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दिसंबर की ठिठुरती सर्दी के दिन थे. उतनी रात को हर आदमी बिस्तर में दुबका हुआ था, लेकिन शहरीना इस सर्दी से  बेखबर खिड़की खोले दीवार से टेक लगाए लगातार बाहर की तरफ देख रही थी. इंतजार के पल कितने दर्दनाक होते हैं, यह वही जानती थी. यही इंतजार उस का नसीब बन गया था.

पहले दिन से ही अमीर उसे इंतजार कराने लगा था. हमेशा की तरह आज भी सुबह जाते समय उस ने शाम को तैयार रहने के लिए कहा था, क्योंकि आज उन की शादी की पहली सालगिरह थी, जिस की याद शहरीना ने अमीर को उठते ही दिला दी थी. शहरीना इस अवसर को यादगार बनाना चाहती थी.

शहरीना शाम 7 बजे से तैयार बैठी थी, लेकिन 7 से 8 बजे और 8 से 9, मगर अमीर अभी तक नहीं आया था. किन्हीं अंदेशों के तहत शहरीना ने उस के औफिस में फोन किया तो वहां से जवाब मिला कि साहब मीटिंग में हैं. यह सुन कर वह झुंझला उठी थी. लेकिन वह जानती थी कि अमीर के लिए बिजनेस ही सब कुछ है, इसलिए अकसर वह शहरीना को भूल भी जाता था. लेकिन शहरीना के दिल में मोहब्बत की बेमिसाल महक थी, जो उसे सब्र करने को उकसाती रहती थी.

एक बजने वाला था, तब अमीर की गाड़ी का हौर्न सुनाई दिया. तब तक शहरीना क्षुब्ध हो कर लेट गई थी. अमीर जब कमरे में दाखिल हुआ तो वह कंबल ओढ़े आंख बंद किए लेटी रही. कुछ देर वह उसे देखता रहा, उस के बाद डे्रसिंग रूम की ओर चला गया.

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