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डाक्टर नवेद बहुत थक चुका था. उस ने लगातार 5 बड़े औपरेशन किए थे. वह अपने कमरे में आ कर बैठा तो उसे बहुत तेजी से कौफी की तलब लगी. उस ने इंटरकाम पर नर्स से कौफी के लिए कह कर अपने आप को एक सोफे पर गिरा दिया और आंखें बंद कर के टांगें पसार दीं. कुछ ही देर में आंख भी लग गई. अचानक किसी शोर से उस की आंख खुली तो वह हड़बड़ा कर उठ बैठा.

कमरे के बाहर एक औरत चीखचीख कर कह रही थी, ‘‘मुझे अंदर जाने दो, डाक्टर से बात करने दो, मेरे शौहर की हालत बहुत नाजुक है.’’

‘‘इस वक्त डाक्टर साहब मरीज नहीं देखते. तुम कल शाम को मरीज को ले कर आना.’’ नर्स उसे समझा रही थी.

‘‘मेरे शौहर की जान खतरे में है और तुम कल आने के लिए कह रही हो,’’ उस औरत ने पूरी ताकत से चीख कर कहा, ‘‘तुम औरत हो या जानवर, चलो हटो सामने से.’’

फिर अगले ही लम्हे दरवाजा एक धमाके से खुला और एक औरत पागलों की तरह अंदर दाखिल हो गई. उस के पीछे नर्स थी, जो उसे अंदर जाने से रोक रही थी. जैसे ही उस औरत की नजर डा. नवेद पर पड़ी, वह उस की तरफ बिजली की तरह लपकी. लेकिन नवेद के पास पहुंच कर वह ठिठक गई. उस ने नवेद को देखा तो आंखें हैरत से फैल गईं. वक्त की नब्ज रुक सी गई. वह कुछ लमहे तक सकते के आलम में खड़ी रही, फिर उस के होंठों में जुंबिश हुई, ‘‘नवेद… तुम…!’’

‘‘जैतून!’’ नवेद झटके से उठ खड़ा हुआ.

जैतून की आंखों के सामने अंधेरा सा छा गया. वह किसी नाजुक सी शाख की तरह लहराई, ‘‘मेरा सुहाग बचा लो नवेद… नहीं तो मैं…’’ इस के आगे वह एक भी लफ्ज नहीं बोल सकी. अगर नवेद तेजी से आगे बढ़ कर उसे संभाल न लेता तो वह फर्श पर गिर चुकी होती.

जैतून पलंग पर बेहोशी के आलम में पड़ी थी. नवेद पलंग के पास कुर्सी पर बैठा कौफी की चुस्की ले रहा था. उस की नजरें जैतून के हसीन चेहरे पर जमी थीं. यह वही चेहरा था, जो आज भी उस के दिल पर नक्श था. उसे देखते देखते वह बहुत दूर चला गया. उस के दिमाग की खिड़कियां खुलने लगीं. उस ने सोचा, जैतून जो कभी उस की मोहब्बत थी, उन दोनों में बेइंतहा प्यार था. उस की जिंदगी का हर लम्हा जैतून की याद में जकड़ा हुआ था. क्या आज भी जैतून के दिल के किसी कोने में उस की याद बसी होगी?

जैतून तो उस की मोहब्बत में पागल थी. फिर बेवफा कौन था? वह वक्त, जिस पर किसी का अख्तियार नहीं होता है, जो किसी का नहीं होता है. वायदों की जंजीर को किस ने तोड़ा था, उस ने या जैतून ने? जैतून ही तो बेवफा निकली थी. कहा था, ‘मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.’ उस ने जैतून से सिर्फ 5 साल इंतजार करने के लिए कहा था. वे 5 साल पलक झपकते गुजर गए थे. लेकिन जब वह वापस आया तो सुना कि जैतून की शादी हो चुकी है.

जब जैतून किसी की हो चुकी थी तो उस की तलाश बेकार थी. उस ने अपने सीने में एक गहरा जख्म ले लिया था, जिस की दवा खुद उस के पास नहीं थी. जिस के पास दवा थी, वह किसी और की हो चुकी थी. अब अचानक जैतून उस की राह में आ कर खड़ी हो गई थी और आज देख कर कि वाकई वह किसी और की बन चुकी है.

नवेद को महसूस हो रहा था, जैसे उस के दिल में बर्छियां उतरती जा रही हों. वह सीने में किसी जख्मी परिंदे की तरह फड़फड़ाता हुआ दिल थामे सोचने लगा, आखिर जैतून और उस के शौहर का क्या जोड़ है? शाहिद जैतून के किसी लायक भी तो नहीं है.

नवेद ने जैतून के जिस्म पर परखने वाली एक नजर दौड़ाई. 3 बच्चों की मां बन कर भी वह नहीं ढली थी, बल्कि और भी नशीली हो गई थी. तकदीर ने एक शहजादी को एक मामूली से गुलाम की झोली में डाल दिया था. सोचतेसोचते नवेद का दिमाग अचानक बहकने लगा. वह एक खयाल से अचानक यूं उछल पड़ा, जैसे उसे करंट लगा हो. उस ने सोचा, जैतून को हासिल करने का उसे सुनहरा मौका मिल रहा है.

सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी. वह बड़ी आसानी से जैतून के शौहर को मौत की नींद सुला सकता है. कोई जैतून के शौहर की मौत को चैलेंज भी नहीं कर सकेगा. पर जैतून को क्या वह अपना बना पाएगा? क्या वह यह सदमा सह सकेगी? पर दुनिया की न जाने कितनी औरतें यह सदमा सह जाती हैं. वे मर तो नहीं जातीं, जैतून भी नहीं मरेगी. वह खुद ही नहीं, वक्त भी जैतून के जख्मों को सुखा देगा. दुनिया में वक्त से बड़ा कोई मरहम नहीं है. जैतून बच्चों के लिए उस का सहारा पा कर अपने शौहर की मौत को जल्द ही भुला देगी.

मगर जैतून अपने शौहर की मौत की सूरत में उस पर शक भी तो कर सकती है. नवेद के दिमाग में यह खयाल बिजली की तरह आते ही उस का सारा जिस्म पसीने में डूब गया. नवेद ने इस खयाल को जेहन से झटक दिया. उस का काम किसी की जान लेना नहीं है. बरसों से बसेबसाए घर को उजाड़ना दरिंदगी है, कत्ल है. एक डाक्टर होने के नाते खुदगर्जी के अंधे जुनून में डूब जाना उस के लिए बहुत ही शर्मनाक होगा. नवेद एक नई सोच, नए हौसले के साथ सिर्फ और सिर्फ एक डाक्टर बन कर जैतून के शौहर को देखने के लिए उठ खड़ा हुआ.

चेक करने पर नवेद ने जाना कि औपरेशन के सिवा और कोई चारा नहीं है. वह शाहिद के औपरेशन से फुरसत पाने के बाद जब औपरेशन थिएटर से निकला तो उस ने अपने आप को बेहद हल्काफुल्का और शांत महसूस किया. उस ने जैतून को बेचैनी से इंतजार करते पाया. उस ने बेताबी से उस के पास आ कर पूछा, ‘‘शाहिद कैसे हैं?’’

‘‘वह अब खतरे से बाहर हैं.’’ नवेद ने मुसकराते हुए उसे तसल्ली दी.

‘‘नवेद,’’ जैतून की आंखें आंसुओं से भर गईं, ‘‘मैं तुम्हारा यह एहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगी.’’

‘‘मगर जैतून, हमें तुम्हारे शौहर की जान बचाने के लिए उन की टांग काटनी पड़ी.’’ नवेद ने ठहरठहर कर धीमे लहजे में बताया.

जैतून की आंखों में अंधेरा सा छा गया. उस ने सदमे से भर कर अपना सीना दबा लिया, ‘‘मेरे अल्लाह! यह क्या हुआ.’’

‘‘इस के सिवा और कोई चारा नहीं था,’’ नवेद ने कहा, ‘‘टांग में जहर फैल गया था. अगर पहले ही इलाज पर पूरी मेहनत की गई होती तो यह नौबत न आती.’’

नवेद अपनत्व से आगे बोला, ‘‘जैतून, इस क्वार्टर में तुम अपने बच्चों के साथ रह सकती हो. जब तक शाहिद पूरी तरह से सेहतमंद नहीं हो जाते, तुम्हें किसी तरह की फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं है. अलबत्ता शाहिद अस्पताल के कमरे में ही रहेंगे, क्योंकि उन्हें जल्दी ठीक होने के लिए आराम की सख्त जरूरत है. इस क्वार्टर में रहने पर बच्चों की वजह से उन्हें आराम नहीं मिल पाएगा.’’

जैतून ने एक पोटली नवेद के सामने रखी तो हैरत से उस ने जैतून की तरफ देखा, ‘‘यह क्या है जैतून?’’

‘‘गहने,’’ वह नवेद से नजरें नहीं मिला सकी, इसलिए नीची कर के बोली, ‘‘यह तुम्हारी और औपरेशन की फीस है. शाहिद के कमरे, खानेपीने और दूसरे मेडिकल खर्चे के लिए मेरे पास कुल पूंजी यही है. अगर इन गहनों को बेचने के बाद भी रकम कम पड़े तो मैं बाद में थोड़ाथोड़ा कर के अदा कर दूंगी.’’

‘‘जैतून!’’ नवेद की आवाज में दुख भर गया, ‘‘क्या तुम मुझे अपनी नजरों में जलील करना चाहती हो? क्या तुम मेरे जज्बात और हमदर्दी की कीमत लगा रही हो?’’

‘‘नहीं नवेद,’’ वह झुकी पलकों से फर्श को घूरती रही, ‘‘मैं आज खुद ही अपनी नजरों में जलील हो रही हूं. मैं खुद भी नहीं जानती कि तुम्हारे एहसानों का बदला कब और कैसे अदा करूं.’’

‘‘मैं इन गहनों को हाथ लगाना तो दूर, इन की तरफ देखना भी पसंद नहीं करूंगा,’’ नवेद ने उस के चेहरे पर नजरें जमा कर कहा, ‘‘ये गहने तुम्हारे सुहाग, प्यार और मोहब्बत भरी जिंदगी की निशानियां हैं. बस, मैं तुम से आज सिर्फ एक ही सवाल करना चाहता हूं.’’

‘‘मगर आज तुम अपने सवाल का जवाब पा कर क्या पाओगे नवेद? मैं ने अतीत को, और अपने आप को भुला दिया है.’’

‘‘मुझे क्या पाना है जैतून,’’ नवेद ने गहरी सांस ली, ‘‘तुम्हारे जवाब से मेरे दिल में जो बरसों से फांस गड़ी है, वह निकल जाएगी.’’

‘‘तुम मुझ से यही पूछना चाहते हो न कि मैं ने जब तुम से इंतजार करने का वायदा किया था तो तुम्हारा इंतजार क्यों नहीं किया? झूठ क्यों बोला?’’

‘‘हां जैतून,’’ नवेद ने सिर हिला दिया, ‘‘जब मैं ने वापस आ कर सुना कि तुम ने शादी कर ली है तो मेरे दिल पर कयामत सी टूट पड़ी.’’

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