इफ्तिखार अहमद का खून खौल रहा था. लेकिन उस समय वह पूरी तरह से मजबूर थे. अपनी जगह पर बैठ कर वह मुकदमे की फाइल देखने लगे. ठीक 11 बजे जज ने सीट संभाली. अली भाई के वकील ने खड़े हो कर कहा, ‘‘सर, मैं अलीभाई की जमानत की अर्जी देना चाहता हूं.’’
जज ने एकदम से कहा, ‘‘अभी तो जुर्म पर बहस होनी है. उस के बाद ही जमानत की अर्जी दी जा सकती है.’’
वकील जल्दी से बोला, ‘‘सर, बहस होती रहेगी, आप अर्जी तो ले लीजिए. मेरा मुवक्किल 70 साल का बूढ़ा और बीमार आदमी है. वह समाज का एक सम्मानित आदमी है. ऐसे आदमी को जमानत मिल जानी चाहिए. जनाब वकील इस्तगासा को भी इस जमानत पर कोई ऐतराज नहीं है.’’
बचाव पक्ष के वकील की इस बात पर वहां मौजूद लोग हैरान रह गए. जज को भी हैरानी हुई. उन्होंने इफ्तिखार अहमद की ओर देख कर कहा, ‘‘मि. इफ्तिखार अहमद, सचमुच आप को इस अर्जी पर कोई ऐतराज नहीं है?’’
सकुचाते हुए इफ्तिखार अहमद खड़े हुए, ‘‘जी नहीं सर, मानवीय आधार पर मुझे कोई ऐतराज नहीं है.’’
जज हैरानी से इफ्तिखार अहमद को देखते रह गए. इस के बाद उन्होंने अली भाई के वकील से कहा, ‘‘ठीक है, आप जमानत की अरजी दे दीजिए.’’
इस के बाद मुकदमा करने वालों में से एक आदमी ने इफ्तिखार अहमद के पास आ कर कहा, ‘‘वकील साहब, आप यह क्या कर रहे हैं? जमानत पर छूटते ही यह आदमी गायब हो जाएगा, आप ऐतराज करें.’’
इफ्तिखार अहमद ने झुंझला कर कहा, ‘‘आप लोग परेशान मत हों, ऐसा कुछ नहीं होगा. मुझे मेरा काम करने दें.’’