वकील ने अजीम से पूछ कर तारीख ले ली. 3 तारीखें यूं ही निकल गईं. चौथी तारीख पर मैं ने उसे जिरह के लिए तलब कर लिया. उस की पूरी तैयारी नहीं थी. उस ने जवाब में लिखा था कि ताहिरा उस की बीवी जरूर थी, लेकिन वह शादी के कुछ दिनों बाद ही सारे गहने ले कर अपने किसी यार के साथ भाग गई थी. बदनामी के डर से उस ने रिपोर्ट नहीं लिखाई. वह खुद घर छोड़ कर गई थी. इसलिए उस ने मेंटीनेंस एलाउंस लेने से मना कर दिया था.
सच बोलने का हलफ लेने के बाद मैं ने पूछा, ‘‘बुखारी साहब, बेगम ताहिरा का दावा है कि वह आप की कानूनी और शरई बीवी है. इस पर आप क्या कहना है?’’
‘‘जो बीवी महीनों से घर से गायब हो, उस का होना भी न होने के बराबर है.’’ अजीम ने जवाब में कहा तो जज ने टोका, ‘‘जज्बाती बयानबाजी की जरूरत नहीं है. हां या ना में जवाब दो.’’
उस ने जल्दी से कहा, ‘‘जी हां, वह शरई और कानूनी लिहाज से मेरी बीवी है, लेकिन प्रैक्टिकली कुछ भी नहीं है.’’
‘‘आप ने जवाब में लिखा है कि शादी के कुछ दिनों बाद वह अपने किसी यार के साथ भाग गई थी. क्या आप उस ‘यार’ का नाम बताएंगे?’’ मैं ने पूछा.
‘‘मैं नाम कैसे बता सकता हूं. ऐसे काम कोई बता कर थोड़े ही करता है.’’ अजीम झुंझलाया.
‘‘यानी आप को ‘यार’ का नाम नहीं मालूम,’’ मैं ने कहा, ‘‘यह तो बता ही सकते हो कि वह रहने वाला कहां का था?’’