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इस बीच मैं हवालात जा कर जीते से लौकेट उतरवा लाया था. वह लौकेट मैं ने वली खां के सामने रख कर पूछा, ‘‘ध्यान से देख कर बताओ, ये लौकेट किस का है?’’

वली खां ने जब उस लौकेट को गौर से देखा तो उस के चेहरे का रंग बदल गया. वह हकला कर बोला, ‘‘जनाब, यह तो मेरी बीवी रजिया का लौकेट है.’’

‘‘बीवी को इसे तुम ने ही दिया होगा. कहां से आया यह तुम्हारे पास?’’

‘‘जी, मेरी वालिदा ने बनवाया था. इस के अलावा और भी गहने थे?’’

मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारी वालिदा ने बनवाया था या तुम ने डाके में छीना था?’’

‘‘डाका...कैसा डाका...यह आप क्या कह रहे हैं जनाब?’’ उस का मुंह हैरत से खुला रह गया.

‘‘वही डाका जो तुम ने 5 साल पहले अमृतसर में मेहता सेठ के घर डाला था और तुम्हारी गोली लगने से मेहता की मौत हो गई थी.’’

थानेदार बख्शी हैरानी से देख रहा था. उस की नजर में वली खां एक शरीफ इंसान था. पर मैं पूरे दावे के साथ कह सकता था कि वह एक नामीगिरामी डाकू था. मैं ने करीब खड़े हवलदार नादिर से कहा, ‘‘वली खां को हथकड़ी लगा कर इस के सही ठिकाने पर पहुंचाओ.’’

वली खां को हवालात में बंद कर दिया गया. पूछताछ के दौरान पता चला कि उस का नाम वली खां नहीं, बल्कि अब्दुल सत्तार था. चोरीडकैती और अपहरण उस का मुख्य धंधा था. जामनगर में वह नाम बदल कर रह रहा था.

मैं और थानेदार बख्शी अभी वली खां से पूछताछ कर ही रहे थे कि एक सिपाही घबराया हुआ आया. उस ने हमें अलग ले जा कर बताया कि हवालाती जीते की जान खतरे में है. वली खां ने सिपाही कीमतीलाल को रिश्वत दे कर एक खत अपने दोस्त शेरू तक पहुंचाने के लिए भेजा है. वली खां ने खत में लिखा है कि वह उस की बीवी का काम तमाम कर दे और फरार हो जाए.

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