कर मुझे सालती रहती थी. मैं जब भी तनहा होती थी, तीनों बच्चों के चेहरे मेरी आंखों के सामने तैरने लगते थे. जब मैं उन्हें छोड़ कर आई थी, सृष्टि 9 साल की थी, बबलू 4 साल का और दीपू 2 साल का. तीनों बच्चे मेरे सीने से चिपट कर सोते थे. कितनी मशगूल जिंदगी थी वह  मेरी. एकएक बातें किताब के पन्नों की तरह खुलने लगी थीं.

सृष्टि और बबलू सुबह 7 बजे ही स्कूल चले जाते थे. उन के लिए टिफिन बनाना, उन्हें तैयार करना, बच्चों को स्कूल भेज कर घर की साफसफाई करना और दोनों समय के खाने में दिन कैसे बीत जाता, पता ही नहीं चलता था.  और आज मैं विदेश में अकेली बैठी हूं. चारों ओर कुहासा और बर्फ से ढकी चोटियां हैं. मैं ऐसे दलदल में फंसी हूं, जहां से चाहूं तो भी नहीं उबर सकती.

शुरू से ही आशावादी व भरपूर जीवन जीने की मैं आदी थी. एक मस्त हिरनी की तरह कुलांचे भरना मेरी फितरत थी. 3 बच्चों की मां होने के बावजूद मुझ में चंचलता पहले जैसी ही थी. घर का काम निपटा कर मैं पूरे मन से अपना शृंगार करती और 5 बजते ही मैं लौन में चहलकदमी करने लगती. आतेजाते मर्द जब मुझ पर चाहतभरी निगाह डालते तो मैं उसे अपनी तारीफ और उपलब्धि समझ कर फूली न समाती. मेरे गालों पर मोगरे के फूल दहकने लगते.

इसी चंचल स्वभाव की वजह से 16 साल की उम्र में ही मैं सागर से प्यार कर बैठी थी. कैंब्रिज स्कूल में हम दोनों साथ पढ़ते थे. रोजरोज मिलने से हमारी दोस्ती जल्दी ही प्यार में बदल गई. मैं उसे बेपनाह मोहब्बत करने लगी. हर पल मेरी जुबान पर उसी का नाम होता. हम जब भी मिलते, अपने आशियाने के सपने संजोते. वह भी शिद्दत से मेरा दीवाना था.

उस की दीवानगी को देखते हुए एक दिन मैं ने अपनी मां को सब कुछ बता कर कहा कि ‘मैं सागर से ही शादी करूंगी और जल्दी ही करूंगी.’ मां ने बहुत समझाया. पापा ने भी कहा कि पहले पढ़ाई पूरी कर लूं, उस के बाद मैं जो कहूंगी, वह वही करेंगे. मैं ने घर से भाग जाने की धमकी दी. मेरे उद्दंड स्वभाव के आगे किसी की न चली और लाख पहरों के बावजूद मैं ने घर से भाग कर सागर से शादी कर ली. शायद आज यही मेरे जीवन की सब से बड़ी भूल साबित हुई.

मैं ने मांबाप की मरजी के खिलाफ जो कदम उठाए, उस से फिर कभी मैं उन की दहलीज पर लौट नहीं सकी. सागर का जुनून और दिलफरेब मोहब्बत नकली हीरे से कम नहीं थी. बीवी और महबूबा में एक बुनियादी फर्क होता है. इसी बुनियादी फर्क के तहत मेरी हदें निश्चित कर दी गईं.

शादी के बाद सागर पूरी तरह से मेरा हो गया था, इसलिए तनमन से मैं उस की सेवा करने लगी. दिनरात मैं उस के प्यार में डूबी रहने लगी. अपनी किस्मत पर मुझे रश्क आने लगा था कि इतनी बड़ी कोठी का एकलौता वारिस मुझ पर सौ जान से फिदा है. ईश्वर ने मुझे रूप भी ऐसा दिया था कि जो भी देखता, ठगा सा देखता रह जाता. दूध में केसर डाल कर जो रंग आता है, उस रंग की काया पर कमर तक झूलते काले स्याह बाल, लंबा कद. लेकिन जल्दी ही हमारी मोहब्बत का सुरूर बुलबुले की तरह खत्म हो गया.

परदा उठते ही जो हालात सामने आए, वे मेरी जिद और नासमझी के अंजाम थे. अपने मांबाप के जिंदगी भर के तजुर्बे को ठुकरा कर मैं ने जो प्रेमविवाह किया था, उस में सीरत वाला पहलू पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया था. शायद प्रेमविवाह में ऐसा ही होता है. सूरत इस में अहम होती है. सागर की शानदार पर्सनैल्टी की मैं दीवानी सी हो गई थी. मेरे मांबाप, भाई जब कभी उस के खिलाफ कुछ कहते, मैं नाराज हो कर घंटों रोती रहती और भूख हड़ताल कर बैठती. प्यार में अंधी हो कर मैं सच सुनना नहीं चाहती थी.

सागर एक 5 स्टार होटल के डिस्कोथैक का मैनेजर था, जहां रातें शराबशबाब में डूबी रहती थीं. उस की ड्यूटी रात की होती थी. वह सुबह घर आता तो बेहद थका और टूटा हुआ होता. आते ही बिस्तर पर ढेर हो जाता. पूरे दिन सोता. शाम को उठता और फ्रैश हो कर होटल चला जाता.

इस तरह महीनों हमारे बीच कोई बातचीत न होती. अगर कभी मैं कुछ कह देती तो उस के मुंह में ऊलजुलूल जो आता, कहने लगता. उस की इन बातों से हम दोनों के बीच एक ऐसी खाईं बनती चली गई, जिसे पाटना नामुमकिन सा हो गया. मैं समझ गई कि यह बड़े बाप की वह बिगड़ी हुई औलाद है. मैं घुटघुट कर जीने लगी.

उसी घुटन में एक दिन मैं सो रही थी कि अचानक मेरे फोन की घंटी बजी. फोन करने वाले ने कहा, ‘‘आप मुझे नहीं जानतीं, लेकिन मैं आप को अच्छी तरह जानता हूं. मैं आप का शुभचिंतक हूं, इसलिए आप को चेता रहा हूं कि आप अपने पति पर नजर रखिए. आजकल वह रेशमा नाम की खूबसूरत लड़की के साथ अकसर नाचतेगाते, खातेपीते नजर आते हैं.’’

मैं सागर से वैसे ही परेशान थी, इस गद्दारी से मैं बिफर उठी. उस दिन हम दोनों के बीच काफी कहासुनी हुई. सागर ने सारे आरोपों को गलत बताया. लेकिन शक का जहर मेरी नसनस में फैल चुका था. वह अजनबी न जाने मेरा हमदर्द था या खैरख्वाह या दुश्मन, जो मेरा अच्छा सोच रहा था. इस के बाद उस ने मुझे न जाने कितने फोन किए. हर फोन में सिर्फ सागर की बुराई होती. सागर सुबह आता तो शराब की बू से कमरा भर जाता. मेरे नाम से उसे चिढ़ सी हो गई थी.

मेरा हर मशवरा उसे नागवार गुजरता. सागर की रात की ड्यूटी से मेरा और बच्चों का जीवन घर की चारदीवारी में कैद हो कर रह गया था. पति, 3 बच्चे और सासससुर की जिम्मेदारी उठातेउठाते मैं चिड़चिड़ी और बेरहम होती गई. जिस तरह बिना पानी के धरती सूखती जाती है, प्यार के बिना कुछ वैसी ही हालत मेरी हो गई थी. मैं प्यार के 2 बोल सुनने के लिए तरसती रहती थी.

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