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आंख खुलते ही इफ्तिखार अहमद को किचन से आने वाली बच्चों की आवाजें सुनाई दीं. वे आवाजें खुशी से चहकने की थीं. बच्चे इस तरह चहक रहे थे, जैसे परिंदे रात खत्म होने पर सुबह का उजाला देख कर चहकते हैं. उन आवाजों में सब से प्यारी आवाज दुआ की थी.

दुआ इफ्तिखार अहमद की छोटी बेटी थी. बहुत ही प्यारी, एकदम बार्बी डौल जैसी. इफ्तिखार अहमद हाईकोर्ट के मशहूर और कामयाब वकील थे. उन के मुकदमा हाथ में लेते ही सामने वाला समझ लेता था कि वह मुकदमा हार चुका है. अदालत में उन के खड़े होते ही जज भी होशियार हो जाता. क्योंकि उन की दलीलें कानून की बेहतरीन मिसालें होती थीं और दुनिया भर के माने हुए कानूनी उदाहरण उन की बहस का हिस्सा होते थे.

आम लोग ही नहीं, उन के साथी वकील और जज भी उन्हें कानून का जिन्न कहते थे. लेकिन उन लोगों को पता नहीं था कि इस जिन्न की जान अपनी नन्ही सी बेटी दुआ में बसती है. वह दुनिया में अगर सब से ज्यादा किसी से मोहब्बत करते थे तो वह उन की बेटी दुआ थी. किसी से हार न मानने वाले इफ्तिखार अहमद नन्ही सी दुआ के सामने छोटी से छोटी बात पर घुटने टेक देते थे.

इफ्तिखार अहमद के 4 बच्चे थे, 3 बेटे और बेटी दुआ. बच्चों में वही सब से छोटी थी. 6 साल की दुआ का स्कूल में एक साल पहले ही दाखिला कराया गया था. इफ्तिखार अहमद अभी उस का दाखिला नहीं कराना चाहते थे, लेकिन उन की बीवी मदीहा, जो एक स्कूल में पढ़ाती थी, की जिद के आगे उन की एक न चली और नजदीक के एक स्कूल में उस का दाखिला करा दिया गया था.

लेकिन दुआ का दाखिला कराने से पहले इफ्तिखार अहमद ने खुद स्कूल जा कर प्रिंसिपल और वहां पढ़ाने वाली अध्यापिकाओं से मिल कर तसल्ली की थी. जब वहां की प्रिंसिपल और अध्यापिकाओं ने उन्हें तसल्ली कराई थी कि वे दुआ को संभाल लेंगी, इस के बाद ही उन्होंने वहां उस का नाम लिखाया था.

इफ्तिखार आंखें बंद किए उन आवाजों का मजा ले रहे थे. तभी उन्हें याद आया कि आज का दिन उन के लिए बहुत खास है. आज अली भाई के मुकदमे की तारीख थी और उस की जमानत पर सुनवाई होनी थी. अली भाई एक फार्मास्युटिकल कंपनी का मालिक था. कुछ महीने पहले उस की कंपनी की बनी एक दवा के इस्तेमाल से बीमारी और मौत का सिलसिला सा चल पड़ा था.

जांच और परीक्षण के बाद पता चला था कि उस दवा में एक कैमिकल की मात्रा जरूरत से कई गुना ज्यादा थी. वही मौत का कारण बन गया था. अली भाई पैसे वाला आदमी था. सरकार में बैठे लोगों तक उस की पहुंच थी. लोगों को दिखाने के लिए पुलिस ने काररवाई की और कंपनी के कुछ छोटेमोटे कर्मचारियों को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

लेकिन मीडिया इस से संतुष्ट नहीं हुआ और उस ने असलियत का पता लगा लिया. कंपनी के कैमिकल इंजीनियर का स्टिंग कर के पता कर लिया था कि इस मामले में गलती किस की थी. स्टिंग में कैमिकल इंजीनियर कह रहा था कि इस मामले में पूरी की पूरी गलती कंपनी के मालिक अली भाई की थी. उस ने उन से कहा था कि इस केमिकल की वजह से दवा फायदा पहुंचाने के बजाय खाने वाले को नुकसान पहुंचा सकती है. इसलिए इस का उपयोग करना ठीक नहीं होगा.

लेकिन कैमिकल और दवा इतनी ज्यादा बन चुकी थी कि अगर उसे बेकार किया जाता तो कंपनी को करोड़ों का नुकसान होता. इसलिए अली भाई ने कहा था कि दवा बना कर बाजार में भेजो, बाद में जो होगा, देखा जाएगा. दवा के इस्तेमाल से जब दर्जनों लोग मर गए तो मीडिया के शोर मचाने पर हाईकोर्ट ने उन्हीं खबरों के आधार पर खुद ही इस मामले को संज्ञान में लिया था.

इसीलिए इस मामले की पुलिस ने उल्टीसीधी जांच कर के छोटेमोटे कर्मचारियों को जेल भेज कर जो रिपोर्ट पेश की थी, उस पर कोर्ट को विश्वास नहीं हुआ था. पुलिस ने तो कंपनी के मालिक अली भाई को साफ बचा लिया था, लेकिन जब कैमिकल इंजीनियर का स्टिंग दिखाया गया तो कोर्ट ने उस रिपोर्ट को सिरे से खारिज कर दिया और दूसरे एक ईमानदार पुलिस अधिकारी से मामले की जांच कराई.

इस जांच अधिकारी ने मेहनत लगन और ईमानदारी से मामले की नए सिरे से जांच शुरू की. लेकिन उस पर दबाव डाल कर जांच रुकवा दी गई. मीडिया ने होहल्ला मचाया तो जांच फिर से शुरू हुई. इस तरह रिपोर्ट आने में काफी समय लग गया.

इस दूसरी जांच की रिपोर्ट के अनुसार, जिस दवा से इतनी मौतें हुई थीं, उसे बनवाने और बाजार में भेजने की जिम्मेदारी अली भाई पर आ गई थी. उस के असर को जानते हुए भी उन्होंने दवा बना कर बाजार में भेजने का आदेश दिया था. सच्चाई सामने आने के बाद अदालत ने उन्हें गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया था. अदालत के आदेश के बाद भी उन की गिरफ्तारी आसानी से नहीं हो सकी थी.

अली भाई के पास पैसों की कमी तो थी नहीं. उन्होंने अच्छे से अच्छे वकील किए. एक तरह से उन्होंने वकीलों की पूरी पैनल ही खड़ी कर दी थी. इन वकीलों ने सरकार को उस के पक्ष में करने के लिए पूरा जोर लगा दिया था. पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा था. जेल में उसे हर सुविधाओं वाला सेल मिला था. उन के लिए खाना भी घर से आता था. मोबाइल और इंटरनेट की सुविधा भी मिली थी.

दबाव की वजह से सरकारी वकील अली भाई वाले मुकदमे की पैरवी मन से नहीं कर रहा था. उस के रुख को देखते हुए यही लग रहा था कि वह अली भाई को सजा से बचाना चाहता है. उस के रवैए से यही लग रहा था कि जल्दी ही अली भाई को जमानत मिल जाएगी. कहा जा रहा था कि जमानत मिलते ही वह विदेश भाग जाएगा.

अली भाई को पूरा विश्वास था कि जो हालात चल रहे हैं, उसे जल्दी ही जमानत मिल जाएगी. लेकिन अचानक इस में एक बाधा खड़ी हो गई. जिन लोगों के घर वाले अली भाई की कंपनी की दवा खा कर मरे थे, उन्होंने सरकारी वकील पर अविश्वास जताते हुए अपने वकील के रूप में इफ्तिखार अहमद को अदालत में खड़ा कर दिया. सरकारी वकील के रवैए से अदालत भी संतुष्ट नहीं था. इसलिए इफ्तिखार अहमद को मुकदमे की पैरवी की इजाजत मिल गई.

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