Hindi Stories : शहंशाह-ए-हिंद जहांदारशाह की बेगम-ए-खास गुलबदन जो चाहती थी, वही होता था. शराब के नशे में डूबे बादशाह ने पूरी हुकूमत गुलबदन को सौंप रखी थी. लेकिन जब गुलबदन के सामने उस का अतीत एक बच्चे के रूप में आया तो वह खूंखार सेनापति मंसूर के सामने मजबूर हो गई. लेकिन जब मां के हृदय में टीस उठी तो उस ने...

उस ने काला चोगा पहन रखा था. लंबी सफेद दाढ़ी, सिर पर कफनी, गरदन से नाभि तक झूलती रंगबिरंगे कौड़ीमनकों की मालाएं. कोई अलमस्त मुसलमान फकीर था वह. उस के एक हाथ में काले मोतियों की माला थी, जो अंगुलियों पर घूम रही थी. दूसरे हाथ से एक 11-12 वर्ष के बच्चे की अंगुली थामे वह मंथर गति से लालकिले के मुख्यद्वार की ओर बढ़ रहा था. बाहर खड़े हो कर उस फकीर ने लालकिले के प्राचीर पर नजर डाली. सदियों से सजग प्रहरी की तरह सीना ताने खड़ी लालकिले की गुंबदें कुछ अलसाई सी लगीं, लेकिन किले की प्राचीर पर लहराता मुगलिया सल्तनत का झंडा सतर्कता का परिचय दे रहा था.

किले की प्राचीर से फिसलती हुई उस बूढ़े फकीर की नजर किले के मुख्यद्वार पर जा कर ठहर गई, जहां कई संतरी हाथों में भाले और शमशीर लिए खड़े थे. संतरियों को देख कर बूढ़े फकीर ने एक गहरी सांस छोड़ी. उस के चेहरे पर कशमकश के भाव उभर आए, मानो किसी बात को ले कर उस के मन में उथलपुथल मची हो. हिम्मत टूटती सी लगी, पैर जवाब देने लगे. लेकिन उस ने शीघ्र ही अपने आपको संभाला और बच्चे की ओर देखते हुए बोला, ‘‘बेटा, यही है लालकिला, जहां मलिका-ए-आलम गुलबदन रहती हैं. हम लोग यहां तक आ तो गए, पर कह नहीं सकता कि मलिका-ए-हिंद से मिल भी पाएंगे या नहीं.

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